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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
2 इतिहास 7:11-23:15

यहोवा सुलैमान के पास आता है

11 सुलैमान ने यहोवा का मन्दिर और राजमहल को पूरा कर लिया। सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर और अपने आवास में जो कुछ करने की योजना बनाई थी उसमें उसे सफलता मिली। 12 तब यहोवा सुलैमान के पास रात को आया। यहोवा ने उससे कहा,

“सुलैमान, मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी है और मैंने इस स्थान को अपने लिये बलि के गृह के रूप में चुना है। 13 जब मैं आकाश को बन्द करता हूँ तो वर्षा नहीं होती या मैं टिड्डियों को आदेश देता हूँ कि वे देश को नष्ट करें या अपने लोगों में बीमारी भेजता हूँ, 14 और मेरे नाम से पुकारे जाने वाले लोग यदि विनम्र होते तथा प्रार्थना करते हैं, और मुझे ढूंढ़ते हैं और अपने बुरे रास्तों से दूर हट जाते हैं तो मैं स्वर्ग से उनकी सुनूँगा और मैं उनके पाप को क्षमा करूँगा और उनके देश को अच्छा कर दूँगा। 15 अब, मेरी आखें खुली हैं और मेरे कान इस स्थान पर की गई प्रार्थनाओं पर ध्यान देंगे। 16 मैंने इस मन्दिर को चुना है और मैंने इसे पवित्र किया है जिससे मेरा नाम यहाँ सदैव रहे। हाँ, मेरी आँखें और मेरा हृदय इस मन्दिर में सदा रहेगा। 17 अब सुलैमान, यदि तुम मेरे सामने वैसे ही रहोगे जैसे तुम्हारा पिता दाऊद रहा, यदि तुम उन सभी का पालन करोगे जिनके लिये मैंने आदेश दिया है और यदि तुम मेरे विधियों और नियमों का पालन करोगे। 18 तब मैं तुम्हें शक्तिशाली राजा बनाऊँगा और तुम्हारा राज्य विस्तृत होगा। यही वाचा है जो मैंने तुम्हारे पिता दाऊद से की है। मैंने उससे कहा था, ‘दाऊद, तुम अपने परिवार में एक ऐसा व्यक्ति सदा पाओगे जो इस्राएल में राजा होगा।’

19 “किन्तु यदि तुम मेरे नियमों और आदेशों को नहीं मानोगे जिन्हें मैंने दिया है और तुम अन्य देवताओं की पूजा और सेवा करोगे, 20 तब मैं इस्राएल के लोगों को अपने उस देश से बाहर करूँगा जिसे मैंने उन्हें दिया है। मैं इस मन्दिर को अपनी आँखों से दूर कर दूँगा। जिसे मैंने अपने नाम के लिये पवित्र बनाया है। मैं इस मन्दिर को ऐसा कुछ बनाऊँगा कि सभी राष्ट्र इसकी बुराई करेंगे। 21 हर एक व्यक्ति जो इस प्रतिष्ठित मन्दिर के पास से गुजरेगा, आश्चर्य करेगा। वे कहेंगे, ‘यहोवा ने ऐसा भयंकर काम इस देश और इस मन्दिर के साथ क्यों किया’ 22 तब लोग उत्तर देंगे, ‘क्योंकि इस्राएल के लोगों ने यहोवा’ परमेश्वर जिसकी आज्ञा का पालन उनके पूर्वज करते थे, उसकी आज्ञा पालन करने से इन्कार कर दिया। वह ही परमेश्वर है जो उन्हें मिस्र देश के बाहर ले आया। किन्तु इस्राएल के लोगों ने अन्य देवताओं को अपनाया। उन्होंने मूर्ति रूप में देवताओं की पूजा और सेवा की। यही कारण है कि यहोवा ने इस्राएल के लोगों पर इतना सब भयंकर घटित कराया है।”

सुलैमान के बसाए नगर

यहोवा के मन्दिर को बनाने और अपना महल बनाने में सुलैमान को बीस वर्ष लगे। तब सुलैमान ने पुनः उन नगरों को बनाया जो हूराम ने उसको दिये और सुलैमान ने इस्राएल के कुछ लोगों को उन नगरों में रहने की आज्ञा दे दी। इसके बाद सुलैमान सोबा के हमात को गया और उस पर अधिकार कर लिया। सुलैमान ने मरूभूमि में तदमोर नगर बनाया। उसने चीज़ों के संग्रह के लिये हमात में सभी नगर बनाए। सुलैमान ने उच्च बेथोरोन और निम्न बेथोरोन के नगरों को पुनः बनाया। उसने उन नगरों को शक्तिशाली गढ़ बनाया। वे नगर मजबूत दीवारों, फाटकों और फाटकों में छड़ों वाले थे। सुलैमान ने बालात नगर को फिर बनाया और अन्य नगरों को भी जहाँ उसने चीजों का संग्रह किया। उसने सभी नगरों को बनाया जहाँ रथ रखे गए थे तथा जहाँ सभी नगरों में घुड़सवार रहते थे। सुलैमान ने यरूशलेम, लेबानोन और उन सभी देशों में जहाँ वह राजा था, जो चाहा बनाया।

7-8 जहाँ इस्राएल के लोग रह रहे थे वहाँ बहुत से अजनबी बचे रह गए थे। वे हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिव्वी और यबूसी लोग थे। सुलैमान ने उन अजनबियों को दास—मजदूर होने के लिये विवश किया। वे लोग इस्राएल के लोगों में से नहीं थे। वे लोग उनके वंशज थे जो देश में बचे रह गये थे और तब तक इस्राएल के लोगों द्वारा नष्ट नहीं किये गए थे। यह अब तक चल रहा है। सुलैमान ने इस्राएल के किसी भी व्यक्ति को दास मजदूर बनने को विवश नहीं किया। इस्राएल के लोग सुलैमान के योद्धा थे। वे सुलैमान की सेना के सेनापति और अधिकारी थे। वे सुलैमान के रथों के सेनापति और सारथियों के सेनापति थे 10 और इस्राएल के कुछ लोग सुलैमान के महत्वपूर्ण अधिकारियों के प्रमुख थे। ऐसे लोगों का निरीक्षण करने वाले ढाई सौ प्रमुख थे।

11 सुलैमान दाऊद के नगर से फिरौन की पुत्री को उस महल में लाया जिसे उसने उसके लिये बनाया था। सुलैमान ने कहा, “मेरी पत्नी राजा दाऊद के महल में नहीं रह सकती क्योंकि जिन स्थानों पर साक्षीपत्र का सन्दूक रहा हो, वे स्थान पवित्र हैं।”

12 तब सुलैमान ने यहोवा को होमबिल यहोवा की वेदी पर चढ़ायी। सुलैमान ने उस वेदी को मन्दिर के द्वार मण्डप के सामने बनाया। 13 सुलैमान ने हर एक दिन मूसा के आदेश के अनुसार बलि चढ़ाई। यह बलि सब्त के दिन नवचन्द्र उत्सव को और तीन वार्षिक पर्वों को दी जानी थीं। ये तीन वार्षिक पर्व अख़मीरी रोटी का पर्व सप्ताहों का पर्व और आश्रय का पर्व थे। 14 सुलैमान ने अपने पिता दाऊद के निर्देशों का पालन किया। सुलैमान ने याजकों के वर्ग उनकी सेवा के लिये चुने। सुलैमान ने लेवीवंशियों को भी उनके कार्य के लिये चुना। लेवीवंशियों को स्तुति में पहल करनी होती थी और उन्हें मन्दिर की सेवाओं में जो कुछ नित्य किया जाना होता था उनमें याचकों की सहायता करनी थी और सुलैमान ने द्वारपालों को चुना जिनके समूहों को हर द्वार पर सेवा करनी थी। इस पद्धति का निर्देश परमेश्वर के व्यक्ति दाऊद ने दिया था। 15 इस्राएल के लोगों ने सुलैमान द्वारा याजकों और लेवीवंशियों को दिये गए निर्देशों को न बदला, न ही उनका उल्लघंन किया। उन्होंने किसी भी निर्दश में वैसे भी परिवर्तन नहीं किये जैसे वे बहुमूल्य चीज़ों को रखने में करते थे।

16 सुलैमान के सभी कार्य पूरे हो गए। यहोवा के मन्दिर के आरम्भ होने से उसके पूरे होने के दिन तक योजना ठीक बनी थी। इस प्रकार यहोवा का मन्दिर पूरा हुआ।

17 तब सुलैमान एस्योनगेबेर और एलोत नगरों को गया। वे नगर एदोम प्रदेश में लाल सागर के निकट थे। 18 हूराम ने सुलैमान को जहाज भेजे। हूराम के अपने आदमी जहाजों को चला रहे थे। हूराम के व्यक्ति समुद्र में जहाज चलाने में कुशल थे। हूराम के व्यक्ति सुलैमान के सेवकों के साथ ओपीर गए और सत्रह टन सोना लेकर राजा सुलैमान के पास लौटे।

शीबा की रानी सुलैमान के यहाँ आती है

शीबा की रानी ने सुलैमान का यश सुना। वह यरूशलेम में कठिन प्रश्नों से सुलैमान की परीक्षा लेने आई। शीबा की रानी अपने साथ एक बड़ा समूह लेकर आई थी। उसके पास ऊँट थे जिन पर मसाले, बहुत अधिक सोना और बहुमूल्य रत्न लदे थे। वह सुलैमान के पास आई और उसने सुलैमान से बातें कीं। उसे सुलैमान से अनेक प्रश्न पूछने थे। सुलैमान ने उसके सभी प्रश्नों के उत्तर दिये। सुलैमन के लिए व्याख्या करने या उत्तर देने के लिये कुछ भी अति कठिन नहीं था। शीबा की रानी ने सुलैमान की बुद्धि और उसके बनाए घर को देखा। उसने सुलैमान के मेज के भोजन को देखा और उसके बहुत से महत्वपूर्ण अधिकारियों को देखा। उसने देखा कि उसके सेवक कैसे कार्य कर रहे हैं और उन्होंने कैसे वस्त्र पहन रखे हैं उसने देखा कि उसके दाखमधु पिलाने वाले सेवक कैसे कार्य कर रहे हैं और उन्होंने कैसे वस्त्र पहने हैं उसने होमबलियों को देखा जिन्हें सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर में चढ़ाया था। जब शीबा की रानी ने इन सभी चीज़ों को देखा तो वह चकित रह गई!

