The Daily Audio Bible
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23 फिर अय्यूब ने उत्तर देते हुये कहा:
2 “मैं आज भी बुरी तरह शिकायत करता हूँ कि परमेश्वर मुझे कड़ा दण्ड दे रहा है,
इसलिये मैं शिकायत करता रहता हूँ।
3 काश! मैं यह जान पाता कि उसे कहाँ खोजूँ!
काश! मैं जान पाता की परमेश्वर के पास कैसे जाऊँ!
4 मैं अपनी कथा परमेश्वर को सुनाता,
मेरा मुँह युक्तियों से भरा होता यह दर्शाने को कि मैं निर्दोष हूँ।
5 मैं यह जानना चाहता हूँ कि परमेश्वर कैसे मेरे तर्को का उत्तर देता है,
तब मैं परमेश्वर के उत्तर समझ पाता।
6 क्या परमेश्वर अपनी महाशक्ति के साथ मेरे विरुद्ध होता
नहीं! वह मेरी सुनेगा।
7 मैं एक नेक व्यक्ति हूँ।
परमेश्वर मुझे अपनी कहानी को कहने देगा, तब मेरा न्यायकर्ता परमेश्वर मुझे मुक्त कर देगा।
8 “किन्तु यदि मैं पूरब को जाऊँ तो परमेश्वर वहाँ नहीं है
और यदि मैं पश्चिम को जाऊँ, तो भी परमेश्वर मुझे नहीं दिखता है।
9 परमेश्वर जब उत्तर में क्रियाशील रहता है तो मैं उसे देख नहीं पाता हूँ।
जब परमेश्वर दक्षिण को मुड़ता है, तो भी वह मुझको नहीं दिखता है।
10 किन्तु परमेश्वर मेरे हर चरण को देखता है, जिसको मैं उठाता हूँ।
जब वह मेरी परीक्षा ले चुकेगा तो वह देखेगा कि मुझमें कुछ भी बुरा नहीं है, वह देखेगा कि मैं खरे सोने सा हूँ।
11 परमेश्वर जिस को चाहता है मैं सदा उस पर चला हूँ,
मैं कभी भी परमेश्वर की राह पर चलने से नहीं मुड़ा।
12 मैं सदा वही बात करता हूँ जिनकी आशा परमेश्वर देता है।
मैंने अपने मुख के भोजन से अधिक परमेश्वर के मुख के शब्दों से प्रेम किया है।
13 “किन्तु परमेश्वर कभी नहीं बदलता।
कोई भी व्यक्ति उसके विरुद्ध खड़ा नहीं रह सकता है।
परमेश्वर जो भी चाहता है, करता है।
14 परमेश्वर ने जो भी योजना मेरे विरोध में बना ली है वही करेगा,
उसके पास मेरे लिये और भी बहुत सारी योजनायें है।
15 मैं इसलिये डरता हूँ, जब इन सब बातों के बारे में सोचता हूँ।
इसलिये परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
16 परमेश्वर मेरे हृदय को दुर्बल करता है और मेरी हिम्मत टूटती है।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझको भयभीत करता है।
17 यद्यपि मेरा मुख सघन अंधकार ढकता है
तो भी अंधकार मुझे चुप नहीं कर सकता है।
24 “सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्यों नहीं न्याय करने के लिये समय नियुक्त करता है?
लोग जो परमेश्वर को मानते हैं उन्हें क्यों न्याय के समय की व्यर्थ बाट जोहनी पड़ती है
2 “लोग अपनी सम्पत्ति के चिन्हों को, जो उसकी सीमा बताते है,
सरकाते रहते हैं ताकि अपने पड़ोसी की थोड़ी और धरती हड़प लें!
