Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
ज्ञानियों के मध्य मसीह येशु
41 मसीह येशु के माता-पिता प्रतिवर्ष फ़सह उत्सव के उपलक्ष्य में येरूशालेम जाया करते थे. 42 जब मसीह येशु की अवस्था बारह वर्ष की हुई, तब प्रथा के अनुसार वह भी अपने माता-पिता के साथ उत्सव के लिए येरूशालेम गए. 43 उत्सव की समाप्ति पर जब उनके माता-पिता घर लौट रहे थे, बालक येशु येरूशालेम में ही ठहर गए. उनके माता-पिता इससे अनजान थे. 44 यह सोच कर कि बालक यात्री-समूह में ही कहीं होगा, वे उस दिन की यात्रा में आगे बढ़ते गए. जब उन्होंने परिजनों-मित्रों में मसीह येशु को खोजना प्रारम्भ किया, 45 मसीह येशु उन्हें उनके मध्य नहीं मिले इसलिए वे उन्हें खोजने येरूशालेम लौट गए. 46 तीन दिन बाद उन्होंने मसीह येशु को मन्दिर-परिसर में शिक्षकों के साथ बैठा हुआ पाया. वहाँ बैठे हुए वह उनकी सुन रहे थे तथा उनसे प्रश्न भी कर रहे थे. 47 जिस किसी ने भी उनको सुना, वह उनकी समझ और उनके उत्तरों से चकित थे. 48 उनके माता-पिता उन्हें वहाँ देख चकित रह गए. उनकी माता ने उनसे प्रश्न किया, “पुत्र! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हारे पिता और मैं तुम्हें कितनी बेचैनी से खोज रहे थे!”
49 “क्यों खोज रहे थे आप मुझे?” मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या आपको यह मालूम न था कि मेरा मेरे पिता के घर में ही होना उचित है?” 50 मरियम और योसेफ़ को मसीह येशु की इस बात का अर्थ समझ नहीं आया.
51 मसीह येशु अपने माता-पिता के साथ नाज़रेथ लौट गए और उनके आज्ञाकारी रहे. उनकी माता ने ये सब विषय हृदय में सँजोए रखे. 52 मसीह येशु बुद्धि, ड़ीलड़ौल तथा परमेश्वर और मनुष्यों की कृपादृष्टि में बढ़ते चले गए.
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