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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
निर्गमन 15:19-28:43

19 हाँ, ये सचमुच हुआ! फ़िरौन के घोड़े, सवार और रथ समुद्र में चले गए और यहोवा ने उन्हें समुद्र के पानी से ढक दिया। किन्तु इस्राएल के लोग सूखी ज़मीन पर चलकर समुद्र के पार चले गए।

20 तब हारून की बहन नबिया मरियम ने एक डफली ली। मरियम और स्त्रियों ने नाचना, गाना आरम्भ किया। मरियम की टेक थी,

21 “यहोवा के लिए गाओ क्योंकि
    उसने महान काम किए हैं।
फेंका उसने घोड़े को और उसके सवार को
    सागर के बीच में।”

इस्राएल मरुभूमि में पहुँचे

22 मूसा इस्राएल के लोगों को लाल सागर से दूर ले जाता रहा, लोग शूर मरुभूमि में पहुँचे। वे तीन दिन तक मरुभूमि में यात्रा करते रहे। लोग तनिक भी पानी न पा सके। 23 तीन दिन के बाद लोगों ने मारा की यात्रा की। मारा में पानी था, किन्तु पानी इतना कड़वा था कि लोग पी नहीं सकते थे। (यही कारण था कि इस स्थान का नाम मारा पड़ा।)

24 लोगों ने मूसा से शिकायत शुरु की। लोगों ने कहा, “अब हम लोग क्या पीएं?”

25 मूसा ने यहोवा को पुकारा। इसलिए यहोवा ने उसे एक पेड़ दिखाया। मूसा ने पेड़ को पानी में डाला। जब उसने ऐसा किया, पानी अच्छा पीने योग्य हो गया। उस स्थान पर यहोवा ने लोगों की परीक्षा ली और उन्हें एक नियम दिया।

यहोवा ने लोगों के विश्वास की जाँच की। 26 यहोवा ने कहा, “तुम लोगों को अपने परमेश्वर यहोवा का आदेश अवश्य मानना चाहिए। तुम लोगों को वह करना चाहिए जिसे वह ठीक कहता है। यदि तुम लोग यहोवा के आदेशों और नियमों का पालन करोगे तो तुम लोग मिस्रियों की तरह बीमार नहीं होगे। मैं तुम्हारा यहोवा तुम लोगों को कोई ऐसी बीमारी नहीं दूँगा जैसी मैंने मिस्रियों को दी। मैं यहोवा हूँ। मैं ही वह हूँ जो तुम्हें स्वस्थ बनाता है।”

27 तब लोगों ने एलीम तक की यात्रा की। एलीम में पानी के बारह सोते थे। और वहाँ सत्तर खजूर के पेड़ थे। इसलिए लोगों ने वहाँ पानी के निकट डेरा डाला।

16 तब लोगों ने एलीम से यात्रा की और सीनै मरुभूमि में पहुँचे। यह स्थान एलीम और सीनै के बीच था। वे इस स्थान पर दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन[a] मिस्र छोड़ने के बाद पहुँचे। तब इस्राएल के लोगों ने फिर शिकायत करनी शुरु की। उन्होंने मूसा और हारुन से मरुभूमि में शिकायत की। लोगों ने मूसा और हारुन से कहा, “यह हमारे लिए अच्छा होता कि यहोवा ने हम लोगों को मिस्र में मार डाला होता। मिस्र में हम लोगों के पास खाने को बहुत था। हम लोगों के पास वह सारा भोजन था जिसकी हमें आवश्यकता थी। किन्तु अब तुम हमें मरुभूमि में ले आये हो। हम सभी यहाँ भूख से मर जाएंगे।”

तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं आकाश से भोजन गिराऊँगा। वह भोजन तुम लोगों के खाने के लिए होगा। हर एक दिन लोग बाहर जायें और उस दिन खाने की जरूरत के लिए भोजन इकट्ठा करें। मैं यह इसलिए करूँगा कि मैं देखूँ कि क्या लोग वही करेंगे जो मैं करने को कहूँगा। हर एक दिन लोग प्रत्येक दिन के लिए पर्याप्त भोजन इकट्ठा करें। किन्तु शुक्रवार को जब भोजन तैयार करने लगें तो देखें कि वे दो दिन के लिए पर्याप्त भोजन रखते हैं।”[b]

इसलिए मूसा और हारून ने इस्राएल के लोगों से कहा, “आज की रात तुम लोग यहोवा की शक्ति देखोगे। तुम लोग जानोगे कि एक मात्र वह ही ऐसा है जिसने तुम लोगों को मिस्र देश से बचा कर बाहर निकाला। कल सवेरे तुम लोग यहोवा की महिमा देखोगे। तुम लोगों ने यहोवा से शिकायत की। उसने तुम लोगों की सुनी। तुम लोग हम लोगों से शिकायत पर शिकायत कर रहे हो। संभव है कि हम लोग अब कुछ आराम कर सकें।”

और मूसा ने कहा, “तुम लोगों ने शिकायत की और यहोवा ने तुम लोगों की शिकायतें सुन ली है। इसलिए रात को यहोवा तुम लोगों को माँस देगा और हर सवेरे तुम लोग वह सारा भोजन पाओगे, जिसकी तुम को ज़रुरत है। तुम लोग मुझसे और हारून से शिकायत करते रहे हो। याद रखो तुम लोग मेरे और हारून के विरुद्ध शिकायत नहीं कर रहे हो। तुम लोग यहोवा के विरुद्ध शिकायत कर रहे हो।”

तब मूसा ने हारून से कहा, “इस्राएल के लोगों को सम्बोधित करो। उनसे कहो, ‘यहोवा के सामने इकट्ठे हों क्योंकि उसने तुम्हारी शिकायतें सुनी हैं।’”

10 हारून ने इस्राएल के सभी लोगों को सम्बोधित किया। वे सभी एक स्थान पर इकट्ठे थे। जब हारून बातें कर रहा था तभी लोग मुड़े और उन्होंने मरूभूमि की ओर देखा और उन्होंने यहोवा की महिमा को बादल में प्रकट होते देखा।

11 यहोवा ने मूसा से कहा, 12 “मैंने इस्राएल के लोगों की शिकायत सुनी है। इसलिए उनसे मेरी बातें कहो। मैं कहता हूँ, ‘आज साँझ को तुम माँस खाओगे और कल सवेरे तुम लोग भरपेट रोटियाँ खाओगे, तब तुम लोग जानोगे कि तुम लोग अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास कर सकते हो।’”

13 उस रात बटेरें (पक्षियाँ) डेरे के चारों ओर आईं। लोगों ने इन बटेरों को माँस के लिए पकड़ा। सवेरे डेरे के पास ओस पड़ी होती थी। 14 सूरज के निकलने पर ओस पिघल जाती थी किन्तु ओस के पिघलने पर पाले की तह की तरह ज़मीन पर कुछ रह जाता था। 15 इस्राएल के लोगों ने इसे देखा और परस्पर कहा, “वह क्या है?”[c] उन्होंने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि वे नहीं जानते थे कि वह क्या चीज है। इसलिए मूसा ने उनसे कहा, “यह भोजन है जिसे यहोवा तुम्हें खाने को दे रहा है। 16 यहोवा कहता है, ‘हर व्यक्ति उतना इकट्ठा करे जितना उसे आवश्यक है। तुम लोगों में से हर एक लगभग दो क्वार्ट[d] अपने परिवार के हर व्यक्ति के लिए इकट्ठा करे।’”

17 इसलिए इस्राएल के लोगों ने ऐसा ही किया। हर व्यक्ति ने इस भोजन को इकट्ठा किया। कुछ व्यक्तियों ने अन्य लोगों से अधिक इकट्ठा किया। 18 उन लोगों ने अपने परिवार के हर एक व्यक्ति को भोजन दिया। जब भोजन नापा गया तो हर एक व्यक्ति के लिए सदा पर्याप्त रहा, किन्तु कभी भी आवश्यकता से अधिक नहीं हुआ। हर व्यक्ति ने ठीक अपने लिए तथा अपने परिवार के खाने के लिए पर्याप्त इकट्ठा किया।

19 मूसा ने उनसे कहा, “अगले दिन खाने के लिए वह भोजन मत बचाओ।” 20 किन्तु लोगों ने मूसा की बात न मानी। कुछ लोगों ने अपना भोजन बचाया जिससे वे उसे अगले दिन खा सकें। किन्तु जो भोजन बचाया गया था उसमें कीड़े पड़ गए और वह दुर्गन्ध देने लगा। मूसा उन लोगों पर क्रोधित हुआ जिन्होंने यह किया था।

21 हर सवेरे लोग भोजन इकट्ठा करते थे। हर एक व्यक्ति उतना इकट्ठा करता था जितना वह खा सके। किन्तु जब धूप तेज होती थी भोजन गल जाता था और वह समाप्त हो जाता था।

22 शुक्रवार को लोगों ने दुगना भोजन इकट्ठा किया। उन्होंने चार र्क्वाट हर व्यक्ति के लिए इकट्ठा किया। इसलिए लोगों के सभी मुखिया आए और उन्होंने यह बात मूसा से कही।

23 मूसा ने उनसे कहा, “यह वैसा ही है जैसा यहोवा ने बताया था। क्यों? क्योंकि कल यहोवा के आराम का पवित्र दिन सब्त है। तुम लोग आज के लिए जितना भोजन तुम्हें चाहिए पका सकते हो। किन्तु शेष भोजन कल सवेरे के लिए बचाना।”

24 इसलिए लोगों ने अगले दिन के लिए बाकी भोजन बचाया और कोई भोजन खराब नहीं हुआ और इनमें कहीं कोई कीड़े नहीं पड़े।

25 शनिवार को मूसा ने लोगों से कहा, “आज यहोवा को समर्पित आराम का पवित्र दिन सब्त है। इसलिए तुम लोगों में से कल कोई भी खेत में बाहर नहीं होगा। कल का इकट्ठा भोजन खाओ। 26 तुम लोगों को छः दिन भोजन इकट्ठा करना चाहिए। किन्तु सातवाँ दिन आराम का दिन है इसलिए जमीन पर कोई विशेष भोजन नहीं होगा।”

27 शनिवार को कुछ लोग थोड़ा भोजन एकत्र करने गए, किन्तु वे वहाँ ज़रा सा भी भोजन नहीं पा सके। 28 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम्हारे लोग मेरे आदेश का पालन करने और उपदेशों पर चलने से कब तक मना करेंगे? 29 देखो यहोवा ने शनिवार को तुम्हारे आराम का दिन बनाया है। इसलिए शुक्रवार को यहोवा दो दिन के लिए पर्याप्त भोजन तुम्हें देगा। इसलिए सब्त को हर एक को बैठना और आराम करना चाहिए। वहीं ठहरे रहो जहाँ हो।” 30 इसलिए लोगों ने सब्त को आराम किया।

31 इस्राएली लोगों ने इस विशेष भोजन को “मन्ना” कहना आरम्भ किया। मन्ना छोटे सफ़ेद धनिया के बीजों के समान था और इसका स्वाद शहद के साथ बने पापड़ की तरह था। 32 तब मूसा ने कहा, “यहोवा ने आदेश दिया कि, ‘इस भोजन का आठ प्याले भर अपने वंशजों के लिए बचाना। तब वे उस भोजन को देख सकेंगे जिसे मैंने तुम लोगों को मरुभूमि में तब दिया था जब मैंने तुम लोगों को मिस्र से निकाला था।’”

33 इसलिए मूसा ने हारून से कहा, “एक घड़ा लो और इसे आठ प्याले मन्ना से भरो और इस मन्ना को यहोवा के सामने रखने के लिए और अपने वंशजों के लिए बचाओ।” 34 (इसलिए हारून ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था। हारून ने आगे चलकर मन्ना के घड़े को साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने रखा।) 35 लोगों ने चालीस वर्ष तक मन्ना खाया। वे मन्ना तब तक खाते रहे जब तक उस प्रदेश में नहीं आ गए जहाँ उन्हें बसना था। वे उसे तब तक खाते रहे जब तक वे कनान के निकट नहीं आ गए। 36 (वे मन्ना के लिए जिस तोल का उपयोग करते थे, वह ओमेर था। एक ओमेर[e] लगभग आठ प्यालों के बराबर था।)

चट्टान से पानी निकलना

17 इस्राएल के सभी लोगों ने सीन की मरुभूमि से एक साथ यात्रा की। वे यहोवा जैसा आदेश देता रहा, एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते रहे। लोगों ने रपीदीम की यात्रा की और वहाँ उन्होंने डेरा डाला। वहाँ लोगों के पीने के लिए पानी न था। इसलिए वे मूसा के विरुद्ध हो गए और उससे बहस करने लगे। लोगों ने कहा, “हमें पीने के लिए पानी दो।”

किन्तु मूसा ने उनसे कहा, “तुम लोग मेरे विरुद्ध क्यों हो रहे हो? तुम लोग यहोवा की परीक्षा क्यों ले रहे हो? क्या तुम लोग समझते हो कि यहोवा हमारे साथ नहीं है?”

