Book of Common Prayer
कसौटी—हर्ष का विषय
2 प्रियजन, जब तुम विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं का सामना करते हो तो इसे निरे हर्ष का विषय समझो 3 क्योंकि तुम जानते ही हो कि तुम्हारे विश्वास की परीक्षा से धीरज उत्पन्न होता है. 4 धीरज को अपना काम पूरा कर लेने दो कि तुम निर्दोष और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी भी प्रकार की कमी न रह जाए.
5 यदि तुममें से किसी में भी ज्ञान का अभाव है, वह परमेश्वर से विनती करे, जो तिरस्कार किए बिना सभी को उदारतापूर्वक प्रदान करते हैं और वह उसे दी जाएगी, 6 किन्तु वह बिना शंका के विश्वास से माँगे क्योंकि जो संदेह करता है, वह समुद्र की उस चंचल लहर के समान है, जो हवा के चलने से उछाली और फेंकी जाती है. 7 ऐसा व्यक्ति यह आशा बिलकुल न करे कि उसे प्रभु की ओर से कुछ प्राप्त होगा. 8 ऐसा व्यक्ति का मन तो दुविधा से ग्रस्त है—अपने सारे स्वभाव में स्थिर नहीं है.
16 प्रियजन, धोखे में न रहना. 17 हर एक अच्छा वरदान और निर्दोष दान ऊपर से अर्थात् ज्योतियों के पिता की ओर से आता है, जिनमें न तो कोई परिवर्तन है और न अदल-बदल. 18 उन्होंने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कार्यान्वयन में हमें सत्य के वचन के द्वारा नया जीवन दिया है कि हम उनके द्वारा बनाए गए प्राणियों में पहिले फल के समान हों.
सम्पत्ति के इकट्ठा करने पर विचार
13 उपस्थित भीड़ में से किसी ने मसीह येशु से कहा, “गुरुवर, मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे साथ पिता की सम्पत्ति का बँटवारा कर ले.”
14 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “भलेमानुस! किसने मुझे तुम्हारे लिए न्यायकर्ता या मध्यस्थ ठहराया है?” 15 तब मसीह येशु ने भीड़ को देखते हुए उन्हें चेतावनी दी, “स्वयं को हर एक प्रकार के लालच से बचाए रखो. मनुष्य का जीवन उसकी सम्पत्ति की बहुतायत होने पर भला नहीं है.”
16 तब मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया: “किसी व्यक्ति की भूमि से अच्छी फसल उत्पन्न हुई. 17 उसने मन में विचार किया, ‘अब मैं क्या करूँ? फसल रखने के लिए तो मेरे पास स्थान ही नहीं है.’
18 “तब उसने विचार किया, ‘मैं ऐसा करता हूँ: मैं इन बखारियों को तोड़ कर बड़े भण्डार निर्मित करूँगा. तब मेरी सारी उपज तथा वस्तुओं का रख रखाव हो सकेगा. 19 तब मैं स्वयं से कहूँगा, “अनेक वर्षों के लिए अब तेरे लिए उत्तम वस्तुएं इकट्ठा हैं. विश्राम कर! खा, पी और आनन्द कर!.”’
20 “किन्तु परमेश्वर ने उससे कहा, ‘अरे मूर्ख! आज ही रात तेरे प्राण तुझ से ले लिए जाएँगे; तब ये सब, जो तूने अपने लिए इकट्ठा कर रखा है, किसका होगा?’
21 “यही है उस व्यक्ति की स्थिति, जो मात्र अपने लिए इस प्रकार इकट्ठा करता है किन्तु जो परमेश्वर की दृष्टि में धनवान नहीं है.”
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