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Chronological

Read the Bible in the chronological order in which its stories and events occurred.
Duration: 365 days
Awadhi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-AWA)
Version
नीतिवचन 10-12

सुलेमान क कहावत

10 इ सबइ सुलैमान क नीतिवचन (कहावतन) अहइ।

एक बुद्धिमान पूत अपने बाप क आनन्द देत ह। मुला एकठु मूरख पूत, महतारी क दुःख देत ह।

बुराई स कमाए भए धन क खजाना हमेसा बियर्थ रहत हीं। जबकि धार्मिकता मउत स छोड़ावत ह। सत्य क मारग हम लोगन क मउत स बचावत ह।

यहोवा कउनो भी नेक व्यक्ति क भूखा नाहीं रहइ देत ह। मुला दुट्ठ क लालसा पइ पानी फेरि देत ह।

सुस्त हाथ मनई क दरिद्र कइ देत ह, मुला मेहनती हाथ सम्पत्ति लिआवत हीं।

ग्रीस्मकाल मँ जउन उपज क बटोरके राखत ह, उहइ पूत बुद्धिमान अहइ; किन्तु जउन कटनी क समइ मँ सोवत ह उ पूत सर्मनाक होत ह।

नीक लोगन क मूँड़ पइ आसीसन क मुकुट होत ह मुला दुद्ठ क मुँह हिंसा स भरा होत ह।

नीक लोगन क यादगार आसीस होत ह, मुला दुट्ठ लोगन क नाउँ मिट जाहीं।

उ आग्या मानी जेकर मन विवेकसील अहइ, जबकि बकवास मूरख नस्ट होइ जाइ।

विवेकवाला मनई सुरच्छित रहत ह, मुला टेंढ़ी चाल चलइवाले क भण्डा फूटी।

10 जउन बुरे इरादे स आँखी क इसारा करइ, तउ ओका ओहसे दुःख ही मिली। अउर बकवासी मूरख नस्ट होइ जाइ।

11 धर्मी व्यक्ति क मुँह तउ जिन्नगी क सोता अहइ, मुला दुट्ठ व्यक्ति क मुँहे हिंसा स भरा पड़त ह।

12 घिना वाद-विवाद क कारण अहइ। जबकि पिरेम सबइ अपराध क ढाँपि लेत ह।

13 बुद्धि क निवास हमेसा समुझदार ओंठन पइ होत ह, मुला जेनमाँ नीक बुरा क बोध नाहीं होत, ओकरे पिठिया पइ डंडा होत ह।

14 बुद्धिमान लोग, गियान क संचित करत रहेन, भुला मूरख क बाणी विपत्ति क बोलावत ह।

15 धनिक क धन, ओनकर मजबूत किला होत, दीन क दीनता पइ ओकर बिनास अहइ।

16 धर्मी मनइ क कमाई ओनका जिन्नगी प्रदान करत ह। मुला दुट्ठ मनइ आपन पाप बरे कीमत चुकावत ह।

17 उ जउन अनुसासन स सीखत ह उ दूसर क जिन्नगी क मारग बरे निर्देस दे सकत ह। मुला उ जउन हिदायत क उपेच्छा करत ह अइसा मनई दूसर क भटकावा करत ह।

18 जउन मनई बैर पइ परदा डाए राखत ह, उ मिथ्यवादी अहइ अउर उ जउन निन्दा फइलावत ह, मूरख अहइ।

19 जियादा बोलइ स, कबहुँ पाप दूर नाहीं होत मुला जउन आपन जवान क लगाम देता ह, उहइ बुद्धिमान अहइ।

20 धर्मी क वाणी विसुद्ध चाँदी अहइ, मुला दुट्ठ क हिरदय क कउनो मोल नाहीं।

21 धर्मी जन क बातन चाँदी क नाई होत ह। मुला दुट्ठ मनइ क सुझाव क कउनो कीमत नाहीं होत ह।

