Book of Common Prayer
प्रेम तथा अलग की हुई जीवनशैली
4 अन्ततः:, प्रियजन, तुमने हमसे अपने स्वभाव तथा परमेश्वर को प्रसन्न करने के विषय में जिस प्रकार के निर्देश प्राप्त किए थे—ठीक जैसा तुम्हारा स्वभाव है भी—प्रभु मसीह येशु में तुमसे हमारी विनती और समझाना है कि तुम इनमें और भी अधिक उन्नत होते चले जाओ. 2 तुम्हें वे आज्ञाएं मालूम ही हैं, जो हमने तुम्हें प्रभु मसीह येशु की ओर से दिए थे.
3 परमेश्वर की इच्छा है कि तुम पवित्रता की स्थिति में रहो—तुम वेश्यागामी से अलग रहो; 4 कि तुममें से हर एक को अपने-अपने शरीर को पवित्रता तथा सम्मानपूर्वक संयमित रखने का ज्ञान हो 5 कामुकता की अभिलाषा में अन्यजातियों के समान नहीं, जो परमेश्वर से अनजान हैं. 6 इस विषय में कोई भी सीमा उल्लंघन कर अपने साथी विश्वासी का शोषण न करे क्योंकि इन सब विषयों में स्वयं प्रभु बदला लेते हैं, जैसे हमने पहले ही यह स्पष्ट करते हुए तुम्हें गम्भीर चेतावनी भी दी थी. 7 परमेश्वर ने हमारा बुलावा अपवित्रता के लिए नहीं परन्तु पवित्र होने के लिए किया है. 8 परिणामस्वरूप वह, जो इन निर्देशों को नहीं मानता है, किसी मनुष्य को नहीं परन्तु परमेश्वर ही को अस्वीकार करता है, जो अपना पवित्रात्मा तुम्हें देते हैं.
9 भाईचारे के विषय में मुझे कुछ भी लिखने की ज़रूरत नहीं क्योंकि स्वयं परमेश्वर द्वारा तुम्हें शिक्षा दी गई है कि तुम में आपस में प्रेम हो 10 वस्तुत: मकेदोनिया प्रदेश के विश्वासियों के प्रति तुम्हारी यही इच्छा है. प्रियजन, हमारी तुमसे यही विनती है कि तुम इसी में और अधिक बढ़ते जाओ.
11 शान्त जीवनशैली तुम्हारी बड़ी इच्छा बन जाए. सिर्फ अपने ही कार्य में मगन रहो. अपने हाथों से परिश्रम करते रहो, जैसा हमने तुम्हें आज्ञा दी है 12 कि तुम्हारी जीवनशैली अन्य लोगों की दृष्टि में तुम्हें सम्मान्य बना दे तथा स्वयं तुम्हें किसी प्रकार का अभाव न हो.
फ़रीसियों के लिए असम्भव प्रश्न
(मत्ति 21:41-46; मारक 12:35-37)
41 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “लोग यह क्यों कहते हैं कि मसीह दाविद की सन्तान हैं, 42 क्योंकि स्वयं दाविद भजन संहिता में कहते हैं:
“‘याहवेह ने मेरे प्रभु से कहा,
“मेरे दायें पक्ष में बैठे रहो,
43 मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे अधीन करूँगा.” ’
44 “जब दाविद उन्हें प्रभु कह कर सम्बोधित करते हैं तब वह दाविद के पुत्र कैसे हुए?”
शास्त्रियों और फ़रीसियों का पाखण्ड
(मत्ति 23:1-12; मारक 12:38-40)
45 सारी भीड़ के सुनते हुए मसीह येशु ने शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, 46 “उन शास्त्रियों से सावधान रहना, जो ढीले-ढाले, लम्बे-लहराते वस्त्र धारण किए हुए घूमते रहते हैं, जिन्हें सार्वजनिक स्थलों पर सम्मान भरे नमस्कार की इच्छा रहती है. उन्हें यहूदी सभागृहों में प्रधान आसन तथा भोज के अवसरों पर सम्मान के स्थान की आशा रहती है. 47 वे विधवाओं के घर हड़प लेते हैं तथा मात्र दिखावे के उद्देश्य से लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करते हैं. कठोर होगा इनका दण्ड!”
कंगाल विधवा का दान
(मारक 12:41-44)
21 मसीह येशु ने देखा कि धनी व्यक्ति दानकोष में अपना-अपना दान डाल रहे हैं. 2 उन्होंने यह भी देखा कि एक निर्धन विधवा ने दो छोटे सिक्के डाले हैं. 3 इस पर मसीह येशु ने कहा, “सच यह है कि इस निर्धन विधवा ने उन सभी से बढ़कर दिया है. 4 इन सबने तो अपने धन की बढ़ती में से दिया है किन्तु इस विधवा ने अपनी कंगाली में से अपनी सारी जीविका ही दे दी है.”
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.