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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
न्यायियों 15:13 - 1 शमूएल 2:29

13 तब यहूदा के व्यक्तियों ने कहा, “हम स्वीकार करते हैं। हम लोग केवल तुमको बांधेंगे और तुम्हें पलिश्ती लोगों को दे देंगे। हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम तुमको जान से नहीं मारेंगे।” अत: उन्होंने शिमशोन को दो नयी रस्सियों से बांधा। वे उसे चट्टान की गुफा से बाहर ले गए।

14 जब शिमशोन लही नामक स्थान पर पहुँचा तो पलिश्ती लोग उससे मिलने आए। वे प्रसन्नता से शोर मचा रहे थे। तब यहोवा की आत्मा बड़ी शक्ति से शिमशोन में आई। उसके ऊपर की रस्सियाँ ऐसी कमज़ोर हो गई जैसे मानो वे जल गई हों। रस्सियाँ उसके हाथों से ऐसे गिरीं मानो वे गल गई हो। 15 शिमशोन को उस गधे के जबड़े की हड्डी मिली जो मरा पड़ा था। उसने जबड़े की हड्डी ली और उससे एक हज़ार पलिश्ती लोगों को मार डाला।

16 तब शिमशोन ने कहा,

“एक गधे के जबड़े की हड्डी से मैंने ढेर किया है
    उनका—एक बहुत ऊँचा ढेर।
एक गधे के जबड़े की हड्डी से मैंने मार डाला है
    हज़ार व्यक्तियों को!”

17 जब शिमशोन ने बोलना समाप्त किया तब उसने जबड़े की हड्डी को फेंक दिया। इसलिए उस स्थान का नाम रामत लही पड़ा।

18 शिमशोन को बहुत प्यास लगी थी। इसलिए उसने यहोवा को पुकारा। उसने कहा, “मैं तेरा सेवक हूँ। तूने मुझे यह बड़ी विजय दी है। क्या अब मुझे प्यास से मरना पड़ेगा? क्या मुझे उनसे पकड़ा जाना होगा जिनका खतना नहीं हुआ है?”

19 लही में भूमि के अन्दर एक गका है। परमेंश्वर ने उस गके को फट जाने दिया और पानी बाहर आ गया। शिमशोन ने पानी पीया और अपने को स्वस्थ अनुभव किया। उसने फिर अपने को शक्तिशाली अनुभव किया। इसलिए उसने उस पानी के सोते का नाम एनहक्कोरे रखा। यह अब तक आज भी लही नगर में है।

20 इस प्रकार शिमशोन इस्राएल के लोगों का न्यायाधीश बीस वर्ष तक रहा। वह पलिश्ती लोगों के समय में था।

शिमशोन अज्जा नगर को जाता है

16 एक दिन शिमशोन अज्जा नगर को गया। उसने वहाँ एक वेश्या को देखा। वह उसके साथ रात बिताने के लिये अन्दर गया। किसी ने अज्जा के लोगों से कहा, “शिमशोन यहाँ आया है।” वे उसे जान से मार डालना चाहते थे। इसलिए उन्होंने नगर को घेर लिया। वे छिपे रहे और वे नगर—द्वार के पास छिप गये और सारी रात शिमशोन की प्रतीक्षा किया। वे पूरी रात एकदम चुप रहे। उनहोंने आपस में कहा, “जब सवेरा होगा, हम लोग शिमशोन को मार डालेंगे।”

किन्तु शिमशोन वेश्या के साथ आधी रात तक ही रहा। शिमशोन आधी रात में उठा और नगर के फाटक के किवाड़ों को पकड़ लिया और उसने उन्हें खींच कर दीवार से अलग कर दिया। शिमशोन ने किवाड़ों, दो खड़ी चौखटों और अबेड़ों को जो किवाड़ को बन्द करती थी, पकड़ कर अलग उखाड़ लिया। तब शिमशोन ने उन्हें अपने कंधों पर लिया और उस पहाड़ी की चोटी पर ले गया जो हेब्रोन नगर के समीप है।

शिमशोन और दलीला

इसके बाद शिमशोन दलीला नामक एक स्त्री से प्रेम करने लगा। वह सोरेक घाटी की थी।

पलिश्ती लोगों के शासक दलीला के पास गए। उन्होंने कहा, “हम जानना चाहते हैं कि शिमशोन उतना अधिक शक्तिशाली कैसे है? उसे फुसलाने की कोशिश करो कि वह अपनी गुप्त बात बता दे। तब हम लोग जान जाएंगे कि उसे कैसे पकड़ें और उसे कैसे बांधें। तब हम लोग उस पर नियन्त्रण कर सकते हैं। यदि तुम ऐसा करोगी तो हम में से हर एक तुमको एक हजार एक सौ शेकेल[a] देगा।”

अत: दलीला ने शिमशोन से कहा, “मुझे बताओ कि तुम इतने अधिक शक्तिशाली क्यों हो? तुम्हें कोई कैसे बाँध सकता है और तुम्हें कैसे असहाय कर सकता है?”

शिमशोन ने उत्तर दिया, “कोई व्यक्ति मुझे सात नयी धनुष की उन डोरियों से बांध सकता है जो अब तक सूखी न हों। यदि कोई ऐसा करेगा तो मैं अन्य आदमियों की तरह दुर्बल हो जाऊँगा।”

तब पलिश्ती के शासक सात नयी धनुष की डोरीयाँ दलीला के लिए लाए। वे डोरियाँ अब तक सूखी नहीं थीं। उसने शिमशोन को उससे बांध दिया। कुछ व्यक्ति दूसरे कमरे में छिपे थे। दलीला ने शिमशोन से कहा, “शिमशोन पलिश्ती के लोग तुम्हें पकड़ने आ रहे हैं।” किन्तु शिमशोन ने धनुष—डोरियों को सरलता से तोड़ दिया। वे दीपक से जली ताँत की राख की तरह टूट गई। इस प्रकार पलिश्ती के लोग शिमशोन की शक्ति का राज न पा सके।

10 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “तुमने मुझे बेवकूफ बनाया है। तुमने मुझसे झूठ बोला है। कृपया मुझे सच—सच बताओ कि तुम्हें कोई कैसे बांध सकता है।”

11 शिमशोन ने कहा, “कोई व्यक्ति मुझे नयी रस्सियों से बांध सकता है। वे मुझे उन रस्सियों से बांध सकते हैं जिनका उपयोग पहले न हुआ हो। यदि कोई ऐसा करेगा तो मैं इतना कमज़ोर हो जाऊँगा, जितना कोई अन्य व्यक्ति होता है।”

12 इसलिये दलीला ने कुछ नयी रस्सियाँ लीं और शिमोशन को बांध दिया। कुछ व्यक्ति अगले कमरे में छिपे थे। तब दलीला ने उसे आवाज दी, “शिमशोन, पलिश्ती लोग तुम्हें पकड़ने आ रहे हैं।” किन्तु उसने रस्सियों को सरलता से तोड़ दिया। उसने उन्हें धागे की तरह तोड़ डाला।

13 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “तुमने मुझे बेवकूफ बनाया है। तुमने मुझसे झूठ बोला है। अब तुम मुझे बताओ कि तुम्हें कोई कैसे बांध सकता है।”

उसने कहा, “यदि तुम उस करघे का उपयोग करो जो मेरे सिर के बालों के बटों को एक में बनाए और इसे एक काँटे से कस दे तो मैं इतना कमज़ोर हो जाऊँगा, जितना कोई अन्य व्यक्ति होता है।” तब शिमशोन सोने चला गया। इसलिए दलीला ने करघे का उपयोग उसके सिर के बालों के सात बट बुनने के लिये किया।

14 तब दलीला ने ज़मीन में खेमे की खूँटी गाड़कर, करघे को उससे बांध दिया। फिर उसने शिमशोन को आवाज़ दी, “शिमशोन, पलिश्ती के लोग तुम्हें पकड़ने जा रहे हैं।” शिमशोन ने खेमे की खूँटी करघा तथा ढरकी को उखाड़ दिया।

15 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “तुम मुझसे कैसे कह सकते हो, ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूँ,’ जबकि तुम मुझ पर विश्वास तक नहीं करते।[b] तुम अपना राज बताने से इन्कार करते हो। यह तीसरी बार तुमने मुझे बेवकूफ बनाया है। तुमने अपनी भीषण शक्ति का राज नहीं बताया है।” 16 वह शिमशोन को दिन पर दिन परेशान करती गई। उसके राज के बारे में उसके पूछने से वह इतना थक गया कि उसे लगा कि वह मरने जा रहा है। 17 इसलिये उसने दलीला को सब कुछ बता दिया। उसने कहा, “मैंने अपने बाल कभी कटवाये नहीं हैं। मैं जन्म के पहले विशेष रूप से परमेश्वर को समर्पित था। यदि कोई मेरे बालों को काट दे तो मेरी शक्ति चली जाएगी। मैं वैसा ही कमज़ोर हो जाऊँगा, जितना कोई अन्य व्यक्ति होता है।”

18 दलीला ने देखा कि शिमशोन ने अपने हृदय की सारी बात कह दी है। उसने पलिश्ती के लोगों के शासकों के पास दूत भेजा। उसने कहा, “फिर वापस लौटो। शिमशोन ने सब कुछ कह दिया है।” अत: पलिश्ती लोगों के शासक दलीला के पास लौटे। वे वह धन साथ लाए जो उन्होंने उसे देने की प्रतिज्ञा की थी।

19 दलीला ने शिमशोन को उस समय सो जाने दिया, जब वह उसकी गोद में सिर रख कर लेटा था। तब उसने एक व्यक्ति को अन्दर बुलाया और शिमशोन के बालों की सात लटों को कटवा दिया। इस प्रकार उसने उसे शक्तिहीन बना दिया। शिमशोन की शक्ति ने उसे छोड़ दिया। 20 तब दलीला ने उसे आवाज दी। “शिमशोन पलिश्ती के लोग तुमको पकड़ने जा रहे हैं।” वह जाग पड़ा और सोचा, “मैं पहले की तरह भाग निकलूँ और अपने को स्वतन्त्र रखूँ।” किन्तु शिमशोन को यह नहीं मालूम था कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया है।

21 पलिश्ती के लोगों ने शिमशोन को पकड़ लिया। उन्होंने उसकी आँखें निकाल लीं और उसे अज्जा नगर को ले गए। तब उसे भागने से रोकने के लिए उसके पैरों में उन्होंने बेड़ियाँ डाल दीं। उन्होंने उसे बन्दीगृह में डाल दिया तथा उससे चक्की चलवायी। 22 किन्तु शिमशोन के बाल फिर बढ़ने आरम्भ हो गए।

23 पलिश्ती लोगों के शासक उत्सव मनाने के लिए एक स्थान पर इकट्ठे हुए। वे अपने देवता दागोन को एक बड़ी भेंट चढ़ाने जा रहे थे। उन्होंने कहा, “हम लोगों के देवता ने हमारे शत्रु शिमशोन को हराने में सहायता की है।” 24 जब पलिश्ती लोगों ने शिमशोन को देखा तब उन्होंने अपने देवता की प्रशंशा की। उन्होंने कहा,

“इस व्यक्ति ने हमारे लोगों को नष्ट किया!
    इस व्यक्ति ने हमारे अनेक लोगों को मारा!
किन्तु हमारे देवता ने हमारे शत्रु को पकड़वाने में
    हमारी मदद की!”