तब उसने राजा सुलैमान से कहा, “मैंने अपने देश में तुम्हारे महान कार्यों और तुम्हारी बुद्धिमत्ता के बारे में जो कहानी सुनी है, वह सच है। मुझे इन कहानियों पर तब तक विश्वास नहीं था जब तक मैं आई नहीं और अपनी आँखों से देखा नहीं। ओह! तुम्हारी बुद्धिमत्ता का आधा भी मुझसे नहीं कहा गया है। तुम उन सुनी कहानियों में कहे गए रूप से बड़े हो! तुम्हारी पत्नियाँ और तुम्हारे अधिकारी बहुत भाग्यशाली हैं! वे तुम्हारे ज्ञान की बातें तुम्हारी सेवा करते हुए सुन सकते हैं। तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की प्रशंसा हो! वह तुम पर प्रसन्न है और उसने तुम्हें अपने सिंहासन पर, परमेश्वर यहोवा के लिये, राजा बनने के लिये बैठाया है। तुम्हारा परमेश्वर इस्राएल से प्रेम करता है और इस्राएल की सहायता सदैव करता रहेगा। यही कारण है कि यहोवा ने उचित और ठीक—ठीक सब करने के लिये तुम्हें इस्राएल का राजा बनाया है।”

तब शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को साढ़े चार टन सोना, बहुत से मसाले और बहुमूल्य रत्न दिये। किसी ने इतने अच्छे मसाले राजा सुलैमान को नहीं दिये जितने अच्छे रानी शीबा ने दिये।

10 हूराम के नौकर और सुलैमान के नौकर ओपीर से सोना ले आए। वे चन्दन की लकड़ी और बहुमूल्य रत्न भी लाए। 11 राजा सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर एवं महल की सीढ़ियों के लिये चन्दन की लकड़ी का उपयोग किया। सुलैमान ने चन्दन की लकड़ी का उपयोग गायकों के लिये वीणा और तम्बूरा बनाने के लिये भी किया। यहूदा देश में चन्दन की लकड़ी से बनी उन जैसी सुन्दर चीज़ें किसी ने कभी देखी नहीं थीं।

12 जो कुछ भी शीबा देश की रानी ने राजा सुलैमान से माँगा, वह उसने दिया। जो उसने दिया, वह उससे अधिक था जो वह राजा सुलैमान के लिये लाई थी। तत्तपश्चात् वह अपने सेवक, सेविकाओं के साथ विदा हुई। वह अपने देश लौट गई।

सुलैमान की प्रचूर सम्पत्ति

13 एक वर्ष में सुलैमान ने जितना सोना पाया, उसका वजन पच्चीस टन था। 14 व्यापारी और सौदागर सुलैमान के पास और अधिक सोना लाए। अरब के सभी राजा और प्रदेशों के शासक भी सुलैमान के लिये सोना चाँदी लाए।

15 राजा सुलैमान ने सोने के पत्तर की दो सौ ढालें बनाई। लगभग 3.3 किलोग्राम पिटा सोना हर एक ढाल के बनाने में उपयोग में आया था। 16 सुलैमान ने तीन सौ छोटी ढालें भी सोने के पत्तर की बनाईं। लगभग 1.65 किलोग्राम सोना हर एक ढाल के बनाने में उपयोग में आया था। राजा सुलैमान ने सोने की ढालों को लेबानोन के वन—महल में रखा।

17 राजा सुलैमान ने एक विशाल सिंहासन बनाने के लिये हाथी—दाँत का उपयोग किया। उसने सिंहासन को शुद्ध सोने से मढ़ा। 18 सिंहासन पर चढ़ने की छ: सीढ़ियाँ थीं और इसका एक पद—पीठ था। वह सोने का बना था। सिंहासन में दोनों ओर भुजाओं को आराम देने के लिए बाजू लगे थे। हर एक बाजू से लगी एक—एक सिंह की मूर्ति खड़ी थी। 19 वहाँ छः सीढ़ियों से लगे बगल में बारह सिंहों की मूर्तियाँ खड़ी थीं। हर सीढ़ी की हर ओर एक सिंह था। इस प्रकार का सिंहासन किसी दूसरे राज्य में नहीं बना था।

20 राजा सुलैमान के सभी पीने के प्याले सोने के बने थे। लेबानोन वन—महल की सभी प्रतिदिन की चीज़ें शुद्ध सोने की बनी थीं। सुलैमान के समय में चाँदी मूल्यवान नहीं समझी जाती थी।

21 राजा सुलैमान के पास जहाज थे जो तर्शीश को जाते थे। हूराम के आदमी सुलैमान के जहाजों को चलाते थे। हर तीसरे वर्ष जहाज तर्शीश से सोना, चाँदी हाथी—दाँत, बन्दर और मोर लेकर सुलैमान के पास लौटते थे।

22 राजा सुलैमान धन और बुद्धि दोनों में संसार के किसी भी राजा से बड़ा हो गया। 23 संसार के सारे राजा उसको देखने और उसके बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णयों को सुनने के लिये आए। परमेश्वर ने सुलैमान को वह बुद्धि दी। 24 हर वर्ष वे राजा सुलैमान को भेंट लाते थे। वे चाँदी सोने की चीज़ें, वस्त्र, कवच, मसाले, घोड़े और खच्चर लाते थे।

25 सुलैमान के पास चार हज़ार घोड़ों और रथों को रखने के लिये अस्तबल थे। उसके पास बारह हज़ार सारथी थे। सुलैमान उन्हें रथों के लिये विशेष नगरों में रखता था और यरूशलेम में अपने पास रखता था। 26 सुलैमान फरात नदी से लगातार पलिश्ती लोगों के देश तक और मिस्र की सीमा तक के राजाओं का सम्राट था। 27 राजा सुलैमान ने चाँदी को पत्थर जैसा सस्ता बना दिया और देवदार लकड़ी को पहाड़ी प्रदेश में गूलर के पेड़ों जैसा सामान्य। 28 लोग सुलैमान के लिये मिस्र और अन्य सभी देशों से घोड़े लाते थे।

सुलैमान की मृत्यु

29 आरम्भ से लेकर अन्त तक सुलैमान ने और जो कुछ किया वह नातान नबी के लेखों, शीलो के अहिय्याह की भविष्यवाणियों और इद्दो के दर्शनों में है। इद्दो ने यारोबाम के बारे में लिखा। यारोबाम नबात का पुत्र था। 30 सुलैमान यरूशलेम में पूरे इस्राएल का राजा चालीस वर्ष तक रहा। 31 तब सुलैमान अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करने गया। लोगों ने उसे उसके पिता दाऊद के नगर में दफनाया। सुलैमान का पुत्र रहूबियाम सुलैमान की जगह नया राजा हुआ।

रहूबियाम मूर्खतापूर्ण काम करता है

10 रहूबियाम शकेम नगर को गया क्योंकि इस्राएल के सभी लोग उसे राजा बनाने के लिये वहीं गए। यारोबाम मिस्र में था क्योंकि वह राजा सुलैमान के यहाँ से भाग गया था। यारोबाम नबात का पुत्र था। यारोबाम ने सुना कि रहूबियाम नया राजा होने जा रहा है। इसलिये यारोबाम मिस्र से लौट आया। इस्राएल के लोगों ने यारोबाम को अपने साथ रहने के लिये बुलाया।

तब यारोबाम तथा इस्राएल के सभी लोग रहूबियाम के यहाँ गए। उन्होंने उससे कहा, “रहूबियाम, तुम्हारे पिता ने हम लोगों के जीवन को कष्टकर बनाया। यह भारी वजन ले चलने के समान था। उस वजन को हल्का करो तो हम तुम्हारी सेवा करेंगे।”

रहूबियाम ने उनसे कहा, “तीन दिन बाद लौटकर मेरे पास आओ।” इसलिए लोग चले गए।

तब राजा रहूबियाम ने उन बुजुर्ग लोगों से बातें कीं जिन्होंने पहले उसके पिता की सेवा की थी। रहूबियाम ने उनसे कहा, “आप इन लोगों से क्या कहने के लिये सलाह देते हैं?”

बुजुर्गों ने रहूबियाम से कहा, “यदि तुम उन लोगों के प्रति दयालु हो और उन्हें प्रसन्न करते हो तथा उनसे अच्छी बातें कहते हो तो वे तुम्हारी सेवा सदैव करेंगे।”

किन्तु रहूबियाम ने बुजुर्गों की दी सलाह को स्वीकार नहीं किया। रहूबियाम ने उन युवकों से बात की जो उसके साथ युवा हुए थे और उसकी सेवा कर रहे थे। रहूबियाम ने उनसे कहा, “तुम लोग क्या सलाह देते हो जिसे मैं उन लोगों से कहूँ उन्होंने मुझसे अपने काम को हल्का करने को कहा है और वे चाहते हैं कि मैं अपने पिता द्वारा उन पर डाले गए वजन को कुछ कम करूँ।”

10 तब उन युवकों ने जो रहूबियाम के साथ युवा हुए थे, उससे कहा, “जिन लोगों ने तुमसे बातें कीं उनसे तुम यह कहो। लोगों ने तुमसे कहा, ‘तुम्हारे पिता ने हमारे जीवन को कष्टकर बनाया था। यह भारी वजन ले चलने के समान था। किन्तु हम चाहते हैं कि तुम हम लोगों के वजन को कुछ हल्का करो।’ किन्तु रहूबियाम, तुम्हें यही उन लोगों से कहना चाहिये। उनसे कहो, ‘मेरी छोटी उँगली भी मेरे पिता की कमर से मोटी होगी! 11 मेरे पिता ने तुम पर भारी बोझ लादा। किन्तु मैं उस बोझ को बढ़ाऊँगा। मेरे पिता ने तुमको कोड़े लगाने का दण्ड दिया था। मैं ऐसे कोड़े लगाने का दण्ड दूँगा जिसकी छोर पर तेज धातु के टुकड़े हैं।’”

12 राजा रहूबियाम ने कहा थाः “तीसरे दिन लौटकर आना।” अतः तीसरे दिन यारोबाम और सब इस्राएली जनता राजा रहूबियाम के पास आए। 13 तब राजा रहूबियाम ने उनसे नीचता से बात की। राजा रहूबियाम ने बुजुर्ग लोगों की सलाह न मानी। 14 राजा यहूबियाम ने लोगों से वैसे ही बात की जैसे युवकों ने सलाह दी थी। उसने कहा, “मेरे पिता ने तुम्हारे बोझ को भारी किया था, किन्तु मैं उसे और अधिक भारी करूँगा। मेरे पिता ने तुम पर कोड़े लगाने का दण्ड किया था, किन्तु मैं ऐसे कोड़े लगाने का दण्ड दूँगा जिनकी छोर में तेज धातु के टुकड़े होंगे।” 15 इस प्रकार राजा रहूबियाम ने लोगों की एक न सुनी। उसने लोगों की एक न सुनी क्योंकि यह परिवर्तन परमेश्वर के यहाँ से आया। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। यह इसलिए हुआ कि यहोवा अपने उस वचन को सत्य प्रमाणित कर सके जो उन्होंने अहिय्याह के द्वारा यारोबाम को कहा था। अहिय्याह शीलो लोगों में से था और यारोबाम नबात का पुत्र था।

16 इस्राएल के लोगों ने देखा कि राजा रहूबियाम उनकी एक नहीं सुनता। उन्होंने राजा से कहा, “क्या हम दाऊद के परिवार के अंग हैं? नहीं! क्या हमें यिशै की कोई भूमि मिलनी है? नहीं! इसलिये ऐ इस्राएलियो, हम लोग अपने शिविर में चलें। दाऊद की सन्तान को उसके अपने लोगों पर शासन करने दें!” तब इस्राएल के सभी लोग अपने शिविरों में लौट गए। 17 किन्तु इस्राएल के कुछ ऐसे लोग थे जो यहूदा नगर में रहते थे और रहूबियाम उनका राजा था।

18 हदोराम काम करने के लिये विवश किये जाने वाले लोगों का अधीक्षक था। रहूबियाम ने उसे इस्राएल के लोगों के पास भेजा। किन्तु इस्राएल के लोगों ने हदोराम पर पत्थर फेंके और उसे मार डाला। तब रहूबियाम भागा और अपने रथ में कूद पड़ा तथा बच निकला। वह भागकर यरूशलेम गया। 19 उस समय से लेकर अब तक इस्राएली दाऊद के परिवार के विरुद्ध हो गए हैं।

11 जब रहूबियाम यरूशलेम आया, उसने एक लाख अस्सी हज़ार सर्वोत्तम योद्धाओं को इकट्ठा किया। उसने इन योद्धाओं को यहूदा और बिन्यामीन के परिवार समूहों से इकट्ठा किया। उसने इन्हें इस्राएल के विरुद्ध लड़ने के लिये तैयार किया जिससे वह राज्य को रहूबियाम को वापस लौटा सके। किन्तु यहोवा का सन्देश शमायाह के पास आया। शमायाह परमेश्वर का व्यक्ति था। यहोवा ने कहा, “शमायाह यहूदा के राजा, सुलैमान के पुत्र रहूबियाम से बातें करो और यहूदा तथा बिन्यामीन में रहने वाले सभी इस्राएल के लोगों से बातें करो। उनसे कहो, यहोवा यह कहाता है: ‘तुम्हें अपने भाईयों के विरुद्ध नहीं लड़ना चाहिये! हर एक व्यक्ति अपने घर लौट जाये। मैंने ही ऐसा होने दिया है।’” इसलिये राजा रहूबियाम और उसकी सेना ने यहोवा का सन्देश माना और वे लौट गए। उन्होंने यारोबाम पर आक्रमण नहीं किया।

