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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
1 शमूएल 2:30-15:35

30 “इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने यह वचन दिया था कि तुम्हारे पिता का परिवार ही सदा उसकी सेवा करेगा। किन्तु अब यहोवा यह कहता है, ‘वैसा कभी नहीं होगा! मैं उन लोगों का सम्मान करूँगा जो मेरा सम्मान करेंगे। किन्तु उनका बुरा होगा जो मेरा सम्मान करने से इनकार करते हैं। 31 वह समय आ रहा है जब मैं तुम्हारे सारे वंशजों को नष्ट कर दूँगा। तुम्हारे परिवार में कोई बूढ़ा होने के लिये नहीं बचेगा। 32 इस्राएल के लिये अच्छी चीजें होंगी, किन्तु तुम घर में बुरी घटनाऐं होती देखोगे। तुम्हारे परिवार में कोई भी बूढ़ा होने के लिये नहीं बचेगा। 33 केवल एक व्यक्ति को मैं अपनी वेदी पर याजक के रुप में सेवा के लिये बचाऊँगा। वह बहुत अधिक बुढ़ापे तक रहेगा। वह तब तक जीवित रहेगा जब तक उसकी आँखे और उसकी शक्ति बची रहेगी। तुम्हारे शेष वंशज तलवार के घाट उतारे जाएंगे। 34 मैं तुम्हें एक संकेत दूँगा जिससे यह ज्ञात होगा कि ये बातें सच होंगी। तुम्हारे दोनों पुत्र होप्नी और पीनहास एक ही दिन मरेंगे। 35 मैं अपने लिये एक विश्वसनीय याजक ठहराऊँगा। वह याजक मेरी बात मानेगा और जो मैं चाहता हूँ, करेगा। मैं इस याजक के परिवार को शक्तिशाली बनाऊँगा। वह सदा मेरे अभिषिक्त राजा के सामने सेवा करेगा। 36 तब सभी लोग जो तुम्हारे परिवार में बचे रहेंगे, आएंगे और इस याजक के आगे झुकेंगे। ये लोग थोड़े धन या रोटी के टुकड़े के लिए भीख मागेंगे। वे कहेंगे, “कृपया याजक का सेवा कार्य हमें दे दो जिससे हम भोजन पा सकें।”’”

शमूएल को परमेश्वर का बुलावा

बालक शमूएल एली के अधीन यहोवा की सेवा करता रहा। उन दिनों, यहोवा प्राय: लोगों से सीधे बातें नहीं करता था। बहुत कम ही दर्शन हुआ करता था।

एली की दृष्टि इतनी कमजोर थी कि वह लगभग अन्धा था। एक रात वह बिस्तर पर सोया हुआ था। शमूएल यहोवा के पवित्र आराधनालय में बिस्तर पर सो रहा था। उस पवित्र आराधनालय में परमेश्वर का पवित्र सन्दूक था। यहोवा का दीपक अब भी जल रहा था। यहोवा ने शमूएल को बुलाया। शमूएल ने उत्तर दिया, “मैं यहाँ उपस्थित हूँ।” शमूएल को लगा कि उसे एली बुला रहा है। इसलिए शमूएल दौड़कर एली के पास गया। शमूएल ने एली से कहा, “मैं यहाँ हूँ। आपने मुझे बुलाया।”

किन्तु एली ने कहा, “मैंने तुम्हें नहीं बुलाया। अपने बिस्तर में जाओ।”

शमूएल अपने बिस्तर पर लौट गया। यहोवा ने फिर बुलाया, “शमूएल!” शमूएल फिर दौड़कर एली के पास गया। शमूएल ने कहा, “मैं यहाँ हूँ। आपने मुझे बुलाया।”

एली ने कहा, “मैंने तुम्हें नहीं बुलाया, अपने बिस्तर में जाओ।”

शमूएल अभी तक यहोवा को नहीं जानता था। यहोवा ने अभी तक उससे सीधे बात नहीं की थी।

यहोवा ने शमूएल को तीसरी बार बुलाया। शमूएल फिर उठा और एली के पास गया। शमूएल ने कहा, “मैं आ गया। आपने मुझे बुलाया।”

तब एली ने समझा कि यहोवा लड़के को बुला रहा है। एली ने शमूएल से कहा, “बिस्तर में जाओ। यदि वह तुम्हें फिर बुलाता है तो कहो, ‘यहोवा बोल! मैं तेरा सेवक हूँ और सुन रहा हूँ।’”

सो शमूएल बिस्तर में चला गया। 10 यहोवा आया और और वहाँ खड़ा हो गया। उसने पहले की तरह बुलाया।

उसने कहा, “शमूएल, शमूएल!” शमूएल ने कहा, “बोल! मैं तेरा सेवक हूँ और सुन रहा हूँ।”

11 यहोवा ने शमूएल से कहा, “मैं शीघ्र ही इस्राएल में कुछ करुँगा। जो लोग इसे सुनेंगे उनके कान झन्ना उठेंगे। 12 मैं वह सब कुछ करूँगा जो मैंने एली और उसके परिवार के विरूद्ध करने को कहा है। मैं आरम्भ से अन्त तक सब कुछ करूँगा। 13 मैंने एली से कहा है कि मैं उसके परिवार को सदा के लिये दण्ड दूँगा। मैं यह इसलिए करूँगा कि एली जानता है उस के पुत्रों ने परमेश्वर के विरुद्ध बुरा कहा है, और किया है, और एली उन पर नियन्त्रन करने में असफल रहा है। 14 यही कारण है कि मैंने एली के परिवार को शाप दिया है कि बलि—भेंट और अन्नबलि उनके पापों को दूर नहीं कर सकती।”

15 शमूएल सवेरा होने तक बिस्तर में पड़ा रहा। वह तड़के उठा और उसने यहोवा के मन्दिर के द्वार को खोला। शमूएल अपने दर्शन की बात एली से कहने में डरता था।

16 किन्तु एली ने शमूएल से कहा, “मेरे पुत्र, शमूएल!”

शमूएल ने उत्तर दिया, “हाँ, महोदय।”

17 एली ने पूछा, “यहोवा ने तुनसे क्या कहा? उसे मुझसे मत छिपाओ। परमेश्वर तुम्हें दण्ड देगा, यदि परमेश्वर ने जो सन्देश तुमको दिया है उसमें से कुछ भी छिपाओगे।”

18 इसलिए शमूएल ने एली को वह हर एक बात बताई। शमूएल ने एली से कुछ भी नहीं छिपाया।

एली ने कहा, “वह यहोवा है। उसे वैसा ही करने दो जैसा उसे अच्छा लगता है।”

19 शमूएल बड़ा होता रहा और यहोवा उसके साथ रहा। यहोवा ने शमूएल के किसी सन्देश को असत्य नहीं होने दिया। 20 तब सारा इस्राएल, दान से लेकर बेर्शबा तक, समझ गया कि शमूएल यहोवा का सच्चा नबी है। 21 शीलो में यहोवा शमूएल के सामने प्रकट होता रहा। यहोवा ने शमूएल के आगे अपने आपको वचन[a] के द्वारा प्रकट किया।

शमूएल के विषय में समाचार पूरे इस्राएल में फैल गया। एली बहुत बूढ़ा हो गया था। उसके पुत्र यहोवा के सामने बुरा काम करते रहे।

पलिश्तियों ने इस्राएलियों को हराया

उस समय, पलिश्ती इस्राएल के विरुद्ध युद्ध करने के लिये तैयार हुए। इस्राएली पलिश्तियों के विरुद्ध लड़ने गए। इस्राएलियों ने अपना डेरा एबेनेजेर में डाला। पलिश्तियों ने अपना डेरा अपेक में डाला। पलिश्तियों ने इस्राएल पर आक्रमण करने की तैयारी की। युद्ध आरम्भ हो गया। पलिश्तियों ने इस्राएलियों को हरा दिया।

पलिश्तियों ने इस्राएल की सेना के लगभग चार हजार सैनिकों को मार डाला। इस्राएलियों के बाकी सैनिक अपने डेरे में लौट गए। इस्राएल के अग्रजों (प्रमुखों) ने पूछा, “यहोवा ने पलिश्तियों को हमें क्यों पराजित करने दिया? हम लोग शीलो से वाचा के सन्दूक को ले आयें। इस प्रकार, परमेश्वर हम लोगों के साथ युद्ध में जायेगा। वह हमें हमारे शत्रुओं से बचा देगा।”

इसलिये लोगों ने वयक्तियों को शीलो में भेजा। वे लोग सर्वशक्तिमान यहोवा के वाचा के सन्दूक को ले आए। सन्दूक के ऊपर करूब (स्वर्गदूत) हैं और वे उस आसन की तरह हैं जिस पर यहोवा बैठता है। एली के दोनों पुत्र, होप्नी और पीनहास सन्दूक के साथ आए।

जब यहोवा के वाचा का सन्दूक डेरे के भीतर आया, तो इस्राएलियों ने प्रचण्ड उद्घोष किया। उस उद्घोष से धरती काँप उठी। पलिश्तियों ने इस्राएलियों के उद्घोष को सुना। उन्होंने पूछा, “हिब्रू लोगों के डेरे में ऐसा उद्घोष क्यों है?”

तब पलिश्तियों को ज्ञात हुआ कि इस्राएल के डेरे में वाचा का सन्दूक आया है। पलिश्ती डर गए। पलिश्तियों ने कहा, “परमेश्वर उनके डेरे में आ गया है! हम लोग मुसीबत में हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। हमें चिन्ता है! इस शक्तिशाली परमेश्वर से हमें कौन बचा सकता है? ये वही परमेश्वर है जिसने मिस्रियों को वे बीमारियाँ और महामारियाँ दी थीं। पलिश्तियों साहस करो! वीर पुरूषों की तरह लड़ो! बीते समय में हिब्रू लोग हमारे दास थे। इसलिए वीरों की तरह लड़ो नहीं तो तुम उनके दास हो जाओगे।”

10 पलिश्ती वीरता से लड़े औ उन्होंने इस्राएलियों को हरा दिया। हर एक इस्राएली योद्धा अपने डेरे में भाग गया। इस्राएल के लिये यह भयानक पराजय थी। तीस हजार इस्राएली सैनिक मारे गए। 11 पलिश्तियों ने उनसे परमेश्वर का पवित्र सन्दूक छीन लिया और उन्होंने एली के दोनों पुत्रों, होप्नी और पीनहास को मार डाला।

12 उस दिन बिन्यामीन परिवार का एक व्यक्ति युद्ध से भागा। उसने अपने शोक को प्रकट करने के लिये अपने वस्त्रों को फाड़ डाला और अपने सिर पर धूलि डाल ली। 13 जब यह व्यक्ति शीलो पहुँचा तो एली अपनी कुर्सी पर नगर द्वार के पास बैठा था। उसे पमेश्वर के पवित्र सन्दूक के लिये चिंता थी, इसीलिए वह प्रतीक्षा में बैठा हुआ था। तभी विन्यामीन परिवार समूह का वह व्यक्ति शीलो में आया और उसने दुःख भरी सूचना दी। नगर के सभी लोग जोर से रो पड़े। 14-15 एली अट्ठानवे वर्ष का बूढ़ा और अन्धा था, एली ने रोने की आवाज सुनी तो एली ने पूछा, “यह जोर का शोर क्या है?”

वह बिन्यामीन व्यक्ति एली के पास दौड़ कर गया और जो कुछ हुआ था उसे बताया। 16 बिन्यामीनी व्यक्ति ने कहा कि “मैं आज युद्ध से भाग आया हूँ!”

एली ने पूछा, “पुत्र, क्या हुआ?”

