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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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1 कोरिन्थॉस 9:16-27

16 तो यदि मैं ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करता हूँ तो इसमें घमण्ड़ कैसा! यह तो मुझे सौंपी गई ज़िम्मेदारी है! धिक्कार है मुझ पर यदि मैं ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार न करूँ. 17 यदि मैं अपनी इच्छा से प्रचार करता हूँ तो मुझे उसका प्रतिफल प्राप्त होगा किन्तु यदि मैं प्रचार बिना इच्छा के करता हूँ तो यह मात्र ज़िम्मेदारी पूरी करना ही हुआ. 18 तब क्या है मेरा प्रतिफल? यही कि मैं ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार मुफ्त में करता रहूँ और इससे सम्बन्धित अपने अधिकारों का उपयोग न करूँ.

19 यद्यपि मैं किसी के भी अधीन नहीं हूँ फिर भी मैंने स्वयं को सबका दास बना लिया है कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा को जीत सकूँ. 20 मैं यहूदियों के लिए यहूदियों जैसा बन गया कि मैं उन्हें जीत सकूँ. व्यवस्था के अधीनों के लिए मैं व्यवस्था के अधीन बन गया—यद्यपि मैं स्वयं व्यवस्था के अधीन नहीं—कि मैं उन्हें जीत सकूँ, जो व्यवस्था के अधीन हैं. 21 जो व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, मैं उन्हीं के समान बन गया—यद्यपि मैं स्वयं परमेश्वर की व्यवस्था से स्वतन्त्र नहीं, मसीह की व्यवस्था के अधीनस्थ हूँ कि मैं उन्हें जीत सकूँ, जो व्यवस्था के अधीन नहीं हैं. 22 दुर्बलों के लिए मैं स्वयं दुर्बल बन गया कि मैं उन्हें जीत सकूँ—मैं हर एक प्रकार के व्यक्ति के लिए उन्हीं के अनुरूप बन गया कि किसी न किसी रीति से मेरे हर एक प्रयास द्वारा कुछ का उद्धार हो जाए. 23 मैं यह सब ईश्वरीय सुसमाचार के लिए करता हूँ कि मैं इसमें अन्यों का सहभागी बन जाऊँ.

24 क्या तुम नहीं जानते कि प्रतियोगिता में दौड़ते तो सभी हैं किन्तु पुरस्कार मात्र एक को ही मिलता है. तुम ऐसे दौड़ो कि पुरस्कार तुम्हें प्राप्त हो.

25 हर एक प्रतियोगी, जो प्रतियोगिता में भाग लेता है, कठोर संयम का पालन करता है. वे तो नाशमान मुकुट प्राप्त करने के उद्धेश्य से यह सब करते हैं किन्तु हम यह सब अविनाशी मुकुट प्राप्त करने के लिए करते हैं. 26 मैं लक्ष्यहीन व्यक्ति के समान नहीं दौड़ता. मैं हवा में घूँसे नहीं मारता. 27 मैं अपने शरीर को कष्ट देते हुए अपने वश में रखता हूँ—ऐसा न हो कि मैं दूसरों को तो उपदेश दूँ और स्वयं अयोग्य करार हो जाऊँ.

मारक 6:47-56

47 सन्ध्या हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे. 48 मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुँचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे. 49 उन्हें जल-सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई प्रेत है और वे चिल्ला उठे 50 क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे.

इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूँ! मत डरो! साहस मत छोड़ो!” 51 यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यन्त चकित रह गए. 52 रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे.

53 झील पार कर वे गन्नेसरत प्रदेश में पहुँच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी. 54 मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया. 55 जहाँ कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहाँ ले आते थे. 56 मसीह येशु जिस किसी नगर, गाँव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.

Saral Hindi Bible (SHB)

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