Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
उद्धार से सम्बन्धित परमेश्वर की योजना
3 हमारे प्रभु मसीह येशु के परमेश्वर और पिता की स्तुति हो, जिन्होंने हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों में हर एक आत्मिक आशीष से आशीषित किया है. 4 उन्होंने संसार की सृष्टि से पूर्व ही हमें मसीह में चुन लिया कि हम उनकी दृष्टि में पवित्र और निर्दोष हों. 5 प्रेम में उन्होंने हमें अपनी इच्छा के भले उद्धेश्य के अनुसार अपने लिए मसीह येशु के द्वारा आदि से ही अपनी सन्तान होने के लिए नियत किया 6 कि उनके अद्भुत अनुग्रह की स्तुति हो, जो उन्होंने हमें अपने उस प्रिय में उदारतापूर्वक प्रदान किया है 7 और उन्हीं में हमें उनके बहुत अनुग्रह के अनुसार उनके लहू के द्वारा छुटकारा तथा अपराधों की क्षमा प्राप्त हुई, 8 यह अनुग्रह उन्होंने हम पर बहुतायत से बरसाया. उन्होंने सारी बुद्धिमानी और विवेक में 9 अपनी इच्छा का भेद हम पर अपने भले उद्धेश्य के अनुसार प्रकट किया, जो उन्होंने स्वयं मसीह में स्थापित की थी. 10 यह इंतज़ाम उन्होंने समयों को पूरा होने को ध्यान में रख कर मसीह में स्वर्ग तथा पृथ्वी की सभी वस्तुओं को इकट्ठा करने के लिए किया.
11 उन्हीं में उनके उद्धेश्य के अनुरूप, जो अपनी इच्छा के अनुसार सभी कुछ संचालित करते हैं, हमने पहले से ठहराए जाकर एक मीरास प्राप्त की है, 12 कि अन्त में हम, जिन्होंने पहले से मसीह में आशा रखी, उनकी महिमा की स्तुति के साधन हो जाएँ, 13 जिनमें तुम्हें भी, जिन्होंने सत्य का वचन अर्थात् अपने उद्धार का ईश्वरीय सुसमाचार सुनकर प्रभु मसीह येशु में विश्वास किया है, उन्हीं में प्रतिज्ञा किए हुए पवित्रात्मा से छाप लगाई गई. 14 यह हमारी मीरास के बयाने के रूप में, परमेश्वर की निज प्रजा के रूप में छुटकारे, और उनकी महिमा की स्तुति के लिए हमें प्रदान किए गए हैं.
मसीह येशु और हेरोदेस
14 राजा हेरोदेस तक इसका समाचार पहुँच गया क्योंकि मसीह येशु की ख्याति दूर दूर तक फैल गयी थी. कुछ तो यहाँ तक कह रहे थे, “बपतिस्मा देने वाले योहन मरे हुओं में से जीवित हो गए हैं. यही कारण है कि मसीह येशु में यह अद्भुत सामर्थ्य प्रकट है.”
15 कुछ कह रहे थे, “वह एलियाह हैं.”
कुछ यह भी कहते सुने गए, “वह एक भविष्यद्वक्ता हैं—अतीत में हुए भविष्यद्वक्ताओं के समान.”
16 यह सब सुन कर हेरोदेस कहता रहा, “योहन, जिसका मैंने वध करवाया था, जीवित हो गया है.”
17-18 स्वयं हेरोदेस ने योहन को बन्दी बना कर कारागार में डाल दिया था क्योंकि उसने अपने भाई फ़िलिप्पॉस की पत्नी हेरोदीअस से विवाह कर लिया था. योहन हेरोदेस को याद दिलाते रहते थे, “तुम्हारे लिए अपने भाई की पत्नी को रख लेना व्यवस्था के अनुसार नहीं है.” इसलिए 19 हेरोदीअस के मन में योहन के लिए शत्रुभाव पनप रहा था. वह उनका वध करवाना चाहती थी किन्तु उससे कुछ नहीं हो पा रहा था. 20 हेरोदेस योहन से डरता था क्योंकि वह जानता था कि योहन एक धर्मी और पवित्र व्यक्ति हैं. हेरोदेस ने योहन को सुरक्षित रखा था. योहन के प्रवचन सुन कर वह घबराता तो था फिर भी उसे उनके प्रवचन सुनना बहुत प्रिय था.
21 आखिरकार हेरोदीअस को वह मौका प्राप्त हो ही गया: अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हेरोदेस ने अपने सभी उच्च अधिकारियों, सेनापतियों और गलील प्रदेश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भोज पर आमन्त्रित किया. 22 इस अवसर पर हेरोदीअस की पुत्री ने वहाँ अपने नृत्य के द्वारा हेरोदेस और अतिथियों को मोह लिया. राजा ने पुत्री से कहा, “मुझसे चाहे जो माँग लो, मैं दूँगा.” 23 राजा ने सौगन्ध खाते हुए कहा, “तुम जो कुछ माँगोगी, मैं तुम्हें दूँगा—चाहे वह मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो.” 24 अपनी माँ के पास जा कर उसने पूछा.
“क्या माँगूँ?” “बपतिस्मा देने वाले योहन का सिर,” उसने कहा.
25 पुत्री ने तुरन्त जा कर राजा से कहा, “मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय एक बर्तन में बपतिस्मा देने वाले योहन का सिर ला कर दें.”
26 हालांकि राजा को इससे गहरा दुःख तो हुआ किन्तु आमन्त्रित अतिथियों के सामने ली गई अपनी सौगन्ध के कारण वह अस्वीकार न कर सका. 27 तत्काल राजा ने एक जल्लाद को बुलवाया और योहन का सिर ले आने की आज्ञा दी. वह गया, कारागार में योहन का वध किया 28 और उनका सिर एक बर्तन में रख कर पुत्री को सौंप दिया और उसने जा कर अपनी माता को सौंप दिया. 29 जब योहन के शिष्यों को इसका समाचार प्राप्त हुआ, वे आए और योहन के शव को ले जा कर एक क़ब्र में रख दिया.
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