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M’Cheyne Bible Reading Plan

The classic M'Cheyne plan--read the Old Testament, New Testament, and Psalms or Gospels every day.
Duration: 365 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
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प्रकाशन 21

स्वर्गीय येरूशालेम

21 तब मैंने एक नया स्वर्ग और एक नई पृथ्वी देखी, अब पहले का स्वर्ग और पहले की पृथ्वी का अस्तित्व न रहा था. समुद्र का अस्तित्व भी न रहा था. तब मैंने पवित्र नगरी, नई येरूशालेम को स्वर्ग से, परमेश्वर की ओर से उतरते हुए देखा. वह अपने वर के लिए खुबसूरती से सजाई गई वधू के जैसे सजी थी. तब मैंने सिंहासन से एक ऊँचे शब्द में यह कहते सुना, “देखो! मनुष्यों के बीच में परमेश्वर का निवास! अब परमेश्वर उनके बीच निवास करेंगे. वे उनकी प्रजा होंगे तथा स्वयं परमेश्वर उनके बीच होंगे. परमेश्वर उनकी आँखों से हर एक आँसू पोंछ देंगे. अब से मृत्यु मौजूद न रहेगी. अब न रहेगा विलाप, न रोना और न पीड़ा क्योंकि जो पहली बातें थीं, अब वे न रहीं.”

उन्होंने, जो सिंहासन पर विराजमान हैं, कहा, “देखो! अब मैं नई सृष्टि की रचना कर रहा हूँ!” तब उन्होंने मुझे सम्बोधित करते हुए कहा, “लिखो, क्योंकि जो कुछ कहा जा रहा है, सच और विश्वासयोग्य है.”

तब उन्होंने आगे कहा, “सब पूरा हो चुका! मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ—आदि तथा अन्त. मैं उसे, जो प्यासा है, जीवन-जल के सोतों से मुफ्त में पीने को दूँगा. जो जयवन्त होगा, उसे यह उत्तराधिकार प्राप्त होगा: मैं उसका परमेश्वर होऊँगा, और वह मेरी सन्तान. किन्तु डरपोकों, अविश्वासियों, निन्दनियों, हत्यारों, व्यभिचारियों, टोन्हों, मूर्तिपूजकों और सभी झूठ बोलनेवालों का स्थान उस झील में होगा, जो आग तथा गन्धक से धधकती रहती है. यही है दूसरी मृत्यु.”

मसीहिक येरूशालेम

तब जिन सात स्वर्गदूतों के पास सात अन्तिम विपत्तियों से भरे सात कटोरे थे, उनमें से एक ने मेरे पास आकर मुझसे कहा, “आओ, मैं तुम्हें वधू—मेमने की पत्नी दिखाऊँ.” 10 तब वह मुझे मेरी आत्मा में ध्यानमग्न अवस्था में एक बड़े पहाड़ के ऊँचे शिखर पर ले गया और मुझे परमेश्वर की ओर से स्वर्ग से उतरता हुआ पवित्र नगर येरूशालेम दिखाया. 11 परमेश्वर की महिमा से सुसज्जित उसकी आभा पारदर्शी स्फटिक जैसे बेशकीमती रत्न सूर्यकान्त के समान थी. 12 नगर की शहरपनाह ऊँची तथा विशाल थी. उसमें बारह द्वार थे तथा बारहों द्वारों पर बारह स्वर्गदूत ठहराए गए थे. उन द्वारों पर इस्राएल के बारह कुलों के नाम लिखे थे. 13 तीन द्वार पूर्व दिशा की ओर, तीन उत्तर की ओर, तीन पश्चिम की ओर तथा तीन दक्षिण की ओर थे. 14 नगर की शहरपनाह की बारह नीवें थीं. उन पर मेमने के बारहों प्रेरितों के नाम लिखे थे.

15 जो स्वर्गदूत, मुझे सम्बोधित कर रहा था, उसके पास नगर, उसके द्वार तथा उसकी शहरपनाह को मापने के लिए सोने का एक मापक-दण्ड था. 16 नगर की संरचना वर्गाकार थी—उसकी लम्बाई उसकी चौड़ाई के बराबर थी. उसने नगर को इस मापदण्ड से मापा. नगर 2,220 किलोमीटर लम्बा, इतना ही चौड़ा और इतना ही ऊँचा था. 17 तब उसने शहरपनाह को मापा. वह सामान्य मानवीय मापदण्ड के अनुसार 65 मीटर थी. यही माप स्वर्गदूत का भी था. 18 शहरपनाह सूर्यकान्त मणि की तथा नगर शुद्ध सोने का बना था, जिसकी आभा निर्मल काँच के समान थी. 19 शहरपनाह की नींव हर एक प्रकार के कीमती पत्थरों से सजायी गयी थी: पहला पत्थर था सूर्यकान्त, दूसरा नीलकान्त, तीसरा स्फटिक, चौथा पन्ना 20 पांचवां गोमेद, छठा माणिक्य, सातवां स्वर्णमणि; आठवाँ हरितमणि; नवाँ पुखराज; दसवां चन्द्रकान्त; ग्यारहवाँ धूम्रकान्त और बारहवाँ नीलम. 21 नगर के बारहों द्वार बारह मोती थे—हर एक द्वार एक पूरा मोती था तथा नगर का प्रधान मार्ग शुद्ध सोने का बना था, जिसकी आभा निर्मल काँच के समान थी.

