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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
उत्पत्ति 17:1-28:19

खतना वाचा का सबूत

17 जब अब्राम निन्यानवे वर्ष का हुआ, यहोवा ने उससे बात की। यहोवा ने कहा, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ।[a] मेरे लिए ये काम करो। मेरी आज्ञा मानो और सही रास्ते पर चलो। अगर तुम यह करो तो मैं अपने और तुम्हारे बीच एक वाचा तैयार करूँगा। मैं तुम्हारे लोगों को एक महान राष्ट्र बनाने का वचन दूँगा।”

अब्राम ने अपना मुँह जमीन की ओर झुकाया। तब परमेश्वर ने उससे बात—चीत की और कहा, “हमारी वाचा का यह भाग मेरा है। मैं तुम्हें कई राष्ट्रों का पिता बनाऊँगा। मैं तुम्हारे नाम को बदल दूँगा। तुम्हारा नाम अब्राम नहीं रहेगा। तुम्हारा नाम इब्राहीम होगा। मैं तुम्हें यह नाम इसलिए दे रहा हूँ कि तुम बहुत से राष्ट्रों के पिता बनोगे।” “मैं तुमको बहुत वंशज दूँगा। तुमसे नए राष्ट्र उत्पन्न होंगे। तुमसे नए राजा उत्पन्न होंगे और मैं अपने और तुम्हारे बीच एक वाचा करूँगा। यह वाचा तुम्हारे सभी वंशजों के लिए होगी। मैं तुम्हारा और तुम्हारे सभी वंशजों का परमेश्वर रहूँगा। यह वाचा सदा के लिए बनी रहेगी और मैं यह प्रदेश तुमको और तुम्हारे सभी वंशजों को दूँगा। मैं वह प्रदेश तुम्हें दूँगा जिससे होकर तुम यात्रा कर रहे हो। मैं तुम्हें कनान प्रदेश दूँगा। मैं तुम्हें यह प्रदेश सदा के लिए दूँगा और मैं तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा।”

परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, “अब वाचा का यह तुम्हारा भाग है। मेरी इस वाचा का पालन तुम और तुम्हारे वंशज करोगे। 10 यह वाचा है जिसका तुम पालन करोगे। यह वाचा मेरे और तुम्हारे बीच है। यह तुम्हारे सभी वंशजों के लिए है। हर एक बच्चा जो पैदा होगा उसका खतना अवश्य होगा। 11 तुम चमड़े को यह बताने के लिए काटोगे कि तुम अपने और मेरे बीच के वाचा का पालन करते हो। 12 जब बच्चा आठ दिन का हो जाए, तब तुम उसका खतना करना। हर एक लड़का जो तुम्हारे लोगों में पैदा हो या कोई लड़का जो तुम्हारे लोगों का दास हो, उसका खतना अवश्य होगा। 13 इस प्रकार तुम्हारे राष्ट्र के प्रत्येक बच्चे का खतना होगा। जो लड़का तुम्हारे परिवार में उत्पन्न होगा या दास के रूप में खरीदा जाएगा उसका खतना होगा। 14 यही मेरा नियम है और मेरे और तुम्हारे बीच वाचा है। जिस किसी व्यक्ति का खतना नहीं होगा वह तुम्हारे लोगों से अलग कर दिया जाएगा। क्यों? क्योंकि उस व्यक्ति ने मेरी वाचा तोड़ी है।”

इसहाक प्रतिज्ञा का पुत्र

15 परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, “मैं सारै[b] को जो तुम्हारी पत्नी है, नया नाम दूँगा। उसका नाम सारा[c] होगा। 16 मैं उसे आशीर्वाद दूँगा। मैं उसे पुत्र दूँगा और तुम पिता होगे। वह बहुत से नए राष्ट्रों की माँ होगी। उससे राष्ट्रों के राजा पैदा होंगे।”

17 इब्राहीम ने अपना सिर परमेश्वर को भक्ति दिखाने के लिए जमीन तक झुकाया। लेकिन वह हँसा और अपने से बोला, “मैं सौ वर्ष का बूढ़ा हूँ। मैं पुत्र पैदा नहीं कर सकता और सारा नब्बे वर्ष की बुढ़िया है। वह बच्चों को जन्म नहीं दे सकती।”

18 तब इब्राहीम के कहने का मतलब परमेश्वर से पूछा, “क्या इश्माएल जीवित रहे और तेरी सेवा करे?”

19 परमेश्वर ने कहा, “नहीं, मैंने कहा कि तुम्हारी पत्नी सारा पुत्र को जन्म देगी। तुम उसका नाम इसहाक रखोगे। मैं उसके साथ वाचा करूँगा। यह वाचा ऐसी होगी जो उसके सभी वंशजों के साथ सदा बनी रहेगी।

20 “तुमने मुझसे इश्माएल के बारे में पूछा और मैंने तुम्हारी बात सुनी। मैं उसे आशीर्वाद दूँगा। उसके बहुत से बच्चे होंगे। वह बारह बड़े राजाओं का पिता होगा। उसका परिवार एक बड़ा राष्ट्र बनेगा। 21 मैं अपनी वाचा इसहाक के साथ बनाऊँगा। इसहाक ही वह पुत्र होगा जिसे सारा जनेगी। यह पुत्र अगले वर्ष इसी समय में पैदा होगा।”

22 परमेश्वर ने जब इब्राहीम से बात करनी बन्द की, इब्राहीम अकेला रह गया। परमेश्वर इब्राहीम के पास से आकाश की ओर उठ गया। 23 परमेश्वर ने कहा था कि तुम अपने कुटुम्ब के सभी लड़कों और पुरुषों का खतना कराना। इसलिए इब्राहीम ने इश्माएल और अपने घर में पैदा सभी दासों को एक साथ बुलाया। इब्राहीम ने उन दासों को भी एक साथ बुलाया जो धन से खरीदे गए थे। इब्राहीम के घर के सभी पुरुष और लड़के इकट्ठे हुए और उन सभी का खतना उसी दिन उनका माँस काट कर दिया गया।

24 जब खतना हुआ इब्राहीम निन्यानबे वर्ष का था 25 और उसका पुत्र इश्माएल खतना होने के समय तेरह वर्ष का था। 26 इब्राहीम और उसके पुत्र का खतना उसी दिन हुआ। 27 उसी दिन इब्राहीम के सभी पुरुषों का खतना हुआ। इब्राहीम के घर में पैदा सभी दासों और खरीदे गए सभी दासों का खतना हुआ।

तीम अतिथि

18 बाद में यहोवा फिर इब्राहीम के सामने प्रकट हुआ। इब्राहीम मस्रे के बांज के पेड़ों के पास रहता था। एक दिन, दिन के सबसे गर्म पहर में इब्राहीम अपने तम्बू के दरवाज़े पर बैठा था। इब्राहीम ने आँख उठा कर देखा और अपने सामने तीन पुरुषों को खड़े पाया। जब इब्राहीम ने उनको देखा, वह उनके पास गया और उन्हें प्रणाम किया। इब्राहीम ने कहा, “महोदयों,[d] आप अपने इस सेवक के साथ ही थोड़ी देर ठहरें। मैं आप लोगों के पैर धोने के लिए पानी लाता हूँ। आप पेड़ों के नीचे आराम करें। मैं आप लोगों के लिए कुछ भोजन लाता हूँ और आप लोग जितना चाहें खाएं। इसके बाद आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।”

तीनों ने कहा, “यह बहुत अच्छा है। तुम जैसा कहते हो, करो।”

इब्राहीम जल्दी से तम्बू में घुसा। इब्राहीम ने सारा से कहा, “जल्दी से तीन रोटियों के लिए आटा तैयार करो।” तब इब्राहीम अपने मवेशियों की ओर दौड़ा। इब्राहीम ने सबसे अच्छा एक जवान बछड़ा लिया। इब्राहीम ने बछड़ा नौकर को दिया। इब्राहीम ने नौकर से कहा कि तुम जल्दी करो, इस बछड़े को मारो और भोजन के लिए तैयार करो। इब्राहीम ने तीनों को भोजन के लिए माँस दिया। उसने दूध और मक्खन दिया। जब तक तीनों पुरुष खाते रहे तब तक इब्राहीम पेड़ के नीचे उनके पास खड़ा रहा।

उन व्यक्तियों ने इब्राहीम से कहा, “तुम्हारी पत्नी सारा कहाँ है?”

इब्राहीम ने कहा, “वह तम्बू में है।”

10 तब यहोवा ने कहा, “मैं बसन्त में फिर आऊँगा उस समय तुम्हारी पत्नी सारा एक पुत्र को जन्म देगी।”

सारा तम्बू में सुन रही थी और उसने इन बातों को सुना। 11 इब्राहीम और सारा दोनों बहुत बूढ़े थे। सारा प्रसव की उम्र को पार कर चुकी थी। 12 सारा मन ही मन मुस्कुरायी। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने अपने आप से कहा, “मैं और मेरे पति दोनों ही बूढे हैं। मैं बच्चा जनने के लिए काफी बूढ़ी हूँ।”

13 तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, “सारा हंसी और बोली, ‘मैं इतनी बूढ़ी हूँ कि बच्चा जन नहीं सकती।’ 14 क्या यहोवा के लिए कुछ भी असम्भव है? नही, मैं फिर बसन्त में अपने बताए समय पर आऊँगा और तुम्हारी पत्नी सारा पुत्र जनेगी।”

15 लेकिन सारा ने कहा, “मैं हंसी नहीं।” (उसने ऐसा कहा, क्योंकि वह डरी हुई थी।)

लेकिन यहोवा ने कहा, “नहीं, मैं मानता हूँ कि तुम्हारा कहना सही नहीं है। तुम ज़रूर हँसी।”

16 तब वे पुरुष जाने के लिए उठे। उन्होंने सदोम की ओर देखा और उसी ओर चल पड़े। इब्राहीम उनको विदा करने के लिए कुछ दूर तक उनके साथ गया।

परमेश्वर के साथ इब्राहीम का सौदा

17 यहोवा ने मन में कहा, “क्या मैं इब्राहीम से वह कह दूँ जो मैं अभी करूँगा? 18 इब्राहीम से एक बड़ा और शक्तिशाली राष्ट्र बन जाएगा। इसी के कारण पृथ्वी के सारे मनुष्य आशीर्वाद पायेंगे। 19 मैंने इब्राहीम के साथ खास वाचा की है। मैंने यह इसलिए किया है कि वह अपने बच्चे और अपने वंशज को उस तरह जीवन बिताने के लिए आज्ञा देगा जिस तरह का जीवन बिताना यहोवा चाहता है। मैंने यह इसलिए किया कि वे सच्चाई से रहेंगे और भले बनेंगे। तब मैं यहोवा प्रतिज्ञा की गई चीज़ों को दूँगा।”

20 तब यहोवा ने कहा, “मैंने बार—बार सुना है कि सदोम और अमोरा के लोग बहुत बुरे हैं। 21 इसलिए मैं वहाँ जाऊँगा और देखूँगा कि क्या हालत उतनी ही खराब है जितनी मैंने सुनी है। तब मैं ठीक—ठीक जान लूँगा।”

22 तब वे लोग मुड़े और सदोम की ओर चल पड़े। किन्तु इब्राहीम यहोवा के सामने खड़ा रहा। 23 तब इब्राहीम यहोवा से बोला, “हे यहोवा, क्या तू बुरे लोगों को नष्ट करने के साथ अच्छे लोगों को भी नष्ट करने की बात सोच रहा है? 24 यदि उस नगर में पचास अच्छे लोग हों तो क्या होगा? क्या तब भी तू नगर को नष्ट कर देगा? निश्चय ही तू वहाँ रहने वाले पचास अच्छे लोगों के लिए उस नगर को बचा लेगा। 25 निश्चय ही तू नगर को नष्ट नहीं करेगा। बुरे लोगों को मारने के लिए तू पचास अच्छे लोगों को नष्ट नहीं करेगा। अगर ऐसा हुआ तो अच्छे और बुरे लोग एक ही हो जाएँगे, दोनों को ही दण्ड मिलेगा। तू पूरी पृथ्वी को न्याय देने वाला है। मैं जानता हूँ कि तू न्याय करेगा।”

26 तब यहोवा ने कहा, “यदि मुझे सदोम नगर में पचास अच्छे लोग मिले तो मैं पूरे नगर को बचा लूँगा।”

27 तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा, तेरी तुलना में, मैं केवल धूलि और राख हूँ। लेकिन तू मुझको फिर थोड़ा कष्ट देने का अवसर दे और मुझे यह पूछने दे कि 28 यदि पाँच अच्छे लोग कम हों तो क्या होगा? यदि नगर में पैंतालीस ही अच्छे लोग हों तो क्या होगा। क्या तू केवल पाँच लोगों के लिए पूरा नगर नष्ट करेगा?”

