The Daily Audio Bible
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16 इस पर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 “मैंने पहले ही ये बातें सुनी हैं।
तुम तीनों मुझे दु:ख देते हो, चैन नहीं।
3 तुम्हारी व्यर्थ की लम्बी बातें कभी समाप्त नहीं होती।
तुम क्यों तर्क करते ही रहते हो?
4 जैसे तुम कहते हो वैसी बातें तो मैं भी कर सकता हूँ,
यदि तुम्हें मेरे दु:ख झेलने पड़ते।
तुम्हारे विरोध में बुद्धिमत्ता की बातें मैं भी बना सकता हूँ
और अपना सिर तुम पर नचा सकता हूँ।
5 किन्तु मैं अपने वचनों से तुम्हारा साहस बढ़ा सकता हूँ और तुम्हारे लिये आशा बन्धा सकता हूँ?
6 “किन्तु जो कुछ मैं कहता हूँ उससे मेरा दु:ख दूर नहीं हो सकता।
किन्तु यदि मैं कुछ भी न कहूँ तो भी मुझे चैन नहीं पड़ता।
7 सचमुच हे परमेश्वर तूने मेरी शक्ति को हर लिया है।
तूने मेरे सारे घराने को नष्ट कर दिया है।
8 तूने मुझे बांध दिया और हर कोई मुझे देख सकता है। मेरी देह दुर्बल है,
मैं भयानक दिखता हूँ और लोग ऐसा सोचते हैं जिस का तात्पर्य है कि मैं अपराधी हूँ।
9 “परमेश्वर मुझ पर प्रहार करता है।
वह मुझ पर कुपित है और वह मेरी देह को फाड़ कर अलग कर देता है,
तथा परमेश्वर मेरे ऊपर दाँत पीसता है।
मुझे शत्रु घृणा भरी दृष्टि से घूरते हैं।
10 लोग मेरी हँसी करते हैं।
वे सभी भीड़ बना कर मुझे घेरने को और मेरे मुँह पर थप्पड़ मारने को सहमत हैं।
11 परमेश्वर ने मुझे दुष्ट लोगों के हाथ में अर्पित कर दिया है।
उसने मुझे पापी लोगों के द्वारा दु:ख दिया है।
12 मेरे साथ सब कुछ भला चंगा था
किन्तु तभी परमेश्वर ने मुझे कुचल दिया। हाँ,
उसने मुझे पकड़ लिया गर्दन से
और मेरे चिथड़े चिथड़े कर डाले।
परमेश्वर ने मुझको निशाना बना लिया।
13 परमेश्वर के तीरंदाज मेरे चारों तरफ है।
वह मेरे गुर्दों को बाणों से बेधता है।
वह दया नहीं दिखाता है।
वह मेरे पित्त को धरती पर बिखेरता है।
14 परमेश्वर मुझ पर बार बार वार करता है।
वह मुझ पर ऐसे झपटता है जैसे कोई सैनिक युद्ध में झपटता है।
15 “मैं बहुत ही दु:खी हूँ
इसलिये मैं टाट के वस्त्र पहनता हूँ।
यहाँ मिट्टी और राख में मैं बैठा रहता हूँ
और सोचा करता हूँ कि मैं पराजित हूँ।
16 मेरा मुख रोते—बिलखते लाल हुआ।
मेरी आँखों के नीचे काले घेरे हैं।
17 मैंने किसी के साथ कभी भी क्रूरता नहीं की।
किन्तु ये बुरी बातें मेरे साथ घटित हुई।
मेरी प्रार्थनाऐं सही और सच्चे हैं।
18 “हे पृथ्वी, तू कभी उन अत्याचारों को मत छिपाना जो मेरे साथ किये गये हैं।
मेरी न्याय की विनती को तू कभी रूकने मत देना।
19 अब तक भी सम्भव है कि वहाँ आकाश में कोई तो मेरे पक्ष में हो।
कोई ऊपर है जो मुझे दोषरहित सिद्ध करेगा।
20 मेरे मित्र मेरे विरोधी हो गये हैं
