Book of Common Prayer
13 विश्वास के उसी भाव में, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: मैंने विश्वास किया, इसलिए मैं चुप न रहा. हम भी यह सब इसीलिए कहते हैं कि हमने भी विश्वास किया है 14 यह जानते हुए कि जिन्होंने प्रभु येशु को मरे हुओं में से जीवित किया, वही हमें भी मसीह येशु के साथ जीवित करेंगे तथा तुम्हारे साथ हमें भी अपनी उपस्थिति में ले जाएँगे. 15 यह सब तुम्हारे हित में है कि अनुग्रह, जो अधिक से अधिक मनुष्यों में व्याप्त होता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए अधिक से अधिक धन्यवाद का कारण बने.
16 इसलिए हम हतोत्साहित नहीं होते. हमारा बाहरी मनुष्यत्व तो कमज़ोर होता जा रहा है किन्तु भीतरी मनुष्यत्व दिन-प्रतिदिन नया होता जा रहा है. 17 हमारा यह छोटा सा क्षण भर का कष्ट हमारे लिए ऐसी अनन्त और अत्याधिक महिमा को उत्पन्न कर रहा है, जिसकी तुलना नहीं कर सकते 18 क्योंकि हमने अपना ध्यान उस पर केन्द्रित नहीं किया, जो दिखाई देता है परन्तु उस पर, जो दिखाई नहीं देता है. जो कुछ दिखाई देता है, वह क्षण भर का है किन्तु जो दिखाई नहीं देता वह अनन्त काल का.
येरीख़ो नगर में अंधा व्यक्ति
(मत्ति 20:29-34; लूकॉ 18:35-43)
46 इसके बाद मसीह येशु येरीख़ो नगर आए. जब वह अपने शिष्यों तथा एक विशाल भीड़ के साथ येरीख़ो नगर से निकल कर जा रहे थे, उन्हें मार्ग के किनारे बैठा हुआ एक अंधा व्यक्ति, तिमाऊ का पुत्र बारतिमाऊ, भीख मांगता हुआ मिला. 47 जब उसे यह मालूम हुआ कि वह यात्री नाज़रेथवासी मसीह येशु हैं, वह पुकारने लगा, “दाविद-पुत्र, येशु! मुझ पर कृपा कीजिए!”
48 उनमें से अनेक उसे पुकारने से रोकने की भरपूर कोशिश करने लगे किन्तु वह और भी अधिक पुकारता गया, “दाविद की सन्तान, येशु! मुझ पर कृपा कीजिए!”
49 मसीह येशु ने रुक कर आज्ञा दी, “उसे यहाँ लाओ!” तब उन्होंने उस अंधे व्यक्ति के पास जा कर उससे कहा, “उठो, आनन्द मनाओ! प्रभु तुम्हें बुला रहे हैं.” 50 अंधा व्यक्ति बाहरी वस्त्र फेंक, उछल कर खड़ा हो गया तथा मसीह येशु के पास आ गया.
51 मसीह येशु ने उस से पूछा, “क्या चाहते हो मुझसे?”
“अपनी आँखों की रोशनी दुबारा पाना चाहता हूँ, रब्बी!” अंधे ने उत्तर दिया.
52 मसीह येशु ने उसे आज्ञा दी, “जाओ, यह तुम्हारा विश्वास है, जिसके द्वारा तुम स्वस्थ हो गए हो.” उसी क्षण उस व्यक्ति की आँखों की रोशनी लौट आई और वह उनके पीछे चलने लगा.
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