Book of Common Prayer
12 इसलिए शिथिल होते जा रहे हाथों तथा निर्बल घुटनों को मजबूत बनाओ 13 तथा अपना मार्ग सीधा बनाओ जिससे अपंग अंग नष्ट न हों परन्तु स्वस्थ बने रहें.
परमेश्वर को अस्वीकार करने के प्रति चेतावनी
14 सभी के साथ शान्ति बनाए रखो तथा उस पवित्रता के खोजी रहो, जिसके बिना कोई भी प्रभु को देख न पाएगा. 15 ध्यान रखो कि कोई भी परमेश्वर के अनुग्रह से वंचित न रह जाए. कड़वी जड़ फूटकर तुम पर कष्ट तथा अनेकों के अशुद्ध होने का कारण न बने. 16 सावधान रहो कि तुम्हारे बीच न तो कोई व्यभिचारी व्यक्ति हो और न ही एसाव के जैसा परमेश्वर का विरोधी, जिसने पहिलौठा पुत्र होने के अपने अधिकार को मात्र एक भोजन के लिए बेच दिया. 17 तुम्हें मालूम ही है कि उसके बाद जब उसने वह आशीष दोबारा प्राप्त करनी चाही, उसे अयोग्य समझा गया—आँसू बहाने पर भी वह उस आशीष को अपने पक्ष में न कर सका.
सीनय पर्वत तथा त्सियोन पर्वत
18 तुम उस पर्वत के पास नहीं आ पहुँचे, जिसे स्पर्श किया जा सके और न ही दहकती ज्वाला, अन्धकार, काली घटा और बवण्डर 19 तुरही की आवाज़ और शब्द की ऐसी ध्वनि के समीप, जिसके शब्द ऐसे थे कि जिन्होंने उसे सुना, विनती की कि अब वह उनसे और अधिक कुछ न कहे. 20 उनके लिए यह आज्ञा सहने योग्य न थी: यदि पशु भी पर्वत का स्पर्श करे तो वह पथराव द्वारा मार डाला जाए. 21 वह दृश्य ऐसा डरावना था कि मोशेह कह उठे: मैं भय से थरथरा रहा हूँ.
22 किन्तु तुम त्सियोन पर्वत के, जीवित परमेश्वर के नगर स्वर्गीय येरूशालेम के, असंख्य स्वर्गदूतों के, 23 स्वर्ग में लिखे पहलौठों की कलीसिया के, परमेश्वर के, जो सब के न्यायी हैं, सिद्ध बना दिए गए धर्मियों की आत्माओं के, 24 मसीह येशु के, जो नई वाचा के मध्यस्थ हैं तथा छिड़काव के लहू के, जो हाबिल के लहू से कहीं अधिक साफ़ बातें करता है, पास आ पहुँचे हो.
25 इसका ध्यान रहे कि तुम उनकी आज्ञा न टालो, जो तुमसे बातें कर रहे हैं. जब वे दण्ड से न बच सके, जिन्होंने उनकी आज्ञा न मानी, जिन्होंने उन्हें पृथ्वी पर चेतावनी दी थी, तब हम दण्ड से कैसे बच सकेंगे यदि हम उनकी न सुनें, जो स्वर्ग से हमें चेतावनी देते हैं? 26 उस समय तो उनकी आवाज़ ने पृथ्वी को हिला दिया था किन्तु अब उन्होंने यह कहते हुए प्रतिज्ञा की है: एक बार फिर मैं न केवल पृथ्वी परन्तु स्वर्ग को भी हिला दूँगा. 27 ये शब्द एक बार फिर उन वस्तुओं के हटाए जाने की ओर संकेत हैं, जो अस्थिर हैं अर्थात् सृष्ट वस्तुएं, कि वे वस्तुएं, जो अचल हैं, स्थायी रह सकें.
28 इसलिए जब हमने अविनाशी राज्य प्राप्त किया है, हम परमेश्वर के आभारी हों कि इस आभार के द्वारा हम परमेश्वर को सम्मान और श्रद्धा के साथ स्वीकार-योग्य आराधना भेंट कर सकें 29 इसलिए कि निस्सन्देह हमारे परमेश्वर भस्म कर देने वाली आग हैं.