रहूबियाम यहूदा को शक्तिशाली बनाता है

रहूबियाम यरूशलेम में रहने लगा। उसने आक्रमण के विरुद्ध रक्षा के लिये यहूदा में सुदृढ़ नगर बनाए। उसने बेतलेहेम, एताम, तकोआ, बेत्सूर, सोको, अदुल्लाम, गत, मारेशा, जीप, अदोरैम, लाकीश, अजेका, 10 सोरा, अय्यालोन, और हेब्रोन नगरों की मरम्मत कराई। यहूदा और बिन्यामीन में ये नगर दृढ़ बनाए गए। 11 जब रहूबियाम ने उन नगरों को दृढ़ बना लिया तो उनमें सेनापति रखे। उसने उन नगरों में भोजन, तेल और दाखमधु की पूर्ति की व्यवस्था की। 12 रहूबियाम ने ढाल और भाले भी हर एक नगर में रखे और उन्हें बहुत शक्तिशाली बनाया। रहूबियाम ने यहूदा और बिन्यामीन के लोगों को अपने अधिकार में रखा।

13 पूरे इस्राएल के याजक और लेवीवंशी रहूबियाम से सहमत थे और वे उसके साथ हो गए। 14 लेवीवंशियों ने अपनी घास वाली भूमि और अपने खेत छोड़ दिये और वे यहूदा तथा यरूशलेम आ गए। लेवीवंशियों ने यह इसलिये किया कि यारोबाम और उसके पुत्रों ने उन्हें यहोवा के याजक के रूप में सेवा कराने से इन्कार कर दिया।

15 यारोबाम ने अपने ही याजकों को वहाँ उच्च स्थानों पर सेवा करने के लिये नियुक्त किया जहाँ उसने बकरे और बछड़े की उन मूर्तियों को स्थापित की जिन्हें उसने बनाया था। 16 जब लेवीवंशियों ने इस्राएल को छोड़ दिया तब इस्राएल के परिवार समूह के वे लोग जो इस्राएल के यहोवा परमेश्वर के प्रति विश्वास योग्य थे, यरूशलेम में यहोवा, अपने पूर्वजों के परमेश्वर को बलि चढ़ाने आए। 17 उन लोगों ने यहूदा के राज्य को शक्तिशाली बनाया और उन्होंने सुलैमान के पुत्र रहूबियाम को तीन वर्ष तक समर्थन दिया। वे ऐसा करते रहे क्योंकि इस समय के बीच वे वैसे रहते रहे जैसे दाऊद और सुलैमान रहे थे।

रहूबियाम का परिवार

18 रहूबियाम ने महलत से विवाह किया। उसका पिता यरीमोत था। उसकी माँ अबीहैल थी। यरीमोत दाऊद का पुत्र था। अबीहैल एलीआब की पुत्री थी और एलीआब यिशै का पुत्र था। 19 महलत से रहूबियाम के ये पुत्र उत्पन्न हुए: यूश, शमर्याह और जाहम। 20 तब रहूबियाम ने माका से विवाह किया। माका अबशलोम की पोती थी और माका से रहूबियाम के ये बच्चे हुएः अबिय्याह, अत्ते, जीजा और शलोमीत। 21 रहूबियाम माका से सभी अन्य पत्नियों और दासियों से अधिक प्रेम करता था। माका अबशलोम की पोती थी। रहूबियाम की अट्ठारह पत्नियाँ और साठ रखैल थीं। रहूबियाम अट्ठाईस पुत्रों और साठ पुत्रियों का पिता था।

22 रहूबियाम ने अपने भाईयों में अबिय्याह को प्रमुख चुना। रहूबियाम ने यह इसलिये किया कि उसने अबिय्याह को राजा बनाने की योजना बनाई। 23 रहूबियाम ने बुद्धिमानी से काम किया और उसने अपने लड़कों को यहूदा और बिन्यामीन के पूरे देश में हर एक शक्तिशाली नगर में फैला दिया और रहूबियाम ने अपने पुत्रों को बहुत अधिक पुत्रियाँ भेजीं। उसने अपने पुत्रों के लिये पत्नियों की खोज की।

मिस्री राजा शीशक का यरूशलेम पर आक्रमण

12 रहूबियाम एक शक्तिशाली राजा हो गया। उसने अपने राज्य को भी शक्तिशाली बनाया। तब रहूबियाम और यहूदा के सभी लोगों ने यहोवा के नियम का पालन करने से इन्कार कर दिया।

रहूबियाम के राज्यकाल के पाँचवें वर्ष शीशक ने यरूशलेम पर आक्रमण किया। शीशक मिस्र का राजा था। यह इसलिये हुआ कि रहूबियाम और यहूदा के लोग यहोवा के प्रति निष्ठावान नहीं थे। शीशक के पास बारह हज़ार रथ, साठ हज़ार अश्वारोही, और एक सेना थी जिसे कोई गिन नहीं सकता था। शीशक की सेना में लूबी, सुक्किय्यी और कूशी सैनिक थे। शीशक ने यहूदा के शक्तिशाली नगरों को पराजित कर दिया। तब शीशक अपनी सेना को यरूशलेम लाया।

तब शमायाह नबी रहूबियाम और यहूदा के प्रमुखों के पास आया। यहूदा के वे प्रमुख यरूशलेम में इकट्ठे हुए थे क्योंकि वे सभी शीशक से भयभीत थे। शमायाह ने रहूबियाम और यहूदा के प्रमुखों से कहा, “यहोवा जो कहता है वह यह हैः ‘रहूबियाम, तुम और यहूदा के लोगों ने मुझे छोड़ दिया है और मेरे नियम का पालन करने से इन्कार कर दिया है। इसलिये मैं तुमको अपनी सहायता के बिना शीशक का सामना करने को छोड़ूँगा।’”

तब यहूदा के प्रमुखों और राजा रहूबियाम ने ग्लानि का अनुभव करते हुये अपने को विनम्र किया और कहा कि, “यहोवा न्यायी है।”

यहोवा ने देखा कि राजा और यहूदा के प्रमुखों ने अपने आप को विनम्र बनाया है। तब यहोवा का सन्देश शमायाह के पास आया। यहोवा ने शमायाह से कहा, “राजा और लोगों ने अपने को विनम्र किया है, इसलिये मैं उन्हें नष्ट नहीं करूँगा अपितु मैं उन्हें शीघ्र ही बचाऊँगा। मैं शीशक का उपयोग यरूशलेम पर अपना क्रोध उतारने के लिये नहीं करूँगा। किन्तु यरूशलेम के लोग शीशक के सेवक हो जाएंगे। यह इसलिये होगा कि वे सीख सकें कि मेरी सेवा करना दूसरे राष्ट्रों के राजाओं की सेवा करने से भिन्न है।”

शीशक ने यरूशलेम पर आक्रमण किया और यहोवा के मन्दिर में जो खजाना था, ले गया। शीशक मिस्र का राजा था और उसने उस खजाने को भी ले लिया जो राजा के महल में था। शीशक ने हर एक चीज ली और उनके खजानों को ले गया। उसने सोने की ढालों को भी लिया जिन्हें सुलैमान ने बनाया था। 10 राजा रहूबियाम ने सोने की ढालों के स्थान पर काँसे की ढालें बनाईं। रहूबियाम ने उन सेनापतियों को जो राजमहल के द्वारों की रक्षा के उत्तरदायी थे, काँसे की ढालें दीं। 11 जब राजा यहोवा के मन्दिर में जाता था तो रक्षक काँसे की ढालें बाहर निकालते थे। उसके बाद वे काँसे की ढालों को रक्षक—गृह में वापस रखते थे।

12 जब रहूबियाम ने अपने को विनम्र कर लिया तो यहोवा ने अपने क्रोध को उससे दूर कर लिया। इसलिये यहोवा ने रहूबियाम को पूरी तरह नष्ट नहीं किया। यहूदा में कुछ अच्छाई बची थी।

13 राजा रहूबियाम ने यरूशलेम में अपने को शक्तिशाली राजा बना लिया। वह उस समय इकतालीस वर्ष का था, जब राजा बना। रहूबियाम यरूशलेम में सत्रह वर्ष तक राजा रहा। यरूशलेम वह नगर है जिसे यहोवा ने इस्राएल के सारे परिवार समूह में से चुना। यहोवा ने यरूशलेम में अपने को प्रतिष्ठित करना चुना। रहूबियाम की माँ नामा थी। नामा अम्मोन देश की थी। 14 रहूबियाम ने बुरी चीज़ें इसलिये कीं क्योंकि उसने अपने हृदय से यहोवा की आज्ञा पालन करने का निश्चय नहीं किया।

15 जब रहूबियाम राजा हुआ, अपने शासन के आरम्भ से अन्त तक, उसने जो कुछ किया वह शमायाह और इद्दो के लेखों में लिखा गया है। शमायाह एक नबी था और इद्दो दृष्टा। वे लोग परिवार इतिहास लिखते थे और रहूबियाम तथा यारोबाम जब तक शासन करते रहे उनके बीच सदा युद्ध चलता रहा। 16 रहूबियाम ने अपने पूर्वजों के साथ विश्राम किया। रहूबियाम को दाऊद के नगर में दफनाया गया। रहूबियाम का पुत्र अबिय्याह नया राजा हुआ।

यहूदा का राजा अबिय्याह

13 जब राजा यारोबाम इस्राएल के राजा के रूप में अट्ठारहवें वर्ष में था अबिय्याह यहूदा का नया राजा बना। अबिय्याह यरूशलेम में तीन वर्ष तक राजा रहा। अबिय्याह की माँ मीकायाह थी। मीकायाह, ऊरीएल की पुत्री थी। ऊरीएल गिबा नगर का था और वहाँ अबिय्याह और यारोबाम के बीच युद्ध चल रहा था। अबिय्याह की सेना में चार लाख वीर सैनिक थे। यारोबाम ने अबिय्याह के विरुद्ध युद्ध के लिये तैयारी की। उसके पास आठ लाख वीर सैनिक थे।

तब अबिय्याह एप्रैम के पर्वतीय प्रदेश में समारैम पर्वत पर खड़ा हुआ। अबिय्याह ने कहा, “यारोबाम और सारे इस्राएली मेरी बात सुनों! तुम लोगों को जानना चाहिये कि यहोवा, इस्राएल के प्ररमेश्वर ने दाऊद और उसकी सन्तानों को इस्राएल का राजा होने का अधिकार सदैव के लिये दिया है। यहोवा ने दाऊद को यह अधिकार नमकवाली वाचा के साथ दिया। किन्तु यारोबाम अपने स्वामी के विरुद्ध हो गया! यारोबाम जो नबात का पुत्र था, दाऊद के पुत्र सुलैमान के अधिकारियों में से एक था। तब निकम्मे, बुरे व्यक्ति यारोबाम के मित्र हो गए तथा यारोबाम और वे बुरे व्यक्ति सुलैमान के पुत्र रहूबियाम के विरुद्ध हो गये। रहूबियाम युवक था और उसे अनुभव नहीं था। इसलिये रहूबियाम यारोबाम और उसके बुरे मित्रों को रोक न सका।

“तुम लोगों ने परमेश्वर के राज्य, जो दाऊद के पुत्रों द्वारा शासित है, हराने की योजना बनाई है। तुम लोगों की संख्या बहुत है और यारोबाम का तुम्हारे लिये बनाया गया सोने का बछड़ा तुम्हारा ईश्वर है! तुम लोगों ने हारून के वंशज यहोवा के याजकों और लेवीवंशियों को निकाल बाहर किया है। तुमने पृथ्वी के अन्य देशों के समान अपने याजकों को चुना है। तब तो कोई भी व्यक्ति जो एक युवा बैल और सात मेंढ़े लाये, उन झूठे ‘ईश्वरों’ की सेवा करने वाला याजक बन सकता है।

10 “किन्तु जहाँ तक हमारी बात है यहोवा हमारा परमेश्वर है। हम यहूदा के निवासी लोगों ने यहोवा की आज्ञा पालन से इन्कार किया नहीं है! हम लोगों ने उसको छोड़ा नहीं है! जो याजक यहोवा की सेवा करते हैं, वे हारून की सन्तान हैं और लेवीवंशी यहोवा की सेवा करने में याजकों की सहायता करते हैं। 11 वे होमबलि चढ़ाते हैं और धूप की सुगन्धि यहोवा को हर सुबह—शाम जलाते हैं। वे मन्दिर में विशेष मेज पर रोटियाँ पंक्तियों में रखते भी हैं और वे सोने के दीपाधार पर रखे हुए दीपकों की देखभाल करते हैं ताकि हर संध्या को वह प्रकाश के साथ चले। हम लोग यहोवा, अपने परमेश्वर की सेवा सावधानी के साथ करते हैं। किन्तु तुम लोगों ने उसको छोड़ दिया है। 12 स्वयं परमेश्वर हम लोगों के साथ है। वह हमारा शासक है और उसके याजक हमारे साथ हैं। परमेश्वर के याजक अपनी तुरही तुम्हें जगाने और तुम्हें उसके पास आने को उत्साहित करने के लिये फूँकते हैं! ऐ इस्राएल के लोगो, अपने पूर्वजों के यहोवा, परमेश्वर के विरुद्ध मत लड़ो! क्योंकि तुम सफल नहीं होगे!”

