Book of Common Prayer
8 यह ध्यान रहे कि कोई भी तुम्हें तत्व ज्ञान तथा खोखले छल के माध्यम से अपने वश में न कर ले, जो मनुष्य की परम्परा तथा संसार की आदि शिक्षा पर आधारित है—न कि मसीह के अनुसार.
सिर्फ मसीह ही मनुष्यों और स्वर्गदूतों के शिरोमणि हैं
9 परमेश्वरत्व की सारी परिपूर्णता उनके शरीर में वास करती है. 10 तुमने उन्हीं में, जो प्रधानता तथा अधिकार में सबसे ऊपर हैं, सारी परिपूर्णता प्राप्त की है. 11 मसीह द्वारा किए गए ख़तना के द्वारा, जब तुम्हारा सारा पाप का स्वभाव उतार दिया गया, तुम्हारा ऐसा ख़तना किया गया, जिसे हाथ से नहीं बनाया गया; 12 जब तुम बपतिस्मा में उनके साथ गाड़े गए तथा उसी में उनके साथ उस विश्वास के द्वारा जिलाए भी गए, जो परमेश्वर के सामर्थ में है, जिन्होंने मसीह को मरे हुओं में से जीवित किया.
13 तुम जब अपने अपराधों और अपनी शारीरिक खतनाहीनता में मरे हुए थे, उन्होंने हमारे सभी अपराधों को क्षमा करते हुए तुम्हें उनके साथ जीवित कर दिया. 14 उन्होंने हमारे कर्ज़ के प्रमाण-पत्र को, जिसमें हमारे विरुद्ध लिखा गया अध्यादेश था, मिटाकर क्रूस पर कीलों से जड़ कर सामने से हटा दिया 15 और परमेश्वर ने प्रधानों तथा अधिकारियों को निहत्था कर उन्हें अपनी विजय-यात्रा में खुल्लम-खुल्ला तमाशे का पात्र बना दिया.
संसार की रीतियों को मिटा देना
16 इसलिए तुम्हारे खान-पान या उत्सव, नए चाँद या शब्बाथ को लेकर कोई तुम्हारा फैसला न करने पाए. 17 ये सब होनेवाली घटनाओं की छाया मात्र हैं. मूल वस्तुएं तो मसीह की हैं. 18 कोई भी, जो विनम्रता के दिखावे और स्वर्गदूतों की उपासना में लीन है, तुम्हें तुम्हारे पुरस्कार से दूर न करने पाए. ऐसा व्यक्ति अपने देखे हुए ईश्वरीय दर्शनों का वर्णन विस्तार से करता है तथा खोखली सांसारिक समझ से फूला रहता है. 19 यह व्यक्ति उस सिर को दृढ़तापूर्वक थामे नहीं रहता जिससे सारा शरीर जोड़ों और सांस लेनेवाले अंगों द्वारा पोषित तथा सम्बद्ध रहता और परमेश्वर द्वारा किए गए विकास से बढ़ता जाता है.
20 जब तुम सांसारिक तत्व-ज्ञान के प्रति मसीह के साथ मर चुके हो तो अब तुम्हारी जीवनशैली ऐसी क्यों है, जो संसार के इन नियमों के अधीन है: 21 “इसे मत छुओ! इसे मत चखो! इसे व्यवहार में मत लाओ!” 22 लगातार उपयोग के कारण इन वस्तुओं का नाश होना इनका स्वभाव है क्योंकि इनका आधार सिर्फ मनुष्य की आज्ञाएँ तथा शिक्षाएं हैं. 23 अपनी ही सुविधा के अनुसार गढ़ी गई आराधना विधि, विनम्रता के दिखावे तथा शरीर को कष्ट देने के भाव से ज़रूर दिखाई दे सकती है किन्तु शारीरिक वासनाओं के दमन के लिए ये सब हमेशा विफल सिद्ध होते हैं.
सेवकाई का प्रारम्भ गलील प्रदेश से
(मारक 1:14-15; लूकॉ 4:14-15; योहन 4:43-45)
12 यह मालूम होने पर कि बपतिस्मा देने वाले योहन को बन्दी बना लिया गया है, येशु गलील प्रदेश में चले गए 13 और नाज़रेथ नगर को छोड़ कफ़रनहूम नगर में बस गए, जो झील तट पर ज़बूलून तथा नप्ताली नामक क्षेत्र में था. 14 ऐसा इसलिए हुआ कि भविष्यद्वक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी हो:
15 यरदन नदी के पार समुद्रतट पर बसे ज़बूलून तथा नप्ताली प्रदेश
अर्थात् गलील प्रदेश में,
जहाँ [a]अन्यजाति बसे हुए हैं,
16 —उन्होंने, जो अन्धकार में निवास कर रहे हैं,
एक तेज़ प्रकाश का दर्शन किया; उन लोगों पर,
जो ऐसे स्थान में निवास कर रहे हैं जिस पर मृत्यु-छाया है,
प्रकाश उदय हुआ.
17 उस समय से येशु ने यह उपदेश देना प्रारम्भ कर दिया, “पश्चाताप करो क्योंकि स्वर्ग-राज्य समीप आ गया है.”
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