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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
अय्यूब 8-24

इसके बाद शूह प्रदेश के बिलदद ने उत्तर देते हुए कहा,

“तू कब तक ऐसी बातें करता रहेगा
    तेरे शब्द तेज आँधी की तरह बह रहे हैं।
परमेश्वर सदा निष्पक्ष है।
    न्यायपूर्ण बातों को सर्वशक्तिशाली परमेश्वर कभी नहीं बदलता है।
अत: यदि तेरी सन्तानों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है तो, उसने उन्हें दण्डित किया है।
    अपने पापों के लिये उन्हें भुगतना पड़ा है।
किन्तु अब अय्यूब, परमेश्वर की ओर दृष्टि कर
    और सर्वशक्तिमान परमेश्वर से उस की दया पाने के लिये विनती कर।
यदि तू पवित्र है, और उत्तम है तो वह शीघ्र आकर तुझे सहारा
    और तुझे तेरा परिवार और वस्तुऐं तुझे लौटायेगा।
जो कुछ भी तूने खोया वह तुझे छोटी सी बात लगेगी।
    क्यों? क्योंकि तेरा भविष्य बड़ा ही सफल होगा।

“उन वृद्ध लोगों से पूछ और पता कर कि
    उनके पूर्वजों ने क्या सीखा था।
क्योंकि ऐसा लगता है जैसे हम तो बस कल ही पैदा हुए हैं,
    हम कुछ नहीं जानते।
परछाई की भाँति हमारी आयु पृथ्वी पर बहुत छोटी है।
10 हो सकता है कि वृद्ध लोग तुझे कुछ सिखा सकें।
    हो सकता है जो उन्होंने सीखा है वे तुझे सिखा सकें।”

11 बिलदद ने कहा, “क्या सूखी भूमि में भोजपत्र का वृक्ष बढ़ कर लम्बा हो सकता है?
    नरकुल बिना जल के बढ़ सकता है?
12 नहीं, यदि पानी सूख जाता है तो वे भी मुरझा जायेंगे।
    उन्हें काटे जाने के योग्य काट कर काम में लाने को वे बहुत छोटे रह जायेंगे।
13 वह व्यक्ति जो परमेश्वर को भूल जाता है, नरकुल की भाँति होता है।
    वह व्यक्ति जो परमेश्वर को भूल जाता है कभी आशावान नहीं होगा।
14 उस व्यक्ति का विश्वास बहुत दुर्बल होता है।
    वह व्यक्ति मकड़ी के जाले के सहारे रहता है।
15 यदि कोई व्यक्ति मकड़ी के जाले को पकड़ता है
    किन्तु वह जाला उस को सहारा नहीं देगा।
16 वह व्यक्ति उस पौधे के समान है जिसके पास पानी और सूर्य का प्रकाश बहुतायात से है।
    उसकी शाखाऐं बगीचे में हर तरफ फैलती हैं।
17 वह पत्थर के टीले के चारों ओर अपनी जड़े फैलाता है
    और चट्टान में उगने के लिये कोई स्थान ढूँढता है।
18 किन्तु जब वह पौधा अपने स्थान से उखाड़ दिया जाता है,
    तो कोई नहीं जान पाता कि वह कभी वहाँ था।
19 किन्तु वह पौधा प्रसन्न था, अब दूसरे पौधे वहाँ उगेंगे,
    जहाँ कभी वह पौधा था।
20 किन्तु परमेश्वर किसी भी निर्दोष व्यक्ति को नहीं त्यागेगा
    और वह बुरे व्यक्ति को सहारा नहीं देगा।
21 परमेश्वर अभी भी तेरे मुख को हँसी से भर देगा
    और तेरे ओठों को खुशी से चहकायेगा।
22 और परमेश्वर तेरे शत्रुओं को लज्जित करेगा
    और वह तेरे शत्रुओं के घरों को नष्ट कर देगा।”

फिर अय्यूब ने उत्तर दिया:

“हाँ, मैं जानता हूँ कि तू सत्य कहता है
    किन्तु मनुष्य परमेश्वर के सामने निर्दोष कैसे हो सकता है?
मनुष्य परमेश्वर से तर्क नहीं कर सकता।
    परमेश्वर मनुष्य से हजारों प्रश्न पूछ सकता है और कोई उनमें से एक का भी उत्तर नहीं दे सकता है।
परमेश्वर का विवेक गहन है, उसकी शक्ति महान है।
    ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो परमेश्वर से झगड़े और हानि न उठाये।
जब परमेश्वर क्रोधित होता है, वह पर्वतों को हटा देता है और वे जान तक नहीं पाते।
परमेश्वर पृथ्वी को कँपाने के लिये भूकम्प भेजता है।
    परमेश्वर पृथ्वी की नींव को हिला देता है।
परमेश्वर सूर्य को आज्ञा दे सकता है और उसे उगने से रोक सकता हैं।
    वह तारों को बन्द कर सकता है ताकि वे न चमकें।
केवल परमेश्वर ने आकाशों की रचना की।
    वह सागर की लहरों पर विचरण कर सकता है।

“परमेश्वर ने सप्तर्षी, मृगशिरा और कचपचिया तारों को बनाया है।
    उसने उन ग्रहों को बनाया जो दक्षिण का आकाश पार करते हैं।
10 परमेश्वर ऐसे अद्भुत कर्म करता है जिन्हें मनुष्य नहीं समझ सकता।
    परमेश्वर के महान आश्चर्यकर्मों का कोई अन्त नहीं है।
11 परमेश्वर जब मेरे पास से निकलता है, मैं उसे देख नहीं पाता हूँ।
    परमेश्वर जब मेरी बगल से निकल जाता है। मैं उसकी महानता को समझ नहीं पाता।
12 यदि परमेश्वर छीनने लगता है तो
    कोई भी उसे रोक नहीं सकता।
कोई भी उससे कह नहीं सकता,
    ‘तू क्या कर रहा है।’
13 परमेश्वर अपने क्रोध को नहीं रोकेगा।
    यहाँ तक कि राहाब दानव (सागर का दैत्य) के सहायक भी परमेश्वर से डरते हैं।
14 अत: परमेश्वर से मैं तर्क नहीं कर सकता।
    मैं नहीं जानता कि उससे क्या कहा जाये।
15 मैं यद्यपि निर्दोष हूँ किन्तु मैं परमेश्वर को एक उत्तर नहीं दे सकता।
    मैं बस अपने न्यायकर्ता (परमेश्वर) से दया की याचना कर सकता हूँ।
16 यदि मैं उसे पुकारुँ और वह उत्तर दे, तब भी मुझे विश्वास नहीं होगा कि वह सचमुच मेरी सुनता है।
17 परमेश्वर मुझे कुचलने के लिये तूफान भेजेगा
    और वह मुझे अकारण ही और अधिक घावों को देगा।
18 परमेश्वर मुझे फिर साँस नहीं लेने देगा।
    वह मुझे और अधिक यातना देगा।
19 मैं परमेश्वर को पराजित नहीं कर सकता।
    परमेश्वर शक्तिशाली है।
मैं परमेश्वर को न्यायालय में नहीं ले जा सकता और उसे अपने प्रति मैं निष्पक्ष नहीं बना सकता।
    परमेश्वर को न्यायालय में आने के लिये कौन विवश कर सकता है
20 मैं निर्दोंष हूँ किन्तु मेरा भयभीत मुख मुझे अपराधी कहेगा।
    अत: यद्यपि मैं निरपराधी हूँ किन्तु मेरा मुख मुझे अपराधी घोषित करता है।
21 मैं पाप रहित हूँ किन्तु मुझे अपनी ही परवाह नहीं है।
    मैं स्वयं अपने ही जीवन से घृणा करता हूँ।
22 मैं स्वयं से कहता हूँ हर किसी के साथ एक सा ही घटित होता है।
    निरपराध लोग भी वैसे ही मरते हैं जैसे अपराधी मरते हैं।
    परमेश्वर उन सबके जीवन का अन्त करता है।
23 जब कोई भयंकर बात घटती है और कोई निर्दोष व्यक्ति मारा जाता है तो क्या परमेश्वर उसके दु:ख पर हँसता है?
24 जब धरती दुष्ट जन को दी जाती है तो क्या मुखिया को परमेश्वर अंधा कर देता है?
    यदि यह परमेश्वर ने नहीं किया तो फिर किसने किया है?

25 “किसी तेज धावक से तेज मेरे दिन भाग रहे हैं।
    मेरे दिन उड़ कर बीत रहे हैं और उनमें कोई प्रसन्नता नहीं है।
26 वेग से मेरे दिन बीत रहे हैं जैसे श्री—पत्र की नाव बही चली जाती है,
    मेरे दिन टूट पड़ते है ऐसे जैसे उकाब अपने शिकार पर टूट पड़ता हो!

27 “यदि मैं कहूँ कि मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा,
    अपना दु:ख भूल जाऊँगा और उदासी छोड़कर हँसने लगूँगा।
28 इससे वास्तव में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है।
    पीड़ा मुझे अभी भी भयभीत करती है।
29 मुझे तो पहले से ही अपराधी ठहराया जा चुका है,
    सो मैं क्यों जतन करता रहूँ मैं तो कहता हूँ, “भूल जाओ इसे।”
30 चाहे मैं अपने आपको हिम से धो लूँ
    और यहाँ तक की अपने हाथ साबुन से साफ कर लूँ!
31 फिर भी परमेश्वर मुझे घिनौने गर्त में धकेल देगा
    जहाँ मेरे वस्र तक मुझसे घृणा करेंगे।
32 परमेश्वर, मुझ जैसा मनुष्य नहीं है। इसलिए उसको मैं उत्तर नहीं दे सकता।
    हम दोनों न्यायालय में एक दूसरे से मिल नहीं सकते।
33 काश! कोई बिचौलिया होता जो दोनों तरफ की बातें सुनता।
    काश! कोई ऐसा होता जो हम दोनों का न्याय निष्पक्ष रूप से करता।
34 काश! कोई जो परमेश्वर से उस की दण्ड की छड़ी को ले।
    तब परमेश्वर मुझे और अधिक भयभीत नहीं करेगा।
35 तब मैं बिना डरे परमेश्वर से वह सब कह सकूँगा,
    जो मैं कहना चाहता हूँ।

