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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Saral Hindi Bible (SHB)
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योहन 1:1-18

परमेश्वर-शब्द का शरीर धारण करना

आदि में शब्द था, शब्द परमेश्वर के साथ था और शब्द परमेश्वर था. यही शब्द आदि में परमेश्वर के साथ था.

सारी सृष्टि उनके द्वारा उत्पन्न हुई. सारी सृष्टि में कुछ भी उनके बिना उत्पन्न नहीं हुआ. जीवन उन्हीं में था और वह जीवन मानवजाति की ज्योति था. वह ज्योति अन्धकार में चमकती रही. अन्धकार उस पर प्रबल न हो सका.

बपतिस्मा देने वाले योहन की गवाही.

परमेश्वर ने योहन नामक एक व्यक्ति को भेजा कि वह ज्योति को देखें और उसके गवाह बनें कि लोग उनके माध्यम से ज्योति में विश्वास करें. वह स्वयं ज्योति नहीं थे किन्तु ज्योति की गवाही देने आए थे. वह सच्ची ज्योति, जो हर एक व्यक्ति को प्रकाशित करती है, संसार में आने पर थी.

10 वह संसार में थे और संसार उन्हीं के द्वारा बनाया गया फिर भी संसार ने उन्हें न जाना. 11 वह अपनी सृष्टि में आए किन्तु उनके अपनों ने ही उन्हें ग्रहण नहीं किया 12 परन्तु जितनों ने उन्हें ग्रहण किया अर्थात् उनके नाम में विश्वास किया, उन सबको उन्होंने परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया.

13 जो न तो लहू से, न शारीरिक इच्छा से और न मानवीय इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं.

14 शब्द ने शरीर धारण कर हमारे मध्य तम्बू के समान वास किया और हमने उनकी महिमा को अपना लिया—ऐसी महिमा को, जो पिता के कारण एकलौते पुत्र की होती है—अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण.

15 उन्हें देख कर योहन ने घोषणा की, “यह वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा था, ‘वह, जो मेरे बाद आ रहे हैं, वास्तव में मुझसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि वह मुझसे पहले थे.’” 16 उनकी परिपूर्णता के कारण हम सबने अनुग्रह पर अनुग्रह प्राप्त किया. 17 व्यवस्था मोशेह के द्वारा दी गयी थी, किन्तु अनुग्रह और सच्चाई मसीह येशु द्वारा आए. 18 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा, केवल परमेश्वर-पुत्र के अलावा; जो पिता से हैं; उन्हीं ने हमें परमेश्वर से अवगत कराया.

लूकॉ 24:13-35

मसीह येशु का दो यात्रियों को दिखाई देना

(मारक 16:12-13)

13 उसी दिन दो शिष्य इम्माउस नामक गाँव की ओर जा रहे थे, जो येरूशालेम नगर से लगभग ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर था. 14 सारा घटनाक्रम ही उनकी आपस की बातों का विषय था. 15 जब वे विचार-विमर्श और बातचीत में मग्न ही थे, स्वयं मसीह येशु उनके पास पहुँच कर उनके साथ-साथ चलने लगे.

16 किन्तु उनकी आँखें ऐसी बंद कर दी गई थीं कि वे मसीह येशु को पहचानने न पाएँ.

17 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “आप लोग किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे रुक गए. उनके मुख पर उदासी छायी हुई थी.

18 उनमें से एक ने, जिसका नाम क्लोपस था, इसके उत्तर में उनसे यह प्रश्न किया, “आप येरूशालेम में आए अकेले ऐसे परदेसी हैं कि आपको यह मालूम नहीं कि यहाँ इन दिनों में क्या-क्या हुआ है!”

19 “क्या-क्या हुआ है?” मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया.