22 इस नगर में मुझे कोई मन्दिर दिखाई न दिया क्योंकि स्वयं सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर और मेमना इसका मन्दिर हैं. 23 नगर को रोशनी देने के लिए न तो सूर्य की ज़रूरत है न चन्द्रमा की क्योंकि परमेश्वर का तेज उसे उजियाला देता है तथा स्वयं मेमना इसका दीपक है. 24 राष्ट्र उसकी रोशनी में वास करेंगे तथा पृथ्वी के राजा इसमें अपना वैभव ले आएंगे. 25 दिन की समाप्ति पर नगर-द्वार कभी बन्द न किए जाएँगे क्योंकि रात यहाँ कभी होगी ही नहीं. 26 सभी राष्ट्रों का वैभव और आदर इसमें लाया जाएगा. 27 कोई भी अशुद्ध वस्तु इस नगर में न तो प्रवेश हो सकेगी और न ही वह, जिसका स्वभाव लज्जास्पद और बातें झूठ से भरी है, इसमें प्रवेश वे ही कर पाएँगे, जिनके नाम मेमने की जीवन-पुस्तक में लिखे हैं.

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योहन 20

मसीह येशु का पुनरुत्थान दिवस

(मत्ति 28:1-7; मारक 16:1-8; लूकॉ 24:1-12)

20 सप्ताह के पहिले दिन, सूर्योदय के पूर्व, जब अंधेरा ही था, मगदालावासी मरियम कन्दरा-क़ब्र पर आईं और उन्होंने देखा कि क़ब्र के प्रवेश द्वार से पत्थर पहले ही हटा हुआ है. सो वह दौड़ती हुई शिमोन पेतरॉस और उस शिष्य के पास गईं, जो मसीह येशु का प्रियजन था और उनसे कहा, “वे प्रभु को क़ब्र में से उठा ले गए हैं और हम नहीं जानते कि उन्होंने उन्हें कहाँ रखा है.”

तब पेतरॉस और वह अन्य शिष्य क़ब्र की ओर चल पड़े. वे दोनों साथ-साथ दौड़ रहे थे किन्तु वह अन्य शिष्य दौड़ते हुए पेतरॉस से आगे निकल गया और क़ब्र पर पहले पहुँच गया. उसने झुक कर अंदर झाँका और देखा कि वहाँ कपड़े की पट्टियों का ढेर लगा है किन्तु वह भीतर नहीं गया. शिमोन पेतरॉस भी उसके पीछे-पीछे आए और उन्होंने क़ब्र में प्रवेश कर वहाँ कपड़े की पट्टियों का ढेर और उस अँगोछे को भी, जो मसीह येशु के सिर पर बाँधा गया था, कपड़े की पट्टियों के ढेर के साथ नहीं परन्तु अलग स्थान पर रखा हुआ पाया. तब वह अन्य शिष्य भी, जो क़ब्र पर पहले पहुँचा था, भीतर गया. उसने देखा और विश्वास किया. वे अब तक पवित्रशास्त्र की यह बात समझ नहीं पाए थे कि मसीह येशु का मरे हुओं में से जी उठना ज़रूर होगा. 10 सो शिष्य दोबारा अपने-अपने घर चले गए.

मगदालावासी मरियम को मसीह येशु का दर्शन

(मारक 16:9-11)

11 परन्तु मरियम क़ब्र की गुफ़ा के बाहर खड़ी रो रही थीं. उन्होंने रोते-रोते झुक कर क़ब्र की गुफ़ा के अंदर झाँका. 12 उन्होंने देखा कि जिस स्थान पर मसीह येशु का शव रखा था, वहाँ सफ़ेद कपड़ों में दो स्वर्गदूत बैठे हैं—एक सिर के पास और दूसरा पैर के पास. 13 उन्होंने उनसे पूछा, “तुम क्यों रो रही हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “वे मेरे प्रभु को यहाँ से ले गए हैं और मैं नहीं जानती कि उन्होंने उन्हें कहाँ रखा है.” 14 यह कह कर वह पीछे मुड़ीं तो मसीह येशु को खड़े देखा किन्तु वह पहचान न सकीं कि वह मसीह येशु हैं.