22 यहोवा क वरदान स जउन धन मिलत ह, ओकरे संग उ कउनो दुःख नाहीं जोड़त।

23 बुरे आचार मँ मूरख क सुख मिलत ह, मुला एक समुझदार विवेक मँ सुख लेत ह।

24 जेहसे मूरख भयभीत होत ह ओका उहइ क कस्ट झेलइ क होइ। किन्तु एक धर्मी मनइ आपन इच्छा स आसिसित कीन्ह जाइ।

25 आँधी जब गुजरत ह, दुट्ठ उड़ जात हीं, मुला धर्मी लोग तउ सदा ही बिना हिले डुले खड़ा रहत हीं।

26 काम पइ जउन कउनो आलसी क पठवत ह, उ बन जात ह जइसे अम्ल सिरका दाँत क खटावत ह, अउर धुआँ आँखिन क तड़पावत दुःख देत ह।

27 यहोवा क भय उमिर बढ़ावत ह। मुला एक दुट्ठ मनई क उमिर तउ घट जात ह।

28 धमीर् क भविस्स आनन्द-उल्लास अहइ। मुला दुट्ठ क आसा तउ बियर्थ रहि जात ह।

29 इमानदार लोगन बरे यहोवा क मारग सरणस्थल अहइ; मुला जउन बुरा जन अहइँ, ओनकर इ बिनास अहइ।

30 धर्मी जन क कबहुँ उखाड़ा न जाइ, मुला दुट्ठ धरती पइ कबहुँ टिक नाहीं पाइ।

31 धर्मी क मुँहे स बुद्धि क धार बहत ह, मुला कुटिल जीभ क तउ काटिके लोकावा जाइ।

32 धर्मी क ओंठ जउन उचित अहइ जानत हीं, मुला दुट्ठ क मुँह बस कुटिल बातन बोलन ह।

11 यहोवा छले क तराजू स घिना करत ह, मुला ओकर आंनद सही नाप-तौल पइ अहइ।

अभिमान क संग अपमान आवत ह, मुला नम्रता क संग विवेक आवत ह।

इमानदार लोगन क नेकी ओनकर अगुवाई करत ह, मुला बिस्सासघाती क कपट ओनका विनास करत ह।

जब परमेस्सर लोगन क परखत ह तउ धन बियर्थ रहत ह। इ काम नाहीं आवत ह। मुला तब नेकी लोगन क मउत स बचावत ह।

नेकी निर्दोख जन बरे मारग सरल सोझ बनावत ह, मुला दुट्ठ जन क ओकर आपन ही दुट्ठई धूरि चटाइ देत ह।

नेकी सज्जन लोगन क छोड़ावत ह। मुला धोकाबाज आपन ही बुरे जोजना जालि क मँ फँस जात ह।

जब दुट्ठ मरत ह तउ ओकर बरे कउनो आसा नाही रहत ह। बुरे मनइ क आसा बियर्थ होइ जाइ।

धर्मी जन तउ बिपत्ति स छुटकारा पाइ लेत ह, जबकि ओकरे बदले उ दुट्ठ पइ आइ पड़त ह।

बुरे लोगन क वाणी आपन पड़ोसी क लइ बूड़त ह। मुला गियान क जरिये धर्मी जन तउ बचि निकरत ह।

10 धर्मी क विकास सहर क आनन्द स भरि देत ह। जबकि दुट्ठ क नास हर्सनाद उपजावत।

11 सच्चे जने क आसीस तउ सहर क ऊँच उठाइ देत ह मुला दुट्ठ क बातन खाले गिराइ देत हीं।

12 अइसा मनई जेकरे लगे विवेक नाहीं होत, उ आपन पड़ोसी क अपमान करत ह, मुला समुझदार मनई चुपचाप रहत ह।

13 जउन अफवाह फैलावत ह उ भेद परगट करत ह, किन्तु बिस्सासी जन भेद क छुपावत ह।

14 जहाँ मारग दर्सन नाहीं, हुआँ रास्ट्र पतित होत ह, मुला बहुत सलाहकार जीत क सुनिस्चित करत हीं।