किन्तु लोग बहुत प्यासे थे। इसलिए उन्होंने मूसा से शिकायत जारी रखी। लोगों ने कहा, “हम लोगों को तुम मिस्र से बाहर क्यों लाए? क्या तुम इसलिए लाए कि पानी के बिना हमको, हमारे बच्चों को और हमारी गाय, बकरियों को प्यासा मार डालो?”

इसलिए मूसा ने यहोवा को पुकारा, “मैं इन लोगों के साथ क्या करूँ? ये मुझे मार डालने को तैयार हैं।”

यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएल के लोगों के पास जाओ और उनके कुछ बुजुर्गों (नेताओं) को अपने साथ लो। अपनी लाठी अपने साथ ले जाओ। यह वही लाठी है जिसे तुमने तब उपयोग में लिया था जब नील नदी पर इससे चोट की थी। होरेब (सीनै) पहाड़ पर मैं तुम्हारे सामने एक चट्टान पर खड़ा होऊँगा। लाठी को चट्टान पर मारो और इससे पानी बाहर आ जाएगा। तब लोग पी सकते हैं।”

मूसा ने वही बातें कीं और इस्राएल के बुजुर्गों (नेताओं) ने इसे देखा। मूसा ने इस स्थान का नाम मरीबा और मस्सा रखा। क्योंकि यह वह स्थान था जहाँ इस्राएल के लोग उसके विरुद्ध हुए और उन्होंने यहोवा की परीक्षा ली थी। लोग यह जानना चाहते थे कि यहोवा उनके साथ है या नहीं।

अमालेकी लोगों के साथ युद्ध

अमालेकी लोग रपीदीम आए और इस्राएल के लोगों के विरुद्ध लड़े। इसलिए मूसा ने यहोशू से कहा, “कुछ लोगों को चुनों और अगले दिन अमालेकियों से जाकर लड़ो। मैं पर्वत की चोटी पर खड़ा होकर तुम्हें देखूँगा। मैं परमेश्वर द्वारा दी गई छड़ी को पकड़े रहूँगा।”

10 यहोशू ने मूसा की आज्ञा मानी और अगले दिन अमालेकियों से लड़ने गया। उसी समय मूसा, हारून और हूर पहाड़ी की चोटी पर गए। 11 जब कभी मूसा अपने हाथ को हवा में उठाता तो इस्राएल के लोग युद्ध जीत लेते। किन्तु जब मूसा अपने हाथ को नीचे करता तो इस्राएल के लोग युद्ध में हारने लगते।

12 कुछ समय बाद मूसा की बाहें थक गईं। मूसा के साथ के लोग ऐसा उपाय करना चाहते थे, जिससे मूसा की बाहें हवा में रह सकें। इसलिए उन्होंने एक बड़ी चट्टान मूसा के नीचे बैठने के लिए रखी तथा हारून और हूर ने मूसा की बाहों को हवा में पकड़े रखा। हारून मूसा की एक ओर था तथा हूर दूसरी ओर। वे उसके हाथों को वैसे ही ऊपर तब तक पकड़े रहे जब तक सूरज नहीं डूबा। 13 इसलिए यहोशू और उसके सैनिकों ने अमालेकियों को इस युद्ध में हरा दिया।

14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस युद्ध के बारे में लिखो। इस युद्ध की घटनाओं को एक पुस्तक में लिखो जिससे लोग याद करेंगे कि यहाँ क्या हुआ था और यहोशू से कहो कि मैं अमालेकी लोगों को धरती से पूर्णरूप से नष्ट कर दूँगा।”

15 तब मूसा ने एक वेदी बनायी। मूसा ने वेदी का नाम “यहोवा निस्सी” रखा। 16 मूसा ने कहा, “मैंने यहोवा के सिंहासन की ओर अपने हाथ फैलाए। इसलिए यहोवा अमालेकी लोगों से लड़ा जैसा उसने सदा किया है।”

मूसा को उसके ससुर की सलाह

18 मूसा का ससुर यित्रो मिद्यान में याजक था। परमेश्वर ने मूसा और इस्राएल के लोगों की अनेक प्रकार से जो सहायता की उसके बारे में यित्रो ने सुना। यित्रो ने इस्राएल के लोगों को यहोवा द्वारा मिस्र से बाहर ले जाए जाने के बारे में सुना। इसलिए यित्रो मूसा के पास गया जब वह परमेश्वर के पर्वत के पास डेरा डाले था। वह मूसा की पत्नी सिप्पोरा को अपने साथ लाया। (सिप्पोरा मूसा के साथ नहीं थी क्योंकि मूसा ने उसे उसके घर भेज दिया था।) यित्रो मूसा के दोनो पुत्रों को भी साथ लाया। पहले पुत्र का नाम गेर्शोम रखा क्योंकि जब वह पैदा हुआ, मूसा ने कहा, “मैं विदेश में अजनबी हूँ।” दूसरे पुत्र का नाम एलीएजेर रखा क्योंकि जब वह उत्पन्न हुआ तो मूसा ने कहा, “मेरे पिता के परमेश्वर ने मेरी सहायता की और मिस्र के राजा की तलवार से मुझे बचाया है।” इसलिए यित्रो मूसा के पास तब गया जब वह परमेश्वर के पर्वत (सीनै पर्वत) के निकट मरुभूमि में डेरा डाले था। मूसा की पत्नी और उसके दो पुत्र यित्रो के साथ थे।

यित्रो ने मूसा को एक सन्देश भेजा। यित्रो ने कहा, “मैं तुम्हारा ससुर यित्रो हूँ और मैं तुम्हारी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को तुम्हारे पास ला रहा हूँ।”

इसलिए मूसा अपने ससुर से मिलने गया। मूसा उसके सामने झुका और उसे चूमा। दोनों लोगों ने एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछा। तब वे मूसा के डेरे में और अधिक बातें करने गए। मूसा ने अपने ससुर यित्रो को हर एक बात बताई जो यहोवा ने इस्राएल के लोगों के लिए की थी। मूसा ने वे चीज़ें भी बताईं जो यहोवा ने फ़िरौन और मिस्र के लोगों के लिए की थीं। मूसा ने रास्ते की सभी समस्याओं के बारे में बताया और मूसा ने अपने ससुर को बताया कि किस तरह यहोवा ने इस्राएली लोगों को बचाया, जब—जब वे कष्ट में थे।

यित्रो उस समय बहुत प्रसन्न हुआ जब उसने यहोवा द्वारा इस्राएल के लिए की गई सभी अच्छी बातों को सुना। यित्रो इसलिए प्रसन्न था कि यहोवा ने इस्राएल के लोगों को मिस्रियों से स्वतन्त्र कर दिया था। 10 यित्रो ने कहा,

“यहोवा की स्तुति करो!
    उसने तुम्हें मिस्र के लोगों से स्वतन्त्र कराया।
    यहोवा ने तुम्हें फ़िरौन से बचाया है।
11 अब मैं जानता हूँ कि यहोवा सभी देवताओं से महान है,
उन्होंने सोचा कि सबकुछ उनके काबू में है लेकिन देखो, परमेश्वर ने क्या किया!”

12 तब यित्रो ने परमेश्वर के सम्मान में बलि तथा भेंटे दीं। तब हारून तथा इस्राएल के सभी बुजुर्ग (नेता) मूसा के ससुर यित्रो के साथ भोजन करने आए। यह उन्होंने परमेश्वर की उपासना की विशेष विधि के रूप में किया।

13 अगले दिन मूसा लोगों का न्याय करने वाला था। वहाँ लोगों की संख्या बहुत अधिक थी। इस कारण लोगों को मूसा के सामने सारे दिन खड़ा रहना पड़ा।

14 यित्रो ने मूसा को न्याय करते देखा। उसने पूछा, “तुम ही यह क्यों कर रहे हो? एक मात्र न्यायाधीश तुम्हीं क्यों हो? और लोग केवल तुम्हारे पास ही सारे दिन क्यों आते हैं?”

15 तब मूसा ने अपने ससुर से कहा, “लोग मेरे पास आते हैं और अपनी समस्याओं के बारे में मुझ से परमेश्वर का निर्णय पूछते हैं। 16 यदि उन लोगों का कोई विवाद होता है तो वे मेरे पास आते हैं। मैं निर्णय करता हूँ कि कौन ठीक है। इस प्रकार मैं परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देता हूँ।”

17 किन्तु मूसा के ससुर ने उससे कहा, “जिस प्रकार तुम यह कर रहे हो, ठीक नहीं है। 18 तुम्हारे अकेले के लिए यह काम अत्याधिक है। इससे तुम थक जाते हो और इससे लोग भी थक जाते हैं। तुम यह काम स्वयं अकेले नहीं कर सकते। 19 मैं तुम्हें कुछ सुझाव दूँगा। मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या करना चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि परमेश्वर तुम्हारा साथ देगा। जो तुम्हें करना चाहिए वह यह है। तुम्हें परमेश्वर के सामने लोगों का प्रतिनिधित्व करते रहना चाहिए, और तुम्हें उनके इन विवादों और समस्याओं को परमेश्वर के सामने रखना चाहिए। 20 तुम्हें परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देनी चाहिए। लोगों को चेतावनी दो कि वे नियम न तोड़ें। लोगों को जीने की ठीक राह बताओ। उन्हें बताओ कि वे क्या करें। 21 किन्तु तुम्हें लोगों में से अच्छे लोगों को चुनना चाहिए।

“तुम्हें अपने विश्वासपात्र आदमियों का चुनाव करना चाहिए अर्थात् उन आदमियों का जो परमेश्वर का सम्मान करते हों। उन आदमियों को चुनो जो धन के लिए अपना निर्णय न बदलें। इन आदमियों को लोगों का प्रशासक बनाओ। हज़ार, सौ, पचास और दस लोगों पर भी प्रशासक होने चाहिए। 22 इन्हीं प्रशासकों को लोगों का न्याय करने दो। यदि कोई बहुत ही गंभीर मामला हो तो वे प्रशासक निर्णय के लिए तुम्हारे पास आ सकते हैं। किन्तु अन्य मामलों का निर्णय वे स्वयं ही कर सकते हैं। इस प्रकार यह तुम्हारे लिए अधिक सरल होगा। इसके अतिरिक्त, ये तुम्हारे काम में हाथ बटा सकेंगे। 23 यदि तुम यहोवा की इच्छानुसार ऐसा करते हो तब तुम अपना कार्य करते रहने योग्य हो सकोगे। और इसके साथ ही साथ सभी लोग अपनी समस्याओं के हल हो जाने से शान्तिपूर्वक घर जा सकेंगे।”

24 इसलिए मूसा ने वैसा ही किया जैसा यित्रो ने कहा था। 25 मूसा ने इस्राएल के लोगों में से योग्य पुरुषों को चुना। मूसा ने उन्हें लोगों का अगुआ बनाया। वहाँ हज़ार, सौ, पचास और दस लोगों के ऊपर प्रशासक थे। 26 ये प्रशासक लोगों के न्यायाधीश थे। लोग अपनी समस्याएँ इन प्रशासको के पास सदा ला सकते थे। और मूसा को केवल गंभीर मामले ही निपटाने पड़ते थे।

27 कुछ समय बाद मूसा ने अपने ससुर यित्रो से विदा ली और यित्रो अपने घर लौट गया।

इस्राएल के साथ परमेश्वर का साक्षीपत्र

19 मिस्र से अपनी यात्रा करने के तीसरे महीने में इस्राएल के लोग सीनै मरुभूमि में पहुँचे। लोगों ने रपीदीम को छोड़ दिया था और वे सीनै मरुभूमि में आ पहुँचे थे। इस्राएल के लोगों ने मरुभूमि में पर्वत[f] के निकट डेरा डाला। तब मूसा पर्वत के ऊपर परमेश्वर के पास गया। जब मूसा पर्वत पर था तभी पर्वत से परमेश्वर ने उससे कहा, “ये बातें इस्राएल के लोगों अर्थात् याकूब के बड़े परिवार से कहो, ‘तुम लोगों ने देखा कि मैं अपने शत्रुओं के साथ क्या कर सकता हूँ। तुम लोगों ने देखा कि मैंने मिस्र के लोगों के साथ क्या किया। तुम ने देखा कि मैंने तुम को मिस्र से बाहर एक उकाब की तरह पंखों पर बैठाकर निकाला। और यहाँ अपने समीप लाया। इसलिए अब मैं कहता हूँ तुम लोग मेरा आदेश मानो। मेरे साक्षीपत्र का पालन करो। यदि तुम मेरे आदेश मानोगे तो तुम मेरे विशेष लोग बनोगे। समस्त संसार मेरा है। तुम एक विशेष लोग और याजकों का राज्य बनोगे।’ मूसा, जो बातें मैंने बताई हैं उन्हें इस्राएल के लोगों से अवश्य कह देना।”

