Revised Common Lectionary (Complementary)
38 फिर यहोवा ने तूफान में से अय्यूब को उत्तर दिया। परमेश्वर ने कहा:
2 “यह कौन व्यक्ति है
जो मूर्खतापूर्ण बातें कर रहा है?”
3 अय्यूब, तुम पुरुष की भाँति सुदृढ़ बनों।
जो प्रश्न मैं पूछूँ उसका उत्तर देने को तैयार हो जाओ।
4 अय्यूब, बताओ तुम कहाँ थे, जब मैंने पृथ्वी की रचना की थी?
यदि तू इतना समझदार है तो मुझे उत्तर दे।
5 अय्यूब, इस संसार का विस्तार किसने निश्चित किया था?
किसने संसार को नापने के फीते से नापा?
6 इस पृथ्वी की नींव किस पर रखी गई है?
किसने पृथ्वी की नींव के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्थर को रखा है?
7 जब ऐसा किया था तब भोर के तारों ने मिलकर गया
और स्वर्गदूत ने प्रसन्न होकर जयजयकार किया।
8 “अय्यूब, जब सागर धरती के गर्भ से फूट पड़ा था,
तो किसने उसे रोकने के लिये द्वार को बन्द किया था।
9 उस समय मैंने बादलों से समुद्र को ढक दिया
और अन्धकार में सागर को लपेट दिया था (जैसे बालक को चादर में लपेटा जाता है।)
10 सागर की सीमाऐं मैंने निश्चित की थीं
और उसे ताले लगे द्वारों के पीछे रख दिया था।
11 मैंने सागर से कहा, ‘तू यहाँ तक आ सकता है किन्तु और अधिक आगे नहीं।
तेरी अभिमानी लहरें यहाँ तक रुक जायेंगी।’
पाँचवाँ भाग
(भजनसंहिता 107–150)
1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह उत्तम है।
उसका प्रेम अमर है।
2 हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने बचाया है, इन राष्ट्रों को कहे।
हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने अपने शत्रुओं से छुड़ाया उसके गुण गाओ।
3 यहोवा ने निज भक्तों को बहुत से अलग अलग देशों से इकट्ठा किया है।
उसने उन्हें पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से जुटाया है।
23 कुछ लोग अपने काम करने को अपनी नावों से समुद्र पार कर गये।
24 उन लोगों ने ऐसी बातों को देखा है जिनको यहोवा कर सकता है।
उन्होंने उन अद्भुत बातों को देखा है जिन्हें यहोवा ने सागर पर किया है।
25 परमेश्वर ने आदेश दिया, फिर एक तीव्र पवन तभी चलने लगी।
बड़ी से बड़ी लहरे आकार लेने लगी।
26 लहरे इतनी ऊपर उठीं जितना आकाश हो
तूफान इतना भयानक था कि लोग भयभीत हो गये।
27 लोग लड़खड़ा रहे थे, गिरे जा रहे थे जैसे नशे में धुत हो।
खिवैया उनकी बुद्धि जैसे व्यर्थ हो गयी हो।
28 वे संकट में थे सो उन्होंने सहायता पाने को यहोवा को पुकारा।
तब यहोवा ने उनको संकटों से बचा लिया।
29 परमेश्वर ने तूफान को रोका
और लहरें शांत हो गयी।
30 खिवैया प्रसन्न थे कि सागर शांत हुआ था।
परमेश्वर उनको उसी सुरक्षित स्थान पर ले गया जहाँ वे जाना चाहते थे।
31 यहोवा का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये धन्यवाद करो
उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है।
32 महासभा के बीच उसका गुणगान करो।
जब बुजुर्ग नेता आपस में मिलते हों उसकी प्रशंसा करों।