13 किन्तु यारोबाम ने सैनिकों की एक टुकड़ी को चुपके—चुपके गुप्त रूप से अबिय्याह की सेना के पीछे भेजा। यारोबाम की सेना अबिय्याह की सेना के सामने थी। यारोबाम की सेना के गुप्त सैनिक अबिय्याह की सेना के पीछे थे। 14 जब अबिय्याह की सेना के यहूदा के सैनिकों ने चारों ओर देखा तो उन्होंने यारोबाम की सेना को आगे और पीछे से आक्रमण करते पाया। यहूदा के लोगों ने यहोवा को जोर से पुकारा और याजकों ने तुरहियाँ बजाईं। 15 तब अबिय्याह की सेना के लोगों ने उद्घोष किया। जब यहूदा के लोगों ने उद्घोष किया तो परमेश्वर ने यारोबाम की सेना को हरा दिया। इस्राएल की सारी यारोबाम की सेना अबिय्याह की यहूदा की सेना द्वारा हरा दी गई। 16 इस्राएल के लोग यहूदा के लोगों के सामने भाग खड़े हुए। परमेश्वर ने यहूदा की सेना द्वारा इस्राएल की सेना को हरवा दिया। 17 अबिय्याह की सेना ने इस्राएल की सेना को बुरी तरह हराया और इस्राएल के पाँच लाख उत्तम योद्धा मारे गये। 18 इस प्रकार उस समय इस्राएल के लोग पराजित और यहूदा के लोग विजयी हुए। यहूदा की सेना विजयी हुई क्योंकि वह अपने पूर्वजों के परमेश्वर, यहोवा पर आश्रित रही।

19 अबिय्याह की सेना ने यारोबाम की सेना का पीछा किया। अबिय्याह की सेना ने यारोबाम से बेतेल, यशाना तथा एप्रोन नगरों को ले लिया। उन्होंने उन नगरों और उनके आस पास के छोटे गावों पर अधिकार कर लिया।

20 यारोबाम पर्याप्त शक्तिशाली फिर कभी नहीं हुआ जब तक अबिय्याह जीवित रहा। यहोवा ने यारोबाम को मार डाला। 21 किन्तु अबिय्याह शक्तिशाली हो गया। उसने चौदह स्त्रियों से विवाह किया और वह बाईस पुत्रों तथा सोलह पुत्रियों का पिता था। 22 अन्य जो कुछ अबिय्याह ने किया, वह इद्दो नबी की पुस्तकों में लिखा है।

14 अबिय्याह ने अपने पूर्वजों के साथ विश्राम लिया। लोगों ने उसे दाऊद के नगर में दफनाया। तब अबिय्याह का पुत्र आसा अबिय्याह के स्थान पर नया राजा हुआ। आसा के समय में देश में दस वर्ष शान्ति रही।

यहूदा का राजा आसा

आसा ने यहोवा परमेश्वर के सामने अच्छे और ठीक काम किये। आसा ने उन विचित्र वेदियों को हटा दिया जिनका उपयोग मूर्तियों की पूजा के लिये होता था। आसा ने उच्च स्थानों को हटा दिया और पवित्र पत्थरों को नष्ट कर दिया और आसा ने अशेरा स्तम्भों को तोड़ डाला। आसा ने यहूदा के लोगों को पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर का अनुसरण करने का आदेश दिया। वह वही परमेश्वर है जिसका अनुसरण उनके पूर्वजों ने किया था और आसा ने लोगों को यहोवा के नियमों और आदेशों को पालन करने का आदेश दिया। आसा ने उच्च स्थानों को और सुगन्धि की वेदियों को यहूदा के सभी नगरों से हटाया। इस प्रकार जब आसा राजा था, राज्य शान्त रहा। आसा ने यहूदा में शान्ति के समय शक्तिशाली नगर बनाए। आसा इन दिनों युद्ध से मुक्त रहा क्योंकि यहोवा ने उसे शान्ति दी।

आसा ने यहूदा के लोगों से कहा, “हम लोग इन नगरों को बनाऐं और इनके चारों ओर चारदीवारी बनाऐं। हम गुम्बद, द्वार और द्वारों में छड़ें लगायें। जब तक हम लोग देश में हैं, यह करें। यह देश हमारा है क्योंकि हम लोगों ने अपने यहोवा परमेश्वर का अनुसरण किया है। उसने हम लोगों को सब ओर से शान्ति दी है।” इसलिये उन्होंने यह सब बनाया और वे सफल हुए।

आसा के पास यहूदा के परिवार समूह से तीन लाख और बिन्यामीन के परिवार समूह से दो लाख अस्सी हज़ार सेना थी। यहूदा के लोग बड़ी ढालें और भाले ले चलते थे। बिन्यामीन के लोग छोटी ढालें और धनुष से चलने वाले बाण ले चलते थे। वे सभी बलवान और साहसी योद्धा थे।

तब जेरह आसा की सेना के विरुद्ध आया। जेरह कूश का था। जेरह की सेना में एक लाख व्यक्ति और तीन सौ रथ थे। जेरह की सेना मारेशा नगर तक गई। 10 आसा जेरह के विरुद्ध लड़ने के लिये गया। आसा की सेना मारेशा के निकट सापता घाटी में युद्ध के लिये तैयार हुई।

11 आसा ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा और कहा, “यहोवा, केवल तू ही बलवान लोगों के विरुद्ध कमजोर लोगों की सहायता कर सकता है! हे मेरे यहोवा परमेश्वर हमारी सहायता कर! हम तुझ पर आश्रित हैं। हम तेरे नाम पर इस विशाल सेना से युद्ध करते हैं। हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है! अपने विरुद्ध किसी को जीतने न दे!”

12 तब यहोवा ने यहूदा की ओर से आसा की सेना का उपयोग कूश की सेना को पराजित करने के लिये किया और कूश की सेना भाग खड़ी हुई। 13 आसा की सेना ने कूश की सेना का पीछा लगातार गरार नगर तक किया। इतने अधिक कूश के लोग मारे गए कि वे युद्ध करने योग्य एक सेना के रूप में फिर इकट्ठे न हो सके। वे यहोवा और उसकी सेना के द्वारा कुचल दिये गये। आसा और उसकी सेना ने शत्रु से अनेक बहुमूल्य चीज़ें ले लीं। 14 आसा और उसकी सेना ने गरार के निकट के सभी नगरों को हराया। उन नगरों में रहने वाले लोग यहोवा से डरते थे। उन नगरों में असंख्य बहुमूल्य चीज़ें थीं। आसा की सेना उन नगरों से इन बहुमूल्य चीज़ों को साथ ले आई। 15 आसा की सेना ने उन डेरों पर भी आक्रमण किया जिनमें गड़रिये रहते थे। वे अनेक भेड़ें और ऊँट ले आए। तब आसा की सेना यरूशलेम लौट गई।

आसा के परिवर्तन

15 परमेश्वर की आत्मा अजर्याह पर उतरी। अजर्याह ओदेद का पुत्र था। अजर्याह आसा से मिलने गया। अजर्याह ने कहा, “आसा तथा यहूदा और बिन्यामीन के सभी लोगो मेरी सुनो! यहोवा तुम्हारे साथ तब है जब तुम उसके साथ हो। यदि तुम यहोवा को खोजोगे तो तुम उसे पाओगे। किन्तु यदि तुम उसे छोड़ोगे तो वह तुम्हें छोड़ देगा। बहुत समय तक इस्राएल सच्चे परमेश्वर के बिना था और वे शिक्षक याजक और नियम के बिना थे। किन्तु जब इस्राएल के लोग कष्ट में पड़े तो वे फिर इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की ओर लौटे। उन्होंने यहोवा की खोज की और उसको उन्होंने पाया। उन विपत्ति के दिनों में कोई व्यक्ति सुरक्षित यात्रा नहीं कर सकता था। सभी राष्ट्र बहुत अधिक उपद्रव ग्रस्त थे। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को और एक नगर दूसरे नगर को नष्ट करता था। यह इसलिये हो रहा था कि परमेश्वर हर प्रकार की विपत्तियों से उनको परेशान कर रहा था। किन्तु आसा, तुम तथा यहूदा और बिन्यामीन के लोगो, शक्तिशाली बनो। कमजोर न पड़ो, ढीले न पड़ो क्योंकि तुम्हें अपने अच्छे काम का पुरस्कार मिलेगा!”

आसा ने जब इन बातों और ओदेद नबी के सन्देश को सुना तो वह बहुत उत्साहित हुआ। तब उसने सारे यहूदा और बिन्यामीन देश से घृणित मूर्तियों को हटा दिया और उसने एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में अपने अधिकार में लाए गए नगरों में मूर्तियों को हटाया और उसने यहोवा की उस वेदी की मरम्मत की जो यहोवा के मन्दिर के द्वार मण्डप के सामने थी।

तब आसा ने यहूदा और बिन्यामीन के सभी लोगों को इकट्ठा किया। उसने एप्रैम, मनश्शे और शिमोन परिवारों को भी इकट्ठा किया जो इस्राएल देश से यहूदा देश में रहने के लिये आ गए थे। उनकी बहुत बड़ी संख्या यहूदा में आई क्योंकि उन्होंने देखा कि आसा का यहोवा परमेश्वर, आसा के साथ है।

10 आसा के शासन के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में आसा और वे लोग यरूशलेम में इकट्ठे हुए। 11 उस समय उन्होंने यहोवा को सात सौ बैलों और सात हज़ार भेड़ों और बकरों की बलि दी। आसा की सेना ने उन जानवरों और अन्य बहुमूल्य चीज़ों को अपने शत्रुओं से लिया था। 12 तब उन्होंने पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर की सेवा पूरे हृदय और पूरी आत्मा से करने की वाचा की। 13 कोई व्यक्ति जो यहोवा परमेश्वर की सेवा से इन्कार करता था, मार दिया जाता था। इस बात का कोई महत्व नहीं था कि वह व्यक्ति महत्त्वपूर्ण या साधारण है अथवा पुरुष या स्त्री है। 14 तब आसा और लोगों ने यहोवा की शपथ ली। उन्होंने उच्च स्वर में उद्घोष किया। उन्होंने तुरही और मेढ़ों के सींगे बजाए। 15 यहूदा से सभी लोग प्रसन्न थे क्योंकि उन्होंने पूरे हृदय से शपथ ली थी। उन्होंने पूरे हृदय से यहोवा का अनुसरण किया तथा येहोवा की खोज की और उसे पाया। इसलिये यहोवा ने उनके पूरे देश में शान्ति दी।

