Book of Common Prayer
बवण्डर तथा यानध्वंस
9 बहुत अधिक समय खराब हो चुका था. हमारी जलयात्रा खतरे से भर गई थी क्योंकि सर्दी के मौसम में तय किया हुआ प्रायश्चित बलि दिवस बीत चुका था. इसलिए पौलॉस ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, 10 “मुझे साफ़ दिखाई दे रहा है कि हमारी यह यात्रा हानिकारक है. इसके कारण जलयान व सामान की ही नहीं परन्तु स्वयं हमारे जीवनों की घोर हानि होने पर है.” 11 किन्तु सेनापति ने पौलॉस की चेतावनी की अनसुनी कर जलयान चालक तथा जलयान स्वामी का सुझाव स्वीकार कर लिया, 12 ठण्ड़ के दिनों में यह बंदरगाह इस योग्य नहीं रह जाता था कि इसमें ठहरा जाए. इसलिए बहुमत था कि आगे बढ़ा जाए. उन्होंने इस आशा में यात्रा शुरु कर दी कि किसी प्रकार ठण्ड़ शुरु होने के पहिले फ़ॉयनिके नगर तो पहुँच ही जाएँगे. यह क्रेते द्वीप का बंदरगाह था, जिसका द्वार दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशा में है.
13 जब सामान्य दक्षिणी वायु बहने लगी, उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति हो गई है. इसलिए उन्होंने लंगर उठा लिया और क्रेते द्वीप के किनारे समुद्र से होते हुए आगे बढ़े. 14 वे अभी अधिक दूर न जा पाए थे कि यूराकिलो नामक भयंकर चक्रवाती हवा बहने लगी और 15 जलयान इसकी चपेट में आ गया. वह इस तेज़ हवा के थपेड़ों का सामना करने में असमर्थ था. इसलिए हमने यान को इसी हवा के बहाव में छोड़ दिया और हवा के साथ बहने लगे. 16 कौदा नामक एक छोटे द्वीप की ओर हवा के बहाव में बहते हुए हम बड़ी कठिनाई से जीवनरक्षक नाव को जलयान से बान्ध पाए. 17 उन्होंने जलयान को पेंदे से लेकर ऊपर तक रस्सों द्वारा अच्छी रीति से कस दिया और इस आशंका से कि कहीं उनका जलयान उथले समुद्र की रेत में फँस न जाए, उन्होंने लंगर को थोड़ा नीचे उतार कर जलयान को हवा के बहाव के साथ-साथ बहने के लिए छोड़ दिया.
18 अगले दिन तेज़ लहरों और भयंकर आँधी के थपेड़ों के कारण उन्होंने यान में लदा हुआ सामान फेंकना शुरु कर दिया. 19 तीसरे दिन वे अपने ही हाथों से जलयान के भारी उपकरणों को फेंकने लगे. 20 अनेक दिन तक न तो सूर्य ही दिखाई दिया और न ही तारे. हवा का बहाव तेज़ बना हुआ था इसलिए हमारे जीवित बचे रहने की सारी आशा धीरे-धीरे खत्म होती चली गई.
21 एक लम्बे समय तक भूखे रहने के बाद पौलॉस ने उनके मध्य खड़े हो कर यह कहा, “मित्रो, उत्तम तो यह होता कि आप लोग मेरा विचार स्वीकार करते और क्रेते द्वीप से आगे ही न बढ़ते जिससे इस हानि से बचा जा सकता. 22 अब आप से मेरी विनती है कि आप साहस न छोड़ें क्योंकि जलयान के अलावा किसी के भी जीवन की हानि नहीं होगी; 23 क्योंकि वह, जो मेरे परमेश्वर हैं और मैं जिनका सेवक हूँ, उनका एक स्वर्गदूत रात में मेरे पास आ खड़ा हुआ 24 और उसने मुझे धीरज दिया, ‘मत डर, पौलॉस, तुम्हें कयसर के सामने उपस्थित होना ही है. परमेश्वर ने अपनी करूणा में तुम्हें और तुम्हारे साथ यात्रा करनेवालों को जीवनदान दिया है.’