25 लोग उत्सव में खुशी मना रहे थे। इसलिए उन्होंने कहा, “शिमशोन को बाहर लाओ। हम उसका मजाक उड़ाना चाहते हैं।” इसलिए वे शिमशोन को बन्दीगृह से बाहर ले आए और उसका मजाक उड़ाया। उन्होंने शिमशोन को दागोन देवता के मन्दिर के स्तम्भों के बीच खड़ा किया। 26 एक नौकर शिमशोन का हाथ पकड़ा हुआ था। शिमशोन ने उससे कहा, “मुझे वहाँ रखो जहाँ मैं उन स्तम्भों को छू सकूँ, जो इस मन्दिर को ऊपर रोके हुए हैं। मैं उनका सहारा लेना चाहता हूँ।”

27 मन्दिर में स्त्री—पुरूषों की अपार भीड़ थी। पलिश्ती लोगों के सभी शासक वहाँ थे। वहाँ लगभग तीन हज़ार स्त्री—पुरूष मन्दिर की छत पर थे। वे हँस रहे थे और शिमशोन का मज़ाक उड़ा रहे थे। 28 तब शिमशोन ने यहोवा से प्रार्थना की। उसने कहा, “सर्वशक्तिमान यहोवा, मुझे याद कर। परमेश्वर मुझे कृपा कर केवल एक बार और शक्ति दे। मुझे केवल एक यह काम करने दे कि पलिश्तियों को अपनी आँखों के निकालने का बदला चुका दूँ।” 29 तब शिमशोन ने मन्दिर के केन्द्र के दोनों स्तम्भों को पकड़ा। ये दोनों स्तम्भ पूरे मन्दिर को टिकाए हुए थे। उसने दोनों स्तम्भों के बीच में अपने को जमाया। एक स्तम्भ उसकी दांयी ओर तथा दूसरा उसकी बाँयीं ओर था। 30 शिमशोन ने कहा, “इन पलिश्सतों के साथ मुझें मरने दे।” तब उसने अपनी पूरी शक्ति से स्तम्भों को ठेला और मन्दिर शासकों तथा इनमें आए लोगों पर गिर पड़ा। इस प्रकार शिमशोन ने अपने जीवन काल में जितने पलिश्ती लोगों को मारा, उससे कहीं अधिक लोगों को उसने तब मारा, जब वह मरा।

31 शिमशोन के भाईयों और उसके पिता का पूरा परिवार उसके शरीर को लेने गए। वे उसे वापस लाए और उसे उसके पिता मानोह के कब्र में दफनाया। यह कब्र सोरा और एश्ताओल नगरों के बीच है। शिमशोन इस्राएल के लोगों का न्यायाधीश बीस वर्ष तक रहा।

मीका की मूर्तियाँ

17 मीका नामक एक व्यक्ति था जो एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में रहता था। मीका ने अपनी माँ से कहा, “क्या तुम्हें चाँदी के ग्यारह सौ सिक्के याद हैं जो तुमसे चुरा लिये गए थे। मैंने तुम्हें उसके बारे में शाप देते सुना। वह चाँदी मेरे पास है। मैंने उसे लिया है।”

उसकी माँ ने कहा, “मेरे पुत्र, तुम्हें यहोवा आशीर्वाद दे।”

मीका ने अपनी माँ को ग्यारह सौ सिक्के वापस दिये। तब उसने कहा, “मैं ये सिक्के यहोवा को एक विशेष भेंट के रूप में दूँगी। मैं यह चाँदी अपने पुत्र को दूँगी और वह एक मूर्ती बनाएगा और उसे चाँदी से ढक देगा। इसलिए पुत्र, अब यह चाँदी मैं तुम्हें लौटाती हूँ।”

लेकिन मीका ने वह चाँदी अपनी माँ को लौटा दी। अत: उसने दो सौ शेकेल चाँदी लिये और एक सुनार को दे दिया। सुनार ने चाँदी का उपयोग चाँदी से ढकी एक मूर्ति बनाने में किया। मूर्ति मीका के घर में रखी गई। मीका का एक मन्दिर मूर्तियों की पूजा के लिये था। उसने एक एपोद और कुछ घरेलू मूर्तियाँ बनाईं। तब मीका ने अपने पुत्रों में से एक को अपना याजक चुना। (उस समय इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था। इसलिए हर एक व्यक्ति वह करता था जो उसे ठीक जचता था।)

एक लेवीवंशी युवक था। वह यहूदा प्रदेश में बेतलेहेम नगर का निवासी था। वह यहूदा के परिवार समूह में रह रहा था। उस युवक ने यहूदा में बेतलेहेम को छोड़ दिया। वह रहने के लिये दूसरी जगह ढूँढ रहा था। जब वह यात्रा कर रहा था, वह मीका के घर आया। मीका का घर एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में था। मीका ने उससे पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?”

युवक ने उत्तर दिया, “मैं उस बेतेलेहम नगर का लेवीवंशी हूँ जो यहूदा प्रदेश में है। मैं रहने के लिये स्थान ढूँढ रहा हूँ।”

10 तब मीका ने उससे कहा, “मेरे साथ रहो। मेरे पिता और मेरे याजक बनो। मैं हर वर्ष तुम्हें दस चाँदी के सिक्के दूँगा। मैं तुम्हें वस्त्र और भोजन भी दूँगा।”

लेवीवंशी ने वह किया जो मीका ने कहा। 11 लेवीवंशी युवक मीका के साथ रहने को तैयार हो गया। युवक मीका के पुत्रों के जैसा हो गया। 12 मीका ने युवक को अपना याजक बनाया। इस प्रकार युवक याजक बन गया और मीका के घर में रहने लगा। 13 मीका ने कहा, “अब मैं समझता हूँ कि यहोवा मेरे प्रति अच्छा होगा। मैं यह इसलिए जानता हूँ कि मैंने लेवीवंशी के परिवार के एक व्यक्ति को याजक रखा है।”

दान लैश नगर पर अधिकार करता है

18 उस समय इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था और उस समय दान का परिवार समूह, अपना कहे जाने योग्य रहने के लिये भूमि की खोज में था। इस्राएल के अन्य परिवार समूहों ने पहले ही अपनी भूमि प्राप्त कर ली थी। किन्तु दान का परिवार समूह अभी अपनी भूमि नहीं पा सका था।

इसलिए दान के परिवार समूह ने पाँच सैनिकों को कुछ भूमि खोजने के लिये भेजा। वे रहने के लिये अच्छा स्थान खोजने गए। वे पाँचों व्यक्ति जोरा और एश्ताओल नगरों के थे। वे इसलिए चुने गए थे कि वे दान के सभी परिवार समूह में से थे। उनसे कहा गया था, “जाओ और किसी भूमि की खोज करो।”

पाँचों व्यक्ति एप्रैम प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में आए। वे मीका के घर आए और वहीं रात बिताई। जब पाँचों व्यक्ति मीका के घर के समीप आए तो उन्होंने लेवीवंश के परिवार समूह के युवक की आवाज सुनी। उन्होंने उसकी आवाज पहचानी, इसीलिये वे मीका के घर ठहर गए। उन्होंने लेवीवंशी युवक से पूछा, “तुम्हें इस स्थान पर कौन लाया है? तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम्हारा यहाँ क्या काम है?”

उसने उनसे कहा, “मीका ने मेरी नियुक्ति की है। मैं उसका याजक हूँ।”

उन्होंने उससे कहा, “कृपया परमेश्वर से हम लोगों के लिये कुछ मांगो। हम लोग कुछ जानना चाहते हैं। क्या हमारे रहने के लिये भूमि की खोज सफल होगी?”

याजक ने पाँचों व्यक्तियों से कहा, “शान्ति से जाओ। यहोवा तुम्हारा मार्ग दर्शन करेगा।”

इसलिए पाँचों व्यक्ति वहाँ से चले। वे लैश नगर को आए। उन्होंने देखा कि उस नगर के लोग सुरक्षित[c] रहते हैं। उन पर सीदोन के लोगों का शासन था। सीदोन भूमध्यसागर के तट पर एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली नगर था। वे शान्ति और सुरक्षा के साथ रहते थे। लोगों के पास हर एक चीज़ बहुत अधिक थी और उन पर प्रहार करने वाला पास में कोई शत्रु नहीं था और वे सीदोन नगर के लोगों से बहुत अधिक दूर रहते थे और अरामके लोगों से भी उनका कोई व्यापार नहीं था।[d]

पाँचों व्यक्ति सोरा और एश्ताओल नगर को वापस लौटे। उनके सम्बन्धियों ने पूछा, “तुमने क्या पता लगाया?”

पाँचों व्यक्तियों ने उत्तर दिया, “हम लोगों ने प्रदेश देखा है और वह बहुत अच्छा है। हमें उन पर आक्रमण करना चाहिये। प्रतीक्षा न करो। हम चलें और उस प्रदेश को ले लें। 10 जब तुम उस प्रदेश में चलोगे तो देखोगे कि वहाँ पर बहुत अधिक भूमि है। वहाँ सब कुछ बहुत अधिक है। तुम यह भी पाओगे कि वहाँ के लोगों को आक्रमण की आशंका नहीं है। निश्चय ही परमेश्वर ने वह प्रदेश हमको दिया है।”

11 इसलिए दान के परिवार समूह के छ: सौ व्यक्तियों ने सोरा और एश्ताओल के नगरों को छोड़ा। वे युद्ध के लिये तैयार थे। 12 लैश नगर की यात्रा करते समय वे यहूदा प्रदेश में किर्य्यत्यारीम नगर में रूके। उन्होंने वहाँ डेरा डाला। यही कारण है किर्य्यत्यारीम के पश्चिम का प्रदेश आज तक महनेदान कहा जाता है। 13 उस स्थान से छ: सौ व्यक्तियों ने एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश की यात्रा की। वे मीका के घर आए।

14 तब उन पाँचों व्यक्तियों ने जिन्होंने लैश की खोज की थी, अपने भाईयों से कहा, “क्या तुम्हें मालूम है कि इन घरों में से एक में एपोद, अन्य घरेलू देवता, एक खुदाईवाली मूर्ति तथा एक ढाली गई मूर्ति है? अब तुम समझते हो कि तुम्हें क्या करना है। जाओ और उन्हें ले आओ।” 15 इसलिये वे मीका के घर रूके जहाँ लेवीवंशी युवक रहता था। उन्होंने युवक से पूछा कि वह प्रसन्न है। 16 दान के परिवार समूह के छ: सौ लोग फाटक के द्वार पर खड़े रहे। उनके पास सभी हथियार थे तथा वे युद्ध के लिये तैयार थे। 17-18 पाँचों गुप्तचर घर में गए। उन्होंने खुदाई वाली मूर्ति, एपोद, घरेलू मूर्तियों और ढाली गई मूर्ति को लिया। जब वे ऐसा कर रहे थे तब लेवीवंशी युवक याजक और युद्ध के लिये तैयार छः सौ व्यक्ति फाटक के द्वार के साथ खड़े थे। लेवीवंशी युवक याजक ने उनसे पूछा, “तुम क्या कर रहे हो?”

19 पाँचों व्यक्तियों ने कहा, “चुप रहो, एक शब्द भी न बोलो। हम लोगों के साथ चलो। हमारे पिता और याजक बनो। तुम्हें स्वयं चुनना चाहिये कि तुम किसे अधिक अच्छा समझते हो? क्या यह तुम्हारे लिये अधिक अच्छा है कि तुम एक व्यक्ति के याजक रहो? या उससे कहीं अधिक अच्छा यह है कि तुम इस्राएल के लोगों के एक पूरे परिवार समूह के याजक बनो?”

20 इससे लेवीवंशी प्रसन्न हुआ। इसलिये उसने एपोद, घरेलू मूर्तियों तथा खुदाई वाली मूर्ति को लिया। वह दान के परिवार समूह के उन लोगों के साथ गया।

21 तब दान परिवार समूह के छ: सौ व्यक्ति लेवीवंशी के साथ मुड़े और उन्होंने मीका के घर को छोड़ा। उन्होंने अपने छोटे बच्चों, जानवरों और अपनी सभी चीज़ों को अपने सामने रखा।

22 दान के परिवार समूह के लोग उस स्थान से बुहत दूर गए और तब मीका के पास रहने वाले लोग चिल्लाने लगे। तब उन्होंने दान के लोगों का पीछा किया और उन्हें जा पकड़ा। 23 मीका के लोग दान के लोगों पर बरस पड़ रहे थे। दान के लोग मुड़े। उन्होंने मीका से कहा, “समस्या क्या है? तुम चिल्ला क्यों रहे हो?”

24 मीका ने उत्तर दिया, “दान के तुम लोग, तुमने मेरी मूर्तियाँ ली है। मैंने उन मूर्तियों को अपने लिये बनाया है। तुमने हमारे याजक को भी ले लिया है। तुमने छोड़ा ही क्या है? तुम मुझे कैसे पूछ सकते हो, ‘समस्या क्या है?’”

