Book of Common Prayer
आपसी प्रेम, सौहार्द व आज्ञाकारिता सम्बन्धी निर्देश
13 भाईचारे का प्रेम लगातार बना रहे. 2 अपरिचितों का अतिथि-सत्कार करना न भूलो. ऐसा करने के द्वारा कुछ ने अनजाने ही स्वर्गदूतों का अतिथि-सत्कार किया था. 3 बन्दियों के प्रति तुम्हारा व्यवहार ऐसा हो मानो तुम स्वयं उनके साथ बन्दीगृह में हो. सताए जाने वालों को न भूलना क्योंकि तुम सभी एक शरीर के अंग हो.
4 विवाह की बात सम्मानित रहे तथा विवाह का बिछौना कभी अशुद्ध न होने पाए क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों तथा परस्त्रीगामियों को दण्डित करेंगे. 5 यह ध्यान रहे कि तुम्हारा चरित्र धन के लोभ से मुक्त हो. जो कुछ तुम्हारे पास है, उसी में सन्तुष्ट रहो क्योंकि स्वयं उन्होंने कहा है:
मैं न तो तुम्हारा त्याग करूँगा
और न ही कभी तुम्हें छोड़ूँगा.
6 इसलिए हम निश्चयपूर्वक यह कहते हैं:
प्रभु मेरे सहायक हैं, मैं डरूंगा नहीं.
मनुष्य मेरा क्या कर लेगा?
7 उनको याद रखो, जो तुम्हारे अगुवे थे, जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर के वचन की शिक्षा दी और उनके स्वभाव के परिणाम को याद करते हुए उनके विश्वास का अनुसरण करो. 8 मसीह येशु एक से हैं—कल, आज तथा युगानुयुग.
9 बदली हुई विचित्र प्रकार की शिक्षाओं के बहाव में न बह जाना. हृदय के लिए सही है कि वह अनुग्रह द्वारा दृढ़ किया जाए न कि खाने की वस्तुओं द्वारा. खान-पान सम्बन्धी प्रथाओं द्वारा किसी का भला नहीं हुआ है. 10 हमारी एक वेदी है, जिस पर से उन्हें, जो मन्दिर में सेवा करते हैं, खाने का कोई अधिकार नहीं है.
11 क्योंकि उन पशुओं का शरीर, जिनका लहू महायाजक द्वारा पापबलि के लिए पवित्र स्थान में लाया जाता है, छावनी के बाहर ही जला दिए जाते हैं. 12 मसीह येशु ने भी नगर के बाहर दुःख सहे कि वह स्वयं अपने लहू से लोगों को शुद्ध करें. 13 इसलिए हम भी उनसे भेंट करने छावनी के बाहर वैसी ही निन्दा उठाने चलें, जैसी उन्होंने उठाई 14 क्योंकि यहाँ हमारा घर स्थाई नगर में नहीं है—हम उस नगर की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो अनन्त काल का है.
15 इसलिए हम उनके द्वारा परमेश्वर को लगातार आराधना की बलि भेंट करें अर्थात् उन होठों का फल, जो उनके प्रति धन्यवाद प्रकट करते हैं. 16 भलाई करना और वस्तुओं का आपस में मिलकर बाँटना समाप्त न करो क्योंकि ये ऐसी बलि हैं, जो परमेश्वर को प्रसन्न करती हैं.
जीवन-जल की प्रतिज्ञा
37 उत्सव के अन्तिम दिन, जब उत्सव चरम सीमा पर होता है, मसीह येशु ने खड़े हो कर ऊँचे शब्द में कहा, “यदि कोई प्यासा है तो मेरे पास आए और पिए. 38 जो मुझमें विश्वास करता है, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: उसके अंदर से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगीं.” 39 यह उन्होंने पवित्रात्मा के विषय में कहा था, जिन्हें उन पर विश्वास करनेवाले प्राप्त करने पर थे. पवित्रात्मा अब तक उतरे नहीं थे क्योंकि मसीह येशु अब तक महिमा को न पहुँचे थे.
मसीह के आने पर दोबारा चर्चा
40 यह सब सुन कर भीड़ में से कुछ ने कहा, “सचमुच यह व्यक्ति ही वह भविष्यद्वक्ता है”.
41 कुछ अन्य ने कहा, “यह मसीह हैं”.
परन्तु कुछ ने कहा, “मसीह का आना गलील से तो नहीं होगा न? 42 क्या पवित्रशास्त्र के अनुसार मसीह का आना दाविद के वंश और उनके नगर बैथलहम से न होगा?” 43 इस प्रकार मसीह येशु के कारण भीड़ में मतभेद हो गया. 44 कुछ उन्हें बन्दी बनाना चाहते थे फिर भी किसी ने भी उन पर हाथ न डाला.
यहूदी नायकों का अविश्वास
45 सन्तरियों के लौटने पर प्रधान पुरोहितों और फ़रीसियों ने उनसे पूछा, “तुम उसे ले कर क्यों नहीं आए?”
46 सन्तरियों ने उत्तर दिया, “ऐसा बतानेवाला हमने आज तक नहीं सुना.”
47 तब फ़रीसियों ने कटाक्ष किया, “कहीं तुम भी तो उसके बहकावे में नहीं आ गए? 48 क्या प्रधानों या फ़रीसियों में से किसी ने भी उसमें विश्वास किया है? 49 व्यवस्था से अज्ञान भीड़ तो वैसे ही शापित है.”
50 तब निकोदेमॉस ने, जो प्रधानों में से एक थे तथा मसीह येशु से पहले मिल चुके थे, उनसे कहा, 51 “क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति की सुने बिना और उसकी गतिविधि जाने बिना उसे अपराधी घोषित करती है?”
52 इस पर उन्होंने निकोदेमॉस से पूछा, “कहीं तुम भी तो गलीली नहीं हो? शास्त्रों का मनन करो और देखो कि किसी भी भविष्यद्वक्ता का आना गलील प्रदेश से नहीं होता.”
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