10 “किन्तु हाय, अब मैं वैसा नहीं कर सकता। मुझ को स्वयं अपने जीवन से घृणा हैं अत:
    मैं मुक्त भाव से अपना दुखड़ा रोऊँगा। मेरे मन में कड़वाहट भरी है अत: मैं अबबोलूँगा।
मैं परमेश्वर से कहूँगा ‘मुझ पर दोष मत लगा।
    मुझे बता दै, मैंने तेरा क्या बुरा किया मेरे विरुद्ध तेरे पास क्या है?
हे परमेश्वर, क्या तू मुझे चोट पहुँचा कर प्रसन्न होता है?
    ऐसा लगता है जैसे तुझे अपनी सृष्टि की चिंता नहीं है और शायद तू दुष्टों के कुचक्रों का पक्ष लेता है।
हे परमेश्वर, क्या तेरी आँखें मनुष्य समान है
    क्या तू वस्तुओं को ऐसे ही देखता है, जैसे मनुष्य की आँखे देखा करती हैं।
तेरी आयु हम मनुष्यों जैसे छोटी नहीं है।
    तेरे वर्ष कम नहीं हैं जैसे मनुष्य के कम होते हैं।
तू मेरी गलतियों को ढूढ़ता है,
    और मेरे पापों को खोजता है।
तू जानता है कि मैं निरपराध हूँ।
    किन्तु मुझे कोई भी तेरी शक्ति से बचा नही सकता।
परमेश्वर, तूने मुझ को रचा
    और तेरे हाथों ने मेरी देह को सँवारा,
किन्तु अब तू ही मुझ से विमुख हुआ
    और मुझे नष्ट कर रहा है।
हे परमेश्वर, याद कर कि तूने मुझे मिट्टी से मढ़ा,
    किन्तु अब तू ही मुझे फिर से मिट्टी में मिलायेगा।
10 तू दूध के समान मुझ को उडेंलता है,
    दूध की तरह तू मुझे उबालता है और तू मुझे दूध से पनीर में बदलता है।
11 तूने मुझे हड्डियों और माँस पेशियों से बुना
    और फिर तूने मुझ पर माँस और त्वचा चढ़ा दी।
12 तूने मुझे जीवन का दान दिया और मेरे प्रति दयालु रहा।
    तूने मेरा ध्यान रखा और तूने मेरे प्राणों की रखवाली की।
13 किन्तु यह वह है जिसे तूने अपने मन में छिपाये रखा
    और मैं जानता हूँ, यह वह है जिसकी तूने अपने मन में गुप्त रूप से योजना बनाई।
हाँ, यह मैं जानता हूँ, यह वह है जो तेरे मन में था।
14 यदि मैंने पाप किया तो तू मुझे देखता था।
    सो मेरे बुरे काम का दण्ड तू दे सकता था।
15 जब मैं पाप करता हूँ तो
    मैं अपराधी होता हूँ और यह मेरे लिये बहुत ही बुरा होगा।
किन्तु मैं यदि निरपराध भी हूँ
    तो भी अपना सिर नहीं उठा पाता
    क्योंकि मैं लज्जा और पीड़ा से भरा हुआ हूँ।
16 यदि मुझको कोई सफलता मिल जाये और मैं अभिमानी हो जाऊँ,
    तो तू मेरा पीछा वैसे करेगा जैसे सिंह के पीछे कोई शिकारी पड़ता है
    और फिर तू मेरे विरुद्ध अपनी शक्ति दिखायेगा।
17 तू मेरे विरुद्ध सदैव किसी न किसी को नया साक्षी बनाता है।
    तेरा क्रोध मेरे विरुद्ध और अधिक भड़केगा तथा मेरे विरुद्ध तू नई नई शत्रु सेना लायेगा।
18 सो हे परमेश्वर, तूने मुझको क्यों जन्म दिया? इससे पहले की कोई मुझे देखता
    काश! मैं मर गया होता।
19 काश! मैं जीवित न रहता।
    काश! माता के गर्भ से सीधे ही कब्र में उतारा जाता।
20 मेरा जीवन लगभग समाप्त हो चुका है
    सो मुझे अकेला छोड़ दो।
    मेरा थोड़ा सा समय जो बचा है उसे मुझे चैन से जी लेने दो।
21 इससे पहले की मैं वहाँ चला जाऊँ जहाँ से कभी कोई वापस नहीं आता हैं।
    जहाँ अंधकार है और मृत्यु का स्थान है।
22 जो थोड़ा समय मेरा बचा है उसे मुझको जी लेने दो, इससे पहले कि मैं वहाँ चला जाऊँ जिस स्थान को कोई नहीं देख पाता अर्थात् अधंकार, विप्लव और गड़बड़ी का स्थान।
    उस स्थान में यहाँ तक कि प्रकाश भी अंधकारपूर्ण होता है।’”

सोपर का अय्यूब से कथन

11 इस पर नामात नामक प्रदेश के सोपर ने अय्यूब को उत्तर देते हुये कहा,

“इस शब्दों के प्रवाह का उत्तर देना चाहिये।
    क्या यह सब कहना अय्यूब को निर्दोंष ठहराता है? नहीं!
अय्यूब, क्या तुम सोचते हो कि
    हमारे पास तुम्हारे लिये उत्तर नहीं है?
क्या तुम सोचते हो कि जब तुम परमेश्वर पर
    हंसते हो तो कोई तुम्हें चेतावनी नहीं देगा।
अय्यूब, तुम परमेश्वर से कहते रहे कि,
    ‘मेरा विश्वास सत्य है
    और तू देख सकता है कि मैं निष्कलंक हूँ!’
अय्यूब, मेरी ये इच्छा है कि परमेश्वर तुझे उत्तर दे,
    यह बताते हुए कि तू दोषपूर्ण है!
काश! परमेश्वर तुझे बुद्धि के छिपे रहस्य बताता
    और वह सचमुच तुझे उनको बतायेगा! हर कहानी के दो पक्ष होते हैं,
अय्यूब, मेरी सुन परमेश्वर तुझे कम दण्डित कर रहा है,
    अपेक्षाकृत जितना उसे सचमुच तुझे दण्डित करना चाहिये।

“अय्यूब, क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रहस्यपूर्ण सत्य समझ सकते हो?
    क्या तुम उसके विवेक की सीमा मर्यादा समझ सकते हो?
उसकी सीमायें आकाश से ऊँची है,
    इसलिये तुम नहीं समझ सकते हो!
सीमायें नर्क की गहराईयों से गहरी है,
    सो तू उनको समझ नहीं सकता है!
वे सीमायें धरती से व्यापक हैं,
    और सागर से विस्तृत हैं।

10 “यदि परमेश्वर तुझे बंदी बनाये और तुझको न्यायालय में ले जाये,
    तो कोई भी व्यक्ति उसे रोक नहीं सकता है।
11 परमेश्वर सचमुच जानता है कि कौन पाखण्डी है।
    परमेश्वर जब बुराई को देखता है, तो उसे याद रखता है।
12 किन्तु कोई मूढ़ जन कभी बुद्धिमान नहीं होगा,
    जैसे बनैला गधा कभी मनुष्य को जन्म नहीं दे सकता है।
13 सो अय्यूब, तुझको अपना मन तैयार करना चाहिये, परमेश्वर की सेवा करने के लिये।
    तुझे अपने निज हाथों को प्रार्थना करने को ऊपर उठाना चाहिये।
14 वह पाप जो तेरे हाथों में बसा है, उसको तू दूर कर।
    अपने तम्बू में बुराई को मत रहने दे।
15 तभी तू निश्चय ही बिना किसी लज्जा के आँख ऊपर उठा कर परमेश्वर को देख सकता है।
    तू दृढ़ता से खड़ा रहेगा और नहीं डरेगा।
16 अय्यूब, तब तू अपनी विपदा को भूल पायेगा।
    तू अपने दुखड़ो को बस उस पानी सा याद करेगा जो तेरे पास से बह कर चला गया।
17 तेरा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक उज्जवल होगा।
    जीवन की अँधेरी घड़ियाँ ऐसे चमकेगी जैसे सुबह का सूरज।
18 अय्यूब, तू सुरक्षित अनुभव करेगा क्योंकि वहाँ आशा होगी।
    परमेश्वर तेरी रखवाली करेगा और तुझे आराम देगा।
19 चैन से तू सोयेगा, कोई तुझे नहीं डरायेगा
    और बहुत से लोग तुझ से सहायता माँगेंगे!
20 किन्तु जब बुरे लोग आसरा ढूढेंगे तब उनको नहीं मिलेगा।
    उनके पास कोई आस नहीं होगी।
वे अपनी विपत्तियों से बच कर निकल नहीं पायेंगे।
    मृत्यु ही उनकी आशा मात्र होगी।”

सोपर को अय्यूब का उत्तर

12 फिर अय्यूब ने सोपर को उत्तर दिया:

“निःसन्देह तुम सोचते हो कि मात्र
    तुम ही लोग बुद्धिमान हो,
तुम सोचते हो कि जब तुम मरोगे तो
    विवेक मर जायेगा तुम्हारे साथ।
किन्तु तुम्हारे जितनी मेरी बुद्धि भी उत्तम है,
    मैं तुम से कुछ घट कर नहीं हूँ।
ऐसी बातों को जैसी तुम कहते हो,
    हर कोई जानता है।

“अब मेरे मित्र मेरी हँसी उड़ाते हैं,
    वह कहते है: ‘हाँ, वह परमेश्वर से विनती किया करता था, और वह उसे उत्तर देता था।
इसलिए यह सब बुरी बातें उसके साथ घटित हो रही है।’
    यद्यपि मैं दोषरहित और खरा हूँ, लेकिन वे मेरी हँसी उड़ाते हैं।
ऐसे लोग जिन पर विपदा नहीं पड़ी, विपदाग्रस्त लोगों की हँसी किया करते हैं।
    ऐसे लोग गिरते हुये व्यक्ति को धक्का दिया करते हैं।
डाकुओं के डेरे निश्चिंत रहते हैं,
    ऐसे लोग जो परमेश्वर को रुष्ट करते हैं, शांति से रहते हैं।
    स्वयं अपने बल को वह अपना परमेश्वर मानते हैं।

