Book of Common Prayer
नई वाचा का वैभव
7 यदि पत्थर की पटिया पर खोदे गए अक्षरों में अंकित मृत्यु की वाचा इतनी तेजोमय थी कि इस्राएल के वंशज मोशेह के मुख पर अपनी दृष्टि स्थिर रख पाने में असमर्थ थे—यद्यपि यह तेज धीरे-धीरे कम होता जा रहा था. 8 तो फिर आत्मा की वाचा और कितनी अधिक तेजोमय न होगी? 9 यदि दण्ड-आज्ञा की वाचा का प्रताप ऐसा है तो धार्मिकता की वाचा का प्रताप और कितना अधिक बढ़कर न होगा? 10 सच तो यह है कि इस वर्तमान प्रताप के सामने वह पहले का प्रताप, प्रताप रह ही नहीं गया. 11 यदि उसका तेज ऐसा था, जो लगातार कम हो रहा था, तो उसका तेज, जो हमेशा स्थिर है, और कितना अधिक बढ़कर न होगा!
12 इसी आशा के कारण हमारी बातें बिना डर की है. 13 हम मोशेह के समान भी नहीं, जो अपना मुख इसलिए ढ़का रखते थे कि इस्राएल के लोग उस धीरे-धीरे कम होते हुए तेज को न देख पाएँ. 14 वास्तव में इस्राएल के लोगों के मन मन्द हो गए थे. पुराना नियम देने के अवसर पर आज भी वही पर्दा पड़ा रहता है क्योंकि यह पर्दा सिर्फ मसीह में हटाया जाता है. 15 हाँ, आज भी जब कभी मोशेह का ग्रन्थ पढ़ा जाता है, उनके हृदय पर पर्दा पड़ा रहता है. 16 यह पर्दा उस समय हटता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु की ओर मन फिराता है. 17 यही प्रभु वह आत्मा हैं तथा जहाँ कहीं प्रभु का आत्मा मौजूद हैं, वहाँ स्वतंत्रता है 18 और हम, जो खुले मुख से प्रभु की महिमा निहारते हैं, उनके स्वरूप में धीरे-धीरे बढ़ती हुई महिमा के साथ बदलते जा रहे हैं. यह महिमा प्रभु से, जो आत्मा हैं, बाहर निकलती है.
पेतरॉस की विश्वास-स्वीकृति
(मत्ति 16:13-20; मारक 8:27-30)
18 एक समय, जब मसीह येशु एकान्त में प्रार्थना कर रहे थे तथा उनके शिष्य भी उनके साथ थे, मसीह येशु ने शिष्यों से प्रश्न किया, “लोगों की मेरे विषय में क्या धारणा है? क्या कहते हैं वे मेरे विषय में—मैं कौन हूँ?”
19 उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ कहते हैं बपतिस्मा देने वाला योहन; कुछ एलियाह; और कुछ अन्य कहते हैं पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से एक, जो दोबारा जीवित हो गया है.”
20 “मैं कौन हूँ इस विषय में तुम्हारी धारणा क्या है?” मसीह येशु ने प्रश्न किया.
पेतरॉस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के मसीह.”
दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की पहिली भविष्यवाणी
(मारक 8:3; 9:1)
21 मसीह येशु ने उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि वे यह किसी से न कहें.
22 आगे मसीह येशु ने प्रकट किया, “यह अवश्य है कि मनुष्य के पुत्र अनेक पीड़ाएं सहे, यहूदी प्रधानों, प्रधान पुरोहितों तथा व्यवस्था के शिक्षकों के द्वारा अस्वीकृत किया जाए; उसका वध किया जाए तथा तीसरे दिन उसे दोबारा जीवित किया जाए.”
23 तब मसीह येशु ने उन सब से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे होना चाहे, वह अपने अहम का त्याग कर प्रतिदिन अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे चले. 24 क्योंकि जो कोई अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहता है, उसे खो देगा किन्तु जो कोई मेरे हित में अपने प्राणों को त्यागने के लिए तत्पर है, वह अपने प्राणों को सुरक्षित रखेगा. 25 क्या लाभ है यदि कोई व्यक्ति सारे संसार पर अधिकार तो प्राप्त कर ले किन्तु स्वयं को खो दे या उसका जीवन ले लिया जाए? 26 क्योंकि जो कोई मुझसे और मेरी शिक्षा से लज्जित होता है, मनुष्य का पुत्र भी, जब वह अपनी, अपने पिता की तथा पवित्र दूतों की महिमा में आएगा, उससे लज्जित होगा.
27 “सच तो यह है कि यहाँ कुछ हैं, जो मृत्यु का स्वाद तब तक न चखेंगे जब तक वे परमेश्वर का राज्य देख न लें.”
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