तब यहोवा ने कहा, “यदि मुझे वहाँ पैंतालीस अच्छे लोग मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।”

29 इब्राहीम ने फिर यहोवा से कहा, “यदि तुझे वहाँ केवल चालीस अच्छे ओग मिले तो क्या तू नगर को नष्ट कर देगा?”

यहोवा ने कहा, “यदि मुझे चालीस अच्छे लोग वहाँ मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।”

30 तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा कृपा करके मुझ पर नाराज़ न हो। मुझे यह पूछने दे कि यदि नगर में केवल तीस अच्छे लोग हो तो क्या तू नगर को नष्ट करेगा?”

यहोवा ने कहा, “यदि मुझे तीस अच्छे लोग वहाँ मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।”

31 तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा, क्या मैं तुझे फिर कष्ट दूँ और पूछ लूँ कि यदि बीस ही अच्छे लोग वहाँ हुए तो?”

यहोवा ने उत्तर दिया, “अगर मुझे बीस अच्छे लोग मिले तो मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।”

32 तब इब्राहीम ने कहा, “हे यहोवा तू मुझसे नाराज़ न हो मुझे अन्तिम बार कष्ट देने का मौका दे। यदि तुझे वहाँ दस अच्छे लोग मिले तो तू क्या करेगा?”

यहोवा ने कहा, “यदि मुझे नगर में दस अच्छे लोग मिले तो भी मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा।”

33 यहोवा ने इब्राहीम से बोलना बन्द कर दिया, इसलिए यहोवा चला गया और इब्राहीम अपने घर लौट आया।

लूत के अतिथि

19 उनमें से दो स्वर्गदूत साँझ को सदोम नगर में आए। लूत नगर के द्वार पर बैठा था और उसने स्वर्गदूतों को देखा। लूत ने सोचा कि वे लोग नगर के बीच से यात्रा कर रहे हैं। लूत उठा और स्वर्गदूतों के पास गया तथा जमीन तक सामने झुका। लूत ने कहा, “आप सब महोदय, कृप्या मेरे घर चलें और मैं आप लोगों की सेवा करूँगा। वहाँ आप लोग अपने पैर धो सकते हैं और रात को ठहर सकते हैं। तब कल आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।”

स्वर्गदूतों ने उत्तर दिया, “नहीं, हम लोग रात को मैदान[e] में ठहरेंगे।”

किन्तु लूत अपने घर चलने के लिए बार—बार कहता रहा। इस तरह स्वर्गदूत लूत के घर जाने के लिए तैयार हो गए। जब वे घर पहुँचे तो लूत उनके पीने के लिए कुछ लाया। लूत ने उनके लिए रोटियाँ बनाईं। लूत का पकाया भोजन स्वर्गदूतों ने खाया।

उस शाम सोने के समय के पहले ही नगर के सभी भागों से लोग लूत के घर आए। सदोम के पुरुषों ने लूत का घर घेर लिया और बोले। उन्होंने कहा, “आज रात को जो लोग तुम्हारे पास आए, वे दोनों पुरुष कहाँ हैं? उन पुरुषों को बाहर हमें दे दो। हम उनके साथ कुकर्म करना चाहते हैं।”

लूत बाहर निकला और अपने पीछे से उसने दरवाज़ा बन्द कर लिया। लूत ने पुरुषों से कहा, “नहीं मेरे भाइयो मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप यह बुरा काम न करें। देखों मेरी दो पुत्रियाँ हैं, वे इसके पहले किसी पुरुष के साथ नहीं सोयी हैं। मैं अपनी पुत्रियों को तुम लोगों को दे देता हूँ। तुम लोग उनके साथ जो चाहो कर सकते हो। लेकिन इन व्यक्तियों के साथ कुछ न करो। ये लोग हमारे घर आए हैं और मैं इनकी रक्षा जरूर करूँगा।”

घर के चारों ओर के लोगों ने उत्तर दिया, “रास्ते से हट जाओ।” तब पुरुषों ने अपने मन में सोचा, “यह व्यक्ति लूत हमारे नगर में अतिथि के रूप में आया। अब यह सिखाना चाहता है कि हम लोग क्या करें।” तब लोगों ने लूत से कहा, “हम लोग उनसे भी अधिक तुम्हारा बुरा करेंगे।” इसलिए उन व्यक्तियों ने लूत को घेर कर उसके निकट आना शुरू किया। वे दरवाज़े को तोड़कर खोलना चाहते थे।

10 किन्तु लूत के साथ ठहरे व्यक्तियों ने दरवाज़ा खोला और लूत को घर के भीतर खींच लिया। तब उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया। 11 दोनों व्यक्तियों ने दरवाज़े के बाहर के पुरुषों को अन्धा कर दिया। इस तरह घर में घुसने की कोशिश करने वाले जवान व बूढ़े सब अन्धे हो गए और दरवाज़ा न पा सके।

सदोम से बच निकलना

12 दोनों व्यक्तियों ने लूत से कहा, “क्या इस नगर में ऐसा व्यक्ति है जो तुम्हारे परिवार का है? क्या तुम्हारे दामाद, तुम्हारी पुत्रियाँ या अन्य कोई तुम्हारे परिवार का व्यक्ति है? यदि कोई दूसरा इस नगर में तुम्हारे परिवार का है तो तुम अभी नगर छोड़ने के लिए कह दो। 13 हम लोग इस नगर को नष्ट करेंगे। यहोवा ने उन सभी बुराइयों को सुन लिया है जो इस नगर में है। इसलिए यहोवा ने हम लोगों को इसे नष्ट करने के लिए भेजा हैं।”

14 इसलिए लूत बाहर गया और अपनी अन्य पुत्रियों से विवाह करने वाले दामादों से बातें कीं। लूत ने कहा, “शीघ्रता करो और इस नगर को छोड़ दो।” यहोवा इसे तुरन्त नष्ट करेगा। लेकिन उन लोगों ने समझा कि लूत मज़ाक कर रहा है।

15 दूसरी सुबह को भोर के समय ही स्वर्गदूत लूत से जल्दी करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “देखो इस नगर को दण्ड मिलेगा। इसलिए तुम अपनी पत्नी और तुम्हारे साथ जो दो पुत्रियाँ जो अभी तक हैं, उन्हें लेकर इस जगह को छोड़ दो। तब तुम नगर के साथ नष्ट नहीं होगे।”

16 लेकिन लूत दुविधा में रहा और नगर छोड़ने की जल्दी उसने नहीं की। इसलिए दोनों स्वर्गदूतों ने लूत, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों के हाथ पकड़ लिए। उन दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर सुरक्षित स्थान में पहुँचाया। लूत और उसके परिवार पर यहोवा की कृपा थी। 17 इसलिए दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर पहुँचा दिया। जब वे बाहर हो गए तो उनमें से एक ने कहा, “अपना जीवन बचाने के लिए अब भागो। नगर को मुड़कर भी मत देखो। इस घाटी में किसी जगह न रूको। तब तक भागते रहो जब तक पहाड़ों में न जा पहुँचो। अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम नगर के साथ नष्ट हो जाओगे।”

18 तब लूत ने दोनों से कहा, “महोदयों, कृपा करके इतनी दूर दौड़ने के लिए विवश न करें। 19 आप लोगों ने मुझ सेवक पर इतनी अधिक कृपा की है। आप लोगों ने मुझे बचाने की कृपा की है। लेकिन मैं पहाड़ी तक दौड़ नहीं सकता। अगर मैं आवश्यकता से अधिक धीरे दौड़ा तो कुछ बुरा होगा और मैं मारा जाऊँगा। 20 लेकिन देखें यहाँ पास में एक बहुत छोटा नगर है। हमें उस नगर तक दौड़ने दें। तब हमारा जीवन बच जाएगा।”

21 स्वर्गदूत ने लूत से कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें ऐसा भी करने दूँगा। मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा जिसमें तुम जा रहे हो। 22 लेकिन वहाँ तक तेज दौड़ो। मैं तब तक सदोम को नष्ट नहीं करूँगा जब तक तुम उस नगर में सुरक्षित नहीं पहुँच जाते।” (इस नगर का नाम सोअर है, क्योंकि यह छोटा है।)

सदोम और अमोरा नष्ट किए गए

23 जब लूत सोअर में घुस रहा था, सबेरे का सूरज चमकने लगा 24 और यहोवा ने सदोम और अमोरा को नष्ट करना आरम्भ किया। यहोवा ने आग तथा जलते हुए गन्धक को आकाश से नीचें बरसाया। 25 इस तरह यहोवा ने उन नगरों को जला दिया और पूरी घाटी के सभी जीवित मनुष्यों तथा सभी पेड़ पौधों को भी नष्ट कर दिया।

26 जब वे भाग रहे थे, तो लूत की पत्नी ने मुड़कर नगर को देखा। जब उसने मुड़कर देखा तब वह एक नमक की ढेर हो गई। 27 उसी दिन बहुत सबेरे इब्राहीम उठा और उस जगह पर गया जहाँ वह यहोवा के सामने खड़ा होता था। 28 इब्राहीम ने सदोम और अमोरा नगरों की ओर नज़र डाली। इब्राहीम ने उस घाटी की पूरी भूमि की ओर देखा। इब्राहीम ने उस प्रदेश से उठते हुए घने धुँए को देखा। बड़ी भयंकर आग से उठते धुँए के समान वह दिखाई पड़ा।

29 घाटी के नगरों को परमेश्वर ने नष्ट कर दिया। जब परमेश्वर ने यह किया तब इब्राहीम ने जो कुछ माँगा था उसे उसने याद रखा। परमेश्वर ने लूत का जीवन बचाया लेकिन परमेश्वर ने उस नगर को नष्ट कर दिया जिसमें लूत रहता था।

