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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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1 थेस्सलोनि 2:1-12

पौलॉस का आदर्श

प्रियजन, तुम्हें यह अहसास तो है ही कि तुमसे भेंट करने के लिए हमारा आना व्यर्थ नहीं था, जैसा कि तुम्हें मालूम ही है कि फ़िलिप्पॉय नगर में दुःख उठाने और उपद्रव सहने के बाद घोर विरोध की स्थिति में भी तुम्हें परमेश्वर का ईश्वरीय सुसमाचार सुनाने के लिए हमें परमेश्वर के द्वारा साहस प्राप्त हुआ. हमारा उपदेश न तो भरमा देने वाली शिक्षा थी, न अशुद्ध उद्धेश्य से प्रेरित और न ही छलावा, परन्तु ठीक जिस प्रकार परमेश्वर के समर्थन में हमें ईश्वरीय सुसमाचार सौंपा गया. हम मनुष्यों की प्रसन्नता के लिए नहीं परन्तु परमेश्वर की संतुष्टि के लिए, जिनकी दृष्टि हृदय पर लगी रहती है, ईश्वरीय सुसमाचार का संबोधन करते हैं. यह तो तुम्हें मालूम ही है कि न तो हमारी बातों में चापलूसी थी और न ही हमने लोभ से प्रेरित हो कुछ किया—परमेश्वर गवाह हैं; हमने मनुष्यों से सम्मान पाने की भी कोशिश नहीं की; न तुमसे और न किसी और से.

मसीह के प्रेरित होने के कारण तुमसे सहायता पाना हमारा अधिकार था. तुम्हारे प्रति हमारा व्यवहार वैसा ही कोमल था जैसा एक शिशु का पोषण करती माता का, जो स्वयं बड़ी कोमलतापूर्वक अपने बालकों का पोषण करती है. इस प्रकार तुम्हारे प्रति एक मधुर लगाव होने के कारण हम न केवल तुम्हें ईश्वरीय सुसमाचार देने के लिए परन्तु तुम्हारे साथ स्वयं अपना जीवन सहर्ष मिल-बांट कर संगति करने के लिए भी लालायित थे—क्योंकि तुम हमारे लिए अत्यन्त प्रिय बन चुके थे. प्रियजन, जिस समय हम तुम्हारे बीच ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार कर रहे थे, तुम्हें उस समय का हमारा परिश्रम तथा हमारी कठिनाइयाँ याद होंगी कि कैसे हमने रात-दिन श्रम किया कि हम तुम में से किसी पर भी बोझ न बन जाएँ.

10 तुम इसके गवाह हो और परमेश्वर भी कि तुम सभी विश्वासियों के साथ हमारा स्वभाव कितना सच्चा, धर्मी और निर्दोष था. 11 तुम्हें यह भी मालूम है कि पिता समान हम किस प्रकार तुम में से हर एक को उपदेश देते हुए तथा प्रोत्साहित करते हुए तुम्हारे लिए प्रार्थना करते रहे, जैसे पिता अपनी निज सन्तान के लिए करता है 12 कि तुम्हारा स्वभाव परमेश्वर की संतुष्टि के योग्य हो, जिन्होंने तुम्हारा बुलावा अपने राज्य और महिमा में किया है.

लूकॉ 20:9-18

बुरे किसानों का दृष्टान्त

(मत्ति 21:33-46; मारक 12:1-12)

मसीह येशु ने भीड़ को यह दृष्टान्त सुनाया: “एक व्यक्ति ने एक दाख की बारी लगाई और उसे किसानों को पट्टे पर दे कर लम्बी यात्रा पर चला गया. 10 फसल तैयार होने पर उसने अपने एक दास को उनके पास भेजा कि वे फसल का एक भाग उसे दे दें किन्तु उन किसानों ने उसकी पिटाई कर उसे खाली हाथ ही लौटा दिया. 11 तब उसने दूसरे दास को उनके पास भेजा. किसानों ने उस दास की भी पिटाई की, उसके साथ शर्मनाक व्यवहार किया और उसे भी खाली हाथ लौटा दिया. 12 उसने तीसरे दास को उनके पास भेजा. उन्होंने उसे भी घायल कर बाहर फेंक दिया.

13 “तब दाख की बारी के स्वामी ने विचार किया: ‘अब मेरा क्या करना सही होगा? मैं अपने प्रिय पुत्र को उनके पास भेजूँगा. ज़रूर वे उसका सम्मान करेंगे.’

14 “किन्तु उसके पुत्र को देख किसानों ने आपस में विचार-विमर्श किया, ‘सुनो, यह तो वारिस है! चलो, इसकी हत्या कर दें जिससे यह सम्पत्ति ही हमारी हो जाए.’ 15 उन्होंने उसे बारी के बाहर निकाल कर उसकी हत्या कर दी.

“यह बताओ, उद्यान का स्वामी अब उनके साथ क्या करेगा? 16 यही कि वह आएगा और इन किसानों का वध कर बारी अन्य किसानों को सौंप देगा.” यह सुन लोगों ने कहा, “ऐसा कभी न हो!”

17 तब उनकी ओर देखकर मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “तो इस लेख का मतलब क्या है:

“‘राज मिस्त्रियों द्वारा निकम्मी ठहराई शिला ही
    आधार की शिला बन गई’?

18 हर एक, जो उस पर गिरेगा, वह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा और जिस पर यह गिरेगी, उसे पीस डालेगी.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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