Book of Common Prayer
पुत्र में परमेश्वर का सारा सम्वाद
1 पूर्व में परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से हमारे पूर्वजों से अनेक समय खण्डों में विभिन्न प्रकार से बातें कीं 2 किन्तु अब इस अन्तिम समय में उन्होंने हमसे अपने पुत्र के द्वारा बातें की हैं, जिन्हें परमेश्वर ने सारी सृष्टि का वारिस चुना और जिनके द्वारा उन्होंने युगों की सृष्टि की. 3 पुत्र ही परमेश्वर की महिमा का प्रकाश तथा उनके तत्व का प्रतिबिंब है. वह अपने सामर्थ्य के वचन से सारी सृष्टि को स्थिर बनाये रखता है. जब वह हमें हमारे पापों से धो चुके, वह महिमामय ऊँचे पर विराजमान परमेश्वर की दायीं ओर में बैठ गए. 4 वह स्वर्गदूतों से उतने ही उत्तम हो गए जितनी स्वर्गदूतों से उत्तम उन्हें प्रदान की गई महिमा थी.
पुत्र स्वर्गदूतों से उत्तम हैं
5 भला किस स्वर्गदूत से परमेश्वर ने कभी यह कहा:
“तुम मेरे पुत्र हो,
आज मैं तुम्हारा पिता हो गया हूँ?”
तथा यह:
“उसके लिए मैं पिता हो जाऊँगा और वह मेरा पुत्र?”
6 और तब, वह अपने पहिलौठे पुत्र को संसार के सामने प्रस्तुत करते हुए कहते हैं:
“परमेश्वर के सभी स्वर्गदूत उनके पुत्र की वन्दना करें”.
7 स्वर्गदूतों के विषय में उनका कहना है:
“वह अपने स्वर्गदूतों को हवा में और अपने सेवकों को
आग की लपटों में बदल देते हैं”.
8 किन्तु पुत्र के विषय में उनका कथन है:
“परमेश्वर! तुम्हारा सिंहासन युगानुयुग का है,
तथा तुम अपने राज्य का शासन न्याय के साथ करोगे.
9 तुमने धार्मिकता का पक्ष लिया और अधर्म से घृणा की है.
तुम्हारे साथियों में से तुम्हें चुनकर मैंने आनन्द के तेल से तुम्हारा अभिषेक किया है”.
10 और,
“प्रभु! तुमने प्रारम्भ में ही पृथ्वी की नींव रखी तथा आकाशमण्डल
तुम्हारे ही हाथों की कारीगरी है.
11 वे तो मिट जाएँगे किन्तु तुम्हारा अस्तित्व सनातन है.
वे सभी वस्त्रों जैसे पुराने हो जाएँगे.
12 तुम उन्हें चादर के समान लपेट दोगे;
उन्हें वस्त्र के समान बदल दिया जाएगा—किन्तु तुम वैसे ही रहोगे.
तुम्हारे जीवनकाल का अन्त कभी न होगा”.
13 भला किस स्वर्गदूत से परमेश्वर ने यह कहा:
मेरी दायीं ओर में बैठ जाओ,
जब तक मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे चरणों की चौकी न बना दूँ?
14 क्या सभी स्वर्गदूत सेवा के लिए चुनी आत्माएँ नहीं हैं कि वे उनकी सेवा करें, जो उद्धार पाने वाले हैं?
परमेश्वर-शब्द का शरीर धारण करना
1 आदि में शब्द था, शब्द परमेश्वर के साथ था और शब्द परमेश्वर था. 2 यही शब्द आदि में परमेश्वर के साथ था.
3 सारी सृष्टि उनके द्वारा उत्पन्न हुई. सारी सृष्टि में कुछ भी उनके बिना उत्पन्न नहीं हुआ. 4 जीवन उन्हीं में था और वह जीवन मानवजाति की ज्योति था. 5 वह ज्योति अन्धकार में चमकती रही. अन्धकार उस पर प्रबल न हो सका.
बपतिस्मा देने वाले योहन की गवाही.
6 परमेश्वर ने योहन नामक एक व्यक्ति को भेजा 7 कि वह ज्योति को देखें और उसके गवाह बनें कि लोग उनके माध्यम से ज्योति में विश्वास करें. 8 वह स्वयं ज्योति नहीं थे किन्तु ज्योति की गवाही देने आए थे. 9 वह सच्ची ज्योति, जो हर एक व्यक्ति को प्रकाशित करती है, संसार में आने पर थी.
10 वह संसार में थे और संसार उन्हीं के द्वारा बनाया गया फिर भी संसार ने उन्हें न जाना. 11 वह अपनी सृष्टि में आए किन्तु उनके अपनों ने ही उन्हें ग्रहण नहीं किया 12 परन्तु जितनों ने उन्हें ग्रहण किया अर्थात् उनके नाम में विश्वास किया, उन सबको उन्होंने परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया.
13 जो न तो लहू से, न शारीरिक इच्छा से और न मानवीय इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं.
14 शब्द ने शरीर धारण कर हमारे मध्य तम्बू के समान वास किया और हमने उनकी महिमा को अपना लिया—ऐसी महिमा को, जो पिता के कारण एकलौते पुत्र की होती है—अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण.
15 उन्हें देख कर योहन ने घोषणा की, “यह वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा था, ‘वह, जो मेरे बाद आ रहे हैं, वास्तव में मुझसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि वह मुझसे पहले थे.’” 16 उनकी परिपूर्णता के कारण हम सबने अनुग्रह पर अनुग्रह प्राप्त किया. 17 व्यवस्था मोशेह के द्वारा दी गयी थी, किन्तु अनुग्रह और सच्चाई मसीह येशु द्वारा आए. 18 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा, केवल परमेश्वर-पुत्र के अलावा; जो पिता से हैं; उन्हीं ने हमें परमेश्वर से अवगत कराया.
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