17 बिन्यामीनी व्यक्ति ने उत्तर दिया, “इस्राएली पलिश्तियों के मुकाबले भाग खड़े हुए हैं। इस्राएली सेना ने अनेक योद्धाओं को खो दिया है। तुम्हारे दोनों पुत्र मारे गए हैं और पलिश्ती परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को छीन ले गये हैं।”

18 जब बिन्यामीनी व्यक्ति ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक की बात कही, तो एली द्वार के निकट अपनी कुर्सी से पीछे गिर पड़ा और उसकी गर्दन टूट गई। एली बूढ़ा और मोटा था, इसलिये वह वहीं मर गया। एली बीस वर्ष तक इस्राएल का अगुवा रहा।

गौरव समाप्त हो गया

19 एली की पुत्रवधू, पीनहास की पत्नी, उन दिनों गर्भवती थी। यह लगभग उसके बच्चे के उत्पन्न होने का समय था। उसने यह समाचार सुना कि परमेश्वर का पवित्र सन्दूक छीन लिया गया है। उसने यह भी सुना कि उसके ससुर एली की मृत्यु हो गई है और सका पति पीनहास मारा गया है। ज्यों ही उसने यह सामचार सुना, उसको प्रसव पीड़ा आरम्भ हो गई और उसने अपने बच्चे को जन्म देना आरम्भ किया। 20 उसके मरने से पहले जो स्त्रियाँ उसकी सहायता कर रही थीं उन्होने कहा, “दुःखी मत हो! तुम्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ है।”

किन्तु एली की पुत्रवधू ने न तो उत्तर ही दिया, न ही उस पर ध्यान दिया। 21 एली की पुत्रवधू ने कहा, “इस्राएल का गौरव अस्त हो गया!” इसलिए उसने बच्चे का नाम ईकाबोद रखा और बस वह तभी मर गई। उसने अपने बच्चे का नाम ईकाबोद रखा क्योंकि परमेश्वर का पवित्र सन्दूक चला गया था और उसके ससुर एवं पति मर गए थे। 22 उसने कहा, “इस्राएल का गौरव अस्त हुआ।” उसने यह कहा, क्योंकि पलिश्ती परमेश्वर का सन्दूक ले गये।

पवित्र सन्दूक पलिश्तियों को परेशान करता है

पलिश्तियों ने परमेश्वर का पवित्र सन्दूक एबनेजेर से उसे असदोद ले गए। पलिश्ती परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को दागोन के मन्दिर में ले गए। उन्होंने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को दागोन की मूर्ति के बगल में रखा। अशदोदी के लोग अगली सुबह उठे। उन्होंने देखा कि दागोन मुँह के बल पड़ा है। दागोन यहोवा की सन्दूक के सामने गिरा पड़ा था।

अशदोद के लोगों ने दागोन की मूर्ति को उसके पूर्व—स्थान पर रखा। किन्तु अगली सुबह जब अशदोद के लोग उठे तो उन्होंने दागोन को फिर जमीन पर पाया। दागोन फिर यहोवा के पवित्र सन्दूक के सामने गिरा पड़ा था। दागोन के हाथ और पैर टूट गए थे और डेवढ़ी पर पड़े थे। केवल दागोन का शरीर एक खण्ड के रूप में था। यही कारण है, कि आज भी दागोन के याजक या अशदोद में दागोन के मन्दिर में घुसने वाले अन्य व्यक्ति डेवढ़ी पर चलने से इन्कार करते हैं।

यहोवा ने अशदोद के लोगों तथा उनके पड़ोसियों के जीवन को कष्टपूर्ण कर दिया। यहोवा ने उनको कठिनाईयों में डाला। उसने उनमें फोड़े उठाए। यहोवा ने उनके पास चूहे भेजे। चूहे उनके सभी जहाजों और भूमि पर दौड़ते थे। नगर में सभी लोग बहुत डर गए थे। अशदोद के लोगों ने देखा कि क्या हो रहा है। उनहोंने कहा, “इस्राएल के परमेश्वर का सन्दूक यहाँ नहीं रह सकता! परमेश्वर हमें और हमारे देवता, दागोन को भी दण्ड दे रहा है।”

अशदोद के लोगों ने पाँच पलिश्ती शासकों को एक साथ बुलाया। अशदोद के लोगों ने शासकों से पूछा, “हम लोग इस्राएल के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक का क्या करें?”

शासकों ने उत्तर दिया, “इस्राएल के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को गत नगर ले जाओ।” अत: पलिश्तियों ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को हटा दिया।

किन्तु जब पलिश्तियों ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को गत को भेज दिया था, तब यहोवा ने उस नगर को दण्ड दिया। लोग बहुत भयभीत हो गए। परमेश्वर ने सभी बच्चों व बूढ़ों के लिये अनेक कष्ट उत्पन्न किये। परमेश्वर ने गत के लोगों के शरीर में फोड़े उत्पन्न किये। 10 इसलिए पलिश्तियों ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को एक्रोन भेज दिया।

किन्तु जब परमेश्वर का पवित्र सन्दूक एक्रोन आया, एक्रोन के लोगों ने शिकायत की। उन्होंने कहा, “तुम लोग इस्राएल के परमेश्वर का सन्दूक हमारे नगर एक्रोन में क्यों ला रहे हो? क्या तुम लोग हमें और हमारे लोगों को मारना चाहते हो?” 11 एक्रोन के लोगों ने सभी पलिश्ती सेनापतियों को एक साथ बुलाया।

एक्रोन के लोगों ने सेनापतियों से कहा, “इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को, उसके पहले कि वह हमें और हमारे लोगों को मार डाले। इसके पहले के स्थान पर भेज दो!” एक्रोन के लोग बहुत भयभीत थे। परमेश्वर ने उस स्थान पर उनके जीवन को बहुत कष्टमय बना दिया। 12 बहुत से लोग मर गए और जो लोग नहीं मरे उनको फोड़े निकले। एक्रोन के लोगों ने जोर से रोकर स्वर्ग को पुकारा।

परमेश्वर का पवित्र सन्दूक अपने घर लौटाया गया

पलिश्तियों ने पवित्र सन्दूक को अपने देश में सात महीने रखा। पलिश्तियों ने अपने याजक और जादूगरों को बुलाया। पलिश्तियों ने कहा, “हम यहोवा के सन्दूक का क्या करें? बताओ कि हम कैसे सन्दूक को वापस इसके घर भेजें?”

याजकों और जादूगरों ने उत्तर दिया, “यदि तुम इस्राएल के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को भेजते हो तो, इसे बिना किसी भेंट के न भेजो। तुम्हें इस्राएल के परमेश्वर को भेंटें चढ़ानी चाहिये। जिससे इस्राएल का परमेश्वर तुम्हारे पापों को दूर करेगा। तब तुम स्वस्थ हो जाओगे। तुम पवित्र हो जाओगे। तुम्हें यह इसलिए करना चाहिए जिससे कि परमेश्वर तुम लोगों को दण्ड देना बन्द करे।”

पलिश्तयों ने पूछा, “हम लोगों को कौन सी भेंट, अपने को क्षमा कराने के लिये इस्राएल के परमेश्वर को भेजनी चाहिये?”

याजकों और जादूगरों ने कहा, “यहाँ पाँच पलिश्ती प्रमुख हैं। हर एक नगर के लिये एक प्रमुख है। तुम सभी लोगों और तुम्हारे प्रमुखों की एक ही समस्या है। इसलिए तुम्हे पाँच सोने के ऐसे नमूने जो पाँच फोड़ों के रुप में दिखने वाले बनाने चाहिये और पाँच नमूने पाँच चूहों के रूप में दिखने वाले बनाने चाहिए। इस प्रकार फोड़ों के नमूने बनाओ और चूहों के नमूने बनाओ जो देश को बरबाद कर रहे हैं। इस्राएल के परमेश्वर को इन सोने के नमूनों को भुगतान के रूप में दो। तब यह संभव है कि इस्राएल का परमेश्वर तुमको, तुम्हारे देवताओं को, और तुम्हारे देश को दण्ड देना रोक दे। फ़िरौन और मिस्रियों की तरह हठी न बनो। परमेश्वर ने मिस्रियों को दण्ड दिया। यही कारण था कि मिस्रियों ने इस्राएलियों को मिस्र छोड़ने दिया।

“तुम्हें एक नई बन्द गाड़ी बनानी चाहिए और दो गायें जिन्होंने अभी बछड़े दिये हों लानी चाहिए। ये गायें ऐसी होनी चाहिये जिन्होंने खेतों में काम न किया हो। गायों को बन्द गाड़ी में जोड़ो और बछड़ों को घर लौटा ले जाओ। बछड़ों को गौशाला में रखो। उन्हें अपनी माताओं के पीछे न जाने दो।[b] यहोवा के पवित्र सन्दूक को बन्द गाड़ी में रखो। तुम्हें सोने के नमूनों को थैले में सन्दूक के बगल में रखना चाहिये। तुम्हारे पापों को क्षमा करने के लिये सोने के नमूने परमेश्वर के लिये तुम्हारी भेंट हैं। बन्द गाड़ी को सीधे इसके रास्ते पर भेजो। बन्द गाड़ी को देखते रहो। यदि बन्द गाड़ी बेतशेमेश की ओर इस्राएल की भूमि में जाती है, तो यह संकेत है कि यहोवा ने हमें यह बड़ा रोग दिया है। किन्तु यदि गायें बेतशेमेश को नहीं जातीं, तो हम समझेंगे कि इस्राएल के परमेश्वर ने हमें दण्ड नहीं दिया है। हम समझ जायेंगे कि हमारी बीमारी स्वतः ही हो गई।”

10 पलिश्तियों ने वही किया जो याजकों और जादूगरों ने कहा। पलिश्तियों ने वैसी दो गायें लीं जिनहोने शीघ्र ही बछड़े दिये थे। पलिश्तिययों ने गायों को बन्द गाड़ी से जोड़ दिया। पलिश्तियों ने बछडों को घर पर गौशाला में रखा। 11 तब पलिश्तियों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को बन्द गाड़ी में रखा। 12 गायें सीधे बेतशेमेश को गईं। गायें लगातार रंभाती हुई सड़क पर टिकी रहीं। गायें दायें या बायें नहीं मुड़ीं। पलिश्ती शासक गायों के पीछे बेतशेमेश की नगर सीमा तक गए।

13 बेतशेमेश के लोग घाटी में अपनी गेहूँ की फसल काट रहे थे। उन्होंने निगाह उठाई और पवित्र सन्दूक को देखा। वे सन्दूक को फिर देखकर बहुत प्रसन्न हुए। वे उसे लेने के लिये दौड़े। 14-15 बन्द गाड़ी उस खेत में आई जो बेतशेमेश के यहोशू का था। इस खेत में बन्द गाड़ी एक विशाल चट्टान के सामने रूकी। बेतशेमेश के लोगों ने बन्द गाड़ी को काट दिया। तब उन्होंने गायों को मार डाला। उन्होंने गायों की बलि यहोवा को दी।

लेवीवंशियों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को उतारा। उन्होंने उस थैले को भी उतारा जिसमें सोने के नमूने रखे थे। लेवीवंशियों ने यहोवा के सन्दूक और थैले को विशाल चट्टान पर रखा।

उस दिन बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा को होमबलि चढ़ाई।

16 पाँचों पलिश्ती शासकों ने बेतशेमेश के लोगों को यह सब करते देखा। तब वे पाँचों पलिश्ती शासक उसी दिन एक्रोन लौट गए।

17 इस प्रकार, पलिश्तियों ने यहोवा को अपने पापों के लिये, अपने फोड़ों के सोने के नमूने भेंट के रूप में भेजे। उन्होंने हर एक पलिश्ती नगर के लिये फोड़े का एक सोने का नमूना भेजा। ये पलिश्ती नगर अशदोद, अज्जा, अश्कलोन, गत और एक्रोन थे। 18 पलिश्तियों ने चूहों के सोने के नमूने भी भेजे। सोने के चूहे की संख्या उतनी ही थी जितनी संख्या पाँचों पलिश्ती शासकों के नगरों की थी। इन नगरों के चारों ओर चहारदीवारी थी और हर नगर के चारों ओर गाँव थे।

बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को एक चट्टान पर रखा। वह चट्टान अब भी बेतशेमेश के यहोशू के खेत में है। 19 किन्तु जिस समय बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को देखा उस समय वहाँ कोई याजक न था। इसलिये परमेश्वर ने बेतशेमेश के सत्तर व्यक्तियों को मार डाला। बेतशेमेश के लोग विलाप करने लगे क्योंकि यहोवा ने उन्हें इतना कठोर दण्ड दिया। 20 इसलिये बेतशेमेश के लोगों ने कहा, “याजक कहाँ है जो इस पवित्र सन्दूक की देखभाल कर सके? यहाँ से सन्दूक कहाँ जाएगा?”

