Revised Common Lectionary (Complementary)
1 हे सिय्योन के परमेश्वर, मैं तेरी स्तुती करता हूँ।
मैंने जो मन्नत मानी, तुझ पर चढ़ाता हूँ।
2 मैं तेरे उन कामों का बखान करता हूँ, जो तूने किये हैं। हमारी प्रार्थनायें तू सुनता रहता हैं।
तू हर किसी व्यक्ति की प्रार्थनायें सुनता है, जो तेरी शरण में आता है।
3 जब हमारे पाप हम पर भारी पड़ते हैं, हमसे सहन नहीं हो पाते,
तो तू हमारे उन पापों को हर कर ले जाता है।
4 हे परमेश्वर, तूने अपने भक्त चुने हैं।
तूने हमको चुना है कि हम तेरे मन्दिर में आयें और तेरी उपासना करें।
हम तेरे मन्दिर में बहुत प्रसन्न हैं।
सभी अद्भुत वस्तुएं हमारे पास है।
5 हे परमेश्वर, तू हमारी रक्षा करता है।
सज्जन तेरी प्रार्थना करते, और तू उनकी विनतियों का उत्तर देता है।
उनके लिए तू अचरज भरे काम करता है।
सारे संसार के लोग तेरे भरोसे हैं।
6 परमेश्वर ने अपनी महाशक्ति का प्रयोग किया और पर्वत रच डाले।
उसकी शक्ति हम अपने चारों तरफ देखते हैं।
7 परमेश्वर ने उफनते हुए सागर शांत किया।
परमेश्वर ने जगत के सभी असंख्य लोगों को बनाया है।
8 जिन अद्भुत बातों को परमेश्वर करता है, उनसे धरती का हर व्यक्ति डरता है।
परमेश्वर तू ही हर कहीं सूर्य को उगाता और छिपाता है। लोग तेरा गुणगान करते हैं।
9 पृथ्वी की सारी रखवाली तू करता है।
तू ही इसे सींचता और तू ही इससे बहुत सारी वस्तुएं उपजाता है।
हे परमेश्वर, नदियों को पानी से तू ही भरता है।
तू ही फसलों की बढ़वार करता है। तू यह इस विधि से करता है।
10 जुते हुए खेतों पर वर्षा कराता है।
तू खेतों को जल से सराबोर कर देता,
और धरती को वर्षा से नरम बनाता है,
और तू फिर पौधों की बढ़वार करता है।
11 तू नये साल का आरम्भ उत्तम फसलों से करता है।
तू भरपूर फसलों से गाड़ियाँ भर देता है।
12 वन औक पर्वत दूब घास से ढक जाते हैं।
13 भेड़ों से चरागाहें भर गयी।
फसलों से घाटियाँ भरपूर हो रही हैं।
हर कोई गा रहा और आनन्द में ऊँचा पुकार रहा है।
पानी का खून बनना
14 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “फ़िरौन हठ पकड़े हुए है। फिरौन लोगों को जाने से मना करता है। 15 सवेरे फ़िरौन नदी पर जाएगा। उसके साथ नील नदी के किनारे—किनारे जाओ। उस लाठी को अपने साथ ले लो जो साँप बनी थी। 16 उससे यह कहो, ‘हिब्रू लोगों के परमेश्वर यहोवा ने हमको तुम्हारे पास भेजा है। यहोवा ने मुझे तुमसे यह कहने को कहा है, मेरे लोगों को मेरी उपासना करने के लिए मरुभूमि में जाने दो। तुमने भी अब तक यहोवा की बात पर कान नहीं दिया है। 17 इसलिए यहोवा कहता है कि, मैं ऐसा करूँगा जिससे तुम जानोगे कि मैं यहोवा हूँ। जो मैं अपने हाथ की इस लाठी को लेकर नील नदी के पानी पर मारुँगा और नील नदी खून में बदल जाएगी। 18 तब नील नदी की मछलियाँ मर जाएंगी और नदी से दुर्गन्ध आने लगेगी। और मिस्री लोग नदी से पानी नहीं पी पाएंगे।’”
19 यहोवा ने मूसा को यह आदेश दिया, “हारून से कहो कि वह नदियों, नहरों, झीलों तथा तालाबों सभी स्थानों पर जहाँ मिस्र के लोग पानी एकत्र करते हैं, अपने हाथ की लाठी को बढ़ाए। जब वह ऐसा करेगा तो सारा जल खून में बदल जाएगा। सारा पानी, यहाँ तक कि लकड़ी और पत्थर के घड़ों का पानी भी, खून में बदल जाएगा।”
20 इसलिए मूसा और हारून ने यहोवा का जैसा आदेश था, वैसा किया। उसने लाठी को उठाया और नील नदी के पानी पर मारा। उसने यह फ़िरौन और उसके अधिकारियों के सामने किया। फिर नदी का सारा जल खून में बदल गया। 21 नदी में मछलियाँ मर गईं और नदी से दुर्गन्ध आने लगी। इसलिए मिस्री नदी से पानी नहीं पी सकते थे। मिस्र में सर्वत्र खून था।
22 जादूगरों ने अपनी जादूगरी दिखाई और उन्होंने भी वैसा ही किया। इसलिए फ़िरौन ने मूसा और हारून को सुनने से इन्कार कर दिया। यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने कहा था। 23 फिरौन मुड़ा और अपने घर चला गया। फ़िरौन ने, मूसा और हारून ने जो कुछ किया, उसकी उपेक्षा की।
24 मिस्री नदी से पानी नहीं पी सकते थे। इसलिए पीने के पानी के लिए उन्होंने नदी के चारों ओर कुएँ खोदे।
