Book of Common Prayer
सुननेवालों की प्रतिक्रिया
24 जब पौलॉस अपने बचाव में यह कह ही रहे थे, फ़ेस्तुस ने ऊँचे शब्द में कहा, “पौलॉस! तुम्हारी तो मति भ्रष्ट हो गई है. तुम्हारी बहुत शिक्षा तुम्हें पागल बना रही है.” 25 किन्तु पौलॉस ने उत्तर दिया, “अत्यन्त सम्मान्य फ़ेस्तुस महोदय, मेरी मति भ्रष्ट नहीं हुई है! मेरा कथन सच और ज्ञान के है. 26 महाराज तो इन विषयों से परिचित हैं. मैं बड़े आत्मविश्वास के साथ उनसे यह सब कह रहा हूँ. मुझे पूरा निश्चय है कि इन विषयों में से कुछ भी उनके लिए नया नहीं है क्योंकि इनमें से कुछ भी गुप्त में नहीं किया गया.
27 “महाराज अग्रिप्पा, क्या आप भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करते हैं? मैं जानता हूँ कि आप विश्वास करते हैं.” 28 अग्रिप्पा ने पौलॉस से कहा, “तुम सोच रहे हो कि तुम शीघ्र ही मुझे मसीही होने के लिए सहमत कर लोगे!” 29 पौलॉस ने उत्तर दिया, “शीघ्र ही या विलम्ब से, परमेश्वर से मेरी तो यही विनती है कि न केवल आप, परन्तु ये सभी सुननेवाले, जो आज मेरी बातें सुन रहे हैं, मेरे ही समान हो जाएँ—सिवाय इन बेड़ियों के.”
30 तब राजा, राज्यपाल, बेरनिके और वे सभी, जो उनके साथ वहाँ बैठे हुए थे, खड़े हो गए तथा 31 न्यायालय से बाहर निकल कर आपस में विचार-विमर्श करने लगे: “इस व्यक्ति ने मृत्युदण्ड या कारावास के योग्य कोई अपराध नहीं किया है!” 32 राजा अग्रिप्पा ने राज्यपाल फ़ेस्तुस से कहा, “यदि इस व्यक्ति ने कयसर से दोहाई का प्रस्ताव न किया होता तो इसे छोड़ दिया गया होता!”
रोम नगर के लिए रवाना
27 जब यह तय हो गया कि हमें जलमार्ग से इतालिया जाना है तो उन्होंने पौलॉस तथा कुछ अन्य बन्दियों को राजकीय सैन्यदल के यूलियुस नामक सेनापति को सौंप दिया. 2 हम सब आद्रामुत्तेयुम नगर के एक जलयान पर सवार हुए, जो आसिया प्रदेश के समुद्र के किनारे के नगरों से होते हुए जाने के लिए तैयार था. जलमार्ग द्वारा हमारी यात्रा शुरु हुई. आरिस्तारख़ॉस भी हमारा साथी यात्री था, जो मकेदोनिया प्रदेश के थेस्सलोनिकेयुस नगर का वासी था. 3 अगले दिन हम त्सीदोन नगर पहुँच गए. भले दिल से यूलियुस ने पौलॉस को नगर में जाकर अपने प्रियजनों से मिलने और उनसे आवश्यक वस्तुएं ले आने की आज्ञा दे दी. 4 वहाँ से हमने यात्रा दोबारा शुरु की और उल्टी हवा बहने के कारण हमें कुप्रास द्वीप की ओट से आगे बढ़ना पड़ा. 5 जब हम समुद्र में यात्रा करते हुए किलिकिया और पम्फ़ूलिया नगरों के तट से होते हुए लुकिया के मूरा नगर पहुँचे 6 वहाँ सेनापति को यह मालूम हुआ कि अलेक्सान्द्रिया का एक जलयान इतालिया देश जाने के लिए तैयार खड़ा है. इसलिए उसने हमें उसी पर सवार करवा दिया. 7 हमें धीमी गति से यात्रा करते अनेक दिन हो गए थे. हमारा क्नीदॉस नगर पहुंचना कठिन हो गया क्योंकि उल्टी हवा चल रही थी. इसलिए हम सालेम के एक नगर क्रेते के पास से होते हुए आगे बढ़ गए. 8 बड़ी कठिनाई में उसके पास से होते हुए हम एक स्थान पर पहुँचे जिसका नाम था कालॉस लिमेनस अर्थात् मनोरम पत्तन. लासिया नगर इसी के पास स्थित है.