21 किर्यत्यारीम में एक याजक था। बेतशेमेश के लोगों ने किर्यत्यारीम के लोगों के पास दूत भेजे। दूतों ने कहा, “पलिश्तियों ने यहोवा का पवित्र सन्दूक लौटा दिया है। आओ और इसे अपने नगर में ले जाओ।”

किर्यत्यारीम के लोग आए और यहोवा के पवित्र सन्दूक को ले गए। वे यहोवा के सन्दूक को पहाड़ी पर अबीनादाब के घर ले गए। उन्होंने अबीनादाब के पुत्र एलीआजार को यहोवा के सन्दूक की रक्षा करने के लिये तैयार करने हेतु एक विशेष उपासना की। सन्दूक किर्यत्यारीम में बहुत समय तक रखा रहा। यह वहाँ बीस वर्ष तक रहा।

यहोवा इस्राएलियों की रक्षा करता है:

इस्राएल के लोग फिर यहोवा का अनुसरण करने लगे। शमूएल ने इस्राएल के लोगों से कहा, “यदि तुम सचमुच यहोवा के पास सच्चे हृदय से लौट रहे हो तो तुम्हें विदेशी देवताओं को फेंक देना चाहिये। तुम्हें अश्तोरेत की मूर्तियों को फेंक देना चाहिये और तुम्हें पूरी तरह यहोवा को अपना समर्पण करना चाहिये! तुम्हें केवल यहोवा की ही सेवा करनी चाहिये। तब यहोवा तुम्हें पलिश्तियों से बचायेगा।”

इसलिये इस्राएलियों ने अपने बाल और अश्तोरेत की मूर्तियों को फेंक दिया। इस्राएली केवल यहोवा की सेवा करने लगे।

शमूएल ने कहा, “सभी इस्राएली मिस्पा में इकट्ठे हों। मैं तुम्हारे लिये यहोवा से प्रार्थना करूँगा।”

इस्राएली मिस्पा में एक साथ इकट्ठे हुए। वे जल लाये और यहोवा के सामने वह जल चढ़ाया। इस प्रकार उन्होंने उपवास का समय आरम्भ किया। उन्होने उस दिन भोजन नहीं किया और उन्होंने अपने पापों को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “हम लोगों ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है।” इस प्रकार शमूएल ने मिस्पा में इस्राएल के न्यायाधीश के रूप में काम किया।

पलिश्तियों ने यह सुना कि इस्राएली मिस्पा में इकट्ठा हो रहे हैं। पलिश्ती शासक इस्राएलियों के विरूद्ध आक्रमण करने गये। इस्राएलियों ने सुना कि पलिश्ती आ रहे हैं, और वे डर गए। इस्राएलियों ने शमूएल से कहा, “हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना हमारे लिये करना बन्द मत करो। यहोवा से माँगो कि वह पलिश्तियों से हमारी रक्षा करे!”

शमूएल ने एक मेमना लिया। उसने यहोवा की होमबलि के रुप में मेमने को जलाया। शमूएल ने यहोवा से इस्राएल के लिये प्रार्थना की। यहोवा ने शमूएल की प्रार्थना का उत्तर दिया। 10 जिस समय शमूएल बलि जला रहा था, पलिश्ती इस्राएल से लड़ने आये। किन्तु यहोवा ने पलिश्तियों के समीप प्रचण्ड गर्जना उत्पन्न की। इसने पलिश्तियों को अस्त व्यस्त कर दिया। गर्जना ने पलिश्तियों को भयभीत कर दिया और वे अस्त व्यस्त हो गये। उनके प्रमुख उन पर नयन्त्रण न रख सके। इस प्रकार पलिश्तियों को इस्राएलियों ने युद्ध में पराजित कर दिया। 11 इस्राएल के लोग मिस्पा से बाहर दौड़े और पलिश्तियों का पीछा किया। उन्होंने लगातार बेत कर तक उनका पीछा किया। उन्होंने पूरे रास्ते पलिश्ती सैनिकों को मारा।

इस्राएल में शान्ति स्थापित हुई

12 इसके बाद, शमूएल ने एक विशेष पत्थर स्थापित किया। उसने यह इसलिऐ किया कि लोग याद रखें कि परमेश्वर ने क्या किया। शमूएल ने पत्थर को मिस्पा और शेन के बीच रखा। शमूएल ने पत्थर का नाम “सहायता का पत्थर”[c] रखा। शमूएल ने कहा, “यहोवा ने लगातार पूरे रास्ते इस स्थान तक हमारी सहायता की।”

13 पलिश्ती पराजित हुए। वे इस्राएल देश में फिर नहीं घुसे। शमूएल के शेष जीवन में, यहोवा पलिश्तियों के विरुद्ध रहा। 14 पलिश्तियों ने इस्राएल के नगर ले लिये थे। पलिश्तियों ने एक्रोन से गत तक के क्षेत्र के नगरों को ले लिया था। किन्तु इस्राएलियों ने इन्हें जीत कर वापस ले लिया और इस्राएल ने इन नगरों के चारों ओर की भूमि को भी वापस ले लिया।

और इस्राएलियों और एमोरियों के बीच भी शान्ति हो गई।

15 शमूएल ने अपने पूरे जीवन भर इस्राएल का मार्ग दर्शन किया। 16 शमूएल एक स्थान से दूसरे स्थान तक इस्राएल के लोगों का न्याय करता हुआ गया। हर वर्ष उसने देश के चारों ओर यात्रा की। वह गिलगाल, बेतेल और मिस्पा को गया। अत: उसने इन सभी स्थानों पर इस्राएली लोगों का न्याय और उन पर शासन किया। 17 किन्तु शमूएल का घर रामा में था। इसलिए शमूएल सदा रामा को लौट जाता था। शमूएल ने उसी नगर से इस्राएल का न्याय और शासन किया और शमूएल ने रामा में यहोवा के लिये एक वेदी बनाई।

इस्राएल एक राजा की माँग करता है

जब शमूएल बूढ़ा हो गया तो उसने अपने पुत्रों को इस्राएल के न्यायाधीश बनाया। शमूएल के प्रथम पुत्र का नाम योएल रखा गया। उसके दूसरे पुत्र का नाम अबिय्याह रखा गया था। योएल और अबिय्याह बेर्शेबा में न्यायाधीश थे। किन्तु शमूएल के पुत्र वैसे नहीं रहते थे जैसे वह रहता था। योएल और अबिय्याह घूस लेते थे। वे गुप्त रूप से धन लेते थे और न्यायालय में अपना निर्णय बदल देते थे। वे न्यायालय में लोगों को ठगते थे। इसलिये इस्राएल के सभी अग्रज (प्रमुख) एक साथ इकट्ठे हुए। वे शमूएल से मिलने रामा गये। अग्रजों (प्रमुखों) ने शमूएल से कहा, “तुम बूढ़े हो गए और तुम्हारे पुत्र ठीक से नहीं रहते। वे तुम्हारी तरह नहीं हैं। अब, तुम अन्य राष्ट्रों की तरह हम पर शासन करने के लिये एक राजा दो।”

इस प्रकार, अग्रजों (प्रमुखों) ने अपने मार्ग दर्शन के लिये एक राजा माँगा। शमूएल ने सोचा कि यह विचार बुरा है। इसलिए शमूएल ने यहोवा से प्रार्थना की। यहोवा ने शमूएल से कहा, “वही करो जो लोग तुमसे करने को कहते हैं। उन्होंने तुमको अस्वीकार नहीं किया है। उन्होंने मुझे अस्वीकार किया है! वे मुझको अपना राजा बनाना नहीं चाहते! वे वही कर रहे हैं जो सदा करते रहे। मैंने उनको मिस्र से बाहर निकाला। किन्तु उन्होंने मुझको छोड़ा, तथा अन्य देवताओं की पूजा की। वे तुम्हारे साथ भी वैसा ही कर रहे हैं। इसलिए लोगों की सुनों और जो वे कहें, करो। किन्तु उन्हें चेतावनी दो। उन्हें बता दो कि राजा उनके साथ क्या करेगा। उनको बता दो कि एक राजा लोगों पर कैसे शासन करता है।”

10 उन लोगों ने एक राजा के लिये माँग की। इसलिये शमूएल ने लोगों से वे सारी बातें कहीं जो यहोवा ने कही थी। 11 शमूएल ने कहा, “यदि तुम अपने ऊपर शासन करने वाला राजा रखते हो तो वह यह करेगा: वह तुम्हारे पुत्रों को ले लेगा। वह तुम्हारे पुत्रों को अपनी सेवा के लिये विवश करेगा। वह उन्हें सैनिक बनने के लिये विवश करेगा, उन्हें उसके रथों पर से लड़ना पड़ेगा और वे उसकी सेना के घुड़सवार होंगे। तुम्हारे पुत्र राजा के रथ के आगे दौड़ने वाले रक्षक बनेंगे।

12 “राजा तुम्हारे पुत्रों को सैनिक बनने के लिये विवश करेगा। उनमें से कुछ हजार व्यक्तियों के ऊपर अधिकारी होंगे और अन्य पचास व्यक्तियों के ऊपर अधिकारी होंगे।

“राजा तुम्हारे पुत्रों में से कुछ को अपने खेत को जोतने और फसल काटने को विवश करेगा। वह तुम्हारे पुत्रों में से कुछ को अस्त्र—शस्त्र बनाने को विवश करेगा। वह उन्हें अपने रथ के लिये चीजें बनाने के लिये विवश करेगा।

13 “राजा तुम्हारी पुत्रियों को लेगा। वह तुम्हारी पुत्रियों में से कुछ को अपने लिये सुगन्धद्रव्य चीजें बनाने को विवश करेगा और वह तुम्हारी पुत्रियों में से कुछ को रसोई बनाने और रोटी पकाने को विवश करेगा।

14 “राजा तुम्हारे सर्वोत्तम खेत, अगूंर के बाग और जैतून के बागों को ले लेगा। वह उन चीजों को तुमसे ले लेगा और अपने अधिकारियों को देगा। 15 वह तुम्हारे अन्न और अगूंर का दसवाँ भाग ले लेगा। वह इन चीजों को अपने सेवकों और अधिकारियों को देगा।

16 “यह राजा तुम्हारे दास—दासियों को ले लेगा। वह तुम्हारे सर्वोत्तम पशु और गधों को लेगा। वह उनका उपयोग अपने कामों के लिये करेगा 17 और वह तुम्हारी रेवड़ों का दसवाँ भाग लेगा।

“और तुम स्वयं इस राजा के दास हो जाओगे। 18 जब वह समय आयेगा तब तुम राजा को चुन्ने के कारण रोओगे। किन्तु उस समय यहोवा तुमको उत्तर नहीं देगा।”

19 किन्तु लोगों ने शमूएल की एक न सुनी। उन्होने कहा, “नहीं! हम लोग अपने ऊपर शासन करने के लिये एक राजा चाहते हैं। 20 तब हम वैसे ही हो जायेंगे जैसे अन्य राष्ट्र। हमारा राजा हम लोगों का मार्ग—दर्शन करेगा। वह हम लोगों के साथ जायेगा और हमारे युद्धों को लड़ेगा।”

21 शमूएल ने जब लोगों का सारा कहा हुआ सुना तब उसने यहोवा के सामने उनके कथनों को दुहराया। 22 यहोवा ने उत्तर दिया, “उनकी बात सुनो! उनको एक राजा दो।”

तब शमूएल ने इस्राएल के लोगों से कहा, “ठीक है! तुम्हारा एक नया राजा होगा। अब, आप सभी लोग घर को जायें।”

शाऊल अपने पिता के गधों की तलास करता है।

कीश बिन्यामीन परिवार समूह का एक महत्वपूर्ण व्यक्ति था। कीश अबीएल का पुत्र था। अबीएल सरोर का पुत्र था। सरोर बकोरत का पुत्र था। बकोरत बिन्यामीन के एक व्यक्ति अपीह का पुत्र था। कीश का एक पुत्र शाऊल नाम का था। शाऊल एक सुन्दर युवक था। वहाँ शाऊल से अधिक सुन्दर कोई न था। खड़ा होने पर शाऊल का सिर इस्राएल के किसी भी व्यक्ति से ऊँचा रहता था।

एक दिन, कीश के गधे खो गए। इसलिए कीश ने अपने पुत्र शाऊल से कहा, “सेवकों में से एक को साथ लो और गधों की खोज में जाओ।” शाऊल ने गधों की खोज आरम्भ की। शाऊल एप्रैम की पहाड़ियों में होकर घूमा। तब शाऊल शलीशा के चारों ओर के क्षेत्र में घूमा। किन्तु शाऊल और उसका सेवक, कीश के गधों को नहीं पा सके। इसलिए शाऊल और सेवक शालीम के चारों ओर के क्षेत्र में गये। किन्तु गधे वहाँ नहीं मिले। इसलिए शाऊल ने बिन्यामीन के प्रदेश में होकर यात्रा की। किन्तु वह और उसका सेवक गधों को तब भी न पा सके।

अन्त में, शाऊल और उसका सेवक सूफ नामक नगर में आए। शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “चलो, हम लौटें। मेरे पिता गधों के बारे में सोचना बन्द कर देंगे और हम लोगों के बारे में चिन्तित होने लगेंगे।”

किन्तु सेवक ने उत्तर दिया, “इस नगर में परमेश्वर का एक व्यक्ति है। लोग उसका सम्मान करते हैं। वह जो कहता है सत्य होता है। इसलिये हम इस नगर में चलें। संभव है कि परमेश्वर का यह व्यक्ति हमें बताये कि इसके बाद हम लोग कहाँ जायें।”

शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “हम नगर में चल सकते हैं। किन्तु हम लोग उस व्यक्ति को क्या दे सकते हैं? हम लोगों के थैले का भोजन समाप्त हो चुका है। हम लोगों के पास कोई भी भेंट परमेश्वर के व्यक्ति को देने के लिये नहीं है। हमारे पास उसे देने को क्या है?”