लोग पशु को चुरा लेते हैं और उन्हें चरागाहों में हाँक ले जाते हैं।
3 अनाथ बच्चों के गधे को वे चुरा ले जाते हैं।
विधवा की गाय वे खोल ले जाते है। जब तक की वह उनका कर्ज नहीं चुकाती है।
4 वे दीन जन को मजबूर करते है कि वह छोड़ कर दूर हट जाने को विवश हो जाता है,
इन दुष्टों से स्वयं को छिपाने को।
5 “वे दीन जन उन जंगली गदहों जैसे हैं जो मरुभूमि में अपना चारा खोजा करते हैं।
गरीबों और उनके बच्चों को मरुभूमि भोजन दिया करता है।
6 गरीब लोग भूसा और चारा साथ साथ ऐसे उन खेतों से पाते हैं जिनके वे अब स्वामी नहीं रहे।
दुष्टों के अंगूरों के बगीचों से बचे फल वे बीना करते हैं।
7 दीन जन को बिना कपड़ों के रातें बितानी होंगी,
सर्दी में उनके पास अपने ऊपर ओढ़ने को कुछ नहीं होगा।
8 वे वर्षा से पहाड़ों में भीगें हैं, उन्हें बड़ी चट्टानों से सटे हुये रहना होगा,
क्योंकि उनके पास कुछ नहीं जो उन्हें मौसम से बचा ले।
9 बुरे लोग माता से वह बच्चा जिसका पिता नहीं है छीन लेते हैं।
गरीब का बच्चा लिया करते हैं, उसके बच्चे को, कर्ज के बदले में वे बन्धुवा बना लेते हैं।
10 गरीब लोगों के पास वस्त्र नहीं होते हैं, सो वे काम करते हुये नंगे रहा करते हैं।
दुष्टों के गट्ठर का भार वे ढोते है, किन्तु फिर भी वे भूखे रहते हैं।
11 गरीब लोग जैतून का तेल पेर कर निकालते हैं।
वे कुंडो में अंगूर रौंदते हैं फिर भी वे प्यासे रहते हैं।
12 मरते हुये लोग जो आहें भरते हैं। वे नगर में सुनाई देती हैं।
सताये हुये लोग सहारे को पुकारते हैं, किन्तु परमेश्वर नहीं सुनता है।
13 “कुछ ऐसे लोग हैं जो प्रकाश के विरुद्ध होते हैं।
वे नहीं जानना चाहते हैं कि परमेश्वर उनसे क्या करवाना चाहता है।
परमेश्वर की राह पर वे नहीं चलते हैं।
14 हत्यारा तड़के जाग जाया करता है गरीबों और जरुरत मंद लोगों की हत्या करता है,
और रात में चोर बन जाता है।
15 वह व्यक्ति जो व्यभिचार करता है, रात आने की बाट जोहा करता है,
वह सोचता है उसे कोई नहीं देखेगा और वह अपना मुख ढक लेता है।
16 दुष्ट जन जब रात में अंधेरा होता है, तो सेंध लगा कर घर में घुसते हैं।
किन्तु दिन में वे अपने ही घरों में छुपे रहते हैं, वे प्रकाश से बचते हैं।
17 उन दुष्ट लोगों का अंधकार सुबह सा होता है,
वे आतंक व अंधेरे के मित्र होते है।
18 “दुष्ट जन ऐसे बहा दिये जाते हैं, जैसे झाग बाढ़ के पानी पर।
वह धरती अभिशिप्त है जिसके वे मालिक हैं, इसलिये वे अंगूर के बगीचों में अगूंर बिनने नहीं जाते हैं।
19 जैसे गर्म व सूखा मौसम पिघलती बर्फ के जल को सोख लेता है,
वैसे ही दुष्ट लोग कब्र द्वारा निगले जायेंगे।
20 दुष्ट मरने के बाद उसकी माँ तक उसे भूल जायेगी, दुष्ट की देह को कीड़े खा जायेंगे।
उसको थोड़ा भी नहीं याद रखा जायेगा, दुष्ट जन गिरे हुये पेड़ से नष्ट किये जायेंगे।
21 ऐसी स्त्री को जिसके बच्चे नहीं हो सकते, दुष्ट जन उन्हें सताया करते हैं,
वे उस स्त्री को दु:ख देते हैं, वे किसी विधवा के प्रति दया नहीं दिखाते हैं।
22 बुरे लोग अपनी शक्ति का उपयोग बलशाली को नष्ट करने के लिये करते है।
बुरे लोग शक्तिशाली हो जायेंगे, किन्तु अपने ही जीवन का उन्हें भरोसा नहीं होगा कि वे अधिक दिन जी पायेंगे।
23 सम्भव है थोड़े समय के लिये परमेश्वर शक्तिशाली को सुरक्षित रहने दे,
किन्तु परमेश्वर सदा उन पर आँख रखता है।
24 दुष्ट जन थोड़े से समय के लिये सफलता पा जाते हैं किन्तु फिर वे नष्ट हो जाते हैं।
दूसरे लोगों की तरह वे भी समेट लिये जाते हैं। अन्न की कटी हुई बाल के समान वे गिर जाते हैं।
25 “यदि ये बातें सत्य नहीं हैं तो
कौन प्रमाणित कर सकता है कि मैंने झूठ कहा है?
