Print Page Options
Previous Prev Day Next DayNext

Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
Error: 'भजन संहिता 20-21' not found for the version: Saral Hindi Bible
Error: 'भजन संहिता 110 ' not found for the version: Saral Hindi Bible
Error: 'भजन संहिता 116-117' not found for the version: Saral Hindi Bible
Error: 'निर्गमन 17 ' not found for the version: Saral Hindi Bible
1 पेतरॉस 4:7-19

अन्य निर्देश

संसार का अन्त पास है इसलिए तुम प्रार्थना के लिए संयम और सचेत भाव धारण करो. सबसे उत्तम तो यह है कि आपस में उत्तम प्रेम रखो क्योंकि प्रेम अनगिनत पापों पर पर्दा डाल देता है. बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो. 10 हर एक ने परमेश्वर द्वारा विशेष क्षमता प्राप्त की है इसलिए वह परमेश्वर के असीम अनुग्रह के उत्तम भण्ड़ारी के रूप में एक दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसका प्रयोग करे. 11 यदि कोई प्रवचन करे, तो इस भाव में, मानो वह स्वयं परमेश्वर का वचन हो; यदि कोई सेवा करे, तो ऐसी सामर्थ से, जैसा परमेश्वर प्रदान करते हैं कि सभी कामों में मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिनका साम्राज्य और महिमा सदा-सर्वदा है. आमेन.

12 प्रियो, उस अग्नि रूपी परीक्षा से चकित न हो, जो तुम्हें परखने के उद्धेश्य से तुम पर आएगी, मानो कुछ अनोखी घटना घट रही है, 13 परन्तु जब तुम मसीह के दुःखों में सहभागी होते हो, आनन्दित होते रहो कि मसीह येशु की महिमा के प्रकट होने पर तुम्हारा आनन्द उत्तम विजय आनन्द हो जाए. 14 यदि मसीह के कारण तुम्हारी निन्दा की जाती है तो तुम आशीषित हो क्योंकि तुम पर परमेश्वर की महिमा का आत्मा छिपा है. 15 तुममें से कोई भी किसी भी रीति से हत्यारे, चोर, दुराचारी या हस्तक्षेपी के रूप में यातना न भोगे; 16 परन्तु यदि कोई विश्वासी होने के कारण दुःख भोगे, वह इसे लज्जा की बात न समझे परन्तु मसीह की महिमा के कारण परमेश्वर की स्तुति करे. 17 परमेश्वर के न्याय के प्रारम्भ होने का समय आ गया है, जो परमेश्वर की सन्तान से प्रारम्भ होगा और यदि यह सबसे पहिले हमसे प्रारम्भ होता है तो उनका अन्त क्या होगा, जो परमेश्वर के ईश्वरीय सुसमाचार को नहीं मानते हैं?

18 “यदि धर्मी का ही उद्धार कठिन होता है
    तो भक्तिहीन व पापी का क्या होगा?”

19 इसलिए वे भी, जो परमेश्वर की इच्छानुसार दुःख सहते हैं, अपनी आत्मा विश्वासयोग्य सृजनहार को सौंप दें, और भले काम करते रहें.

योहन 16:16-33

प्रार्थना में येशु नाम के प्रयोग का निर्देश

16 “कुछ ही समय में तुम मुझे नहीं देखोगे और कुछ समय बाद तुम मुझे दोबारा देखोगे.”

17 इस पर उनके कुछ शिष्य आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “उनका इससे क्या मतलब है कि वह हमसे कह रहे हैं, ‘कुछ ही समय में तुम मुझे नहीं देखोगे और कुछ समय बाद तुम मुझे दोबारा देखोगे;’ और यह भी, ‘मैं पिता के पास जा रहा हूँ’?” 18 वे एक-दूसरे से पूछते रहे, “समझ नहीं आता कि वह क्या कह रहे हैं. क्या है यह कुछ समय बाद जिसके विषय में वह बार-बार कह रहे हैं?”

19 यह जानते हुए कि वे उनसे कुछ पूछना चाहते हैं, मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या तुम इस विषय पर विचार कर रहे हो कि मैंने तुमसे कहा कि कुछ ही समय में तुम मुझे नहीं देखोगे और कुछ समय बाद मुझे दोबारा देखोगे? 20 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम रोओगे और विलाप करोगे जबकि संसार आनन्द मना रहा होगा. तुम शोकाकुल होगे किन्तु तुम्हारा शोक आनन्द में बदल जाएगा. 21 प्रसव के पहले स्त्री शोकित होती है क्योंकि उसका प्रसव पास आ गया है किन्तु शिशु के जन्म के बाद संसार में उसके आने के आनन्द में वह अपनी पीड़ा भूल जाती है. 22 इसी प्रकार अभी तुम भी शोकित हो किन्तु मैं तुमसे दोबारा मिलूँगा, जिससे तुम्हारा हृदय आनन्दित होगा कोई तुमसे तुम्हारा आनन्द छीन न लेगा. 23 उस दिन तुम मुझसे कोई प्रश्न न करोगे. मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: यदि तुम पिता से कुछ भी माँगोगे, वह तुम्हें मेरे नाम में दे देंगे. 24 अब तक तुमने मेरे नाम में पिता से कुछ भी नहीं मांगा; माँगो और तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा कि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए.

25 “इस समय मैंने ये सब बातें तुम्हें कहावतों में बतायी है किन्तु समय आ रहा है, जब मैं पिता के विषय में कहावतों में नहीं परन्तु साफ़ शब्दों में बताऊँगा. 26 उस दिन तुम स्वयं मेरे नाम में पिता से माँगोगे. मैं यह नहीं कह रहा कि मुझे ही तुम्हारी ओर से पिता से विनती करनी पड़ेगी. 27 पिता स्वयं तुमसे प्रेम करते हैं क्योंकि तुमने मुझसे प्रेम किया और यह विश्वास किया है कि मैं पिता का भेजा हुआ हूँ. 28 हाँ, मैं—पिता का भेजा हुआ—संसार में आया हूँ और अब संसार को छोड़ रहा हूँ कि पिता के पास लौट जाऊँ.”

29 तब शिष्य कह उठे, “हाँ, अब आप कहावतों में नहीं, साफ़ शब्दों में समझा रहे हैं. 30 अब हम समझ गए हैं कि आप सब कुछ जानते हैं और अब किसी को आप से कोई प्रश्न करने की ज़रूरत नहीं. इसीलिए हम विश्वास करते हैं कि आप परमेश्वर की ओर से आए हैं.”

31 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हें अब विश्वास हो रहा है!” 32 देखो, समय आ रहा है परन्तु आ चुका है, जब तुम तितर-बितर हो अपने आप में व्यस्त हो जाओगे और मुझे अकेला छोड़ दोगे; किन्तु मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे पिता मेरे साथ हैं.

33 “मैंने तुमसे ये सब इसलिए कहा है कि तुम्हें मुझमें शान्ति प्राप्त हो. संसार में तुम्हारे लिए क्लेश ही क्लेश है किन्तु आनन्दित हो कि मैंने संसार पर विजय प्राप्त की है.”

Saral Hindi Bible (SHB)

New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.