सेवक ने शाऊल को फिर उत्तर दिया “देखो, मेरे पास थोड़ा सा धन[d] है। हम परमेश्वर के व्यक्ति को यही दें। तब वह बतायेगा कि हम लोग कहाँ जायें।”

9-11 शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “अच्छा सुझाव है! हम चलें!” वे नगर में वहाँ गए जहाँ परमेश्वर का व्यक्ति था।

शाऊल और उसका सेवक पहाड़ी पर चढ़ते हुए नगर को जा रहे थे। रास्ते में वे कुछ युवतियों से मिले। युवतियाँ बाहर से पानी लेने जा रही थीं। शाऊल और उसके सेवक ने युवतियों से पूछा, “क्या भविष्यवक्ता यहाँ है?” (प्राचीन काल में इस्राएल के निवासी नबियों को “भविष्यवक्ता” कहते थे। इसलिए यदि वे परमेश्वर से कुछ माँगना चाहते थे तो वे कहते थे, “हम लोग भविष्यवक्ता के पास चलें।”)

12 युवतियों ने उत्तर दिया, “हाँ, भविष्यवक्ता यहीं है। वह ठीक इसी सड़क पर आगे है। वह आज ही नगर में आया है। कुछ लोग वहाँ एक साथ इसलिये इकट्ठे हो रहे हैं कि आराधनालय पर मेलबलि में भाग ले सकें। 13 आप लोग नगर में जाएँ, और आप उनसे मिल लेंगे। यदि आप लोग शीघ्रता करेंगे तो आप उनसे आराधनालय पर भोजन के लिये जाने के पहले मिल लेंगे। भविष्यवक्ता बलि—भेंट को आशीर्वाद देते हैं। इसलिये लोग तब तक भोजन करना आरम्भ नहीं करेंगे जब तक वे वहाँ न पहुँचें। इसलिये यदि आप लोग शीघ्रता करें, तो आप भविष्यवक्ता को पा सकते हैं।”

14 शाऊल और सेवक ने ऊपर पहाड़ी पर नगर की ओर बढ़ना आरम्भ किया। जैसे ही वे नगर में घुसे उन्होंने शमूएल को अपनी ओर आते देखा। शमूएल नगर के बाहर उपासना के स्थान पर जाने के लिये अभी आ ही रहा था।

15 एक दिन पहले यहोवा ने शमूएल से कहा था, 16 “कल मैं इसी समय तुम्हारे पास एक व्यक्ति को भेजूँगा। वह बिन्यामीन के परिवार समूह का होगा। तुम्हें उसका अभिषेक कर देना चाहिये। तब वह हमारे लोग इस्राएलियों का नया प्रमुख होगा। यह व्यक्ति हमारे लोगों को पलिश्तियों से बचाएगा। मैंने अपने लोगों के कष्टों को देखा है। मैंने अपने लोगों का रोना सुना है।”

17 शमूएल ने शाऊल को देखा और यहोवा ने उससे कहा, “यही वह व्यक्ति है जिसके बारे में मैंने तुमसे कहा था। यह मेरे लोगों पर शासन करेगा।”

18 शाऊल द्वार के पास शमूएल के निकट आया। शाऊल ने शमूएल से पूछा, “कृपया बतायें भविष्यवक्ता का घर कहाँ है।”

19 शमूएल ने उत्तर दिया, “मैं ही भविष्यवक्ता हूँ। मेरे आगे उपासना के स्थान पर पहुँचो। तुम और तुम्हारा सेवक आज हमारे साथ भोजन करोगे। मैं कल सवेरे तुम्हें घर जाने दूँगा मैं तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर दूँगा। 20 उन गधों की चिन्ता न करो जिन्हें तुमने तीन दिन पहले खो दिया। वे मिल गये हैं। अब, तुम्हें सारा इस्राएल चाहता है। वे तुम्हें और तुम्हारे पिता के परिवार के सभी लोगों को चाहते हैं।”

21 शाऊल ने उत्तर दिया, “किन्तु मैं बिन्यामीन परिवार समूह का एक सदस्य हूँ। यह इस्राएल में सबसे छोटा परिवार समूह है और मेरा परिवार बिन्यामीन परिवार समूह में सबसे छोटा है। आप क्यों कहते हैं कि इस्राएल मुझको चाहता है?”

22 तब शमूएल, शाऊल और उसके सेवक को भोजन के क्षेत्र में ले गया। लगभग तीस व्यक्ति एक साथ भोजन के लिये और बलि—भेंट में भाग लेने के लिये आमन्त्रित थे। शमूएल ने शाऊल और उसके सेवक को मेज पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया। 23 शमूएल ने रसोइये से कहा, “वह माँस लाओ जो मैंने तुम्हें दिया था। यह वह भाग है जिसे मैंने तुमसे सुरक्षित रखने के लिये कहा था।”

24 रसोइये ने जांघ ली और शाऊल के सामने मेज पर रखी। शमूएल ने कहा, “यही वह माँस है जिसे मैंने तुम्हारे लिये सुरक्षित रखा था। यह खाओ क्योंकि यह इस विशेष समय के लिये तुम्हारे लिये सुरक्षित था।” इस प्रकार उस दिन शाऊल ने शमूएल के साथ भोजन किया।

25 जब उन्होंने भोजन समाप्त कर लिया, वे आराधनालय से उतरे और नगर को लौटे। शमूएल ने छत पर शाऊल के लिये बिस्तर लागाया और शाऊल सो गया। 26 अगली सुबह सवेरे, शमूएल ने शाऊल को छत पर जोर से पुकारा।

शमूएल ने कहा, “उठो। मैं तुम्हें तुम्हारे रास्ते पर भेजूँगा।” शाऊल उठा, और शमूएल के साथ घर से बाहर चल पड़ा।

27 शाऊल, उसका सेवक और शमूएल एक साथ नगर के सिरे पर चल रहे थे। शमूएल ने शाऊल से कहा, “अपने सेवक से हम लोगों से कुछ आगे चलने को कहो। मेरे पास तुम्हारे लिये परमेश्वर का एक सन्देश है।” इसलिये दास उनसे कुछ आगे चलने लगा।

शमूएल शाऊल का अभिषेक करता है

10 शमूएल ने विशेष तेल की एक कुप्पी ली। शमूएल ने तेल को शाऊल के सिर पर डाला। शमूएल ने शाऊल को चुम्बन किया और कहा, “यहोवा ने तुम्हारा अभिषेक अपने लोगों का प्रमुख बनाने के लिये किया है। तुम यहोवा के लोगों पर नियन्त्रण करोगे। तुम उन्हें उन शत्रुओं से बचाओगे जो उनको चारों ओर से घेरे हैं। यहोवा ने तुम्हारा अभिषेक (चुनाव) अपने लोगों का शासक होने के लिये किया है। एक चिन्ह प्रकट होगा जो प्रमाणित करेगा कि यह सत्य है। जब तुम मुझसे अलग होगे, तो तुम राहेल के कब्र के पास दो व्यक्तियों से, बिन्यामीन की धरती के सिवाने पर, सेलसह में मिलोगे। वे दोनों व्यक्ति तुमसे कहेंगे, ‘जिन गधों की खोज तुम कर रहे थे उन्हें किसी व्यक्ति ने प्राप्त कर लिया है। तुम्हारे पिता ने गधों के सम्बन्ध में चिन्ता करना छोड़ दिया है। अब उसे तुम्हारी चिन्ता है। वह कह रहा है: मैं अपने पुत्र के विषय में क्या करूँ?’”

शमूएल ने कहा, “अब तुम तब तक चलते रहोगे जब तक तुम ताबोर में बांज के विशाल पेड़ तक पहुँच नहीं जाते। वहाँ तुमसे तीन व्यक्ति मिलेंगे। वे तीनों व्यक्ति बेतेल में परमेश्वर की उपासना के लिये यात्रा पर होंगे। एक व्यक्ति बकरियों के तीन बच्चों को लिये होगा। दूसरा व्यक्ति तीन रोटियाँ लिये हुए होगा और तीसरा व्यक्ति एक मश्क दाखमधु लिये हुए होगा। ये तीनों व्यक्ति कहेंगे, ‘आपका स्वागत है।’ वे तुम्हें दो रोटियाँ देंगे। तुम उनसे उन दो रोटियों को स्वीकार करोगे। तब तुम गिबियथ—एलोहिम जाओगे। उस स्थान पर पिलिश्तियों का एक किला है। जब तुम उस नगर में पहुँचोगे तो कई नबी निकल आयेंगे। ये नबी आराधनास्थल से नीचे उपासना के लिये आयेंगे। वे भविष्यवाणी करेंगे। वे वीणा, खंजड़ी, और तम्बूरा बजा रहे होंगे। तब तत्काल तुम पर यहोवा की आत्मा उतरेगी। तुम बदल जाओगे। तुम एक भिन्न ही पुरुष हो जाओगे। तुम इन भविष्यवक्ताओं के साथ भविष्यवाणी करने लगोगे। इन बातों के घटित होने के बाद, तुम जो चाहोगे, करोगे। परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा।

“मुझसे पहले गिलगाल जाओ। मैं तुम्हारे पास उस स्थान पर आऊँगा। तब मैं होमबलि और मेलबलि चढ़ाऊँगा। किन्तु तुम्हें सात दिन प्रतीक्षा करनी होगी। तब मैं आऊँगा और बताऊँगा कि तुम्हें क्या करना है।”

शाऊल का नबी जैसा होना

जैसे ही शाऊल शमूएल को छोड़ने के लिये मुड़ा, परमेश्वर ने शाऊल का जीवन बदल दिया। ये सभी घटनायें उस दिन घटीं। 10 शाऊल और उसका सेवक गिबियथ—एलोहिम गए। उस स्थान पर शाऊल नबियों के एक समूह से मिला। परमेश्वर की आत्मा शाऊल पर तीव्रता से उतरी और शाऊल ने नबियों के साथ भविष्यवाणी की। 11 जो लोग शाऊल को पहले से जानते थे उन्होंने नबियों के साथ उसे भविष्यवाणी करते देखा। वे लोग आपस में पूछ ताछ करने लगे, “कीश के पुत्र को क्या हो गया है? क्या शाऊल नबियों में से एक है?”

12 एक व्यक्ति ने जो गिबियथ—एलोहिम में रहता था, कहा, “हाँ! और ऐसा लगता है कि यह उनका मुखिया है।”[e] यही कारण है कि यह प्रसिद्ध कहावत बनी: “क्या शाऊल नबियों में से कोई एक है?”