कौन दिखा सकता है कि मेरे शब्द प्रलयमात्र हैं?”
बिल्दद का अय्यूब को उत्तर
25 फिर शूह प्रदेश के निवासी बिल्दद ने उत्तर देते हुये कहा:
2 “परमेश्वर शासक है और हर व्यक्ति को चाहिये की
परमेश्वर से डरे और उसका मान करे।
परमेश्वर अपने स्वर्ग के राज्य में शांति रखता है।
3 कोई उसकी सेनाओं को गिन नहीं सकता है,
परमेश्वर का प्रकाश सब पर चमकता है।
4 किन्तु सचमुच परमेश्वर के आगे कोई व्यक्ति उचित नहीं ठहर सकता है।
कोई व्यक्ति जो स्त्री से उत्पन्न हुआ सचमुच निर्दोष नहीं हो सकता है।
5 परमेश्वर की आँखों के सामने चाँद तक चमकीला नहीं है।
परमेश्वर की आँखों के सामने तारे निर्मल नहीं हैं।
6 मनुष्य तो बहुत कम भले है।
मनुष्य तो बस गिंडार है एक ऐसा कीड़ा जो बेकार का होता है।”
अय्यूब का बिल्दद को उत्तर:
26 तब अय्यूब ने कहा:
2 “हे बिल्दद, सोपर और एलीपज जो लोग दुर्बल हैं तुम सचमुच उनको सहारा दे सकते हो।
अरे हाँ! तुमने दुर्बल बाँहों को फिर से शक्तिशाली बनाया है।
3 हाँ, तुमने निर्बुद्धि को अद्भुत सम्मत्ति दी है।
कैसा महाज्ञान तुमने दिखाया है!
4 इन बातों को कहने में किसने तुम्हारी सहायता की?
किसकी आत्मा ने तुम को प्रेरणा दी?
5 “जो लोग मर गये है
उनकी आत्मायें धरती के नीचे जल में भय से प्रकंपित हैं।
6 मृत्यु का स्थान परमेश्वर की आँखों के सामने खुला है,
परमेश्वर के आगे विनाश का स्थान ढका नहीं है।
7 उत्तर के नभ को परमेश्वर फैलाता है।
परमेश्वर ने व्योम के रिक्त पर अधर में धरती लटकायी है।
8 परमेश्वर बादलों को जल से भरता है,
किन्तु जल के प्रभार से परमेश्वर बादलों को फटने नहीं देता है।
9 परमेश्वर पूरे चन्द्रमा को ढकता है,
परमेश्वर चाँद पर निज बादल फैलाता है और उसको ढक देता है।
10 परमेश्वर क्षितिज को रचता है
प्रकाश और अन्धकार की सीमा रेखा के रूप में समुद्र पर।
11 जब परमेश्वर डाँटता है तो
वे नीवें जिन पर आकाश टिका है भय से काँपने लगती है।
12 परमेश्वर की शक्ति सागर को शांत कर देती है।
परमेश्वर की बुद्धि ने राहब (सागर के दैत्य) को नष्ट किया।
13 परमेश्वर का श्वास नभ को साफ कर देता है।
परमेश्वर के हाथ ने उस साँप को मार दिया जिसमें भाग जाने का यत्न किया था।
14 ये तो परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों की थोड़ी सी बातें हैं।
बस हम थोड़ा सा परमेश्वर के हल्की—ध्वनि भरे स्वर को सुनते हैं।
किन्तु सचमुच कोई व्यक्ति परमेश्वर के शक्ति के गर्जन को नहीं समझ सकता है।”
27 फिर अय्यूब ने आगे कहा:
2 “सचमुच परमेश्वर जीता है और यह जितना सत्य है कि परमेश्वर जीता है
सचमुच वह वैसे ही मेरे प्रति अन्यायपूर्ण रहा है।
हाँ! सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरे जीवन में कड़वाहट भरी है।
3 किन्तु जब तक मुझ में प्राण है
और परमेश्वर का साँस मेरी नाक में है।
4 तब तक मेरे होंठ बुरी बातें नहीं बोलेंगी,
और मेरी जीभ कभी झूठ नहीं बोलेगी।
5 मैं कभी नहीं मानूँगा कि तुम लोग सही हो!