“चाहे तू पशु से पूछ कर देख,
    वे तुझे सिखादेंगे,
अथवा हवा के पक्षियों से पूछ
    वे तुझे बता देंगे।
अथवा तू धरती से पूछ ले
    वह तुझको सिखा देगी
या सागर की मछलियों को
    अपना ज्ञान तुझे बताने दे।
हर कोई जानता है कि परमेश्वर ने इन सब वस्तुओं को रचा है।
10 हर जीवित पशु और हर एक प्राणी जो साँस लेता है,
    परमेश्वर की शक्ति के अधीन है।
11 जैसे जीभ भोजन का स्वाद चखती है,
    वैसी ही कानों को शब्दों को परखना भाता है।
12 हम कहते है, ‘ऐसे ही बूढ़ों के पास विवेक रहता है और लम्बी आयु समझ बूझ देती है।’
13 विवेक और सामर्थ्य परमेश्वर के साथ रहते है, सम्मत्ति और सूझ—बूझ उसी की ही होती है।
14 यदि परमेश्वर किसी वस्तु को ढा गिराये तो, फिर लोग उसे नहीं बना सकते।
    यदि परमेश्वर किसी व्यक्ति को बन्दी बनाये, तो लोग उसे मुक्त नहीं कर सकते।
15 यदि परमेश्वर वर्षा को रोके तो धरती सूख जायेगी।
    यदि परमेश्वर वर्षा को छूट दे दे, तो वह धरती पर बाढ़ ले आयेगी।
16 परमेश्वर समर्थ है और वह सदा विजयी होता है।
    वह व्यक्ति जो छलता है और वह व्यक्ति जो छला जाता है दोनो परमेश्वर के हैं।
17 परमेश्वर मन्त्रियों को बुद्धि से वंचित कर देता है,
    और वह प्रमुखों को ऐसा बना देता है कि वे मूर्ख जनों जैसा व्यवहार करने लगते हैं।
18 राजा बन्दियों पर जंजीर डालते हैं किन्तु उन्हें परमेश्वर खोल देता है।
    फिर परमेश्वर उन राजाओं पर एक कमरबन्द बांध देता है।
19 परमेश्वर याजकों को बन्दी बना कर, पद से हटाता है और तुच्छ बना कर ले जाता है।
    वह बलि और शक्तिशाली लोगों को शक्तिहीन कर देता है।
20 परमेश्वर विश्वासपात्र सलाह देनेवाले को चुप करा देता है।
    वह वृद्ध लोगों का विवेक छीन लेता है।
21 परमेश्वर महत्वपूर्ण हाकिमों पर घृणा उंडेल देता है।
    वह शासकों की शक्ति छीन लिया करता है।
22 परमेश्वर गहन अंधकार से रहस्यपूर्ण सत्य को प्रगट करता है।
    ऐसे स्थानों में जहाँ मृत्यु सा अंधेरा है वह प्रकाश भेजता है।
23 परमेश्वर राष्ट्रों को विशाल और शक्तिशाली होने देता है,
    और फिर उनको वह नष्ट कर डालता है।
वह राष्ट्रों को विकसित कर विशाल बनने देता है,
    फिर उनके लोगों को वह तितर—बितर कर देता है।
24 परमेश्वर धरती के प्रमुखों को मूर्ख बना देता है, और उन्हें नासमझ बना देता है।
    वह उनको मरुभूमि में जहाँ कोई राह नहीं भटकने को भेज देता है।
25 वे प्रमुख अंधकार के बीच टटोलते हैं, कोई भी प्रकाश उनके पास नहीं होता है।
    परमेश्वर उनको ऐसे चलाता है, जैसे पी कर धुत्त हुये लोग चलते हैं।”

13 अय्यूब ने कहा:

“मेरी आँखों ने यह सब पहले देखा है
    और पहले ही मैं सुन चुका हूँ जो कुछ तुम कहा करते हो।
    इस सब की समझ बूझ मुझे है।
मैं भी उतना ही जानता हूँ जितना तू जानता है,
    मैं तुझ से कम नहीं हूँ।
किन्तु मुझे इच्छा नहीं है कि मैं तुझ से तर्क करूँ,
    मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर से बोलना चाहता हूँ।
    अपने संकट के बारे में, मैं परमेश्वर से तर्क करना चाहता हूँ।
किन्तु तुम तीनो लोग अपने अज्ञान को मिथ्या विचारों से ढकना चाहते हो।
    तुम वो बेकार के चिकित्सक हो जो किसी को अच्छा नहीं कर सकता।
मेरी यह कामना है कि तुम पूरी तरह चुप हो जाओ,
    यह तुम्हारे लिये बुद्धिमत्ता की बात होगी जिसको तुम कर सकते हो!

“अब, मेरी युक्ति सुनो!
    सुनो जब मैं अपनी सफाई दूँ।
क्या तुम परमेश्वर के हेतु झूठ बोलोगे?
    क्या यह तुमको सचमुच विश्वास है कि ये तुम्हारे झूठ परमेश्वर तुमसे बुलवाना चाहता है
क्या तुम मेरे विरुद्ध परमेश्वर का पक्ष लोगे?
    क्या तुम न्यायालय में परमेश्वर को बचाने जा रहे हो?
यदि परमेश्वर ने तुमको अति निकटता से जाँच लिया तो
    क्या वह कुछ भी अच्छी बातपायेगा?
क्या तुम सोचते हो कि तुम परमेश्वर को छल पाओगे,
    ठीक उसी तरह जैसे तुम लोगों को छलते हो?
10 यदि तुम न्यायालय में छिपे छिपे किसी का पक्ष लोगे
    तो परमेश्वर निश्चय ही तुमको लताड़ेगा।
11 उसका भव्य तेज तुमको डरायेगा
    और तुम भयभीत हो जाओगे।
12 तुम सोचते हो कि तुम चतुराई भरी और बुद्धिमत्तापूर्ण बातें करते हो, किन्तु तुम्हारे कथन राख जैसे व्यर्थ हैं।
    तुम्हारी युक्तियाँ माटी सी दुर्बल हैं।

13 “चुप रहो और मुझको कह लेने दो।
    फिर जो भी होना है मेरे साथ हो जाने दो।
14 मैं स्वयं को संकट में डाल रहा हूँ
    और मैं स्वयं अपना जीवन अपने हाथों में ले रहा हूँ।
15 चाहे परमेश्वर मुझे मार दे।
    मुझे कुछ आशा नहीं है, तो भी मैं अपना मुकदमा उसके सामने लड़ूँगा।
16 किन्तु सम्भव है कि परमेश्वर मुझे बचा ले, क्योंकि मैं उसके सामने निडर हूँ।
    कोई भी बुरा व्यक्ति परमेश्वर से आमने सामने मिलने का साहस नहीं कर सकता।
17 उसे ध्यान से सुन जिसे मैं कहता हूँ,
    उस पर कान दे जिसकी व्याख्या मैं करता हूँ।
18 अब मैं अपना बचाव करने को तैयार हूँ।
    यह मुझे पता है कि
    मुझको निर्दोष सिद्ध किया जायेगा।
19 कोई भी व्यक्ति यह प्रमाणित नहीं कर सकता कि मैं गलत हूँ।
    यदि कोई व्यक्ति यह सिद्ध कर दे तो मैं चुप हो जाऊँगा और प्राण दे दूँगा।

20 “हे परमेश्वर, तू मुझे दो बाते दे दे,
    फिर मैं तुझ से नहीं छिपूँगा।
21 मुझे दण्ड देना और डराना छोड़ दे,
    अपने आतंको से मुझे छोड़ दे।
22 फिर तू मुझे पुकार और मैं तुझे उत्तर दूँगा,
    अथवा मुझको बोलने दे और तू मुझको उत्तर दे।
23 कितने पाप मैंने किये हैं?
    कौन सा अपराध मुझसे बन पड़ा?
    मुझे मेरे पाप और अपराध दिखा।
24 हे परमेश्वर, तू मुझसे क्यों बचता है?
    और मेरे साथ शत्रु जैसा व्यवहार क्यों करता है?
25 क्या तू मुझको डरायेगा?
    मैं (अय्यूब) एक पत्ता हूँ जिसके पवन उड़ाती है।
    एक सूखे तिनके पर तू प्रहार कर रहा है।
26 हे परमेश्वर, तू मेरे विरोध में कड़वी बात बोलता है।
    तू मुझे ऐसे पापों के लिये दु:ख देता है जो मैंने लड़कपन में किये थे।
27 मेरे पैरों में तूने काठ डाल दिया है, तू मेरे हर कदम पर आँख गड़ाये रखता है।
    मेरे कदमों की तूने सीमायें बाँध दी हैं।
28 मैं सड़ी वस्तु सा क्षीण होता जाता हूँ
    कीड़ें से खाये हुये
    कपड़े के टुकड़े जैसा।”

14 अय्यूब ने कहा,

“हम सभी मानव है
    हमारा जीवन छोटा और दु:खमय है!
मनुष्य का जीवन एक फूल के समान है
    जो शीघ्र उगता है और फिर समाप्त हो जाता है।
मनुष्य का जीवन है जैसे कोई छाया जो थोड़ी देर टिकती है और बनी नहीं रहती।
हे परमेश्वर, क्या तू मेरे जैसे मनुष्य पर ध्यान देगा?
    क्या तू मेरा न्याय करने मुझे सामने लायेगा?