शाऊल घर पहुँचता है

13 अन्तत: उसने नबियों की तरह बोलना बन्द किया और एक उच्च स्थान पर चला गया।

14 बाद में शाऊल के चाचा ने उससे और उसके सेवक से कहा, “तुम कहाँ गए थे?”

उसने उत्तर दिया, “हम गधों को देखने गए थे और उनकी खोज में चले ही जा रहे थे, किन्तु वे कहीं नहीं मिले। इसलिए हम लोग शमूएल के पास गए।”

15 यह सुनकर शाऊल के चाचा ने कहा, “कृपया तुम लोग मुझे बताओ कि शमूएल ने तुम दोनों से क्या कहा?”

16 शाऊल ने अपने चाचा को उत्तर दिया, “उसने पूरी सच्चाई से बताया कि गधे मिल गये हैं।” और उसने राज्य के बारे में जो शमूएल से सुना था उसे नहीं बताया।

शमूएल, शाऊल को राजा घोषित करता है

17 शमूएल ने इस्राएल के सभी लोगों से मिस्पा में यहोवा से मिलने के लिये एक साथ इकट्ठा होने को कहा। 18 शमूएल ने कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मैंने इस्राएल को मिस्र से बाहर निकाला। मैंने तुम्हें मिस्र की अधीनता से और उन अन्य राष्ट्रों से भी बचाया जो तुम्हें चोट पहुँचाना चाहते थे।’ 19 किन्तु आज तुमने अपने परमेश्वर को अस्वीकार कर दिया है। तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें तुम्हारे सभी कष्टों और समस्याओं से बचाता है। किन्तु तुमने कहा, ‘नहीं हम अपने ऊपर शासन करने के लिये एक राजा चाहते हैं।’ अब आओ और यहोवा के सामने अपने परिवारों और अपने परिवार समूहों में खड़े हो जाओ।”

20 शमूएल इस्राएल के सभी परिवार समूहों को निकट लाया। तब शमूएल ने नया राजा चुनना आरम्भ किया। प्रथम बिन्यामीन का परिवार समूह चुना गया। 21 शमूएल ने बिन्यामीन के परिवार समूह के हर एक परिवार को एक एक करके आगे से निकलने को कहा। मत्री का परिवार चुना गया। तब शमूएल ने मत्री के परिवार के हर एक व्यक्ति को एक एक करके उसके आगे से निकलने को कहा। इस प्रकार कीश का पुत्र शाऊल चुना गया।

किन्तु जब लोगों ने शाऊल की खोज की, तो वे उसे पा नहीं सके। 22 तब उन्होंने यहोवा से पूछा, “क्या शाऊल अभी तक यहाँ नहीं आया है?”

यहोवा ने कहा, “शाऊल भेंट सामग्री के पीछे छिपा है।”

23 लोग दौड़ पड़े और शाऊल को भेंट सामग्री के पीछे से ले आये। शाऊल लोगों के बीच खड़ा हुआ। शाऊल इतना लम्बा था कि सभी लोग बस उस के कंधे तक आ रहे थे।

24 शमूएल ने सभी लोगों से कहा, “उस व्यक्ति को देखो जिसे यहोवा ने चुना है। लोगों में कोई व्यक्ति शाऊल के समान नहीं है।”

तब लोगों ने नारा लगाया, “राजा दीर्घायु हो!”

25 शमूएल ने राज्य के नियमों को लोगों को समझाया। उसने उन नियमों को एक पुस्तक में लिखा। उसने पुस्तक को यहोवा के सामने रखा। तब शमूएल ने लोगों को अपने—अपने घर जाने के लिये कहा।

26 शाऊल भी गिबा में अपने घर चला गया। परमेश्वर ने वीर पुरुषों के हृदय का स्पर्श किया और ये वीर व्यक्ति शाऊल का अनुसरण करने लगे। 27 किन्तु कुछ उत्पातियों ने कहा, “यह व्यक्ति हम लोगों की रक्षा कैसे कर सकता है।?” उन्होंने शाऊल की निन्दा की और उसे उपहार देने से इन्कार किया। किन्तु शाऊल ने कुछ नहीं कहा।

अम्मोनियों का राजा नाहाश

अम्मोनियों का राजा नाहाश गिलाद और याबेश के परिवार समूह को कष्ट दे रहा था। नाहाश ने उनके हर एक पुरुष की दायीं आँख निकलवा डाली थी। नाहाश किसी को उनकी सहायता नहीं करने देता था। अम्मोनियों के राजा नाहाश ने यरदन नदी के पूर्व रहने वाले हर एक इस्राएली पुरुष की दायीं आँख निकलवा ली थी। किन्तु सत्तर हजार इस्राएली पुरुष अम्मोनियों के यहाँ से भाग निकले और याबेश गिलाद में आ गये।

11 लगभग एक महीने बाद अम्मोनी नाहाश और उसकी सेना ने याबेश गिलाद को घेरे लिया। याबेश के सभी लोगों ने नाहाश से कहा, “यदि तुम हमारे साथ सन्धि करोगे तो हम तुम्हारी प्रजा बनेंगे।”

किन्तु अम्मोनी नाहाश ने उत्तर दिया, “मैं तुम लोगों के साथ तब सन्धि करूँगा जब मैं हर एक व्यक्ति की दायीं आँख निकाल लूँगा। तब सारे इस्राएली लज्जित होंगे!”

याबेश के प्रमुखों ने नाहाश से कहा, “हम लोग सात दिन का समय लेंगे। हम पूरे इस्राएल में दूत भेजेंगे। यदि कोई सहायता के लिये नहीं आएगा, तो हम लोग तुम्हारे पास आएंगे और अपने को समर्पित कर देंगे।”

शाऊल याबेश गिलाद की रक्षा करता है:

सो वे दूत गिबा में आये जहाँ शाऊल रहता था। उन्होंने लोगों को समाचार दिया। लोग जोर से रो पड़े। शाऊल अपने बैलों के साथ खेतों में गया हुआ था। शाऊल खेत से लौटा और उसने लोगों का रोना सुना। शाऊल ने पूछा, “लोगों को क्या कष्ट है? वे रो क्यों रहे हैं?”

तब लोगों ने याबेश के दूतों ने जो कहा था शाऊल को बातया। शाऊल ने उनकी बातें सुनीं। तब परमेश्वर की आत्मा शाऊल पर जल्दी से उतरी। शाऊल अत्यन क्रोधित हुआ। शाऊल ने बैलों की जोड़ी ली और उसके टुकड़े कर डाले। तब उसने उन बैलों के टुकड़ों को उन दूतों को दिया। उसने दूतों को आदेश दिया कि वे इस्राएल के पूरे देश में उन टुकड़ों को ले जायें। उसने उनसे इस्राएल के लोगों को यह सन्देश देने को कहा, “आओ शाऊल और शमूएल का अनुसरण करो। यदि कोई व्यक्ति नहीं आता और उसकी सहायता नहीं करता तो उसके बैलों के साथ यही होगा।”

यहोवा की ओर से लोगों में बड़ा भय छा गया। वे एक इकाई के रूप में एक साथ इकट्ठे हो गए। शाऊल ने सभी पुरुषों को बेजेक में एक साथ इकट्ठा किया। वहाँ इस्राएल के तीन लाख पुरुष और यहूदा के तीस हजार पुरुष थे।

शाऊल और उसकी सेना ने याबेश के दूतों से कहा, “गिलाद में याबेश के लोगों से कहो कि कल दोपहर तक तुम लोगों की रक्षा हो जायेगी।”

दूतों ने शाऊल का सन्देश याबेश के लोगों को दिया। याबेश के लोग बड़े प्रसन्न हुए। 10 तब याबेश के लोगों ने अम्मोनी नाहाश से कहा, “हम लोग कल तुम्हारे पास आएंगे। तब तुम हम लोगों के साथ जो चाहो कर सकते हो।”

11 अगली सुबह शाऊल ने अपनी सेना को तीन टुकड़ियों में बाँटा। सूरज निकलते ही शाऊल और उसके सैनिक अम्मोनियों के डेरे में जा घुसे। जब वे उस सुबह रक्षकों को बदल रहे थे, शाऊल ने आक्रमण किया। शाऊल और उसके सैनिकों ने अम्मोनियों को दोपहर से पहले पराजित कर दिया। सभी अम्मोनी सैनिक विभिन्न दिशाओं में भागे—दो सैनिक भी एक साथ नहीं रहे।

12 तब लोगों ने शमूएल से कहा, “वे लोग कहाँ हैं जो कहते थे कि हम शाऊल को राजा के रूप में शासन करने देना नहीं चाहते? उन लोगों को लाओ! हम उन्हें मार डालेंगे!”

13 किन्तु शाऊल ने कहा, “नहीं! आज किसी को मत मारो! आज यहोवा ने इस्राएल की रक्षा की!”

14 तब शमूएल ने लोगों से कहा, “आओ हम लोग गिलगाल चलें। गिलगाल में हम शाऊल को फिर राजा बनायेंगे।”

15 सो सभी लोग गिलगाल चले गये। वहाँ यहोवा के सामने लोगों ने शाऊल को राजा बनाया। उन्होंने यहोवा को मेलबलि दी। शाऊल और सभी इस्राएलियों ने खुशियाँ मनायीं।

शमूएल का इस्राएलियों से बात करना

12 शमूएल ने सारे इस्राएलियों से कहा: “मैंने वह सब कुछ कर दिया है जो तुम लोग मुझ से चाहते थे। मैंने तुम लोगों के ऊपर एक राजा रखा है। अब तुम्हारे मार्गदर्शन के लिये एक राजा है। मैं श्वेतकेशी बूढ़ा हूँ। मेरे पुत्र तुम्हारे साथ हैं। जब मैं एक छोटा बालक था तब से मैं तुम्हारा मार्ग दर्शक रहा हूँ। मैं यहाँ हूँ। यदि मैंने कोई बुरा काम किया है तो तुम्हें उसके बारे में यहोवा से और उनके चुने हुए राजा से कहना चाहिये। क्या मैंने कभी किसी का बैल या गधा चुराया है? क्या मैंने किसी को कभी धोखा दिया है या हानि पहुँचाई है? क्या मैंने किसी का कुछ बुरा करने के लिये कभी किसी से धन या एक जोड़ा जूता भी लिया है? यदि मैंने इनमें से कोई बुरा काम किया है तो में उसको ठीक करूँगा।”

इस्राएलियों ने उत्तर दिया, “नहीं! तुमने हम लोगों के लिये कभी बुरा नहीं किया। तुमने न हम लोगों को ठगा, न ही तुमने हम लोगों से कभी कुछ लिया।”

शमूएल ने इस्राएलियों से कहा, “जो तुमने कहा, यहोवा उसका गवाह है। यहोवा का चुना राजा भी आज गवाह है। वे दोनों गवाह हैं कि तुमने मुझमें कोई दोष नहीं पाया।” लोगों ने कहा, “हाँ! यहोवा गवाह है।”

तब समूएल ने लोगों से कहा, “यहोवा गवाह है। उसने मूसा और हारून को चुना। वह तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर ले आया। अब चुपचाप खड़े रहो अब मैं तुम्हें उन अच्छे कामों को बताऊँगा जो यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों और तुम्हारे लिये किये थे।

“याकूब मिस्र गया। बाद में, मिस्रियों ने उसके वंशजों का जीवन कष्टमय बना दिया। इसलिए वे सहायता के लिये यहोवा के सामने रोये। यहोवा ने मूसा और हारून को भेजा। मूसा और हारून तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल ले आए और इस स्थान में रहने के लिये उनका मार्ग दर्शन किया।

“किन्तु तुम्हारे पूर्वज, अपने परमेश्वर यहोवा को भूल गये। इसलिए यहोवा ने उन्हें सीसरा का दास होने दिया। सीसरा, हासोर की सेना का सेनापति था। तब यहोवा ने उन्हें पलिश्तियों और मोआब के राजा का दास बनाया। वे सभी तुम्हारे पूर्वजों के विरूद्ध लड़े। 10 किन्तु तुम्हारे पूर्वज सहायता के लिये यहोवा के सामने गिड़गिड़ाए। उन्होंने कहा, ‘हम लोगों ने पाप किया है। हम लोगों ने यहोवा को छोड़ा है और झूठे देवताओं बाल और अश्तोरेत की सेवा की है। किन्तु अब आप हमें हमारे शत्रुओं से बचायें, हम आपकी सेवा करेंगे।’

11 “इसलिए यहोवा ने यरुब्बाल (गिदोन), बदान, बरक, यिप्तह और शमूएल को वहाँ भेजा। यहोवा ने तुम्हारे चारों ओर के शत्रुओं से तुम्हारी रक्षा की और तुम सुरक्षित रहे। 12 किन्तु तब तुमने अम्मोनियों के राजा नाहाश को अपने विरूद्ध लड़ने के लिये आते देखा। तुमने कहा, ‘नहीं! हम अपने ऊपर शासन करने के लिये एक राजा चाहते हैं।’ तुमने यही कहा, यद्यपि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा राजा पहले से ही था। 13 अब, तुम्हारा चुना राजा यहाँ है। यहोवा ने इस राजा को तुम्हारे ऊपर नियुक्त किया है। 14 परमेश्वर यहोवा तुम्हारी रक्षा करता रहेगा। किन्तु परमेश्वर तुम्हारी रक्षा तभी करेगा जब तुम ये करोगे तुम्हें यहोवा का सम्मान और उसकी सेवा करनी चाहिए। तुम्हें उसके आदेशों के विरूद्ध लडना नहीं चाहिए और तुम्हें तथा तुम्हारे ऊपर शासन करने वाले राजा को, अपने परमेश्वर यहोवा का अनुसरण करना चाहिये। यदि तुम इन्हें करते रहोगे तो परमेश्वर तुम्हारी रक्षा करेगा। 15 किन्तु यदि तुम यहोवा की आज्ञा पालन नहीं करते हो और उसके आदेशों के विरूद्ध लड़ते हो, तो वह तुम्हारे विरुद्ध होगा। यहोवा तुम्हें और तुम्हारे राजा को नष्ट कर देगा!