लूत और उसकी पुत्रियाँ

30 लूत सोअर में लगातार रहने से डरा। इसलिए वह और उसकी दोनों पुत्रियाँ पहाड़ों में गये और वहीं रहने लगे। वे वहाँ एक गुफा में रहते थे। 31 एक दिन बड़ी पुत्री ने छोटी से कहा, “पृथ्वी पर चारों ओर पुरुष और स्त्रियाँ विवाह करते हैं। लेकिन यहाँ आस पास कोई पुरुष नहीं है जिससे हम विवाह करें। हम लोगों के पिता बूढ़े हैं। 32 इसलिए हम लोग अपने पिता का उपयोग बच्चों को जन्म देने के लिए करें जिससे हम लोगों का वंश चल सके। हम लोग अपने पिता के पास चलेंगे और दाखरस पिलायेंगे तथा उसे मदहोश कर देंगे। तब हम उसके साथ सो सकते हैं।”

33 उस रात दोनों पुत्रियाँ अपने पिता के पास गईं और उसे उन्होंने दाखरस पिलाकर मदहोश कर दिया। तब बड़ी पुत्री पिता के बिस्तर में गई और उसके साथ सोई। लूत अधिक मदहोश था इसलिए यह न जान सका कि वह उसके साथ सोया।

34 दूसरे दिन बड़ी पुत्री ने छोटी से कहा, “पिछली रात मैं अपने पिता के साथ सोई। आओ इस रात फिर हम उसे दाखरस पिलाकर मदहोश कर दें। तब तुम उसके बिस्तर में जा सकती हो और उसके साथ सो सकती हो। इस तरह हम लोगों को अपने पिता का उपयोग बच्चों को जन्म देकर अपने वंश को चलाने के लिए करना चाहिए।” 35 इसलिए उन दोनों पुत्रियों ने अपने पिता को दाखरस पिलाकर मदहोश कर दिया। तब छोटी पुत्री उसके बिस्तर में गई और उसके पास सोई। लूत इस बार भी न जान सका कि उसकी पुत्री उसके साथ सोई।

36 इस तरह लूत की दोनों पुत्रियाँ गर्भवती हुईं। उनका पिता ही उनके बच्चों का पिता था। 37 बड़ी पुत्री ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने लड़के का नाम मोआब रखा। मोआब उन सभी मोआबी लोगों का पिता है, जो अब तक रह रहे हैं। 38 छोटी पुत्री ने भी एक पुत्र जना। इसने अपने पुत्र का नाम बेनम्मी रखा। बेनम्मी अभी उन सबी अम्मोनी लोगों का पिता है जो अब तक रह रहे हैं।

इब्राहीम गरार जाता है

20 इब्राहीम ने उस जगह को छोड़ दिया और नेगेव की यात्रा की। इब्राहीम कादेश और शूर के बीच गरार में बस गया। गरार में इब्राहीम ने लोगों से कहा कि सारा मेरी बहन है। गरार के राजा अबीमेलेक ने यह बात सुनी। अबीमेलेक सारा को चाहता था इसलिए उसने कुछ नौकर उसे लाने के लिए भेजे। लेकिन एक रात परमेश्वर ने अबीमेलेक से स्वप्न में बात की। परमेश्वर ने कहा, “देखो, तुम मर जाओगे। जिस स्त्री को तुमने लिया है उसका विवाह हो चुका है।”

लेकिन अबीमेलेक अभी सारा के साथ नहीं सोया था। इसलिए अबीमेलेक ने कहा, “हे यहोवा, मैं दोषी नहीं हूँ। क्या तू निर्दोष व्यक्ति को मारेगा। इब्राहीम ने मुझसे खुद कहा, ‘यह स्त्री मेरी बहन है’ और स्त्री ने भी कहा, ‘यह पुरुष मेरा भाई है।’ मैं निर्दोष हूँ। मैं नहीं जानता था कि मैं क्या कर रहा हूँ?”

तब परमेश्वर ने अबीमेलेक से स्वप्न में कहा, “हाँ, मैं जानता हूँ कि तुम निर्दोष हो और मैं यह भी जानता हूँ कि तुम यह नहीं जानते थे कि तुम क्या कर रहे थे? मैंने तुमको बचाया। मैंने तुम्हें अपने विरुद्ध पाप नहीं करने दिया। यह मैं ही था जिसने तुम्हें उसके साथ सोने नहीं दिया। इसलिए इब्राहीम को उसकी पत्नी लौटा दो। इब्राहीम एक नबी है। वह तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा और तुम जीवित रहोगे किन्तु यदि तुम सारा को नहीं लौटाओगे तो मैं शाप देता हूँ कि तुम मर जाओगे। तुम्हारा सारा परिवार तुम्हारे साथ मर जाएगा।”

इसलिए दूसरे दिन बहुत सबेरे अबीमेलेक ने अपने सभी नौकरों को बुलाया। अबीमेलेक ने सपने में हुईं सारी बातें उनको बताईं। नौकर बहुत डर गए। तब अबीमेलेक ने इब्राहीम को बुलाया और उससे कहा, “तुमने हम लोगों के साथ ऐसा क्यों किया? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? तुम ने यह झूठ क्यों बोला कि वह तुम्हारी बहन है। तुमने हमारे राज्य पर बहुत बड़ी विपत्ति ला दी है। यह बात तुम्हें मेरे साथ नहीं करनी चाहिए थी। 10 तुम किस बात से डर रहे थे? तुमने ये बातें मेरे साथ क्यों कीं?”

11 तब इब्राहीम ने कहा, “मैं डरता था। क्योंकि मैंने सोचा कि यहाँ कोई भी परमेश्वर का आदर नहीं करता। मैंने सोचा कि सारा को पाने के लिए कोई मुझे मार डालेगा। 12 वह मेरी पत्नी है, किन्तु वह मेरी बहन भी है। वह मेरे पिता की पुत्री तो है परन्तु मेरी माँ की पुत्री नहीं है। 13 परमेश्वर ने मुझे पिता के घर से दूर पहुँचाया है। परमेश्वर ने कई अलग—अलग प्रदेशों में मुझे भटकाया। जब ऐसा हुआ तो मैंने सारा से कहा, ‘मेरे लिए कुछ करो, लोगों से कहो कि तुम मेरी बहन हो।’”

14 तब अबीमेलेक ने जाना कि क्या हो चुका है। इसलिए अबीमेलेक ने इब्राहीम को सारा लौटा दी। अबीमेलेक ने इब्राहीम को कुछ भेड़ें, मवेशी तथा दास भी दिए। 15 अबीमेलेक ने कहा, “तुम चारों और देख लो। यह मेरा देश है। तुम जिस जगह चाहो, रह सकते हो।”

16 अबीमेलेक ने सारा से कहा, “देखो, मैंने तुम्हारे भाई को एक हजार चाँदी के टुकड़े दिए हैं। मैंने यह इसलिए किया कि जो कुछ हुआ उससे मैं दुःखी हूँ। मैं चाहता हूँ कि हर एक व्यक्ति यह देखे कि मैंने अच्छे काम किए हैं।”

17-18 परमेश्वर ने अबीमेलेक के परिवार की सभी स्त्रियों को बच्चा जनने के अयोग्य बनाया। परमेश्वर ने वह इसलिए किया कि उसने इब्राहीम की पत्नी सारा को रख लिया था। लेकिन इब्राहीम ने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने अबीमेलेक, उसकी पत्नियों और दास—कन्याओं को स्वस्थ कर दिया।

अन्त में सारा को एक बच्चा

21 यहोवा ने सारा को यह वचन दिया था कि वह उस पर कृपा करेगा। यहोवा अपने वचन के अनुसार उस पर दयालु हुआ। सारा गर्भवती हुई और बुढ़ापे में इब्राहीम के लिए एक बच्चा जनी। सही समय पर जैसा परमेश्वर ने वचन दिया था वैसा ही हुआ। सारा ने पुत्र जना और इब्राहीम ने उसका नाम इसहाक रखा। परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार इब्राहीम ने आठ दिन का होने पर इसहाक का खतना किया।

इब्राहीम सौ वर्ष का था जब उसका पुत्र इसहाक उत्पन्न हुआ और सारा ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे सुखी[f] बना दिया है। हर एक व्यक्ति जो इस बारे में सुनेगा वह मुझसे खुश होगा। कोई भी यह नहीं सोचता था कि सारा इब्राहीम को उसके बुढ़ापे के लिए उसे एक पुत्र देगी। लेकिन मैंने बूढ़े इब्राहीम को एक पुत्र दिया है।”

घर में परेशानी

अब बच्चा इतना बड़ा हो गया कि माँ का दूध छोड़ वह ठोस भोजन खाना शुरू करे। जिस दिन उसका दूध छुड़वाया गया उस दिन इब्राहीम ने एक बहुत बड़ा भोज रखा। सारा ने हाजिरा के पुत्र को खेलते हुए देखा। (बीते समय में मिस्री दासी हाजिरा ने एक पुत्र को जन्म दिया था। इब्राहीम उस पुत्र का भी पिता था।) 10 इसलिए सारा ने इब्राहीम से कहा, “उस दासी स्त्री तथा उसके पुत्र को यहाँ से भेज दो। जब हम लोग मरेंगे हम लोगों की सभी चीज़ें इसहाक को मिलेंगी। मैं नहीं चाहती कि उसका पुत्र इसहाक के साथ उन चीज़ों में हिस्सा ले।”

11 इन सभी बातों ने इब्राहीम को बहुत दुःखी कर दिया। वह अपने पुत्र इश्माएल के लिए दुःखी था। 12 किन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, “उस लड़के के बारे में दुःखी मत होओ। उस दासी स्त्री के बारे में भी दुःखी मत होओ। जो सारा चाहती है तुम वही करो। तुम्हारा वंश इसहाक के वंश से चलेगा। 13 लेकिन मैं तुम्हारी दासी के पुत्र को भी अशीर्वाद दूँगा। वह तुम्हारा पुत्र है इसलिए मैं उसके परिवार को भी एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा।”

14 दूसरे दिन बहुत सवेरे इब्राहीम ने कुछ भोजन और पानी लिया। इब्राहीम ने यह चीज़ें हाजिरा को दें दी। हाजिरा ने वे चीज़ें लीं और बच्चे के साथ वहाँ से चली गई। हाजिरा ने वह स्थान छोड़ा और वह बेर्शेबा की मरुभूमि में भटकने लगी।

15 कुछ समय बाद हाजिरा का सारा पानी स्माप्त हो गया। पीने के लिए कुछ भी पानी न बचा। इसलिए हाजिरा ने अपने बच्चे को एक झाड़ी के नीचे रखा। 16 हाजिरा वहाँ से कुछ दूर गई। तब वह रुकी और बैठ गई। हाजिरा ने सोचा कि उसका पुत्र मर जाएगा क्योंकि वहाँ पानी नहीं था। वह उसे मरता हुआ देखना नहीं चाहती थी। वह वहाँ बैठ गई और रोने लगी।

17 परमेश्वर ने बच्चे का रोना सुना। स्वर्ग से एक दूत हाजिरा के पास आया। उसने पूछा, “हाजिरा, तुम्हें क्या कठिनाई है। परमेश्वर ने वहाँ बच्चे का रोना सुन लिया। 18 जाओ, और बच्चे को संभालो। उसका हाथ पकड़ लो और उसे साथ ले चलो। मैं उसे बहुत से लोगों का पिता बनाऊँगा।”

19 परमेश्वर ने हाजिरा की आँखे इस प्रकार खोलीं कि वह एक पानी का कुआँ देख सकी। इसलिए कुएँ पर हाजिरा गई और उसके थैले को पानी से भर लिया। तब उसने बच्चे को पीने के लिए पानी दिया।