किन्तु परमेश्वर के लिये मेरी आँखें आँसू बहाती हैं।
21 मुझे कोई ऐसा व्यक्ति चाहिये जो परमेश्वर से मेरा मुकदमा लड़े।
एक ऐसा व्यक्ति जो ऐसे तर्क करे जैसे निज मित्र के लिये करता हो।
22 “कुछ ही वर्ष बाद मैं वहाँ चला जाऊँगा
जहाँ से फिर मैं कभी वापस न आऊँगा (मृत्यु)।
17 “मेरा मन टूट चुका है।
मेरा मन निराश है।
मेरा प्राण लगभग जा चुका है।
कब्र मेरी बाट जोह रही है।
2 लोग मुझे घेरते हैं और मुझ पर हँसते हैं।
जब लोग मुझे सताते हैं और मेरा अपमान करते है, मैं उन्हें देखता हूँ।
3 “परमेश्वर, मेरे निरपराध होने का शपथ—पत्र मेरा स्वीकार कर।
मेरी निर्दोषता की साक्षी देने के लिये कोई तैयार नहीं होगा।
4 मेरे मित्रों का मन तूने मूँदा अत:
वे मुझे कुछ नहीं समझते हैं।
कृपा कर उन को मत जीतने दे।
5 लोगों की कहावत को तू जानता है।
मनुष्य जो ईनाम पाने को मित्र के विषय में गलत सूचना देते हैं,
उनके बच्चे अन्धे हो जाया करते हैं।
6 परमेश्वर ने मेरा नाम हर किसी के लिये अपशब्द बनाया है
और लोग मेरे मुँह पर थूका करते हैं।
7 मेरी आँख लगभग अन्धी हो चुकी है क्योंकि मैं बहुत दु:खी और बहुत पीड़ा में हूँ।
मेरी देह एक छाया की भाँति दुर्बल हो चुकी है।
8 मेरी इस दुर्दशा से सज्जन बहुत व्याकुल हैं।
निरपराधी लोग भी उन लोगों से परेशान हैं जिनको परमेश्वर की चिन्ता नहीं है।
9 किन्तु सज्जन नेकी का जीवन जीते रहेंगे।
निरपराधी लोग शक्तिशाली हो जायेंगे।
10 “किन्तु तुम सभी आओ और फिर मुझ को दिखाने का यत्न करो कि सब दोष मेरा है।
तुममें से कोई भी विवेकी नहीं।
11 मेरा जीवन यूँ ही बात रहा है।
मेरी याजनाऐं टूट गई है और आशा चली गई है।
12 किन्तु मेरे मित्र रात को दिन सोचा करते हैं।
जब अन्धेरा होता है, वे लोग कहा करते हैं, ‘प्रकाश पास ही है।’
13 “यदि मैं आशा करूँ कि अन्धकारपूर्ण कब्र
मेरा घर और बिस्तर होगा।
14 यदि मैं कब्र से कहूँ ‘तू मेरा पिता है’
और कीड़े से ‘तू मेरी माता है अथवा तू मेरी बहन है।’
15 किन्तु यदि वह मेरी एकमात्र आशा है तब तो कोई आशा मुझे नहीं हैं
और कोई भी व्यक्ति मेरे लिये कोई आशा नहीं देख सकता है।
16 क्या मेरी आशा भी मेरे साथ मृत्यु के द्वार तक जायेगी?
क्या मैं और मेरी आशा एक साथ धूल में मिलेंगे?”
अय्यूब को बिल्दद का उत्तर
18 फिर शूही प्रदेश के बिल्दद ने उत्तर देते हूए कहा:
2 “अय्यूब, इस तरह की बातें करना तू कब छोड़ेगा
तुझे चुप होना चाहिये और फिर सुनना चाहिये।
तब हम बातें कर सकते हैं।
3 तू क्यों यह सोचता हैं कि हम उतने मूर्ख हैं जितनी मूर्ख गायें।
4 अय्यूब, तू अपने क्रोध से अपनी ही हानि कर रहा है।
क्या लोग धरती बस तेरे लिये छोड़ दे? क्या तू यह सोचता है कि
बस तुझे तृप्त करने को परमेश्वर धरती को हिला देगा?