16 “अब चुपचाप खड़े रहो और उस अद्भुत काम को देखो जिसे यहोवा तुम्हारी आँखों के सामने करेगा। 17 यह गेहूँ की फसल कटने का समय है। मैं यहोवा से प्रार्थना करूँगा। मैं उन से बिजली की कड़क और वर्षा की याचना करुँगा। तब तुम समझोगे कि तुमने उस समय यहोवा के विरूद्ध बुरा किया था जब तुमने एक राजा की माँग की थी।”

18 अत: शमूएल ने यहोवा से प्रार्थना की। उसी दिन यहोवा ने बिजली की कड़क और वर्षा भेजी। इससे लोग यहोवा तथा शमूएल से बहुत डर गये। 19 सभी लोगों ने शमूएल से कहा, “अपने परमेश्वर यहोवा से तुम अपने सेवक, हम लोगों के लिये प्रार्थना करो। हम लोगों को मरने मत दो! हम लोगों ने बहुत पाप किये हैं और अब एक राजा के लिए माँग करके हम लोगों ने उन पापों को और बढ़ाया है।”

20 शमूएल ने उत्तर दिया, “डरो नहीं। यह सत्य है! तुमने वे सब बुरे काम किये। किन्तु यहोवा का अनुसरण करना बन्द मत करो। अपने सच्चे हृदय से यहोवा की सेवा करो। 21 देवमूर्तियाँ मात्र मूर्तियाँ हैं, वे तुम्हारी सहायता नहीं करेंगी। इसलिए उनकी पूजा मत करो। देवमूर्तियाँ न तुम्हारी सहयता कर सकती हैं, न ही रक्षा कर सकती हैं। वे कुछ भी नहीं हैं!

22 “किन्तु यहोवा अपने लोगों को छोड़ेगा नहीं। यहोवा तुम्हें अपने लोग बनाकर प्रसन्न हुआ था। अतः अपने अच्छे नाम की रक्षा के लिये वह तुमको छोड़ेगा नहीं। 23 यदि मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करना बन्द कर देता हूँ तो यह मेरे लिए अपमानजनक होगा। यदि मैं तुम्हारे लिये प्रार्थना करना बन्द करता हूँ तो यह यहोवा के विरुद्ध पाप करना होगा। मैं तुम्हें वह शिक्षा दूँगा जो तुम्हारे लिये अच्छी व उचित है। 24 किन्तु तुम्हें भी यहोवा का सम्मान करते रहना चाहिये। तुम्हें पूरे हृदय से यहोवा की सेवा सच्चाई के साथ करनी चाहिये। उन अद्भुत कामों को याद रखो जिन्हें उसने तुम्हारे लिये किये। 25 किन्तु यदि तुम हठी हो, और बुरा करते हो तो परमेश्वर तुम्हें और तुम्हारे राजा को ऐसे झाड़ फेकेंगा जैसे झाड़ू से कूड़े को फेंका जाता है।”

शाऊल अपनी पहली गलती करता है

13 अब तक, शाऊल एक वर्ष तक राज्य कर चुका था और फिर जब शाऊल इस्राएल पर दो वर्ष शासन कर चुका, उसने इस्राएल से तीन हजार व्यक्ति चुने। उनमें दो हजार वे व्यक्ति थे जो बेतेल के पहाड़ी प्रदेश के मिकमाश में उसके साथ ठहरे थे और एक हजार वे व्यक्ति थे जो बिन्यामीन के अंतर्गत गिबा में योनातान के साथ ठहरे थे। शाऊल ने सेना के अन्य सैनिकों को उनके अपने घर भेज दिया।

योनातान ने गिबा में जाकार पलिश्तियों को उनके डेरे में हराया। पलिश्तियों ने इसके बारे में सुना। उन्होंने कहा, “हिब्रुओं ने विद्रोह किया है।”

शाऊल ने कहा, “जो कुछ हुआ है उसे हिब्रू लोगों को सुनाओ।” अत: शाऊल ने लोगों से कहा कि वे पूरे इस्राएल देश में तुरही बजायें। सभी इस्राएलियों ने वह समाचार सुना। उन्होने कहा, “शाऊल ने पलिश्ती सेना प्रमुख को मार डाला है। अब पलिश्ती सचमुच इस्राएलियों से घृणा करते हैं!”

इस्राएली लोगों को शाऊल से जुड़ने के लिये गिलगाल में बुलाया गया। पलिश्ती इस्राएल से लड़ने के लिए इकट्ठे हुए। पलिश्तियों के पास छ: हजार रथ और तीन हजार[f] घुड़सवार थे। वहाँ इतने अधिक पलिश्तिी सैनिक थे जितने सागर तट पर बालू के कण। पलिश्तियों ने मिकमाश में डेरा डाला। (मिकमाश बेतावेन के पूर्व है।)

इस्राएलियों ने देखा कि वे मुसीबत में हैं। उन्होंने अपने को जाल में फँसा अनुभव किया। वे गुफाओं और चट्टानों, के अन्तरालों में छिपने के लिए भाग गये। वे चट्टानों, कुँओं और जमीन के अन्य गढ्ढों में छिप गये। कुछ हिब्रू यरदन नदी पार कर गाद और गिलाद प्रदेश में भी भाग गए। शाऊल तब तक गिलगाल में था। उसकी सेना के सभी सैनिक भय से काँप रहे थे।

शमूएल ने कहा कि वह शाऊल से गिलगाल में मिलेगा। शाऊल ने वहाँ सात दिन तक प्रतीक्षा की। किन्तु शमूएल तब भी गिलगाल नहीं पहुँचा था और सैनिक शाऊल को छोड़ने लगे। इसलिए शाऊल ने कहा, “मेरे लिए होमबलि और मेलबलि लाओ।” तब शाऊल ने होमबलि चढ़ायी। 10 ज्योंही शाऊल ने बलि भेंट चढ़ानी समाप्त की, शमूएल आ गया। शाऊल उससे मिलने गया।

11 शमूएल ने पूछा, “यह तुमने क्या कर दिया?” शाऊल ने उत्तर दिया, “मैंने सैनिकों को अपने को छोड़ते देखा और तुम तब तक यहाँ नहीं थे, और पलिश्ती मिकमाश में इकट्ठा हो रहे थे।” 12 मैंने अपने मन में सोचा, “पलिश्ती यहाँ गिलगाल में आकर मुझ पर आक्रमण करेंगे और मैंने अब तक यहोवा से हमारी सहायता करने के लिये याचना नहीं की है। अत: मैंने अपने को विवश किया और मैंने होमबलि चढ़ाई।”

13 शमूएल ने कहा, “तुमने मूर्खता का काम किया! तुमने अपने परमेश्वर यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया। यदि तुमने परमेश्वर के आदेश का पालन किया होता तो परमेश्वर ने तुम्हारे परिवार को सदा के लिये इस्राएल पर शासन करने दिया होता। 14 किन्तु अब तुम्हारा राज्य आगे नहीं चलेगा। यहोवा ऐसे व्यक्ति की खोज में था जो उसकी आज्ञा का पालन करना चाहता हो। यहोवा ने उस व्यक्ति को पा लिया है और यहोवा उसे अपने लोगों का नया प्रमुख होने के लिये चुनेगा। तुमने यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया इसलिए यहोवा नया प्रमुख चुनेगा।” 15 तब शमूएल उठा और उसने गिलगाल को छोड़ दिया।

मिकमाश का युद्ध

शाऊल और उसकी बची सेना ने गिलगाल को छोड़ दिया। वे बिन्यामीन में गिबा को गये। शाऊल ने उन व्यक्तियों को गिना जो आब तक उसके साथ थे। वहाँ लगभग छः सौ पुरुष थे। 16 शाऊल, उसका पुत्र योनातान और सैनिक बिन्यामीन में गिबा को गए।

पलिश्तियों ने मिकमाश में डेरा डाला था। 17 पलिश्तियों ने उस क्षेत्र में रहने वाले इस्राएलियों को दण्ड देने का निश्चय किया। अत: उनकी शक्तिशाली सेना ने आक्रमण करने के लिए अपना स्थान छोड़ दिया। पलिश्ती सेना तीन टुकड़ियों में बँटी थी। एक टुकड़ी उत्तर को ओप्रा को जाने वाली सड़क से शुआल के क्षेत्र में गई। 18 दूसरी टुकड़ी दक्षिण—पूर्व बेथोरोन को जाने वाली सड़क पर गई और तीसरी टुकड़ी पूर्व में सीमा तक जाने वाली सड़क से गई। यह सड़क सबोईम की घाटी में मरुभूमि की ओर खुलती थी।

19 इस्राएली लोगों में से कोई भी लोहे की चीजें नहीं बना सकता था। उन दिनों इस्राएल में लोहार नहीं थे। पलिश्ती इस्राएलियों को लोहे की चीज़ें बनाना नहीं सिखाते थे क्योंकि पलिश्ती डरते कि इस्राएली कहीं लोहे की तलवारें और भाले न बनाने लग जायें। 20 केवल पलिश्ती ही लोहे के औजारों पर धार चढ़ा सकते थे। अत: यदि इस्राएली अपने हल की फली, कुदाली, कुल्हाड़ी या दँराती पर धार चढ़ाना चाहते तो उन्हें पलिश्तियों के पास जाना पड़ता था। 21 पलिश्ती लोहार एक तिहाई औंस चाँदी हल की फली और कुदाली पर धार चढ़ाने के लिये लेते थे और एक छटाई औंस चाँदी फावड़ी, कुल्हाड़ी और बैलों को चलाने की साँटी के लोहे के सिरे पर धार चढ़ाने के लिये लेते थे। 22 इसलिए युद्ध के दिन शाऊल के इस्राएली सैनिकों में से किसी के पास लोहे की तलवार या भाले नहीं थे। केवल शाऊल और उसके पुत्र योनातान के पास लोहे के शस्त्र थे।

23 पलिश्ती सैनिकों की एक टुकड़ी मिकमाश के दर्रे की रक्षा कर रही थी।

योनातान पलिश्तियों पर आक्रमण करता है

14 उस दिन, शाऊल का पुत्र योनातान उस युवक से बात कर रहा था, जो उसके शस्त्रों को ले कर चलता था। योनातान ने कहा, “हम लोग घाटी की दूसरी ओर पलिश्तियों के डेरे पर चलें।” किन्तु योनातान ने अपने पिता को नहीं बताया।