तूफ़ान
13 जब दक्षिणी पवन हौले-हौले बहने लगा तो उन्होंने सोचा कि जैसा उन्होंने चाहा था, वैसा उन्हें मिल गया है। सो उन्होंने लंगर उठा लिया और क्रीत के किनारे-किनारे जहाज़ बढ़ाने लगे। 14 किन्तु अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था कि द्वीप की ओर से एक भीषण आँधी उठी और आरपार लपेटती चली गयी। यह “उत्तर पूर्वी” आँधी कहलाती थी। 15 जहाज़ तूफान में घिर गया। वह आँधी को चीर कर आगे नहीं बढ़ पा रहा था सो हमने उसे यों ही छोड़ कर हवा के रूख बहने दिया।
16 हम क्लोदा नाम के एक छोटे से द्वीप की ओट में बहते हुए बड़ी कठिनाई से रक्षा नौकाओं को पा सके। 17 फिर रक्षा-नौकाओं को उठाने के बाद जहाज़ को रस्सों से लपेट कर बाँध दिया गया और कहीं सुरतिस के उथले पानी में फँस न जायें, इस डर से उन्होंने पालें उतार दीं और जहाज़ को बहने दिया।
18 दूसरे दिन तूफान के घातक थपेड़े खाते हुए वे जहाज़ से माल-असबाब बाहर फेंकने लगे। 19 और तीसरे दिन उन्होंने अपने ही हाथों से जहाज़ पर रखे उपकरण फेंक दिये। 20 फिर बहुत दिनों तक जब न सूरज दिखाई दिया, न तारे और तूफान अपने घातक थपेड़े मारता ही रहा तो हमारे बच पाने की आशा पूरी तरह जाती रही।
21 बहुत दिनों से किसी ने भी कुछ खाया नहीं था। तब पौलुस ने उनके बीच खड़े होकर कहा, “हे पुरुषो यदि क्रीत से रवाना न होने की मेरी सलाह तुमने मानी होती तो तुम इस विनाश और हानि से बच जाते। 22 किन्तु मैं तुमसे अब भी आग्रह करता हूँ कि अपनी हिम्मत बाँधे रखो। क्योंकि तुममें से किसी को भी अपने प्राण नहीं खोने हैं। हाँ! बस यह जहाज़ नष्ट हो जायेगा, 23 क्योंकि पिछली रात उस परमेश्वर का एक स्वर्गदूत, जिसका मैं हूँ और जिसकी मैं सेवा करता हूँ, मेरे पास आकर खड़ा हुआ 24 और बोला, ‘पौलुस डर मत। तुझे निश्चय ही कैसर के सामने खड़ा होना है और उन सब को जो तेरे साथ यात्रा कर रहे हैं, परमेश्वर ने तुझे दे दिया है।’ 25 सो लोगो! अपना साहस बनाये रखो क्योंकि परमेश्वर में मेरा विश्वास है, इसलिये जैसा मुझे बताया गया है, ठीक वैसा ही होगा। 26 किन्तु हम किसी टापू के उथले पानी में अवश्य जा फँसेगें।”
27 फिर जब चौदहवीं रात आयी हम अद्रिया के सागर में थपेड़े खा रहे थे तभी आधी रात के आसपास जहाज़ के चालकों को लगा जैसे कोई तट पास में ही हो। 28 उन्होंने सागर की गहराई नापी तो पाया कि वहाँ कोई अस्सी हाथ गहराई थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने पानी की गहराई फिर नापी और पाया कि अब गहराई साठ हाथ रह गयी थी। 29 इस डर से कि वे कहीं किसी चट्टानी उथले किनारे में न फँस जायें, उन्होंने जहाज़ के पिछले हिस्से से चार लंगर फेंके और प्रार्थना करने लगे कि किसी तरह दिन निकल आये। 30 उधर जहाज़ के चलाने वाले जहाज़ से भाग निकलने का प्रयत्न कर रहे थे। उन्होंने यह बहाना बनाते हुए कि वे जहाज़ के अगले भाग से कुछ लंगर डालने के लिये जा रहे हैं, रक्षा-नौकाएँ समुद्र में उतार दीं। 31 तभी सेनानायक से पौलुस ने कहा, “यदि ये लोग जहाज़ पर नहीं रुके तो तुम भी नहीं बच पाओगे।” 32 सो सैनिकों ने रस्सियों को काट कर रक्षा नौकाओं को नीचे गिरा दिया।
33 भोर होने से थोड़ा पहले पौलुस ने यह कहते हुए सब लोगों से थोड़ा भोजन कर लेने का आग्रह किया कि चौदह दिन हो चुके हैं और तुम निरन्तर चिंता के कारण भूखे रहे हो। तुमने कुछ भी तो नहीं खाया है। 34 मैं तुमसे अब कुछ खाने के लिए इसलिए आग्रह कर रहा हूँ कि तुम्हारे जीवित रहने के लिये यह आवश्यक है। क्योंकि तुममें से किसी के सिर का एक बाल तक बाँका नहीं होना है। 35 इतना कह चुकने के बाद उसने थोड़ी रोटी ली और सबके सामने परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर रोटी को विभाजित किया और खाने लगा। 36 इससे उन सब की हिम्मत बढ़ी और उन्होंने भी थोड़ा भोजन लिया। 37 (जहाज़ पर कुल मिलाकर हम दो सौ छिहत्तर व्यक्ति थे।) 38 पूरा खाना खा चुकने के बाद उन्होंने समुद्र में अनाज फेंक कर जहाज़ को हल्का किया।
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