इसलिए मूसा पर्वत से नीचे आया और लोगों के बुज़ुर्गों (नेताओं) को एक साथ बुलाया। मूसा ने बुज़ुर्गों से वह बातें कहीं जिन्हें कहने का आदेश यहोवा ने उसे दिया था। फिर सभी लोग एक साथ बोले, “हम लोग यहोवा की कही हर बात मानेंगे।”

तब मूसा परमेश्वर के पास पर्वत पर लौट आया। मूसा ने कहा कि लोग उसके आदेश का पालन करेंगे। और यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं घने बादल में तुम्हारे पास आऊँगा। मैं तुमसे बात करूँगा। सभी लोग मुझे तुमसे बातें करते हुए सुनेंगे। मैं यह इसलिए करूँगा जिससे लोग उन बातों में सदा विश्वास करेंगे जो तुमने उनसे कहीं।”

तब मूसा ने परमेश्वर को वे सभी बातें बताईं जो लोगों ने कही थीं।

10 यहोवा ने मूसा से कहा, “आज और कल तुम लोगों को विशेष सभा के लिए अवश्य तैयार करो। लोगों को अपने वस्त्र धो लेने चहिए। 11 और तीसरे दिन मेरे लिए तैयार रहना चाहिए। तीसरे दिन मैं (यहोवा) सीनै पर्वत पर नीचे आऊँगा और सभी लोग मुझ (यहोवा) को देखेंगे। 12-13 किन्तु उन लोगों से अवश्य कह देना कि वे पर्वत से दूर ही रूकें। एक रेखा खींचना और उसे लोगों को पार न करने देना। यदि कोई व्यक्ति या जानवर पर्वत को छूएगा तो उसे अवश्य मार दिया जाएगा। वह पत्थरों से मारा जाएगा या बाणों से बेधा जाएगा। किन्तु किसी व्यक्ति को उसे छूने नहीं दिया जाएगा। लोगों को तुरही बजने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसी समय उन्हें पर्वत पर जाने दिया जाएगा।”

14 सो मूसा पर्वत से नीचे उतरा। वह लोगों के समीप गया और विशेष बैठक के लिए उन्हें तैयार किया। लोगों ने अपने वस्त्र धोए।

15 तब मूसा ने लोगों से कहा, “परमेश्वर से मिलने के लिए तीन दिन में तैयार हो जाओ। उस समय तक कोई भी पुरुष स्त्री से सम्पर्क न करे।”

16 तीसरे दिन पर्वत पर बिजली की चमक और मेघ की गरज हुई। एक घना बादल पर्वत पर उतरा और तुरही की तेज ध्वनि हुई। डेरे के सभी लोग डर गए। 17 तब मूसा लोगों को पर्वत की तलहटी पर परमेश्वर से मिलने के लिए डेरे के बाहर ले गया। 18 सीनै पर्वत धुएँ से ढका था। पर्वत से धुआँ इस प्रकार उठा जैसे किसी भट्टी से उठता है। यह इसलिए हुआ कि यहोवा आग में पर्वत पर उतरे और साथ ही सारा पर्वत भी काँपने लगा। 19 तुरही की ध्वनि तीव्र से तीव्रतर होती चली गई। जब भी मूसा ने परमेश्वर से बात की, मेघ की गरज में परमेश्वर ने उसे उत्तर दिया।

20 इस प्रकार यहोवा सीनै पर्वत पर उतरा। यहोवा स्वर्ग से पर्वत की चोटी पर उतरा। तब यहोवा ने मूसा को अपने साथ पर्वत की चोटी पर आने को कहा। इसलिए मूसा पर्वत पर चढ़ा।

21 यहोवा ने मूसा से कहा, “जाओ और लोगों को चेतावनी दो कि वे मेरे पास न आएं न ही मुझे देखें। यदि वे ऐसा करेंगे तो वे मर जाएंगे और इस तरह बहुत सी मौतें हो जाएंगी। 22 उन याजकों से भी कहो जो मेरे पास आएंगे कि वे इस विशेष, मिलन के लिए स्वयं को तैयार करें। यदि वे ऐसा नहीं करते तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”

23 मूसा ने यहोवा से कहा, “किन्तु लोग पर्वत पर नहीं आ सकते। तूने स्वयं ही हम से एक रेखा खींचकर पर्वत को पवित्र समझने और उसे पार न करने के लिए कहा था।”

24 यहोवा ने उससे कहा, “लोगों के पास जाओ और हारून को लाओ। उसे अपने साथ वापस लाओ। किन्तु याजकों और लोगों को मत आने दो। यदि वे मेरे पास आएंगे तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”

25 इसलिए मूसा लोगों के पास गया और उनसे ये बातें कहीं।

दस आदेश

20 तब परमेश्वर ने ये बातें कहीं,

“मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं तुम्हें मिस्र देश से बाहर लाया। मैंने तुम्हें दासता से मुक्त किया। इसलिए तुम्हें निश्चय ही इन आदेशों का पालन करना चाहिए।

“तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।

“तुम्हें कोई भी मूर्ति नहीं बनानी चाहिए। किसी भी उस चीज़ की आकृति मत बनाओ जो ऊपर आकाश में या नीचे धरती पर अथवा धरती के नीचे पानी में हो। किसी भी प्रकार की मूर्ति की पूजा मत करो, उसके आगे मत झुको। क्यों? क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। मेरे लोग जो दूसरे देवताओं की पूजा करते हैं मैं उनसे घृणा करता हूँ। यदि कोई व्यक्ति मेरे विरुद्ध पाप करता है तो मैं उसका शत्रु हो जाता हूँ। मैं उस व्यक्ति की सन्तानों की तीसरी और चौथी पीढ़ी तक को दण्ड दूँगा। किन्तु मैं उन व्यक्तियों पर बहुत कृपालू रहूँगा जो मुझसे प्रेम करेंगे और मेरे आदेशों को मानेंगे। मैं उनके परिवारों के प्रति सहस्रों पीढ़ी तक कृपालु रहूँगा।

“तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के नाम का उपयोग तुम्हें गलत ढंग से नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति यहोवा के नाम का उपयोग गलत ढंग से करता है तो वह अपराधी है और यहोवा उसे निरपराध नहीं मानेगा।

“सब्त को एक विशेष दिन के रूप में मानने का ध्यान रखना। सप्ताह में तुम छः दिन अपना कार्य कर सकते हो। 10 किन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की प्रतिष्ठा में आराम का दिन है। इसलिए उस दिन कोई व्यक्ति चाहे तुम, या तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ, तुम्हारे दास और दासियाँ, पशु तथा तुम्हारे नगर में रहने वाले सभी विदेशी काम नहीं करेंगे। 11 क्यों? क्योंकि यहोवा ने छ: दिन काम किया और आकाश, धरती, सागर और उनकी हर चीज़ें बनाईं। और सातवें दिन परमेश्वर ने आराम किया। इस प्रकार यहोवा ने शनिवार को वरदान दिया कि उसे आराम के पवित्र दिन के रूप में मनाया जाएगा। यहोवा ने उसे बहुत ही विशेष दिन के रूप में स्थापित किया।

12 “अपने माता और अपने पिता का आदर करो। यह इसलिए करो कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा जिस धरती को तुम्हें दे रहा है, उसमें तुम दीर्घ जीवन बिता सको।

13 “तुम्हें किसी व्यक्ति की हत्या नहीं करनी चाहिए।

14 “तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए।

15 “तुम्हें चोरी नहीं करनी चाहिए।

16 “तुम्हें अपने पड़ोसियों के विरुद्ध झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए।

17 “दूसरे लोगों की चीज़ों को लेने की इच्छा तुम्हें नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने पड़ोसी का घर, उसकी पत्नी, उसके सेवक और सेविकाओं, उसकी गायों, उसके गधों को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। तुम्हें किसी की भी चीज़ को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।”

लोगों का परमेश्वर से डरना

18 घाटी में लोगों ने इस पूरे समय गर्जन सुनी और पर्वत पर बिजली की चमक देखी। उन्होंने तुरही की ध्वनि सुनी और पर्वत से उठते धूएँ को देखा। लोग डरे और भय से काँप उठे। वे पर्वत से दूर खड़े रहे और देखते रहे। 19 तब लोगों ने मूसा से कहा, “यदि तुम हम लोगों से कुछ कहना चाहोगे तो हम लोग सुनेंगे। किन्तु परमेश्वर को हम लोगों से बात न करने दो। यदि यह होगा तो हम लोग मर जाएंगे।”

20 तब मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत! यहोवा यह प्रमाणित करने आया है कि वह तुमसे प्रेम करता है।”

21 लोग उस समय उठकर पर्वत से दूर चले आए जबकि मूसा उस गहरे बादल में गया जहाँ यहोवा था। 22 तब यहोवा ने मूसा से इस्राएलियों को बताने के लिए ये बातें कहीं: “तुम लोगों ने देखा कि मैंने तुमसे आकाश से बातें की। 23 इसलिए तुम लोग मेरे विरोध में सोने या चाँदी की मूर्तियाँ न बनाना। तुम्हें इन झूठे देवताओं की मूर्तियाँ कदापि नहीं बनानी हैं।”

24 “मेरे लिए एक विशेष वेदी बनाओ। इस वेदी को बनाने के लिए धूलि का उपयोग करो। इस वेदी पर बलि के रूप में होमबलि तथा मेलबलि चढ़ाओ। इस काम के लिए अपनी भेड़ों और गाय, बकरियों का उपयोग करो। उन सभी स्थानों पर यही करो जहाँ मैं अपने को याद करने के लिए कह रहा हूँ। तब मैं आऊँगा और तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। 25 यदि तुम लोग वेदी को बनाने के लिए चट्टानों का उपयोग करो तो तुम लोग उन चट्टानों का उपयोग न करो जिन्हें तुम लोगों ने अपने किसी लोहे के औज़ारों से चिकना किया है। यदि तुम लोग चट्टानों पर किसी औज़ारो का उपयोग करोगे तो मैं वेदी को स्वीकार नहीं करूँगा। 26 तुम लोग वेदी तक पहुँचाने वाली सीढ़ियाँ भी न बनाना। यदि सीढ़ियाँ होंगी तो जब लोग ऊपर वेदी को देखेंगे तो वे तुम्हारे वस्त्रों के भीतर नीचे से तुम्हारी नग्नता को भी देख सकेंगे।”

अन्य नियम एवं आदेश

21 तब परमेश्वर ने मूसा से कहा, “ये वे अन्य नियम हैं, जिन्हें तुम लोगों को बताओगे,

“यदि तुम एक हिब्रू दास खरीदते हो तो उसे तुम्हारी सेवा केवल छः वर्ष करनी होगी। छः वर्ष बाद वह स्वतन्त्र हो जाएगा। उसे कुछ भी नहीं देना पड़ेगा। तुम्हारा दास होने के पहले यदि उसका विवाह नहीं हुआ है तो वह पत्नी के बिना ही स्वतन्त्र होकर चला जाएगा। किन्तु यदि दास होने के समय वह व्यक्ति विवाहित होगा तो स्वतन्त्र होने के समय वह अपनी पत्नी को अपने साथ ले जाएगा। यदि दास विवाहित नहीं होगा तो उसका स्वामी उसे पत्नी दे सकेगा। यदि वह पत्नी, पुत्र या पुत्रियों को जन्म देगी तो वह स्त्री तथा बच्चे उस दास के स्वामी के होंगे। अपने सेवाकाल के पूरा होने पर केवल वह दास ही स्वतन्त्र किया जाएगा।”