15 जउन अनजाने मनइयन क जामिन बनत ह, उ निहचइ ही पीड़ा उठाइ। मुला जउन जामिन बनावइ स बचत ह उ आपन आप क सुरच्छा करत ह।

16 दयालु मेहरारू तउ आदर पावत ह जबकि क्रूर मनई क लाभ सिरिफ धन अहइ।

17 दयालु मनई खुद आपन भला करत ह, जबकि निर्दयी मनई खुद पइ विपत्ति लिआवत ह।

18 दुट्ठ जन कपट भरी कमाई कमाता ह, मुला जउन नेकी क बोवत ह, ओका तउ सच्चा प्रतिफले क पाउब अहइ।

19 उ जउन धार्मिकता मँ मजबूत अहइ लम्बी उमिर पावत ह। किन्तु जउन बुराई क अनुसरण करत ह कुसमइ मरि जात ह।

20 कुटिल जनन स, यहोवा घिना करत ह मुला उ ओनसे खुस होत ह जेनका जिन्नगी स्वच्छ होत हीं।

21 इ जाना निहचित अहइ कि दुट्ठ जन कबहुँ सजा स नाहीं बचिहीं। किन्तु धर्मी जन अउर ओनकर गदेलन सजा स बचिहीं।

22 जउन नीक बुरा मँ फरक नाहीं करत, उ मेहरारू क सुन्नरता अइसी अहइ जइसे कउनो सुअरे क थूथुन मँ सोना क नथुनी।

23 धर्मी मनई क अभिलासा क भलाई मँ अंत होत ह। मुला दुट्ठ क आसा सिरिफ किरोध मँ अंत होत ह।

24 जउन उदार अजाद भाव स दान देत ह, उन्नती करिहीं। मुल उ जउन ओन चिजियन क आपन लगे रखत ह जेका देइ चाही, ओकर लगे उ नाही होइ जेन्का जरुरत ओका अहइ।

25 उदार जन तउ हमेसा, फूली फली अउर जउन दूसरन क पिआस बुझाइ, ओकर तउ पिआस अपने आप ही बुझी।

26 अन्न क जमाखोर लोगन क गारी खात हीं, मुला जउन ओका बेचइ क राजी होत ह ओकरे मूँड़ बरदान क मकुट स सजत ह।

27 जउन भलाई पावइ क जतन करत ह उहइ जस पावत ह; मुला जउन बुराई क पाछे पड़ा रहत ओकरे तउ हथवा बुराई ही लागत ह।

28 जउन कउनो आपन धने क भरोसा करत ह, झरि जाइ उ बेजीव झुरान पाते जइसा; मुला धर्मी जन नवी हरियर कोंपर स हरा-भरा ही रही।

29 जउने आपन घराने पइ अपमान लिआइ ओका कछू भी नाही मिली। एक मूरख, बुद्धिमान क दास बनिके रही।

30 धर्मी मनई क करम-फल “जिन्नगी क बृच्छ” अहइ, अउर जउन जन आतिमान क जीत लेत ह, उहइ बुद्धिमान अहइ।

31 अगर इ धरती पइ धर्मी जन आपन उचित प्रतिफल पावत हीं, तउ फुन पापी अउ दुट्ठ जन आपन कुकरमन क केँतना फल हिआँ पइहीं।

12 जउन अनुसासन स पिरेम करत ह, उ तउ गियान स भी पिरेम करत ह। किन्तु जउन सुधार स घिना करत ह तउ उ निरा मूरख अहइ।

सज्जन मनई यहोवा क किरपा पावत ह, मुला छल छछंदी क यहोवा सजा देत ह।

दुट्ठता, कउनो जने क थिर नाहीं कइ सकत किन्तु धर्मी जन कबहुँ उखड़ नाहीं पावत ह।

एक उत्तिम पत्नी क संग पति खुस अउर अभिमानी होत ह। किंतु उ पत्नी जउन आपन मनसेधू क लजावत ह उ ओका तने क बेरामी जइसे होत ह।