25 “इसलिए साथियो, साहस न छोड़ो क्योंकि मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ. ठीक वैसा ही होगा जैसा मुझे बताया गया है. 26 हम अवश्य ही किसी द्वीप के थल पर पहुँच जाएँगे.”
आयोग पर बारह शिष्यों का भेजा जाना
(मत्ति 10:1-15; मारक 6:7-13)
9 मसीह येशु ने बारहों शिष्यों को बुला कर उन्हें प्रेतों के निकालने तथा रोग दूर करने की सामर्थ्य और अधिकार प्रदान किया 2 तथा उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने तथा रोगियों को स्वस्थ करने के लिए भेज दिया. 3 मसीह येशु ने उन्हें निर्देश दिए, “यात्रा के लिए अपने साथ कुछ न रखना—न छड़ी, न झोला, न रोटी, न पैसा और न ही कोई बाहरी वस्त्र. 4 तुम जिस किसी घर में मेहमान हो कर रहो, नगर से विदा होने तक उसी घर के मेहमान बने रहना. 5 यदि लोग तुम्हें स्वीकार न करें तब उस नगर से बाहर जाते हुए अपने पैरों की धूलि झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध गवाही हो.” 6 वे चल दिए तथा सुसमाचार का प्रचार करते और रोगियों को स्वस्थ करते हुए सब जगह यात्रा करते रहे.
7 जो कुछ हो रहा था उसके विषय में हेरोदेस ने भी सुना और वह अत्यन्त घबरा गया क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे कि बपतिस्मा देने वाले योहन मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं. 8 कुछ अन्य कह रहे थे कि एलियाह प्रकट हुए हैं[a] तथा कुछ अन्यों ने दावा किया कि प्राचीन काल के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई दोबारा जीवित हो गया है 9 किन्तु हेरोदेस ने विरोध किया, “योहन का सिर तो स्वयं मैंने उड़वाया था, तब यह कौन है, जिसके विषय में मैं ये सब सुन रहा हूँ?” इसलिए हेरोदेस मसीह येशु से मिलने का प्रयास करने लगा.
लौट कर आए प्रेरितों का बखान
10 अपनी यात्रा से लौट कर प्रेरितों ने मसीह येशु के सामने अपने-अपने कामों का बखान किया. तब मसीह येशु उन्हें ले कर चुपचाप बैथसैदा नामक नगर चले गए. 11 किन्तु लोगों को इसके विषय में मालूम हो गया और वे वहाँ पहुँच गए. मसीह येशु ने सहर्ष उनका स्वागत किया और उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय में शिक्षा दी तथा उन रोगियों को चँगा किया, जिन्हें इसकी ज़रूरत थी.
पाँच हज़ार से अधिक लोगों को खिलाना
12 जब दिन ढलने पर आया तब बारहों प्रेरितों ने मसीह येशु के पास आ कर उन्हें सुझाव दिया, “भीड़ को विदा कर दीजिए कि वे पास के गाँवों में जा कर अपने ठहरने और भोजन की व्यवस्था कर सकें क्योंकि यह सुनसान जगह है.”
13 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हीं करो इनके भोजन की व्यवस्था!”
उन्होंने इसके उत्तर में कहा, “हमारे पास तो केवल पाँच रोटियां तथा दो मछलियां ही हैं; हाँ, यदि हम जा कर इन सबके लिए भोजन मोल ले आएँ तो यह सम्भव है.” 14 इस भीड़ में पुरुष ही लगभग पाँच हज़ार थे.
मसीह येशु ने शिष्यों को आदेश दिया, “इन्हें लगभग पचास-पचास के झुण्ड़ में बैठा दो.” 15 शिष्यों ने उन सबको भोजन के लिए बैठा दिया. 16 पाँचों रोटियां तथा दोनों मछलियां अपने हाथ में ले कर मसीह येशु ने स्वर्ग की ओर दृष्टि करते हुए उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद किया तथा उन्हें तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गए कि वे लोगों में इनको बाँटते जाएँ. 17 सब ने भरपेट खाया. शिष्यों ने तोड़ी हुई रोटियों तथा मछलियों के टुकड़े इकट्ठा किए, जिनसे बारह टोकरे भर गए.
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