“किन्तु यह हो सकता है कि दास यह निश्चय करे कि वह अपने स्वामी के साथ रहना चाहता है। तब उसे कहना पड़ेगा, ‘मैं अपने स्वामी से प्रेम करता हूँ। मैं अपनी पत्नी और अपने बच्चों से प्रेम करता हूँ। मैं स्वतन्त्र नहीं होऊँगा मैं यहीं रहूँगा।’ यदि ऐसा हो तो दास का स्वामी उसे परमेश्वर के सामने लाएगा। दास का स्वामी उसे किसी दरवाज़े तक या उसकी चौखट तक ले जाएगा और दास का स्वामी एक तेज़ औज़ार से दास के कान में एक छेद करेगा। तब दास उस स्वामी की सेवा जीवन भर करेगा।

“कोई भी व्यक्ति अपनी पुत्री को दासी के रूप में बेचने का निश्चय कर सकता है। यदि ऐसा हो तो उसे स्वतन्त्र करने के लिए वे ही नियम नहीं हैं जो पुरुष दासों को स्वतन्त्र करने के लिए हैं। यदि स्वामी उस स्त्री से सन्तुष्ट नहीं है तो वह उसके पिता को उसे वापस बेच सकता है। किन्तु यदि दासी का स्वामी उस स्त्री से विवाह करने का वचन दे तो वह दूसरे व्यक्ति को उसे बेचने का अधिकार खो देता है। यदि दासी का स्वामी उस दासी से अपने पुत्र का विवाह करने का वचन दे तो उससे दासी जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा। उसके साथ पुत्री जैसा व्यवहार करना होगा।”

10 “यदि दासी का स्वामी किसी दूसरी स्त्री से भी विवाह करे तो उसे चाहिए कि वह पहली पत्नी को कम भोजन या वस्त्र न दे और उसे चाहिए कि उन चीजों को लगातार वह उसे देता रहे जिन्हें पाने का उसे अधिकार विवाह से मिला है। 11 उस व्यक्ति को ये तीन चीजें उसके लिए करनी चाहिए। यदि वह इन्हें नहीं करता तो स्त्री स्वतन्त्र की जाएगी और इसके लिए उसे कुछ देना भी नहीं पड़ेगा। उसे उस व्यक्ति को कोई धन नहीं देना होगा।”

12 “यदि कोई व्यक्ति किसी को चोट पहुँचाए और उसे मार डाले तो उस व्यक्ति को भी मार दिया जाय। 13 किन्तु यदि ऐसा संयोग होता है कि कोई बिना पूर्व योजना के किसी व्यक्ति को मार दे, तो ऐसा परमेश्वर की इच्छा से ही हुआ होगा। मैं कुछ विशेष स्थानों को चुनूँगा जहाँ लोग सुरक्षा के लिए दौड़कर जा सकते हैं। इस प्रकार वह व्यक्ति दौड़कर इनमें से किसी भी स्थान पर जा सकता है। 14 किन्तु कोई व्यक्ति यदि किसी व्यक्ति के प्रति क्रोध या घृणा रखने के कारण उसे मारने की योजना बनाए तो हत्यारे को दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। उसे मेरी वेदी से दूर ले जाओ और उसे मार डालो।”

15 “कोई व्यक्ति जो अपने माता—पिता को चोट पहुँचाये वह अवश्य ही मार दिया जाये।

16 “यदि कोई व्यक्ति किसी को दास के रूप में बेचने या अपना दास बनाने के लिए चुराए तो उसे अवश्य मार दिया जाए।

17 “कोई व्यक्ति, जो अपने माता—पिता को शाप दे तो उसे अवश्य मार दिया जाए।

18 “दो व्यक्ति बहस कर सकते हैं और एक दूसरे को पत्थर या मुक्के से मार सकते हैं। उस व्यक्ति को तुम्हें कैसे दण्ड देना चाहिए? यदि चोट खाया हुआ व्यक्ति मर न जाए तो चोट पहुँचाने वाला व्यक्ति मारा न जाए। 19 किन्तु यदि चोट खाए व्यक्ति को कुछ समय तक चारपाई पकड़नी पड़े तो चोट पहुँचाने वाले व्यक्ति को उसे हर्जाना देना चाहिए। चोट पहुँचाने वाला व्यक्ति उसके समय की हानि को धन से पूरा करे। वह व्यक्ति तब तक उसे हर्जाना दे जब तक वह पूरी तरह ठीक न हो जाए।”

20 “कभी कभी लोग अपने दास और दासियों को पीटते हैं। यदि पिटाई के बाद दास मर जाए तो हत्यारे को अवश्य दण्ड दिया जाए। 21 किन्तु दास यदि मरता नहीं और कुछ दिनों बाद वह स्वस्थ हो जाता है तो उस व्यक्ति को दण्ड नहीं दिया जाएगा। क्यों? क्योंकि दास के स्वामी ने दास के लिए धन दिया और दास उसका है।

22 “दो व्यक्ति आपस में लड़ सकते हैं और किसी गर्भवती स्त्री को चोट पहुँचा सकते हैं। यदि वह स्त्री अपने बच्चे को समय से पहले जन्म देती है, और माँ बुरी तरह घायल नहीं है तो चोट पहुँचानेवाला व्यक्ति उसे अवश्य धन दे। उस स्त्री का पति यह निश्चित करेगा कि वह व्यक्ति कितना धन दे। न्यायाधीश उस व्यक्ति को यह निश्चय करने में सहायता करेंगे कि वह धन कितना होगा। 23 किन्तु यदि स्त्री बुरी तरह घायल हो तो वह व्यक्ति जिसने उसे चोट पहुँचाई है अवश्य दण्डित किया जाए। यदि एक व्यक्ति मार दिया जाता है तो हत्यारा अवश्य मार दिया जाए। तुम एक जीवन के बदले दूसरा जीवन लो। 24 तुम आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर लो। 25 जले के बदले जलाओ, खरोंच के बदले खरोंच करो और घाव के बदले घाव।

26 “यदि कोई व्यक्ति किसी दास की आँख को चोट पहुँचाए और दास उस आँख से अन्धा हो जाए तो वह दास स्वतन्त्र हो जाने दिया जाएगा। उसकी आँख उसकी स्वतन्त्रता का मूल्य है। यह नियम दास या दासी दोनों के लिए समान है। 27 यदि दास का स्वामी दास के मुँह पर मारे और दास का कोई दाँत टूट जाए तो दास को स्वतन्त्र कर दिया जाएगा। दास का दाँत उसकी स्वतन्त्रता का मूल्य है। यह दास और दासी दोनों के लिए समान है।

28 “यदि किसी व्यक्ति का कोई बैल किसी स्त्री को या पुरुष को मार देता है तो तुम पत्थरों का उपयोग करो और बैल को मार डालो। तुम्हें उस बैल को खाना नहीं चाहिए। किन्तु बैल का स्वामी अपराधी नहीं है। 29 किन्तु यदि बैल ने पहले लोगों को चोट पहुँचाई हो और स्वामी को चेतावनी दी गई हो तो वह स्वामी अपराधी है। क्यों? क्योंकि इसने बैल को बाँधा या बन्द नहीं रखा। यदि बैल स्वतन्त्र छोड़ा गया हो और किसी को वह मारे तो स्वामी अपराधी है। तुम पत्थरों से बैल और उसके स्वामी को भी मार दो। 30 किन्तु मृतक का परिवार यदि चाहे तो बदले में धन लेकर बैल के मालिक को छोड़ सकता है। किन्तु वह उतना धन दे जितना न्यायाधीश निश्चित करे।

31 “यही नियम उस समय भी लागू होगा जब बैल किसी व्यक्ति के पुत्र या पुत्री को मारता है। 32 किन्तु बैल यदि दास को मार दे तो बैल का स्वामी दास के स्वामी को एक नये दास का मूल्य चाँदी के तीस सिक्के[g] दे और बैल भी पत्थरों से मार डाला जाए। यह नियम दास और दासी के लिए समान होगा।

33 “कोई व्यक्ति कोई गका या कुँआ खोदे और उसे ढके नहीं और यदि किसी व्यक्ति का जानवर आए और उसमें गिर जाए तो गके का स्वामी दोषी है। 34 गके का स्वामी जानवर के लिए धन देगा। किन्तु जानवर के लिए धन देने के बाद उसे उस मरे जानवर को लेने दिया जाएगा।

35 “यदि किसी का बैल किसी दूसरे व्यक्ति के बैल को मार डाले तो वे दोनों उस जीवित बैल को बेच दें। दोनों व्यक्ति बेचने से प्राप्त आधा—आधा धन और मरे बैल का आधा—आधा भाग ले लें। 36 किन्तु यदि उस व्यक्ति के बैल ने पहले भी किसी दूसरे जानवर को चोट पहुँचाई हो तो उस बैल का स्वामी अपने बैल के लिए उत्तरदायी है। यदि उसका बैल दूसरे बैल को मार डालता है तो यह अपराधी है क्योंकि उसने बैल को स्वतन्त्र छोड़ा। वह व्यक्ति बैल के बदले बैल अवश्य दे। वह मारे गए बैल के बदले अपना बैल दे।

22 “जो व्यक्ति किसी बैल या भेड़ को चुराता है उसे तुम कैसा दण्ड दोगे? यदि वह व्यक्ति जानवर को मार डाले या बेच दे तो वह उसे लौटा तो नहीं सकता। इसलिए वह एक चुराए बैल के बदले पाँच बैल दे। या वह एक चुराई गई भेड़ के बदले चार भेड़ें दे। वह चोरी के लिए कुछ धन भी दे। 2-4 किन्तु यदि उसके पास अपना कुछ भी नहीं है तो चोरी के लिए उसे दास के रूप में बेचा जाएगा। किन्तु यदि उसके पास चोरी का जानवर पाया जाए तो वह व्यक्ति जानवर के स्वामी को हर एक चुराए गए जानवर के बदले दो जानवर देगा। इस बात का कोई अन्तर नहीं पड़ेगा कि जानवर बैल, गधा या भेड़ें हो।

“यदि कोई चोर रात को घर में सेंध लगाने का प्रयत्न करते समय मारा जाए तो उसे मारने का अपराधी कोई नहीं होगा। किन्तु यदि यह दिन में हो तो उसका हत्यारा व्यक्ति अपराध का दोषी होगा। चोर को निश्चय ही क्षतिपूर्ति करनी होगी।

“यदि कोई व्यक्ति अपने खेत या अँगूर के बाग में आग लगाए और वह उस आग को फैलने दे और वह उसके पड़ोसी के खेत या अँगूर के बाग को जला दे तो वह अपने पड़ोसी की हानि की पूर्ति में देने के लिए अपनी सबसे अच्छी फसल का उपयोग करेगा।[h]

“कोई व्यक्ति अपने खेत की झाड़ियों को जलाने के लिए आग लगाए। किन्तु यदि आग बढ़े और उसके पड़ोसी की फसल या पड़ोसी के खेत में उगे अन्न को जला दे तो आग लगाने वाला व्यक्ति जली हुई चीज़ों के बदले भुगतान करेगा।

“कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी से उसके घर में कुछ धन या कुछ अन्य चीज़ें रखने को कहे और यदि वह धन या वे चीज़ें पड़ोसी के घर से चोरी चली जाए तो तुम क्या करोगे? तुम्हें चोर का पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि तुमने चोर को पकड़ लिया तो वह चीज़ों के मूल्य का दुगुना देगा। किन्तु यदि तुम चोर का पता न लगा सके तब परमेश्वर निर्णय करेगा कि पड़ोसी अपराधी है या नहीं। घर का स्वामी परमेश्वर के सामने जाए और परमेश्वर ही निर्णय करेगा कि उसने चुराया है या नहीं।

“यदि दो व्यक्ति किसी खोए बैल, गधा, भेड़, वस्त्र, यदि किसी अन्य खोई हुई चीज़ के बारे में सहमत न हों तो तुम क्या करोगे? एक व्यक्ति कहता है, ‘यह मेरी है।’ और दूसरा कहता है, ‘नहीं, यह मेरी है।’ दोनों व्यक्ति परमेश्वर के सामने जाएँ। परमेश्वर निर्णय करेगा कि अपराधी कौन है। जिस व्यक्ति को परमेश्वर अपराधी पाएगा वह उस चीज़ के मूल्य से दुगुना भुगतान करे।

10 “कोई अपने पड़ोसी से कुछ समय के लिए अपने जानवर की देखभाल के लिए कहे। वह जानवर बैल, भेड़, गधा या कोई अन्य पशु हो और यदि वह जानवर मर जाए, उसे चोट आ जाए या कोई उसे तब हाँक ले जाए जब कोई न देख रहा हो तो तुम क्या करोगे? 11 वह पड़ोसी स्पष्ट करे कि उसने जानवर को नहीं चुराया है। यदि यह सत्य हो तब पड़ोसी यहोवा की शपथ उठाए कि उसने वह नहीं चुराया है। जानवर का मालिक इस शपथ को अवश्य स्वीकार करे। पड़ोसी को जानवर के लिए मालिक को भुगतान नहीं करना होगा। 12 किन्तु यदि पड़ोसी ने जानवर को चुराया हो तो वह मालिक को जानवर के लिए भुगतान अवश्य करे। 13 यदि जंगली जानवरों ने जानवर को मारा हो तो प्रमाण के लिए उसके शरीर को पड़ोसी लाए। पड़ोसी मारे गए जानवर के लिए मालिक को भुगतान नहीं करेगा।

