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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-AWA)
Version
नीतिवचन 16-18

16 मनई तउ आपन जोजना क बनावत ह, मुला ओनका यहोवा ही कारज क रूप देत ह।

मनई क आपन राहन पाप रहित लागत ही; मुला यहोवा ओकरी नियत क परखत ह।

जउन कछू तू यहोवा क समर्पण करत अहा तोहार सारी जोजनन सफल होइहीं।

यहोवा हर एक चिजियन बरे जोजना बनाएस ह, अउर आपन जोजना क मुताबिक दुट्ठन क नास कीन्ह जाब।

जेनके मने मँ अहंकार भरा भवा अहइ, ओनसे यहोवा घिना करत ह। एका तू सुनिहचित जाना, कि उ पचे बगैर सजा पाए नाहीं बचिहीं।

वफादारी अउर सच्चाइ स अपराध क खतम किया जा सकत ह। यहोवा क आदर करइ स तू बुराइ स बचब्या।

यहोवा क जब मनई क राहन भावत हीं, उ ओकरे दुस्मनन क भी संग सान्ति स रहइ क मीत बनाइ देत ह।

अनिआव स मिले जियादा क अपेच्छा, नेकी क संग तनिक मिलब ही उत्तिम अहइ।

मने मँ मनई निज राहन रचत ह, मुला यहोवा ओकरे गोड़न क सुनिहचित करत ह।

10 राजा जउन बोलत ह नेम बन जात ह। ओका चाही उ निआव स नाहीं चूकइ।

11 यहोवा चाहत ह कि सबइ तराजू अउ बाट खरा होइ। उ चाहत ह कि सबइ व्यापारिक कारोबार निस्पच्छ होइ।

12 विवेकी राजा, बुरे करमन स घिना करत ह काहेकि नेकी पइ ही सिंहासन टिकत ह।

13 राजा लोगन क निआव स भरी वाणी पसन्द करइ चाही। जउन जन फुरइ बोलत ह, उ पचन्क ओका सम्मान देइ चाइही।

14 राजा क कोप मउत क दूत होत ह मुला गियानी जन स ही उ सांत होइ।

15 राजा जब खुस होत ह तब सबइ क जिन्नगी उत्तिम होत ह, अगर राजा तोहसे खुस अहइ तउ उ बसंत ऋतु क बर्खा जइसी अहइ।

16 विवेक सोना स जियादा उत्तिम अहइ, अउर समुझबूझ पाउब चाँदी स उत्तिम अहइ।

17 सज्जन लोगन क राह बदी स दूर रहत ह। जउन आपन राहे क चौकस करत ह, उ आपन जिन्नगी क रखवारी करत ह।

18 नास आवइ स पहिले अहंकार आइ जात ह; अउ पतन स पहिले अहंकारी आवत ह।

19 स्वाभिमानी लोगन क संग लूटक सम्पत्ति बाँट लेइ स, दीन अउ गरीब लोगन क संग विनम्र रहब उत्तिम अहइ।

20 जउन भी आपन कारोबार म अच्छा अहइ उ फूली-फली। अउर जेकर भरोसा यहोवा पइ अहइ उहइ धन्न अहइ।

21 बुद्धिमान मनवाला विवेक कहवावत हीं। अउर उ व्यक्ति जउन सवधानी स सब्दन क चुनत ह उ जियादा बिस्सास जोग्ग होत ह।

22 जेनके लगे समुझबूझ अहइ, ओनके बरे समुझबूझ जिन्नगी सोता होत ह, मुला मूरखन क मूढ़ता ओनका सजा दिआवत ह।

23 बुद्धिमान क हिरदय आपन वाणी क अनुसासन मँ धरत ह; अउर बिस्सास जोग्ग सब्दन क जोड़त ह।

24 मन क भावइ वाली वाणी सहद जइसी होत ह। ओनका सरलता स ग्रहण किया जात ह अउर तोहार स्वास्थ्य बरे नीक होत ह।

25 मारग अइसा भी होत ह जउन उचित जान पड़त ह, मुला परिणाम मँ उ मउत क जात ह।

26 काम करइवाला क भूखे स भरी सबइ इच्छा ओहसे काम करवावत रहत हीं। इ भूख ही ओका अगवा ढकेलत ह।

27 बुरा मनई सडयंत्र रचत ह, अउर ओकर वाणी अइसी होत ह जइसी झुरसत आगी।

28 उत्पाती मनई बात-विवाद भड़कावत ह। अउर कानाफूसी करइ वाला निचके क मीतन क फोड़ देत ह।