20 बच्चा जब तक बड़ा न हुआ तब तक परमेश्वर उसके साथ रहा। इश्माएल मरुभूमि में रहा और एक शिकारी बन गया। उसने बहुत अच्छा तीर चलाना सीख लिया। 21 उसकी माँ मिस्र से उसके लिए दुल्हन लाई। वे पारान मरुभूमि में रहने लगे।

इब्राहीम की अबीमेलेक से सन्धि

22 तब अबीमेलेक और पीकोल ने इब्राहीम से बातें कीं। पीकोल अबीमेलेक की सेना का सेनापति था। उन्होंने इब्राहीम से कहा, “तुम जो कुछ करते हो, परमेश्वर तुम्हारा साथ देता है। 23 इसलिए तुम परमेश्वर के सामने वचन दो। यह वचन दो कि तुम मेरे और मेरे बच्चों के लिए भले रहोगे। तुम यह वचन दो कि तुम मेरे प्रति और जहाँ रहे हो उस देश के प्रति दयालु रहोगे। तुम यह भी वचन दो कि मैं तुम्हारे प्रति जितना दयालु रहा उतना तुम मुझ पर भी दयालु रहोगे।”

24 इब्राहीम ने कहा, “मैं वचन देता हूँ कि तुमसे मैं वैसा ही व्यवहार करूँगा जैसा तुमने मेरे साथ व्यवहार किया है।” 25 तब इब्राहीम ने अबीमेलेक से शिकायत की। इब्राहीम ने इसलिए शिकायत की कि अबीमेलेक के नौकरों ने पानी के एक कुएँ पर कब्ज़ा कर लिया था।

26 अबीमेलेक ने कहा, “इसके बारे में मैंने यह पहली बार सुना है! मुझे नहीं पता है, कि यह किसने किया है, और तुमने भी इसकी चर्चा मुझसे इससे पहले कभी नहीं की।”

27 इसलिए इब्राहीम और अबीमेलेक ने एक सन्धि की। 28 इब्राहीम ने सन्धि के प्रमाण के रूप में अबीमेलेक को कुछ भेड़ें और मवेशी दिए। इब्राहीम सात मादा मेमने भी अबीमेलेक के सामने लाया।

29 अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, “तुम ये सात मादा मेमने अलग क्यों दे रहे हो?”

30 इब्राहीम ने कहा, “जब तुम इन सात[g] मेमनों को मुझसे लोगे तो यह सबूत रहेगा कि यह कुआँ मैंने खोदा है।”

31 इसलिए इसके बाद वह कुआँ बेर्शेबा कहलाया। उन्होंने कुएँ को यह नाम दिया क्योंकि यह वह जगह थी जहाँ उन्होंने एक दूसरे को वचन दिया था।

32 इस प्रकार इब्राहीम और अबीमेलेक ने बेर्शेबा में सन्धि की। तब अबीमेलेक और सेनापति दोनों पलिश्तियों के प्रदेश में लौट गए।

33 इब्राहीम ने बेर्शेबा में एक विशेष पेड़ लगाया। उस जगह इब्राहीम ने यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना की 34 और इब्राहीम पलिश्तियों के देश में बहुत समय तक रहा।

इब्राहीम, अपने पुत्र को मार डालो!

22 इन बातों के बाद परमेश्वर ने इब्राहीम के विश्वास की परीक्षा लेना तय किया। परमेश्वर ने उससे कहा, “इब्राहीम!”

और इब्राहीम ने कहा, “हाँ।”

परमेश्वर ने कहा, “अपना पुत्र लो, अपना एकलौता पुत्र, इसहाक जिससे तुम प्रेम करते हो मोरिय्याह पर जाओ, तुम उस पहाड़ पर जाना जिसे मैं तुम्हें दिखाऊँगा। वहाँ तुम अपने पुत्र को मारोगे और उसको होमबलि स्वरूप मुझे अर्पण करोगे।”

सवेरे इब्राहीम उठा और उसने गधे को तैयार किया। इब्राहीम ने इसहाक और दो नौकरों को साथ लिया। इब्राहीम ने बलि के लिए लकड़ियाँ काटकर तैयार कीं। तब वे उस जगह गए जहाँ जाने के लिए परमेश्वर ने कहा। उनकी तीन दिन की यात्रा के बाद इब्राहीम ने ऊपर देखा और दूर उस जगह को देखा जहाँ वे जा रहे थे। तब इब्राहीम ने अपने नौकरों से कहा, “यहाँ गधे के साथ ठहरो। मैं अपने पुत्र को उस जगह ले जाऊँगा और उपासना करूँगा। तब हम बाद में लौट आएंगे।”

इब्राहीम ने बलि के लिए लकड़ियाँ लीं और इन्हें पुत्र के कन्धों पर रखा। इब्राहीम ने एक विशेष छुरी और आग ली। तब इब्राहीम और उसका पुत्र दोनों उपासना के लिए उस जगह एक साथ गए।

इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, “पिताजी!”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “हाँ, पुत्र।”

इसहाक ने कहा, “मैं लकड़ी और आग तो देखता हूँ, किन्तु वह मेमना कहाँ है जिसे हम बलि के रूप में जलाएंगे?”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “पुत्र परमेश्वर बलि के लिए मेमना स्वयं जुटा रहा है।”

इस तरह इब्राहीम और उसका पुत्र उस जगह साथ—साथ गए। वे उस जगह पर पहुँचे जहाँ परमेश्वर ने पहुँचने को कहा था। वहाँ इब्राहीम ने एक बलि की वेदी बनाई। इब्राहीम ने वेदी पर लकड़ियाँ रखीं। तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बाँधा। इब्राहीम ने इसहाक को वेदी की लकड़ियों पर रखा। 10 तब इब्राहीम ने अपनी छुरी निकाली और अपने पुत्र को मारने की तैयारी की।

11 तब यहोवा के दूत ने इब्राहीम को रोक दिया। दूत ने स्वर्ग से पुकारा और कहा, “इब्राहीम, इब्राहीम।”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “हाँ।”

12 दूत ने कहा, “तुम अपने पुत्र को मत मारो अथवा उसे किसी प्रकार की चोट न पहुँचाओ। मैंने अब देख लिया कि तुम परमेश्वर का आदर करते हो और उसकी आज्ञा मानते हो। मैं देखता हूँ कि तुम अपने एक लौते पुत्र को मेरे लिए मारने के लिए तैयार हो।”

13 इब्राहीम ने ऊपर दृष्टि की और एक मेढ़े को देखा। मेढ़े के सींग एक झाड़ी में फँस गए थे। इसलिए इब्राहीम वहाँ गया, उसे पकड़ा और उसे मार डाला। इब्राहीम ने मेढ़े को अपने पुत्र के स्थान पर बलि चढ़ाया। इब्राहीम का पुत्र बच गया। 14 इसलिए इब्राहीम ने उस जगह का नाम “यहोवा यिरे”[h] रखा। आज भी लोग कहते हैं, “इस पहाड़ पर यहोवा को देखा जा सकता है।”

15 यहोवा के दूत ने स्वर्ग से इब्राहीम को दूसरी बार पुकारा। 16 दूत ने कहा, “तुम मेरे लिए अपने पुत्र को मारने के लिए तैयार थे। यह तुम्हारा एकलौता पुत्र था। तुमने मेरे लिए ऐसा किया है इसलिए मैं, यहोवा तुमको वचन देता हूँ कि, 17 मैं तुम्हें निश्चय ही आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हें उतने वंशज दूँगा जितने आकाश में तारे हैं। ये इतने अधिक लोग होंगे जितने समुद्र के तट पर बालू के कण और तुम्हारे लोग अपने सभी शत्रुओं को हराएंगे। 18 संसार के सभी राष्ट्र तुम्हारे परिवार के द्वारा आशीर्वाद पाएंगे।[i] मैं यह इसलिए करूँगा क्योंकि तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया।”

19 तब इब्राहीम अपने नौकरों के पास लौटा। उन्होंने बेर्शेबा तक वापसी यात्रा की और इब्राहीम वहीं रहने लगा।

20 इसके बाद, इब्राहीम को यह खबर मिली। खबर यह थी, “तुम्हारे भाई नाहोर और उसकी पत्नी मिल्का के अब बच्चे हैं। 21 पहला पुत्र ऊस है। दूसरा पुत्र बूज है। तीसरा पुत्र अराम का पिता कमूएल है। 22 इसके अतिरिक्त केसेद, हजो, पिल्दाश, यिदलाप और बतूएल है।” 23 बतूएल, रिबका का पिता था। मिल्का इन आठ पुत्रों की माँ थी और नाहोर पिता था। नाहोर इब्राहीम का भाई था। 24 नाहोर के दूसरे चार लड़के उसकी एक रखैल रुमा से थे। ये पुत्र तेबह, गहम, तहश, माका थे।

सारा मरती है

23 सारा एक सौ सत्ताईस वर्ष तक जीवित रही। वह कनान प्रदेश के किर्यतर्बा (हेब्रोन) नगर में मरी। इब्राहीम बहुत दुःखी हुआ और उसके लिए वहाँ रोया। तब इब्राहीम ने अपनी मरी पत्नी को छोड़ा और हित्ती लोगों से बात करने गया। उसने कहा, “मैं इस प्रदेश में नहीं रहता। मैं यहाँ केवल एक यात्री हूँ। इसलिए मेरे पास अपनी पत्नी को दफनाने के लिए कोई जगह नहीं है। मैं कुछ भूमि चाहता हूँ जिसमें अपनी पत्नी को दफना सकूँ।”

हित्ती लोगों ने इब्राहीम को उत्तर दिया, “महोदय, आप हम लोगों के बीच परमेश्वर के प्रमुख व्यक्तियों में से एक हैं। आप अपने मरे को दफनाने के लिए सबसे अच्छी जगह, जो हम लोगों के पास है, ले सकते हैं। आप हम लोगों की कोई भी दफनाने की जगह, जो आप चाहते हैं, ले सकते हैं। हम लोगों मे से कोई भी आपको पत्नी को दफनाने से नहीं रोकेगा।”

इब्राहीम उठा और लोगों की तरफ सिर झुकाया। इब्राहीम ने उनसे कहा, “यदि आप लोग सचमुच मेरी मरी हुई पत्नी को दफनाने में मेरी मद्द करना चाहते हैं तो सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिए बात करें। मैं मकपेला की गुफा को खरीदना पसन्द करूँगा। एप्रोन इसका मालिक है। यह उसके खेत के सिरे पर है। मैं इसके मूल्य के अनुसार उसे पूरी कीमत दूँगा। मैं चाहता हूँ कि आप लोग इस बात के गवाह रहें कि मैं इस भूमि को कब्रिस्तान के रूप में खरीद रहा हूँ।”

10 एप्रोन वहीं लोगों के बीच बैठा था। एप्रोन ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 11 “नहीं, महोदय। मैं आपको भूमि दूँगा। मैं आपको वह गुफा दूँगा। मैं यह आपको इसलिए दूँगा कि आप इसमें अपनी पत्नी को दफना सकें।”

12 तब इब्राहीम ने हित्ती लोगों के सामने अपना सिर झुकाया। 13 इब्राहीम ने सभी लोगों के सामने एप्रोन से कहा, “किन्तु मैं तो खेत की पूरी कीमत देना चाहता हूँ। मेरा धन स्वीकार करें। मैं अपने मरे हुए को इसमें दफनाऊँगा।”