14 “यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी से किसी जानवर को उधार ले तो उसके लिए वह व्यक्ति ही उत्तरदायी है। यदि उस जानवर को चोट पहुँचे या वह मर जाए तो पड़ोसी मालिक को उस जानवर के लिए भुगतान करे। पड़ोसी इसलिए उत्तरदायी है क्योंकि उसका मालिक स्वयं वहाँ नहीं था। 15 किन्तु यदि मालिक जानवर के साथ वहाँ हो तब पड़ोसी को भुगतान नहीं करना होगा। या यदि पड़ोसी काम लेने के लिए धन का भुगतान कर रहा हो तो जानवर के मरने या चोट खाने पर उसे कुछ भी नहीं देना होगा। जानवर के उपयोग के लिए दिया गया भुगतान ही पर्याप्त होगा।

16 “यदि कोई पुरुष किसी अविवाहित कुँवारी कन्या से यौन सम्बन्ध करे तो वह उससे निश्चय ही विवाह करे। और वह उस लड़की के पिता को पूरा दहेज[i] दे। 17 यदि पिता अपनी पुत्री को उसे विवाह के लिए देने से इन्कार करता है तो भी उस व्यक्ति को धन देना पड़ेगा। वह उसे दहेज का पूरा धन दे।

18 “तुम किसी स्त्री को जादू टोना मत करने देना। यदि वह ऐसा करे तो तुम उसे जीवित मत रहने देना।

19 “तुम किसी व्यक्ति को किसी जानवर के साथ यौन सम्बन्ध न रखने देना। यदि ऐसा हो तो वह व्यक्ति अवश्य मार डाला जाए।

20 “यदि कोई किसी मिथ्या देवता को बलि चढ़ाए तो उस व्यक्ति को अवश्य नष्ट कर दिया जाए। केवल परमेश्वर यहोवा ही ऐसा है जिसे तुमको बलि चढ़ानी चाहिए।

21 “याद रखो इससे पहले तुम लोग मिस्र देश में विदेशी थे। अतः तुम लोग उस व्यक्ति को न ठगो, न ही चोट पहुँचाओ जो तुम्हारे देश में विदेशी हो।

22 “निश्चय ही तुम लोग ऐसी स्त्रियों का कभी बुरा नहीं करोगे जिनके पति मर चुके हों या उन बच्चों का जिनके माता—पिता न हों। 23 यदि तुम लोग उन विधवाओं या अनाथ बच्चों का कुछ बुरा करोगे तो वे मेरे आगे रोएंगे और मैं उनके कष्टों को सुनूँगा 24 और मुझे बहुत क्रोध आएगा। मैं तुम्हें तलवार से मार डालूँगा। तब तुम्हारी पत्नियाँ विधवा हो जाएंगी और तुम्हारे बच्चे अनाथ हो जाएंगे।

25 “यदि मेरे लोगों में से कोई गरीब हो और तुम उसे कर्ज़ दो तो उस धन के लिए तुम्हें ब्याज़ नहीं लेना चाहिए। और जल्दी चुकाने के लिए भी तुम उसे मजबूर नहीं करोगे। 26 कोई व्यक्ति उधार लिए हुए धन के भुगतान के लिए अपना लबादा गिरवी रख सकता है। किन्तु तुम सूरज डूबने के पहले उसका वह वस्त्र अवश्य लौटा देना। 27 यदि वह व्यक्ति अपना लबादा नहीं पाता तो उसके पास शरीर ढकने को कुछ भी नहीं रहेगा। जब वह सोएगा तो उसे सर्दी लगेगी। यदि वह मुझे रोकर पुकारेगा तो मैं उसकी सुनूँगा। मैं उसकी बात सुनूँगा क्योंकि मैं कृपालु हूँ।

28 “तुम्हें परमेश्वर या अपने लोगों के मुखियाओ को शाप नहीं देना चाहिए।

29 “फ़सल कटने के समय तुम्हें अपना प्रथम अन्न और प्रथम फल का रस मुझे देना चाहिए। इसे टालो मत।

“मुझे अपने पहलौठे पुत्रों को दो। 30 अपनी पहलौठी गायों तथा भेड़ों को भी मुझे देना। पहलौठे को उसकी माँ के साथ सात दिन रहने देना। उसके बाद आठवें दिन उसे मुझको देना।

31 “तुम लोग मेरे विशेष लोग हो। इसलिए ऐसे किसी जानवर का माँस मत खाना जिसे किसी जंगली जानवर ने मारा हो। उस मरे जानवर को कुत्तों को खाने दो।”

23 “लोगों के विरुद्ध झूठ मत बोलो। यदि तुम न्यायालय में गवाह हो तो बुरे व्यक्ति की सहायता के लिए झूठ मत बोलो।

“उस भीड़ का अनुसरण मत करो, जो गलत कर रही हो। जो जनसमूह बुरा कर रहा हो उसका अनुसरण करते हुए न्यायालय में उसका समर्थन मत करो।

“न्यायालय में किसी गरीब का इसलिए पक्ष मत लो कि वह गरीब है। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। यदि वह सही है तब ही उसका समर्थन करो।

“यदि तुम्हें कोई खोया हुआ बैल या गधा मिले तो तुम्हें उसे उसके मालिक को लौटा देना चाहिए। चाहे वह तुम्हारा शत्रु ही क्यों न हो।

“यदि तुम देखो कि कोई जानवर इसलिए नहीं चल पा रहा है कि उसे अत्याधिक बोझ ढोना पड़ रहा है तो तुम्हें उसे रोकना चाहिए और उस जानवर की सहायता करनी चाहिए। तुम्हें उस जानवर की सहायता तब भी करनी चाहिए जब वह जानवर तुम्हारे शत्रुओं में से भी किसी का हो।

“तुम्हें, लोगों को गरीबों के प्रति अन्यायी नहीं होने देना चाहिए। उनके साथ भी अन्य लोगों के समान ही न्याय होना चाहिए।

“तुम किसी को किसी बात के लिए अपराधी कहते समय बहुत सावधान रहो। किसी व्यक्ति पर झूठे दोष न लगाओ। किसी निर्दोष व्यक्ति को उस अपराध के दण्ड के द्वारा मत मरने दो जो उसने नहीं किया। कोई व्यक्ति जो निर्दोष की हत्या करे, दुष्ट है। और मैं उस दुष्ट व्यक्ति को क्षमा (माफ़) नहीं करूँगा।

“यदि कोई व्यक्ति गलत होने पर अपने से सहमत होने के लिए रिश्वत देने का प्रयत्न करे तो उसे मत लो। ऐसी रिश्वत न्यायाधीशों को अन्धा कर देगी जिससे वे सत्य को नहीं देख सकेंगे। रिश्वत अच्छे लोगों को झूठ बोलना सिखाएगी।

“तुम किसी विदेशी के साथ कभी बुरा बरताव न करो। याद रखो जब तुम मिस्र देश में रहते थे तब तुम विदेशी थे।”

विशेष पर्व

10 “छः वर्ष तक बीज बोओ, अपनी फ़सलों को काटो और खेत को तैयार करो। 11 किन्तु सातवें वर्ष अपनी भूमि का उपयोग न करो। सातवाँ वर्ष भूमि के विश्राम का विशेष समय होगा। अपने खेतों में कुछ भी न बोओ। यदि कोई फ़सल वहाँ उगती है तो उसे गरीब लोगों को ले लेने दो। जो भी खाने की चीज़ें बच जाएं उन्हें जंगली जानवरों को खा लेने दो। यही बात तुम्हें अपने अंगूर और जैतून के बागों के सम्बन्ध में भी करनी चाहिए।

12 “छः दिन तक काम करो। तब सातवें दिन विश्राम करो। इससे तुम्हारे दासों और तुम्हारे दूसरे मजदूरों को भी विश्राम का समय मिलेगा। और तुम्हारे बैल और गधे भी आराम कर सकेंगे।”

13 “संकल्प करो कि तुम इन नियमों का पालन करोगे। मिथ्या देवताओं की पूजा मत करो। तुम्हें उनका नाम भी नहीं लेना चाहिए।

14 “प्रति वर्ष तुम्हारे तीन विशेष पवित्र पर्व होंगे। इन दिनों तुम लोग मेरी उपासना के लिए मेरी विशेष जगह पर आओगे। 15 पहला पवित्र पर्व अख़मीरी रोटी का पर्व होगा। यह वैसा ही होगा, जैसा मैंने आदेश दिया है। इस दिन तुम लोग ऐसी रोटी खाओगे जिसमें खमीर न हो। यह सात दिन तक चलेगा। तुम लोग यह आबीब के महीने में करोगे। क्योंकि यही वह समय है जब तुम लोग मिस्र से आए थे। इन दिनों कोई भी व्यक्ति मेरे सामने खाली हाथ नहीं आएगा।

16 “दूसरा पवित्र पर्व कटनी का पर्व होगा। यह पवित्र पर्व ग्रीष्म के आरम्भ में, तब होगा जब तुम अपने खेतों में उगायी गई फसल को काटोगे।

“तीसरा पवित्र पर्व बटोरने का पर्व होगा। यह पतझड़ में होगा।[j] यह उस समय होगा जब तुम अपनी सारी फसलें खेतों से इकट्ठा करते हो।

17 “इस प्रकार प्रति वर्ष तीन बार सभी पुरुष यहोवा परमेश्वर के सामने उपस्थित होंगे।

18 “जब तुम किसी जानवर को मारो और इसका ख़ून बलि के रूप में भेंट चढ़ाओ तब ऐसी रोटी भेंट नहीं करो जिसमें खमीर हो। और जब तुम इस बलि के माँस को खाओ तब तुम्हें एक ही दिन में वह सारा माँस खा लेना चाहिए। अगले दिन के लिए कुछ भी माँस न बचाओ।

19 “फसल काटने के समय जब तुम अपनी फ़सलें इकट्ठी करो तब अपनी काटी हुई फ़सल की पहली उपज अपने यहोवा परमेश्वर के भवन में लाओ।

“तुम्हें छोटी बकरी के उस माँस को नहीं खाना चाहिए जो उस बकरी की माँ के दूध में पका हो।”

परमेश्वर इस्राएलियों को उनकी भूमि लेने में सहायता करेगा

20 परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हारे सामने एक दूत भेज रहा हूँ। यह दूत तुम्हें उस स्थान तक ले जाएगा जिसे मैंने तुम्हारे लिए तैयार किया है। यह दूत तुम्हारी रक्षा करेगा। 21 दूत की आज्ञा मानो और उसका अनुसरण करो। उसके विरुद्ध विद्रोह न करो। वह दूत उन अपराधों को क्षमा नहीं करेगा जो तुम उसके प्रति करोगे। उसमें मेरी शक्ति निहित है। 22 वह जो कुछ कहे उसे मानो। तुम्हें हर एक वह कार्य करना चाहिए जो मैं तुम्हें कहता हूँ। यदि तुम यह करोगे तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हारे सभी शत्रुओं के विरुद्ध होऊँगा और मैं उस हर व्यक्ति का शत्रु होऊँगा जो तुम्हारे विरुद्ध होगा।”

23 परमेश्वर ने कहा, “मेरा दूत तुम्हें इस देश से होकर ले जाएगा। वह तुम्हें कई भिन्न लोगों—एमोरी, हित्ती, परिज्जी, कनानी, हिब्बी और यबूसी के विरुद्ध कर देगा। किन्तु मैं उन सभी लोगों को नष्ट कर दूँगा।

24 “उनके देवताओं को मत पूजो। उन देवताओं को झूककर कभी प्रणाम मत करो। तुम उस ढंग से कभी न रहो जिस ढंग से वे रहते हैं। तुम्हें उनकी मूर्तियों को निश्चय ही नष्ट कर देना चाहिए और तुम्हें उनके प्रस्तर पिण्ड़ों को तोड़ देना चाहिए जो उन्हें उनके देवताओं को याद दिलाने में सहायता करती हैं। 25 तुम्हें अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करनी चाहिए। यदि तुम यह करोगे तो मैं तुम्हें भरपूर रोटी और पानी का वरदान दूँगा। मैं तुम्हारी सारी बीमारियो को दूर कर दूँगा। 26 तुम्हारी सभी स्त्रियाँ बच्चों को जन्म देने लायक होंगी। जन्म के समय उनका कोई बच्चा नहीं मरेगा और मैं तुम लोगों को भरपूर लम्बा जीवन प्रदान करूँगा।