25 दान के परिवार समूह के लोगों ने उत्तर दिया, “अच्छा होता, तुम हमसे बहस न करते। हममें से कुछ व्यक्ति गर्म स्वभाव के हैं। यदि तुम हम पर चिल्लाओगे तो वे गर्म स्वाभाव वाले लोग तुम पर प्रहार कर सकेत हैं। तुम और तुम्हारा परिवार मार डाला जा सकता है।”

26 तब दान के लोग मुड़े और अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए। मीका जानता था कि वे लोग उसके लिये बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। इसलिए वह घर लौट गया।

27 इस प्रकार दान के लोगों ने वे मूर्तियाँ ले लीं जो मीका ने बनाई थीं। उन्होंने मीका के साथ रहने वाले याजक को भी ले लिया। तब वे लैश पहुँचे। उन्होंने लैश में शान्तिपूर्वक रहने वाले लोगों पर आक्रमण किया। लैश के लोगों को आक्रमण की आशंका नहीं थी। दान के लोगों ने उन्हें अपनी तलवारों के घाट उतारा। तब उन्होंने नगर को जला डाला। 28 लैश में रहने वालों की रक्षा करने वाला कोई नहीं था। वे सीदोन के नगर से इतने अधिक दूर थे कि वे लोग इनकी सहायता नहीं कर सकते थे और लैश के लोग अराम के लोगों से कोई व्यवहारिक सम्बन्ध नहीं रखते थे। लैश नगर बेत्रहोब प्रदेश के अधिकार में एक घाटी में था। दान के लोगों ने उस स्थान पर एक नया नगर बसाया और वह नगर उनका निवास स्थान बना। 29 दान के लोगों ने लैश नगर का नया नाम रखा। उन्होंने उस नगर का नाम दान रखा। उन्होंने अपने पूर्वज दान के नाम पर नगर का नाम रखा। दान इस्राएल नामक व्यक्ति का पुत्र था। पुराने समय में इस नगर का नाम लैश था।

30 दान के परिवार समूह के लोगों ने दान नगर में मूर्तियों की स्थापना की। उन्होंने गेर्शोम के पुत्र योनातान को अपना याजक बनाया। गेर्शोम मूसा[e] का पुत्र था। योनातान और उसके पुत्र दान के परिवार समूह के तब तक याजक रहे, जब तक इस्राएल के लोगों को बन्दी बना कर बाबेल नहीं ले जाया गया। 31 दान के लोगों ने उन मूर्तियों की पूजा की जिन्हें मीका ने बनाया था। वे उस पूरे समय उन मूर्तियों को पूजते रहे जब तक शिलों में परमेश्वर का स्थान रहा।

लेवीवंशी और उसकी रखैल

19 उन दिनों इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था। एक लेवीवंशी व्यक्ति एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के बहुत दूर के क्षेत्र में रहता था। उस व्यक्ति ने एक स्त्री को अपनी दासी बना रखा था जो उसकी पत्नी की तरह थी। वह यहूदा प्रदेश के बेतलेहेम नगर की निवासी थी। किन्तु उस दासी का लेवीवंशी के साथ वाद—विवाद हो गया था। उसने उसे छोड़ दिया और यहूदा प्रदेश के बेतलेहेम नगर में अपने पिता के घर चली गई। वह वहाँ चार महीने रही। तब उसका पति उसके पास गया। वह उससे प्रेम से बात करना चाहता था, जिससे वह उसके पास लौट जाये। वह अपने साथ अपने नौकर और दो गधों को ले गया। लेवीवंशी व्यक्ति उस स्त्री के पिता के घर आया। उसके पिता ने लेवीवंशी व्यक्ति को देखा और उसका स्वागत करने के लिये प्रसन्नता से बाहर आया। युवती के पिता ने उसे ठहरने के लिये आमन्त्रित किया। इसलिए लेवीवंशी तीन दिन ठहरा। उसने खाया, पिया और वह अपने ससुर के घर सोया।

चौथे दिन बहुत सवेरे वह उठा। लेवीवंशी चल पड़ने की तैयारी कर रहा था। किन्तु युवती के पिता ने अपने दामाद से कहा, “पहले कुछ खाओ। जब तुम भोजन कर लो तो तुम जा सकते हो।” इसलिये लेवीवंशी व्यक्ति और उसका ससुर एक साथ खाने और मदिरा पीने के लिये बैठे। उसके बाद युवती के पिता ने उस लेवीवंशी से कहा, “कृपया आज भी ठहरें। आराम करो और आनन्द मनाओ। दोपहर के बाद तक जाने के लिये प्रतीक्षा करो।” इस प्रकार दोनों व्यक्तियों ने एक साथ खाया। जब लेवी पुरूष जाने को तैयार हुआ तो उसके ससुर ने उसे वहाँ रात भर रुकने का आग्रह किया।

लेवी पुरुष पाँचवे दिन जाने के लिये सवेरे उठा। वह जाने को तैयार था कि उस जवान लड़की के पिता ने कहा, “पहले कुछ खा पी लो, फिर आराम करो और दोपहर तक रूक जाओ।” अत: दोनों ने फिर से एक साथ भोजन किया।

तब लेविवंशी व्यक्ति, उसकी रखैल और उसका नौकर चलने के लिये उठे। किन्तु युवती के पिता, उसके ससुर ने कहा, “लगभग अंधेरा हो गया है। दिन लगभग बीत चुका है। रात यहीं बिताओ और आनन्द मनाओ। कल बहुत सवेरे तुम उठ सकते हो और अपना रास्ता पकड़ सकते हो।”

10 किन्तु लेवीवंशी व्यक्ति एक और रात वहाँ ठहरना नहीं चाहता था। उसने अपने काठीवाले दो गधों और अपनी रखैल को लिया। वह यबूस नगर तक गया। (यबूस यरूशलेम का ही दूसरा नाम है।) 11 दिन लगभग छिप गया, वे यबूस नगर के पास थे। इसलिए नौकर ने अपने स्वामी लेवीवंशी से कहा, “हम लोग इस नगर में रूक जायें। यह यबूसी लोगों का नगर है। हम लोग यहीं रात बितायें।”

12 किन्तु उसके स्वामी लेवीवंशी ने कहा, “नहीं हम लोग अपरिचित नगर मे नहीं जाएंगे। वे लोग इस्राएल के लोगों में से नहीं हैं। हम लोग गिबा नगर तक जाएंगे।” 13 लेवीवंशी ने कहा, “आगे बढ़ो। हम लोग गिबा या रामा तक पहुँचने की कोशिश करें। हम उन नगरों में से किसी एक में रात बिता सकते हैं।”

14 इसलिए लेवीवंशी और उसके साथ के लोग आगे बढ़े। जब वे गिबा नगर के पास आए तो सूरज डूब रहा था। गिबा बिन्यामीन के परिवार समूह के प्रदेश में है। 15 इसलिये वे गिबा में ठहरे। उन्होंने उस नगर में रात बिताने की योजना बनाई। वे नगर में मुख्य सार्वजनिक चौराहे में गए और वहाँ बैठ गए। किन्तु किसी ने उन्हें रात बिताने के लिए अपने घर आमन्त्रित नहीं किया।

16 उस सन्ध्या को एक बूढ़ा व्यक्ति अपने खेतों से नगर में आया। उसका घर एप्रैम प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में था। किन्तु अब वह गिबा नगर में रह रहा था। (गिबा के लोग बिन्यामीन के परिवार समूह के थे।) 17 बूढ़े व्यक्ति ने यात्रियों (लेवीवंशी व्यक्ति) को सार्वजनिक चौराहे पर देखा। बूढ़े व्यक्ति ने पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो? तुम कहाँ से आये हो?”

18 लेवीवंशी व्यक्ति ने उत्तर दिया, “यहूदा प्रदेश के बेतलेहेम नगर से हम लोग यात्रा कर रहे हैं। हम अपने घर जा रहे हैं। हम एप्रैम प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र के दूर के भाग के निवसी हैं। मैं यहूदा प्रदेश में बेतलेहेम को गया था। अब मैं अपने घर[f] जा रहा हूँ। 19 हम लोगों के पास अपने गधों के लिये पुआल और भोजन है। हम लोगों के पास रोटी और दाखमधु है। हम लोगों में से कोई—मैं, युवती या मेरा नौकर, कुछ भी नही चाहता।”

20 बूढ़े ने कहा, “तुम्हारा स्वागत है। तुम मेरे यहाँ ठहरो। तुम को आवश्यकता की सभी चीज़ें मैं दूँगा। तुम सार्वजनिक चौराहे में रात व्यतीत मत करो” 21 तब वह बूढ़ा व्यक्ति लेविवंशी व्यक्ति और उसके साथ के व्यक्तियों को अपने साथ अपने घर ले गया। बूढ़े व्यक्ति ने उसके गधों को खिलाया। उन्होंने अपने पैर धोए। तब उसने उन्हें कुछ खाने और कुछ दाखमधु पीने को दिया।

22 जब लेवीवंशी व्यक्ति और उसके साथ के व्यक्ति आनन्द ले रहे थे, तभी उस नगर के कुछ लोगों ने उस घर को घेर लिया। वे बहुत बुरे व्यक्ति थे। वे ज़ोर से दरवाज़ा पीटने लगे। वे उस बूढ़े व्यक्ति से, जिसका वह घर था, चिल्लाकर बोले, “उस व्यक्ति को अपने घर से बाहर करो। हम उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध करना चाहते हैं।”

23 बूढ़ा व्यक्ति बाहर गया और उन दुष्ट लोगों से कहा, “भाईयो, नहीं, ऐसा बुरा काम न करो। वह व्यक्ति मेरे घर में अतिथि है।[g] यह भयंकर पाप न करो। 24 सुनो, यहाँ मेरी पुत्री है। उसने पहले कभी शारीरिक सम्बन्ध नहीं किया है। मैं उसे और इस पुरुष की रखैल को तुम्हारे पास बाहर लाता हूँ। तुम उसका उपयोग जैसे चाहो कर सकते हो। किन्तु इस व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा भंयकर पाप न करो।”

25 किन्तु उन दूष्ट लोगों ने उस बूढ़े व्यक्ति की एक न सुनी। इसलिये लेवीवंशी व्यक्ति ने अपनी रखैल को उन दुष्ट व्यक्तियों के साथ बाहर कर दिया। उन दूष्ट व्यक्तियों ने पूरी रात उसके साथ कुकर्म किया और बुरी तरह गालियाँ दीं। तब सवेरे उसे जाने दिया। 26 सवेरे वह स्त्री वहाँ लौटी जहाँ उसका स्वामी ठहरा था। वह सामने दरवाजे पर गिर पड़ी। वह तब तक पड़ी रही जब तक पूरा दिन नहीं निकल आया।

27 सवेरे लेवीवंशी व्यक्ति उठा और उसने घर का दरवाजा खोला। वह अपने रास्ते जाने के लिये बाहर निकला। किन्तु वहाँ उसकी रखैल पड़ी थी।[h] वह घर के रास्ते पर पड़ी थी। उसके हाथ दरवाज़े की ड्योढ़ी पर थे। 28 तब लेवीवंशी व्यक्ति ने उससे कहा, “उठो, हम लोग चलें।”

किन्तु उसने उत्तर नहीं दिया। इसलिए उसने उसे अपने गधे पर रखा और घर गया। 29 जब लेवीवंशी व्यक्ति अपने घर आया तब उसने एक छुरी निकाली और अपनी रखैल को बारह टुकड़ों में काटा। तब उसने स्त्री के उन बारह भागों को उन सभी क्षेत्रों में भेजा जहाँ इस्राएल के लोग रहते थे। 30 जिसने यह देखा उन सबने कहा, “ऐसा कभी नहीं हुआ था जब से इस्राएल के लोग मिस्र से आए, तब से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ। तय करो कि क्या करना है और हमें बताओ?”

इस्राएल और बिन्यामीन के बीच युद्ध:

20 इस प्रकार इस्राएल के सभी लोग एक हो गए। वे मिस्पा नगर में यहोवा के सामने खड़े होने के लिए एक साथ आए। वे पूरे इस्राएल देश से आए। गिलाद प्रदेश के सभी इस्राएली लोग भी वहाँ थे। इस्राएल के परिवार समूहों के सभी प्रमुख वहाँ थे। वे परमेश्वर के सारे लोगों की सभा में अपने—अपने स्थानों पर बैठे। उस स्थान पर तलवार के साथ चार लाख सैनिक थे। बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने सुना कि इस्राएल के लोग मिस्पा नगर में पहुँचे हैं। इस्राएल के लोग ने कहा, “यह बताओ कि यह पाप कैसे हुआ।”

अत: जिस स्त्री की हत्या हुई थी उसके पति ने कहा, “मेरी रखैल और मैं बिन्यामीन के प्रदेश में गिबा नगर में पहुँचे। हम लोगों ने वहाँ रात बिताई। किन्तु रात को गिबा नगर के प्रमुख उस घर पर आए जिसमें मैं ठहरा था। उन्होंने घर को घेर लिया और वे मुझे मार डालना चाहते थे। उन्होंने मेरी रखैल के साथ कुकर्म किया और वह मर गई। इसलिए मैं अपनी रखैल को ले गया और उसके टुकड़े कर डाले। तब मैंने हर एक टुकड़ा इस्राएल के हर एक परिवार समूह को भेजा। मैंने बारह टुकड़े उन प्रदेशों को भेजे जिन्हें हमने पाया। मैंने यह इसलिए किया कि बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने इस्राएल के देश में यह क्रूर और भयंकर काम किया है। अब, इस्राएल के सभी लोग, आप बोलें। आप अपना निर्णय दें कि हमें क्या करना चाहिये?”