16 राजा आसा ने अपनी माँ माका को राजमाता के पद से हटा दिया। आसा ने यह इसलिये किया क्योंकि माका ने एक भयंकर अशेरा—स्तम्भ बनाया था। आसा ने इस स्तम्भ को काट दिया और इसे छोटे—छोटे टुकड़ों में ध्वस्त कर दिया। तब उसने उन छोटे टुकड़ों को किद्रोन घाटी में जला दिया। 17 उच्च स्थानों को यहूदा से नहीं हटाया गया, किन्तु आसा का हृदय जीवन भर यहोवा के प्रति श्रद्धालु रहा।

18 आसा ने उन पवित्र भेंटों को रखा जिन्हें उसने और उसके पिता ने यहोवा के मन्दिर में दिये थे। वे चीज़ें चाँदी और सोने की बनीं थीं। 19 आसा के शासन के पैंतीस वर्ष तक कोई युद्ध नहीं हुआ।

आसा के अन्तिम वर्ष

16 आसा के राज्यकाल के छत्तीसवें वर्ष[a] बाशा ने यहूदा देश पर आक्रमण किया। बाशा इस्राएल का राजा था। वह रामा नगर में गया और इसे एक किले के रूप में बनाया। बाशा ने रामा नगर का उपयोग यहूदा के राजा आसा के पास जाने और उसके पास से लोगों को आने से रोकने के लिये किया। आसाने यहोवा के मन्दिर के कोषागार में रखे हुए चाँदी और सोने को लिया और उसने राजमहल से चाँदी सोना लिया। तब आसा ने बेन्हदद को सन्देश भेजा। बेन्हदद अराम का राजा था और दमिश्क नगर में रहता था। आसा का सन्देश था: “बेन्हदद मेरे और अपने बीच एक सन्धि होने दो। इस सन्धि को वैसे ही होने दो जैसा वह हमारे पिता और तुम्हारे पिता के बीच की गई थी। ध्यान दो, मैं तुम्हारे पास चाँदी सोना भेज रहा हूँ। अब तुम इस्राएल के राजा बाशा के साथ की गई सन्धि को तोड़ दो जिससे वह मुझे मुक्त छोड़ देगा और मुझे परेशान करना बन्द कर देगा।”

बेन्हदद ने आसा की बात मान ली। बेन्हदद ने अपनी सेना के सेनापतियों को इस्राएल के नगरों पर आक्रमण करने के लिये भेजा। इन सेनापतियों ने इय्योन, दान और आबेल्मैम नगरों पर आक्रमण किया। उन्होंने नप्ताली देश में उन सभी नगरों पर आक्रमण किया जहाँ खजाने रखे थे। बाशा ने इस्राएल के नगरों पर आक्रमण की बात सुनी। इसलिए उसने रामा में किला बनाने का काम रोक दिया और अपना काम छोड़ दिया। तब राजा आसा ने यहूदा के सभी लोगों को इकट्ठा किया। वे रामा नगर को गये और लकड़ी तथा पत्थर उठा लाए जिनका उपयोग बाशा ने किला बनाने के लिये किया था। आसा और यहूदा के लोगों ने पत्थरों और लकड़ी का उपयोग गेवा और मिस्पा नगरों को अधिक मजबूत बनाने के लिये किया।

उस समय दृष्टा हनानी यहूदा के राजा आसा के पास आया। हनानी ने उससे कहा, “आसा, तुम सहायता के लिये अराम के राजा पर आश्रित हुए, अपने यहोवा परमेश्वर पर नहीं। तुम्हें यहोवा पर आश्रित रहना चाहिये था। तुम याहोवा पर सहायता के लिये आश्रित नहीं रहे अतः अराम के राजा की सेना तुमसे भाग निकली। कूश और लूबी अति विशाल और शक्तिशाली सेना रखते थे। उनके पास अनेक रथ और सारथी थे। किन्तु आसा, तुम उस विशाल शक्तिशाली सेना को हराने में सहायता के लिये यहोवा पर आश्रित हुए और यहोवा ने तुम्हें उनको हराने दिया। यहोवा की आँखें सारी पृथ्वी पर उन लोगों को देखती फिरती हैं जो उसके प्रति श्रद्धालु हैं जिससे वह उन लोगों को शक्तिशाली बना सके। आसा, तुमने मूर्खतापूर्ण काम किया। इसलिये अब से लेकर आगे तक तुमसे युद्ध होंगे।”

10 आसा हनानी पर उस बात से क्रोधित हुआ जो उसने कहा। आसा इतना क्रोध से पागल हो उठा कि उसने हनानी को बन्दीगृह में डाल दिया। आसा उस समय कुछ लोगों के साथ नीचता और कठोरता का व्यवहार करता था।

11 आसा ने जो कुछ आरम्भ से अन्त तक किया। वह इस्राएल और यहुदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 12 आसा का पैर उसके राज्यकाल के उनतालीसवें वर्ष[b] में रोगग्रस्त हो गया। उसका रोग बहुत बुरा था किन्तु उसने यहोवा से सहायाता नहीं चाही। आसा ने वैद्यों से सहायता चाही। 13 आसा अपने राज्यकाल के इकतालीसवें वर्ष में मरा और इस प्रकार आसा ने अपने पूर्वजों के साथ विश्राम किया। 14 लोगों ने आसा को उसकी अपनी कब्र में दफनाया जिसे उसने स्वयं दाऊद के नगर में बनाया था। लोगों ने उसे एक अन्तिम शैया पर रखा जिस पर सुगन्धित द्रव्य और विभिन्न प्रकार के मिले इत्र रखे थे। लोगों ने आसा का सम्मान करने के लिये आग की महाज्वाला की।[c]

यहूदा का राजा यहोशापात

17 आसा के स्थान पर यहोशापात यहूदा का नया राजा हुआ। यहोशापात आसा का पुत्र था। यहोशापात ने यहूदा को शक्तिशाली बनाया जिससे वे इस्राएल के विरुद्ध लड़ सकते थे। उसने यहूदा के उन सभी नगरों में सेना की टुकड़ियाँ रखीं जो किले बना दिये गए थे। यहोशापात ने यहूदा और एप्रैम के उन नगरों में किले बनाए जिन्हें उसके पिता ने अपने अधिकार में किया था।

यहोवा यहोशापात के साथ था क्योंकि उसने वे अच्छे काम किये जिन्हें उसके पूर्वज दाऊद ने किया था। यहोशापात ने बाल की मूर्तियों का अनुसरण नहीं किया। यहोशापात ने उस परमेश्वर को खोजा जिसका अनुसरण उसके पूर्वज करते थे। उसने परमेश्वर के आदेशों का पालन किया। वह उस तरह नहीं रहा जैसे इस्राएल के अन्य लोग रहते थे। यहोवा ने यहोशापात को यहूदा का शक्तिशाली राजा बनाया। यहूदा के सभी लोग यहोशापात को भेंट लाए। इस प्रकार यहोशापात के पास बहुत सी सम्पत्ति और सम्मान दोनों थे। यहोशापात का हृदय यहोवा के मार्ग पर चलने में आनन्दित था। उसने उच्च स्थानों और अशेरा के स्तम्भों को यहूदा देश से बाहर किया।

यहोशापात ने अपने प्रमुखों को यहूदा के नगरों में उपदेश देने के लिये भेजा। यह यहोशापात के राज्यकाल के तीसरे वर्ष हुआ। वे प्रमुख बेन्हैल, ओबद्याह, जकर्याह, नतनेल और मीकायाह थे। यहोशापात ने इन प्रमुखों के साथ लेवीवंशियों को भी भेजा। ये लेवीवंशी शमायाह, नतन्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनिय्याह और तोबिय्याह थे। यहोशापात ने याजक एलीशामा और यहोराम को भेजा। उन प्रमुखों, लेवीवंशियों और याजकों ने यहूदा में लोगों को शिक्षा दी। उनके पास यहोवा के नियमों की पुस्तक थी। वे यहूदा के सभी नगरों में गये और लोगों को उन्होंने शिक्षा दी।

10 यहूदा के आसपास के नगर यहोवा से डरते थे। यही कारण था कि उन्होंने यहोशापात के विरुद्ध युद्ध नहीं छेड़ा। 11 कुछ पलिश्ती लोग यहोशापात के पास भेंट लाए। वे यहोशापात के पास चाँदी भी लाए क्योंकि वे जानते थे कि वह बहुत शक्तिशाली राजा है। कुछ अरब के लोग यहोशापात के पास रेवड़े लाये। वे उसके पास सात हज़ार सात सौ भेड़ें और सात हज़ार सात सौ बकरियाँ लाए।

12 यहोशापात अधिक से अधिक शक्तिशाली होता गया। उसने किले और भण्डार नगर यहूदा देश में बनाये। 13 उसने बहुत सी सामग्री भण्डार नगरों में रखी और यहोशापात ने यरूशलेम में प्रशिक्षित सैनिक रखे। 14 उन सैनिकों की अपने परिवार समूह में गिनती थी। यरूशलेम के उन सैनिकों की सूची ये हैः

यहूदा के परिवार समूह से ये सेनाध्यक्ष थेः

अदना तीन लाख सैनिकों का सेनाध्यक्ष था।

15 यहोहानान दो लाख अस्सी हज़ार सैनिकों का सेनाध्यक्ष था।

16 अमस्याह दो लाख सैनिकों का सेनाध्यक्ष था। अमस्याह जिक्री का पुत्र था। अमस्याह अपने को यहोवा की सेवा में अर्पित करने में प्रसन्न था।

17 बिन्यामीन के परिवार समूह से ये सेनाध्यक्ष थेः

एलयादा के पास दो लाख सैनिक थे जो धनुष, बाण और ढाल का उपयोग करते थे। एल्यादा एक साहसी सैनिक था।

18 यहोजाबाद के पास एक लाख अस्सी हज़ार व्यक्ति युद्ध के लिये तैयार थे।

19 वे सभी सैनिक यहोशापात की सेवा करते थे। राजा ने पूरे यहूदा देश के किलों में अन्य व्यक्तियों को भी रखा था।

मीकायाह राजा अहाब को चेतावनी देता है

18 यहोशापात के पास सम्पत्ति और सम्मान था। उसने राजा अहाब के साथ विवाह द्वारा एक सन्धि की।[d] कुछ वर्ष बाद, यहोशापात शोमरोन नगर में अहाब से मिलने गया। अहाब ने बहुत सी भेड़ों और पशुओं की बलि यहोशापात और उसके साथ के आदमियों के लिये चढ़ाई। अहाब ने यहोशापात को गिलाद के रामोत नगर पर आक्रमण के लिये प्रोत्साहित किया। अहाब ने यहोशापात से कहा, “क्या तुम मेरे साथ गिलाद के रामोत पर आक्रमण करने चलोगे” अहाब इस्राएल का और यहोशापात यहूदा का राजा था। यहोशापात ने अहाब को उत्तर दिया, “मैं तुम्हारी तरह हूँ और हमारे लोग तुम्हारे लोगों की तरह हैं। हम युद्ध में तुम्हारा साथ देंगे।” यहोशापात ने अहाब से यह कहा, “ओओ, पहले हम यहोवा से सन्देश प्राप्त करे।”

इसलिए अहाब ने चार सौ नबियों को इकट्ठा किया। अहाब ने उनसे कहा, “क्या हमें गिलाद के रामोत नगर के विरुद्ध युद्ध में जाना चाहिये या नहीं”

नबियों ने अहाब को उत्तर दिया, “जाओ, क्योंकि यहोवा गिलाद के रामोत को तुम्हें पराजित करने देगा।”

किन्तु यहोशापात ने कहा, “क्या कोई यहाँ यहोवा का नबी है? हम लोग नबियों में से एक के द्वारा यहोवा से पूछना चाहते हैं।”

तब राजा अहाब ने यहोशापात से कहा, “यहाँ पर अभी एक व्यक्ति है। हम उसके माध्यम से यहोवा से पूछ सकते हैं। किन्तु मैं इस व्यक्ति से घृणा करता हूँ क्योंकि इसने कभी मेरे बारे में यहोवा से कोई अच्छा सन्देश नहीं दिया। इसने सदैव बुरा ही सन्देश मेरे लिये दिया है। इस आदमी का नाम मीकायाह है। यह यिम्ला का पुत्र है।”

किन्तु यहोशापात ने कहा, “अहाब, तुम्हें ऐसा नहीं कहेना चाहिये!”