27 “जब तुम अपने शत्रुओं से लड़ोगे, मैं अपनी प्रबल शक्ति तुमसे भी पहले वहाँ भेज दूँगा।[k] मैं तुम्हारे सभी शत्रुओं के हराने में तुम्हारी सहायता करूँगा। वे लोग जो तुम्हारे विरुद्ध होंगे वे युद्ध में घबरा कर भाग जाएंगे। 28 मैं तुम्हारे आगे—आगे बर्रे भेजूँगा वह तुम्हारे शत्रुओं को भागने के लिए विवश करेंगे। हिब्बी, कनानी और हित्ती लोग तुम्हारा प्रदेश छोड़ कर भाग जाएंगे। 29 किन्तु मैं उन लोगों को तुम्हारे प्रदेश से बाहर जाने को शीघ्रतापूर्वक विवश नहीं करूँगा। मैं यह केवल एक वर्ष में नहीं करुँगा। यदि मैं लोगों को अति शीघ्रता से बाहर जाने को विवश करूँ तो प्रदेश ही निर्जन हो जाए। तब सभी प्रकार के जंगली जानवर बढ़ेंगे और वे तुम्हारे लिए बहुत कष्टकर होंगे। 30 मैं उन्हें धीरे और उस समय तक बाहर खदेड़ता रहूँगा जब तक तुम उस धरती पर फैल न जाओ और उस पर अधिकार न कर लो।

31 “मैं तुम लोगों को लाल सागर से लेकर फरात तक का सारा प्रदेश दूँगा। पश्चिमी सीमा पलिश्ती सागर (भूमध्य सागर) होगा और पूर्वी सीमा अरब मरुभूमि होगी। मैं ऐसा करूँगा कि वहाँ के रहने वालों को तुम हराओ। और तुम इन सभी लोगों को वहाँ से भाग जाने के लिए विवश करोगे।

32 “तुम उनके देवताओं या उन लोगों में से किसी के साथ कोई समझौता नहीं करोगे। 33 उन्हें अपने देश में मत रहने दो। यदि तुम उन्हें रहने दोगे तो तुम उनके जाल में फँस जाओगे। वे तुमसे मेरे विरुद्ध पाप करवाएंगे और तुम उनके देवताओं की सेवा आरम्भ कर दोगे।”

परमेश्वर का इस्राएल से वाचा

24 परमेश्वर ने मूसा से कहा, “तुम हारून, नादाब, अबीहू और इस्राएल के सत्तर बुजुर्ग (नेता) पर्वत पर आओ और कुछ दूर से मेरी उपासना करो। तब मूसा अकेले यहोवा के समीप आएगा। अन्य लोग यहोवा के समीप न आएँ, और शेष व्यक्ति पर्वत तक भी न आएँ।”

इस प्रकार मूसा ने यहोवा के सभी नियमों और आदेशों को लोगों को बताया। तब सभी लोगों ने कहा, “यहोवा ने जिन सभी आदेशों को दिया उनका हम पालन करेंगे।”

इसलिए मूसा ने यहोवा के सभी आदेशों को चर्म पत्र पर लिखा। अगली सुबह मूसा उठा और पर्वत की तलहटी के समीप उसने एक वेदी बनाई और उसने बारह शिलाएँ इस्राएल के बारह कबीलों के लिए स्थापित कीं। तब मूसा ने इस्राएल के युवकों को बलि चढ़ाने के लिए बुलाया। इन व्यक्तियों ने यहोवा को होमबलि और मेलबलि के रूप में बैल की बलि चढ़ाई।

मूसा ने इन जानवरों के खून को इकट्ठा किया। मूसा ने आधा खून प्याले में रखा और उसने दूसरा आधा खून वेदी पर छिड़का।[l]

मूसा ने चर्म पत्र पर लिखे विशेष साक्षीपत्र को पढ़ा। मूसा ने साक्षीपत्र को इसलिए पढ़ा कि सभी लोग उसे सुन सकें और लोगों ने कहा, “हम लोगों ने उन नियमों को जिन्हें यहोवा ने हमें दिया, सुन लिया है और हम सब लोग उनके पालन करने का वचन देते हैं।”

तब मूसा ने खून को लिया और उसे लोगों पर छिड़का। उसने कहा, “यह खून बताता है कि यहोवा ने तुम्हारे साथ विशेष साक्षीपत्र स्थापित किया। ये नियम जो यहोवा ने दिए है वे साक्षीपत्र को स्पष्ट करते हैं।”

तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्राएल के सत्तर बुजुर्ग (नेता) ऊपर पर्वत पर चढ़े। 10 पर्वत पर इन लोगों ने इस्राएल के परमेश्वर को देखा। परमेश्वर किसी ऐसे आधार पर खड़ा था। जो नीलमणि सा दिखता था ऐसा निर्मल जैसा आकाश। 11 इस्राएल के सभी नेताओं ने परमेश्वर को देखा, किन्तु परमेश्वर ने उन्हें नष्ट नहीं किया।[m] तब उन्होंने एक साथ खाया और पिया।

मूसा को पत्थर की पट्टियाँ मिली

12 यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरे पास पर्वत पर आओ। मैंने अपने उपदेशों और आदेशों को दो समतल पत्थरों पर लिखा है। ये उपदेश लोगों के लिए हैं। मैं इन समतल पत्थरों को तुम्हें दूँगा।”

13 इसलिए मूसा और उसका सहायक यहोशू परमेश्वर के पर्वत तक गए। 14 मूसा ने चुने हुए बुजुर्गो से कहा, “हम लोगों की यहीं प्रतीक्षा करो, हम तुम्हारे पास लौटेंगे। जब तक मैं अनुपस्थित रहूँ, हारून और हूर आप लोगों के अधिकारी होंगे। यदि किसी को कोई समस्या हो तो वह उनके पास जाए।”

मूसा का परमेश्वर से मिलना

15 तब मूसा पर्वत पर चढ़ा और बादल ने पर्वत को ढक लिया। 16 यहोवा की दिव्यज्योति सीनै पर्वत पर उतरी। बादल ने छः दिन तक पर्वत को ढके रखा। सातवें दिन यहोवा, बादल में से मूसा से बोला। 17 इस्राएल के लोग यहोवा की दिव्यज्योति को देख सकते थे। वह पर्वत की चोटी पर दीप्त प्रकाश की तरह थी।

18 तब मूसा बादलों में और ऊपर पर्वत पर चढ़ा। मूसा पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात रहा।

पवित्र वस्तुओं के लिए भेंट

25 यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएल के लोगों से मेरे लिए भेंट लाने को कहो। हर एक व्यक्ति अपने मन में निश्चय करे कि वह मुझे इन वस्तुओं में से क्या अर्पित करना चाहता है। इन उपहारों को मेरे लिए अर्पित करो। इन वस्तुओं की सूची यह है जिन्हें तुम लोगों से स्वीकार करोगे, सोना, चाँदी, काँसा; नीला, बैंगनी और लाल सूत, सुन्दर रेशमी कपड़ा; बकरियों के बाल, लाल रंग से रंगा भेड़ का चमड़ा, सुइसों के चमड़ें, बबूल की लकड़ी, दीपक में जलाने का तेल, धूप के लिए सुगन्धित द्रव्य, अभिषेक के तेल के लिए भीनी सुगन्ध देने वाले मसाले। गोमेदक रत्न तथा अन्य मूल्यवान रत्न भी जो याजकों के पहनने की एपोद और न्याय की थैली पर जड़े जाएं, अर्पित करो।”

पवित्र तम्बू

परमेश्वर ने यह भी कहा, “लोग मेरे लिए एक पवित्र तम्बू बनाएंगे। तब मैं उनके साथ रह सकूँगा। मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि पवित्र तम्बू कैसा दिखाई पड़ना चाहिए। मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि इसमें सभी चीज़ें कैसी दिखाई देनी चाहिए। जैसा मैंने दिखाया है हर एक चीज़ ठीक वैसे ही बनाओ।

साक्षीपत्र का सन्दूक

10 “बबूल की लकड़ी का उपयोग करके एक विशेष सन्दूक बनाओ। वह सन्दूक निश्चय ही पैतालिस इंच[n] लम्बा, सत्ताईस इंच[o] चौड़ा और सत्ताईस इंच ऊँचा होना चाहिए। 11 सन्दूक को भीतर और बाहर से ढकने के लिए शुद्ध सोने का उपयोग करो। सन्दूक के कोनों को सोने से मढ़ो। 12 सन्दूक को उठाने के लिए सोने के चार कड़ें बनाओ। सोने के कड़ों को चारों कोनों पर लगाओ। दोनों तरफ दो—दो कड़े हों। 13 तब सन्दूक ले चलने के लिए बल्लियाँ बनाओ। ये बल्लियाँ बबूल की लकड़ी की बनी हों और सोने से मढ़ी होनी चाहिए। 14 सन्दूक के बगलों के कोनों पर लगे कड़ों में इन बल्लियों को डाल देना। इन बल्लियों का उपयोग सन्दूक को ले जाने के लिए करो। 15 ये बल्लियाँ सन्दूक के कड़ों में सदा पड़ी रहनी चाहिए। बल्लियों को बाहर न निकालो।”

16 परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हें साक्षीपत्र दूँगा। इस साक्षीपत्र को इस सन्दूक में रखो। 17 तब एक ढक्कन बनाओ। इसे शुद्ध सोने का बनाओ। इसे पैंतालिस इंच लम्बा और सत्ताईस इंच चौड़ा बनाओ। 18 तब दो करूब बनाओ और उन्हें ढक्कन के दोनों सिरों पर लगाओ। इन करूबों को बनाने के लिए स्वर्ण पत्रों का उपयोग करो। 19 एक करूब को ढक्कन के एक सिरे पर लगाओ तथा दूसरे को दूसरे सिरे पर। करूब और ढक्कन को परस्पर जोड़ कर के एक इकाई के रूप में बनाया जाए। 20 करूब एक दूसरे के आमने—सामने होने चाहिए। करूबों के मुख ढक्कन की ओर देखते हुए होने चाहिए। करूबों के पंख ढक्कन पर फैले हों।

21 “मैंने तुमको साक्षीपत्र का जो प्रमाण दिया है उसे साक्षीपत्र के सन्दूक में रखो और विशेष ढक्कन से सन्दूक को बन्द करो। 22 जब मैं तुमसे मिलूँगा तब मैं करूबों के बीच से, जो साक्षीपत्र के सन्दूक के विशेष ढक्कन पर है, बात करूँगा। मैं अपने सभी आदेश इस्राएल के लोगों को उसी स्थान से दूँगा।”

विशेष रोटी की मेज

23 “बबूल की लकड़ी की एक मेज़ बनाओ। मेज़ छत्तीस इंच[p] लम्बी अट्ठारह इंच चौड़ी और सत्ताईस इंच ऊँची होना चाहिए। 24 मेज़ को शुद्ध सोने से मढ़ो और उसके चारों ओर सोने की झालर लगाओ। 25 तब तीन इंच चौड़ा सोने का चौखरा मेज के ऊपर चारों ओर जड़ दो और उसके चारों ओर सोने की झालर लगाओ। 26 तब सोने के चार कड़े बनाओ और मेज़ के चारों कोनों पर पायों के पास लगाओ। 27 हर एक पाए पर एक कड़ा लगा दो। जो मेज़ के ऊपर की चारों ओर की सजावट के समीप हो। इन कड़ों में मेज़ को ले जाने के लिए बनी बल्लियाँ फँसी होंगी। 28 बल्लियोँ को बनाने के लिए बबूल की लकड़ी का उपयोग करो और उन्हें सोने से मढ़ो। बल्लियाँ मेज़ को ले जाने के लिए हैं। 29 पात्र, तवे, मर्तबान और अर्ध के लिए कटोरे इन सबको शुद्ध सोने का बनाना। 30 विशेष रोटी मेज़ पर मेरे सम्मुख रखो। यह सदैव मेरे सम्मुख वहाँ रहनी चाहिए।”