तब सभी लोग उसी समय उठ खड़े हुए। उन्होंने आपस में कहा, “हम लोगों में से कोई घर नहीं लौटेगा। कोई नहीं, हम लोगों में से एक भी घर नहीं लौटेगा। हम लोग गिबा नगर के साथ यह करेंगे। हम गोट डालेंगे। जिससे परमेश्वर बताएगा कि हम लोग उन लोगों के साथ क्या करें। 10 हम लोग इस्राएल के सभी परिवारों के हर एक सौ में से दस व्यक्ति चुनेंगे और हम लोग हर एक हजार में से सौ व्यक्ति चुनेंगे। हम लोग हर एक दस हजार में से हजार चुनेंगे। जिन लोगों को हम चुन लेंगे वे सेना के लिए आवश्यक सामग्री पाएंगे। तब सेना बिन्यामीन के प्रदेश में गिबा नगर को जाएगी। वह सेना उन लोगों से बदला चुकाएगी जिन्होंने इस्राएल के लोगों में यह भयंकर काम किया है।”

11 इसलिए इस्राएल के सभी लोग गिबा नगर में एकत्रित हुए। वे उसके एक मत थे, जो वे कर रहे थे। 12 इस्राएल के परिवार समूह ने एक सन्देश के साथ लोगों को बिन्यामीन के परिवार समूह के पास भेजा। सन्देश यह था: “इस पाप के बारे में क्या कहना है जो तुम्हारे कुछ लोगों ने किया है? 13 उन गिबा के पापी मनुष्यों को हमारे पास भेजो। उन लोगों को हमें दो जिससे हम उन्हें जान से मार सकें। हम इस्राएल के लोगों में से पाप को अवश्य दूर करेंगे।”

किन्तु बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने अपने सम्बन्धी इस्राएल के लोगो के दूतों की एक न सुनी। 14 बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने अपने नगरों को छोड़ा और वे गिबा नगर में पहुँचे। वे गिबा में इस्राएल के अन्य परिवार समूह के विरुद्ध लड़ने गए। 15 बिन्यामीन परिवार समूह के लोगों ने छब्बीस हजार सैनिकों को इकट्ठा किया। वे सभी सैनिक युद्ध के लिये प्रशिक्षित थे। उनके साथ गिबा नगर के सात सौ प्रशिक्षित सैनिक भी थे। 16 उनके सात सौ ऐसे प्रशिक्षित व्यक्ति भी थे जो बाँया हाथ चलाने में दक्ष थे। उनमें से हर एक गुलेल का उपयोग दक्षता से कर सकता था। वे सब एक बाल पर भी पत्थर मार सकते थे और निशाना नहीं चूकता था।

17 इस्राएल के सारे परिवारों ने, बिन्यामीन को छोड़कर चार लाख योद्धाओं को इकट्ठा किया। उन चार लाख योद्धाओं के पास तलवारें थीं। उनमें हर एक प्रशिक्षित सैनिक था। 18 इस्राएल के लोग बेतेल नगर तक गए। बेतेल में उन्होंने परमेश्वर से पूछा, “कौन सा परिवार समूह बिन्यामीन के परिवार समूह पर प्रथम आक्रमण करेगा?”

यहोवा ने उत्तर दिया, “यहूदा का परिवार समूह प्रथम जाएगा।”

19 अगली सुबह इस्राएल के लोग उठे। उन्होंने गिबा के निकट डेरा डाला। 20 तब इस्राएल की सेना बिन्यामीन की सेना से युद्ध के लिये निकल पड़ी। इस्राएल की सेना ने गिबा नगर में बिन्यामीन की सेना के विरुद्ध अपना मोर्चा लगाया। 21 तब बिन्यामीन की सेना गिबा नगर के बाहर निकली। उन्होंने उस दिन की लड़ाई में इस्राएल की सेना के बाईस हजार लोगों को मार डाला।

22-23 इस्राएल के लोग यहोवा के सामने गए। वे शाम तक रोकर चिल्लाते रहे। उन्होंने यहोवा से पूछा, “क्या हमें बिन्यामीन के विरुद्ध लड़ने जाना चाहिए? वे लोग हमारे सम्बन्धी हैं।”

यहोवा ने उत्तर दिया, “जाओ और उनके विरुद्ध लड़ो। इस्राएल के लोगों ने एक दूसरे का साहस बढ़ाया। इसलिए वे पहले दिन की तरह फिर लड़ने गए।”

24 तब इस्राएल की सेना बिन्यामीन की सेना के पास आई। यह युद्ध का दूसरा दिन था। 25 बिन्यामीन की सेना दूसरे दिन इस्राएल की सेना पर आक्रमण करने के लिये गिबा नगर से बाहर आई। इस समय बिन्यामीन की सेना ने इस्राएल की सेना के अन्य अट्ठारह हजार सैनिकों को मार डाला। इस्राएल की सेना के वे सभी प्रशिक्षित सैनिक थे।

26 तब इस्राएल के सभी लोग बेतेल नगर तक गए। उस स्थान पर वे बैठे और यहोवा को रोकर पुकारा। उन्होंने पूरे दिन शाम तक कुछ नहीं खाया। वे होमबलि और मेलबलि भी यहोवा के लिये लाए। 27 इस्राएल के लोगों ने यहोवा से एक प्रश्न पूछा। (इन दिनों परमेश्वर का साक्षीपत्र का सन्दूक बेतेल में था। 28 पीनहास नामक एक याजक साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने सेवा करता था। पीनहास एलीआज़ार नामक व्यक्ति का पुत्र था। एलीआज़ार हारून का पुत्र था।) इस्राएल के लोगों ने पूछा, “क्या हमें बिन्यामीन के लोगों के विरूद्ध फिर लड़ने जाना चाहिए? वे लोग हमारे सम्बन्धी हैं या हम युद्ध करना बन्द कर दें?” यहोवा ने उत्तर दिया, “जाओ। कल मैं उन्हें हराने में तुम्हारी सहायता करूँगा।”

29 तब इस्राएल की सेना ने गिबा नगर के चारों ओर अपने व्यक्तियों को छिपा दिया। 30 इस्राएल की सेना तीसरे दिन गिबा नगर के विरुद्ध लड़ने गई। उन्होंने जैसा पहले किया था वैसा ही लड़ने के लिये मोर्चा लगाया। 31 बिन्यामीन की सेना इस्राएल की सेना से युद्ध करने के लिये गिबा नगर के बाहर निकल आई। इस्राएल की सेना पीछे हटी और उसने बिन्यामीन की सेना को पीछा करने दिया।

इस प्रकार बिन्यामीन की सेना को नगर को बहुत पीछे छोड़ देने के लिये धोखा दिया गया। बिन्यमीन की सेना ने इस्राएल की सेना के कुछ लोगों को वेसे ही मारना आरम्भ किया जैसे उन्होंने पहले मारा था। इस्राएल के लगभग तीस व्यक्ति मारे गए। उनमें से कुछ लोग मैदानों में मारे गए थे। उनमें से कुछ व्यक्ति सड़कों पर मारे गए थे। एक सड़क बेतेल को जा रही थी। दूसरी सड़क गिबा को जा रही थी। 32 बिन्यामीन के लोगों ने कहा, “हम पहले की तरह जीत रहे हैं।”

उसी समय इस्राएल के लोग पीछे भाग रहे थे लेकिन यह एक चाल थी। वे बिन्यामीन के लोगों को उनके नगर से दूर सड़कों पर लाना चाहते थे। 33 इस्राएल की सेना के सभी लोग अपने स्थानों से हटे। वे बालतामार स्थान पर रूके। तब जो लोग गिबा नगर की ओर छिपे थे, वे अपने छिपने के स्थानों से गिबा के पश्चिम को दौड़ पड़े। 34 इस्राएल की सेना के पूरे प्रशिक्षित दस हजार सैनिकों ने गिबा नगर पर आक्रमण किया। युद्ध बड़ा भीषण था। किन्तु बिन्यामीन की सेना नहीं जानती थी कि उनके साथ कौन सी भंयकर घटना होने जा रही है?

35 यहोवा ने इस्राएल की सेना का उपयोग किया और बिन्यामीन की सेना को पराजित किया। उस दिन इस्राएल के सेना ने बिन्यामीन की पच्चीस हजार एक सौ सैनिकों को मार डाला। वे सभी सैनिक युद्ध के लिये प्रशिक्षित थे। 36 इस प्रकार बिन्यामीन के लोगों ने देखा कि वे पराजित हो गए।

इस्राएल की सेना पीछे हटी। वे पीछे हटे क्योंकि वे उस अचानक आक्रमण पर भरोसा कर रहे थे जिसके लिये वे गिबा के निकट व्यवस्था कर चुके थे। 37 जो व्यक्ति गिबा के चारों ओर छिपे थे वे गिबा नगर में टूट पड़े। वे फैल गए और उन्होंने अपनी तलवारों से नगर के हर एक को मार डाला। 38 इस्राएली सेना के दल और छिपकर घात लगाने वाले दल के बीच यह संकेत चिन्ह निश्चित किया गया था कि छिपकर घात लगाने वाला दल नगर से धुएँ का विशाल बादल उड़ाएगा।

39-41 इसलिये युद्ध के समय इस्राएल की सेना पीछे मुड़ी और बिन्यामीन की सेना ने इस्राएल की सेना के सैनिकों को मारना आरम्भ किया। उन्होंने लगभग तीस सैनिक मारे। वे कह रहे थे, “हम वैसे जीत रहे हैं जैसे पहले युद्ध में जीत रहे थे।” किन्तु तभी धुएँ का विशाल बादल नगर से उठना आरम्भ हुआ। बिन्यामीन के सैनिक मुड़े और धुएँ को देखा। पूरा नगर आग की लपटों में था तब इस्राएल की सेना मुड़ी और लड़ने लगी। बिन्यामीन के लोग डर गए थे। अब वे समझ गए थे कि उनके साथ कौन सी भंयकर घटना हो चुकी थी।

42 इसलिये बिन्यामीन की सेना इस्राएल की सेना के सामने से भाग खड़ी हुई। वे रेगिस्तान की ओर भागे। लेकिन वे युद्ध से बच न सके। इस्राएल के लोग नगर से बाहर आए और उन्हें मार डाला। 43 इस्राएल के लोगों ने बिन्यामीन के लोगों को हराया। उन्होंने बिन्यामीन के लोगों का पीछा किया। उन्हें आराम नहीं करने दिया। उन्होंने उन्हें गिबा के पूर्व के क्षेत्र में हराया। 44 इस प्रकार अट्ठारह हजार वीर और शक्तिशाली बिन्यामीन की सेना के सैनिक मारे गए।

45 बिन्यामीन की सेना मुड़ी और मरुभूमि की ओर भागी। वे रिम्मोन की चट्टान नामक स्थान पर भाग कर गए। किन्तु इस्राएल की सेना ने सड़क के सहारे बिन्यामीन की सेना के पाँच हजार सैनिकों को मार डाला। वे बिन्यामीन के लोगों का पीछा करते रहे। उन्होंने उनका पीछा गिदोम नामक स्थान तक किया। इस्राएल की सेना ने उस स्थान पर बिन्यामीन की सेना के दो हजार और सैनिकों को मार डाला।

46 उस दिन बिन्यामीन की सेना के पच्चीस हजार सैनिक मारे गए। उन सभी व्यक्तियों के पास तलवारें थीं। बिन्यामीन के वे लोग वीर योद्धा थे। 47 किन्तु बिन्यामीन के छ: सौ व्यक्ति मुड़े और मरुभूमि में भाग गए। वे रिम्मोन की चट्टान नामक स्थान पर गए। वे वहाँ चार महीने तक ठहरे रहे। 48 इस्राएल के लोग बिन्यामीन के प्रदेश में लौटकर गए। जिन नगरों में वे पहुँचे, उन नगरों के आदमियों को उन्होंने मार डाला। उन्होंने सभी जानवरों को भी मार डाला। वे जो कुछ पा सकते थे, उसे नष्ट कर दिया। वे जिस नगर में गए, उसे जला डाला।

बिन्यामीन के लोगों के लिये पत्नियाँ प्राप्त करना

21 मिस्पा में इस्राएल के लोगों ने प्रतिज्ञा की। उनकी प्रतिज्ञा यह थी, “हम लोगों में से कोई अपनी पुत्री को बिन्यामीन के परिवार समूह के किसी व्यक्ति से विवाह नहीं करने देगा।”

इस्राएल के लोग बेतेल नगर को गए। इस नगर में वे परमेश्वर के सामने शाम तक बैठे रहे। वे बैठे हुए रोते रहे। उन्होंने परमेश्वर से कहा, “यहोवा, तू इस्राएल के लोगों का परमेश्वर है। ऐसी भयंकर बात हम लोगों के साथ कैसे हो गई है? इस्राएल के परिवार समूहों में से एक परिवार समूह क्यों कम हो जाये!”