तब इस्राएल के राजा अहाब ने अपने अधिकारियों में से एक को बुलाया ओर कहा, “शीघ्रता करो, यिम्ल के पुत्र मीकायाह को यहाँ लाओ!”

इस्राएल के राजा अहाब और यहूदा के राजा यहेशापात ने अपने राजसी वस्त्र पहन रखे थे। वे अपने सिंहासनों पर खलिहन में शोमरोन नगर के सम्मुख द्वार के निकट बैठे थे। वे चार सौ नबी अपना सन्देश दोनों राजाओं के सामने दे रहे थे। 10 सिदकिय्याह कनाना नामक व्यक्ति का पुत्र था। सिदकिय्याह ने लोहे की कुछ सींगे बनाई। सिदकिय्याह ने कहा, “यही है जो यहोवा कहता है: ‘तुम लोग लोहे की सिंगों का उपयोग तब तक अश्शूर के लोगों में घोंपने के लिये करोगे जब तक वे नष्ट न हो जायें।’” 11 सभी नबियों ने वही बात कही। उन्हो ने कहा, “गिलाद के रामेत नगर को जाओ। तुम लोग सफल होंगे और जीतोगे। यहोवा राजा और अश्शूर के लोगों को हराने देगा।”

12 जो दूत मीकायाह को लाने गया था उसने उससे कहा, “मीकायाह, सुनो, सभी नबी एक ही बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि राजा को सफलता मिलेगी। इसलिये वही कहो जो वे कह रहे हैं। तुम भी अच्छी बात कही।”

13 किन्तु मीकायाह ने उत्तर दिया, “यह वैसे ही सत्य है जैसा कि यहोवा शाश्वत है अत: मैं वही कहूँगा जो मेरा परमेश्वर कहता है।”

14 तब मीकायाह राजा अहाब के पास आया। राजा ने उससे कहा, “मीकायाह, क्या हमें युद्ध करने के लिये गिलाद के रामोत नगर को जाना चाहिये या नहीं”

मीकायाह ने कहा, “जाओ औऱ आक्रमण करो। यहोवा तुम्हें उन लोगों को हराने देगा।”

15 राजा अहोब ने मीकायाह से कहा, “कई बार मैंने तुमसे प्रतिज्ञा करवायी थी कि तुम यहोवा के नाम पर मुझे केवल सत्य बताओ!”

16 तब मीकायाह ने कहा, “मैंने इस्राएल के सभी लोगों को पहाड़ों पर बिखरे हुए देखा। वे गड़रिये के बिना भेड़ की तरह थे। यहोवा ने कहा, ‘उनका कोई नेता नही है। हर एक व्यक्ति को सुरक्षित घर लौटने दो।’”

17 इस्राएल के राजा अहाब ने यहोशापात से कहा, “मैंने कहा था कि मीकायाह मेरे लिए यहोवा से अच्छा सन्देश नही पाएगा। वह मेरे लिए केवल बुरे सन्देश रखता है!”

18 मीकायाह ने कहा, “यहोवा के सन्देश को सुनो: मैंने यहोवा को अपने सिंहासन पर बैठे देखा। स्वर्ग की पूरी सेना उसके चारों ओर खड़ी थी।[e] कुछ उसके दाहिने ओर और कुछ उसके बाँयीं ओर। 19 यहोवा ने कहा, ‘इस्राएल के राजा आहाब को कौन धोखा देगा जिससे वह गिलाद के रामोत के नगर पर आक्रमण करे और वह वहाँ मार दिया जाये’ यहोवा के चारों ओर खड़े विभिन्न लोगों ने विभिन्न उत्तर दिये। 20 तब एक आत्मा आई और वह यहोवा के सामने खड़ी हुई। उस आत्मा ने कहा, ‘मैं अहाब को धोखा दूँगी।’ यहोवा ने आत्मा से पूछा, ‘कैसे?’ 21 उस आत्मा ने उत्तर दिया, ‘मैं बाहर जाऊँगी और अहोब के नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाली आत्मा बनूँगी’ और यहोवा ने कहो, ‘तुम्हें अहाब को धोखा देने में सफलता मिलेगी। इसलिये जाओ और इसे करो।’

22 “अहोब, अब ध्यान दो, यहोवा ने तुम्हारे नबियों के मुँह में झूठ बोलने बाली आत्मा प्रवेश कराई है। यहोवा ने कहा है कि तुम्हारे साथ बुरा घटेगा।”

23 तब सिदकिय्याह मीकायाह के पास गया और उसके मुँह पर मारा। कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने कहा, “मीकायाह, यहोवा की आत्मा मुझे त्याग कर तुझसे वार्तालाप करने कैसे आई?”

24 मीकायाह ने उत्तर दिया, “सिदकिय्याह, तुम उस दिन इसे जानोगे जब तुम एक भीतरी घर में छिपने जाओगे!”

25 तब राजा अहाब ने कहा, “मीकायाह को लो और इसे नगर के प्रशासक आमोन और राजा के पुत्र योआश के पास भेज दो। 26 आमोन और योआश से कहो, ‘राजा यह कहते हैं: मीकायाह को बन्दीगृह में डाल दो। उसे रोटी और पानी के अतिरिक्त तब तक कुछ खाने को न दो जब तक मैं युद्ध से न लौटूँ।’”

27 मीकायाह ने उत्तर दिया, “अहाब, यदि तुम युद्ध से सुरक्षित लौट आते हो तो यहोवा ने मेरे द्वारा नहो कहा है। तुम सभी लोग सुनों और मेरे वचन को याद रखो!”

अहाब गिलाद के रामोत में मारा गया

28 इसलिये इस्राएल के राजा अहोब और यहूदा के राजा यहोशापात ने गिलाद के रामोत नगर पर आक्रमण किया। 29 इस्राएल के राजा अहोब ने यहोशापात से कहो, “मैं युद्ध में जाने के पहले अपना रुप बदल लूँगा। किन्तु तुम अपने राजवस्त्र हो पहनों।” इसलिये इस्राएल के राजा अहोब ने अपना रुप बदल लिया और दोनों राजा युद्ध में गए।

30 अराम के राजा ने अपने रथों के रथपतियों को आदेश दिया। उसने उनसे कहो, “चाहे जितना बड़ा या छोटा कोई व्यक्ति हो उससे युद्ध न करो। किन्तु केवल इस्राएल के राजा अहाब से युद्ध करो।” 31 जब रथपतियों ने यहोशापात को देखा उन्ह ने सोचा, “वही इस्राएल का राजा अहाब है!” वे यहोशापात पर आक्रमण करने के लिये उसकी ओर मुड़े। किन्तु यहोशापात ने उद्घोष किया और यहोवा ने उसकी सहायात की। परमेश्वर ने रथपतियों को यहोशापात के सामने से दूर मुड़ जाने दिया। 32 जब उन्ह ने समझा कि यहोशापात इस्राएल का राजा नहो है उन्ह ने उसका पीछा करना छोड़ दिया।

33 किन्तु एक सैनिक से बिना किसी लक्ष्य बेध के धनुष से बाण छूट गया। उस बाण ने इस्राएल के राजा अहाब को बेध दिया। इसने, अहाब के कवच के खुले भाग में बेधा। अहाब ने अपने रथ के सारथी से कहा, “पीछे मुड़ो और मुझे युद्ध से बाहर ले चलो। मैं घायल हो गया हूँ!”

34 उस दिन युद्ध अधिक बुरी तरह लड़ा गया। अहाब ने अपने रथ में अरामियों का सामना करते हुए शाम तक अपने को संभाले रखा। तब अहाब सूर्य डूबने पर मर गया।

19 यहूदा का राजा यहोशापात सुरक्षित यरूशलेम अपने घर लौटा। दृष्टा येहू यहोशापात से मिलने गया। येहू के पिता का नाम हनानी था। येहू ने राजा यहोशापात से कहा, “तुम बुरे आदमियों की सहायता क्यों करते हो तुम उन लोगों से क्यों प्रेम करते हो जो यहोवा से घृणा करते हैं। यही कारण है कि यहोवा तुम पर क्रोधित है। किन्तु तुम्हारे जीवन में कुछ अच्छी बातें हैं। तुमने अशेरा—स्तम्भों को इस देश से बाहर किया और तुमने हृदय से परमेश्वर का अनुसरण करने का निश्चय किया।”

यहोशापात न्यायाधीशों को चुनता है

यहोशापात यरूशलेम में रहता था। वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में बेर्शोबा नगर के लोगों के साथ एक होने के लिये फिर वहाँ गया। यहोशापात ने उन लोगों को उस यहोवा परमेश्वर के पास लौटाया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। यहोशापात ने यहूदा में न्यायधीश चुने। उसने यहूदा के हर किले में रहने के लिये न्यायाधीश चुने। यहोशापात ने इन न्यायाधीशों से कहा, “जो कुछ तुम करो उसमें सावधान रहो क्योंकि तुम, लोगों के लिये न्याय नही कर रहे अपितु यहोवा के लिये कर रहे हो। जब तुम निर्णय करोगे तब यहोवा तुम्हारे साथ होगा। तुम में से हर एक को अब यहोवा से डरना चाहिए। जो करो उसमें सावधान रहो क्योंकि हमारा यहोवा परमेश्वर न्यायी है। वह किसी व्यक्ति को अन्य व्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण मानकर व्यवहार नही करता। वह अपने निर्णय को बदलने के लिये धन नही लेता।”

और यहोशापात ने यरूशलेम में, लेवीवंशियों, याजकों और इस्राएल के परिवार प्रमुखों को न्यायाधीश चुना। उन लोगों को यहोवा के नियमों का उपयोग यरूशलेम के लोगों की समस्याओं को निपटाने के लिये करना था। यहोशापात ने उनको आदेश दिये। यहोशापात ने कहा, “तुम्हें अपने पूरे हृदय से विश्वसनीय काम करना चाहिए। तुम्हें यहोवा से अवश्य डरना चाहिए। 10 तुम्हारे पास हत्या, नियम, आदेश, शासन या किसी अन्य नियमों के मामले आ सकते हैं। ये सभी मामले नगरों में रहने वाले तुम्हारे भाईयों के यह से आएंगे। इन सभी मामलों में लोगों को इस बात की चेतावनी दो कि वे लोग यहोवा के विरुद्ध पाप न करें। यदि तुम विश्वास योग्यता के साथ यहोवा की सेवा नहीं करते तो तुम यहोवा के क्रोध को अपने ऊपर और अपने भाईयों के ऊपर लाने का कारण बनोगे। यह करो, तब तुम अपराधी नही होगे।

11 “अमर्याह मार्गदर्शक याजक है। वह यहोवा के सम्बन्ध की सभी बातों में तुम्हारे ऊपर रहेगा और राजा सम्बन्धी सभी विषयों में जबद्याह तुम्हारे ऊपर होगा। जबद्याह के पिता का नाम इश्माएल है। जबद्याह यहूदा के परिवार समूह में प्रमुख है। लेवीवंशी शास्त्रियों के रुप में भी तुम्हारी सेवा करेंगे। जो कुछ करो उसमें साहस रखो। यहोवा उन लोगों के साथ हो, जो वही करते हैं जो ठीक है।”

यहोशापात युद्ध का सामना करता है

20 कुछ समय पश्चात मोआबी, अम्मोनी और कुछ मूनी लोग यहोशापात के साथ युद्ध आरम्भ करने आए। कुछ लोग आए और उन्होने यहोशापात से कहा, “तुम्हारे विरुद्ध एदोम से एक विशाल सेना आ रही है। वे मृत सागर की दूसरी ओर से आ रहे हैं। वे हसासोन्तामार में पहले से ही हैं।” (हसासोन्तामार को एनगदी भी कहा जाता है) यहोशापात डर गया और उसने यहोवा से यह पूछने का निश्चय किया कि मैं क्या करुँ उसने यहूदा में हर एक के लिये उपवास का समय घोषित किया। यहूदा के लोग एक साथ यहोवा से सहायता माँगने आए। वे यहूदा के सभी नगरों से यहोवा की सहायता माँगने आए। यहोशापात यहोवा के मन्दिर में नये आँगन के सामने था। वह यरूशलेम और यहूदा से आए लोगों की सभा में खड़ा हुआ। उसने कहा,