दीपाधार

31 “तब तुम्हें एक दीपाधार बनाना चाहिए। दीपाधार के हर एक भाग को बनाने के लिए शुद्ध सोने के पत्तर तैयार करो। सुन्दर दिखने के लिए दीप पर फूल बनाओ। ये फूल, इनकी कलियाँ और पंखुडियाँ शुद्ध सोने की बनी होनी चाहिए और वे सभी चीज़ें एक ही में जुड़ी हुई होनी चाहिए।

32 “दीपाधार की छः शाखाएँ होनी चाहिए। तीन शाखाएँ एक ओर और तीन शाखाएँ दूसरी ओर होनी चाहिए। 33 हर शाखा पर बादाम के आकार के तीन प्याले होने चाहिए। हर प्याले के साथ एक कली और एक फूल होना चाहिए। 34 और स्वयं दीपाधार पर बादाम के फूल के आकार के चार और प्याले होने चाहिए। इन प्यालों के साथ भी कली और फूल होने चाहिए। 35 दीपाधार से निकलने वाली छः शाखाएँ दो दो के तीन भागों में बटीं होनी चाहिए। हर एक दो शाखाओं के जोड़े के नीचे एक एक कली बनाओ जो दीपाधार से निकलती हो। 36 ये सभी शाखाएँ और कलियाँ दीपाधार के साथ एक इकाई बननी चाहिए। और हर एक चीज शुद्ध सोने से तैयार की जानी चाहिए। 37 तब सात छोटे दीपक दीपाधार पर रखे जाने के लिए बनाओ। ये दीपक दीपाधार के सामने के स्थान को प्रकाश देंगे। 38 दीपक की बतियाँ बुझाने के पात्र और तश्तरियाँ शुद्ध सोने की बनानी चाहिए। 39 पचहत्तर पौंड[q] शुद्ध सोने का उपयोग दीपाधार और इसके साथ की सभी चीज़ों को बनाने में करें। 40 सावधानी के साथ हर एक चीज़ ठीक—ठीक उसी ढँग से बनायी जाए जैसी मैंने पर्वत पर तुम्हें दिखाई है।”

पवित्र तम्बू

26 यहोवा ने मूसा से कहा, “पवित्त्र तम्बू दस कनातों से बनाओ। इन कनातों को अच्छे रेशम तथा नीले, लाल और बैंगनी कपड़ों से बनाओ। किसी कुशल कारीगर को चाहिए कि वह करूबों को पंख सहित कनातों पर काढ़े। हर एक कनात को एक बराबर बनाओ। हर एक कनात चौदह गज़[r] लम्बी और दो गज[s] चौड़ी होनी चाहिए। सभी कनातों को दो भागों में सीओ। एक भाग में पाँच कनातों को एक साथ सीओ और दूसरे भाग में पाँच को एक साथ। आखिरी कनात के सिरे के नीचे छल्ले बनाओ। इन छल्लों को बनाने के लिए नीला कपड़ा उपयोग में लाओ। कनातों के दोनों भागों में एक ओर नीचे छल्ले होंगे। पहले भाग की आखिरी कनात में पचास छल्ले होंगे और दूसरे भाग की आखिरी कनात में पचास। तब पचास सोने के कड़े छल्लों को एक साथ मिलाने के लिए बनाओ। यह कनातों को इस प्रकार जोड़ेंगे कि पवित्र तम्बू एक ही हो जाएगा।”

“तब तुम दूसरा तम्बू बनाओगे जो पवित्र तम्बू को ढकेगा। इस तम्बू को बनाने के लिए बकरियों के बाल से बनी ग्यारह कनातों का उपयोग करो। ये सभी कनातें एक बराबर होनी चाहिए। वे पन्द्रह गज[t] लम्बी और दो गज चौड़ी होनी चाहिए। एक भाग में पाँच कनातों को एक साथ सीओ तब बाकी छः कनातों को दूसरे भाग में एक साथ सीओ। छठी कनात का उपयोग तम्बू के सामने के पर्दे के लिए करो। इसे इस प्रकार लपेटो कि यह द्वार की तरह खुले। 10 एक भाग की आखिरी कनात के सिरे पर पचास छल्ले बनाओ, ऐसा ही दूसरे भाग की आखिरी कनात के लिए करो। 11 तब पचास काँसे के कड़े बनाओ। इन काँसे के कड़ों का उपयोग छल्लों को एक साथ जोड़ने के लिए करो। ये कनातों को एक साथ तम्बू के रूप में जोड़ेंगे। 12 ये कनातें पवित्र तम्बू से अधिक लम्बी होंगी। इस प्रकार अन्त के कनात का आधा हिस्सा तम्बू के पीछे किनारों के नीचे लटका रहेगा।” 13 “वहाँ अट्ठारह इंच[u] कनात तम्बू के बगलों में निचले किनारों से लटकती रहेगी। यह तम्बू को पूरी तरह ढक लेगी। 14 बाहरी आवरण को ढकने के लिए दो अन्य पर्दे बनाओ। एक लाल रंगे मेढ़े के चमड़े से बनाना चाहिए तथा दूसरा पर्दा सुइसों के चमड़े का बना होना चाहिए।

15 “तम्बू के सहारे के लिए बबूल की लकड़ी के तख़्ते बनाओ। 16 तख्ते पन्द्रह फुट[v] लम्बे और सत्ताईस इंच चौड़े होने चाहिए। 17 हर तख़्ता एक जैसा होना चाहिए। हर एक तख़्ते के तले में[w] उन्हें जोड़ने के लिए साथ—साथ दो खूंटियाँ होनी चाहिए। 18 तम्बू के दक्षिणी भाग के लिए बीस तख़्ते बनाओ। 19 ढाँचे के ठीक नीचे चाँदी के दो आधार हर एक तख़्ते के लिए होने चाहिए। इसलिए तुम्हें तख़्तों के लिए चाँदी के चालीस आधार बनाने चाहिए। 20 तम्बू के (उत्तरी भाग) के लिए बीस तख़्ते और बनाओ। 21 इन तख़्तों के लिए भी चाँदी के चालीस आधार बनाओ, अर्थात् एक तख़्ते के लिए दो आधार। 22 तुम्हें तम्बू के (पश्चिमी छोर) के लिए छः और तख्ते बनाने चाहिए। 23 दो तख़्ते पिछले कोनों के लिए बनाओ। 24 कोने के दोनों तख़्ते एक साथ जोड़ देने चाहिए। तले में दोनों तख़्तों की खूँटियाँ चाँदी के एक ही आधार में लगेंगी और ऊपर धातु का एक छल्ला दोनों तख़्तों को एक साथ रखेगा। 25 इस प्रकार सब मिलाकर आठ तख्ते तम्बू के सिरे के लिए होंगे और हर तख़्ते के नीचे दो आधारों के होने से सोलह चाँदी के आधार पश्चिमी छोर के लिए होंगे।”

26 “बबूल की लकड़ी का उपयोग करो और तम्बू के तख़्तों के लिए कुण्डियाँ बनाओ। तम्बू के पहले भाग के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी। 27 और तम्बू के दूसरे भाग के ढाँचे के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी। और तम्बू के (पश्चिमी भाग) के ढाँचे के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी अर्थात् तम्बू के पीछे। 28 पाँचों कुण्डियों के बीच की कुण्डी तख़्तों के मध्य में होनी चाहिए। यह कुण्डी तख़्तों के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचनी चाहिए।[x]

29 “तख़्तों को सोने से मढ़ो और तख़्तों की कुण्डियों को फँसाने के लिए कड़े बनवाओ। ये कड़े भी सोने के ही बनने चाहिए। कुण्डियों को भी सोने से मढ़ो। 30 पवित्र तम्बू को तुम उसी ढंग की बनाओ जैसा मैंने तुम्हें पर्वत पर दिखाया था।

पवित्र तम्बू का भीतरी भाग

31 “सन के अच्छे रेशों का उपयोग करो और तम्बू के भीतरी भाग के लिए एक विशेष पर्दा बनाओ। इस पर्दे को नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े से बनाओ। करूब के प्रतिरूप कपड़े में काढ़ो। 32 बबूल की लकड़ी के चार खम्भे बनाओ। चारों खम्भों पर सोने की बनी खूँटियाँ लगाओ। खम्भों को सोने से मढ़ दो। खम्भों के नीचे चाँदी के चार आधार रखो। तब सोने की खूँटियों में पर्दा लटकाओ। 33 खूँटियों पर पर्दे को लटकाने के बाद, साक्षीपत्र के सन्दूक को पर्दे के पीछे रखो। यह पर्दा पवित्र स्थान को सर्वाधिक पवित्र स्थान से अलग करेगा। 34 सर्वाधिक पवित्र स्थान में साक्षीपत्र के सन्दूक पर ढक्कन रखो।

35 “पवित्र स्थान में पर्दे के दूसरी ओर विशेष मेज़ को रखो। मेज़ तम्बू के उत्तर में होनी चाहिए। तब दीपाधार को तम्बू के दक्षिण में रखो। दीपाधार मेज़ के ठीक सामने होगा।

पवित्र तम्बू का मुख्य द्वार

36 “तब तम्बू के मुख्य द्वार के लिए एक पर्दा बनाओ। इस पर्दे को बनाने के लिए नीले बैंगनी, लाल कपड़े तथा सन के उत्तम रेशों का उपयोग करो और कपड़े में चित्रों की कढ़ाई करो। 37 द्वार के इस पर्दे के लिए सोने के छल्ले बनावाओ। सोने से मढ़े बबूल की लकड़ी के पाँच खम्भे बनाओ और पाँचों खम्भों के लिए काँसे के पाँच आधार बनाओ।”

भेंट जलाने के लिए वेदी

27 यहोवा ने मूसा से कहा, “बबूल की लकड़ी का उपयोग करो और एक वेदी बनाओ। वेदी वर्गाकार होनी चाहिए। यह साढ़े सात फुट[y] लम्बी साढ़े सात फुट चौड़ी और साढ़े चार फुट[z] ऊँची होनी चाहिए। वेदी के चारों कोनों पर सींग बनाओ। हर एक सींग को इसके कोनों से ऐसे जोड़ो कि सभी एक हो जाएं तब वेदी को काँसे से मढ़ो।

“वेदी पर काम आने वाले सभी उपकरणों और तश्तरियों को काँसे का बनाओ। काँसे के बर्तन, पल्टे, कटोरे, काँटे और तसले बनाओ। ये वेदी से राख को निकालने में काम आएंगे। जाल के जैसी काँसे की एक बड़ी जाली बनाओ। जाली के चारों कोनों पर काँसे के कड़े बनाओ। जाली को वेदी की परत के नीचे रखो। जाली वेदी के भीतर बीच तक रहेगी।

“वेदी के लिए बबूल की लकड़ी के बल्ले बनाओ और उन्हें काँसे से मढ़ो। वेदी के दोनों ओर लगे कड़ो में इन बल्लों को डालो। इन बल्लों को वेदी को ले जाने के लिए काम में लो। वेदी भीतर से खोखली रहेगी और इसकी अगल—बगल तख्तों की बनी होगी। वेदी वैसी ही बनाओ जैसी मैंने तुमको पर्वत पर दिखाई थी।

पवित्र तम्बू का आँगन

“तम्बू के चारों ओर कनातों की एक दीवार बनाओ। यह तम्बू के लिए एक आँगन बनाएगी। दक्षिण की ओर कनातों की यह दीवार पचास गज[aa] लम्बी होनी चाहिए। ये कनातें सन के उत्तम रेशों से बनी होनी चाहिए। 10 बीस खम्भों और उनके नीचे बीस काँसे के आधारों का उपयोग करो। खम्भों के छल्ले और पर्दे की छड़ें[ab] चाँदी की बननी चाहिए। 11 उत्तर की ओर लम्बाई उतनी ही होनी चाहिए जितनी दक्षिण की ओर थी। इसमें पचास गज़ लम्बी पर्दो की दीवार, बीस खम्भे और बीस काँसे के आधार होने चाहिए। खम्भे और उनके पर्दो की छड़ों के छल्ले चाँदी के बनने चाहिए।”

12 “आँगन के पश्चिमी सिरे पर कनातों की एक दीवार पच्चीस गज लम्बी होनी चाहिए। वहाँ उस दीवार के साथ दस खम्भे और दस आधार होने चाहिए। 13 आँगन का पूर्वी सिरा भी पच्चीस गज लम्बा होना चाहिए। 14 यह पूर्वी सिरा आँगन का प्रवेश द्वार है। 15 प्रवेश द्वार की हर एक ओर की कनातें साढ़े सात गज लम्बी होनी चाहिए। उस ओर तीन खम्भे और तीन आधार होने चाहिए।”