अगले दिन सवेरे इस्राएल के लोगों ने एक वेदी बनाई। उन्होंने उस वेदी पर परमेश्वर को होमबली और मेलबलि चढ़ाई। तब इस्राएल के लोगों ने कहा, “क्या इस्राएल का कोई ऐसा परिवार समूह है जो यहोवा के सामने हम लोगों के साथ मिलने नहीं आया है?” उन्होंने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि उन्होंने एक गंभीर प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई मिस्पा में अन्य परिवार समूहों के साथ नहीं आएगा, मार डाला जाएगा।

इस्राएल के लोग अपने रिश्तेदारों, बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों के लिये, बहुत दुःखी थे। उन्होंने कहा, “आज इस्राएल के लोगों से एक परिवार समूह कट गया है। हम लोगों ने यहोवा के सामने प्रतिज्ञा की थी कि हम अपनी पुत्रियों को बिन्यामीन परिवार के किसी व्यक्ति से विवाह नहीं करने देंगे। हम लोगों को कैसे विश्वास होगा कि बिन्यामीन परिवार समूह के लोगों को पत्नियाँ प्राप्त होंगी?”

तब इस्राएल के लोगों ने पूछा, “इस्राएल के परिवार समूहों में से कौन मिस्पा में यहाँ नहीं आया है? हम लोग यहोवा के सामने एक साथ आए हैं। किन्तु एक परिवार समूह यहाँ नहीं है।” तब उन्हें पता लगा कि इस्राएल के अन्य लोगों के साथ यावेश गिलाद नगर का कोई व्यक्ति वहाँ नहीं था। इस्राएल के लोगों ने यह जानने के लिये कि वहाँ कौन था और कौन नहीं था, हर एक को गिना। उन्होंने पाया कि यावेश गिलाद का कोई भी वहाँ नहीं था। 10 इसलिए इस्राएल के लोगों की परिषद ने बारह हजार सैनिकों को यावेश गिलाद नगर को भेजा। उन्होंने उन सैनिकों से कहा, “जाओ और यावेश गिलाद लोगों को अपनी तलवार के घाट उतार दो। 11 तुम्हें यह अवश्य करना होगा। यावेश गिलाद में हर एक पुरुष को मार डालो। उस स्त्री को भी मार डालो जो एक पुरुष के साथ रह चुकी हो। किन्तु उस स्त्री को न मारो जिसने किसी पुरुष के साथ कभी शारीरिक सम्बन्ध न किया हो।” सैनिकों ने यही किया। 12 उन बारह हजार सैनिकों ने यावेश गिलाद में चार सौ ऐसी स्त्रियों को पाया, जिन्होंने किसी पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं किया था। सैनिक उन स्त्रीयों को शीलो नगर के डेरे पर ले आए। शीलो कनान प्रदेश में है।

13 तब इस्राएल के लोगों ने बिन्यामीन के लोगों के पास एक सन्देश भेजा। उन्होंने बिन्यामीन के लोगों के साथ शान्ति—सन्धि करने का प्रस्ताव रखा। बिन्यामीन के लोग रिम्मोन की चट्टान नामक स्थान पर थे। 14 इसलिये बिन्यामिन के लोग उस समय इस्राएल के लोगों के पूरे परिवार के पास लौटे। इस्राएल के लोगों ने उन्हें उन यावेश गिलाद की स्त्रियों को दिया, जिन्हें उन्होंने मारा नहीं था। किन्तु बिन्यामीन के सभी लोगों के लिये पर्याप्त स्त्रियाँ नहीं थीं।

15 इस्राएल के लोग बिन्यामीन के लोगों के लिये दुःखी हुए। उन्होंने उनके लिये इसलिए दुःख अनुभव किया क्योंकि यहोवा ने इस्राएल के परिवार समूहों को अलग कर दिया था। 16 इस्राएल के लोगों के अग्रजों ने कहा, “बिन्यामीन परिवार समूह की स्त्रियाँ मार डाली गई हैं। हम लोग बिन्यामीन के जो लोग जीवित हैं उनके लिये पत्नियाँ कहाँ पाएंगे। 17 बिन्यामीन के जो लोग अभी जीवित हैं, अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिये उन्हें बच्चे चाहिये। यह इसलिए करना होगा कि इस्राएल का एक परिवार समूह नष्ट न हो। 18 किन्तु हम लोग अपनी पुत्रियों को बिन्यामीन लोगों के साथ विवाह करने की स्वीकृति नहीं दे सकते। हम यह प्रतिज्ञा कर चुके हैं: ‘कोई व्यक्ति जो बिन्यामीन के व्यक्ति को पत्नी देगा, अभिशप्त होगा।’ 19 हम लोगों के सामने एक उपाय है। यह शीलो नगर में यहोवा के लिये उत्सव का समय है। यह उत्सव यहाँ हर वर्ष मनाया जाता है।” (शीलो नगर बेतेल नगर के उत्तर में है और उस सड़क के पूर्व में है जो बेतेल से शकेन को जाती है। और यह लबोना नगर के दक्षिण में भी है।)

20 इसलिये अग्रजों ने बिन्यामीन लोगों को अपना विचार बताया। उन्होंने कहा, “जाओ, और अंगूर के बेलो के खेतों में छिप जाओ। 21 उत्सव में उस समय की प्रतीक्षा करो जब शीलो की युवतियाँ नृत्य में भाग लेने आएं। तब अंगूर के खेतों में अपने छुपने के स्थान से बाहर निकल दौड़ो। तुममें से हर एक उस युवतियों को शीलो नगर से बिन्यामीन के प्रदेश में ले जाओ और उसके साथ विवाह करो। 22 उन युवतियों के पिता और भाई हम लोगों के पास आएंगे और शिकायत करेंगे। किन्तु हम लोग उन्हें इस प्रकार उत्तर देंगे: ‘बिन्यामीन के लोगों पर कृपा करो। वे अपने लिए पत्नियाँ इसलिए नहीं पा रहे हैं कि वे लोग तुमसे लड़े और वे इस प्रकार से स्त्रियों को ले गए हैं, अत: तुमने अपनी परमेश्वर के सामने की गई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी। तुमने प्रतिज्ञा की थी कि तुम उन्हें स्त्रियाँ नहीं दोगे, तुमने बिन्यामीन के लोगों को स्त्रियाँ नहीं दीं परन्तु उन्होंने तुमसे स्त्रियाँ ले लीं। इसलिये तुमने प्रतिज्ञा भंग नहीं की।’”

23 इसलिये बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने वही किया। जब युवतियाँ नाच रही थीं, तो हर एक व्यक्ति ने उनमें से एक—एक को पकड़ लिया। वे उन स्त्रियों को दूर ले गए और उनके साथ विवाह किया। वे उस प्रदेश में लौटे, जो उन्हें उत्तराधिकार में मिला था। बिन्यामीन के लोगों ने उस प्रदेश में फिर नगर बसाये और उन नगरों में रहने लगे। 24 तब इस्राएल के लोग अपने घर लौटे। वे अपने प्रदेश और परिवार समूह को गए।

25 उन दिनों इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था। हर एक व्यक्ति वही करता था, जिसे वह ठीक समझता था।

यहूदा में अकाल

बहुत समय पहले, जब न्यायाधीशों का शासन था, तभी एक इतना बुरा समय आया कि लोगों के पास खाने के लिये पर्याप्त भोजन तक न रहा। एलीमेलेक नामक एक व्यक्ति ने तभी यहूदा के बेतलेहेम को छोड़ दिया। वह, अपनी पत्नी और दो पुत्रों के साथ मोआब के पहाड़ी प्रदेश में चला गया। उसकी पत्नी का नाम नाओमी था और उसके पुत्रों के नाम महलोन और किल्योन थे। ये लोग यहूदा के बेतलेहेम के एप्राती परिवार से थे। इस परिवार ने मोआब के पहाड़ी प्रदेश की यात्रा की और वहीं बस गये।

बाद में, नाओमी का पति, एलीमेलेक मर गया। अत: केवल नाओमी और उसके दो पुत्र बचे रह गये। उसके पुत्रों ने मोआब देश की स्त्रियों के साथ विवाह किया। एक की पत्नी का नाम ओर्पा और दूसरे की पत्नी का नाम रूत था। वे मोआब में लगभग दस वर्ष रहे, फिर महलोन और किल्योन भी मर गये। अत: नाओमी अपने पति और पुत्रों के बिना अकेली हो गई।

नाओमी अपने घर जाती है

जब नाओमी मोआब के पहाड़ी प्रदेश में रह रही थी तभी, उसने सुना कि यहोवा ने उसके लोगों की सहायता की है। उसने यहूदा में अपने लोगों को भोजन दिया है। इसलिए नाओमी ने मोआब के पहाड़ी प्रदेश को छोड़ने तथा अपने घर लौटने का निश्चय किया। उसकी पुत्र वधुओं ने भी उसके साथ जाने का निश्चय किया।

उन्होंने उस प्रदेश को छोड़ा जहाँ वे रहती थीं और यहूदा की ओर लौटना आरम्भ किया।

तब नाओमी ने अपनी पुत्र वधुओं से कहा, “तुम दोनों को अपने घर अपनी माताओं के पास लौट जाना चाहिए। तुम मेरे तथा मेरे पुत्रों के प्रति बहुत दयालु रही हो। इसलिए मैं प्रार्थाना करती हूँ कि यहोवा तुम पर ऐसे ही दयालु हो। मैं प्रार्थना करती हूँ कि यहोवा, पति और अच्छा घर पाने में तुम दोनों की सहायता करे।” नाओमी ने अपनी पुत्र वधुओं को प्यार किया और वे सभी रोने लगीं। 10 तब पुत्र वधुओं ने कहा, “किन्तु हम आप के साथ चलना चाहतें हैं और आपके लोगों में जाना चाहते हैं।”

11 किन्तु नाओमी ने कहा, “नहीं, पुत्रियों, अपने घर लौट जाओ। तुम मेरे साथ किसलिए जाओगी? मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती। मेरे पास अब कोई पुत्र नहीं जो तुम्हारा पति हो सके। 12 अपने घर लौट जाओ! मैं इतनी वृद्धा हूँ कि नया पति नहीं रख सकती। यहाँ तक कि यदि मैं पुनः विवाह करने की बात सोचूँ तो भी मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती। यदि मैं आज की रात ही गर्भवती हो जाऊँ और दो पुत्रों को उत्पन्न करुँ, तो भी इससे तुम्हें सहायता नहीं मिलेगी। 13 विवाह करने से पूर्व उनके युवक होने तक तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। मैं तुमसे पति की प्रतीक्षा इतने लम्बें समय तक नहीं करवाऊँगी। इससे मुझे बहुत दुःख होगा और मैं तो पहले से ही बहुत दुःखी हूँ। यहोवा ने मेरे साथ बहुत कुछ कर दिया है।”

14 अत: स्त्रियाँ पुन: बहुत अधिक रोयीं। तब ओर्पा ने नाओमी का चुम्बन लिया और वह चली गई। किन्तु रूत ने उसे बाहों में भर लिया और वहाँ ठहर गई।

15 नाओमी ने कहा, “देखो, तुम्हारी जेठानी अपने लोगों और अपने देवताओं में लौट गई। अत: तुम्हें भी वही करना चाहिए।”

16 किन्तु रूत ने कहा, “अपने को छोड़ने के लिये मुझे विवश मत करो! अपने लोगों में लौटने के लिये मुझे विवश मत करो। मुझे अपने साथ चलने दो। जहाँ कहीं तुम जाओगी, मैं सोऊँगी। जहाँ कहीं तुम सोओगी, मैं सोऊँगी। तुम्हारे लोग, मेरे लोग होंगे। तुम्हारा परमेश्वर, मेरा परमेश्वर होगा। 17 जहाँ तुम मरोगी, मैं भी वहीं मरूँगी और में वहीं दफनाई जाऊँगी। मैं यहोवा से याचना करती हूँ कि यदि मैं अपना वचन तोड़ूँ तो यहोवा मुझे दण्ड देः केवल मृत्यु ही हम दोनों को अलग कर सकती है।”[i]

घर लौटना

18 नाओमी ने देखा कि रूत की उसके साथ चलने की प्रबल इच्छा है। इसलिए नाओमी ने उसके साथ बहस करना बन्द कर दिया। 19 फिर नाओमी और रूत ने तब तक यात्रा की जब तक वे बेतलेहेम नहीं पहुँच गईं। जब दोनों स्त्रियाँ बेतलेहेम पहुँचीं तो सभी लोग बहुत उत्तेजित हुए। उन्होंने कहना आरम्भ किया, “क्या यह नाओमी है?”