29 आपन पड़ोसी क उ हिसंक फँसाइ लेत ह अउर कुमारग पइ ओका हींच लइ जात ह। 30 जब भी मनई आँखी स इसारा कइके जोजनन क रचत रहत ह उ बिनासकारी ह। जब पड़ोसी क चोट पहुचावइ बरे जोजना रच लेत ह तउ उ हसँत ह।

31 सफेद बार महिमा मुकुट होत हीं जउन धर्मी जिन्नगी स मिलत हीं।

32 धर्मी जन कउनो जोधा स भी उत्तिम अहइँ, अउर जउन किरोध पइ नियंत्रण धरत ह, उ अइसे मनई स उत्तिम होत ह, जउन पूरे सहर क जीत लेत ह।

33 पासा तउ झोरी मँ डाइ दीन्ह जात ह, मुला ओकर हर फैसला यहोवा ही करत ह।

17 झंझट झमेला भरे घरे क दावत स चैन अउ सान्ति क सूखी रोटी क टूका खाउब उत्तिम अहइ।

बुद्धिमान दास एक अइसे पूत पइ सासन करी जउन घरे बरे सर्मनाक होत ह। बुद्धिमान दास उ पूत क जइसा ही बसीयत पावइ मँ सहभागी होइ।

जइसे चाँदी अउ सोना क आगी मँ डाइ क सुद्ध कीन्ह जात ह वइसे ही यहोवा लोगन क हिरदय क परखत सोधत ह

दुट्ठ जन, दुट्ठ क वाणी क सुनत ह, लबार बैर भरी वाणी पइ धियान देत ह।

अइसा मनई जउन गरीब क हँसी उड़ावत ह, उ ओकरे सिरजनहार क अपमान करत ह। अउर उ जउन कउनो दूसर क समस्या पइ खुस होत ह सजा झेलब्या।

नाती-पोतन बृद्ध जन क मकुट होत हीं, अउर महतारी-बाप ओनके लरिकन क मान अहइँ।

मूरख बरे जियादा बोलब उत्तिम नाहीं अहइ वइसे ही सासक क झूठ बोलब केतना बुरा होइ!

घूस देइवाले क घूस महामंत्र जइसे लागत ह, जेहसे उ जहाँ भी जाइ, सफल ही होइ जाइ।

जदि कउनो मनइ कउनो क जउन ओकर बुरा किहस ह छमा कइ देत ह तउ उ पचे दोस्त होइ सकत ह। किन्तु उ मनइ जउन छमा करत ह उ लगातार दूसर क गलती क याद करत ह तउ ओनकर दोस्ती टूट जात ह।

10 विवेकी क धमकाउब ओतना प्रभावित करत ह; जेतना मूरखन क सौ-सौ कोड़न भी नाहीं करतेन।

11 दुट्ठ जन तउ बस हमेसा विद्रोह करत रहत ही; ओकरे बरे दाया स हीन अधिकारी पठवा जाइ।

12 आपन बेवकूफी मँ चूर कउनो मूरख स मिलइ स अच्छा बाटइ, कि उ रीछिन स मिलब जेहसे ओकर बच्चन क छीन लीन्ह गवा होइ।

13 भलाई क बदले मँ अगर कउनो बुराई करइ तउ ओकरे घरे क बुराई नाहीं तजी।

14 झगड़ा सुरू करब अइसा अहइ जइसे बाँध क टूटब अहइ, तउ, एकरे पहिले कि तकरार सुरू होइ जाइ बात खतम करा।

15 यहोवा एन दुइनउँ ही बातन स घिना करत ह, दोखी क छोड़ब, अउर निर्दोख क सजा देब।

16 मूरख क हाथन मँ धने क का प्रयोजन। काहेकि, ओका चाह नाहीं कि बुद्धि क मोल लेइ।

17 मीत तउ सदा-सर्वदा पिरेम करत ह। एक सच्चा भाइ बुरे दिनन मँ साहयता करत ह।

18 विवेकहीन जन ही किरिया स हाथ बँधाइ लेत अउर आपन पड़ोसी क ऋृण ओढ़ लेत ह।

19 जेका लड़ाई-झगड़ा भावत ह, उ तउ सिरिफ पापे स पिरेम करत ह अउर जउन डींग हाँकत रहत ह उ तउ आपन ही नास बोलावत ह।

20 कुटिल हिरदय जन कबहुँ फूलत फलत नाहीं अउर जेकर वाणी छली भइ अहइ, विपद मँ गिरत ह।

21 मूरख पूत बाप बरे पीरा लिआवत ह, मूरख क बाप क कबहुँ आनंद नाहीं होत।

22 खुस रहब सब स बड़की दवा अहइ, मुला बुझा मन हाड़न क झुराइ देत ह।

23 दुट्ठ मनई, निआव क गलत उपयोग करइ बरे एकांत मँ घूस लेत ह।

24 बुद्धिमान जन बुद्धि क समन्वा धरत ह, मुला मूरख क आँखिन धरती क छोरन तलक भटकत हीं।

