Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
8 जब तुम परमेश्वर को नहीं जानते थे, उस समय तुम उनके दास थे, जो वास्तव में ईश्वर हैं ही नहीं. 9 किन्तु अब, जब तुमने परमेश्वर को जान लिया है, परन्तु यह कहें कि परमेश्वर द्वारा जान लिये गये हो, तो फिर तुम कमज़ोर तथा दयनीय आदि शिक्षाओं का दास बनने के लिए क्यों लौट रहे हो? क्या तुम्हें दोबारा उन्हीं का दास बनने की लालसा है? 10 तुम तो विशेष दिवस, माह, ऋतु तथा वर्ष मनाते जा रहे हो. 11 मुझे तुम्हारे लिए आशंका है कि कहीं तुम्हारे लिए मेरा परिश्रम व्यर्थ ही तो नहीं गया.
12 प्रियजन, मैं तुमसे विनती करता हूँ कि तुम मेरे समान बन जाओ क्योंकि मैं भी तुम्हारे समान बन गया हूँ. तुमने मुझे कोई हानि नहीं पहुंचाई. 13 तुम्हें याद होगा कि मैंने पहली बार अपनी अस्वस्थता की स्थिति में तुम्हें ईश्वरीय सुसमाचार सुनाया था 14 परन्तु मेरी शारीरिक स्थिति के कारण, जो तुम्हारे लिए एक परख थी, तुमने न तो मुझसे घृणा की और न ही मुझसे मुख मोड़ा, परन्तु मुझे इस प्रकार स्वीकार किया, मानो मैं परमेश्वर का स्वर्गदूत हूँ, मसीह येशु हूँ. 15 अब कहाँ गया तुम्हारा आनन्द मनाना? मैं स्वयं गवाह हूँ कि यदि सम्भव होता तो उस समय तुम अपनी आँखें तक निकाल कर मुझे दे देते. 16 क्या सिर्फ सच बोलने के कारण मैं तुम्हारा शत्रु हो गया?
17 वे तुम्हें अपने पक्ष में करने को उत्सुक हैं, किन्तु किसी भले मतलब से नहीं; उनका मतलब तो तुम्हें मुझसे अलग करना है कि तुम उनके शिष्य बन जाओ. 18 हमेशा ही अच्छे उद्धेश्य के लिए उत्साही होना उत्तम होता है और मात्र उसी समय नहीं, जब मैं तुम्हारे मध्य उपस्थित होता हूँ. 19 हे बालकों, तुममें मसीह का स्वरूप पूरी तरह विकसित होने तक मैं दोबारा प्रसव-पीड़ा में रहूँगा. 20 बड़ी अभिलाषा थी कि इस समय मैं तुम्हारे पास होता और मीठी वाणी में तुमसे बातें करता, क्योंकि तुम्हारे विषय में मैं दुविधा में पड़ा हूँ.
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