20 किन्तु नाओमी ने लोगों से कहा, “मुझे नाओमी मत कहो, मुझे मारा कहो। क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरे जीवन को बहुत दुःखी बना दिया है। 21 जब मैं गई थी, मेरे पास वे सभी चीज़ें थीं जिन्हें मैं चाहती थी। किन्तु अब, यहोवा मुझे खाली हाथ घर लाया है। यहोवा ने मुझे दुःखी बनाया है अत: मुझे ‘प्रसन्न’[j] क्यों कहते हो? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे बहुत अधिक कष्ट दिया है।”

22 इस प्रकार नाओमी तथा उसकी पुत्रवधु रूत (मोआबी स्त्री) मोआब के पहाड़ी प्रदेश से लौटीं। ये दोनों स्त्रियाँ जौ की कटाई के समय यहूदा के बेतलेहेम में आईं।

रूत का बोअज से मिलना

बेतलेहेम में एक धनी पुरुष रहता था। उसका नाम बोअज़ था। बोअज़ एलीमेलेक परिवार से नाओमी के निकट सम्बन्धियों में से एक था।

एक दिन रूत ने (मोआबी स्त्री) नाओमी से कहा, “मैं सोचती हूँ कि मैं खेतों में जाऊँ। हो सकता है कि कोई ऐसा व्यक्ति मुझे मिले जो मुझ पर दया करके, मेरे लिए उस अन्न को इकट्ठा करने दे जिसे वह अपने खेत में छोड़ रहा हो।”

नाओमी ने कहा, “पुत्री, ठीक है, जाओ।”

अत: रूत खेतों में गई। वह फसल काटने वाले मजदूरों के पीछे चलती रही और उसने वह अन्न इकट्ठा किया जो छोड़ दिया गया था।[k] ऐसा हुआ कि उस खेत का एक भाग एलीमेलेक पिरवार के व्यक्ति बोअज का था। बाद में, बेतलेहेम से बोअज़ खेत में आया। बोअज़ ने अपने मज़दूरों का हालचाल पूछा। उसने कहा, “यहोवा तुम्हारे साथ हो!”

मज़दूरों ने उत्तर दिया, “यहोवा आपको आशीर्वाद दे!”

तब बोअज़ ने अपने उस सेवक से बातें कीं, जो मज़दूरों का निरीक्षक था। उसने पूछा, “वह लड़की किस की है?”

सेवक ने उत्तर दिया, “यह वही मोआबी स्त्री है जो मोआब के पहाड़ी प्रदेश से नाओमी के साथ आई है। वह बहुत सवेरे आई और मुझसे उसने पूछा कि क्या मैं मज़दूरों के पीछे चल सकती हूँ और भूमि पर गिरे अन्न को इकट्ठा कर सकती हूँ और यह तब से काम कर रही है। उसका घर वहाँ है।”

तब बोअज़ ने रूत से कहा, “बेटी, सुनो। तुम अपने लिये अन्न इकट्ठा करने के लिये मेरे खेत में रहो। तुम्हें किसी अन्य व्यक्ति के खेत में जाने की आवश्यकता नहीं है। मेरी दासियों के पीछे चलती रहो। यह ध्यान में रखो कि वे किस खेत में जा रही है और उनका अनुसरण करो। मैंने युवकों को चेतावनी दे दी है कि वे तुम्हें परेशान न करें। जब तुम्हें प्यास लगे, तो उसी घड़े से पानी पीओ जिस से मेरे आदमी पीते हैं।”

10 तब रूत प्रणाम करने नीचे धरती तक झुकी। उसने बोअज से कहा, “मुझे आश्चर्य है कि आपने मुझ पर ध्यान दिया! मैं एक अजनबी हूँ, किन्तु आपने मुझ पर बडी दया की।”

11 बोअज़ ने उसे उत्तर दिया “मैं उन सारी सहायताओं को जानता हूँ जो तुमने अपनी सास नाओमी को दी है। मैं जानता हूँ कि तुमने उसकी सहायता तब भी की थी जब तुम्हारा पति मर गया था और मैं जानता हूँ कि तुम अपने माता—पिता और अपने देश को छोड़कर इस देश में यहाँ आई हो। तुम इस देश के किसी भी व्यक्ति को नहीं जानती, फिर भी तुम यहाँ नाओमी के सात आई। 12 यहोवा तुम्हें उन सभी अच्छे कामों के लिये फल देगा जो तुमने किये हैं। तुम्हें इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा भरपूर करेगा। तुम उसके पास सुरक्षा के लिये आई हो और वह तुम्हारी रक्षा करेगा।”

13 तब रूत ने कहा, “आप मुझ पर बड़े दयालु हैं, महोदय। मैं तो केवल एक दासी हूँ। मैं आपके सेवकों में से भी किसी के बराबर नहीं हूँ। किन्तु आपने मुझसे दयापूर्ण बातें की हैं और मुझे सान्त्वना दी है।”

14 दोपहर के भोजन के समय, बोअज़ ने रूत से कहा, “यहाँ आओ! हमारी रोटियों में से कुछ खाओ। इधर हमारे सिरके में अपनी रोटी डुबाओ।”

इस प्रकार रूत मजदूरों के साथ बैठ गई। बोअज़ ने उसे ढेर सारा भुना अनाज दिया। रूत ने भरपेट खाया और कुछ भोजन बच भी गया। 15 तब रूत उठी और काम करने लौट गई।

तब बोअज़ ने अपने सेवकों से कहा, “रूत को अन्न की ढेरी के पास भी अन्न इकट्ठा करने दो। उसे रोको मत। 16 उसके काम को, उसके लिये कुछ दाने से भी भरी बालें गिराकर, हलका करो। उसे उस अन्न को इकट्ठा करने दो। उसे रूकने के लिये मत कहो।”

नाओमी बोअज के बारे में सुनती है

17 रूत ने सन्ध्या तक खेत में काम किया। तब उसने भूसे से अन्न को अलग किया। लगभग आधा बुशल जौ निकला। 18 रूत उस अन्न को अपनी सास को यह दिखाने के लिये ले गई कि उसने कितना अन्न इकट्ठा किया है। उसने उसे वह भोजन भी दिया जो दोपहर के भोजन में से बच गया था।

19 उसकी सास ने उससे पूछा, “यह अन्न तुमने कहाँ से इकट्ठा किया है? तुमने कहाँ काम किया? उस व्यक्ति को यहोवा का आशीर्वाद मिले, जिसने तुम पर ध्यान दिया।”

तब रूत ने उसे बताया कि उसने किसके साथ काम किया था। उसने कहा, “जिस व्यक्ति के साथ मैंने काम किया था, उसका नाम बोअज है।”

20 नाओमी ने अपनी पुत्रवधु से कहा, “यहोवा उसे आशीर्वाद दे। याहोवा सभी पर दया करता रहता है चाहे वे जीवित हों या मृत हों।” तब नाओमी ने अपनी पुत्रवधु से कहा, “बोअज़ हमारे सम्बन्धियों में से एक है। बोअज हमारे संरक्षकों में से एक है।”

21 तब रूत ने कहा, “बोअज़ ने मुझे वापस आने और काम करने को भी कहा है। बोअज़ ने कहा है कि मैं सेवकों के साथ तब तक काम करती रहूँ जब तक फ़सल की कटाई पूरी नहीं हो जाती।”

22 तब नाओमी ने अपनी पुत्रवधु रूत से कहा, “यह अच्छा है कि तुम उसकी दसियों के साथ काम करती रहो। यदि तुम किसी अन्य के खेत में काम करोगी तो कोई व्यक्ति तुम्हें कोई नुकसान पहुँचा सकता है।” 23 अत: रूत बोअज़ की दासियों के साथ काम करती रही। उसने तब तक अन्न इकट्ठा किया जब तक फसल की कटाई पूरी नहीं हुई। उसने वहाँ गेहूँ की कटाई के अन्त तक भी काम किया। रूत अपनी सास, नाओमी के साथ रहती रही।

खलिहान

तब रूत की सास नाओमी ने उससे कहा, “मेरी पुत्री, संभव है कि मैं तेरे लिए एक अच्छा घर पा सकूँ। यह तेरे लिये अच्छा होगा। बोअज उपयुक्त व्यक्ति हो सकता है। बोअज़ हमारा निकट का सम्बन्धि है। तुमने उसकी दासियों के साथ काम किया है। आज रात वह खलिहान में काम कर रहा होगा। जाओ, नहाओ और अच्छे वस्त्र पहनो। सुगन्ध द्रव्य लगाओ और खलिहान में जाओ। किन्तु बोअज़ के सामने तब तक न पड़ो जब तक वह रात्रि का भोजन न कर ले। भोजन करने के बाद, वह आराम करने के लिये लेटेगा। देखती रहो जिस से तुम यह जान सको कि वह कहाँ लेटा है। वहाँ जाओ और उसके पैर के वस्त्र उघाड़ो।[l] तब बोअज़ के साथ सोओ। वह बताएगा कि तुम्हें विवाह के लिये क्या करना होगा।”

तब रूत ने उत्तर दिया, “आप जो करने को कहती हैं, मैं करूँगी।”

इसलिये रूत खलिहान में गई। रूत ने वह सब किया जो उसकी सास ने उससे करने को कहा था। खाने और पीने के बाद बोअज बहुत सन्तुष्ट था। बोअज अन्न के ढेर के पास लेटने गया। तब रुत बहुत धीरे से उसके पास गई और उसने उसके पैरों का वस्त्र उघाड़ दिया। रूत उसके पैरों के बगल में लेट गई।

करीब आधी रात को, बोअज़ ने नींद में अपनी करवट बदली और वह जाग पड़ा। वह बहुत चकित हुआ। उसके पैरों के समीप एक स्त्री लेटी थी। बोअज़ ने पूछा, “तुम कौन हो?”

उसने कहा, “मैं तुम्हारी दासी रूत हूँ। अपनी चादर मेरे ऊपर ओढ़ा दो।[m] तुम मेरे रक्षक हो।”

10 तब बोअज़ ने कहा, “युवती, यहोवा तुम्हें आशीर्वाद दे। तुमने मुझ पर विशेष कृपा की है। तुम्हारी यह कृपा मेरे प्रति उससे भी अधिक है जो तुमने आरम्भ में नाओमी के प्रति दिखाई थी। तुम विवाह के लिये किसी भी धनी या गरीब युवक की खोज कर सकती थीं। किन्तु तुमने वैसा नहीं किया। 11 युवती, अब डरो नहीं। मैं वही करूँगा जो तुम चाहती हो। मेरे नगर के सभी लोग जानते हैं कि तुम एक अच्छी स्त्री हो। 12 और यह सत्य है, कि मैं तुम्हारे परिवार का निकट सम्बन्धी हूँ। किन्तु एक अन्य व्यक्ति है जो तुम्हारे परिवार का मुझसे भी अधिक निकट का सम्बन्धी है। 13 आज की रात यहीं ठहरो। प्रातः काल हम पता लगायेंगे कि क्या वह तुम्हारी सहायता करेगा। यदि वह तुम्हें सहायता देने का निर्णय लेता है तो बहुत अच्छा होगा। यदि वह तुम्हारी सहायता करने से इन्कार करता है तो यहोवा के अस्तित्व को साक्षी करके, मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तुमसे विवाह करूँगा और एलीमेलेक की भूमि को तुम्हारे लिये खरीद कर लौटाऊँगा। इसलिए सुबह तक यहीं लेटी रहो!”