“किसी ऐसी वस्तु से जो स्वयं अस्वच्छ है स्वच्छ वस्तु कौन पा सकता है? कोई नहीं।
मनुष्य का जीवन सीमित है।
    मनुष्य के महीनों की संख्या परमेश्वर ने निश्चित कर दी है।
    तूने मनुष्य के लिये जो सीमा बांधी है, उसे कोई भी नहीं बदल सकता।
सो परमेश्वर, तू हम पर आँख रखना छोड़ दे। हम लोगों को अकेला छोड़ दे।
    हमें अपने कठिन जीवन का मजा लेने दे, जब तक हमारा समय नहीं समाप्त हो जाता।

“किन्तु यदि वृक्ष को काट गिराया जाये तो भी आशा उसे रहती है कि
    वह फिर से पनप सकता है,
    क्योंकि उसमें नई नई शाखाऐं निकलती रहेंगी।
चाहे उसकी जड़े धरती में पुरानी क्यों न हो जायें
    और उसका तना चाहे मिट्टी में गल जाये।
किन्तु जल की गंध मात्र से ही वह नई बढ़त देता है
    और एक पौधे की तरह उससे शाखाऐं फूटती हैं।
10 किन्तु जब बलशाली मनुष्य मर जाता है
    उसकी सारी शक्ति खत्म हो जाती है। जब मनुष्य मरता है वह चला जाता है।
11 जैसे सागर के तट से जल शीघ्र लौट कर खो जाता है
    और जल नदी का उतरता है, और नदी सूख जाती है।
12 उसी तरह जब कोई व्यक्ति मर जाता है
    वह नीचे लेट जाता है
और वह महानिद्रा से फिर खड़ा नहीं होता।
    वैसे ही वह व्यक्ति जो प्राण त्यागता है
कभी खड़ा नहीं होता अथवा चिर निद्रा नहीं त्यागता
    जब तक आकाश विलुप्त नहीं होंगे।

13 “काश! तू मुझे मेरी कब्र में मुझे छुपा लेता
    जब तक तेरा क्रोध न बीत जाता।
फिर कोई समय मेरे लिये नियुक्त करके तू मुझे याद करता।
14 यदि कोई मनुष्य मर जाये तो क्या जीवन कभी पायेगा?
    मैं तब तक बाट जोहूँगा, जब तक मेरा कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता और जब तक मैं मुक्त न हो जाऊँ।
15 हे परमेश्वर, तू मुझे बुलायेगा
    और मैं तुझे उत्तर दूँगा।
तूने मुझे रचा है,
    सो तू मुझे चाहेगा।
16 फिर तू मेरे हर चरण का जिसे मैं उठाता हूँ, ध्यान रखेगा
    और फिर तू मेरे उन पापों पर आँख रखेगा, जिसे मैंने किये हैं।
17 काश! मेरे पाप दूर हो जाएँ। किसी थैले में उन्हें बन्द कर दिया जाये
    और फिर तू मेरे पापों को ढक दे।

18 “जैसे पर्वत गिरा करता है और नष्ट हो जाता है
    और कोई चट्टान अपना स्थान छोड़ देती है।
19 जल पत्थरों के ऊपर से बहता है और उन को घिस डालता है
    तथा धरती की मिट्टी को जल बहाकर ले जाती है।
    हे परमेश्वर, उसी तरह व्यक्ति की आशा को तू बहा ले जाता है।
20 तू एक बार व्यक्ति को हराता है
    और वह समाप्त हो जाता है।
तू मृत्यु के रूप सा उसका मुख बिगाड़ देता है,
    और सदा सदा के लिये कहीं भेज देता है।
21 यदि उसके पुत्र कभी सम्मान पाते हैं तो उसे कभी उसका पता नहीं चल पाता।
    यदि उसके पुत्र कभी अपमान भोगतें हैं, जो वह उसे कभी देख नहीं पाता है।
22 वह मनुष्य अपने शरीर में पीड़ा भोगता है
    और वह केवल अपने लिये ऊँचे पुकारता है।”

15 इस पर तेमान नगर के निवासी एलीपज ने अय्यूब को उत्तर देते हुए कहा:

“अय्यूब, य़दि तू सचमुच बुद्धिमान होता तो रोते शब्दों से तू उत्तर न देता।
    क्या तू सोचता है कि कोई विवेकी पुरुष पूर्व की लू की तरह उत्तर देता है?
क्या तू सोचता है कि कोई बुद्धिमान पुरुष व्यर्थ के शब्दों से
    और उन भाषणों से तर्क करेगा जिनका कोई लाभ नहीं?
अय्यूब, यदि तू मनमानी करता है
    तो कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की न तो आदर करेगा, न ही उससे प्रार्थना करेगा।
तू जिन बातों को कहता है वह तेरा पाप साफ साफ दिखाती हैं।
    अय्यूब, तू चतुराई भरे शब्दों का प्रयोग करके अपने पाप को छिपाने का प्रयत्न कर रहा है।
तू उचित नहीं यह प्रमाणित करने की मुझे आवश्यकता नहीं है।
    क्योंकि तू स्वयं अपने मुख से जो बातें कहता है,
    वह दिखाती हैं कि तू बुरा है और तेरे ओंठ स्वयं तेरे विरुद्ध बोलते हैं।

“अय्यूब, क्या तू सोचता है कि जन्म लेने वाला पहला व्यक्ति तू ही है?
    और पहाड़ों की रचना से भी पहले तेरा जन्म हुआ।
क्या तूने परमेश्वर की रहस्यपूर्ण योजनाऐं सुनी थी
    क्या तू सोचा करता है कि एक मात्र तू ही बुद्धिमान है?
अय्यूब, तू हम से अधिक कुछ नहीं जानता है।
    वे सभी बातें हम समझते हैं, जिनकी तुझको समझ है।
10 वे लोग जिनके बाल सफेद हैं और वृद्ध पुरुष हैं वे हमसे सहमत रहते हैं।
    हाँ, तेरे पिता से भी वृद्ध लोग हमारे पक्ष में हैं।
11 परमेश्वर तुझको सुख देने का प्रयत्न करता है,
    किन्तु यह तेरे लिये पर्याप्त नहीं है।
परमेश्वर का सुसन्देश बड़ी नम्रता के साथ हमने तुझे सुनाया।
12 अय्यूब, क्यों तेरा हृदय तुझे खींच ले जाता है?
    तू क्रोध में क्यों हम पर आँखें तरेरता है?
13 जब तू इन क्रोध भरे वचनों को कहता है,
    तो तू परमेश्वर के विरुद्ध होता है।

14 “सचमुच कोई मनुष्य पवित्र नहीं हो सकता।
    मनुष्य स्त्री से पैदा हुआ है, और धरती पर रहता है, अत: वह उचित नहीं हो सकता।
15 यहाँ तक कि परमेश्वर अपने दूतों तक का विश्वास नहीं करता है।
    यहाँ तक कि स्वर्ग जहाँ स्वर्गदूत रहते हैं पवित्र नहीं है।
16 मनुष्य तो और अधिक पापी है।
    वह मनुष्य मलिन और घिनौना है
    वह बुराई को जल की तरह गटकता है।

17 “अय्यूब, मेरी बात तू सुन और मैं उसकी व्याख्या तुझसे करूँगा।
    मैं तुझे बताऊँगा, जो मैं जानता हूँ।
18 मैं तुझको वे बातें बताऊँगा,
    जिन्हें विवेकी पुरुषों ने मुझ को बताया है
    और विवेकी पुरुषों को उनके पूर्वजों ने बताई थी।
उन विवेकी पुरुषों ने कुछ भी मुझसे नहीं छिपाया।
19 केवल उनके पूर्वजों को ही देश दिया गया था।
    उनके देश में कोई परदेशी नहीं था।
20 दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा झेलेगा और क्रूर जन
    उन सभी वर्षों में जो उसके लिये निश्चित किये गये है, दु:ख उठाता रहेगा।
21 उसके कानों में भयंकर ध्वनियाँ होगी।
    जब वह सोचेगा कि वह सुरक्षित है तभी उसके शत्रु उस पर हमला करेंगे।
22 दुष्ट जन बहुत अधिक निराश रहता है और उसके लिये कोई आशा नहीं है, कि वह अंधकार से बच निकल पाये।
    कहीं एक ऐसी तलवार है जो उसको मार डालने की प्रतिज्ञा कर रही है।
23 वह इधर—उधर भटकता हुआ फिरता है किन्तु उसकी देह गिद्धों का भोजन बनेगी।
    उसको यह पता है कि उसकी मृत्य़ु बहुत निकट है।
24 चिंता और यातनाऐं उसे डरपोक बनाती है और ये बातें उस पर ऐसे वार करती है,
    जैसे कोई राजा उसके नष्ट कर डालने को तत्पर हो।
25 क्यो? क्योंकि दुष्ट जन परमेश्वर की आज्ञा मानने से इन्कार करता है, वह परमेश्वर को घूसा दिखाता है।
    और सर्वशक्तिमान परमेश्वर को पराजित करने का प्रयास करता है।
26 वह दुष्ट जन बहुत हठी है।
    वह परमेश्वर पर एक मोटी मजबूत ढाल से वार करना चाहता है।
27 दुष्ट जन के मुख पर चर्बी चढ़ी रहती है।
उसकी कमर माँस भर जाने से मोटी हो जाती है।
28     किन्तु वह उजड़े हुये नगरों में रहेगा।
वह ऐसे घरों में रहेगा जहाँ कोई नहीं रहता है।
    जो घर कमजोर हैं और जो शीघ्र ही खण्डहर बन जायेंगे।
29 दुष्ट जन अधिक समय तक
    धनी नहीं रहेगा
    उसकी सम्पत्तियाँ नहीं बढ़ती रहेंगी।
30 दुष्ट जन अन्धेरे से नहीं बच पायेगा।
    वह उस वृक्ष सा होगा जिसकी शाखाऐं आग से झुलस गई हैं।
    परमेश्वर की फूँक दुष्टों को उड़ा देगी।
31 दुष्ट जन व्यर्थ वस्तुओं के भरोसे रह कर अपने को मूर्ख न बनाये
    क्योंकि उसे कुछ नहीं प्राप्त होगा।
32 दुष्ट जन अपनी आयु के पूरा होने से पहले ही बूढ़ा हो जायेगा और सूख जायेगा।
    वह एक सूखी हुई डाली सा हो जायेगा जो फिर कभी भी हरी नहीं होगी।
33 दुष्ट जन उस अंगूर की बेल सा होता है जिस के फल पकने से पहले ही झड़ जाते हैं।
    ऐसा व्यक्ति जैतून के पेड़ सा होता है, जिसके फूल झड़ जाते हैं।
34 क्यों? क्योंकि परमेश्वर विहीन लोग खाली हाथ रहेंगे।
    ऐसे लोग जिनको पैसों से प्यार है, घूस लेते हैं। उनके घर आग से नष्ट हो जायेंगे।
35 वे पीड़ा का कुचक्र रचते हैं और बुरे काम करते हैं।
    वे लोगों को छलने के ढंगों की योजना बनाते हैं।”

16 इस पर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:

“मैंने पहले ही ये बातें सुनी हैं।
    तुम तीनों मुझे दु:ख देते हो, चैन नहीं।
तुम्हारी व्यर्थ की लम्बी बातें कभी समाप्त नहीं होती।
    तुम क्यों तर्क करते ही रहते हो?
जैसे तुम कहते हो वैसी बातें तो मैं भी कर सकता हूँ,
    यदि तुम्हें मेरे दु:ख झेलने पड़ते।
तुम्हारे विरोध में बुद्धिमत्ता की बातें मैं भी बना सकता हूँ
    और अपना सिर तुम पर नचा सकता हूँ।
किन्तु मैं अपने वचनों से तुम्हारा साहस बढ़ा सकता हूँ और तुम्हारे लिये आशा बन्धा सकता हूँ?