14 एप्रोन ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 15 “महोदय, मेरी बात सुनें। चार सौ चाँदी के शेकेल हमारे और आपके लिए क्या अर्थ रखते हैं? भूमि लें और अपनी मरी पत्नी को दफनाएं।”

16 इब्राहीम ने समझा कि एप्रोन उसे भूमि की कीमत बता रहा है, इसलिए हित्ती लोगों को गवाह मानकर, इब्राहीम ने चाँदी के चार सौ शेकेल एप्रोन के लिए तौले। इब्राहीम ने पैसा उस व्यापारी[j] को दे दिया जो इस भूमि के बेचने का धन्धा कर रहा था।

17-18 इस प्रकार एप्रोन के खेत के मालिक बदल गए। वह खेत मम्रे के पूर्व मकपेला में था। नगर के सभी लोगों ने एप्रोन और इब्राहीम के बीच हुई वाचा को देखा। 19 इसके बाद इब्राहीम ने अपनी पत्नी सारा को मम्रे कनान प्रदेश में (हेब्रोन) के निकट उस खेत की गुफा में दफनाया। 20 इब्राहीम ने खेत और उसकी गुफा को हित्ती लोगों से खरीदा। यह उसकी सम्पत्ति हो गई, और उसने इसका प्रयोग कब्रिस्तान के रूप में किया।

इसहाक के लिए पत्नी

24 इब्राहीम बहुत बुढ़ापे तक जीवित रहा। यहोवा ने इब्राहीम को आशीर्वाद दिया और उसके हर काम में उसे सफलता प्रदान की। इब्राहीम का एक बहुत पुराना नौकर था जो इब्राहीम का जो कुछ था उसका प्रबन्धक था। इब्राहीम ने उस नौकर को बुलाया और कहा, “अपने हाथ मेरी जांघों के नीचे रखो। अब मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे एक वचन दो। धरती और आकाश के परमेश्वर यहोवा के सामने तुम वचन दो कि तुम कनान की किसी लड़की से मेरे पुत्र का विवाह नहीं होने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु एक कनानी लड़की से उसे विवाह न करने दो। तुम मेरे देश और मेरे अपने लोगों में लौटकर जाओ। वहाँ मेरे पुत्र इसहाक के लिए एक दुल्हन खोजो। तब उसे यहाँ उसके पास लाओ।”

नौकर ने उससे कहा, “यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश में लौटना न चाहे। तब, क्या मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारी जन्मभूमि को ले जाऊँ?”

इब्राहीम ने उससे कहा, “नहीं, तुम हमारे पुत्र को उस देश में न ले जाओ। यहोवा, स्वर्ग का परमेश्वर मुझे मेरी जन्मभूमि से यहाँ लाया। वह देश मेरे पिता और मेरे परिवार का घर था। किन्तु यहोवा ने यह वचन दिया कि वह नया प्रदेश मेरे परिवार वालों का होगा। यहोवा अपना एक दूत तुम्हारे सामने भेजे जिससे तुम मेरे पुत्र के लिए दुल्हन चुन सको। किन्तु यदि लड़की तुम्हारे साथ आना मना करे तो तुम अपने वचन से छुटकारा पा जाओगे। किन्तु तुम मेरे पुत्र को उस देश में वापस मत ले जाना।”

इस प्रकार नौकर ने अपने मालिक की जांघों के नीचे अपना हाथ रखकर वचन दिया।

खोज आरम्भ होती है

10 नौकर ने इब्राहीम के दस ऊँट लिए और उस जगह से वह चला गया। नौकर कई प्रकार की सुन्दर भेंटें अपने साथ ले गया। वह नाहोर के नगर मेसोपोटामिया को गया। 11 वह नगर के बाहर के कुएँ पर ग्या। यह बात शाम को हुई जब स्त्रियाँ पानी भरने के लिए बाहर आती हैं। नौकर ने वहीं ऊँटों को घुटनों के बल बिठाया।

12 नौकर ने कहा, “हे यहोवा, तू मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर है। आज तू उसके पुत्र के लिए मुझे एक दुल्हन प्राप्त करा। कृप्या मेरे स्वामी इब्राहीम पर यह दया कर। 13 मैं यहाँ इस जल के कुएँ के पास खड़ा हूँ और पानी भरने के लिए नगर से लड़कियाँ आ रहीं हैं। 14 मैं एक विशेष चिन्ह की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जिससे मैं जान सकूँ कि इसहाक के लिए कौन सी लड़की ठीक है। यह विशेष चिन्ह है: मैं लड़की से कहूँगा ‘कृपा कर आप घड़े को नीचे रखें जिससे मैं पानी पी सकूँ।’ मैं तब समझूँगा कि यह ठीक लड़की है जब वह कहेगी, ‘पीओ, और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी दूँगी।’ यदि ऐसा होगा तो तू प्रमाणित कर देगा कि इसहाक के लिए यह लड़की ठीक है। मैं समझूँगा कि तूने मेरे स्वामी पर कृपा की है।”

एक दुल्हन मिली

15 तब नौकर की प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका नाम की एक लड़की कुएँ पर आई। रिबका बतूएल की पुत्री थी। (बतूएल इब्राहीम के भाई नाहोर और मिल्का का पुत्र था।) रिबका अपने कंधे पर पानी का घड़ा लेकर कुएँ पर आई थी। 16 लड़की बहुत सुन्दर थी। वह कुँवारी थी। वह किसी पुरुष के साथ कभी नहीं सोई थी। वह अपना घड़ा भरने के लिए कुएँ पर आई। 17 तब नौकर उसके पास तक दौड़ कर गया और बोला, “कृप्या करके अपने घड़े से पीने के लिए थोड़ा जल दें।”

18 रिबका ने जल्दी कंधे से घड़े को नीचे उतारा और उसे पानी पिलाया। रिबका ने कहा, “महोदय, यह पिएँ।” 19 ज्यों ही उसने पीने के लिए कुछ पानी देना खत्म किया, रिबका ने कहा, “मैं आपके ऊँटों को भी पानी दे सकती हूँ।” 20 इसलिए रिबका ने झट से घड़े का सारा पानी ऊँटों के लिए बनी नाद में उंड़ेल दिया। तब वह और पानी लाने के लिए कुएँ को दौड़ गई और उसने सभी ऊँटों को पानी पिलाया।

21 नौकर ने उसे चुप—चाप ध्यान से देखा। वह तय करना चाहता था कि यहोवा ने शायद बात मान ली है और उसकी यात्रा को सफल बना दिया है। 22 जब ऊँटों ने पानी पी लिया तब उसने रिबका को चौथाई औंस[k] तौल कर एक सोने की अँगूठी दी। उसने उसे दो बाजूबन्द भी दिए जो तौल में हर एक पाँच औंस[l] थे। 23 नौकर ने पूछा, “तुम्हारा पिता कौन है? क्या तुम्हारे पिता के घर में इतनी जगह है कि हम सब के रहने तथा सोने का प्रबन्ध हो सके?”

24 रिबका ने उत्तर दिया, “मेरे पिता बतूएल हैं जो मिल्का और नाहोर के पुत्र हैं।” 25 तब उसने कहा, “और हाँ हम लोगों के पास तुम्हारे ऊँटों के लिए चारा है और तुम्हारे लिए सोने की जगह है।”

26 नौकर ने सिर झुकाया और यहोवा की उपासना की। 27 नौकर ने कहा, “मेरे मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा की कृपा है। यहोवा हमारे मालिक पर दयालु है। यहोवा ने मुझे अपने मालिक के पुत्र के लिए सही दुल्हन[m] दी है।”

28 तब रिबका दौड़ी और जो कुछ हुआ था अपने परिवार को बताया। 29-30 रिबका का एक भाई था। उसका नाम लाबान था। रिबका ने उसे वे बातें बताईं जो उससे उस व्यक्ति ने की थीं। लाबान उसकी बातें सुन रहा था। जब लाबान ने अँगूठी और बहन की बाहों पर बाजूबन्द देखा तो वह दौड़कर कुएँ पर पहुँचा और वहाँ वह व्यक्ति कुएँ के पास, ऊँटों के बगल में खड़ा था। 31 लाबान ने कहा, “महोदय, आप पधारें आपका स्वागत है। आपको यहाँ बाहर खड़ा नहीं रहना है। मैंने आपके ऊँटों के लिए एक जगह बना दी है और आपके सोने के लिए एक कमरा ठीक कर दिया है।”

32 इसलिए इब्राहीम का नौकर घर में गया। लाबान ने ऊँटों और उस की मदद की और ऊँटों को खाने के लिए चारा दिया। तब लाबान ने पानी दिया जिससे वह व्यक्ति तथा उसके साथ आए हुए दूसरे नौकर अपने पैर धो सकें। 33 तब लाबान ने उसे खाने के लिए भोजन दिया। लेकिन नौकर ने भोजन करना मना किया। उसने कहा, “मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ कि मैं यहाँ किस लिए आया हूँ।”

इसलिए लाबान ने कहा, “तब हम लोगों को बताओ।”

रिबका इसहाक की पत्नी बनी

34 नौकर ने कहा, “मैं इब्राहीम का नौकर हूँ। 35 यहोवा ने हमारे मालिक पर हर एक विषय में कृपा की है। मेरे मालिक महान व्यक्ति हो गए हैं। यहोवा ने इब्राहीम को कई भेड़ों के रेवड़े तथा मबवेशियों के झुण्ड दिए हैं। इब्राहीम के पास बहुत सोना, चाँदी और नौकर हैं। इब्राहीम के पास बहुत से ऊँट और गधे हैं। 36 सारा, मेरे मालिक की पत्नी थी। जब वह बहुत बूढ़ी हो गई थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया और हमारे मालिक ने अपना सब कुछ उस पुत्र को दे दिया है। 37 मेरे स्वामी ने मुझे एक वचन देने के लिए विवश किया। मेरे मालिक ने मुझसे कहा, ‘तुम मेरे पुत्र को कनान की लड़की से किसी भी तरह विवाह नहीं करने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु मैं नहीं चाहता कि वह किसी कनानी लड़की से विवाह करे। 38 इसलिए तुम्हें वचन देना होगा कि तुम मेरे पिता के देश को जाओगे। मेरे परिवार में जाओ और मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन चुनो।’ 39 मैंने अपने मालिक से कहा, ‘यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश को न आए।’ 40 लेकिन मेरे मालिक ने कहा, ‘मैं यहोवा की सेवा करता हूँ और यहोवा तुम्हारे साथ अपना दूत भेजेगा और तुम्हारी मद्द करेगा। तुम्हें वहाँ मेरे अपने लोगों में मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन मिलेगी। 41 किन्तु यदि तुम मेरे पिता के देश को जाते हो और वे लोग मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन देने से मना करते हैं तो तुम्हें इस वचन से छुटकारा मिल जाएगा।’

42 “आज मैं इस कुएँ पर आया और मैंने कहा, ‘हे यहोवा मेरे मालिक के परमेश्वर कृपा करके मेरी यात्रा सफल बना। 43 मैं यहाँ कुएँ के पास ठहरूँगा और पानी भरने के लिए आने वाली किसी युवती की प्रतीक्षा करूँगा। तब मैं कहूँगा, “कृपा करके आप अपने घड़े से पीने के लिए पानी दें।” 44 उपयुक्त लड़की ही विशेष रूप से उत्तर देगी। वह कहेगी, “यह पानी पीओ और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी लाती हूँ।” इस तरह मैं जानूँगा कि यह वही स्त्री है जिसे यहोवा ने मेरे मालिक के पुत्र के लिए चुना है।’”