14 इसलिये रूत बोअज के पैर के पास सवेरे तक लेटी रही। वह अंधेरा रहते ही उठी, इससे पहले की इतना प्रकाश हो कि लोग एक दूसरे को पहचान सकें।

बोअज़ ने उससे कहा, “हम इसे गुप्त रखेंगे कि तुम पिछली रात मेरे पास आईं थीं।” 15 तब बोअज ने कहा, “अपनी ओढ़नी मेरे पास लाओ। अब, इसे खुला रखो।”

इसलिए रूत ने अपनी ओढ़नी को खुला रखा, और बोअज़ ने लगभग एक बुशल जौ उसकी सास नाओमी को उपहार में दिया। तब बोअज़ ने उसे रूत की ओढ़नी में बाँध दिया और उसे उसकी पीठ पर रख दिया। तब वह नगर को गया।

16 रूत अपनी सास, नाओमी के घर गई। नाओमी द्वार पर आई और उसने पूछा, “बाहर कौन हे?”

रूत घर के भीतर गई और उसने नाओमी को हर बात जो बोअज़ ने की थी, बतायी। 17 उसने कहा, “बोअज़ ने यह जौ उपहार के रुप में तुम्हें दिया है। बोअज़ ने कहा, कि आपके लिए उपहार लिये बिना, मुझे घर नहीं जाना चाहिये।”

18 नाओमी ने कहा, “पुत्री, तब तक धैर्य रखो जब तक हम यह सुनें कि क्या हुआ। बोअज़ तब तक विश्राम नहीं करेगा जब तक वह उसे नहीं कर लेता जो उसे करना चाहिए। हम लोगों को दिन बीतने के पहले मालूम हो जायेगा कि क्या होगा।”

बोअज़ तथा अन्य सम्बन्धी

बोअज़ उस स्थान पर गया जहाँ नगर द्वार पर लोग इकट्ठे होते हैं। बोअज़ तब तक वहाँ बैठा जब तक वह निकट सम्बन्धी वहाँ से नहीं गुज़रा जिसका ज़िक्र बोअज़ ने रूत से किया था। बोअज़ ने उसे बुलाया, “मित्र, आओ! यहाँ बैठो!”

तब बोअज़ ने वहाँ गवाहों को इकट्ठा किया। बोअज़ ने नगर के दस अग्रजो (बुजुर्गों) को एकत्र किया। उसने कहा, “यहाँ बैठो!” इसलिये वे वहाँ बैठ गए।

तब बोअज़ ने उस निकट सम्बन्धी से बातें कीं। उसने कहा, “नाओमी मोआब के पहाड़ी प्रदेश से लौट आई है। वह उस भूमि को बेच रही है जो हमारे सम्बन्धी एलीमेलेक की है। मैंने तय किया है कि मैं इस विषय में यहाँ रहने वाले लोगों और अपने लोगों के अग्रजों के सामने तुमसे कहूँ। यदि तुम भूमि को खरीदकर वापस लेना चाहते हो तो खरीद लो! यदि तुम भूमि को ऋणमुक्त करना नहीं चाहते तो मुझे बताओ। मैं जानता हूँ कि तुम्हारे बाद वह व्यक्ति मैं ही हूँ जो भूमि को ऋणमुक्त कर सकता है। यदि तुम भूमि को वापस नहीं खरीदते हो, तो मैं खरीदूँगा।”

तब बोअज़ ने कहा, “यदि तुम भूमि नाओमी से खरीदोगे तो तुम्हें मृतक की पत्नी मोआबी स्त्री रूत भी मिलेगी। जब रूत को बच्चा होगा तो वह भूमि उस बच्चे की होगी। इस प्रकार भूमि मृतक के परिवार में ही रहेगी।”

निकट सम्बन्धी ने उत्तर दिया, “मैं भूमि को वापस खरीद नहीं सकता। यद्पि यह भूमि मेरी होनी चाहिए थी किन्तु मैं इसे खरीद नहीं सकता। यदि मैं ऐसा करता हूँ, तो मुझे अपनी सम्पत्ति से हाथ धोना पड़ सकता है। इसलिए तुम उस भूमि को खरीद सकते हो।” (इस्राएल में बहुत समय पहले जब कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति को खरीदता या ऋणमुक्त करता था, तो एक व्यक्ति अपने जूते को उतारता था और दूसरे व्यक्ति को दे देता था। यह उनके खरीदने का प्रमाण था।) सो उस निकट सम्बन्धी ने कहा, “भूमि खरीद लो।” तब उस निकट सम्बन्धि ने अपने एक जूते को उतारा और इसे बोअज को दे दिया।

तब बोअज़ ने अग्रजों और सभी लोगों से कहा, “आज आप लोग मेरे गवाह हैं कि मैं नाओमी से वे सभी चीज़ें खरीद रहा हूँ जो एलीमेलेक, किल्योन और महलोन की हैं। 10 मैं रूत को भी अपनी पत्नी बनाने के लिये खरीद रहा हूँ। मैं यह इसलिए कर रहा हूँ कि मृतक की सम्पत्ति उसके परिवार के पास ही रहेगी। इस प्रकार मृतक का नाम उसके परिवार और उसकी भूमि से नहीं हटाया जायेगा। आप लोग आज इसके गवाह हैं।”

11 इस प्रकार सभी लोग और अग्रज जो नगर द्वार के समीप थे, गवाह हुए। उन्होंने कहा:

यह स्त्री जो तुम्हारे घर जाएगी,
    यहोवा उसे राहेल और लिआ
जैसी करे जिसने इस्राएल वंश को बनाया।
    हम प्रार्थना करते हैं
तुम एप्राता में शक्तिशाली होओ!
    तुम बेतलेहेम में प्रसिद्ध होओ!
12 जैसे तामार ने यहूदा के पुत्र पेरेस को जन्म दिया
    और उसका परिवार महान बना।
उसी तरह यहोवा तुम्हें भी रूत से कई पुत्र दे
    और तुम्हारा परिवार भी उसकी तरह महान हो।

13 इस प्रकार बोअज ने रूत से विवाह किया। यहोवा ने रूत को गर्भवती होने दिया और रूत ने एक पुत्र को जन्म दिया। 14 नगर की स्त्रियों ने नाओमी से कहा,

“उस यहोवा का आभार मानो जिसने तुम्हें ऐसा पुत्र दिया।
    यहोवा करे वह, इस्राएल में प्रसिद्ध हो।
15 वह तुम्हें फिर देगा एक जीवन!
    और बुढ़ापे में तुम्हारा वह रखेगा ध्यान।
तुम्हारी बहू के कारण घटना घटी है
    यह गर्भ में धारण किया उसने यह बच्चा तुम्हारे लिए।
प्यार वह करती है तुमसे
    और वह उत्तम है तम्हारे लिए सात बेटों से अधिक।”

16 नाओमी ने लड़के को लिया, उसे अपनी बाहों में उठा लिया, तथा उसका पालन—पोषण किया। 17 पड़ोसियों ने बच्चे का नाम रखा। उन स्त्रियों ने कहा, “अब नाओमी के पास एक पुत्र है!” पड़ोसियों ने उसका नाम ओबेद रखा। ओबेद यिशै का पिता था और यिशै, राजा दाऊद का पिता था।

रूत और बोअज़ का परिवार

18 पेरेस के परिवार की वंशावली यह है:

हिस्रोन का पिता पेरेस था।

19 एराम का पिता हिस्रोन था।

अम्मीनादाव का पिता एराम था।

20 नहशोन का पिता अम्मीनादाब था।

सल्मोन का पिता नहशोन था।

21 बोअज़ का पिता सल्मोन था।

ओबेद का पिता बोअज था।

22 यिशै का पिता ओबेद था।

दाऊद का पिता यिशै था।

एल्काना और उसका परिवार शीलो में आराधना करता है

एल्काना नामक एक व्यक्ति था। वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के रामातैमसोपीम का निवासी था। एल्काना सूप परिवार का था। एलकाना यरोहाम का पुत्र था। यरोहाम एलीहू का पुत्र था। एलीहू तोहू का पुत्र था और तोहू सूप का पुत्र था, जो एप्रैम के परिवार समूह से था।

एल्काना की दो पत्नियाँ थीं। एक का नाम हन्ना था और दूसरी का नाम पनिन्ना था। पनिन्ना के बच्चे थे, किन्तु हन्ना के कोई बच्चा नहीं था।

एल्काना हर वर्ष अपने नगर रामातैमसोपीम को छोड़ देता था और शीलो नगर जाता था। एल्काना सर्वशक्तिमान यहोवा की उपासना शीलो में करता था और वहाँ यहोवा को बलि भेंट करता था। शीलो वह स्थान था, जहाँ होप्नी और पीनहास यहोवा के याजक के रूप में सेवा करते थे। होप्नी और पीनहास एली के पुत्र थे। जब कभी एल्काना अपनी बलि भेंट करता था, वह भेंट का एक अंश अपनी पत्नी पनिन्ना को देता था। एल्काना भेंट का एक अंश पनिन्ना के बच्चों को भी देता था। एल्काना भेंट का एक बराबर का अंश हन्ना को भी सदा दिया करता था। एल्काना यह तब भी करता रहा जब यहोवा ने हन्ना को कोई सन्तान नहीं दी थी। एल्काना यह इसलिये करता था कि हन्ना उसकी वह पत्नी थी जिससे वह सच्चा प्रेम करता था।

पनिन्ना हन्ना को परेशान करती है

पनिन्ना हन्ना को सदा खिन्नता और परेशानी का अनुभव कराती थी। पनिन्ना यह इसलिये करती थी क्योंकि हन्ना कोई बच्चा पैदा नहीं कर सकती थी। हर वर्ष जब उनका परिवार शीलो में यहोवा के आराधनालय में जाता, पनिन्ना, हन्ना को परेशानी में डाल देती थी। एक दिन जब एल्काना बलि भेंट अर्पित कर रहा था। हन्ना परेशानी का अनुभव करने लगी और रोने लगी। हन्ना ने कुछ भी खाने से इन्कार कर दिया। उसके पति एलकाना ने उस से कहा, “हन्ना, तुम रो क्यों रही हो? तुम खाना क्यों नहीं खाती? तुम दुःखी क्यों हो? मैं, तुम्हारा पति, तुम्हारा हूँ। तुम्हें सोचना चाहिए कि मैं तुम्हारे लिए तुम्हारे दस पुत्रों से अच्छा हूँ।”

हन्ना की प्रार्थना

खाने और पीने के बाद हन्ना चुपचाप उठी और यहोवा से प्रार्थना करने गई। यहोवा के पवित्र आराधनालय के द्वार के निकट कुर्सी पर याजक एली बैठा था। 10 हन्ना बहुत दुःखी थी। वह बहुत रोई जब उसने यहोवा से प्रार्थना की। 11 उसने परमेश्वर से विशेष प्रतिज्ञा की। उसने कहा, “सर्वशक्तिमान यहोवा, देखो मैं कितनी अधिक दु:खी हूँ। मुझे याद रखो! मुझे भूलो नहीं। यदि तुम मुझे एक पुत्र दोगे तो मैं पूरे जीवन के लिये उसे तुमको अर्पित कर दूँगी। यह नाजीर पुत्र होगा: वह दाखमधु या तेज मदिरा नहीं पीएगा और कोई उसके बाल नहीं काटेगा।”[n]

12 हन्ना ने बहुत देर तक प्रार्थना की। जिस समय हन्ना प्रार्थना कर रही थी, एली ने उसका मुख देखा। 13 हन्ना अपने हृदय में प्रार्थना कर रही थी। उसके होंठ हिल रहे थे, किन्तु कोई आवाज नहीं निकल रही थी। 14 एली ने समझा कि हन्ना दाखमधु से मत्त है। एली ने हन्ना से कहा, “तुम्हारे पास पीने को अत्याधिक था! अब समय है कि दाखमधु को दूर करो।”