शाऊल एक अनार के पेड़ के नीचे पहाड़ी के सिरे[g] पर मिग्रोन में बैठा था। यह उस स्थान पर खलिहान के निकट था। शाऊल के साथ उस समय लगभग छः सौ योद्धा थे। एक व्यक्ति का नाम अहिय्याह था। एली शीलो में यहोवा का याजक रह चुका था। अब वह अहिय्याह याजक था। अहिय्याह अब एपोद पहनता था। अहिय्याह ईकाबोद के भाई अहीतूब का पुत्र था। ईकाबोद पीनहास का पूत्र था। पीनहास एली का पुत्र था।

दर्रे के दोनों ओर एक विशाल चट्टान थी। योनातान ने पलिश्ती डेरे में उस दर्रे से जाने की योजना बनाई। विशाल चट्टान के एक तरफ बोसेस था और उस विशाल चट्टान के दूसरी तरफ सेने था। एक विशाल चट्टान उत्तर की मिकमाश को देखती सी खड़ी थी। दूसरी विशाल चट्टान दक्षिण की तरफ गिबा की ओर देखती सी खड़ी थी।

योनातान ने अपने उस युवक सहायक से कहा जो उस के शस्त्र को ले चलता था, “आओ, हम उन विदेशियों के डेरे में चले। संभव है यहोवा हम लोगों का उपयोग इन लोगों को पराजित करने में करे। यहोवा को कोई नहीं रोक सकता इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता है कि हमारे पास बहुत से सैनिक हैं या थोड़े से सैनिक।”

योनातान के शस्त्र वाहक युवक ने उससे कहा, “जैसा तुम सर्वोत्तम समझो करो। मैं सब तरह से तुम्हारे साथ हूँ।”

योनातान ने कहा, “हम चलें! हम लोग घाटी को पार करेंगे और उन पलिश्ती रक्षकों तक जायेंगे। हम लोग उन्हें अपने को देखने देंगे। यदि वे हमसे कहते हैं ‘तुम वहीं रुको जब तक हम तुम्हारे पास आते हैं,’ तो हम लोग वहीं ठहरेंगे, जहाँ हम होंगे। हम उनके पास नहीं जायेंगे। 10 किन्तु यदि पलिश्ती लोग यह कहते हैं, ‘हमारे पास आओ’ तो हम उनके पास तक चढ़ जायेंगे। क्यों? क्योंकि यह परमेश्वर की ओर से एक संकेत होगा। उसका अर्थ यह होगा कि यहोवा हम लोगों को उन्हें हराने देगा।”

11 इसलिये योनातान और उसके सहायक ने अपने को पलिश्ती द्वारा देखने दिया। पलिश्ती रक्षकों ने कहा, “देखो! हिब्रू उन गकों से निकल कर आ रहे हैं जिनमें वे छिपे थे।” 12 किले के पलिश्ती योनातान और उसके सहायक के लिये चिल्लाये “हमारे पास आओ। हम तुम्हें अभी पाठ पढ़ाते हैं!”

योनातान ने अपने सहायक से कहा, “पहाड़ी के ऊपर तक मेरा अनुसरण करो। यहोवा ने इस्राएल के लिये पलिश्तियों को दे दिया है!”

13-14 इसलिये योनातान ने अपने हाथ और पैरों का उपयोग पहाड़ी पर चढ़ने के लिये किया। उसका सहायक ठीक उसके पीछे चढ़ा। योनातान और उसके सहायक ने उन पलिश्तियों को पराजित किया। पहले आक्रमण में उन्होंने लगभग आधे एकड़ क्षेत्र में बीस पलिश्तियों को मारा। योनातान उन लोगों से लड़ा जो सामने से आक्रमण कर रहे थे और योनातान का सहायक उसके पीछे से आया और उन व्यक्तियों को मारता चला गया जो अभी केवल घायल थे।

15 सभी पलिश्ती सैनिक, रणक्षेत्र के सैनिक, डेरे के सैनिक और किले के सैनिक आतंकित हो गये। यहाँ तक की सर्वाधिक वीर योद्धा भी आतंकित हो गये। धरती हिलने लगी और पलिश्ती सैनिक भयानक ढंग से डर गये!

16 शाऊल के रक्षकों ने बिन्यामीन देश में गिबा के पलिश्ती सैनिकों को विभिन्न दिशाओं में भागते देखा। 17 शाऊल ने अपने साथ की सेना से कहा, “सैनिकों को गिनो। मैं यह जानना चाहता हूँ कि डेरे को किसने छोड़ा।”

उन्होंने सैनिकों को गिना। योनातान और उसका सहायक चले गये थे।

18 शाऊल ने अहिय्याह से कहा, “परमेश्वर का पवित्र सन्दूक लाओ!” (उस समय परमेश्वर का पवित्र सन्दूक इस्राएलियों के साथ था।) 19 शाऊल याजक अहिय्याह से बातें कर रहा था। शाऊल परमेश्वर के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा कर रहा था। किन्तु पलिश्ती डेरे में शोर और अव्यवस्था लगातार बढ़ती जा ही थी। शाऊल धैर्य खो रहा था। अन्त में शाऊल ने याजक अहिय्याह से कहा, “काफी हो चुका! अपने हाथ को नीचे करो और प्रार्थना करना बन्द करो!”

20 शाऊल ने अपनी सेना इकट्ठी की और युद्ध में चला गया। पलिश्ती सैनिक सचमुच घबरा रहे थे! वे अपनी तलवारों से आपस में ही एक दूसरे से युद्ध कर रहे थे।

21 वहाँ हिब्रू भी थे जो इसके पूर्व पलिश्तियों की सेवा में थे और जो पलिश्ती डेरे में रुके थे। किन्तु अब उन हिब्रुओं ने शाऊल और योनातान के साथ के इस्राएलियों का साथ दिया। 22 उन इस्राएलियों ने जो एप्रैम के पहाड़ी क्षेत्र में छिपे थे, पलिश्ती सैनिकों के भागने की बात सुनी। सो इन इस्राएलियों ने भी युद्ध में साथ दिया और पलिश्तियों का पीछा करना आरम्भ किया।

23 इस प्रकार यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों की रक्षा की। युद्ध बेतावेन के परे पहुँच गया। सारी सेना शाऊल के साथ थी, उसके पास लगभग दस हजार पुरुष थे। एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के हर नगर में युद्ध का विस्तार हो गया था।

शाऊल दूसरी गलती करता है

24 किन्तु शाऊल ने उस दिन एक बड़ी गलती की। इस्राएली भूखे और थके थे। यह इसलिए हुआ कि शाऊल ने लोगों को यह प्रतिज्ञा करने को विवश कियाः शाऊल ने कहा, “यदि कोई व्यक्ति सन्ध्या होने से पहले भोजन करता है अथवा मेरे द्वारा शत्रु को पराजित करने के पहले भोजन करता है तो वह व्यक्ति दण्डित किया जाएगा!” इसलिए किसी भी इस्राएली सैनिक ने भोजन नहीं किया।

25-26 युद्ध के कारण लोग जंगलों में चले गए। उन्होंने वहाँ भूमि पर पड़ा एक शहद का छत्ता देखा। इस्राएली उस स्थान पर आए जहाँ शहद का छत्ता था। लोग भूखे थे, किन्तु उन्होंने तनिक भी शहद नहीं पिया। वे उस प्रतिज्ञा को तोड़ने से भयभीत थे। 27 किन्तु योनातान उस प्रतिज्ञा के बारे में नहीं जानता था। योनातान ने यह नहीं सुना था कि उसके पिता ने उस प्रतिज्ञा को करने के लिये लोगों को विवश किया है। योनातान के हाथ में एक छड़ी थी। उसने शहद के छत्ते में उसके सिरे को धंसाया। उसने कुछ शहद निकाला और उसे चाटा और उसने अपने को स्वस्थ अनुभव किया।

28 सैनिकों में से एक ने योनातान से कहा, “तुम्हारे पिता ने एक विशेष प्रतिज्ञा करने के लिये सैनिकों को विवश किया है। तुम्हारे पिता ने कहा है कि जो कोई आज खायेगा, दण्डित होगा। यही कारण है कि पुरुषों ने कुछ भी खाया नहीं। यही कारण है कि पुरुष कमजोर हैं।”

29 योनातान ने कहा, “मेरे पिता ने लोगों के लिये परेशानी उत्पन्न की है! देखो इस जरा से शहद को चाटने से मैं कितना स्वस्थ अनुभव कर रहा हूँ! 30 बहुत अच्छा होता कि लोग वह भोजन करते जो उन्होंने आज शत्रुओं से लिया था। हम बहुत अधिक पलिश्तियों को मार सकते थे!”

31 उस दिन इस्राएलियों ने पलिश्तियों को हराया। वे उनसे मिकमाश से अय्यालोन तक के पूरे मार्ग पर लड़े। क्योंकि लोग बहुत भूके और थके हुए थे। 32 उन्होंने पलिश्तियों से भेड़ें, गायें और बछड़े लिये थे। उस समय इस्राएल के लोग इतने भूखे थे कि उन्होंने उन जानवरों को जमीन पर ही मारा और उन्हें खाया। जानवरों में तब तक खून था!

33 एक व्यक्ति ने शाऊल से कहा, “देखो! लोग यहोवा के विरुद्ध पाप कर रहे हैं। वे ऐसा माँस खा रहे हैं जिसमें खून है!”

शाऊल ने कहा, “तुम लोगों ने पाप किया है! यहाँ एक विशान पत्थर लुढ़काकर लाओ।” 34 तब शाऊल ने कहा, “लोगों के पास जाओ और कहो कि हर एक व्यक्ति अपना बैल और भेड़ें मेरे पास यहाँ लाये। तब लोगों को अपने बैल और भेड़ें यहाँ मारनी चाहिये। यहोवा के विरुद्ध पाप मत करो। वह माँस न खाओ जिसमें खून हो।”

उस रात हर एक व्यक्ति अपने जानवरों को लाया और उन्हें वहाँ मारा। 35 तब शाऊल ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई। शाऊल ने यहोवा के लिये स्वयं वह वेदी बनानी आरम्भ की!

36 शाऊल ने कहा, “हम लोग आज रात को पलिश्तियों का पीछा करें। हम लोग हर वस्तु ले लेंगे। हम उन सभी को मार डालेंगे।”

सेना ने उत्तर दिया, “वैसे ही करो जैसे तुम ठीक समझते हो।”

किन्तु याजक ने कहा, “हमें परमेश्वर से पूछने दो।”

37 अत: शाऊल ने परमेश्वर से पूछा, “क्या मुझे पलिश्तियों का पीछा करने जाना चाहिए? क्या तू हमें पलिश्तियों को हराने देगा?” किन्तु परमेश्वर ने शाऊल को उस दिन उत्तर नहीं दिया।

38 इसलिए शाऊल ने कहा, “मेरे पास सभी प्रमुखों को लाओ। हम लोग मालूम करें कि आज किसने पाप किया है। 39 मैं इस्राएल की रक्षा करने वाले यहोवा की शपथ खा कर यह प्रतिज्ञा करता हूँ। यदि मेरे अपने पुत्र योनातान ने भी पाप किया हो तो वह अवश्य मरेगा।” सेना में किसी ने भी कुछ नहीं कहा।

40 तब शाऊल ने सभी इस्राएलियों से कहा, “तुम लोग इस ओर खड़े हो। मैं और मेरा पुत्र योनातान दूसरी ओर खड़े होगें।”

सैनिकों ने उत्तर दिया, “महाराज! आप जैसा चाहें।”

41 तब शाऊल ने प्रार्थना की, “इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, मैं तेरा सेवक हूँ आज तू मुझे उत्तर क्यों नहीं दे रहा है? यदि मैंने या मेरे पुत्र योनातान ने पाप किया है तो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा तू उरीम दे और यदि तेरे लोग इस्राएलियों ने पाप किया है तो तुम्मिम दे।”

शाऊल और योनातान धर लिए गए और लोग छूट गए। 42 शाऊल ने कहा, “उन्हें फिर से फेंको कि कौन पाप करने वाला है मैं या मेरा पुत्र योनातान।” योनातान चुन लिया गया।

43 शाऊल ने योनातान से कहा, “मुझे बताओ कि तुमने क्या किया है?”

योनातान ने शाऊल से कहा, “मैंने अपनी छड़ी के सिरे से केवल थोड़ा सा शहद चाटा था। क्या मुझे वह करने के कारण मरना चाहिये?”

