Revised Common Lectionary (Complementary)
22 मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कही थीं:
“मैं लम्बें देवदार के वृक्ष से एक शाखा लूँगा।
मैं वृक्ष की चोटी से एक छोटी शाखा लूँगा।
और मैं स्वयं उसे बहुत ऊँचे पर्वत पर बोऊँगा।
23 मैं स्वयं इसे इस्राएल में ऊँचे पर्वत पर लगाऊँगा।
यह शाखा एक वृक्ष बन जाएगी।
इसकी शाखायें निकलेंगी और इसमें फल लगेंगे।
यह एक सुन्दर देवदार का वृक्ष बन जाएगा।
अनेक पक्षी इसकी शाखाओं पर बैठा करेंगे।
अनेक पक्षी इसकी शाखाओं के नीचे छाया में रहेंगे।
24 तब अन्य वृक्ष उसे जानेंगे कि मैं ऊँचे वृक्षों को भूमि पर गिराता हूँ।
और मैं छोटे वृक्षों को बढ़ाता और उन्हें लम्बा बनाता हूँ।
मैं हरे वृक्षों को सुखा देता हूँ।
और मैं सूखे वृक्षों को हरा करता हूँ।
मैं यहोवा हूँ।
यदि मैं कहूँगा कि मैं कुछ करुँगा तो मैं उसे अवश्य करूँगा!”
सब्त के दिन के लिये एक स्तुति गीत।
1 यहोवा का गुण गाना उत्तम है।
हे परम परमेश्वर, तेरे नाम का गुणगान उत्तम है।
2 भोर में तेरे प्रेम के गीत गाना
और रात में तेरे भक्ति के गीत गाना उत्तम है।
3 हे परमेश्वर, तेरे लिये वीणा, दस तार वाद्य
और सांरगी पर संगीत बजाना उत्तम है।
4 हे यहोवा, तू सचमुच हमको अपने किये कर्मो से आनन्दित करता है।
हम आनन्द से भर कर उन गीतों को गाते हैं, जो कार्य तूने किये हैं।
12 सज्जन लोग तो लबानोन के विशाल देवदार वृक्ष की तरह है
जो यहोवा के मन्दिर में रोपे गए हैं।
13 सज्जन लोग बढ़ते हुए ताड़ के पेड़ की तरह हैं,
जो यहोवा के मन्दिर के आँगन में फलवन्त हो रहे हैं।
14 वे जब तक बूढ़े होंगे तब तक वे फल देते रहेंगे।
वे हरे भरे स्वस्थ वृक्षों जैसे होंगे।
15 वे हर किसी को यह दिखाने के लिये वहाँ है
कि यहोवा उत्तम है।
वह मेरी चट्टान है!
वह कभी बुरा नहीं करता।
6 हमें पूरा विश्वास है, क्योंकि हम जानते हैं कि जब तक हम अपनी देह में रह रहे हैं, प्रभु से दूर हैं। 7 क्योंकि हम विश्वास के सहारे जीते हैं। बस आँखों देखी के सहारे नहीं। 8 हमें विश्वास है, इसी से मैं कहता हूँ कि हम अपनी देह को त्याग कर प्रभु के साथ रहने को अच्छा समझते हैं। 9 इसी से हमारी यह अभिलाषा है कि हम चाहे उपस्थित रहें और चाहे अनुपस्थित, उसे अच्छे लगते रहें। 10 हम सब को अपने शरीर में स्थित रह कर भला या बुरा, जो कुछ किया है, उसका फल पाने के लिये मसीह के न्यायासन के सामने अवश्य उपस्थित होना होगा।
परोपकारी परमेश्वर के मित्र होते हैं
11 इसलिए प्रभु से डरते हुए हम सत्य को ग्रहण करने के लिये लोगों को समझाते-बुझाते हैं। हमारे और परमेश्वर के बीच कोई पर्दा नहीं है। और मुझे आशा है कि तुम भी हमें पूरी तरह जानते हो। 12 हम तुम्हारे सामने फिर से अपनी कोई प्रशंसा नहीं कर रहे हैं। बल्कि तुम्हें एक अवसर दे रहे हैं कि तुम हम पर गर्व कर सको। ताकि, जो प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली वस्तु पर गर्व करते हैं, न कि उस पर जो कुछ उनके मन में है, उन्हें उसका उत्तर मिल सके। 13 क्योंकि यदि हम दीवाने हैं तो परमेश्वर के लिये हैं और यदि सयाने हैं तो वह तुम्हारे लिये हैं।
14 हमारा नियन्ता तो मसीह का प्रेम है क्योंकि हमने अपने मन में यह धार लिया है कि वह एक व्यक्ति (मसीह) सब लोगों के लिये मरा। अतः सभी मर गये। 15 और वह सब लोगों के लिए मरा क्योंकि जो लोग जीवित हैं, वे अब आगे बस अपने ही लिये न जीते रहें, बल्कि उसके लिये जियें जो मरने के बाद फिर जीवित कर दिया गया।
16 परिणामस्वरूप अब से आगे हम किसी भी व्यक्ति को सांसारिक दृष्टि से न देखें यद्यपि एक समय हमने मसीह को भी सांसारिक दृष्टि से देखा था। कुछ भी हो, अब हम उसे उस प्रकार नहीं देखते। 17 इसलिए यदि कोई मसीह में स्थित है तो अब वह परमेश्वर की नयी सृष्टि का अंग है। पुरानी बातें जाती रही हैं। सब कुछ नया हो गया है
बीज का दृष्टान्त
26 फिर उसने कहा, “परमेश्वर का राज्य ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति खेत में बीज फैलाये। 27 रात को सोये और दिन को जागे और फिर बीज में अंकुर निकलें, वे बढ़े और पता नहीं चले कि यह सब कैसे हो रहा है। 28 धरती अपने आप अनाज उपजाती है। पहले अंकुर फिर बालें और फिर बालों में भरपूर अनाज। 29 जब अनाज पक जाता है तो वह तुरन्त उसे हंसिये से काटता है क्योंकि फसल काटने का समय आ जाता है।”
राई के दाने का दृष्टान्त
(मत्ती 13:31-32, 34-35; लूका 13:18-19)
30 फिर उसने कहा, “हम कैसे बतायें कि परमेश्वर का राज्य कैसा है? उसकी व्याख्या करने के लिए हम किस उदाहरण का प्रयोग करें? 31 वह राई के दाने जैसा है जो जब धरती में बोया जाता है तो बीजों में सबसे छोटा होता है। 32 किन्तु जब वह रोप दिया जाता है तो बढ़ कर भूमि के सभी पौधों से बड़ा हो जाता है। उसकी शाखाएँ इतनी बड़ी हो जाती हैं कि हवा में उड़ती चिड़ियाएँ उसकी छाया में घोंसला बना सकती हैं।”
33 ऐसे ही और बहुत से दृष्टान्त देकर वह उन्हें वचन सुनाया करता था। वह उन्हें, जितना वे समझ सकते थे, बताता था। 34 बिना किसी दृष्टान्त का प्रयोग किये वह उनसे कुछ भी नहीं कहता था। किन्तु जब अपने शिष्यों के साथ वह अकेला होता तो सब कुछ का अर्थ बता कर उन्हें समझाता।
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