“हे हमारे पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर, तू स्वर्ग में परमेश्वर है! तू सभी राष्ट्रों में सभी राज्यों पर शासन करता है! तू प्रभुता और शक्ति रखता है! कोई व्यक्ति तेरे विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकता! तू हमारा परमेश्वर है। तूने इस प्रदेश में रहने वालों को इसे छोड़ने को विवश किया। यह तूने अपने इस्राएली लोगों के सामने किया। तूने यह भूमि इब्राहाम के वंशजों को सदैव के लिये दे दी। इब्राहाम तेरा मित्र था। इब्राहीम के वंशज इस देश में रहते थे और उन्होंने एक मन्दिर तेरे नाम पर बनाया। उन्होंने कहा, ‘यदि हम लोगों पर आपत्ति आएगी जैसे तलवार, दण्ड, रोग या अकाल तो हम इस मन्दिर के सामने और तेरे सामने खड़े होंगे। इस मन्दिर पर तेरा नाम है। जब हम लोगों पर विपत्ति आएगी तो हम लोग तुझको पुकारेंगे। तब तू हमारी सुनेगा और हमारी रक्षा करेगा।’

10 “किन्तु इस समय यही अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोग चढ़ आए हैं! तूने इस्राएल के लोगों को उस समय उनकी भूमि में नहीं जाने दिया जब इस्राएल के लोग मिस्र से आए। इसलिए इस्राएल के लोग मुड़ गए थे और उन लोगों ने उनको नष्ट नहीं किया था। 11 किन्तु देख कि वे लोग हमें उन्हें नष्ट न करने का किस प्रकार का पुरस्कार दे रहे हैं। वे हमें तेरी भूमि से बाहर होने के लिए विवश करने आए हैं। यह भूमि तूने हमें दी है। 12 हमारे परमेश्वर, उन लोगों को दण्ड दे! हम लोग उस विशाल सेना के विरुद्ध कोई शक्ति नहीं रखते जो हमारे विरुद्ध आ रही है! हम नहीं जानते कि क्या करें! यही कारण है कि हम तुझसे सहायता की आशा करते हैं।”

13 यहूदा के सभी लोग यहोवा के सामने अपने शिशुओं, पत्नियों और बच्चों के साथ खड़े थे। 14 तब यहोवा की आत्मा यहजीएल पर उतरी। यहजीएल जकर्याह का पुत्र था। (जकर्याह बनायाह का पुत्र था बनायाह यीएल का पुत्र था और यीएल मत्तन्याह का पुत्र था।) यहजीएल एक लेवीवंशी था और आसाप का वंशज था। 15 उस सभा के बीच यहजीएल ने कहा “राजा यहशापात तथा यहूदा और यरूशलेम में रहने वाले लोगो, मेरी सुनो! यहोवा तुमसे यह कहता है: ‘इस विशाल सेना से न तो डरो, न हों परेशान होओ क्योंकि यह तुम्हारा युद्ध नहीं है। यह परमेश्वर का युद्ध है! 16 कल तुम ही वहाँ जाओ और उन लोगों से लड़ो। वे सीस के दर्रे से होकर आएँगे। तुम लोग उन्हें घाटी के अन्त में यरूएल मरुभूमि की दूसरी ओर पाओगे। 17 इस युद्ध में तुम्हें लड़ना नहीं पड़ेगा। अपने स्थानों पर दृढ़ता से खड़े रहो। तुम देखोगे कि यहोवा ने तुम्हें बचा लिया। यहूदा और यरूशलेम के लोगो, डरो नही परेशान मत हो! यहोवा तुम्हारे साथ है अत: कल उन लोगों के विरुद्ध जाओ।’”

18 यहोशापात अति नम्रता से झुका। उसका सिर भूमि को छू रहा था और यहूदा तथा यरूशलेम में रहने वाले सभी लोग यहोवा के सामने गिर गए और उन सभी ने यहोवा की उपासना की। 19 कहाती परिवार समूह के लेवीवंशी और कहाती लोग, इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की स्तुति के लिये खड़े हुए। उन्होंने अत्यन्त उच्च स्वर में स्तुति की।

20 यहोशापात की सेना तकोआ मरुभूमि में बहुत सवेरे गई। जब वे बढ़ना आरम्भ कर रहे थे, यहोशापात खड़ा हुआ और उसने कहा, “यहूदा और यरूशलेम के लोगो, मेरी सुनो। अपने यहोवा परमेश्वर में विश्वास रखो और तब तुम शक्ति के साथ खड़े रहोगे। यहोवा के नबियों में विश्वास रखो। तुम लोग सफल होगे!”

21 यहोशापात ने लोगों का सुझाव सुना। तब उसने यहोवा के लिये गायक चुने। वे गायक यहोवा की स्तुति के लिये चुने गए थे क्योंकि वह पवित्र और अद्भुत हैं। वे सेना के सामने कदम मिलाते हुए बढ़े और उन्होने यहोवा की स्तुति की। इन गायकों ने गाया,

“परमेश्वर को धन्यवाद दो
    क्योंकि उसका प्रेम सदैव रहता है!”[f]

22 ज्योंही उन लोगों ने गाना गाकर यहोवा की स्तुति आरम्भ की, यहोवा ने अज्ञात गुप्त आक्रमण अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोगों पर कराया। ये वे लोग थे जो यहूदा पर आक्रमण करने आए थे। वे लोग पिट गए। 23 अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आये लोगों के विरुद्ध युद्ध आरम्भ किया। अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आए लोगों को मार डाला और नष्ट कर दिया। जब वे सेईर के लोगों को मार चुके तो उन्होंने एक दूसरे को मार डाला।

24 यहूदा के लोग मरुभूमि में सामना करने के बिन्दु पर आए। उन्होंने शत्रु की विशाल सेना को देखा। किन्तु उन्होंने केवल शवो को भूमि पर पड़े देखा। कोई व्यक्ति बचा न था। 25 यहोशापात और उसकी सेना शवों से बहुमूल्य चीजें लेने आई। उन्हें बहुत से जानवर, धन, वस्त्र और कीमती चीज़ें मिलीं। यहोशापात और उसकी सेना ने उन्हें अपने लिये ले लिया। चीज़ें उससे अधिक थीं जितना यहोशापात और उसकी सेना ले जा सकती थी। उनको शवों से कीमती चीज़ें इकट्ठी करने में तीन दिन लगे, क्योंकि वे बहुत अधिक थीं। 26 चौथे दिन यहोशापात और उसकी सेना बराका की घाटी में मिले। उन्होंने उस स्थान पर यहोवा की स्तुति की। यही कारण है कि उस स्थान का नाम आज तक “बराका की घाटी” है।

27 तब यहोशापात यहूदा और यरूशलेम के लोगों को यरूशलेम लौटा कर ले गया। यहोवा ने उन्हें अत्यन्त प्रसन्न किया क्योंकि उनके शत्रु पराजित हो गये थे। 28 वे यरूशलेम में वीणा सितार और तुरहियों के साथ आये और यहोवा के मन्दिर में गए।

29 सभी देशों के सारे राज्य यहोवा से भयभीत थे क्योंकि उन्होंने सुना कि यहोवा इस्राएल के शत्रुओं से लड़ा। 30 यही कारण है कि यहोशापात के राज्य में शान्ति रही। यहोशापात के परमेश्वर ने उसे चारों ओर से शान्ति दी।

यहोशापात के शासन का अन्त

31 यहोशापात ने यहूदा देश पर शासन किया। यहोशापात ने जब शासन आरम्भ किया तो वह पैंतीस वर्ष का था। उसने पच्चीस वर्ष यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम अजूबा था। अजूबा शिल्ही की पुत्री थी। 32 यहोशापात सच्चे मार्ग पर अपने पिता आसा की तरह रहा। यहोशापात, आसा के मार्ग का अनुसरण करने से मुड़ा नहीं। यहोशापात ने यहोवा की दृष्टि में उचित किया। 33 किन्तु उच्च स्थान नहीं हटाये गये और लोगों ने अपना हृदय उस परमेश्वर का अनुसरण करने में नहीं लगाया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे।

34 यहोशापात ने आरम्भ से अन्त तक जो कुछ किया वह येहू की रचनाओं में लिखा है। येहू के पिता का नाम हनानी था। ये बातें इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखी हुई हैं।

35 कुछ समय पश्चात यहूदा के राजा यहोशापात ने इस्राएल के राजा अहज्याह के साथ सन्धि की। अहज्याह ने बुरा किया। 36 यहोशापात ने अहज्याह का साथ तर्शीश नगर में जहाज जाने देने में दिया। उन्होंने जहाजों को एस्योन गेबेर नगर में बनाया। 37 तब एलीआजर ने यहोशापात के विरुद्ध कहा। एलीआजर के पिता का नाम दोदावाह था। एलीआजर मारेशा नगर का था। उसने कहा, “यहोशापात, तुम अहज्याह के साथ मिल गये हो, यही कारण है कि यहोवा तुम्हारे कार्य को नष्ट करेगा।” जहाज टूट गए, अत: यहोशापात और अहज्याह उन्हें तर्शीश नगर को न भेज सके।

21 तब यहोशापात मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। उसे दाऊद के नगर में दफनाया गया। यहोराम यहोशापात के स्थान पर नया राजा हुआ। यहोराम यहोशापात का पुत्र था। यहोराम के भाई अजर्याह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह थे। वे लोग यहोशापात के पुत्र थे। यहोशापात यहूदा का राजा था। यहोशापात ने अपने पुत्रों को चाँदी, सोना और कीमती चीज़ें भेंट में दीं। उसने उन्हें यहूदा में शक्तिशाली किले भी दिये। किन्तु यहोशापात ने राज्य यहोराम को दिया क्योंकि यहोराम सबसे बड़ा पुत्र था।

यहूदा का राजा यहोराम

यहोराम ने अपने पिता का राज्य प्राप्त किया और अपने को शक्तिशाली बनाया। तब उसने तलवार का उपयोग अपने सभी भाईयों को मारने के लिये किया। उसने इस्राएल के कुछ प्रमुखों को भी मार डाला। यहोराम ने जब शासन आरम्भ किया तो वह बत्तीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में आठ वर्ष तक शासन किया। वह उसी तरह रहा जैसे इस्राएल के राजा रहते थे। वह उसी प्रकार रहा जिस प्रकार अहाब का परिवार रहता था। यह इसलिये हुआ कि यहोराम ने अहाब की पुत्री से विवाह किया और यहोराम ने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया। किन्तु यहोवा दाऊद के परिवार को नष्ट नहीं करना चाहता था क्योंकि उसने दाऊद के साथ वाचा की थी। यहोवा ने वचन दिया था कि दाऊद और उसकी सन्तान का एक वंश सदैव चलता रहेगा।

यहोराम के समय में, एदोम यहूदा के अधिकार क्षेत्र से बाहर निकल गया। एदोम के लोगों ने अपना राजा चुन लिया। इसलिये यहोराम अपने सभी सेनापतियों और रथों के साथ एदोम गया। एदोमी सेना ने यहोराम और उसके रथ के रथपतियों को घेर लिया। किन्तु यहोराम ने रात में युद्ध करके अपने निकलने का रास्ता ढूँढ लिया। 10 उस समय से अब तक एदोम का देश यहूदा के विरुद्ध विद्रोही रहा है। लिब्ना नगर के लोग भी यहोराम के विरुद्ध हो गए। यह इसलिए हुआ कि यहोराम ने पूर्वजों के, यहोवा परमेश्वर को छोड़ दिया। 11 यहोराम ने उच्च स्थान भी यहूदा के पहाड़ियों पर बनाए। यहोराम ने यरूशलेम के लोगों को, परमेश्वर जो चाहता है उसे करने से मना किया वह यहूदा के लोगों को यहोवा से दूर ले गया।