44 शाऊल ने कहा, “यदि मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरा नहीं करता हूँ तो परमेश्वर मेरे लिये बहुत बुरा करे। योनातान को मरना चाहिये!”

45 किन्तु सैनिकों ने शाऊल से कहा, “योनातान ने आज इस्राएल को बड़ी विजय तक पहुँचाया। क्या योनातान को मरना ही चाहिए? कभी नहीं! हम लोग परमेश्वर की शपथ खाकर वचन देते हैं कि योनातान का एक बाल भी बाँका नहीं होगा। परमेश्वर ने आज पलिश्तियों के विरुद्ध लड़ने में योनातान की सहायता की है!” इस प्रकार लोगों ने योनातान को बचाया। उसे मृत्यदणड नहीं दिया गया।

46 शाऊल ने पलिश्तियों का पीछा नहीं किया। पलिश्ती अपने स्थान को लौट गये।

शाऊल का इस्राएल के शत्रुओं से युद्ध

47 शाऊल ने इस्राएल पर पूरा अधिकार जमा लिया और दिखा दिया कि वह राजा है। शाऊल इस्राएल के चारों ओर रहने वाले शत्रुओं से लड़ा। शाऊल, अम्मोनी, मोआबी, सोबा के राजा एदोम और पलिश्तियों से लड़ा। जहाँ कहीं शाऊल गया, उसने इस्राएल के शत्रुओं को पराजित किया। 48 शाऊल बहुत वीर था। उसने अमालेकियों को हराया। शाऊल ने इस्राएल को उसके उन शत्रुओं से बचाया जो इस्राएल के लोगों से उनकी सम्पत्ति छीन लेना चाहते थे।

49 शाऊल के पुत्र थे योनातान, यिशवी और मलकीश। शाऊल की बड़ी पुत्री का नाम मेरब था। शाऊल की छोटी पुत्री का नाम मीकल था। 50 शाऊल की पत्नी का नाम अहीनोअम था। अहीनोअम अहीमास की पुत्री थी।

शाऊल की सेना के सेनापति का नाम अब्नेर था, जो नेर का पुत्र था। नेर शाऊल का चाचा था। 51 शाऊल का पिता कीश और अब्नेर का पिता नेर, अबीएल के पुत्र थे।

52 शाऊल अपने जीवन भर वीर रहा और पलिश्तियों के विरुद्ध दृढ़ता से लड़ा। शाऊल जब भी कभी किसी व्यक्ति को ऐसा वीर देखता जो शक्तिशाली होता तो वह उसे ले लेता और उसे उन सैनिकों की टुकड़ी में रखता जो उसके समीप रहते और उसकी रक्षा करते थे।

शाऊल का अमालेकियों को नष्ट करना

15 शमूएल ने शाऊल से कहा, “यहोवा ने मुझे अपने इस्राएली लोगों पर राजा के रूप में तुम्हारा अभिषेक करने के लिये भेजा था। अब यहोवा का सन्देश सुनो। सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है: ‘जब इस्राएली मिस्र से बाहर आये तब अमालेकियों ने उन्हें कनान पहुँचाने से रोकने का प्रयत्न किया। मैंने देखा कि अमालेकियों ने उन्हें क्या किया। अब जाओ और अमालेकियों से युद्ध करो। तुम्हें अमालेकियों और उनकी सभी चीज़ों को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिये। कुछ भी जीवित न रहने दो, तुम्हें सभी पुरुषों और स्त्रियों को मार डालना चाहिये। तुम्हें सभी बच्चों और शिशुओं को मार डालना चाहिए। तुम्हें उनकी सभी गायों, भेड़ों, ऊँटों और गधों को मार डालना चाहिये।’”

शाऊल ने तलाईम में सेना एकत्रित की। उसमें दो लाख पैदल सैनिक और दस हजार अन्य सैन्य पुरुष थे। इनमें यहूदा के लोग भी सम्मिलित थे। तब शाऊल अमालेक नगर को गया और वहाँ उसने घाटी में उनकी प्रतीक्षा की। शाऊल ने केनियों से कहा, “चले जाओ, अमालेकियों को छोड़ दो। तब मैं तुम लोगों को अमालेकियों के साथ नष्ट नहीं करूँगा। तुम लोगों ने इस्राएलियों के प्रति दया दिखाई थी जब वे मिस्र से आये थे।” इसलिए केनी लोगों ने अमालेकियों को छोड़ दिया।

शाऊल ने अमालेकियों को हराया। उसने उनसे हवीला से मिस्र की सीमा शूर तक निरन्तर युद्ध किया। शाऊल ने अगाग को जीवित पकड़ लिया। अगाग अमालेकियों का राजा था। अगाग की सेना के सभी व्यक्तियों को शाऊल ने मार डाला। किन्तु शाऊल और इस्राएल के सैनिकों ने अगाग को जीवित रहने दिया। उन्होंने सर्वोत्तम भेड़ों, मोटी तगड़ी गायों और मेमनों को भी रख लिया। उन्होंने रखने योग्य सभी चीज़ों को रख लिया और उन्होंने उन सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया जो किसी काम की न थीं।

शमूएल का शाऊल को उसके पाप के बारे में बताना

10 शमूएल को यहोवा का सन्देश आया। 11 यहोवा ने कहा, “शाऊल ने मेरा अनुसरण करना छोड़ दिया है। इसलिए मुझे इसका अफसोस है कि मैंने उसे राजा बनाया। वह उन कामों को नहीं कर रहा है जिन्हें करने का आदेश मैं उसे देता हूँ।” शमूएल भड़क उठा और फिर उसने रात भर यहोवा की प्रार्थना की।

12 शमूएल अगले सवेरे उठा और शाऊल से मिलने गया। किन्तु लोगों ने बताया, “शाऊल यहूदा में कर्मेल नामक नगर को गया है। शाऊल वहाँ अपने सम्मान में एक पत्थर की यादगार बनाने गया था। तब शाऊल ने कई स्थानों की यात्रा की और अन्त में गिलगाल को चला गया।”

इसलिये शमूएल वहाँ गया जहाँ शाऊल था। शाऊल ने अमालेकियों से ली गई चीज़ों का पहला भाग ही भेंट में चढ़ाया था। शाऊल उन्हें होम बलि के रूप में यहोवा को भेंट चढ़ा रहा था। 13 शमूएल शाऊल के पास पुहँचा। शाऊल ने कहा, स्वागत, “यहोवा आपको आशीर्वाद दे! मैंने यहोवा के आदेशों का पालन किया है।”

14 किन्तु शमूएल ने कहा, “तो मैं ये आवाजें क्या सुन रहा हूँ? मैं भेड़ और पशुओं की आवाज क्यों सुन रहा हूँ?”

15 शाऊल ने उत्तर दिया, “सैनिकों ने उन्हें अमालेकियों से लिया। सैनिकों ने सर्वोत्तम भेड़ों और पशुओं को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को बलि के रूप में जलाने के लिए बचा लिया है। किन्तु हम लोगों ने अन्य सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया है।”

16 शमूएल ने शाऊल से कहा, “रुको! मुझे तुमसे वही कहने दो जिसे पिछली रात यहोवा ने मुझसे कहा है।”

शाऊल ने उत्तर दिया, “मुझे बताओ।”

17 शमूएल ने कहा, “बीते समय में, तुमने यही सोचा था की तुम महत्वपूर्ण नहीं हो। किन्तु तब भी तुम इस्राएल के परिवार समूहों के प्रमुख बन गए। यहोवा ने तुम्हें इस्राएल का राजा चुना। 18 यहोवा ने तुम्हें एक विशेष सेवाकार्य के लिये भेजा। यहोवा ने कहा, ‘जाओ और उन सभी बुरे अमालेकियों को नष्ट करो! उनसे तब तक लड़ते रहो जब तक वे नष्ट न हो जायें!’ 19 किन्तु तुमने यहोवा की नहीं सुनी। तुम उन चीज़ों को रखना चाहते थे। इसलिये तुमने वह किया जिसे यहोवा ने बुरा कहा!”

20 शाऊल ने कहा, “किन्तु मैंने तो यहोवा की आज्ञा का पालन किया। मैं वहाँ गया जहाँ यहोवा ने मुझे भेजा। मैंने सभी अमालेकियों को नष्ट किया। मैं केवल उनके राजा अगाग को वापस लाया। 21 सैनिकों ने सर्वोतम भेड़ें और पशु गिलगाल में तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को बलि देने के लिये चुने।”

22 किन्तु शमूएल ने उत्तर दिया, “यहोवा को इन दो में से कौन अधिक प्रसन्न करता है: होमबलियाँ और बलियाँ या यहोवा की आज्ञा का पालन करना? यह अधिक अच्छा है कि परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया जाये इसकी अपेक्षा कि उसे बलि भेंट की जाये। यह अधिक अच्छा है कि परमेश्वर की बातें सुनी जायें इसकी अपेक्षा कि मेढ़ों से चर्बी—भेंट की जाये। 23 आज्ञा के पालन से इनकार करना जादूगरी करने के पाप जैसा है। हठी होना और मनमानी करना मूर्तियों की पूजा करने जैसा पाप है। तुमने यहोवा की आज्ञा मानने से इन्कार किया। इसी करण यहोवा अब तुम्हें राजा के रूप में स्वीकार करने से इन्कार करता है।”

24 तब शाऊल ने शमूएल से कहा, “मैंने पाप किया है। मैंने यहोवा के आदेशों को नहीं माना है और मैंने वह नहीं किया है जो तुमने करने को कहा। मैं लोगों से डरता था इसलिए मैंने वह किया जो उन्होंने कहा। 25 अब मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे पाप को क्षमा करो। मेरे साथ लौटो जिससे मैं यहोवा की उपासना कर सकूँ।”

26 किन्तु शमूएल ने शाऊल से कहा, “मैं तुम्हारे साथ नहीं लौटूँगा। तुमने यहोवा के आदेश को नकारा है और अब यहोवा तुम्हें इस्राएल के राजा के रूप में नकार रहा है।”

27 जब शमूएल उसे छोड़ने के लिये मुड़ा, शाऊल ने शमूएल के लबादे को पकड़ लिया। लबादा फट गया। 28 शमूएल ने शाऊल से कहा, “तुमने मेरे लबादे को फाड़ दिया। इसी प्रकार यहोवा ने आज इस्राएल के राज्य को तुमसे फाड़ दिया है। यहोवा ने राज्य तुम्हारे मित्रों में से एक को दे दिया है। वह व्यक्ति तुमसे अच्छा है। 29 यहोवा इस्राएल का परमेश्वर है। यहोवा शाश्वत है। योहवा न तो झूठ बोलता है, न ही अपना मन बदलता है। यहोवा मनुष्य की तरह नहीं है जो अपने इरादे बदलते हैं।”

30 शाऊल ने उत्तर दिया, “ठीक है, मैंने पाप किया! किन्तु कृपया मेरे साथ लौटो। इस्राएल के लोगों और प्रमुखों के सामने मुझे कुछ सम्मान दो। मेरे साथ लौटो जिससे मैं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की उपासना कर सकूँ।” 31 शमूएल शाऊल के साथ लौट गया और शाऊल ने यहोवा की उपासना की।

32 शमूएल ने कहा, “अमालेकियों के राजा अगाग, को मेरे पास लाओ।”

अगाग शमूएल के सामने आया। अगाग जंजीरों में बंधा था। अगाग ने सोचा, “निश्चय ही यह मुझे मारेगा नहीं।”

33 किन्तु शमूएल ने अगाग से कहा, “तुम्हारी तलवारों ने बच्चों को उनकी माताओं से छीना। अतः अब तुम्हारी माँ का कोई बच्चा नहीं रहेगा।” और शमूएल ने गिलगाल में यहोवा के सामने अगाग के टुकड़े टुकड़े कर डाले।

34 तब शमूएल वहाँ से चला और रामा पहुँचा और शाऊल अपने घर गिबा को गया। 35 उसके बाद शमूएल ने अपने पूरे जीवन में शाऊल को नहीं देखा। शमूएल शाऊल के लिये बहुत दुःखी रहा और यहोवा को बड़ा दुःख था कि उसने शाऊल को इस्राएल का राजा बनाया।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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