45 “मेरी प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका कुएँ पर पानी भरने आई। पानी का घड़ा उसने अपने कंधे पर ले रखा था। वह कुएँ तक गई और उसने पानी भरा। मैंने इससे कहा, कृपा करके मुझे पानी दें। 46 उसने तुरन्त कंधे से घड़े को झुकाया और मेरे लिए पानी डाला और कहा, ‘यह पीएँ और मैं आपके ऊँटों के लिए भी पानी लाऊँगी।’ इसलिए मैंने पानी पीया और अपने ऊँटों को भी पानी पिलाया। 47 तब मैंने इससे पूछा, ‘तुम्हारे पिता कौन हैं?’ इसने उत्तर दिया, ‘मेरा पिता बतूएल है। मेरे पिता के माता—पिता मिल्का और नाहोर हैं।’ तब मैंने इसे अँगूठी और बाहों के लिए बाजूबन्द दिए। 48 उस समय मैंने अपना सिर झुकाया और यहोवा को धन्य कहा। मैंने अपने मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को कृपालु कहा। मैंने उसे धन्य कहा क्योंकि उसने सीधे मेरे मालिक के भाई की पोती तक मुझे पहुँचाया। 49 अब बताओ कि तुम क्या करोगे? क्या तुम मेरे मालिक पर दयालु और श्रद्धालु बनोगे और अपनी पुत्री उसे दोगे? या तुम अपनी पुत्री देना मना करोगे? मुझे बताओ, जिससे मैं यह समझ सकूँ कि मुझे क्या करना है।”

50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, “हम लोग यह देखते हैं कि यह यहोवा की ओर से है। इसे हम टाल नहीं सकते। 51 रिबका तुम्हारी है। उसे लो और जाओ। अपने मालिक के पुत्र से इसे विवाह करने दो। यही है जिसे यहोवा चाहता है।”

52 इब्राहीम के नौकर ने यह सुना और वह यहोवा के सामने भूमि पर झुका। 53 तब उसने रिबका को वे भेंटे दी जो वह साथ लाया था। उसने रिबका को सोने और चाँदी के गहने और बहुत से सुन्दर कपड़े दिए। उसने, उसके भाई और उसकी माँ को कीमती भेंटें दीं। 54 नौकर और उसके साथ के व्यक्ति वहाँ ठहरे तथा खाया और पीया। वे वहाँ रात भर ठहरे। वे दूसरे दिन सवेरे उठे और बोले “अब हम अपने मालिक के पास जाएँगे।”

55 रिबका की माँ और भाई ने कहा, “रिबका को हम लोगों के पास कुछ दिन और ठहरने दो। उसे दस दिन तक हमारे साथ ठहरने दो। इसके बाद वह जा सकती है।”

56 लेकिन नौकर ने उनसे कहा, “मुझसे प्रतीक्षा न करवाएं। यहोवा ने मेरी यात्रा सफल की है। अब मुझे अपने मालिक के पास लौट जाने दें।”

57 रिबका के भाई और माँ ने कहा, “हम लोग रिबका को बुलाएंगे और उस से पूछेंगे कि वह क्या चाहती है?” 58 उन्होंने रिबका को बुलाया और उससे कहा, “क्या तुम इस व्यक्ति के साथ अभी जाना चाहती हो?”

रिबका ने कहा, “हाँ, मैं जाऊँगी।”

59 इसलिए उन्होंने रिबका को इब्राहीम के नौकर और उसके साथियों के साथ जाने दिया। रिबका की धाय भी उनके साथ गई। 60 जब वह जाने लगी तब वे रिबका से बोले,

“हमारी बहन, तुम लाखों लोगों की
    जननी बनो
और तुम्हारे वंशज अपने शत्रुओं को हराएं
    और उनके नगरों को ले लें।”

61 तब रिबका और धाय ऊँट पर चढ़ी और नौकर तथा उसके साथियों के पीछे चलने लगी। इस तरह नौकर ने रिबका को साथ लिया और घर को लौटने की यात्रा शुरू की।

62 इस समय इसहाक ने लहैरोई को छोड़ दिया था और नेगेव में रहने लगा था। 63 एक शाम इसहाक मैदान में विचरण[n] करने गया। इसहाक ने नज़र उठाई और बहुत दूर से ऊँटों को आते देखा।

64 रिबका ने नज़र डाली और इसहाक को देखा। तब वह ऊँट से कूद पड़ी। 65 उसने नौकर से पूछा, “हम लोगों से मिलने के लिए खेतों में टहलने वाला वह युवक कौन है?”

नौकर ने कहा, “यह मेरे मालिक का पुत्र है।” इसलिए रिबका ने अपने मुँह को पर्दे में छिपा लिया।

66 नौकर ने इसहाक को वे सभी बातें बताईं जो हो चुकी थीं। 67 तब इसहाक लड़की को अपनी माँ के तम्बू में ले आया। उसी दिन इसहाक ने रिबका से विवाह कर लिया। वह उससे बहुत प्रेम करता था। अतः उसे उसकी माँ की मृत्यु के पश्चात् भी सांत्वना मिली।

इब्राहीम का परिवार

25 इब्राहीम ने फिर विवाह किया। उसकी नई पत्नी का नाम कतूरा था। कतूरा ने जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक और शूह को जन्म दिया। योक्षान, शबा और ददान का पिता हुआ। ददान के वंशज अश्शूर और लुम्मी लोग थे। मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीद और एल्दा थे। ये सभी पुत्र इब्राहीम और कतूरा से पैदा हुए। 5-6 इब्राहीम ने मरने से पहले अपनी दासियों[o] के पुत्रों को कुछ भेंट दिया। इब्राहीम ने पुत्रों को पूर्व को भेजा। उसने इन्हें इसहाक से दूर भेजा। इसके बाद इब्राहीम ने अपनी सभी चीज़ें इसहाक को दे दीं।

इब्राहीम एक सौ पचहत्तर वर्ष की उम्र तक जीवित रहा। इब्राहीम धीरे—धीरे कमज़ोर पड़ता गया और भरे—पूरे जीवन के बाद चल बसा। उसने लम्बा भरपूर जीवन बिताया और फिर वह अपने पुरखों के साथ दफनाया गया। उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने उसे मकपेला की गुफा में दफनाया। यह गुफा सोहर के पुत्र एप्रोन के खेत में है। यह मम्रे के पूर्व में थी। 10 यह वही गुफा है जिसे इब्राहीम ने हित्ती लोगों से खरीदा था। इब्राहीम को उसकी पत्नी सारा के साथ दफनाया गया। 11 इब्राहीम के मरने के बाद परमेश्वर ने इसहाक पर कृपा की और इसहाक लहैरोई में रहता रहा।

12 इश्माएल के परिवार की यह सूची है। इश्माएल इब्राहीम और हाजिरा का पुत्र था। (हाजिरा सारा की मिस्री दासी थी।) 13 इश्माएल के पुत्रों के ये नाम हैं पहला पुत्र नबायोत था, तब केदार पैदा हुआ, तब अदबेल, मिबसाम, 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, 15 हदर, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा हुए। 16 ये इश्माएल के पुत्रों के नाम थे। हर एक पुत्र के अपने पड़ाव थे जो छोटे नगर में बदल गए। ये बारह पुत्र अपने लोगों के साथ बारह राजकुमारों के समान थे। 17 इश्माएल एक सौ सैंतीस वर्ष जीवित रहा। 18 इश्माएल के लोग हवीला से लेकर शूर के पास मिस्र की सीमा और उससे भी आगे अश्शूर के किनारे तक, घूमते रहे और अपने भाईयों और उनसे सम्बन्धित देशों में आक्रमण करते रहे।[p]

इसहाक का परिवार

19 यह इसहाक की कथा है। इब्राहीम का एक पुत्र इसहाक था। 20 जब इसहाक चालीस वर्ष का था तब उसने रिबका से विवाह किया। रिबका पद्दनराम की रहने वाली थी। वह अरामी बतूएल की पुत्री थी और लाबान की बहन थी। 21 इसहाक की पत्नी बच्चे नहीं जन सकी। इसलिए इसहाक ने यहोवा से अपनी पत्नी के लिए प्रार्थना की। यहोवा ने इसहाक की प्रार्थना सुनी और यहोवा ने रिबका को गर्भवती होने दिया।

22 जब रिबका गर्भवती थी तब वह अपने गर्भ के बच्चों से बहुत परेशान हुई, लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपट के एक दूसरे को मारने लगे। रिबका ने यहोवा से प्रार्थना की और बोली, “मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।” 23 यहोवा ने कहा,

“तुम्हारे गर्भ में दो राष्ट्र हैं।
    दो परिवारों के राजा तुम से पैदा होंगे
    और वे बँट जाएंगे।
एक पुत्र दूसरे से बलवान होगा।
    बड़ा पुत्र छोटे पुत्र की सेवा करेगा।”

24 और जब समय पूरा हुआ तो रिबका ने जुड़वे बच्चों को जन्म दिया। 25 पहला बच्चा लाल हुआ। उसकी त्वचा रोंएदार पोशाक की तरह थी। इसलिए उसका नाम एसाव पड़ा। 26 जब दूसरा बच्चा पैदा हुआ, वह एसाव की एड़ी को मज़बूती से पकड़े था। इसलिए उस बच्चे का नाम याकूब पड़ा। इसहाक की उम्र उस समय साठ वर्ष की थी। जब याकूब और एसाव पैदा हुए।

27 लड़के बड़े हुए। एसाव एक कुशल शिकारी हुआ। वह मैदानों में रहना पसन्द करने लगा। किन्तु याकूब शान्त व्यक्ति था। वह अपने तम्बू में रहता था। 28 इसहाक एसाव को प्यार करता था। वह उन जानवरों को खाना पसन्द करता था जो एसाव मारकर लाता था। किन्तु रिबका याकूब को प्यार करती थी।

29 एक बार एसाव शिकार से लौटा। वह थका हुआ और भूख से परेशान था। याकूब कुछ दाल[q] पका रहा था।

30 इसलिए एसाव ने याकूब से कहा, “मैं भूख से कमज़ोर हो रहा हूँ। तुम उस लाल दाल में से कुछ मुझे दो।” (यही कारण है कि लोग उसे एदोम कहते हैं।)

31 किन्तु याकूब ने कहा, “तुम्हें पहलौठा होने का अधिकार[r] मुझको आज बेचना होगा।”

32 एसाव ने कहा, “मैं भूख से मरा जा रहा हूँ। यदि मैं मर जाता हूँ तो मेरे पिता का सारा धन भी मेरी सहायता नहीं कर पाएगा। इसलिए तुमको मैं अपना हिस्सा दूँगा।”

33 किन्तु याकूब ने कहा, “पहले वचन दो कि तुम यह मुझे दोगे।” इसलिए एसाव ने याकूब को वचन दिया। एसाव ने अपने पिता के धन का अपना हिस्सा यकूब को बेच दिया। 34 तब याकूब ने एसाव को रोटी और भोजन दिया। एसाव ने खाया, पिया और तब चला गया। इस तरह एसाव ने यह दिखाया कि वह पहलौठे होने के अपने हक की परवाह नहीं करता।

