Book of Common Prayer
पौलॉस येरूशालेम में
15 कुछ दिन बाद हमने तैयारी की और येरूशालेम के लिए चल दिए. 16 कयसरिया नगर के कुछ शिष्य भी हमारे साथ हो लिए. ठहरने के लिए हमें कुप्रोसवासी म्नेसॉन के घर ले जाया गया. वह सबसे पहिले के शिष्यों में से एक था.
17 येरूशालेम पहुँचने पर विश्वासियों ने बड़े आनन्दपूर्वक हमारा स्वागत किया. 18 अगले दिन पौलॉस हमारे साथ याक़ोब के निवास पर गए, जहाँ सभी प्राचीन इकट्ठा थे. 19 नमस्कार के बाद पौलॉस ने एक-एक करके वह सब बताना शुरु किया, जो परमेश्वर ने उनकी सेवा के माध्यम से अन्यजातियों के बीच किया था. 20 यह सब सुन, वे परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. उन्होंने पौलॉस से कहा, “देखिए, प्रियजन, यहूदियों में हज़ारों हैं जिन्होंने विश्वास किया है. वे सभी व्यवस्था के मजबूत समर्थक भी हैं. 21 उन्होंने यह सुन रखा है कि आप अन्यजातियों के बीच निवास कर रहे यहूदियों को यह शिक्षा दे रहे हैं कि मोशेह की व्यवस्था छोड़ दो, न तो अपने शिशुओं का ख़तना करो और न ही प्रथाओं का पालन करो. 22 अब बताइए, हम क्या करें? उन्हें अवश्य यह तो मालूम हो ही जाएगा कि आप यहाँ आए हुए हैं. 23 इसलिए हमारा सुझाव मानिए: यहाँ ऐसे चार व्यक्ति हैं, जिन्होंने शपथ ली है, 24 आप उनके साथ जाइए, शुद्ध होने की विधि पूरी कीजिए तथा उनके मुण्डन का खर्च उठाइए. तब सबको यह मालूम हो जाएगा कि जो कुछ भी आपके विषय में कहा गया है, उसमें कोई सच्चाई नहीं है और आप स्वयं व्यवस्था का पालन करते हैं.
25 “जहाँ तक अन्यजाति शिष्यों का प्रश्न है, हमने उन्हें अपना फैसला लिखकर भेज दिया है कि वे मूर्तियों को चढ़ाई भोजन सामग्री, लहू, गला घोंट कर मारे गए पशुओं के माँस के सेवन से तथा वेश्यागामी से परे रहें.”
26 अगले दिन पौलॉस ने इन व्यक्तियों के साथ जाकर स्वयं को शुद्ध किया. तब वह मन्दिर गए कि वह वहाँ उस तारीख की सूचना दें, जब उनकी शुद्ध करने की रीति की अवधि समाप्त होगी और उनमें से हर एक के लिए भेंट चढ़ाई जाएगी.
लेवी का बुलाया जाना
27 जब वह वहाँ से जा रहे थे, उनकी दृष्टि एक चुँगी लेने वाले पर पड़ी, जिनका नाम लेवी था. वह अपनी चौकी पर बैठे काम कर रहे थे. मसीह येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “आओ! मेरे पीछे हो लो!” 28 लेवी उठे तथा सभी कुछ वहीं छोड़ कर मसीह येशु के पीछे हो लिए.
29 मसीह येशु के सम्मान में लेवी ने अपने घर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया. बड़ी संख्या में चुँगी लेने वालों के अतिरिक्त वहाँ अनेक अन्य व्यक्ति भी इकट्ठा थे. 30 यह देख उस सम्प्रदाय के फ़रीसी और शास्त्री मसीह येशु के शिष्यों से कहने लगे, “तुम लोग चुँगी लेने वालों तथा अपराधियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?”
31 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं, रोगी को होती है; 32 मैं पृथ्वी पर धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ कि वे पश्चाताप करें.”
उपवास के प्रश्न का उत्तर
(मत्ति 9:14-17; मारक 2:18-22)
33 फ़रीसियों और शास्त्रियों ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा, “योहन के शिष्य अक्सर उपवास और प्रार्थना करते हैं. फ़रीसियों के शिष्य भी यही करते हैं किन्तु आपके शिष्य तो खाते-पीते रहते हैं.”
34 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या वर की उपस्थिति में अतिथियों से उपवास की आशा की जा सकती है? 35 किन्तु वह समय आएगा, जब वर उनके मध्य से हटा लिया जाएगा—वे उस समय उपवास करेंगे.”
36 मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया, “पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का जोड़ नहीं लगाया जाता. यदि कोई ऐसा करता है तब कोरा वस्त्र तो नाश होता ही है साथ ही वह जोड़ पुराने वस्त्र पर अशोभनीय भी लगता है. 37 वैसे ही नया दाखरस पुरानी मश्कों में रखा नहीं जाता. यदि कोई ऐसा करे तो नया दाखरस मश्कों को फाड़ कर बह जाएगा और मटकी भी नाश हो जाएगी. 38 नया दाखरस नई मटकियों में ही रखा जाता है. 39 पुराने दाखरस का पान करने के बाद कोई भी नए दाखरस की इच्छा नहीं करता क्योंकि वे कहते हैं, ‘पुराना दाखरस ही उत्तम है.’”
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