जब तक मैं मरूँगा उस दिन तक कहता रहूँगा कि मैं निर्दोष हूँ!
6 मैं अपनी धार्मिकता को दृढ़ता से थामें रहूँगा।
मैं कभी उचित कर्म करना न छोडूँगा।
मेरी चेतना मुझे तंग नहीं करेगी जब तक मैं जीता हूँ।
7 मेरे शत्रुओं को दुष्ट जैसा बनने दे,
और उन्हें दण्डित होने दे जैसे दुष्ट जन दण्डित होते हैं।
8 ऐसे उस व्यक्ति के लिये मरते समय कोई आशा नहीं है जो परमेश्वर की परवाह नहीं करता है।
जब परमेश्वर उसके प्राण लेगा तब तक उसके लिये कोई आशा नहीं है।
9 जब वह बुरा व्यक्ति दु:खी पड़ेगा और उसको पुकारेगा,
परमेश्वर नहीं सुनेगा।
10 उसको चाहिये था कि वह उस आनन्द को चाहे जिसे केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर देता है।
उसको चाहिये की वह हर समय परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा।
11 “मैं तुमको परमेश्वर की शक्ति सिखाऊँगा।
मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की योजनायें नहीं छिपाऊँगा।
12 स्वयं तूने निज आँखों से परमेश्वर की शक्ति देखी है,
सो क्यों तू व्यर्थ बातें बनाता है
13 “दुष्ट लोगों के लिये परमेश्वर ने ऐसी योजना बनाई है,
दुष्ट लोगों को सर्वशक्तिशाली परमेश्वर से ऐसा ही मिलेगा।
14 दुष्ट की चाहे कितनी ही संताने हों, किन्तु उसकी संताने युद्ध में मारी जायेंगी।
दुष्ट की संताने कभी भरपेट खाना नहीं पायेंगी।
15 और यदि दुष्ट की संताने उसकी मृत्यु के बाद भी जीवित रहें तो महामारी उनको मार डालेंगी!
उनके पुत्रों की विधवायें उनके लिये दु:खी नहीं होंगी।
16 दुष्ट जन चाहे चाँदी के ढेर इकट्ठा करे,
इतने विशाल ढेर जितनी धूल होती है, मिट्टी के ढेरों जैसे वस्त्र हो उसके पास
17 जिन वस्त्रों को दुष्ट जन जुटाता रहा उन वस्त्रों को सज्जन पहनेगा,
दुष्ट की चाँदी निर्दोषों में बँटेगी।
18 दुष्ट का बनाया हुआ घर अधिक दिनों नहीं टिकता है,
वह मकड़ी के जाले सा अथवा किसी चौकीदार के छप्पर जैसा अस्थिर होता है।
19 दुष्ट जन अपनी निज दौलत के साथ अपने बिस्तर पर सोने जाता है,
किन्तु एक ऐसा दिन आयेगा जब वह फिर बिस्तर में वैसे ही नहीं जा पायेगा।
जब वह आँख खोलेगा तो उसकी सम्पत्ति जा चुकेगी।
20 दु:ख अचानक आई हुई बाढ़ सा उसको झपट लेंगे,
उसको रातों रात तूफान उड़ा ले जायेगा।
21 पुरवाई पवन उसको दूर उड़ा देगी,
तूफान उसको बुहार कर उसके घर के बाहर करेगा।
22 दुष्ट जन तूफान की शक्ति से बाहर निकलने का जतन करेगा
किन्तु तूफान उस पर बिना दया किये हुए चपेट मारेगा।
23 जब दुष्ट जन भागेगा, लोग उस पर तालियाँ बजायेंगे, दुष्ट जन जब निकल भागेगा।
अपने घर से तो लोग उस पर सीटियाँ बजायेंगे।
पौलुस की योजनाओं में परिवर्तन
12 हमें इसका गर्व है कि हम यह बात साफ मन से कह सकते हैं कि हमने इस जगत के साथ और खासकर तुम लोगों के साथ परमेश्वर के अनुग्रह के अनुरूप व्यवहार किया है। हमने उस सरलता और सच्चाई के साथ व्यवहार किया है जो परमेश्वर से मिलती है न कि दुनियावी बुद्धि से। 13 हाँ! इसीलिये हम उसे छोड़ तुम्हें बस और कुछ नहीं लिख रहे हैं, जिससे तुम हमें पूरी तरह वैसे ही समझ लोगे। 14 जैसे तुमने हमें आंशिक रुप से समझा है। तुम हमारे लिये वैसे ही गर्व कर सकते हो जैसे हम तुम्हारे लिये उस दिन गर्व करेंगे जब हमारा प्रभु यीशु फिर आयेगा।
