Book of Common Prayer
राजा अग्रिप्पा के सामने पौलॉस
13 कुछ समय बाद राजा अग्रिप्पा तथा बेरनिके फ़ेस्तुस से भेंट करने कयसरिया नगर आए. 14 वे वहाँ बहुत समय तक ठहरे. फ़ेस्तुस ने राजा को पौलॉस के विषय में इस प्रकार बताया: “फ़ेस्तुस एक बन्दी को यहाँ छोड़ गया है. 15 जब मैं येरूशालेम गया हुआ था वहाँ प्रधान याजकों तथा यहूदी प्राचीनों ने उस पर आरोप लगाए थे. उन्होंने उसे मृत्युदण्ड दिए जाने की माँग की. 16 मैंने उनके सामने रोमी शासन की नीति स्पष्ट करते हुए उनसे कहा कि इस नीति के अन्तर्गत दोषी और दोष लगानेवालों के आमने-सामने सवाल जवाब किए बिना तथा दोषी को अपनी सफ़ाई पेश करने का अवसर दिए बिना दण्ड देना सही नहीं है.
17 “इसलिए उनके यहाँ इकट्ठा होते ही मैंने बिना देर किए दूसरे ही दिन इस व्यक्ति को न्यायालय में प्रस्तुत किए जाने की आज्ञा दी. 18 जब आरोपी खड़े हुए, उन्होंने उस पर सवाल जवाब शुरु कर दिए किन्तु मेरे अनुमान के विपरीत, ये आरोप उन अपराधों के नहीं थे जिनकी मुझे आशा थी 19 ये उनके पारस्परिक मतभेद थे, जिनका सम्बन्ध मात्र उनके विश्वास से तथा येशु नामक किसी मृत व्यक्ति से था, जो इस बन्दी पौलॉस के अनुसार जीवित है. 20 मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस प्रकार के विषय का पता कैसे किया जाए. इसलिए मैंने यह जानना चाहा, क्या वह येरूशालेम में मुकद्दमा चलाए जाने के लिए राज़ी है. 21 किन्तु पौलॉस की इस विनती पर कि सम्राट के निर्णय तक उसे कारावास में रखा जाए, मैंने उसे कयसर के पास भेजे जाने तक बन्दी बनाए रखने की आज्ञा दी है.”
22 राजा अग्रिप्पा ने फ़ेस्तुस से कहा, “मैं स्वयं उसका बचाव सुनना चाहूँगा.”
फ़ेस्तुस ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, “ठीक है, कल ही सुन लीजिएगा.”
23 अगले दिन जब राजा अग्रिप्पा और बेरनिके ने औपचारिक धूम-धाम के साथ सभागार में प्रवेश किया, उनके साथ सेनापति और गणमान्य नागरिक भी थे. फ़ेस्तुस की आज्ञा पर पौलॉस को वहाँ लाया गया. 24 फ़ेस्तुस ने कहना शुरु किया, “महाराज अग्रिप्पा तथा उपस्थित सज्जनो! इस व्यक्ति को देखिए, जिसके विषय में सारे यहूदी समाज ने येरूशालेम और यहाँ कयसरिया में मेरे न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की है. ये लोग चिल्ला-चिल्ला कर यह कह रहे हैं कि अब उसे एक क्षण भी जीवित रहने का अधिकार नहीं है. 25 किन्तु अपनी जांच में मैंने इसमें ऐसा कुछ भी नहीं पाया जिसके लिए उसे मृत्युदण्ड दिया जाए और अब, जब उसने स्वयं सम्राट के न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की है, मैंने उसे रोम भेज देने का निश्चय किया है. 26 फिर भी, उसके विषय में मेरे पास कुछ भी तय नहीं है जिसे लिखकर महाराजाधिराज की सेवा में प्रस्तुत किया जाए. यही कारण है कि मैंने उसे आप सबके सामने प्रस्तुत किया है—विशेष रूप से महाराज अग्रिप्पा आपके सामने, जिससे कि सारी जांच पूरी होने पर मुझे लिखने के लिए कुछ सबूत मिल जाएँ, जो सम्राट की सेवा में प्रस्तुत किए जा सकें. 27 क्योंकि मेरे लिए यह गलत है कि किसी भी दोषी को उसके आरोपों के वर्णन के बिना आगे भेजा जाए.”
दीपक का दृष्टान्त
16 “कोई भी दीपक को जला कर न तो उसे बर्तन से ढांकता है और न ही उसे पलंग के नीचे रखता है परन्तु उसे दीवट पर रखता है कि कमरे में प्रवेश करने पर लोग देख सकें. 17 ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है जिसे प्रकट न किया जाएगा तथा ऐसा कोई रहस्य नहीं जिसे उजागर कर सामने न लाया जाएगा. 18 इसलिए इसका विशेष ध्यान रखो कि तुम कैसे सुनते हो. जिस किसी के पास है, उसे और भी दिया जाएगा तथा जिस किसी के पास नहीं है, उसके पास से वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके विचार से उसका है.”
मसीह येशु के वास्तविक परिजन
(मत्ति 12:46-50; मारक 3:31-35)
19 तब मसीह येशु की माता और उनके भाई उनसे भेंट करने वहाँ आए किन्तु लोगों की भीड़ के कारण वे उनके पास पहुँचने में असमर्थ रहे. 20 किसी ने मसीह येशु को सूचना दी, “आपकी माता और आपके भाई बाहर खड़े हैं—वे आप से भेंट करना चाह रहे हैं.”
21 मसीह येशु ने कहा, “मेरी माता और भाई वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते तथा उसका पालन करते हैं.”
बवण्डर को शांत करना
(मत्ति 8:23-27; मारक 4:35-41)
22 एक दिन मसीह येशु ने शिष्यों से कहा, “आओ, हम झील की दूसरी ओर चलें.” इसलिए वे सब नाव में बैठ कर चल दिए. 23 जब वे नाव खे रहे थे मसीह येशु सो गए. उसी समय झील पर प्रचण्ड बवण्डर उठा, यहाँ तक कि नाव में जल भरने लगा और उनका जीवन खतरे में पड़ गया.
24 शिष्यों ने जा कर मसीह येशु को जगाते हुए कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जा रहे हैं!” मसीह येशु उठे.
और बवण्डर और तेज लहरों को डाँटा; बवण्डर थम गया तथा तेज लहरें शान्त हो गईं. 25 “कहाँ है तुम्हारा विश्वास?” मसीह येशु ने अपने शिष्यों से प्रश्न किया.
भय और अचम्भे में वे एक-दूसरे से पूछने लगे, “कौन हैं यह, जो बवण्डर और लहरों तक को आदेश देते हैं और वे भी उनके आदेशों का पालन करती हैं!”
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