उन्होंने उत्तर दिया, “नाज़रेथवासी मसीह येशु से सम्बन्धित घटनाएँ—मसीह येशु, जो वास्तव में परमेश्वर और सभी जनसाधारण की नज़र में और काम में सामर्थी भविष्यद्वक्ता थे. 20 उन्हें प्रधान पुरोहितों और हमारे सरदारों ने मृत्युदण्ड दिया और क्रूस पर चढ़ा दिया. 21 हमारी आशा यह थी कि मसीह येशु इस्राएल राष्ट्र को स्वतन्त्र करवा देंगे. यह आज से तीन दिन पूर्व की घटना है. 22 किन्तु हमारे समुदाय की कुछ स्त्रियों ने हमें आश्चर्य में डाल दिया है. पौ फटते ही वे क़ब्र पर गई थीं 23 किन्तु उन्हें वहाँ मसीह येशु का शव नहीं मिला. उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने वहाँ स्वर्गदूतों को देखा है; जिन्होंने उन्हें सूचना दी कि मसीह येशु जीवित हैं. 24 हमारे कुछ साथी भी क़ब्र पर गए थे और उन्होंने ठीक वैसा ही पाया जैसा स्त्रियों ने बताया था किन्तु मसीह येशु को उन्होंने नहीं देखा.”

25 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “ओ मूर्खो! भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दबुद्धियो! 26 क्या मसीह के लिए यह ज़रूरी न था कि वह सभी यन्त्रणाएँ सह कर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” 27 तब मसीह येशु ने पवित्रशास्त्र में स्वयं से सम्बन्धित उन सभी लिखी बातों का अर्थ उन्हें समझा दिया—मोशेह से प्रारम्भ कर सभी भविष्यद्वक्ताओं तक.

28 तब वे उस गाँव के पास पहुँचे, जहाँ उनको जाना था. मसीह येशु के व्यवहार से ऐसा भास हुआ मानो वह आगे बढ़ना चाह रहे हों 29 किन्तु उन शिष्यों ने विनती की, “हमारे साथ ही ठहर जाइए क्योंकि दिन ढल चला है और शाम होने को है.” इसलिए मसीह येशु उनके साथ भीतर चले गए.

30 जब वे सब भोजन के लिए बैठे, मसीह येशु ने रोटी ले कर आशीर्वाद के साथ उसे तोड़ा और उन्हें दे दिया. 31 तब उनकी आँखों को देखने लायक बना दिया गया और वे मसीह येशु को पहचान गए किन्तु उसी क्षण मसीह येशु उनकी आँखों से ओझल हो गए. 32 वे आपस में विचार करने लगे, “मार्ग में जब वह हमसे बातचीत कर रहे थे और पवित्रशास्त्र की व्याख्या कर रहे थे तो हमारे मन में उत्तेजना हुई थी न!”

33 तत्काल ही वे उठे और येरूशालेम को लौट गए. वहाँ उन्होंने ग्यारह शिष्यों और अन्यों को, जो वहाँ इकट्ठा थे, यह कहते पाया, 34 “हाँ, यह सच है! प्रभु मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं और शिमोन को दिखाई भी दिए हैं.” 35 तब इन दो शिष्यों ने भी मार्ग में हुई घटना का ब्यौरा सुनाया कि किस प्रकार भोजन करते समय वे मसीह येशु को पहचानने में समर्थ हो गए थे.

योहन 20:19-23

प्रेरितों पर मसीह येशु का स्वयं को प्रकट करना

(लूकॉ 24:36-43)

19 उसी दिन, जो सप्ताह का पहला दिन था, सन्ध्या समय यहूदियों से भयभीत शिष्य द्वार बन्द किए हुए कमरे में इकट्ठा थे. मसीह येशु उनके बीच आ खड़े हुए और बोले, “तुममें शान्ति बनी रहे.” 20 यह कह कर उन्होंने उन्हें अपने हाथ और पांव दिखाए. प्रभु को देख कर शिष्य आनन्द से भर गए. 21 इस पर मसीह येशु ने दोबारा उनसे कहा, “तुममें शान्ति बनी रहे. जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा है, मैं भी तुम्हें भेजता हूँ” 22 तब उन्होंने उन पर फूंका और उनसे कहा, “पवित्रात्मा ग्रहण करो. 23 यदि तुम किसी के पाप-क्षमा करोगे, उनके पाप-क्षमा किए गए हैं और जिनके पाप तुम क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों में बँधे रहेंगे.”

Saral Hindi Bible (SHB)

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