15 मसीह येशु ने उनसे पूछा, “तुम क्यों रो रही हो? किसे खोज रही हो?” उन्होंने उन्हें माली समझ कर कहा, “यदि आप उन्हें यहाँ से उठा ले गए हैं तो मुझे बता दीजिए कि आपने उन्हें कहाँ रखा है कि मैं उन्हें ले जाऊँ.”

16 इस पर मसीह येशु बोले, “मरियम!”

अपना नाम सुन वह मुड़ीं और उन्हें इब्री भाषा में बुलाकर कहा “रब्बूनी!” अर्थात् गुरुवर.

17 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मुझे मत छुओ क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया हूँ, किन्तु मेरे भाइयों को जा कर सूचित कर दो, ‘मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता तथा अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ.’”

18 मगदालावासी मरियम ने आ कर शिष्यों के सामने घोषणा की: “मैंने प्रभु को देखा है.” और उसने शिष्यों को वह सब बताया, जो प्रभु ने उससे कहा था.

प्रेरितों पर मसीह येशु का स्वयं को प्रकट करना

(लूकॉ 24:36-43)

19 उसी दिन, जो सप्ताह का पहला दिन था, सन्ध्या समय यहूदियों से भयभीत शिष्य द्वार बन्द किए हुए कमरे में इकट्ठा थे. मसीह येशु उनके बीच आ खड़े हुए और बोले, “तुममें शान्ति बनी रहे.” 20 यह कह कर उन्होंने उन्हें अपने हाथ और पांव दिखाए. प्रभु को देख कर शिष्य आनन्द से भर गए. 21 इस पर मसीह येशु ने दोबारा उनसे कहा, “तुममें शान्ति बनी रहे. जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा है, मैं भी तुम्हें भेजता हूँ” 22 तब उन्होंने उन पर फूंका और उनसे कहा, “पवित्रात्मा ग्रहण करो. 23 यदि तुम किसी के पाप-क्षमा करोगे, उनके पाप-क्षमा किए गए हैं और जिनके पाप तुम क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों में बँधे रहेंगे.”

मसीह येशु का थोमॉस को दर्शन

(मारक 16:14)

24 जब मसीह येशु अपने शिष्यों के पास आए थे, उस समय उनके बारह शिष्यों में से एक शिष्य थोमॉस, जिनका उपनाम दिदुमॉस था, वहाँ नहीं थे. 25 अन्य शिष्य उनसे कहते रहे, “हमने प्रभु को देखा है.” इस पर थोमॉस उनसे बोले, “जब तक मैं उनके हाथों में कीलों के वे चिह्न न देख लूँ और कीलों से छिदे उन हाथों में अपनी उँगली और उनकी पसली में अपना हाथ डाल कर न देख लूँ, तब तक मैं विश्वास कर ही नहीं सकता.”

26 आठ दिन के बाद मसीह येशु के शिष्य दोबारा उस कक्ष में इकट्ठा थे और इस समय थोमॉस उनके साथ थे. सारे द्वार बन्द होने पर भी मसीह येशु उनके बीच आ खड़े हुए और उनसे कहा, “तुममें शान्ति बनी रहे.” 27 तब उन्होंने थोमॉस की ओर मुख कर कहा, “अपनी उँगली से मेरे हाथों को छू कर देखो और अपना हाथ बढ़ा कर मेरी पसली में डालो; अविश्वासी न रह कर, विश्वासी बनो.”

28 थोमॉस बोल उठे, “मेरे प्रभु! मेरे परमेश्वर!”

29 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुमने तो विश्वास इसलिए किया है कि तुमने मुझे देख लिया, धन्य हैं वे, जिन्होंने मुझे नहीं देखा फिर भी विश्वास किया.”

ईश्वरीय सुसमाचार का उद्देश्य

30 मसीह येशु ने अपने शिष्यों के सामने अनेक अद्भुत चिह्न दिखाए, जिनका वर्णन इस पुस्तक में नहीं है 31 परन्तु ये, जो लिखे गए हैं, इसलिए कि तुम विश्वास करो कि येशु ही वह मसीह हैं, वही परमेश्वर के पुत्र हैं और इसी विश्वास के द्वारा तुम उनमें जीवन प्राप्त करो.

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