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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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रोमियों 6:12-23

पाप नहीं परन्तु पवित्रता ही शासन करे

12 अतएव तुम अपने मरणशील शरीर में पाप का शासन न रहने दो कि उसकी लालसाओं के प्रति समर्पण करो. 13 अपने शरीर के अंगों को पाप के लिए अधर्म के साधन के रूप में प्रस्तुत न करते जाओ परन्तु स्वयं को मरे हुओं में से जीवितों के समान परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करो तथा अपने शरीर के अंगों को परमेश्वर के लिए धार्मिकता के साधन के रूप में प्रस्तुत करो. 14 पाप की तुम पर प्रभुता नहीं रहेगी क्योंकि तुम व्यवस्था के नहीं परन्तु अनुग्रह के अधीन हो.

विश्वासी पाप के दासत्व से विमुक्त

15 तो? क्या हम पापमय जीवन में लीन रहें—क्योंकि अब हम व्यवस्था के नहीं परन्तु अनुग्रह के अधीन हैं? नहीं! बिलकुल नहीं! 16 क्या तुम्हें यह अहसास नहीं कि किसी के आज्ञापालन के प्रति समर्पित हो जाने पर तुम उसी के दास बन जाते हो, जिसका तुम आज्ञापालन करते हो? चाहे वह स्वामी पाप हो, जिसका अन्त है मृत्यु या आज्ञाकारिता, जिसका अन्त है धार्मिकता. 17 हम परमेश्वर के आभारी हैं कि तुम, जो पाप के दास थे, हृदय से उसी शिक्षा का पालन करने लगे हो, जिसके प्रति तुम समर्पित हुए थे 18 और अब पाप से छुटकारा पाकर तुम धार्मिकता के दास बन गए हो. 19 तुम्हारी शारीरिक दुर्बलताओं को ध्यान में रखते हुए मानवीय दृष्टि से मैं यह कह रहा हूँ: जिस प्रकार तुमने अपने अंगों को अशुद्धता और अराजकता के दासत्व के लिए समर्पित कर दिया था, जिसका परिणाम था दिनोंदिन बढ़ती अराजकता; अब तुम अपने अंगों को धार्मिकता के दासत्व के लिए समर्पित कर दो, जिसका परिणाम होगा परमेश्वर के लिए तुम्हारा अलग किया जाना.

पाप का परिणाम तथा पवित्रता का ईनाम

20 इसलिए कि जब तुम पाप के दास थे, तो धर्म की ओर से स्वतंत्र थे 21 इसलिए जिनके लिए तुम आज लज्जित हो, उन सारे कामों से तुम्हें कौनसा लाभांश उपलब्ध हुआ? क्योंकि उनका अंत तो मृत्यु है. 22 किन्तु अब तुम पाप से अलग होकर परमेश्वर के दास होकर वह लाभ कमा रहे हो, जिसका परिणाम है परमेश्वर के लिए अलग किया जाना और इसका अन्त है अनन्त जीवन. 23 क्योंकि पाप की मज़दूरी मृत्यु है किन्तु हमारे प्रभु मसीह येशु में परमेश्वर का वरदान अनन्त जीवन है.

मत्तियाह 21:12-22

दूसरी बार येशु द्वारा मन्दिर की शुद्धि

(मारक 11:12-19; लूकॉ 19:45-48)

12 येशु ने मन्दिर में प्रवेश किया और उन सभी को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, जो वहाँ लेन देन कर रहे थे. साथ ही येशु ने साहूकारों की चौकियां उलट दीं और कबूतर बेचने वालों के आसनों को पलट दिया. 13 येशु ने उन्हें फटकारते हुए कहा, “पवित्रशास्त्र का लेख है: मेरा मन्दिर प्रार्थना का घर कहलाएगा किन्तु तुम इसे डाकुओं की खोह बना रहे हो.”

14 मन्दिर में ही, येशु के पास अंधे और लँगड़े आए और येशु ने उन्हें स्वस्थ किया. 15 जब प्रधान याजको तथा शास्त्रियों ने देखा कि येशु ने अद्भुत काम किए हैं और बच्चे मन्दिर में “दाविद की सन्तान की होशान्ना”[a] के नारे लगा रहे हैं, तो वे अत्यन्त गुस्सा हुए.

16 और येशु से बोले, “तुम सुन रहे हो न, ये बच्चे क्या नारे लगा रहे हैं?” “हाँ”.

येशु ने उन्हें उत्तर दिया,

“क्या आपने पवित्रशास्त्र में कभी नहीं पढ़ा,
    बालकों और दूध पीते शिशुओं के मुख से
आपने अपने लिए अपार स्तुति का प्रबन्ध किया है?”

17 येशु उन्हें छोड़ कर नगर के बाहर चले गए तथा आराम के लिए बैथनियाह नामक गाँव में ठहर गए.

फलहीन अंजीर के पेड़ का मुरझाना

18 भोर को जब वह नगर में लौट कर आ रहे थे, उन्हें भूख लगी. 19 मार्ग के किनारे एक अंजीर का पेड़ देख कर वह उसके पास गए किन्तु उन्हें उसमें पत्तियों के अलावा कुछ नहीं मिला. इस पर येशु ने उस पेड़ को शाप दिया, “अब से तुझ में कभी कोई फल नहीं लगेगा.” तुरन्त ही वह पेड़ मुरझा गया.

20 यह देख शिष्य हैरान रह गए. उन्होंने प्रश्न किया, “अंजीर का यह पेड़ तुरन्त ही कैसे मुरझा गया?”

21 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम इस सच्चाई को समझ लो: यदि तुम्हें विश्वास हो—सन्देह तनिक भी न हो—तो तुम न केवल वह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ के साथ किया गया परन्तु तुम यदि इस पर्वत को भी आज्ञा दोगे, ‘उखड़ जा और समुद्र में जा गिर!’ तो यह भी हो जाएगा. 22 प्रार्थना में विश्वास से तुम जो भी विनती करोगे, तुम उसे प्राप्त करोगे.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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