Book of Common Prayer
पौलॉस के विरुद्ध यहूदियों का षड्यन्त्र
12 प्रातःकाल यहूदियों ने एक षड्यन्त्र रचा और सौगन्ध ली कि पौलॉस को समाप्त करने तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे. 13 इस योजना में चालीस से अधिक व्यक्ति शामिल हो गए. 14 उन्होंने महायाजकों और पुरनियों से कहा, “हमने ठान लिया है कि पौलॉस को समाप्त किए बिना हम अन्न-जल चखेंगे तक नहीं. 15 इसलिए आप और महासभा मिल कर सेनापति को सूचना भेजें और पौलॉस को यहाँ ऐसे बुलवा लें, मानो आप उसका विवाद बारीकी से जांच करके सुलझाना चाहते हैं. यहाँ हमने उसके पहुँचने के पहले ही उसे मार ड़ालने की तैयारी कर रखी है.”
16 पौलॉस के भाँजे ने इस मार ड़ालने के विषय में सुन लिया. उसने सेना घर में जा कर पौलॉस को इसकी सूचना दे दी.
17 पौलॉस ने एक सैन्य अधिकारी को बुला कर कहा, “कृपया इस युवक को सेनापति के पास ले जाइए. इसके पास उनके लिए एक सूचना है.” 18 इसलिए सैन्य अधिकारी ने उसे सेनापति के पास ले जा कर कहा, “बन्दी पौलॉस ने मुझे बुला कर विनती की है कि इस युवक को आपके पास ले आऊँ क्योंकि इसके पास आपके लिए एक सूचना है.”
19 इसलिए सेनापति ने उस युवक का हाथ पकड़ कर अलग ले जा कर उससे पूछताछ करनी शुरु कर दी, “क्या सूचना है तुम्हारे पास?”
20 उसने उत्तर दिया, “पौलॉस को महासभा में बुलाना यहूदियों की सिर्फ एक योजना ही है, मानो वे उनके विषय में बारीकी से जांच करना चाहते हैं. 21 कृपया उनकी इस विनती की ओर ध्यान न दें क्योंकि चालीस से अधिक व्यक्ति पौलॉस के लिए घात लगाए बैठे हैं. उन्होंने ठान लिया है कि जब तक वे पौलॉस को खत्म नहीं कर देते, वे न तो कुछ खाएँगे और न ही कुछ पिएंगे. अब वे आपकी हाँ के इंतज़ार में बैठे हैं.”
22 सेनापति ने युवक को इस निर्देश के साथ विदा कर दिया, “किसी को भी यह मालूम न होने पाए कि तुमने मुझे यह सूचना दी है.”
पौलॉस का स्थानान्तरण कयसरिया नगर को
23 तब सेनापति ने दो नायकों को बुला कर आज्ञा दी, “रात के तीसरे घण्टे तक दो सौ सैनिकों को लेकर कयसरिया नगर को प्रस्थान करो. उनके साथ सत्तर घुड़सवार तथा दो सौ भालाधारी सैनिक भी हों. 24 पौलॉस के लिए घोड़े की सवारी का प्रबन्ध करो कि वह राज्यपाल फ़ेलिक्स के पास सुरक्षित पहुँचा दिए जाएँ.”
रोमी अधिकारी का विश्वास
(मत्ति 8:5-13)
7 लोगों को ऊपर लिखी शिक्षा देने के बाद मसीह येशु कफ़रनहूम नगर लौट गए. 2 वहाँ एक सेनापति का एक अत्यन्त प्रिय सेवक रोग से बिस्तर पर था. रोग के कारण वह लगभग मरने पर था. 3 मसीह येशु के विषय में मालूम होने पर सेनापति ने कुछ वरिष्ठ यहूदियों को मसीह येशु के पास इस विनती के साथ भेजा, कि वह आ कर उसके सेवक को चँगा करें. 4 उन्होंने मसीह येशु के पास आ कर उनसे विनती कर कहा, “यह सेनापति निश्चय ही आपकी इस दया का पात्र है 5 क्योंकि उसे हमारे राष्ट्र से प्रेम है तथा उसने हमारे लिए सभागृह भी बनाया है.” 6 इसलिए मसीह येशु उनके साथ चले गए.
मसीह येशु उसके घर के पास पहुँचे ही थे कि सेनापति ने अपने मित्रों के द्वारा उन्हें सन्देश भेजा, “प्रभु! आप कष्ट न कीजिए. मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे घर पधारें. 7 अपनी इसी अयोग्यता को ध्यान में रखते हुए मैं स्वयं आप से भेंट करने नहीं आया. आप मात्र वचन कह दीजिए और मेरा सेवक स्वस्थ हो जाएगा. 8 मैं स्वयं बड़े अधिकारियों के अधीन नियुक्त हूँ और सैनिक मेरे अधिकार में हैं. मैं किसी को आदेश देता हूँ, ‘जाओ!’ तो वह जाता है और किसी को आदेश देता हूँ, ‘इधर आओ!’ तो वह आता है. अपने सेवक से कहता हूँ, ‘यह करो!’ तो वह वही करता है.”
9 यह सुन कर मसीह येशु अत्यन्त चकित हुए और मुड़ कर पीछे आ रही भीड़ को सम्बोधित कर बोले, “मैं यह बताना सही समझता हूँ कि मुझे इस्राएलियों तक में ऐसा दृढ़ विश्वास देखने को नहीं मिला.” 10 वे, जो सेनापति द्वारा मसीह येशु के पास भेजे गए थे, जब घर लौटे तो यह पाया कि वह सेवक स्वस्थ हो चुका था.
विधवा के पुत्र का जी उठना
11 इसके कुछ ही समय बाद मसीह येशु नाइन नामक एक नगर को गए. एक बड़ी भीड़ और उनके शिष्य उनके साथ थे. 12 जब वह नगर-द्वार पर पहुँचे, एक मृत व्यक्ति अन्तिम संस्कार के लिए बाहर लाया जा रहा था—अपनी माता का एकलौता पुत्र और वह स्वयं विधवा थी; और उसके साथ नगर की एक बड़ी भीड़ थी. 13 उसे देख मसीह येशु करुणा से भर उठे. उन्होंने उससे कहा, “रोओ मत!”
14 तब उन्होंने जा कर उस अरथी को स्पर्श किया. यह देख वे, जिन्होंने उसे उठाया हुआ था, रुक गए. तब मसीह येशु ने कहा, “युवक! मैं तुमसे कहता हूँ, उठ जाओ!” 15 मृतक उठ बैठा और वार्तालाप करने लगा. मसीह येशु ने माता को उसका जीवित पुत्र सौंप दिया.
16 वे सभी श्रद्धा में परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. वे कह रहे थे, “हमारे मध्य एक तेजस्वी भविष्यद्वक्ता का आगमन हुआ है. परमेश्वर ने अपनी प्रजा की सुधि ली है.” 17 मसीह येशु के विषय में यह समाचार यहूदिया प्रदेश तथा पास के क्षेत्रों में फैल गया.
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