“किन्तु जो कुछ मैं कहता हूँ उससे मेरा दु:ख दूर नहीं हो सकता।
    किन्तु यदि मैं कुछ भी न कहूँ तो भी मुझे चैन नहीं पड़ता।
सचमुच हे परमेश्वर तूने मेरी शक्ति को हर लिया है।
    तूने मेरे सारे घराने को नष्ट कर दिया है।
तूने मुझे बांध दिया और हर कोई मुझे देख सकता है। मेरी देह दुर्बल है,
    मैं भयानक दिखता हूँ और लोग ऐसा सोचते हैं जिस का तात्पर्य है कि मैं अपराधी हूँ।

“परमेश्वर मुझ पर प्रहार करता है।
    वह मुझ पर कुपित है और वह मेरी देह को फाड़ कर अलग कर देता है,
तथा परमेश्वर मेरे ऊपर दाँत पीसता है।
    मुझे शत्रु घृणा भरी दृष्टि से घूरते हैं।
10 लोग मेरी हँसी करते हैं।
    वे सभी भीड़ बना कर मुझे घेरने को और मेरे मुँह पर थप्पड़ मारने को सहमत हैं।
11 परमेश्वर ने मुझे दुष्ट लोगों के हाथ में अर्पित कर दिया है।
    उसने मुझे पापी लोगों के द्वारा दु:ख दिया है।
12 मेरे साथ सब कुछ भला चंगा था
    किन्तु तभी परमेश्वर ने मुझे कुचल दिया। हाँ,
उसने मुझे पकड़ लिया गर्दन से
    और मेरे चिथड़े चिथड़े कर डाले।
परमेश्वर ने मुझको निशाना बना लिया।
13     परमेश्वर के तीरंदाज मेरे चारों तरफ है।
    वह मेरे गुर्दों को बाणों से बेधता है।
वह दया नहीं दिखाता है।
    वह मेरे पित्त को धरती पर बिखेरता है।
14 परमेश्वर मुझ पर बार बार वार करता है।
    वह मुझ पर ऐसे झपटता है जैसे कोई सैनिक युद्ध में झपटता है।

15 “मैं बहुत ही दु:खी हूँ
    इसलिये मैं टाट के वस्त्र पहनता हूँ।
यहाँ मिट्टी और राख में मैं बैठा रहता हूँ
    और सोचा करता हूँ कि मैं पराजित हूँ।
16 मेरा मुख रोते—बिलखते लाल हुआ।
    मेरी आँखों के नीचे काले घेरे हैं।
17 मैंने किसी के साथ कभी भी क्रूरता नहीं की।
    किन्तु ये बुरी बातें मेरे साथ घटित हुई।
    मेरी प्रार्थनाऐं सही और सच्चे हैं।

18 “हे पृथ्वी, तू कभी उन अत्याचारों को मत छिपाना जो मेरे साथ किये गये हैं।
    मेरी न्याय की विनती को तू कभी रूकने मत देना।
19 अब तक भी सम्भव है कि वहाँ आकाश में कोई तो मेरे पक्ष में हो।
    कोई ऊपर है जो मुझे दोषरहित सिद्ध करेगा।
20 मेरे मित्र मेरे विरोधी हो गये हैं
    किन्तु परमेश्वर के लिये मेरी आँखें आँसू बहाती हैं।
21 मुझे कोई ऐसा व्यक्ति चाहिये जो परमेश्वर से मेरा मुकदमा लड़े।
    एक ऐसा व्यक्ति जो ऐसे तर्क करे जैसे निज मित्र के लिये करता हो।

22 “कुछ ही वर्ष बाद मैं वहाँ चला जाऊँगा
    जहाँ से फिर मैं कभी वापस न आऊँगा (मृत्यु)।

17 “मेरा मन टूट चुका है।
    मेरा मन निराश है।
मेरा प्राण लगभग जा चुका है।
    कब्र मेरी बाट जोह रही है।
लोग मुझे घेरते हैं और मुझ पर हँसते हैं।
    जब लोग मुझे सताते हैं और मेरा अपमान करते है, मैं उन्हें देखता हूँ।

“परमेश्वर, मेरे निरपराध होने का शपथ—पत्र मेरा स्वीकार कर।
    मेरी निर्दोषता की साक्षी देने के लिये कोई तैयार नहीं होगा।
मेरे मित्रों का मन तूने मूँदा अत:
    वे मुझे कुछ नहीं समझते हैं।
    कृपा कर उन को मत जीतने दे।
लोगों की कहावत को तू जानता है।
    मनुष्य जो ईनाम पाने को मित्र के विषय में गलत सूचना देते हैं,
    उनके बच्चे अन्धे हो जाया करते हैं।
परमेश्वर ने मेरा नाम हर किसी के लिये अपशब्द बनाया है
    और लोग मेरे मुँह पर थूका करते हैं।
मेरी आँख लगभग अन्धी हो चुकी है क्योंकि मैं बहुत दु:खी और बहुत पीड़ा में हूँ।
    मेरी देह एक छाया की भाँति दुर्बल हो चुकी है।
मेरी इस दुर्दशा से सज्जन बहुत व्याकुल हैं।
    निरपराधी लोग भी उन लोगों से परेशान हैं जिनको परमेश्वर की चिन्ता नहीं है।
किन्तु सज्जन नेकी का जीवन जीते रहेंगे।
    निरपराधी लोग शक्तिशाली हो जायेंगे।

10 “किन्तु तुम सभी आओ और फिर मुझ को दिखाने का यत्न करो कि सब दोष मेरा है।
    तुममें से कोई भी विवेकी नहीं।
11 मेरा जीवन यूँ ही बात रहा है।
    मेरी याजनाऐं टूट गई है और आशा चली गई है।
12 किन्तु मेरे मित्र रात को दिन सोचा करते हैं।
    जब अन्धेरा होता है, वे लोग कहा करते हैं, ‘प्रकाश पास ही है।’

13 “यदि मैं आशा करूँ कि अन्धकारपूर्ण कब्र
    मेरा घर और बिस्तर होगा।
14 यदि मैं कब्र से कहूँ ‘तू मेरा पिता है’
    और कीड़े से ‘तू मेरी माता है अथवा तू मेरी बहन है।’
15 किन्तु यदि वह मेरी एकमात्र आशा है तब तो कोई आशा मुझे नहीं हैं
    और कोई भी व्यक्ति मेरे लिये कोई आशा नहीं देख सकता है।
16 क्या मेरी आशा भी मेरे साथ मृत्यु के द्वार तक जायेगी?
    क्या मैं और मेरी आशा एक साथ धूल में मिलेंगे?”

अय्यूब को बिल्दद का उत्तर

18 फिर शूही प्रदेश के बिल्दद ने उत्तर देते हूए कहा:

“अय्यूब, इस तरह की बातें करना तू कब छोड़ेगा
    तुझे चुप होना चाहिये और फिर सुनना चाहिये।
    तब हम बातें कर सकते हैं।
तू क्यों यह सोचता हैं कि हम उतने मूर्ख हैं जितनी मूर्ख गायें।
अय्यूब, तू अपने क्रोध से अपनी ही हानि कर रहा है।
    क्या लोग धरती बस तेरे लिये छोड़ दे? क्या तू यह सोचता है कि
    बस तुझे तृप्त करने को परमेश्वर धरती को हिला देगा?

“हाँ, बुरे जन का प्रकाश बुझेगा
    और उसकी आग जलना छोड़ेगी।
उस के तम्बू का प्रकाश काला पड़ जायेगा
    और जो दीपक उसके पास है वह बुझ जायेगा।
उस मनुष्य के कदम फिर कभी मजबूत और तेज नहीं होंगे।
    किन्तु वह धीरे चलेगा और दुर्बल हो जायेगा।
    अपने ही कुचक्रों से उसका पतन होगा।
उसके अपने ही कदम उसे एक जाल के फन्दे में गिरा देंगे।
    वह चल कर जाल में जायेगा और फंस जायेगा।
कोई जाल उसकी एड़ी को पकड़ लेगा।
    एक जाल उसको कसकर जकड़ लेगा।
10 एक रस्सा उसके लिये धरती में छिपा होगा।
    कोई जाल राह में उसकी प्रतीक्षा में है।
11 उसके तरफ आतंक उसकी टोह में हैं।
    उसके हर कदम का भय पीछा करता रहेगा।
12 भयानक विपत्तियाँ उसके लिये भूखी हैं।
    जब वह गिरेगा, विनाश और विध्वंस उसके लिये तत्पर रहेंगे।
13 महाव्याधि उसके चर्म के भागों को निगल जायेगी।
    वह उसकी बाहों और उसकी टाँगों को सड़ा देगी।
14 अपने घर की सुरक्षा से दुर्जन को दूर किया जायेगा
    और आतंक के राजा से मिलाने के लिये उसको चलाकर ले जाया जायेगा।
15 उसके घर में कुछ भी न बचेगा
    क्योंकि उसके समूचे घर में धधकती हुई गन्धक बिखेरी जायेगी।
16 नीचे गई जड़ें उसकी सूख जायेंगी
    और उसके ऊपर की शाखाएं मुरझा जायेंगी।
17 धरती के लोग उसको याद नहीं करेंगे।
    बस अब कोई भी उसको याद नहीं करेगा।
18 प्रकाश से उसको हटा दिया जायेगा और वह अंधकार में धकेला जायेगा।
    वे उसको दुनियां से दूर भाग देंगे।
19 उसकी कोई सन्तान नहीं होगी अथवा उसके लोगों के कोई वंशज नहीं होंगे।
    उसके घर में कोई भी जीवित नहीं बचेगा।
20 पश्चिम के लोग सहमें रह जायेंगे जब वे सुनेंगे कि उस दुर्जन के साथ क्या घटी।
    लोग पूर्व के आतंकित हो सुन्न रह जायेंगे।
21 सचमुच दुर्जन के घर के साथ ऐसा ही घटेगा।
    ऐसी ही घटेगा उस व्यक्ति के साथ जो परमेश्वर की परवाह नहीं करते।”

अय्यूब का उत्तर

19 तब अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:

“कब तक तुम मुझे सताते रहोगे
    और शब्दों से मुझको तोड़ते रहोगे?
अब देखों, तुमने दसियों बार मुझे अपमानित किया है।
    मुझ पर वार करते तुम्हें शर्म नहीं आती है।
यदि मैंने पाप किया तो यह मेरी समस्या है।
    यह तुम्हें हानि नहीं पहुँचाता।
तुम बस यह चाहते हो कि तुम मुझसे उत्तम दिखो।
    तुम कहते हो कि मेरे कष्ट मुझ को दोषी प्रमाणित करते हैं।
किन्तु वह तो परमेश्वर है जिसने मेरे साथ बुरा किया है
    और जिसने मेरे चारों तरफ अपना फंदा फैलाया है।
मैं पुकारा करता हूँ, ‘मेरे संग बुरा किया है।’
    लेकिन मुझे कोई उत्तर नहीं मिलता हूँ।
    चाहे मैं न्याय की पुकार पुकारा करुँ मेरी कोई नहीं सुनता है।
मेरा मार्ग परमेश्वर ने रोका है, इसलिये उसको मैं पार नहीं कर सकता।
    उसने अंधकार में मेरा मार्ग छुपा दिया है।
मेरा सम्मान परमेश्वर ने छीना है।
    उसने मेरे सिर से मुकुट छीन लिया है।
10 जब तक मेरा प्राण नहीं निकल जाता, परमेश्वर मुझ को करवट दर करवट पटकियाँ देता है।
    वह मेरी आशा को ऐसे उखाड़ता है
    जैसे कोई जड़ से वृक्ष को उखाड़ दे।
11 मेरे विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध भड़क रहा है।
    वह मुझे अपना शत्रु कहता है।
12 परमेश्वर अपनी सेना मुझ पर प्रहार करने को भेजता है।
    वे मेरे चारों और बुर्जियाँ बनाते हैं।
    मेरे तम्बू के चारों ओर वे आक्रमण करने के लिये छावनी बनाते हैं।

13 “मेरे बन्धुओं को परमेश्वर ने बैरी बनाया।
    अपने मित्रों के लिये मैं पराया हो गया।
14 मेरे सम्बन्धियों ने मुझको त्याग दिया।
    मेरे मित्रों ने मुझको भुला दिया।
15 मेरे घर के अतिथि और मेरी दासियाँ
    मुझे ऐसे दिखते हैं मानों अन्जाना या परदेशी हूँ।
16 मैं अपने दास को बुलाता हूँ पर वह मेरी नहीं सुनता है।
    यहाँ तक कि यदि मैं सहायता माँगू तो मेरा दास मुझको उत्तर नहीं देता।
17 मेरी ही पत्नी मेरे श्वास की गंध से घृणा करती है।
    मेरे अपनी ही भाई मुझ से घृणा करते हैं।
18 छोटे बच्चे तक मेरी हँसी उड़ाते है।
    जब मैं उनके पास जाता हूँ तो वे मेरे विरुद्ध बातें करते हैं।
19 मेरे अपने मित्र मुझ से घृणा करते हैं।
    यहाँ तक कि ऐसे लोग जो मेरे प्रिय हैं, मेरे विरोधी बन गये हैं।

20 “मैं इतना दुर्बल हूँ कि मेरी खाल मेरी हड्डियों पर लटक गई।
    अब मुझ में कुछ भी प्राण नहीं बचा है।

21 “हे मेरे मित्रों मुझ पर दया करो, दया करो मुझ पर
    क्योंकि परमेश्वर का हाथ मुझ को छू गया है।
22 क्यों मुझे तुम भी सताते हो जैसे मुझको परमेश्वर ने सताया है?
    क्यों मुझ को तुम दु:ख देते और कभी तृप्त नहीं होते हो?

23 “मेरी यह कामना है, कि जो मैं कहता हूँ उसे कोई याद रखे और किसी पुस्तक में लिखे।
    मेरी यह कामना है, कि काश! मेरे शब्द किसी गोल पत्रक पर लिखी जाती।
24 मेरी यह कामना है काश! मैं जिन बातों को कहता उन्हें किसी लोहे की टाँकी से सीसे पर लिखा जाता,
    अथवा उनको चट्टान पर खोद दिया जाता, ताकि वे सदा के लिये अमर हो जाती।
25 मुझको यह पता है कि कोई एक ऐसा है, जो मुझको बचाता है।
    मैं जानता हूँ अंत में वह धरती पर खड़ा होगा और मुझे बचायेगा।
26 यहाँ तक कि मेरी चमड़ी नष्ट हो जाये, किन्तु काश,
    मैं अपने जीते जी परमेश्वर को देख सकूँ।
27 अपने लिये मैं परमेश्वर को स्वयं देखना चाहता हूँ।
    मैं चाहता हूँ कि स्वयं उसको अपनी आँखों से देखूँ न कि किसी दूसरे की आँखों से।
    मेरा मन मुझ में ही उतावला हो रहा है।

28 “सम्भव है तुम कहो, ‘हम अय्यूब को तंग करेंगे।
    उस पर दोष मढ़ने का हम को कोई कारण मिल जायेगा।’
29 किन्तु तुम्हें स्वयं तलवार से डरना चाहिये क्योंकि पापी के विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध दण्ड लायेगा।
    तुम्हें दण्ड देने को परमेश्वर तलवार काम में लायेगा
    तभी तुम समझोगे कि वहाँ न्याय का एक समय है।”

20 इस पर नामात प्रदेश के सोपर ने उत्तर दिया:

“अय्यूब, तेरे विचार विकल है, सो मैं तुझे निश्चय ही उत्तर दूँगा।
    मुझे निश्चय ही जल्दी करनी चाहिये तुझको बताने को कि मैं क्या सोच रहा हूँ।
तेरे सुधान भरे उत्तर हमारा अपमान करते हैं।
    किन्तु मैं विवेकी हूँ और जानता हूँ कि तुझे कैसे उत्तर दिया जाना चाहिये।

4-5 “इसे तू तब से जानता है जब बहुत पहले आदम को धरती पर भेजा गया था, दुष्ट जन का आनन्द बहुत दिनों नहीं टिकता हैं।
    ऐसा व्यक्ति जिसे परमेश्वर की चिन्ता नहीं है
    वह थोड़े समय के लिये आनन्दित होता है।
चाहे दुष्ट व्यक्ति का अभिमान नभ छू जाये,
    और उसका सिर बादलों को छू जाये,
किन्तु वह सदा के लिये नष्ट हो जायेगा जैसे स्वयं उसका देहमल नष्ट होगा।
    वे लोग जो उसको जानते हैं कहेंगे, ‘वह कहाँ है’
वह ऐसे विलुप्त होगा जैसे स्वप्न शीघ्र ही कहीं उड़ जाता है। फिर कभी कोई उसको देख नहीं सकेगा,
    वह नष्ट हो जायेगा, उसे रात के स्वप्न की तरह हाँक दिया जायेगा।
वे व्यक्ति जिन्होंने उसे देखा था फिर कभी नहीं देखेंगे।
    उसका परिवार फिर कभी उसको नहीं देख पायेगा।
10 जो कुछ भी उसने (दुष्ट) गरीबों से लिया था उसकी संताने चुकायेंगी।
    उनको अपने ही हाथों से अपना धन लौटाना होगा।
11 जब वह जवान था, उसकी काया मजबूत थी,
    किन्तु वह शीघ्र ही मिट्टी हो जायेगी।

12 “दुष्ट के मुख को दुष्टता बड़ी मीठी लगती है,
    वह उसको अपनी जीभ के नीचे छुपा लेगा।
13 बुरा व्यक्ति उस बुराई को थामे हुये रहेगा,
    उसका दूर हो जाना उसको कभी नहीं भायेगा,
    सो वह उसे अपने मुँह में ही थामे रहेगा।
14 किन्तु उसके पेट में उसका भोजन जहर बन जायेगा,
    वह उसके भीतर ऐसे बन जायेगा जैसे किसी नाग के विष सा कड़वा जहर।
15 दुष्ट सम्पत्तियों को निगल जाता है किन्तु वह उन्हें बाहर ही उगलेगा।
    परमेश्वर दुष्ट के पेट से उनको उगलवायेगा।
16 दुष्ट जन साँपों के विष को चूस लेगा
    किन्तु साँपों के विषैले दाँत उसे मार डालेंगे।
17 फिर दुष्ट जन देखने का आनन्द नहीं लेंगे
    ऐसी उन नदियों का जो शहद और मलाई लिये बहा करती हैं।
18 दुष्ट को उसका लाभ वापस करने को दबाया जायेगा।
    उसको उन वस्तुओं का आनन्द नहीं लेने दिया जायेगा जिनके लिये उसने परिश्रम किया है।
19 क्योंकि उस दुष्ट जन ने दीन जन से उचित व्यवहार नहीं किया।
    उसने उनकी परवाह नहीं की और उसने उनकी वस्तुऐं छीन ली थी,
    जो घर किसी और ने बनाये थे उसने वे हथियाये थे।

20 “दुष्ट जन कभी भी तृप्त नहीं होता है,
    उसका धन उसको नहीं बचा सकता है।
21 जब वह खाता है तो कुछ नहीं छोड़ता है,
    सो उसकी सफलता बनी नहीं रहेगी।
22 जब दुष्ट जन के पास भरपूर होगा
    तभी दु:खों का पहाड़ उस पर टूटेगा।
23 दुष्ट जन वह सब कुछ खा चुकेगा जिसे वह खाना चाहता है।
    परमेश्वर अपना धधकता क्रोध उस पर डालेगा।
    उस दुष्ट व्यक्ति पर परमेश्वर दण्ड बरसायेगा।
24 सम्भव है कि वह दुष्ट लोहे की तलवार से बच निकले,
    किन्तु कहीं से काँसे का बाण उसको मार गिरायेगा।
25 वह काँसे का बाण उसके शरीर के आर पार होगा और उसकी पीठ भेद कर निकल जायेगा।
    उस बाण की चमचमाती हुई नोंक उसके जिगर को भेद जायेगी
    और वह भय से आतंकित हो जायेगा।
26 उसके सब खजाने नष्ट हो जायेंगे,
    एक ऐसी आग जिसे किसी ने नहीं जलाया उसको नष्ट करेगी,
    वह आग उनको जो उसके घर में बचे हैं नष्ट कर डालेगी।
27 स्वर्ग प्रमाणित करेगा कि वह दुष्ट अपराधी है,
    यह गवाही धरती उसके विरुद्ध देगी।
28 जो कुछ भी उसके घर में है,
    वह परमेश्वर के क्रोध की बाढ़ में बह जायेगा।
29 यह वही है जिसे परमेश्वर दुष्टों के साथ करने की योजना रचता है।
    यह वही है जैसा परमेश्वर उन्हें देने की योजना रचता है।”