इसहाक अबीमेलेक से झूठ बोलता है

26 एक बार अकाल[s] पड़ा। यह अकाल वैसा ही था जैसा इब्राहीम के समय में पड़ा था। इसलिए इसहाक गरार नगर में पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया। यहोवा ने इसहाक से बात की। यहोवा ने इसहाक से यह कहा, “मिस्र को न जाओ। उसी देश में रहो जिसमें रहने का आदेश मैंने तुम्हें दिया है। उसी देश में रहो और मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को यह सारा प्रदेश दूँगा। मैं वही करूँगा जो मैंने तुम्हारे पिता इब्राहीम को वचन दिया है। मैं तुम्हारे परिवार को आकाश के तारागणों की तरह बहुत से बनाऊँगा और मैं सारा प्रदेश तुम्हारे परिवार को दूँगा। पृथ्वी के सभी राष्ट्र तुम्हारे परिवार के कारण मेरा आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। मैं यह इसलिए करूँगा कि तुम्हारे पिता इब्राहीम ने मेरी आज्ञा का पालन किया और मैंने जो कुछ कहा, उसने किया। इब्राहीम ने मेरे आदेशों, मेरी विधियों और मेरे नियमों का पालन किया।”

इसहाक ठहरा और गरार में रहा। इसहाक की पत्नी रिबका बहुत ही सुन्दर थी। उस जगह के लोगों ने इसहाक से रिबका के बारे में पूछा। इसहाक ने कहा, “यह मेरी बहन है।” इसहाक यह कहने से डर रहा था कि रिबका मेरी पत्नी है। इसहाक डरता था कि लोग उसकी पत्नी को पाने के लिए उसको मार डालेंगे।

जब इसहाक वहाँ बहुत समय तक रह चुका, अबीमेलेक ने अपनी खिड़की से बाहर झाँका और देखा कि इसहाक, रिबका के साथ छेड़खानी कर रहा है। अबीमेलेक ने इसहाक को बुलाया और कहा, “यह स्त्री तुम्हारी पत्नी है। तुमने हम लोगों से यह क्यों कहा कि यह मेरी बहन है।”

इसहाक ने उससे कहा, “मैं डरता था कि तुम उसे पाने के लिए मुझे मार डालोगे।”

10 अबीमेलेक ने कहा, “तुमने हम लोगों के लिए बुरा किया है। हम लोगों का कोई भी पुरुष तुम्हारी पत्नी के साथ सो सकता था। तब वह बड़े पाप का दोषी होता।”

11 इसलिए अबीमेलेक ने सभी लोगों को चेतावनी दी। उसने कहा, “इस पुरुष और इस स्त्री को कोई चोट नहीं पहुँचाएगा। यदि कोई इन्हें चोट पहुँचाएगा तो वह व्यक्ति जान से मार दिया जाएगा।”

इसहाक धनी बना

12 इसहाक ने उस भूमि पर खेती की और उस साल उसे बहुत फसल हुई। यहोवा ने उस पर बहुत अधिक कृपा की। 13 इसहाक धनी हो गया। वह अधिक से अधिक धन तब तक बटोरता रहा जब तक वह धनी नहीं हो गया। 14 उसके पास बहुत सी रेवड़े और मवेशियों के झुण्ड थे। उसके पास अनेक दास भी थे। सभी पलिश्ती उससे डाह रखते थे। 15 इसलिए इए पलिश्तियों ने उन सभी कुओं को नष्ट कर दिया जिन्हें इसहाक के पिता इब्राहीम और उसके साथियों ने वर्षों पहले खोदा था। पलिश्तीयों ने उन्हें मिट्टी से भर दिया। 16 और अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, “हमारा देश छोड़ दो। तुम हम लोगों से बहुत अधिक शक्तिशाली हो गए हो।”

17 इसलिए इसहाक ने वह जगह छोड़ दी और गरार की छोटी नदी के पास पड़ाव डाला। इसहाक वहीं ठहरा और वहीं रहा। 18 इसके बहुत पहले इब्राहीम ने कई कुएँ खोदे थे। जब इब्राहीम मरा तो पलिश्तीयों ने मिट्टी से कुओं को भर दिया। इसलिए वहीं इसहाक लौटा और उन कुओं को फिर खोद डाला। 19 इसहाक के नौकरों ने छोटी नदी के पास एक कुआँ खोदा। उस कुएँ से एक पानी का सोता फूट पड़ा। 20 तब गरार के गड़ेंरिए उस कुएँ की वजह से इसहाक के नौकरों से झगड़ा करने लगे। उन्होंने कहा, “यह पानी हमारा है।” इसलिए इसहाक ने उसका नाम एसेक रखा। उसने यह नाम इसलिए दिया कि उसी जगह पर उन लोगों ने उससे झगड़ा किया था।

21 तब इसहाक के नौकरों ने दूसरा कुआँ खोदा। वहाँ के लोगों ने उस कुएँ के लिए भी झगड़ा किया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम सित्रा रखा।

22 इसहाक वहाँ से हटा और दूसरा कुआँ खोदा। उस कुएँ के लिए झगड़ा करने कोई नहीं आया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम रहोबोत रखा। इसहाक ने कहा, “यहोवा ने यहाँ हमारे लिए जगह उपलब्ध कराई है। हम लोग बढ़ेंगे और इसी भूमि पर सफल होंगे।”

23 उस जगह से इसहाक बेर्शेबा को गया। 24 यहोवा उस रात इसहाक से बोला, “मैं तुम्हारे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूँ। डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हारे परिवार को महान बनाऊँगा। मैं अपने सेवक इब्राहीम के कारण यह करूँगा।” 25 इसलिए इसहाक ने उस जगह यहोवा की उपासना के लिए एक वेदी बनाई। इसहाक ने वहाँ पड़ाव डाला और उसके नौकरों ने एक कुआँ खोदा।

26 अबीमेलेक गरार से इसहाक को देखने आया। अबीमेलेक अपने साथ सलाहकार अहुज्जत और सेनापति पीकोल को लाया।

27 इसहाक ने पूछा, “तुम मुझे देखने क्यों आए हो? तुम इसके पहले मेरे साथ मित्रता नहीं रखते थे। तुमने मुझे अपना देश छोड़ने को विवश किया।”

28 उन्होंने जवाब दिय, “अब हम लोग जानते हैं कि यहोवा तुम्हारे साथ है। हम चाहते हैं कि हम तुम्हारे साथ एक वाचा करें। हम चाहते हैं कि तुम हमें एक वचन दो। 29 हम लोगों ने तुम्हें चोट नहीं पहुँचाई, अब तुम्हें यह वचन देना चाहिए कि तुम हम लोगों को चोट नहीं पहुँचाओगे। हम लोगों ने तुमको भेजा। लेकिन हम लोगों ने तुम्हें शान्ति से भेजा। अब साफ है कि यहोवा ने तुम्हें आशीर्वाद दिया है।”

30 इसलिए इसहाक ने उन्हें दावत दी। सभी ने खाया और पीया। 31 दूसरे दिन सवेरे हर एक व्यक्ति ने वचन दिया और शपथ खाई। तब इसहाक ने उनको शान्ति से विदा किया और वे सकुशल उसके पास से चले आए।

32 उस दिन इसहाक के नौकर आए और उन्होंने अपने खोदे हुए कुएँ के बारे में बताया। नौकरों ने कहा, “हम लोगों ने उस कुएँ से पानी पिया।” 33 इसलिए इसहाक ने उसका नाम शिबा रखा और वह नगर अभी भी बेर्शेबा कहलाता है।

एसाव की पत्नियाँ

34 जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, उसने हित्ती स्त्रियों से विवाह किया। एक बेरी की पुत्री यहूदीत थी। दूसरी एलोन की पुत्री बाशमत थी। 35 इन विवाहों ने इसहाक और रिबका का मन दुःखी कर दिया।

वसीयत के झगड़े

27 जब इसहाक बूढ़ा हो गया तो उसकी आँखें अच्छी न रहीं। इसहाक साफ—साफ नहीं देख सकता था। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया। इसहाक ने कहा, “पुत्र।”

एसाव ने उत्तर दिया, “हाँ, पिताजी।”

इसहाक ने कहा, “देखो, मैं बूढ़ा हो गया। हो सकता है मैं जल्दी ही मर जाऊँ। अब तू अपना तरकश और धनुष लेकर, मेरे लिए शिकार पर जाओ। मेरे खाने के लिए एक जानवर मार लाओ। मेरा प्रिय भोजन बनाओ। उसे मेरे पास लाओ, और मैं इसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।” इसलिए एसाव शिकार करने गया।

रिबका ने वे बातें सुन ली थीं, जो इसहाक ने अपने पुत्र एसाव से कहीं। रिबका ने अपने पुत्र याकूब से कहा, “सुनो, मैंने तुम्हारे पिता को, तुम्हारे भाई से बातें करते सुना है। तुम्हारे पिता ने कहा, ‘मेरे खाने के लिए एक जानवर मारो। मेरे लिए भोजन बनाओ और मैं उसे खाऊँगा। तब मैं मरने से पहले तुमको आशीर्वाद दूँगा।’ इसलिए पुत्र सुनो। मैं जो कहती हूँ, करो। अपनी बकरियों के बीच जाओ और दो नई बकरियाँ लाओ। मैं उन्हें वैसा बनाऊँगी जैसा तुम्हारे पिता को प्रिय है। 10 तब तुम वह भोजन अपने पिता के पास ले जाओगे और वह मरने से पहले तुमको ही आशीर्वाद देंगे।”

11 लेकिन याकूब ने अपनी माँ रिबका से कहा, “किन्तु मेरा भाई रोएदार है और मैं उसकी तरह रोएदार नहीं हूँ। 12 यदि मेरे पिता मुझको छूते हैं, यो जान जाएंगे कि मैं एसाव नहीं हूँ। तब वे मुझे आशीर्वाद नहीं देंगे। वे मुझे शाप[t] देंगे क्योंकि मैंने उनके साथ चाल चलने का प्रयत्न किया।”

13 इस पर रिबका ने उससे कहा, “यदि कोई परेशानी होगी तो मैं अपना दोष मान लूँगी। जो मैं कहती हूँ करो। जाओ, और मेरे लिए बकरियाँ लाओ।”

14 इसलिए याकूब बाहर गया और उसने दो बकरियों को पकड़ा और अपनी माँ के पास लाया। उसकी माँ ने इसहाक की पसंद के अनुसार विशेष ढंग से उन्हें पकाया। 15 तब रिबका ने उस पोशाक को उठाया जो उसका बड़ा पुत्र एसाव पहन्ना पसंद करता था। रिबका ने अपने छोटे पुत्र याकूब को वे कपड़े पहना दिए। 16 रिबका ने बकरियों के चमड़े को लिया और याकूब के हाथों और गले पर बांध दिया। 17 तब रिबका ने अपना पकाया भोजन उठाया और उसे याकूब को दिया।

18 याकूब पिता के पास गया और बोला, “पिताजी।”

और उसके पिता ने पूछा, “हाँ पुत्र, तुम कौन हो?”

19 याकूब ने अपने पिता से कहा, “मैं आपका बड़ा पुत्र एसाव हूँ। आपने जो कहा है, मैंने कर दिया है। अब आप बैठें और उन जानवरों को खाएं जिनका शिकार मैंने आपके लिए किया है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।”

20 लेकिन इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, “तुमने इतनी जल्दी शिकार करके जानवरों को कैसे मारा है?”