25 मूरख पूत बाप क तेज ब्यथा देत ह, अउर महतारी बरे जउन ओका जनम दिहस, कड़ुवाहट भरि देत ह।

26 कउनो निर्दोख क दण्ड देब उचित नाहीं, ईमानदार नेता क पीटब नीक नाहीं अहइ।

27 गियानी जन खामूस रहत ही, समुझ-बूझ वाला जन आपन पइ काबू राखत ह।

28 मूरख भी जब तलक नाहीं बोलत नीक लागत ह। अउर अगर आपन वाणी रोकइ तउ गियानी जाना जात ह।

18 कछू मनई आपन इच्छा क अनुसार काम करत ही। जदि दूसर कउनो ओनका सलाह देत ह तउ उ कोहान जात ह।

मूरख जन दूसर स सीखइ मँ खुस नाही होत ह। उ जउन कछू सोचत ह उहइ बोलत मँ खुस होत ह।

लोग दुट्ठ व्यक्ति क नाही चाहवत ह। लोग मूरख लोग क मजाक उड़ावत ह।

बुद्धिमान क सब्द गहिर जल क नाईं होत हीं, उ पचे बुद्धि क सोता स उछरत भए आवत हीं।

दुट्ठ जन क पच्छ लेब अउर निर्दोख क निआव स वंचित राखब उचित नाहीं होत।

मूरख क होठंन बात-बिवाद क जनम देत ह अउर आपन मुँह क कारण उ पिटा जात ह।

मूरख क मुँह ओकरे कामे क बिगाड़ देत ह अउर ओकर आपन ही होंठन क जाले मँ ओकर परान फंसि जात ह।

लोग हमेसा गपसप सुनइ चाहत ही। इ उत्तिम भोजन क नाई अहइ जउन पेट क भीतर उतरत चला जात ह।

जउन अपन काम मंद गति स करत ह, उ ओकर भाई अहइ, जउन विनास करत ह।

10 यहोवा क नाउँ एक सुदृढ़ गढ़ क नाईं अहइ। उ कइँती धर्मी जन दौड़ जात हीं अउर सुरच्छित रहत हीं।

11 धनिक समुझत हीं कि ओनकर धन ओनका बचाइ लेइ उ पचे समुझत हीं कि उ एक सुरच्छित किला अहइ।

12 पतन स पहिले मन अंहकारी बन जात ह, मुला सम्मान स पूर्व विनम्रता आवत ह।

13 बात क बिना सुने ही, जउन जवाब मँ बोल पड़त ह, उ ओकर बेवकूफी अउ ओकर अपजस अहइ।

14 मनई क मन ओका बियाधि मँ थामे राखत ह; मुला टूटे हिरदय क भला कउनो कइसे थामइ।

15 बुद्धिमान क मन गियान क पावत ह, बुद्धिमान क कान एका खोज लेत हीं।

16 उपहार देइवाले क मारग उपहार खोलत ह अउर ओका महापुरुसन क समन्वा पहोंचाइ देत ह।

17 पहिले जउन बोलत ह ठीक ही लागत ह मुला बस तब तलक ही जब तलक दूसर ओहसे सवाल नाहीं करत ह।

18 अगर दुइ बरिआर आपुस मँ झगड़त होइँ, उत्तिम अहइ कि ओनके झगड़न क पाँसा बहाइके निपटाउब।

19 रूठे भए बन्धु क मनाउब कउनो गढ़ वाला सहर क जीत लेइसे जियादा कठिन अहइ। अउर आपुसी झगड़न अइसे होत ही जइसे गढ़ी क मुँदे दुआर होत हीं।

20 मनई क पेट ओकरे मुँहे क फले स ही भरत ह, ओकरे होंठन क खेती क प्रतिफल ओका मिलत ह।

21 जीभ क वाणी जिन्नगी अउर मउत क सक्ति रखत ह। अउर जउन वाणी स पिरेम राखत हीं, उ पचे ओकर फल स आनन्दित होत हीं।

22 जेका नीक पत्नी मिली अहइ, उ उत्तिम पदार्थ पाएस ह। ओका यहोवा क अनुग्रह मिलत ह।

23 गरीब जन तउ दाया क माँग करत ह, मुला धनी जन तउ कठोर जवाब देत ह।

24 बहोत सारे मीतन क संगत तबाही लाइ सकत ह। किंतु आपन घनिष्ठ मीत भाई स भी उत्तिम होइ सकत ह।

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