16 “एक कनात दस गज[ac] लम्बी आँगन के प्रवेश द्वार को ढ़कने के लिए बनाओ। इस कनात को सन के उत्तम रेशों और नीले, लाल और बैंगनी कपड़े से बनाओ। इन कनातों पर चित्रों को काढ़ो। उस पर्दे के लिए चार खम्भे और चार आधार होने चाहिए। 17 आँगन के चारों ओर के सभी खम्भे चाँदी की छड़ों से ही जोड़े जाने चाहिए।[ad] खम्भों के छल्ले चाँदी के बनाने चाहिए और खम्भों के आधार काँसे के होने चाहिए। 18 आँगन पचास गज लम्बा और पच्चीस गज[ae] चौड़ा होना चाहिए। आँगन के चारों ओर की दीवार साढ़े सात फुट ऊँची होनी चाहिए। पर्दा सन के उत्तम रेशों का बना होना चाहिए। सभी खम्भों के नीचे के आधार काँसे के होने चाहिए। 19 सभी उपकरण, तम्बू की खूँटियाँ और तम्बू में लगी हर एक चीज़ काँसे की ही बननी चाहिए। और आँगन के चारों ओर के पर्दो के लिए खूँटियाँ काँसे की ही होनी चाहिए।

दीपक के लिए तेल

20 “इस्राएल के लोगों को सर्वोत्तम जैतून का तेल लाने का आदेश दो। इस तेल का उपयोग हर एक सन्ध्या को जलने वाले दीपक के लिए करो। 21 हारून और उसके पुत्र प्रकाश का प्रबन्ध करने का कार्य संभालेंगे। वे मिलापवाले तम्बू के पहले कमरे में जाएंगे। यह कमरा साक्षीपत्र के सन्दूक वाले कमरे के बाहर उस पर्दे के सामने है जो दोनों कमरों को अलग करता है। वे इसका ध्यान रखेंगे कि इस स्थान पर यहोवा के सामने दीपक सन्ध्या से प्रातः तक लगातार जलते रहेंगे। इस्राएल के लोग और उनके वंशज इस नियम का पालन सदैव करेंगे।”

याजकों के वस्त्र

28 “अपने भाई हारून और उसके पुत्रों नादाब, अबीहू, एलिआजार और ईतामर को इस्राएल के लोगों में से अपने पास आने को कहो। ये व्यक्ति मेरी सेवा, याजक के रूप में करेंगे।” “अपने भाई हारून के लिए विशेष वस्त्र बनाओ। ये वस्त्र उसे आदर और गौरव देंगे। लोगों में ऐसे कुशल कारीगर हैं जो ये वस्त्र बना सकते हैं। मैंने इन व्यक्तियों को विशेष बुद्धि दी है। उन लोगों से हारून के लिए वस्त्र बनाने को कहो। ये वस्त्र बताएंगे कि वह मेरी सेवा विशेष रूप से करता है। तब वह मेरी सेवा याजक के रूप में कर सकता है। कारीगरों को इन वस्त्त्रों को बनाना चाहिए न्याय का थैला एपोद बिना बाँह की विशेष एपोद एक नीले रंग का लबादा, एक सफेद बुना चोगा, सिर को ढकने के लिए एक साफा और एक पटुका लोगों को ये विशेष वस्त्र तुम्हारे भाई हारून और उसके पुत्रों के लिए बनवाने चाहिए तब हारू न और अस के पुत्र मेरी सेवा याजक के रूप में कर सकते हैं। लोगों से कहो कि वे सुनहरे धागों, सन के उत्तम रेशों तथा नीले, लाल और बैंगनी कपड़े उपयोग में लाएं।

एपोद और पटुका

“एपोद बनाने के लिए सुनहरे धागे, सन के उत्तम रेशों तथा नीले, लाल और बैंगनी कपड़े का उपयोग करो। इस विशेष एपोद को कुशल कारीगर बनाएंगे। एपोद के हर एक कंधे पर पट्टी लगी होगी। कंधे की ये पट्टियाँ एपोद के दोनों कोनों पर बंधी होंगी।

“कारीगर बड़ी सावधानी से एपोद पर बाँधने के लिए एक पटुका बुनेंगे। (यह पटुका उन्हीं चीज़ों की होगी जिनका एपोद, सुनहरे धागे, सन के उत्तम रेशों और बैंगनी कपड़े।)

“तुम्हें दो गोमेदक रत्न लेने चाहिए। इन नगों पर इस्राएल के बारह पुत्रों के नाम खोदो। 10 छः नाम एक नग पर और छः नाम दूसरे नग पर। नामों को सबसे बड़े से सबसे छोटे के क्रम में लिखो। 11 इस्राएल के पुत्रों के नामों को इन नगों पर खुदवाओ। यह उसी प्रकार करो जिस प्रकार वह व्यक्ति जो मुहरें बनाता है, शब्द और चित्रों को खोदता है। नग के चारों ओर सोना लगाओ जिससे उन्हें एपोद के कंधो पर टाँका जा सके। 12 तब एपोद के हर एक कंधे की पट्टी पर इन दोनों नगों को जड़ो। हारून यहोवा के सम्मुख जब खड़ा होगा, इस विशेष एपोद को पहनेगा और इस्राएल के पुत्रों के नाम वाले दोनों नग एपोद पर होंगे। यह इस्राएल के लोगों को याद रखने में यहोवा की सहायता करेगा। 13 अच्छा सोना ही नगों को एपोद पर ढाँकने के लिए उपयोग में लाओ। 14 रस्सी की तरह एक में शुद्ध सोने की जंजीरें बटो। सोने की ऐसी दो जंजीरें बनाओ और सोने के जड़ाव के साथ इन्हें बांधो।”

सीनाबन्द

15 “महायाजक के लिए सीनाबन्द बनाओ। कुशल कारीगर इस सीनाबन्द को वैसे ही बनाएं जैसे एपोद को बनाया। वे सुनहरे धागे, सन के उत्तम रेशों तथा नीले, लाल और बैंगनी कपड़े का उपयोग करें। 16 सीनाबन्द नौ इंच लम्बा और नौ इंच[af] चौड़ा होना चाहिए। चौकोर जेब बनाने के लिए इसकी दो तह करनी चाहिए। 17 सीनाबन्द पर सुन्दर रत्नों की चार पक्तियाँ जड़ो। रत्नों की पहली पंक्ति में एक लाल, एक पुखराज और एक मर्कत मणि होनी चाहिए। 18 दूसरी पंक्ति में फिरोजा, नीलम तथा पन्ना होना चाहिए। 19 तीसरी पंक्ति मे धुम्रकान्त, अकीक और याकूत लगना चाहिए। 20 चौथी पंक्ति में लहसुनिया, गोमेदक रत्न और कपिश मणि लगानी चाहिए। सीनाबन्द पर इन्हें लगाने के लिए उन्हें सोने मे जड़ो। 21 सीनाबन्द पर बारह रत्न होंगे जो इस्राएल के बारह पुत्रों का एक प्रतिनिधित्व करेंगे। हर एक नग पर इस्राएल के पुत्रों[ag] में से एक—एक का नाम लिखो। मुहर की तरह हर एक नग पर इन नामों को खोदो।

22 “सीनाबन्द के चारों ओर जाती हुई सोने की जंजीरें बनाओ। ये जंजीर बटी हुई रस्सी की तरह होगी। 23 दो सोने के छल्ले बनाओ और इन्हें सीनाबन्द के दोनों कोनों पर लगाओ। 24 (दोनों सुनहरी जंजीरों को सीनाबन्द में दोनों में लगे छल्लों में डालो।) 25 सोने की जंजीरों के दूसरे सिरों को कंधे की पट्टियों पर के जड़ाव में लगाओ। जिससे वे एपोद के साथ सोने पर कसे रहें। 26 दो अन्य सोने के छल्ले बनाओ और उन्हें सीनाबन्द के दूसरे दोनों कोनों पर लगाओ। इस सीनाबन्द का भीतरी भाग एपोद के समीप होगा। 27 दो और सोने के छल्ले बनाओ और उन्हें कंधे की पट्टी के तले एपोद के सामने लगाओ। सोने के छल्लों को एपोद की पेटी के समीप ऊपर के स्थान पर लगाओ। 28 सीनाबन्द के छल्लों को एपोद के छल्लों से जोड़ो। उन्हें पेटी से एक साथ जोड़ने के लिए नीली पट्टियों का उपयोग करो। इस प्रकार सीनाबन्द एपोद से अलग नहीं होगा।

29 “हारून जब पवित्र स्थान में प्रवेश करे तो उसे इस सीनाबन्द को पहने रहना चाहिए। इस प्रकार इस्राएल के बारहों पुत्रों के नाम उसके मन में रहेंगे और यहोवा को सदा ही उन लोगों की याद दिलाई जाती रहेगी। 30 ऊरीम और तुम्मीम को सीनाबन्द में रखो। हारून जब यहोवा के सामने जाएगा तब ये सभी चीज़ें उसे याद होंगी। इसलिए हारून जब यहोवा के सामने होगा तब वह इस्राएल के लोगों का न्याय करने का साधन सदा अपने साथ रखेगा।”

याजक के अन्य वस्त्र

31 “एपोद के नीचे पहनने के लिए एक चोगा बनाओ। चोगा केवल नीले कपड़े का बनाओ। 32 सिर के लिए इस कपड़े के बीचोबीच एक छेद बनाओ। इस छेद के चारों ओर गोट लगाओ जिससे यह फटे नहीं। 33 नीले, लाल और बैंगनी कपड़े के फुँदन बनाओ जो अनार के आकार के हों। इन अनारों को चोगे के निचले सिरे में लटकाओ और उनके बीच सोने की घंटियाँ लटकाओ। 34 इस प्रकार चोगे के निचले सिरे के चारों ओर क्रमशः एक अनार और एक सोने की घंटी होगी। 35 हारून तब इस चोगे को पहनेगा जब वह याजक के रूप में सेवा करेगा और यहोवा के सामने पवित्र स्थान में जाएगा। जब वह पवित्र स्थान में प्रवेश करेगा और वहाँ से निकलेगा तब ये घंटियाँ बजेंगी। इस प्रकार हारून मरेगा नहीं।[ah]

36 “शुद्ध सोने का एक पतरा बनाओ। सोने में मुहर की तरह शब्द लिखो। ये शब्द लिखो: यहोवा के लिए पवित्र 37 सोने के इस पतरे को उस पगड़ी पर लगाओ जो सिर को ढकने के लिए पहनी गयी है। उस पगड़ी से सोने के पतरे को बाँधने के लिए नीले कपड़े की पट्टी का उपयोग करो। 38 हारून यह दर्शाने के लिए इसे अपने ललाट पर पहनेगा कि इस्राएल के लोगों ने अपने अपराधों के लिए जो पवित्र भेंटे यहोवा को अर्पित की हैं उनके अपराधों को प्रतीक रूप में हारून वहन कर रहा है। हारून जब भी यहोवा के सामने जाएगा ये सदा पहने रहेगा, ताकि यहोवा उन्हें स्वीकार कर ले।

39 “लबादा बनाने के लिए सन के उत्तम रेशों को उपयोग में लाओ और उस कपड़े को बनाने के लिए भी सन के उत्तर रेशों को उपयोग में लाओ जो सिर को ढ़कता है, इसमें कढ़ाई कढ़ी होनी चाहिए। 40 लबादा, पटुका और पगड़ियाँ हारून के पुत्रों के लिए भी बनाओ ये उन्हें गौरव तथा आदर देंगे। 41 ये पोशाक अपने भाई हारून और उसके पुत्रों को पहनाओ। उसके बाद जैतून का तेल उनके सिर पर यह दिखाने के लिए डालो कि वे याजक हैं, यह उन्हें पवित्र बनायेगा। तब वे मेरी सेवा याजक के रूप में करेंगे।

42 “उन के वस्त्रों को बनाने के लिए सन के उत्तम रेशों का उपयोग करो जो विशेष याजक के वस्त्रों के नीचे पहनने के लिए होंगे। ये अधोवस्त्र कमर से जाँघ तक पहने जाएंगे। 43 हारून और उसके पुत्रों को इन वस्त्रों को ही पहनना चाहिए जब कभी वे मिलापवाले तम्बू में जाएं। उन्हें इन्हीं वस्त्रों को पहनना चाहिए जब कभी वे पवित्र स्थान में याजक के रूप में सेवा के लिए वेदी के समीप आएं। यदि वे इन पोशाकों को नहीं पहनेंगे, तो वे अपराध करेंगे और उन्हें मरना होगा। यह ऐसा नियम होना चाहिए जो हारून और उसके बाद उसके वंश के लोगों के लिए सदा के लिए बना रहेगा।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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