Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
विक्षिप्त प्रेतात्मा से पीड़ित की मुक्ति
(मत्ति 17:14-21; मारक 9:17-29)
37 अगले दिन जब वे पर्वत से नीचे आए, एक बड़ी भीड़ वहाँ इकट्ठा थी. 38 भीड़ में से एक व्यक्ति ने ऊँचे शब्द में पुकार कर कहा, “गुरुवर! आप से मेरी विनती है कि आप मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें क्योंकि वह मेरी इकलौती सन्तान है. 39 एक प्रेत अक्सर उस पर प्रबल हो जाता है और वह सहसा चीखने लगता है. प्रेत उसे भूमि पर पटक देता है और मेरे पुत्र को ऐंठन प्रारम्भ हो जाती है और उसके मुख से फेन निकलने लगता है. यह प्रेत कदाचित ही उसे छोड़ कर जाता है—वह उसे नाश करने पर उतारु है. 40 मैंने आपके शिष्यों से विनती की थी कि वे उसे मेरे पुत्र में से निकाल दें किन्तु वे असफल रहे.”
41 “अरे ओ अविश्वासी और बिगड़ी हुई पीढ़ी!” मसीह येशु ने कहा, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, कब तक धीरज रखूंगा? यहाँ लाओ अपने पुत्र को!”
42 जब वह बालक पास आ ही रहा था, प्रेत ने उसे भूमि पर पटक दिया, जिससे उसके शरीर में ऐंठन प्रारम्भ हो गई किन्तु मसीह येशु ने प्रेत को डाँटा, बालक को स्वस्थ किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया. 43 परमेश्वर का प्रताप देख सभी चकित रह गए.
दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की दूसरी घोषणा
(मत्ति 17:22, 23; मारक 9:30-32)
जब सब लोग इस घटना पर अचम्भित हो रहे थे मसीह येशु ने अपने शिष्यों से कहा,
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