15 और इसी विश्वास के कारण मैंने पहले तुम्हारे पास आने की ठानी थी ताकि तुम्हें दोबारा से आशीर्वाद का लाभ मिल सके। 16 मैं सोचता हूँ कि मकिदुनिया जाते हुए तुमसे मिलूँ और जब मकिदुनिया से लौटूँ तो फिर तुम्हारे पास जाऊँ। और फिर, तुम्हारे द्वारा ही यहूदिया के लिये विदा किया जाऊँ। 17 मैंने जब ये योजनाएँ बनायी थीं, तो मुझे कोई संशय नहीं था। या मैं जो योजनाएँ बनाता हूँ तो क्या उन्हें सांसारिक ढंग से बनाता हूँ कि एक ही समय “हाँ, हाँ” भी कहता रहूँ और “ना, ना” भी करता रहूँ।
18 परमेश्वर विश्वसनीय है और वह इसकी साक्षी देगा कि तुम्हारे प्रति हमारा जो वचन है एक साथ “हाँ” और “ना” नहीं कहता। 19 क्योंकि तुम्हारे बीच जिस परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह का हमने, यानी सिलवानुस, तिमुथियुस और मैंने प्रचार किया है, वह “हाँ” और “ना” दोनों एक साथ नहीं है बल्कि उसके द्वारा एक चिरन्तन “हाँ” की ही घोषणा की गयी है। 20 क्योंकि परमेश्वर ने जो अनन्त प्रतिज्ञाएँ की हैं, वे यीशु में सब के लिए “हाँ” बन जाती हैं। इसलिए हम उसके द्वारा भी जो “आमीन” कहते हैं, वह परमेश्वर की ही महिमा के लिये होता है। 21 वह जो तुम्हें मसीह के व्यक्ति के रूप में हमारे साथ सुनिश्चित करता है और जिसने हमें भी अभिषिक्त किया है वह परमेश्वर ही है। 22 जिसने हम पर अपने स्वामित्व की मुहर लगायी और हमारे भीतर बयाने के रूप में वह पवित्र आत्मा दी जो इस बात का आश्वासन है कि जो देने का वचन उसने हमें दिया है, उसे वह हमें देगा।
23 साक्षी के रूप में परमेश्वर की दुहाई देते हुए और अपने जीवन की शपथ लेते हुए मैं कहता हूँ कि मैं दोबारा कुरिन्थुस इसलिए नहीं आया था कि मैं तुम्हें पीड़ा से बचाना चाहता था। 24 इसका अर्थ यह नहीं है कि हम तुम्हारे विश्वास पर काबू पाना चाहते हैं। तुम तो अपने विश्वास में अड़िग हो। बल्कि बात यह है कि हम तो तुम्हारी प्रसन्नता के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं।
2 इसीलिए मैंने यह निश्चय कर लिया था कि तुम्हें फिर से दुःख देने तुम्हारे पास न आऊँ। 2 क्योंकि यदि मैं तुम्हें दुःखी करूँगा तो फिर भला ऐसा कौन होगा जो मुझे सुखी करेगा? सिवाय तुम्हें जिन्हें मैंने दुःख दिया है। 3 यही बात तो मैंने तुम्हें लिखी है कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँ तो जिनसे मुझे आनन्द मिलना चाहिए, उनके द्वारा मुझे दुःख न पहुँचाया जाये। क्योंकि तुम सब में मेरा यह विश्वास रहा है कि मेरी प्रसन्नता में ही तुम सब प्रसन्न होगे। 4 क्योंकि तुम्हें मैंने दुःख भरे मन और वेदना के साथ आँसू बहा-बहा कर यह लिखा है। पर तुम्हें दुःखी करने के लिये नहीं, बल्कि इसलिए कि तुम्हारे प्रति जो मेरा प्रेम है, वह कितना महान है, तुम इसे जान सको।