धर्मी मनई क सबइ जोजना निआव स पूर्ण होत हीं जबकि दुट्ठ क सलाह कपट स भरी होत हीं।

दुट्ठ क सब्द लोगन क मारइ बरे घात मँ रहत हीं। मुला सज्जन क मुहँ ओनका बचावत ह।

जउन खोट होत हीं उखाड़ पेंका जात हीं, मुला धर्मी मनई क घराना टिका रहत ह।

मनई आपन अच्छा बातन जउन उ बोलत ह क मुताबिक तारीफ पावत ह। मुला उ जउन मुरख अहइ ओका तुच्छ जाना जात ह।

सामान्य मनई बनिके मेहनत करब उत्तिम अहइ एकरे कि भूखा रहिके महत्वपूर्ण मनई स सुआँग भरब।

10 धर्मी मनई आपन जानाबरन तलक क धियान रखत ह; किन्तु दुट्ठ मनइ सदा ही जालिम होत ह।

11 जउन अपने खेते मँ काम करत ह ओकरे लगे खाइके इफरात होइ। मुला जउन बियर्थ बिचारन क पाछा करत ह ओकरे लगे विवेक क अभाव रहत ह।

12 दुट्ठ जन बुरे जोजना क इच्छा करत ह। मुला धर्मी जन क जड़ फल लावत ह।

13 पापी मनई क ओकर आपन ही सब्द ओका जाल मँ फँसाइ लेत ह। किंतु खरा मनई बिपत्ति स बच निकरत ह।

14 आपन अच्छी बातन स जउन उ कहत ह मनइ अच्छा प्रतिफल पावत ह। इहइ तरह स एक मनइ आपन कार्य क अनुसार लाभ पावत ह।

15 मूरख क आपन मारग ठीक जान पड़त ह, मुला बुद्धिमान मनई सम्मति सुनत ह।

16 मूरख जन आपन झुँझलाहट झटपट देखावत ह मुला बुद्धिमान अपमान क उपेच्छा करत ह।

17 फुरइ स पूर्ण गवाह खरी गवाही देत ह, मुला लबार साच्छी झूठी बातन बनावत ह।

18 बिन बिचारे वाणी तरवार स छेदत, मुला विवेकी क वाणी घावन क भरत ह।

19 फुरइ स भरी वाणी हमेसा हमेसा टिकी रहत ह, मुला झूठी जीभ बस छिन भर क टिकत ह।

20 ओनके मने मँ छल-कपट भरा रहत ह, जउन कुचके स भरी जोजना रचत हीं। मुला जउन सान्ति क बढ़ावा देत हीं, आनन्द पावत हीं।

21 धर्मी जने पइ कबहँ विपत्ति नाहीं पड़ी, मुला दुट्ठन क तउ विपत्तियन घेरिहीं।

22 अइसे ओंठन क यहोवा घिना करत ह जउन झूठ बोलत हीं; मुला ओन लोगन स जउन सच स पूर्ण अहइँ, उ खुस रहत ह।

23 गियानी जियादा बोलत नाहीं ह, चुप रहत ह मुला मूरख जियादा बोलिके आपन अगियानी क देखावत ह।

24 मेहनती हाथ तउ सासन करिहीं, मुला आलस क परिणाम बेगार होइ।

25 चिंता स भरा मन मनई क दबोच लेत ह। किंतु सुभ समाचार ओका हर्स स भरि देत हीं।

26 धर्मी मनई आपन पड़ोसी क मार्गदर्सन करत ह। मुला दुट्ठन क चाल ओनहीं क भटकावत ह।

27 आलसी मनई आपन आलस क कारण आपन काम पूरा नाही कर सकत ह। मुला एक मेहनती मनइ आपन सखत मेहनत स धन दोलत पावत ह।

28 नेकी क मारग मँ जिन्नगी रहत ह, अउर उ राहे क किनारे अमरता बसत ह।

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