12 एलिय्याह नबी से यहोराम को एक सन्देश मिला। सन्देश में यह कहा गया था:

“यह वह है जो परमेश्वर यहोवा कहता है। यही वह परमेश्वर है जिसका अनुसरण तुम्हारा पूर्वज दाऊद करता था। यहोवा कहता है, ‘यहोराम, तुम उस प्रकार नहीं रहे जिस प्रकार तुम्हारा पिता यहोशापात रहा। तुम उस प्रकार नहीं रहे जिस प्रकार यहूदा का राजा आसा रहा। 13 किन्तु तुम उस प्रकार रहे जिस प्रकार इस्राएल के राजा रहे। तुमने यहूदा और यरूशलेम के लोगों को वह काम करने से रोका है जो यहोवा चाहता है। यही अहाब और उसके परिवार ने किया। वे यहोवा के प्रति विश्वासयोग्य न रहे। तुमने अपने भाईयों को मार डाला। तुम्हारे भाई तुमसे अच्छे थे। 14 अत: अब यहोवा शीघ्र ही तुम्हारे लोगों को बहुत अधिक दण्ड देगा। यहोवा तुम्हारे बच्चों, पत्नियों और तुम्हारी सारी सम्पत्ति को दण्ड देगा। 15 तुम्हें आँतों की भयंकर बीमारी होगी। यह प्रतिदिन अधिक बिगड़ती जायेगी। तब तुम्हारी भंयकर बीमारी के कारण तुम्हारी आँतें बाहर निकल आएंगी।’”

16 यहोवा ने पलिश्तियों और कूशी लोगों के पास रहने वाले अरब लोगों को यहोराम से रूष्ट किया। 17 उन लोगों ने यहूदा देश पर आक्रमण कर दिया। वे राजमहल की सारी सम्पत्ति और यहोराम के पुत्रों और पत्नियों को ले गए। केवल यहोराम का सबसे छोटा पुत्र छोड़ दिया गया। यहोराम के सबसे छोटे पुत्र का नाम यहोआहाज था।

18 उन चीज़ों के होने के बाद यहोवा ने यहोराम की आँतों में ऐसा रोग उत्पन्न किया जिसका उपचार न हो सका। 19 तब यहोराम की आँतें, दो वर्ष बाद, उसकी बीमारी के कारण, बाहर आ गईं। वह बहुत बुरी पीड़ा में मरा। यहोराम के सम्मान में लोगों ने आग की महाज्वाला नहीं जलाई जैसा उन्होंने उसके पिता के लिये किया था। 20 यहोराम उस समय बत्तीस वर्ष का था जब वह राजा हुआ था। उसने यरुश्लेम में आठ वर्ष शासन किया। जब यहोराम मरा तो कोई व्यक्ति दु:खी नहीं हुआ। लोगों ने यहोराम को दाऊद के नगर में दफनाया किन्तु उन कब्रों में नहीं जहाँ राजा दफनाये जाते हैं।

यहूदा का राजा अहज्याह

22 यरूशलेम के लोगों ने अहज्याह को यहोराम के स्थान पर नया राजा होने के लिये चुना। अहज्याह यहोराम का सबसे छोटा पुत्र था। अरब लोगों के साथ जो लोग यहोराम के डेरों पर आक्रमण करने आए थे उन्होंने यहोराम के अन्य पुत्रों को मार डाला था। अत: यहूदा में अहज्याह ने शासन करना आरम्भ किया। अहज्याह ने जब शासन करना आरम्भ किया तब वह बाईस वर्ष का था।[g] अहज्याह ने यरूशलेम में एक वर्ष शासन किया। उसकी माँ का नाम अतल्याह था। अतल्याह के पिता का नाम ओम्री था। अहज्याह भी वैसे ही रहा जैसे अहाब का परिवार रहता था। वह उस प्रकार रहा क्योंकि उसकी माँ ने उसे गलत काम करने के लिये प्रोत्साहित किया। अहज्याह ने यहोवा की दृष्टि में बुरे काम किये। यही अहाब के परिवार ने किया था। अहाब के परिवार ने अहज्याह को उसके पिता के मरने के बाद सलाह दी। उन्होंने अहज्याह को बुरी सलाह दी। उस बुरी सलाह ने उसे मृत्यु तक पहुँचा दिया। अहज्याह ने उसी सलाह का अनुसरण किया जो अहाब के परिवार ने उसे दी। अहज्याह राजा योराम के साथ अराम के राजा हज़ाएल के विरुद्ध गिलाद के रामोत नगर में गया। योराम के पिता का नाम अहाब था जो इस्राएल का राजा था। किन्तु अर्मिया के लोगों ने योराम को युद्ध में घायल कर दिया। योराम लौटकर यिज्रेल नगर को स्वस्थ होने के लिये गया। वह तब घायल हुआ था जब वह अराम के राजा हजाएल के विरुद्ध रामोत में युद्ध कर रहा था। तब अहज्याह योराम से मिलने यिज्रेल नगर को गया। अहज्याह के पिता का नाम यहोराम था। वह यहूदा का राजा था। योराम के पिता का नाम अहाब था। योराम यिज्रेल नगर में था क्योंकि वह घायल था।

परमेश्वर ने अहज्याह की मृत्यु तब करवा दी जब वह योराम से मिलने गया। अहज्याह पहुँचा और योराम के साथ येहू से मिलने गया। येहू के पिता का नाम निमशी था। यहोवा ने येहू को अहाब के परिवार को नष्ट करने के लिये चुना। येहू अहाब के परिवार को दण्ड दे रहा था। येहू ने यहूदा के प्रमुखों और अहज्याह के उन सम्बन्धियों का पता लगाया जो अहज्याह की सेवा करते थे। येहू ने यहूदा के उन प्रमुखों और अहज्याह के सम्बन्धियों को मार डाला। तब येहू अहज्याह की खोज में था। येहू के लोगों ने उसे उस समय पकड़ लिया जब वह शोमरोन नगर में छिपने का प्रयत्न कर रहा था। वे अहज्याह को येहू के पास लाए। उन्होंने अहज्याह को मार दिया और उसे दफना दिया। उन्होंने कहा, “अहज्याह यहोशापात का वंशज है। यहोशापात ने पूरे हृदय से यहोवा का अनुसरण किया था।” अहज्याह के परिवार में वह शक्ति नहीं थी कि यहूदा के राज्य को अखण्ड रख सके।

रानी अतल्याह

10 अतल्याह अहज्याह की माँ थी। जब उसने देखा कि उसका पुत्र मर गया तो उसने यहूदा में राजा के सभी पुत्रों को मार डाला। 11 किन्तु यहोशावत ने अहज्याह के पुत्र योआश को लिया और उसे छिपा दिया। यहोशावत ने योआश और उसकी धाय को अपने शयनकक्ष के भीतर रखा। यहोशावत राजा यहोराम की पुत्री थी। वह यहोयादा की पत्नी भी थी। यहोयादा एक याजक था और यहोशावत अहज्याह की बहन थी। अतल्याह ने योआश को नहीं मारा क्योंकि यहोशावत ने उसे छिपा दिया था। 12 योआश याजक के साथ परमेश्वर के मन्दिर में छ: वर्ष तक छिपा रहा। उस काल में अतल्याह ने रानी के रूप में देश पर शासन किया।

याजक यहोयादा और राजा योआश

23 छ: वर्ष, बाद यहोयादा ने अपनी शक्ति दिखाई। उसने नायकों के साथ सन्धि की। वे नायक: यरोहाम का पुत्र अजर्याह, यहोहानान का पुत्र इश्माएल, ओबेद का पुत्र अजर्याह, अदायाह का पुत्र मासेयाह और जिक्री का पुत्र एलीशापात थे। वे यहूदा के चारों ओर गए और यहूदा के सभी नगरों से उन्होंने लेवीवंशियों को इकट्ठा किया। उन्होंने इस्राएल के परिवारों के प्रमुखों को भी इकट्ठा किया। तब वे यरूशलेम गए। सभी लोगों ने एक साथ मिलकर राजा के साथ परमेश्वर के मन्दिर में एक सन्धि की।

यहोयादा ने इन लोगों से कहा, “राजा का पुत्र शासन करेगा। यही वह वचन है जो यहोवा ने दाऊद के वंशजों को दिया था। अब, तुम्हें यह अवश्य करना चाहिए: याजकों औऱ लेवीयों सब्त के दिन तुममें से जो काम पर जाते हैं उनका एक तिहाई द्वार की रक्षा करेगा। तुम्हारा एक तिहाई राजमहल पर रहेगा और तुम्हारा एक तिहाई प्रारम्भिक फाटक पर रहेगा। किन्तु अन्य सभी लोग यहोवा के मन्दिर के आँगन में रहेंगे। किसी भी व्यक्ति को यहोवा के मन्दिर में न आने दो। केवल सेवा करने वाले याजकों और लेवीवंशियों को पवित्र होने के कारण, यहोवा के मन्दिर में आने की स्वीकृति है। किन्तु अन्य लोग वह कार्य करेंगे जो यहोवा ने दे रखा है। लेवीवंशी राजा के साथ रहेंगे। हर एक व्यक्ति अपनी तलवार अपने साथ रखेगा। यदि कोई व्यक्ति मन्दिर में प्रवेश करने की कोशिश करता है तो उस व्यक्ति को मार डालो। तुम्हें राजा के साथ रहना है, वह जहाँ कहीं भी जाये।”

लेवीवंशी और यहूदा के सभी लोगों ने याजक यहोयादा ने जो आदेश दिया, उसका पालन किया। याजक यहोयादा ने याजकों के समूह में से किसी को छूट न दी। इस प्रकार हर एक नायक और उसके सभी लोग सब्त के दिन उनके साथ अन्दर आए जो सब्त के दिन बाहर गए थे। याजक यहोयादा ने वे भाले तथा बड़ी और छोटी ढालें अधिकारियों को दीं जो राजा दाऊद की थीं। वे हथियार परमेश्वर के मन्दिर में रखे थे। 10 तब यहोयादा ने लोगों को बताया कि उन्हें कहाँ खड़ा होना है। हर एक व्यक्ति अपने हथियार अपने हाथ में लिये था। पुरुष मन्दिर की दांयी ओर से बांयी ओर तक लगातार खड़े थे। वे वेदी, मन्दिर और राजा के निकट खड़े थे। 11 वे राजा के पुत्र को बाहर लाए और उसे मुकुट पहना दिया। उन्होंने उसे व्यवस्था के पुस्तक की एक प्रति दी।[h] तब उन्होंने योआश को राजा बनाया। यहोयादा औऱ उसके पुत्रों ने योआश का अभिषेक किया। उन्होंने कहा, “राजा दीर्घायु हो!”

12 अतल्याह ने मन्दिर की ओर दौड़ते हुए और राजा की प्रशंसा करते हुए लोगों का शोर सुना। वह यहोवा के मन्दिर पर लोगों के पास आई। 13 उसने नजर दौड़ाई और राजा को देखा। राजा राज स्तम्भ के साथ सामने वाले द्वार पर खड़ा था। अधिकारी और लोग जो तुरही बजाते थे, राजा के पास थे। देश के लोग प्रसन्न थे और तुरही बजा रहे थे। गायक संगीत वाद्यों को बजा रहे थे। गायक प्रशंसा के गायन में लोगों का नेतृत्व कर रहे थे। तब अतल्याह ने अपने वस्त्रों को फाड़ डाला, और उसने कहा, “षड़यन्त्र!”

14 याजक यहोयादा सेना के नायकों को बाहर लाया। उसने उनसे कहा, “अतल्याह को, सेना से, बाहर ले आओ। अपनी तलवार का उपयोग उस व्यक्ति को मार डालने के लिये करो जो उसके साथ जाता है।” तब याजक ने सैनिकों को चेतावनी दी, “अतल्याह को यहोवा के मन्दिर में मत मारो।” 15 तब उन लोगों ने अतल्याह को वश में कर लिया जब वह राजमहल के अश्व द्वार पर आई। तब उन्होंने उसी स्थान पर उसे मार डाला।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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