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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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योहन 13:20-35

20 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जो मेरे किसी भी भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है और जो मुझे ग्रहण करता है, मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है.”

शिष्यों के साथ मसीह येशु का अन्तिम भोज

(मत्ति 26:20-30; मारक 14:17-26; लूकॉ 22:14-30)

21 यह कहते-कहते मसीह येशु आत्मा में व्याकुल हो उठे. उन्होंने कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम में से एक मेरे साथ धोखा करेगा.”

22 शिष्य संदेह में एक दूसरे को देखने लगे कि गुरु यह किसके विषय में कह रहे हैं. 23 एक शिष्य, जो मसीह येशु का विशेष प्रियजन था, उनके अत्यन्त पास बैठा था; 24 शिमोन पेतरॉस ने उससे संकेत से पूछा, “प्रभु ऐसा किसके विषय में कह रहे हैं?”

25 उस शिष्य ने मसीह येशु से पूछा, “कौन है वह, प्रभु?” 26 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जिसे मैं यह रोटी डुबो कर दूँगा, वह.” तब उन्होंने रोटी शिमोन के पुत्र कारियोतवासी यहूदाह को दे दी. 27 टुकड़ा लेते ही उसमें शैतान समा गया. मसीह येशु ने उससे कहा.

“तुम्हें जो कुछ करना है, शीघ्र करो.”

28 भोजन पर बैठे किसी भी शिष्य को यह मालूम न हो पाया कि उन्होंने यह उससे किस मतलब से कहा था. 29 कुछ ने यह समझा कि मसीह येशु उससे कह रहे हैं कि जो कुछ हमें पर्व के लिए चाहिए, शीघ्र मोल लो या गरीबों को कुछ दे दो क्योंकि यहूदाह के पास धन की थैली रहती थी. 30 इसलिए यहूदाह तत्काल बाहर चला गया. वह रात का समय था.

निकट आती विदाई तथा एक नई आज्ञा

31 जब यहूदाह बाहर चला गया तो मसीह येशु ने कहा, “अब मनुष्य का पुत्र महिमित हुआ है और उसमें परमेश्वर महिमित हुए हैं. 32 यदि उसमें परमेश्वर महिमित हुए हैं तो परमेश्वर भी उसे स्वयं महिमित करेंगे और शीघ्र ही महिमित करेंगे.

33 “मैं बस अब थोड़ी ही देर तुम्हारे साथ हूँ, तुम मुझे ढूंढ़ोगे और जैसा मैंने यहूदियों से कहा है, वैसा मैं तुमसे भी कहता हूँ, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते.’

34 “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा दे रहा हूँ: एक दूसरे से प्रेम करो—जैसे मैंने तुमसे प्रेम किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम करो. 35 यदि तुम एक दूसरे से प्रेम करोगे तो यह सब जान लेंगे कि तुम मेरे चेले हो.”

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1 योहन 5:1-12

परमेश्वर-पुत्र में विश्वास द्वारा प्रेम

हर एक, जिसका विश्वास यह है कि येशु ही मसीह हैं, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है तथा हर एक जिसे पिता से प्रेम है, उसे उससे भी प्रेम है, जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है. परमेश्वर की सन्तान से हमारे प्रेम की पुष्टि परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम और उनकी आज्ञाओं का पालन करने के द्वारा होती है. परमेश्वर के आदेशों का पालन करना ही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम का प्रमाण है. उनकी आज्ञा बोझिल नहीं हैं.

जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह संसार पर जयवन्त है. वह विजय, जो संसार पर जयवन्त है, यह है: हमारा विश्वास. कौन है वह, जो संसार पर जयवन्त होता है? क्या वही नहीं, जिसका यह विश्वास है कि मसीह येशु ही परमेश्वर-पुत्र हैं?

यह वही हैं, जो जल व लहू के द्वारा प्रकट हुए मसीह येशु. उनका आगमन न केवल जल से परन्तु जल तथा लहू से हुआ इसके साक्षी पवित्रात्मा हैं क्योंकि पवित्रात्मा ही वह सच हैं सच तो यह है कि गवाह तीन हैं: पवित्रात्मा, जल तथा लहू. ये तीनों एकमत हैं. यदि हम मनुष्यों की गवाही स्वीकार कर लेते हैं, परमेश्वर की गवाही तो उससे श्रेष्ठ है क्योंकि यह परमेश्वर की गवाही है, जो उन्होंने अपने पुत्र के विषय में दी है. 10 जो कोई परमेश्वर-पुत्र में विश्वास करता है, उसमें यही गवाही भीतर छिपी है. जिसका विश्वास परमेश्वर में नहीं है, उसने उन्हें झूठा ठहरा दिया है क्योंकि उसने परमेश्वर के अपने पुत्र के विषय में दी गई उस गवाही में विश्वास नहीं किया.

11 वह साक्ष्य यह है: परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है. यह जीवन उनके पुत्र में बसा है. 12 जिसमें पुत्र का वास है, उसमें जीवन है, जिसमें परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसमें जीवन भी नहीं.

Saral Hindi Bible (SHB)

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