उत्सव के समय मसीह येशु के प्रवचन
14 जब उत्सव के मध्य मसीह येशु मन्दिर में जा कर शिक्षा देने लगे, 15 यहूदी चकित हो कर कहने लगे, “यह व्यक्ति बिना पढ़े ज्ञानी कैसे बन गया?” 16 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यह शिक्षा मेरी नहीं परन्तु उनकी है, जिन्होंने मुझे भेजा है. 17 यदि कोई व्यक्ति उनकी इच्छा पूरी करने के लिए प्रण करे तो उसे यह मालूम हो जाएगा कि यह शिक्षा परमेश्वर की ओर से है या मेरी ओर से. 18 वह, जो अपने ही विचार प्रस्तुत करता है, अपना ही आदर चाहता है, परन्तु वह, जो अपने भेजनेवाले का आदर चाहता है, वह बिल्कुल सच्चा है और उसमें कोई छल नहीं. 19 क्या मोशेह ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दिया? फिर भी तुम में से कोई उसका पालन नहीं करता. मेरी हत्या की ताक में क्यों हो तुम?”
20 भीड़ ने उत्तर दिया, “कौन तुम्हारी हत्या करना चाहता है? तुम प्रेतात्मा से पीड़ित हो.”
21 मसीह येशु ने कहा, “मैंने शब्बाथ पर एक चमत्कार किया और तुम सब क्रोधित हो गए. 22 मोशेह ने तुम्हें ख़तना विधि दी—परन्तु इसको आरम्भ करने वाले मोशेह नहीं, हमारे कुलपिता हैं—जिसके अनुसार तुम शब्बाथ पर भी ख़तना करते हो. 23 तुम शब्बाथ पर भी ख़तना करते हो कि मोशेह का व्यवस्था भंग न हो, तो तुम लोग इससे गुस्से में क्यों हो कि मैंने शब्बाथ पर किसी को पूरी तरह स्वस्थ किया? 24 तुम्हारा न्याय बाहरी रूप पर नहीं परन्तु सच्चाई पर आधारित हो.”
लोगों द्वारा मसीह के आने पर विचार-विमर्श
25 येरूशालेमवासियों में से कुछ ने यह प्रश्न किया, “क्या यह वही नहीं, वे जिसकी हत्या की ताक में हैं? 26 परन्तु देखो, वह भीड़ से खुल कर, बिना डर के बातें करता है और अधिकारी कुछ भी नहीं कहते! कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारियों को मालूम हो गया है कि यही वास्तव में मसीह हैं? 27 इस व्यक्ति की पृष्ठभूमि हमें मालूम है, किन्तु जब मसीह प्रकट होंगे तो किसी को यह मालूम नहीं होगा कि वह कहाँ के हैं.”
28 मन्दिर में शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ से आया हूँ. सच यह है कि मैं स्वयं नहीं आया. जिन्होंने मुझे भेजा है, वह सच्चा है किन्तु तुम उन्हें नहीं जानते, 29 मैं उन्हें जानता हूँ क्योंकि मैं उन्हीं से हूँ और मुझे उन्हीं ने भेजा है.”
30 यह सुन कर उन्होंने मसीह येशु को बन्दी बनाना चाहा किन्तु किसी ने उन पर हाथ न डाला क्योंकि उन का समय अब तक नहीं आया था.
मसीह येशु द्वारा अपने जाने की पूर्वघोषणा
31 फिर भी भीड़ में से अनेकों ने मसीह येशु में विश्वास रखा तथा विचार-विमर्श करने लगे, “क्या प्रकट होने पर मसीह इस व्यक्ति से अधिक अद्भुत चिह्न प्रदर्शित करेंगे?”
अगुवों द्वारा मसीह येशु को पकड़ने का प्रयास
32 फ़रीसियों ने भीड़ को इस विषय में आपस में विचार-विमर्श करते हुए सुन लिया. इसलिए मसीह येशु को बन्दी बनाने के लिए प्रधान पुरोहितों व फ़रीसियों ने मन्दिर के सन्तरियों को भेजा.
33 मसीह येशु ने उनसे कहा, “थोड़े समय के लिए मैं तुम्हारे साथ हूँ, उसके बाद मैं अपने भेजनेवाले के पास लौट जाऊँगा. 34 तुम मुझे खोजोगे किन्तु पाओगे नहीं क्योंकि जहाँ मैं होऊँगा, तुम वहाँ नहीं आ सकते.”
35 इस पर यहूदी विचार-विमर्श करने लगे, “यह व्यक्ति कहाँ जाने पर है कि हम उसे खोज नहीं पाएँगे? क्या यह यूनानियों के मध्य प्रवासी यहूदियों में बसना चाहता है कि यूनानियों को भी शिक्षा दे? 36 यह क्या कह रहा है कि तुम मुझे खोजोगे और नहीं पाओगे क्योंकि जहाँ मैं होऊँगा तुम वहाँ नहीं आ सकते?”
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