अय्यूब का उत्तर

21 इस पर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:

“तू कान दे उस पर जो मैं कहता हूँ,
    तेरे सुनने को तू चैन बनने दे जो तू मुझे देता है।
जब मैं बोलता हूँ तो तू धीरज रख,
    फिर जब मैं बोल चुकूँ तब तू मेरी हँसी उड़ा सकता है।

“मेरी शिकायत लोगों के विरुद्ध नहीं है,
    मैं क्यों सहनशील हूँ इसका एक कारण नहीं है।
तू मुझ को देख और तू स्तंभित हो जा,
    अपना हाथ अपने मुख पर रख और मुझे देख और स्तब्ध हो।
जब मैं सोचता हूँ उन सब को जो कुछ मेरे साथ घटा तो
    मुझको डर लगता है और मेरी देह थर थर काँपती है।
क्यों बुरे लोगों की उम्र लम्बी होती है?
    क्यों वे वृद्ध और सफल होते हैं?
बुरे लोग अपनी संतानों को अपने साथ बढ़ते हुए देखते हैं।
    बुरे लोग अपनी नाती—पोतों को देखने को जीवित रहा करते हैं।
उनके घर सुरक्षित रहते हैं और वे नहीं डरते हैं।
    परमेश्वर दुष्टों को सजा देने के लिये अपना दण्ड काम में नहीं लाता है।
10 उनके सांड कभी भी बिना जोड़ा बांधे नहीं रहे,
    उनकी गायों के बछेरें होते हैं और उनके गर्भ कभी नहीं गिरते हैं।
11 बुरे लोग बच्चों को बाहर खेलने भेजते हैं मेमनों के जैसे,
    उनके बच्चें नाचते हैं चारों ओर।
12 वीणा और बाँसुरी के स्वर पर वे गाते और नाचते हैं।
13 बुरे लोग अपने जीवन भर सफलता का आनन्द लेते हैं।
    फिर बिना दु:ख भोगे वे मर जाते हैं और अपनी कब्रों के बीच चले जाते हैं।
14 किन्तु बुरे लोग परमेश्वर से कहा करते है, ‘हमें अकेला छोड़ दे।
    और इसकी हमें परवाह नहीं कि
    तू हमसे कैसा जीवन जीना चाहता है।’

15 “दुष्ट लोग कहा करते हैं, ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर कौन है?
    हमको उसकी सेवा की जरूरत नहीं है।
    उसकी प्रार्थना करने का कोई लाभ नहीं।’

16 “दुष्ट जन सोचते है कि उनको अपने ही कारण सफलताऐं मिलती हैं,
    किन्तु मैं उनको विचारों को नहीं अपना सकता हूँ।
17 किन्तु क्या प्राय: ऐसा होता है कि दुष्ट जन का प्रकाश बुझ जाया करता है?
    कितनी बार दुष्टों को दु:ख घेरा करते हैं?
    क्या परमेश्वर उनसे कुपित हुआ करता है, और उन्हें दण्ड देता है?
18 क्या परमेश्वर दुष्ट लोगों को ऐसे उड़ाता है जैसे हवा तिनके को उड़ाती है
    और तेज हवायें अन्न का भूसा उड़ा देती हैं?
19 किन्तु तू कहता है: ‘परमेश्वर एक बच्चे को उसके पिता के पापों का दण्ड देता है।’
    नहीं, परमेश्वर को चाहिये कि बुरे जन को दण्डित करें। तब वह बुरा व्यक्ति जानेगा कि उसे उसके निज पापों के लिये दण्ड मिल रहा है।
20 तू पापी को उसके अपने दण्ड को दिखा दे,
    तब वह सर्वशक्तिशाली परमेश्वर के कोप का अनुभव करेगा।
21 जब बुरे व्यक्ति की आयु के महीने समाप्त हो जाते हैं और वह मर जाता है;
    वह उस परिवार की परवाह नहीं करता जिसे वह पीछे छोड़ जाता है।

22 “कोई व्यक्ति परमेश्वर को ज्ञान नहीं दे सकता,
    वह ऊँचे पदों के जनों का भी न्याय करता है।
23 एक पूरे और सफल जीवन के जीने के बाद एक व्यक्ति मरता है,
    उसने एक सुरक्षित और सुखी जीवन जिया है।
24 उसकी काया को भरपूर भोजन मिला था
    अब तक उस की हड्डियाँ स्वस्थ थीं।
25 किन्तु कोई एक और व्यक्ति कठिन जीवन के बाद दु:ख भरे मन से मरता है,
    उसने जीवन का कभी कोई रस नहीं चखा।
26 ये दोनो व्यक्ति एक साथ माटी में गड़े सोते हैं,
    कीड़े दोनों को एक जैसे ढक लेंगे।

27 “किन्तु मैं जानता हूँ कि तू क्या सोच रहा है,
    और मुझको पता है कि तेरे पास मेरा बुरा करने को कुचक्र है।
28 मेरे लिये तू यह कहा करता है कि ‘अब कहाँ है उस महाव्यक्ति का घर?
    कहाँ है वह घर जिसमें वह दुष्ट रहता था?’

29 “किन्तु तूने कभी बटोहियों से नहीं पूछा
    और उनकी कहानियों को नहीं माना।
30 कि उस दिन जब परमेश्वर कुपित हो कर दण्ड देता है
    दुष्ट जन सदा बच जाता है।
31 ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो उसके मुख पर ही उसके कर्मों की बुराई करे,
    उसके बुरे कर्मों का दण्ड कोई व्यक्ति उसे नहीं देता।
32 जब कोई दुष्ट व्यक्ति कब्र में ले जाया जाता है,
    तो उसके कब्र के पास एक पहरेदार खड़ा रहता है।
33 उस दुष्ट जन के लिये उस घाटी की मिट्टी मधुर होगी,
    उसकी शव—यात्रा में हजारों लोग होंगे।

34 “सो अपने कोरे शब्दों से तू मुझे चैन नहीं दे सकता,
    तेरे उत्तर केवल झूठे हैं।”

एलीपज का उत्तर

22 फिर तेमान नगर के एलीपज ने उत्तर देते हुए कहा:

“परमेश्वर को कोई भी व्यक्ति सहारा नहीं दे सकता,
    यहाँ तक की वह भी जो बहुत बुद्धिमान व्यक्ति हो परमेश्वर के लिये हितकर नहीं हो सकता।
यदि तूने वही किया जो उचित था तो इससे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को आनन्द नहीं मिलेगा,
    और यदि तू सदा खरा रहा तो इससे उसको कुछ नहीं मिलेगा।
अय्यूब, तुझको परमेश्वर क्यों दण्ड देता है और क्यों तुझ पर दोष लगाता है
    क्या इसलिए कि तू उसका सम्मान नहीं करता
नहीं, ये इसलिए की तूने बहुत से पाप किये हैं,
    अय्यूब, तेरे पाप नहीं रुकते हैं।
अय्यूब, सम्भव है कि तूने अपने किसी भाई को कुछ धन दिया हो,
    और उसको दबाया हो कि वह कुछ गिरवी रख दे ताकि ये प्रमाणित हो सके कि वह तेरा धन वापस करेगा।
    सम्भव है किसी दीन के कर्जे के बदले तूने कपड़े गिरवी रख लिये हों, सम्भव है तूने वह व्यर्थ ही किया हो।
तूने थके—मांदे को जल नहीं दिया,
    तूने भूखों के लिये भोजन नहीं दिया।
अय्यूब, यद्यपि तू शक्तिशाली और धनी था,
    तूने उन लोगों को सहारा नहीं दिया।
तू बड़ा जमींदार और सामर्थी पुरुष था,
किन्तु तूने विधवाओं को बिना कुछ दिये लौटा दिया।
    अय्यूब, तूने अनाथ बच्चों को लूट लिया और उनसे बुरा व्यवहार किया।
10 इसलिए तेरे चारों तरफ जाल बिछे हुए हैं
    और तुझ को अचान्क आती विपत्तियाँ डराती हैं।
11 इसलिए इतना अंधकार है कि तुझे सूझ पड़ता है
    और इसलिए बाढ़ का पानी तुझे निगल रहा है।

12 “परमेश्वर आकाश के उच्चतम भाग में रहता है, वह सर्वोच्च तारों के नीचे देखता है,
    तू देख सकता है कि तारे कितने ऊँचे हैं।
13 किन्तु अय्यूब, तू तो कहा करता है कि परमेश्वर कुछ नहीं जानता,
    काले बादलों से कैसे परमेश्वर हमें जाँच सकता है
14 घने बादल उसे छुपा लेते हैं, इसलिये जब वह आकाश के उच्चतम भाग में विचरता है
    तो हमें ऊपर आकाश से देख नहीं सकता।

15 “अय्यूब, तू उस ही पुरानी राह पर
    जिन पर दुष्ट लोग चला करते हैं, चल रहा है।
16 अपनी मृत्यु के समय से पहले ही दुष्ट लोग उठा लिये गये,
    बाढ़ उनको बहा कर ले गयी थी।
17 ये वही लोग है जो परमेश्वर से कहते हैं कि हमें अकेला छोड़ दो,
    सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारा कुछ नहीं कर सकता है।
18 किन्तु परमेश्वर ने उन लोगों को सफल बनाया है और उन्हें धनवान बना दिया।
    किन्तु मैं वह ढंग से जिससे दुष्ट सोचते हैं, अपना नहीं सकता हूँ।
19 सज्जन जब बुरे लोगों का नाश देखते हैं, तो वे प्रसन्न होते है।
    पापरहित लोग दुष्टों पर हँसते है और कहा करते हैं,
20 ‘हमारे शत्रु सचमुच नष्ट हो गये!
    आग उनके धन को जला देती है।’

