Book of Common Prayer
चौथी ज़रूरत: मसीह-विरोधियों से सावधानी
18 प्रभु में नए जन्मे शिशुओं, यह अन्तिम समय है और ठीक जैसा तुमने सुना ही है कि मसीह-विरोधी प्रकट होने पर है, इस समय भी अनेक मसीह-विरोधी उठ खड़े हुए हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह अन्तिम समय है. 19 वे हमारे बीच ही से बाहर चले गए—वास्तव में वे हमारे थे ही नहीं—यदि वे हमारे होते तो हमें छोड़ कर न जाते. उनका हमें छोड़ कर जाना ही यह स्पष्ट कर देता है कि उनमें से कोई भी हमारा न था 20 किन्तु तुम्हारा अभिषेक उन पवित्र मसीह येशु से है, इसका तुम्हें अहसास भी है.
21 मेरा यह सब लिखने का उद्धेश्य यह नहीं कि तुम सच्चाई से अनजान हो परन्तु यह कि तुम इससे परिचित हो. किसी भी झूठ का जन्म सच से नहीं होता. 22 झूठा कौन है, सिवाय उसके, जो येशु के मसीह होने की बात को अस्वीकार करता है? यही मसीह-विरोधी है, जो पिता और पुत्र को अस्वीकार करता है. 23 हर एक, जो पुत्र को अस्वीकार करता है, पिता भी उसके नहीं हो सकते. जो पुत्र का अंगीकार करता है, पिता परमेश्वर भी उसके हैं. 24 इसका ध्यान रखो कि तुम में वही शिक्षा स्थिर रहे, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है. यदि वह शिक्षा, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है, तुम में स्थिर है तो तुम भी पुत्र और पिता में बने रहोगे. 25 अनन्त जीवन ही उनके द्वारा हमसे की गई प्रतिज्ञा है. 26 यह सब मैंने तुम्हें उनके विषय में लिखा है, जो तुम्हें मार्ग से भटकाने का प्रयास कर रहे हैं.
27 तुम्हारी स्थिति में प्रभु के द्वारा किया गया वह अभिषेक का तुममें स्थिर होने के प्रभाव से यह ज़रूरी ही नहीं कि कोई तुम्हें शिक्षा दे. उनके द्वारा किया गया अभिषेक ही तुम्हें सभी विषयों की शिक्षा देता है. यह शिक्षा सच है, झूठ नहीं. ठीक जैसी शिक्षा तुम्हें दी गई है, तुम उसी के अनुसार मसीह में स्थिर बने रहो.
परमेश्वर में स्थिर रहना
28 बच्चों, उनमें स्थिर रहो कि जब वह प्रकट हों तो हम निड़र पाए जाएँ तथा उनके आगमन पर हमें लज्जित न होना पड़े. 29 यदि तुम्हें यह अहसास है कि वह धर्मी हैं तो यह जान लो कि हर एक धर्मी व्यक्ति भी उन्हीं से उत्पन्न हुआ है.
19 मसीह येशु के इस वक्तव्य के कारण यहूदियों में दोबारा मतभेद उत्पन्न हो गया. 20 उनमें से कुछ ने कहा, “यह दुष्टात्मा से पीड़ित है या निपट सिरफिरा. क्यों सुनते हो तुम उसकी?” 21 कुछ अन्य लोगों ने कहा, “ये शब्द दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति के नहीं हो सकते; क्या कोई दुष्टात्मा अन्धों को आँखों की रोशनी दे सकता है?”
कुपित यहूदी अगुवों द्वारा पूछताछ
22 शीत ऋतु थी और येरूशालेम में समर्पण-पर्व मनाया जा रहा था. 23 मसीह येशु मन्दिर परिसर में शलोमोन के द्वारा बनाए हुए आँगन में टहल रहे थे. 24 यहूदियों ने उन्हें घेर लिया और जानना चाहा, “तुम हमें कब तक दुविधा में डाले रहोगे? यदि तुम ही मसीह हो तो हमें स्पष्ट बता दो.” 25 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “मैंने तो आपको बता दिया है किन्तु आप ही विश्वास नहीं करते. सभी काम, जो मैं अपने पिता के नाम में करता हूँ, वे ही मेरे गवाह हैं. 26 आप विश्वास नहीं करते क्योंकि आप मेरी भेड़ें नहीं हैं. 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं. मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं. 28 मैं उन्हें अनन्त काल का जीवन देता हूँ. वे कभी नाश न होंगी और कोई भी उन्हें मेरे हाथ से छीन नहीं सकता. 29 मेरे पिता, जिन्होंने उन्हें मुझे सौंपा है, सबसे बड़ा हैं और कोई भी इन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता. 30 मैं और पिता एक तत्व हैं.”
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