Book of Common Prayer
परमेश्वर की अटल प्रतिज्ञा
13 परमेश्वर ने जब अब्राहाम से प्रतिज्ञा की तो शपथ लेने के लिए उनके सामने स्वयं से बड़ा और कोई न था, इसलिए उन्होंने अपने ही नाम से यह शपथ ली: 14 “निश्चयत: मैं तुम्हें आशीष दूँगा तथा तुम्हारे वंश को बढ़ाता जाऊँगा!” 15 इसलिए अब्राहाम धीरज रखकर प्रतीक्षा करते रहे तथा उन्हें वह प्राप्त हुआ, जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी.
16 मनुष्य तो स्वयं से बड़े व्यक्ति की शपथ लेता है; तब दोनों पक्षों के लिए पुष्टि के रूप में ली गई शपथ सभी झगड़ों का अन्त कर देती है. 17 इसी प्रकार परमेश्वर ने इस उद्धेश्य से शपथ ली कि वह प्रतिज्ञा के वारिसों को अपने न बदलने वाले उद्धेश्य के विषय में पूरी तरह संतुष्ट करें 18 कि दो न बदलने वाली वस्तुओं द्वारा, जिनके विषय में परमेश्वर झूठे साबित हो ही नहीं सकते; हमें, जिन्होंने उनकी शरण ली है, उस आशा को सुरक्षित रखने का दृढ़ता से ढांढ़स प्राप्त हो, जो हमारे सामने प्रस्तुत की गई है. 19 यही आशा हमारे प्राण का लंगर है—स्थिर तथा दृढ़—जो उस पर्दे के भीतर पहुंचता भी है, 20 जहाँ मसीह येशु ने अगुवा होकर हमारे लिए मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला में होकर एक अनन्त काल का महापुरोहित बन कर प्रवेश किया.
शोमरोनी स्त्री और मसीह येशु
4 जब मसीह येशु को यह मालूम हुआ कि फ़रीसियों के मध्य उनके विषय में चर्चा हो रही है कि वह योहन से अधिक शिष्य बनाते और बपतिस्मा देते हैं; 2 यद्यपि स्वयं मसीह येशु नहीं परन्तु उनके शिष्य बपतिस्मा देते थे, 3 तब वह यहूदिया प्रदेश छोड़ कर पुनः गलील प्रदेश को लौटे 4 और उन्हें शोमरोन प्रदेश में से हो कर जाना पड़ा. 5 वह शोमरोन प्रदेश के सूख़ार नामक नगर पहुँचे. यह नगर उस भूमि के पास है, जो याक़ोब ने अपने पुत्र योसेफ़ को दी थी. 6 याक़ोब का कुआँ भी वहीं था. यात्रा से थके मसीह येशु कुएँ के पास बैठ गए. यह लगभग छठे घण्टे का समय था.
7 उसी समय शोमरोनवासी एक स्त्री उस कुएँ से जल भरने आई. मसीह येशु ने उससे कहा, “मुझे पीने के लिए जल दो.” 8 उस समय मसीह येशु के शिष्य नगर में भोजन लेने गए हुए थे.
9 इस पर आश्चर्य करते हुए उस शोमरोनी स्त्री ने मसीह येशु से पूछा, “आप यहूदी हो कर मुझ शोमरोनी से जल कैसे माँग रहे हैं!”—यहूदी शोमरोनवासियों से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखते थे.
10 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि तुम परमेश्वर के वरदान को जानतीं और यह पहचानतीं कि वह कौन है, जो तुमसे कह रहा है, ‘मुझे पीने के लिए जल दो’, तो तुम उससे मांगतीं और वह तुम्हें जीवन का जल देता.”
11 स्त्री ने कहा, “किन्तु श्रीमन, आपके पास तो जल निकालने के लिए कुछ भी नहीं है और कुआँ बहुत गहरा है; जीवन का जल आपके पास कहाँ से आया! 12 आप हमारे कुलपिता याक़ोब से बढ़कर तो हैं नहीं, जिन्होंने हमें यह कुआँ दिया, जिसमें से स्वयं उन्होंने, उनकी सन्तान ने और उनके पशुओं ने भी पिया.” 13 मसीह येशु ने कहा, “कुएँ का जल पी कर हर एक व्यक्ति फिर प्यासा होगा किन्तु जो व्यक्ति मेरा दिया हुआ जल पिएगा वह आजीवन किसी भी प्रकार से प्यासा न होगा. 14 और वह जल जो मैं उसे दूँगा, उसमें से अनन्त काल के जीवन का सोता बन कर फूट निकलेगा.”
15 यह सुनकर स्त्री ने उनसे कहा, “श्रीमन, आप मुझे भी वह जल दीजिए कि मुझे न प्यास लगे और न ही मुझे यहाँ तक जल भरने आते रहना पड़े.”
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