21 “अय्यूब, अब स्वयं को तू परमेश्वर को अर्पित कर दे, तब तू शांति पायेगा।
    यदि तू ऐसा करे तो तू धन्य और सफल हो जायेगा।
22 उसकी सीख अपना ले,
    और उसके शब्द निज मन में सुरक्षित रख।
23 अय्यूब, यदि तू फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास आये तो फिर से पहले जैसा हो जायेगा।
    तुझको अपने घर से पाप को बहुत दूर करना चाहिए।
24 तुझको चाहिये कि तू निज सोना धूल में
    और निज ओपीर का कुन्दन नदी में चट्टानो पर फेंक दे।
25 तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर तेरे लिये
    सोना और चाँदी बन जायेगा।
26 तब तू अति प्रसन्न होगा और तुझे सुख मिलेगा।
    परमेश्वर के सामने तू बिना किसी शर्म के सिर उठा सकेगा।
27 जब तू उसकी विनती करेगा तो वह तेरी सुना करेगा,
    जो प्रतिज्ञा तूने उससे की थी, तू उसे पूरा कर सकेगा।
28 जो कुछ तू करेगा उसमें तुझे सफलता मिलेगी,
    तेरे मार्ग पर प्रकाश चमकेगा।
29 परमेश्वर अहंकारी जन को लज्जित करेगा,
    किन्तु परमेश्वर नम्र व्यक्ति की रक्षा करेगा।
30 परमेश्वर जो मनुष्य भोला नहीं है उसकी भी रक्षा करेगा,
    तेरे हाथों की स्वच्छता से उसको उद्धार मिलेगा।”

23 फिर अय्यूब ने उत्तर देते हुये कहा:

“मैं आज भी बुरी तरह शिकायत करता हूँ कि परमेश्वर मुझे कड़ा दण्ड दे रहा है,
    इसलिये मैं शिकायत करता रहता हूँ।
काश! मैं यह जान पाता कि उसे कहाँ खोजूँ!
    काश! मैं जान पाता की परमेश्वर के पास कैसे जाऊँ!
मैं अपनी कथा परमेश्वर को सुनाता,
    मेरा मुँह युक्तियों से भरा होता यह दर्शाने को कि मैं निर्दोष हूँ।
मैं यह जानना चाहता हूँ कि परमेश्वर कैसे मेरे तर्को का उत्तर देता है,
    तब मैं परमेश्वर के उत्तर समझ पाता।
क्या परमेश्वर अपनी महाशक्ति के साथ मेरे विरुद्ध होता
    नहीं! वह मेरी सुनेगा।
मैं एक नेक व्यक्ति हूँ।
    परमेश्वर मुझे अपनी कहानी को कहने देगा, तब मेरा न्यायकर्ता परमेश्वर मुझे मुक्त कर देगा।

“किन्तु यदि मैं पूरब को जाऊँ तो परमेश्वर वहाँ नहीं है
    और यदि मैं पश्चिम को जाऊँ, तो भी परमेश्वर मुझे नहीं दिखता है।
परमेश्वर जब उत्तर में क्रियाशील रहता है तो मैं उसे देख नहीं पाता हूँ।
    जब परमेश्वर दक्षिण को मुड़ता है, तो भी वह मुझको नहीं दिखता है।
10 किन्तु परमेश्वर मेरे हर चरण को देखता है, जिसको मैं उठाता हूँ।
    जब वह मेरी परीक्षा ले चुकेगा तो वह देखेगा कि मुझमें कुछ भी बुरा नहीं है, वह देखेगा कि मैं खरे सोने सा हूँ।
11 परमेश्वर जिस को चाहता है मैं सदा उस पर चला हूँ,
    मैं कभी भी परमेश्वर की राह पर चलने से नहीं मुड़ा।
12 मैं सदा वही बात करता हूँ जिनकी आशा परमेश्वर देता है।
    मैंने अपने मुख के भोजन से अधिक परमेश्वर के मुख के शब्दों से प्रेम किया है।

13 “किन्तु परमेश्वर कभी नहीं बदलता।
    कोई भी व्यक्ति उसके विरुद्ध खड़ा नहीं रह सकता है।
    परमेश्वर जो भी चाहता है, करता है।
14 परमेश्वर ने जो भी योजना मेरे विरोध में बना ली है वही करेगा,
    उसके पास मेरे लिये और भी बहुत सारी योजनायें है।
15 मैं इसलिये डरता हूँ, जब इन सब बातों के बारे में सोचता हूँ।
    इसलिये परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
16 परमेश्वर मेरे हृदय को दुर्बल करता है और मेरी हिम्मत टूटती है।
    सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
17 यद्यपि मेरा मुख सघन अंधकार ढकता है
    तो भी अंधकार मुझे चुप नहीं कर सकता है।

24 “सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्यों नहीं न्याय करने के लिये समय नियुक्त करता है?
    लोग जो परमेश्वर को मानते हैं उन्हें क्यों न्याय के समय की व्यर्थ बाट जोहनी पड़ती है

“लोग अपनी सम्पत्ति के चिन्हों को, जो उसकी सीमा बताते है,
सरकाते रहते हैं ताकि अपने पड़ोसी की थोड़ी और धरती हड़प लें!
    लोग पशु को चुरा लेते हैं और उन्हें चरागाहों में हाँक ले जाते हैं।
अनाथ बच्चों के गधे को वे चुरा ले जाते हैं।
    विधवा की गाय वे खोल ले जाते है। जब तक की वह उनका कर्ज नहीं चुकाती है।
वे दीन जन को मजबूर करते है कि वह छोड़ कर दूर हट जाने को विवश हो जाता है,
    इन दुष्टों से स्वयं को छिपाने को।

“वे दीन जन उन जंगली गदहों जैसे हैं जो मरुभूमि में अपना चारा खोजा करते हैं।
    गरीबों और उनके बच्चों को मरुभूमि भोजन दिया करता है।
गरीब लोग भूसा और चारा साथ साथ ऐसे उन खेतों से पाते हैं जिनके वे अब स्वामी नहीं रहे।
    दुष्टों के अंगूरों के बगीचों से बचे फल वे बीना करते हैं।
दीन जन को बिना कपड़ों के रातें बितानी होंगी,
    सर्दी में उनके पास अपने ऊपर ओढ़ने को कुछ नहीं होगा।
वे वर्षा से पहाड़ों में भीगें हैं, उन्हें बड़ी चट्टानों से सटे हुये रहना होगा,
    क्योंकि उनके पास कुछ नहीं जो उन्हें मौसम से बचा ले।
बुरे लोग माता से वह बच्चा जिसका पिता नहीं है छीन लेते हैं।
    गरीब का बच्चा लिया करते हैं, उसके बच्चे को, कर्ज के बदले में वे बन्धुवा बना लेते हैं।
10 गरीब लोगों के पास वस्त्र नहीं होते हैं, सो वे काम करते हुये नंगे रहा करते हैं।
    दुष्टों के गट्ठर का भार वे ढोते है, किन्तु फिर भी वे भूखे रहते हैं।
11 गरीब लोग जैतून का तेल पेर कर निकालते हैं।
    वे कुंडो में अंगूर रौंदते हैं फिर भी वे प्यासे रहते हैं।
12 मरते हुये लोग जो आहें भरते हैं। वे नगर में सुनाई देती हैं।
    सताये हुये लोग सहारे को पुकारते हैं, किन्तु परमेश्वर नहीं सुनता है।

13 “कुछ ऐसे लोग हैं जो प्रकाश के विरुद्ध होते हैं।
    वे नहीं जानना चाहते हैं कि परमेश्वर उनसे क्या करवाना चाहता है।
    परमेश्वर की राह पर वे नहीं चलते हैं।
14 हत्यारा तड़के जाग जाया करता है गरीबों और जरुरत मंद लोगों की हत्या करता है,
    और रात में चोर बन जाता है।
15 वह व्यक्ति जो व्यभिचार करता है, रात आने की बाट जोहा करता है,
    वह सोचता है उसे कोई नहीं देखेगा और वह अपना मुख ढक लेता है।
16 दुष्ट जन जब रात में अंधेरा होता है, तो सेंध लगा कर घर में घुसते हैं।
    किन्तु दिन में वे अपने ही घरों में छुपे रहते हैं, वे प्रकाश से बचते हैं।
17 उन दुष्ट लोगों का अंधकार सुबह सा होता है,
    वे आतंक व अंधेरे के मित्र होते है।

18 “दुष्ट जन ऐसे बहा दिये जाते हैं, जैसे झाग बाढ़ के पानी पर।
    वह धरती अभिशिप्त है जिसके वे मालिक हैं, इसलिये वे अंगूर के बगीचों में अगूंर बिनने नहीं जाते हैं।
19 जैसे गर्म व सूखा मौसम पिघलती बर्फ के जल को सोख लेता है,
    वैसे ही दुष्ट लोग कब्र द्वारा निगले जायेंगे।
20 दुष्ट मरने के बाद उसकी माँ तक उसे भूल जायेगी, दुष्ट की देह को कीड़े खा जायेंगे।
    उसको थोड़ा भी नहीं याद रखा जायेगा, दुष्ट जन गिरे हुये पेड़ से नष्ट किये जायेंगे।
21 ऐसी स्त्री को जिसके बच्चे नहीं हो सकते, दुष्ट जन उन्हें सताया करते हैं,
    वे उस स्त्री को दु:ख देते हैं, वे किसी विधवा के प्रति दया नहीं दिखाते हैं।
22 बुरे लोग अपनी शक्ति का उपयोग बलशाली को नष्ट करने के लिये करते है।
    बुरे लोग शक्तिशाली हो जायेंगे, किन्तु अपने ही जीवन का उन्हें भरोसा नहीं होगा कि वे अधिक दिन जी पायेंगे।
23 सम्भव है थोड़े समय के लिये परमेश्वर शक्तिशाली को सुरक्षित रहने दे,
    किन्तु परमेश्वर सदा उन पर आँख रखता है।
24 दुष्ट जन थोड़े से समय के लिये सफलता पा जाते हैं किन्तु फिर वे नष्ट हो जाते हैं।
    दूसरे लोगों की तरह वे भी समेट लिये जाते हैं। अन्न की कटी हुई बाल के समान वे गिर जाते हैं।

25 “यदि ये बातें सत्य नहीं हैं तो
    कौन प्रमाणित कर सकता है कि मैंने झूठ कहा है?
    कौन दिखा सकता है कि मेरे शब्द प्रलयमात्र हैं?”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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