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Old/New Testament

Each day includes a passage from both the Old Testament and New Testament.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
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रोमियों 11:1-18

इस्राएल का शेषांश

11 तो मेरा प्रश्न यह है: क्या परमेश्वर ने अपनी प्रजा का त्याग कर दिया है? नहीं! बिलकुल नहीं! क्योंकि स्वयं मैं एक इस्राएली हूँ—अब्राहाम की सन्तान तथा बिन्यामीन का वंशज. परमेश्वर ने अपनी पूर्वावगत [a]प्रजा का त्याग नहीं कर दिया या क्या तुम यह नहीं जानते कि पवित्रशास्त्र में एलियाह से सम्बन्धित भाग में क्या कहा गया है—इस्राएल के विरुद्ध होकर वह परमेश्वर से कैसे विनती करते हैं: प्रभु, उन्होंने आपके भविष्यद्वक्ताओं की हत्या कर दी है, उन्होंने आपकी वेदियाँ ध्वस्त कर दीं. मात्र मैं शेष रहा हूँ और अब वे मेरे प्राणों के प्यासे हैं? इस पर परमेश्वर का उत्तर क्या था? “मैंने अपने लिए ऐसे सात हज़ार व्यक्ति चुन रखे हैं, जो बाअल देवता के सामने नतमस्तक नहीं हुए हैं.” ठीक इसी प्रकार वर्तमान में भी परमेश्वर के अनुग्रह में एक थोड़ा भाग चुना गया है. अब, यदि इसकी उत्पत्ति अनुग्रह के द्वारा ही हुई है तो इसका आधार काम नहीं हैं नहीं तो अनुग्रह, अनुग्रह नहीं रह जाएगा.

तब इसका परिणाम क्या निकला? इस्राएलियों को तो वह प्राप्त हुआ नहीं, जिसे वे खोज रहे थे; इसके विपरीत जो चुने हुए थे, उन्होंने इसे प्राप्त कर लिया तथा शेष हठीले बना दिए गए. ठीक जिस प्रकार पवित्रशास्त्र का लेख है:

परमेश्वर ने उन्हें जड़ता की स्थिति में डाल दिया कि
    आज तक उनकी आँख देखने में तथा कान सुनने में असमर्थ हैं.

दाविद का लेख है:

उनके भोज्य पदार्थ उनके लिए परीक्षा और फन्दा
    तथा ठोकर का पत्थर और प्रतिशोध बन जाएँ.
10 उनके आँखें अंधी हो देखने में असमर्थ हो जाएँ तथा उनकी कमर स्थायी रूप से झुक जाए.

भविष्य में यहूदी अपने निर्धारित स्थान पर लाए जाएँगे

11 तो मेरा प्रश्न यह है: क्या उन्हें ऐसी ठोकर लगी कि वे कभी न उठ पाएँ? नहीं! बिलकुल नहीं! यहूदियों के गिरने के द्वारा ही अन्यजातियों को उद्धार प्राप्त हुआ है कि यहूदियों में जलनभाव उत्पन्न हो जाए. 12 यदि उनकी गिरावट ही संसार के लिए धन तथा उनकी असफलता ही अन्यजातियों के लिए संपत्ति साबित हुई है तो कितना ज़्यादा होगा उन सभी की भरपूरी का प्रभाव!

13 अब मैं तुमसे बातें करता हूँ, जो अन्यजाति हो. अब, जबकि मैं अन्यजातियों के लिए प्रेरित हूँ, मुझे अपनी सेवकाई का गर्व है 14 कि मैं किसी भी रीति से कुटुम्बियों में जलनभाव उत्पन्न कर सकूँ तथा इसके द्वारा उनमें से कुछ को तो उद्धार प्राप्त हो सके; 15 क्योंकि यदि उनकी अस्वीकृति संसार से परमेश्वर के मेल-मिलाप का कारण बन गई है, तो उनकी स्वीकृति मरे हुओं में से जी उठने के अलावा क्या हो सकती है?

रोपी गई शाखाएँ

16 यदि भेंट का पहिला पेडा पवित्र ठहरा तो गुँधा हुआ सारा आटा ही पवित्र है. यदि की जड़ पवित्र है तो शाखाएँ भी पवित्र ही हुईं न? 17 किन्तु यदि कुछ शाखाएँ तोड़ी गईं तथा तुम, जो एक जंगली ज़ैतून हो, उनमें रोपे गए हो तथा उनके साथ ज़ैतून पेड़ की जड़ के अंग होने के कारण पौष्टिक सार के सहभागी बन गए हो 18 तो उन शाखाओं का घमण्ड़ न भरना. यदि तुम घमण्ड़ भरते ही हो तो इस सच्चाई पर विचार करो: यह तुम नहीं, जो जड़ के पोषक हो परन्तु जड़ ही है, जो तुम्हारा पोषक है.

Saral Hindi Bible (SHB)

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