बुरा करने वाले को क्षमा कर
5 किन्तु यदि किसी ने मुझे कोई दुःख पहुँचाया है तो वह मुझे ही नहीं, बल्कि किसी न किसी मात्रा में तुम सब को पहुँचाया है। 6 ऐसे व्यक्ति को तुम्हारे समुदाय ने जो दण्ड दे दिया है, वही पर्याप्त है। 7 इसलिए तुम तो अब उसके विपरीत उसे क्षमा कर दो और उसे प्रोत्साहित करो ताकि वह कहीं बढ़े चढ़े दुःख में ही डूब न जाये। 8 इसलिए मेरी तुमसे विनती है कि तुम उसके प्रति अपने प्रेम को बढ़ाओ। 9 यह मैंने तुम्हें यह देखने के लिये लिखा है कि तुम परीक्षा में पूरे उतरते हो कि नहीं और सब बातों में आज्ञाकारी रहोगे या नहीं। 10 किन्तु यदि तुम किसी को किसी बात के लिये क्षमा करते हो तो उसे मैं भी क्षमा करता हूँ और जो कुछ मैंने क्षमा किया है (यदि कुछ क्षमा किया है), तो वह मसीह की उपस्थिति में तुम्हारे लिये ही किया है। 11 ताकि हम शैतान से मात न खा जाये। क्योंकि उसकी चालों से हम अनजान नहीं हैं।
संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।
1 दीन का सहायक बहुत पायेगा।
ऐसे मनुष्य पर जब विपत्ति आती है, तब यहोवा उस को बचा लेगा।
2 यहोवा उस जन की रक्षा करेगा और उसका जीवन बचायेगा।
वह मनुष्य धरती पर बहुत वरदान पायेगा।
परमेश्वर उसके शत्रुओं द्वारा उसका नाश नहीं होने देगा।
3 जब मनुष्य रोगी होगा और बिस्तर में पड़ा होगा,
उसे यहोवा शक्ति देगा। वह मनुष्य बिस्तर में चाहे रोगी पड़ा हो किन्तु यहोवा उसको चँगा कर देगा!
4 मैंने कहा, “यहोवा, मुझ पर दया कर।
मैंने तेरे विरद्ध पाप किये हैं, किन्तु मुझे और अच्छा कर।”
5 मेरे शत्रु मेरे लिये अपशब्द कह रहे हैं,
वे कहा रहे हैं, “यह कब मरेगा और कब भुला दिया जायेगा?”
6 कुछ लोग मेरे पास मिलने आते हैं।
पर वे नहीं कहते जो सचमुच सोच रहे हैं।
वे लोग मेरे विषय में कुछ पता लगाने आते
और जब वे लौटते अफवाह फैलाते।
7 मेरे शत्रु छिपे छिपे मेरी निन्दायें कर रहे हैं।
वे मेरे विरद्ध कुचक्र रच रहे हैं।
8 वे कहा करते हैं, “उसने कोई बुरा कर्म किया है,
इसी से उसको कोई बुरा रोग लगा है।
मुझको आशा है वह कभी स्वस्थ नहीं होगा।”
9 मेरा परम मित्र मेरे संग खाता था।
उस पर मुझको भरोसा था। किन्तु अब मेरा परम मित्र भी मेरे विरुद्ध हो गया है।
10 सो हे यहोवा, मुझ पर कृपा कर और मुझ पर कृपालु हो।
मुझको खड़ा कर कि मैं प्रतिशोध ले लूँ।
11 हे यहोवा, यदि तू मेरे शत्रुओं को बुरा नहीं करने देगा,
तो मैं समझूँगा कि तूने मुझे अपना लिया है।
12 मैं निर्दोष था और तूने मेरी सहायता की।
तूने मुझे खड़ा किया और मुझे तेरी सेवा करने दिया।
13 इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा धन्य है!
वह सदा था, और वह सदा रहेगा।
आमीन, आमीन!
5 कुटिल की राहें काँटों से भरी होती है और वहाँ पर फंदे फैले होते हैं; किन्तु जो निज आत्मा की रक्षा करता है वह तो उनसे दूर ही रहता है।
6 बच्चे को यहोवा की राह पर चलाओ वह बुढ़ापे में भी उस से भटकेगा नहीं।
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