15 हन्ना ने उत्तर दिया, “मैंने दाखमधु या दाखरस नहीं पिया है। मैं बहुत अधिक परेशान हूँ। मैं यहोवा से प्रार्थना करके अपनी समस्याओं का निवेदन कर रही थी। 16 मत सोचो कि मैं बुरी स्त्री हूँ। मैं इतनी देर तक इसलिए प्रार्थना कर रही थी कि मुझे अनेक परेशानियाँ हैं और में बहुत दुःखी हूँ।”

17 एली ने उत्तर दिया, “शान्तिपूर्वक जाओ। इस्राएल का परमेश्वर तुम्हें वह दे, जो तुमने मांगा है।”

18 हन्ना ने कहा, “मुझे आशा है कि आप मुझसे प्रसन्न हैं।” तब हन्ना गई और उसने कुछ खाया। वह अब दु:खी नहीं थी।

19 दूसरे दिन सवेरे एल्काना का परिवार उठा। उन्होंने परमेस्वर की उपासना की और वे अपने घर रामा को लौट गए।

शमूएल का जन्म

एल्काना ने अपनी पत्नी हन्ना के साथ शारीरिक सम्बन्ध किया, यहोवा ने हन्ना की प्रार्थना को याद रखा। 20 हन्ना गर्भवती हुई और उसे एक पुत्र हुआ। हन्ना ने उसका नाम शमूएल रखा। उसने कहा, “इसका नाम शमूएल है क्योंकि मैंने इसे यहोवा से माँगा है।”

21 उस वर्ष एल्काना बलि—भेंट देने और परमेश्वर के सामने की गई प्रतिज्ञा को पूरा करने शीलो गया। वह अपने परिवार को अपने साथ ले गया। 22 किन्तु हन्ना नहीं गई। उसने एल्काना से कहा, “जब लड़का ठोस भोजन करने योग्य हो जायेगा, तब मैं इसे शीलो ले जाऊँगी। तब मैं उसे यहोवा को दूँगी। वह एक नाजीर बनेगा और वह शीलो में रहेगा।”

23 हन्ना के पति एल्काना ने उससे कहा, “वही करो जिसे तुम उत्तम समझती हो। तुम तब तक घर में रह सकती हो जब तक लड़का ठोस भोजन करने योग्य बड़ा नहीं हो जाता। यहोवा वही करे जो तुमने कहा है।” इसलिए हन्ना अपने बच्चे का पालन पोषण तब तक करने के लिये घर पर ही रह गई जब तक वह ठोस भोजन करने योग्य बड़ा नहीं हो जाता।

हन्ना शमूएल को शीलो में एली के पास ले जाती है

24 जब लड़का ठोस भोजन करने योग्य बड़ा हो गया, तब हन्ना उसे शीलो में यहोवा के आराधनालय पर ले गई। हन्ना अपने साथ तीन वर्ष का एक बैल, बीस पौंड आटा और एक मशक दाखमधु भी ले गई।

25 वे यहोवा के सामने गए। एल्काना ने यहोवा के लिए बलि के रूप में बैल को मारा जैसा वह प्राय: करता था तब हन्ना लड़के को एली के पास ले आई। 26 हन्ना ने एली से कहा, “महोदय, क्षमा करें। मैं वही स्त्री हूँ जो यहोवा से प्रार्थना करते हुए आप के पास खड़ी थी। मैं वचन देती हूँ कि मैं सत्य कह रही हूँ। 27 मैंने इस बच्चे के लिये प्रार्थना की थी। यहोवा ने मुझे यह बच्चा दिया 28 और अब मैं इस बच्चे को यहोवा को दे रही हूँ। यह पूरे जीवन यहोवा का रहेगा।”

तब हन्ना ने बच्चे को वहीं छोड़ा और यहोवा की उपासना की।

हन्ना धन्यवाद देती है

हन्ना ने कहा:

“यहोवा, में, मेरा हृदय प्रसन्न है!
    मैं अपने परमेश्वर में शक्तिमती[o] अनुभव करती हूँ!
मैं अपनी विजय से पूर्ण प्रसन्न हूँ!
    और अपने शत्रुओं की हँसी उड़ाई हूँ।
यहोवा के सदृश कोई पवित्र परमेश्वर नहीं।
    तेरे अतिरिक्त कोई परमेश्वर नहीं!
    परमेश्वर के अतिरिक्त कोई आश्रय शिला[p] नहीं।
बन्द करो डींगों का हाँकना!
घमण्ड भरी बातें न करो! क्यों?
    क्योंकि यहोवा परमेश्वर सब कुछ जानता है,
परमेश्वर लोगों को राह दिखाता है और उनका न्याय करता है।
शक्तिशाली योद्धाओं के धनुष टूटते हैं!
    और दुर्बल शक्तिशाली बनते हैं!
जो लोग बीते समय में बहुत भोजन वाले थे,
    उन्हें अब भोजन पाने के लिये काम करना होगा।
किन्तु जो बीते समय में भूखे थे,
    वे अब भोजन पाकर मोटे हो रहे हैं!
जो स्त्री बच्चा उत्पन्न नहीं कर सकती थी
    अब सात ब्च्चों वाली है!
किन्तु जो बहुत बच्चों वाली थी,
    दु:खी है क्योंकि उसके बच्चे चले गये।

“यहोवा लोगों को मृत्यु देता है,
    और वह उन्हें जीवित रहने देता है।
यहोवा लोगों को मृत्युस्थल व अधोलोक को पहुँचाता है,
    और पुन: वह उन्हें जीवन देकर उठाता है।
यहोवा लोगों को दीन बनाता है,
    और यहोवा ही लोगों को धनी बनाता है।
यहोवा लोगों को नीचा करता है,
    और वह लोगों को ऊँचा उठाता है।
यहोवा कंगालों को धूलि से उठाता है।
    यहोवा उनके दुःख को दूर करता है।
यहोवा कंगालों को राजाओं के साथ बिठाता है।
    यहोवा कंगालों को प्रतिष्ठित सिंहासन पर बिठाता है।
पूरा जगत अपनी नींव तक यहोवा का है!
    यहोवा जगत को उन खम्भों पर टिकाया है!

“यहोवा अपने पवित्र लोगों की रक्षा करता है।
    वह उन्हें ठोकर खाकर गिरने से बचाता है।
किन्तु पापी लोग नष्ट किये जाएंगे।
    वे घोर अंधेरे में गिरेंगे।
उनकी शक्ति उन्हें विजय प्राप्त करने में सहायक नहीं होगी।
10 यहोवा अपने शत्रुओं को नष्ट करता है।
    सर्वोच्च परमेश्वर लोगों के विरुद्ध गगन में गरजेगा।
यहोवा सारी पृथ्वी का न्याय करेगा।
    यहोवा अपने राजा को शक्ति देगा।
    वह अपने अभीषिक्त राजा को शक्तिशाली बनायेगा।”

11 एल्काना और उसका परिवार अपने घर रामा को गया। लड़का शीलो में रह गया और याजक एली के अधीन यहोवा की सेवा करता रहा।

एली के बुरे पुत्र

12 एली के पुत्र बुरे व्यक्ति थे। वे यहोवा की परवाह नहीं करते थे। 13 वे इसकी परवाह नहीं करते थे कि याजकों से लोगों के प्रति कैसे व्यवहार की आशा की जाती है। याजकों को लोगों के लिये यह करना चाहिए: जब कभी कोई व्यक्ति बलि—भेंट लाये, तो याजक को एक बर्तन में माँस को उबालना चाहिये। याजक के सेवक को अपने हाथ में विशेष काँटा जिसके तीन नोंक हैं, लेकर आना चाहिए। 14 याजक के सेवक को काँटे को बर्तन या पतीले में डालना चाहिए। काँटें से जो कुछ बर्तन के बाहर लाये वह माँस याजक का होगा। यह याजकों द्वारा उन इस्राएलियों के लिये किया जाना चाहिये जो शीलो में बलि भेंट करने आयें। 15 किन्तु एली के पुत्रों ने यह नहीं किया। चर्बी को वेदी पर जलाये जाने के पहले ही उनके सेवक लोगों के पास बलि—भेंट करते जाते थे। याजक के सेवक कहा करते थे, “याजक को कुछ माँस भूनने के लिये दो। याजक तुमसे उबला हुआ माँस नहीं लेंगे।”

16 बलि—भेंट करने वाला व्यक्ति यह कह सकता था, “पहले चर्बी जलाओ,[q] तब तुम जो चाहो ले सकते हो।” यदि ऐसा होता तो याजक का सेवक उत्तर देता: “नहीं, मुझे अभी माँस दो, यदि तुम मुझे यह नहीं देते हो तो मैं इसे तुमसे ले ही लूँगा।”

17 इस प्रकार, होप्नी और पीनहास यह दिखाते थे कि वे यहोवा को भेंट की गई बलि के प्रति श्रद्धा नहीं रखते थे। यह यहोवा के विरुद्ध बहुत बुरा पाप था!

18 किन्तु शमूएल यहोवा की सेवा करता था। शमूएल सन का बना एक विशेष एपोद पहनता था। 19 हर वर्ष शमूएल की माँ एक छोटा चोंगा शमूएल के लिये बनाती थी। वह हर वर्ष जब अपने पति के साथ बलि—भेंट करने शीलो जाती थी तो वह छोटा चोंगा शमूएल के लिये ले जाती थी।

20 एली, एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद देता था। एली ने कहा, “यहोवा तुम्हें हन्ना द्वारा सन्तान देकर बदला दे। ये बच्चे उस लड़के का स्थान लेंगे जिसके लिये हन्ना ने प्रार्थना की थी और यहोवा को दिया था।”

तब एल्काना और हन्ना घर लौटे, और 21 यहोवा ने हन्ना पर दया की। उसके तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं और लड़का शमूएल यहोवा के पास बड़ा हुआ।

एली अपने पापी पुत्रों पर नियन्त्रण करने में असफल

22 एली बहुत बूढ़ा था। वह बार बार उन बुरे कामों के बारे में सुनता था जो उसके पुत्र शीलो में सभी इस्राएलियों के साथ कर रहे थे। एली ने यह भी सुना कि जो स्त्रियाँ मिलापवाले तुम्बू के द्वार पर सेवा करती थीं, उनके साथ वे सोते थे।

23 एली ने अपने पुत्रों से कहा, “तुमने जो कुछ बुरा किया है उसके बारे में लोगों ने यहाँ मुझे बताया है। तुम लोग ये बुरे काम क्यों करते हो? 24 पुत्रो, इन बुरे कामों को मत करो। यहोवा के लोग तुम्हारे विषय में बुरी बातें कह रहे हैं। 25 यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध पाप करता है, तो परमेश्वर उसकी मध्यस्थता कर सकता है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति यहोवा के ही विरुद्ध पाप करता है तो उस व्यक्ति की मध्यस्थता कौन कर सकता है?”

किन्तु एली के पुत्रों ने एली की बात सुनने से इन्कार कर दिया। इसलिए यहोवा ने एली के पुत्रों को मार डालने का निश्चय किया।

26 बालक शमूएल बढ़ता रहा। उसने परमेश्वर और लोगों को प्रसन्न किया।

एली के पिरवार के विषय में भंयकर भविष्यवाणी

27 परमेश्वर का एक व्यक्ति एली के पास आया। उसने कहा, “यहोवा यह बात कहता है, ‘तुम्हारे पूर्वज फिरौन के परिवार के गुलाम थे। किन्तु मैं तुम्हारे पूर्वजों के सामने उस समय प्रकट हुआ। 28 मैंने तुम्हारे परिवार समूह को इस्राएल के सभी परिवार समूहों में से चुना। मैंने तुम्हारे परिवार समूह को अपना याजक बनने के लिये चुना। मैंने उन्हें अपनी वेदी पर बलि—भेंट करने के लिये चुना। मैंने उन्हें सुगन्ध जलाने और एपोद पहनने के लिये चुना। मैंने तुम्हारे परिवार समूह को बलि—भेंट से वह माँस भी लेने दिया जो इस्राएल के लोग मुझको चढ़ाते हैं। 29 इसलिए तुम उन बलि—भेंटों और अन्नबलियों का सम्मान क्यों नहीं करते। तुम अपने पुत्रों को मुझसे अधिक सम्मान देते हो। तुम माँस के उस सर्वोत्तम भाग से मोटे हुए हो जिसे इस्राएल के लोग मेरे लिये लाते हैं।’

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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