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20 सन्ध्या समय येशु अपने बारह शिष्यों के साथ बैठे हुए थे. 21 जब वे भोजन कर रहे थे येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूँ: तुम्हीं में एक है, जो मेरे साथ धोखा करेगा.”

22 बहुत उदास मन से हर एक शिष्य येशु से पूछने लगा, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ?”

23 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ कटोरे में अपना कौर डुबोया था, वही है, जो मेरे साथ धोखा करेगा. 24 मानव-पुत्र को तो जैसा कि उसके विषय में पवित्रशास्त्र में लिखा है, जाना ही है; किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो मनुष्य के पुत्र के साथ धोखा करेगा. उस व्यक्ति के लिए अच्छा तो यही होता कि उसका जन्म ही न होता.”

25 यहूदाह ने, जो येशु के साथ धोखा कर रहा था, उनसे प्रश्न किया, “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूँ न?”[a]

येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह तुमने स्वयं ही कह दिया है.”

26 जब वे भोजन के लिए बैठे, येशु ने रोटी ली, उसके लिए आशीष विनती की, उसे तोड़ा और शिष्यों को देते हुए कहा, “यह लो, खाओ; यह मेरा शरीर है.”

27 तब येशु ने प्याला लिया, उसके लिए धन्यवाद दिया तथा शिष्यों को देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो. 28 यह वाचा का[b] मेरा लहू है जो अनेकों की पाप-क्षमा के लिए उण्डेला जा रहा है. 29 मैं तुम पर यह सच प्रकट करना चाहता हूँ कि अब मैं दाखरस उस समय तक नहीं पिऊँगा जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया दाखरस न पिऊँ.”

30 तब एक भक्ति गीत गाने के बाद वे सब ज़ैतून पर्वत पर चले गए.

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Footnotes

  1. 26:25 अथवा: यह तुमने स्वयं कह दिया.
  2. 26:28 कुछ पाण्डुलिपियों मूल हस्तलेखों में: नई वाचा का.