6 परमेश्वर के कार्य में साथ-साथ काम करने के नाते हम तुम लोगों से आग्रह करते हैं कि परमेश्वर का जो अनुग्रह तुम्हें मिला है, उसे व्यर्थ मत जाने दो। 2 क्योंकि उसने कहा है:
“मैंने उचित समय पर तेरी सुन ली,
और मैं उद्धार के दिन तुझे सहारा देने आया।”(A)
देखो! “उचित समय” यही है। देखो! “उद्धार का दिन” यही है।
3 हम किसी के लिए कोई विरोध उपस्थित नहीं करते जिससे हमारे काम में कोई कमी आये। 4 बल्कि परमेश्वर के सेवक के रूप में हम हर तरह से अपने आप को अच्छा सिद्ध करते रहते हैं। धैर्य के साथ सब कुछ सहते हुए यातनाओं के बीच, विपत्तियों के बीच, कठिनाइयों के बीच 5 मार खाते हुए, बन्दीगृहों में रहते हुए, अशांति के बीच, परिश्रम करते हुए, रातों-रात पलक भी न झपका कर, भूखे रह कर 6 अपनी पवित्रता, ज्ञान और धैर्य से, अपनी दयालुता, पवित्र आत्मा के वरदानों और सच्चे प्रेम, 7 अपने सच्चे संदेश और परमेश्वर की शक्ति से नेकी को ही अपने दायें-बायें हाथों में ढाल के रूप में लेकर
8 हम आदर और निरादर के बीच अपमान और सम्मान में अपने को उपस्थित करते रहते हैं। हमें ठग समझा जाता है, यद्यपि हम सच्चे हैं। 9 हमें गुमनाम समझा जाता है, जबकि हमें सभी जानते हैं। हमें मरते हुओं सा जाना जाता है, पर देखो हम तो जीवित हैं। हमें दण्ड भोगते हुओं सा जाना जाता है, तब भी देखो हम मृत्यु को नहीं सौंपे जा रहे हैं। 10 हमें शोक से व्याकुल समझा जाता है, जबकि हम तो सदा ही प्रसन्न रहते हैं। हम दीन-हीनों के रूप में जाने जाते हैं, जबकि हम बहुतों को वैभवशाली बना रहे हैं। लोग समझते हैं हमारे पास कुछ नहीं है, जबकि हमारे पास तो सब कुछ है।
11 हे कुरिन्थियो, हमने तुमसे पूरी तरह खुल कर बातें की हैं। तुम्हारे लिये हमारा मन खुला है। 12 हमारा प्रेम तुम्हारे लिये कम नहीं हुआ है। किन्तु तुमने हमसे प्यार करना रोक दिया है। 13 तुम्हें अपना बच्चा समझते हुए मैं कह रहा हूँ कि बदले में अपना मन तुम्हें भी हमारे लिये पूरी तरह खुला रखना चाहिए।
बवंडर को शांत करना
(मत्ती 8:23-27; लूका 8:22-25)
35 उस दिन जब शाम हुई, यीशु ने उनसे कहा, “चलो, उस पार चलें।” 36 इसलिये, वे भीड़ को छोड़ कर, जैसे वह था वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले। उसके साथ और भी नावें थीं। 37 एक तेज बवंडर उठा। लहरें नाव पर पछाड़ें मार रही थीं। नाव पानी से भर जाने को थी। 38 किन्तु यीशु नाव के पिछले भाग में तकिया लगाये सो रहा था। उन्होंने उसे जगाया और उससे कहा, “हे गुरु, क्या तुझे ध्यान नहीं है कि हम डूब रहे हैं?”
39 यीशु खड़ा हुआ। उसने हवा को डाँटा और लहरों से कहा, “शान्त हो जाओ। थम जाओ।” तभी बवंडर थम गया और चारों तरफ असीम शांति छा गयी।
40 फिर यीशु ने उनसे कहा, “तुम डरते क्यों हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं है?”
41 किन्तु वे बहुत डर गये थे। फिर उन्होंने आपस में एक दूसरे से कहा, “आखिर यह है कौन? हवा और पानी भी इसकी आज्ञा मानते हैं!”
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