रोगी स्त्री की चंगाई और मरी हुई लड़की को जीवनदान
40 जब मसीह येशु झील की दूसरी ओर पहुँचे, वहाँ इंतज़ार करती भीड़ ने उनका स्वागत किया. 41 जाइरूस नामक एक व्यक्ति, जो यहूदी सभागृह का प्रधान था, उनसे भेंट करने आया. उसने मसीह येशु के चरणों पर गिर कर उनसे विनती की कि वह उसके साथ उसके घर जाएँ 42 क्योंकि उसकी एकमात्र बेटी, जो लगभग बारह वर्ष की थी, मरने पर थी. जब मसीह येशु वहाँ जा रहे थे, मार्ग में वह भीड़ में दबे जा रहे थे.
43 वहाँ एक स्त्री थी, जिसे बारह वर्षों से लहू बहने का रोग था. वह किसी भी इलाज से स्वस्थ न हो पाई थी. 44 इस स्त्री ने पीछे-पीछे आ कर मसीह येशु के वस्त्र की किनारी को छुआ और उसी क्षण उसका लहू बहना बंद हो गया.
45 “किसने मुझे छुआ है?” मसीह येशु ने पूछा.
जब सभी इससे इनकार कर रहे थे, पेतरॉस ने उनसे कहा, “स्वामी! यह बढ़ती हुई भीड़ आप पर गिरी जा रही है.”
46 किन्तु मसीह येशु ने उनसे कहा, “किसी ने तो मुझे छुआ है क्योंकि मुझे यह पता चला है कि मुझमें से सामर्थ्य निकली है.”
47 जब उस स्त्री ने यह समझ लिया कि उसका छुपा रहना असम्भव है, भय से काँपती हुई सामने आई और मसीह येशु के चरणों में गिर पड़ी. उसने सभी उपस्थित भीड़ के सामने यह स्वीकार किया कि उसने मसीह येशु को क्यों छुआ था तथा कैसे वह तत्काल रोग से चंगी हो गई. 48 इस पर मसीह येशु ने उससे कहा, “बेटी! तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चँगा किया है. परमेश्वर की शान्ति में लौट जाओ.”
जाइरूस की पुत्री को जीवनदान
49 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, यहूदी सभागृह प्रधान जाइरूस के घर से किसी व्यक्ति ने आ कर सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है, अब गुरुवर को कष्ट न दीजिए.”
50 यह सुन मसीह येशु ने जाइरूस को सम्बोधित कर कहा, “डरो मत! केवल विश्वास करो और वह स्वस्थ हो जाएगी.”
51 जब वे जाइरूस के घर पर पहुँचे, मसीह येशु ने पेतरॉस, योहन और याक़ोब तथा कन्या के माता-पिता के अतिरिक्त अन्य किसी को अपने साथ भीतर आने की अनुमति नहीं दी. 52 उस समय सभी उस बालिका के लिए रो-रो कर शोक प्रकट कर रहे थे. “बन्द करो यह रोना-चिल्लाना!” मसीह येशु ने आज्ञा दी, “उसकी मृत्यु नहीं हुई है—वह सिर्फ सो रही है.”
53 इस पर वे मसीह येशु पर हँसने लगे क्योंकि वे जानते थे कि बालिका की मृत्यु हो चुकी है. 54 मसीह येशु ने बालिका का हाथ पकड़ कर कहा, “बालिके! उठो!” 55 उसके प्राण उसमें लौट आए और वह तुरन्त खड़ी हो गई. मसीह येशु ने उनसे कहा कि बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए. 56 उसके माता-पिता चकित रह गए किन्तु मसीह येशु ने उन्हें निर्देश दिया कि जो कुछ हुआ है, उसकी चर्चा किसी से न करें.
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