याकूब ने उत्तर दिया, “क्योंकि आपके परमेश्वर यहोवा ने मुझे जल्दी ही जानवरों को प्राप्त करा दिया।”

21 तब इसहाक ने याकूब से कहा, “मेरे पुत्र मेरे पास आओ जिससे मैं तुम्हें छू सकूँ। यदि मैं तुम्हें छू सकूँगा तो मैं यह जान जाऊँगा कि तुम वास्तव में मेरे पुत्र एसाव ही हो।”

22 याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। इसहाक ने उसे छुआ और कहा, “तुम्हारी आवाज़ याकूब की आवाज़ जैसी है। लेकिन तुम्हारी बाहें एसाव की रोंएदार बाहों की तरह हैं।” 23 इसहाक यह नहीं जान पाया कि यह याकूब है क्योंकि उसकी बाहें एसाव की बाहों की तरह रोएंदार थीं। इसलिए इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया।

24 इसहाक ने कहा, “क्या सचमुच तुम मेरे पुत्र एसाव हो?”

याकूब ने उत्तर दिया, “हाँ, मैं हूँ।”

याकूब के लिए “आशीर्वाद”

25 तब इसहाक ने कहा, “भोजन लाओ। मैं इसे खाऊँगा और तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।” इसलिए याकूब ने उसे भोजन दिया और उसने खाया। याकूब ने उसे दाखमधु दी, और उसने उसे पिया।

26 तब इसहाक ने उससे कहा, “पुत्र, मेरे करीब आओ और मुझे चूमो।” 27 इसलिए याकूब अपने पिता के पास गया और उसे चूमा। इसहाक ने एसाव के कपड़ों की गन्ध पाई और उसको आशीर्वाद दिया। इसहाक ने कहा,

“अहा, मेरे पुत्र की सुगन्ध यहोवा से वरदान पाए
    खेतों की सुगन्ध की तरह है।
28 यहोवा तुम्हें बहुत वर्षा दे।
    जिससे तुम्हें बहुत फसल और दाखमधु मिले।
29 सभी लोग तुम्हारी सेवा करें।
    राष्ट्र तुम्हारे सामने झुकें।
तुम अपने भाईयों के ऊपर शासक होगे।
    तुम्हारी माँ के पुत्र तुम्हारे सामने झुकेंगे और तुम्हारी आज्ञा मानेंगे।
हर एक व्यक्ति जो तुम्हें शाप देगा, शाप पाएगा
    और हर एक व्यक्ति जो तुम्हें आशीर्वाद देगा, आशीर्वाद पाएगा।”

एसाव को “आशीर्वाद”

30 इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देना पूरा किया। तब ज्योंही याकूब अपने पिता इसहाक के पास से गया त्योंही एसाव शिकार करके अन्दर आया। 31 एसाव ने अपने पिता की पसंद का विशेष भोजन बनाया। एसाव इसे अपने पिता के पास लाया। उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, उठें और उस भोजन को खाएं जो आपके पुत्र ने आपके लिए मारा है। तब आप मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं।”

32 किन्तु इसहाक ने उससे कहा, “तुम कौन हो?”

उसने उत्तर दिया, “मैं आपका पहलौठा पुत्र एसाव हूँ।”

33 तब इसहाक बहुत झल्ला गया और बोला, “तब तुम्हारे आने से पहले वह कौन था? जिसने भोजन पकाया और जो मेरे पास लाया। मैंने वह सब खाया और उसको आशीर्वाद दिया। अब अपने आशीर्वादों को लौटाने का समय निकल चुका है।”

34 एसाव ने अपने पिता की बात सुनी। उसका मन बहुत गुस्से और कड़वाहट से भर गया। वह चीखा। वह अपने पिता से बोला, “पिताजी, तब मुझे भी आशीर्वाद दें।”

35 इसहाक ने कहा, “तुम्हारे भाई ने मुझे धोखा दिया। वह आया और तुम्हारा आशीर्वाद लेकर गया।”

36 एसाव ने कहा, “उसका नाम ही याकूब (चालबाज़) है। यह नाम उसके लिए ठीक ही है। उसका यह नाम बिल्कुल सही रखा गया है वह सचमुच में चालबाज़ है। उसने मुझे दो बार धोखा दिया। वह पहलौठा होने के मेरे अधिकार को ले ही चुका था और अब उसने मेरे हिस्से के आशीर्वाद को भी ले लिया। क्या आपने मेरे लिए कोई आशीर्वाद बचा रखा है?”

37 इसहाक ने जवाब दिया, “नहीं, अब बहुत देर हो गई। मैंने याकूब को तुम्हारे ऊपर शासन करने का अधिकार दे दिया है। मैंने यह भी कह दिया कि सभी भाई उसके सेवक होंगे। मैंने उसे बहुत अधिक अन्न और दाखमधु का आशीर्वाद दिया है। पुत्र तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा है।”

38 किन्तु एसाव अपने पिता से माँगता रहा। “पिताजी, क्या आपके पास एक भी आशीर्वाद नहीं है? पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दें।” यूँ एसाव रोने लगा।

39 तब इसहाक ने उससे कहा,

“तुम अच्छी भूमि पर नहीं रहोगे।
    तुम्हारे पास बहुत अन्न नहीं होगा।
40 तुम्हें जीने के लिए संघर्ष करना होगा।
    और तुम अपने भाई के दास होगे।
किन्तु तुम आज़ादी के लिए लड़ोगे,
    और उसके शासन से आज़ाद हो जाओगे।”

41 इसके बाद इस आशीर्वाद के कारण एसाव याकूब से घृणा करता रहा। एसाव ने मन ही मन सोचा, “मेरा पिता जल्दी ही मरेगा और मैं उसका शोक मनाऊँगा। लेकिन उसके बाद मैं याकूब को मार डालूँगा।”

42 रिबका ने एसाव द्वारा याकूब को मारने का षड़यन्त्र सुना। उसने याकूब को बुलाया और उससे कहा, “सुनो, तुम्हारा भाई एसाव तुम्हें मारने का षडयन्त्र कर रहा है। 43 इसलिए पुत्र जो मैं कहती हूँ, करो। मेरा भाई लाबान हारान में रहता है। उसके पास जाओ और छिपे रहो। 44 उसके पास थोड़े समय तक ही रहो जब तक तुम्हारे भाई का गुस्सा नहीं उतरता। 45 थोड़े समय बाद तुम्हारा भाई भूल जाएगा कि तुमने उसके साथ क्या किया? तब मैं तुम्हें लौटाने के लिए एक नौकर को भेजूँगी। मैं एक ही दिन दोनों पुत्रों को खोना नहीं चाहती।”

46 तब रिबका ने इसहाक से कहा, “तुम्हारे पुत्र एसाव ने हित्ती स्त्रियों से विवाह कर लिया है। मैं इन स्त्रियों से परेशान हूँ क्योंकि ये हमारे लोगों में से नहीं हैं। यदि याकूब भी इन्हीं स्त्रियों में से किसी के साथ विवाह करता है तो मैं मर जाना चाहूँगी।”

28 इसहाक ने याकूब को बुलाया और उसको आशीर्वाद दिया। तब इसहाक ने उसे आदेश दिया। इसहाक ने कहा, “तुम कनानी स्त्री से विवाह नहीं कर सकते। इसलिए इस जगह को छोड़ो और पद्दनराम को जाओ। अपने नाना बतूएल के घराने में जाओ। वहाँ तुम्हारा मामा लाबान रहता है। उसकी किसी एक पुत्री से विवाह करो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुम्हें आशीर्वाद दे और तुम्हें बहुत से पुत्र दे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम एक महान राष्ट्र के पिता बनो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि जिस तरह परमेश्वर ने इब्राहीम को वरदान दिया था उसी तरह वह तुमको भी आशीर्वाद दे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर तुम्हें इब्राहीम का आशीर्वाद दे, यानी वह तुम्हें और तुम्हारी आने वाली पीढ़ी को, यह जगह जहाँ तुम आज परदेशी की तरह रहते हो, हमेशा के लिए तुम्हारी सम्पत्ति बना दे।”

इस तरह इसहाक ने याकूब को पद्दनराम के प्रदेश को भेजा। याकूब अपने मामा लाबान के पास गया अरामी बतूएल लाबान और रिबका का पिता था और रिबका याकूब और एसाव की माँ थी।

एसाव को पता चला कि उसके पिता इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया है और उसने याकूब को पद्दरनाम में एक पत्नी की खोज के लिए भेजा है। एसाव को यह भी पता लगा कि इसहाक ने याकूब को आदेश दिया है कि वह कनानी स्त्री से विवाह न करे। एसाव ने यह समझा कि याकूब ने अपने पिता और माँ की आज्ञा मानी और वह पद्दरनाम को चला गया। एसाव ने इससे यह समझा कि उसका पिता नहीं चाहता कि उसके पुत्र कनानी स्त्रियों से विवाह करें। एसाव की दो पत्नियाँ पहले से ही थी। किन्तु उसने इश्माएल की पुत्री महलत से विवाह किया। इश्माएल इब्राहीम का पुत्र था। महलत नबायोत की बहन थी।

10 याकूब ने बेर्शेबा को छोड़ा और वह हारान को गया। 11 याकूब के यात्रा करते समय ही सूरज डूब गया था। इसलिए याकूब रात बिताने के लिए एक जगह ठहरने गया। याकूब ने उस जगह एक चट्टान देखी और सोने के लिए इस पर अपना सिर रखा। 12 याकूब ने सपना देखा। उसने देखा कि एक सीढ़ी पृथ्वी से स्वर्ग तक पहुँची है। 13 याकूब ने स्वर्गदूतों को उस सीढ़ी पर चढ़ते उतरते देखा और यहोवा को सीढ़ी के पास खड़ा देखा। यहोवा ने कहा, “मैं तुम्हारे पितामह इब्राहीम का परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं इसहाक का परमेश्वर हूँ। मैं तुम्हें वह भूमि दूँगा जिस पर तुम अब सो रहे हो। मैं यह भूमि तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को दूँगा। 14 तुम्हारे वंशज उतने होंगे जितने पृथ्वी पर मिट्टी के कण हैं। वे पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण में फैलेंगे। पृथ्वी के सभी परिवार तुम्हारे वंशजों के कारण वरदान पाएँगे।

15 “मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा जहाँ भी जाओगे और मैं इस भूमि पर तुम्हें लौटा ले आऊँगा। मैं तुमको तब तक नहीं छोड़ूँगा जब तक मैं वह नहीं कर लूँगा जो मैंने करने का वचन दिया है।”

16 तब याकूब अपनी नींद से उठा और बोला, “मैं जानता हूँ कि यहोवा इस जगह पर है। किन्तु यहाँ जब तक मैं सोया नहीं था, मैं नहीं जानता था कि वह यहाँ है।”

17 याकूब डर गया। उसने कहा, “यह बहुत महान जगह है। यह तो परमेश्वर का घर है। यह तो स्वर्ग का द्वार है।”

18 याकूब दूसरे दिन बहुत सबेरे उठा। याकूब ने उस शिला को उठाया और उसे किनारे से खड़ा कर दिया। तब उसने इस पर तेल चढ़ाया। इस तरह उसने इसे परमेश्वर का स्मरण स्तम्भ बनाया। 19 उस जगह का नाम लूज था किन्तु याकूब ने उसे बेतेल नाम दिया।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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