Book of Common Prayer
37 जब वे सैनिक घर पर पहुँचने पर ही थे, पौलॉस ने सेनापति से कहा, “क्या मैं आप से कुछ कह सकता हूँ?” सेनापति ने आश्चर्य से पूछा, “तुम यूनानी भाषा जानते हो? 38 इसका अर्थ यह है कि तुम वह मिस्री नहीं हो जिसने कुछ समय पहले विद्रोह कर दिया था तथा जो चार हज़ार आतंकियों को जंगल में ले गया था.”
39 पौलॉस ने उसे उत्तर दिया, “मैं किलिकिया प्रदेश के तारस्यॉस नगर का एक यहूदी नागरिक हूँ. मैं आपकी आज्ञा पाकर इस भीड़ से कुछ कहना चाहता हूँ.”
40 आज्ञा मिलने पर पौलॉस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर भीड़ से शांत रहने को कहा. जब वे सब शांत हो गए, उन्होंने भीड़ को इब्री भाषा में सम्बोधित किया:
22 “प्रियजन! अब कृपया मेरा उत्तर सुन लें.” 2 जब उन्होंने पौलॉस को इब्री भाषा में सम्बोधित करते हुए सुना तो वे और अधिक शांत हो गए. पौलॉस ने उनसे कहना शुरु किया.
येरूशालेम के यहूदियों से पौलॉस का उपदेश
3 “मैं यहूदी हूँ, मेरा जन्म किलिकिया प्रदेश, के तारस्यॉस नगर में तथा पालन-पोषण इसी नगर येरूशालेम में हुआ है. मेरी शिक्षा नियमानुकूल पूर्वजों की व्यवस्था के अनुरूप आचार्य गमालिएल महोदय की देखरेख में हुई, आज परमेश्वर के प्रति जैसा आप सबका उत्साह है, वैसा ही मेरा भी था. 4 मैं तो इस मत के शिष्यों को प्राण लेने तक सताहट देता था, स्त्री-पुरुष दोनों को ही मैं बन्दी बना कारागार में डाल देता था, 5 महायाजक और पुरनियों की समिति के सदस्य इस सच्चाई के गवाह हैं, जिनसे दमिश्क नगर के यहूदियों के सम्बन्ध में अधिकार पत्र प्राप्त कर मैं दमिश्क नगर जा रहा था कि वहाँ से इस मत के शिष्यों को बन्दी बना कर येरूशालेम ले आऊँ कि वे दण्डित किए जाएँ.”
6 “जब मैं लगभग दोपहर के समय दमिश्क नगर के पास पहुँचा, आकाश से अचानक बहुत तेज़ प्रकाश मेरे चारों ओर कौन्ध गया 7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा. तभी मुझे सम्बोधित करता एक शब्द सुनाई दिया, ‘शाऊल! शाऊल! तुम मुझे क्यों सता रहे हो?’”
8 मैंने प्रश्न किया, “‘आप कौन हैं, प्रभु?’
“‘मैं नाज़रेथ नगर का येशु हूँ, जिसे तुम सता रहे हो,’ उस शब्द ने उत्तर दिया. 9 मेरे साथियों को प्रकाश तो अवश्य दिखाई दे रहा था किन्तु मुझसे बातचीत करता हुआ शब्द उन्हें साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था.”
10 मैंने पूछा, “‘मैं क्या करूँ, प्रभु?’ प्रभु ने मुझे उत्तर दिया.
“‘उठो,’ ‘दमिश्क नगर में जाओ, वहीं तुम्हें बताया जाएगा कि तुम्हारे द्वारा क्या-क्या किया जाना तय किया गया है.’ 11 तेज़ प्रकाश के कारण मैं देखने की क्षमता खो बैठा था. इसलिए मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दमिश्क नगर ले गए.”
12 “हननयाह नामक व्यक्ति, जो व्यवस्था के अनुसार परमेश्वर भक्त और सभी स्थानीय यहूदियों द्वारा सम्मानित थे, 13 मेरे पास आकर मुझसे बोले, ‘भाई शाऊल! अपनी दृष्टि प्राप्त करो!’ उसी क्षण दृष्टि प्राप्त कर मैंने उनकी ओर देखा.
14 “उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने आपको अपनी इच्छा जानने तथा उन्हें देखने के लिए, जो धर्मी हैं तथा उन्हीं के मुख से निकले हुए शब्द सुनने के लिए चुना गया है. 15 आपने जो कुछ देखा और सुना है, वह सब के सामने आपकी गवाही का विषय होगा. 16 तो अब देर क्यों? उठिए, बपतिस्मा लीजिए—प्रभु के नाम की दोहाई देते हुए पाप-क्षमा प्राप्त कीजिए.’”
बारह शिष्यों का चयन
(मारक 3:13-19)
12 एक दिन मसीह येशु पर्वत पर प्रार्थना करने चले गए और सारी रात वह परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे. 13 प्रातः काल उन्होंने अपने चेलों को अपने पास बुलाया और उनमें से बारह को चुनकर उन्हें प्रेरित पद प्रदान किया. 14 शिमोन, जिन्हें वह पेतरॉस नाम से पुकारते थे. उनके भाई आन्द्रेयास, याक़ोब, योहन, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस 15 मत्ति, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, राष्ट्रवादी शिमोन, 16 याक़ोब के पुत्र यहूदाह तथा कारियोतवासी यहूदाह, जिसने उनके साथ धोखा किया.
भीड़ द्वारा मसीह येशु का अनुगमन
17 मसीह येशु उनके साथ पर्वत से उतरे और आ कर एक समतल स्थल पर खड़े हो गए. येरूशालेम तथा समुद्र के किनारे के नगर त्सोर और त्सीदोन से आए लोगों तथा सुनने वालों का एक बड़ा समूह वहाँ इकट्ठा था, 18 जो उनके प्रवचन सुनने और अपने रोगों से चंगाई के उद्धेश्य से वहाँ आया था. इस समूह में वे दुष्टात्मा से पीड़ित भी सम्मिलित थे, जिन्हें मसीह येशु प्रेतमुक्त करते जा रहे थे. 19 सभी लोग उन्हें छूने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि उनसे निकली हुई सामर्थ्य उन सभी को स्वस्थ कर रही थी.
20 अपने शिष्यों की ओर दृष्टि करते हुए मसीह येशु ने उनसे कहा:
“धन्य हो तुम सभी जो निर्धन हो,
क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है.
21 धन्य हो तुम जो भूखे हो,
क्योंकि तुम तृप्त किए जाओगे.
धन्य हो तुम जो इस समय रो रहे हो,
क्योंकि तुम आनन्दित होगे.
22 धन्य हो तुम सभी जिनसे सभी मनुष्य घृणा करते हैं,
तुम्हारा बहिष्कार करते हैं, तुम्हारी निन्दा करते हैं,
तुम्हारे नाम को मनुष्य के पुत्र के
कारण बुराई करनेवाला घोषित कर देते हैं.
23 “आनन्दित हो कर हर्षोल्लास में उछलो-कूदो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा फल होगा. उनके पूर्वजों ने भी भविष्यद्वक्ताओं को इसी प्रकार सताया था.
24 “धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो धनी हो! तुम अपने सारे सुख भोग चुके!
25 धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो अब तृप्त हो क्योंकि तुम्हारे लिए भूखा रहना निर्धारित है.
धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो इस समय हँस रहे हो क्योंकि तुम शोक तथा विलाप करोगे.
26 धिक्कार है तुम पर! जब सब मनुष्य तुम्हारी प्रशंसा करते हैं
क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ यही किया करते थे.”
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