5 “हाँ, बुरे जन का प्रकाश बुझेगा
और उसकी आग जलना छोड़ेगी।
6 उस के तम्बू का प्रकाश काला पड़ जायेगा
और जो दीपक उसके पास है वह बुझ जायेगा।
7 उस मनुष्य के कदम फिर कभी मजबूत और तेज नहीं होंगे।
किन्तु वह धीरे चलेगा और दुर्बल हो जायेगा।
अपने ही कुचक्रों से उसका पतन होगा।
8 उसके अपने ही कदम उसे एक जाल के फन्दे में गिरा देंगे।
वह चल कर जाल में जायेगा और फंस जायेगा।
9 कोई जाल उसकी एड़ी को पकड़ लेगा।
एक जाल उसको कसकर जकड़ लेगा।
10 एक रस्सा उसके लिये धरती में छिपा होगा।
कोई जाल राह में उसकी प्रतीक्षा में है।
11 उसके तरफ आतंक उसकी टोह में हैं।
उसके हर कदम का भय पीछा करता रहेगा।
12 भयानक विपत्तियाँ उसके लिये भूखी हैं।
जब वह गिरेगा, विनाश और विध्वंस उसके लिये तत्पर रहेंगे।
13 महाव्याधि उसके चर्म के भागों को निगल जायेगी।
वह उसकी बाहों और उसकी टाँगों को सड़ा देगी।
14 अपने घर की सुरक्षा से दुर्जन को दूर किया जायेगा
और आतंक के राजा से मिलाने के लिये उसको चलाकर ले जाया जायेगा।
15 उसके घर में कुछ भी न बचेगा
क्योंकि उसके समूचे घर में धधकती हुई गन्धक बिखेरी जायेगी।
16 नीचे गई जड़ें उसकी सूख जायेंगी
और उसके ऊपर की शाखाएं मुरझा जायेंगी।
17 धरती के लोग उसको याद नहीं करेंगे।
बस अब कोई भी उसको याद नहीं करेगा।
18 प्रकाश से उसको हटा दिया जायेगा और वह अंधकार में धकेला जायेगा।
वे उसको दुनियां से दूर भाग देंगे।
19 उसकी कोई सन्तान नहीं होगी अथवा उसके लोगों के कोई वंशज नहीं होंगे।
उसके घर में कोई भी जीवित नहीं बचेगा।
20 पश्चिम के लोग सहमें रह जायेंगे जब वे सुनेंगे कि उस दुर्जन के साथ क्या घटी।
लोग पूर्व के आतंकित हो सुन्न रह जायेंगे।
21 सचमुच दुर्जन के घर के साथ ऐसा ही घटेगा।
ऐसी ही घटेगा उस व्यक्ति के साथ जो परमेश्वर की परवाह नहीं करते।”
अय्यूब का उत्तर
19 तब अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 “कब तक तुम मुझे सताते रहोगे
और शब्दों से मुझको तोड़ते रहोगे?
3 अब देखों, तुमने दसियों बार मुझे अपमानित किया है।
मुझ पर वार करते तुम्हें शर्म नहीं आती है।
4 यदि मैंने पाप किया तो यह मेरी समस्या है।
यह तुम्हें हानि नहीं पहुँचाता।
5 तुम बस यह चाहते हो कि तुम मुझसे उत्तम दिखो।
तुम कहते हो कि मेरे कष्ट मुझ को दोषी प्रमाणित करते हैं।
6 किन्तु वह तो परमेश्वर है जिसने मेरे साथ बुरा किया है
और जिसने मेरे चारों तरफ अपना फंदा फैलाया है।
7 मैं पुकारा करता हूँ, ‘मेरे संग बुरा किया है।’
लेकिन मुझे कोई उत्तर नहीं मिलता हूँ।
चाहे मैं न्याय की पुकार पुकारा करुँ मेरी कोई नहीं सुनता है।
8 मेरा मार्ग परमेश्वर ने रोका है, इसलिये उसको मैं पार नहीं कर सकता।
उसने अंधकार में मेरा मार्ग छुपा दिया है।
9 मेरा सम्मान परमेश्वर ने छीना है।
उसने मेरे सिर से मुकुट छीन लिया है।
10 जब तक मेरा प्राण नहीं निकल जाता, परमेश्वर मुझ को करवट दर करवट पटकियाँ देता है।
वह मेरी आशा को ऐसे उखाड़ता है
जैसे कोई जड़ से वृक्ष को उखाड़ दे।
11 मेरे विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध भड़क रहा है।
वह मुझे अपना शत्रु कहता है।
12 परमेश्वर अपनी सेना मुझ पर प्रहार करने को भेजता है।
वे मेरे चारों और बुर्जियाँ बनाते हैं।
मेरे तम्बू के चारों ओर वे आक्रमण करने के लिये छावनी बनाते हैं।
13 “मेरे बन्धुओं को परमेश्वर ने बैरी बनाया।
अपने मित्रों के लिये मैं पराया हो गया।
14 मेरे सम्बन्धियों ने मुझको त्याग दिया।
मेरे मित्रों ने मुझको भुला दिया।
15 मेरे घर के अतिथि और मेरी दासियाँ
मुझे ऐसे दिखते हैं मानों अन्जाना या परदेशी हूँ।
16 मैं अपने दास को बुलाता हूँ पर वह मेरी नहीं सुनता है।
यहाँ तक कि यदि मैं सहायता माँगू तो मेरा दास मुझको उत्तर नहीं देता।
17 मेरी ही पत्नी मेरे श्वास की गंध से घृणा करती है।
मेरे अपनी ही भाई मुझ से घृणा करते हैं।
18 छोटे बच्चे तक मेरी हँसी उड़ाते है।
जब मैं उनके पास जाता हूँ तो वे मेरे विरुद्ध बातें करते हैं।
19 मेरे अपने मित्र मुझ से घृणा करते हैं।
यहाँ तक कि ऐसे लोग जो मेरे प्रिय हैं, मेरे विरोधी बन गये हैं।
20 “मैं इतना दुर्बल हूँ कि मेरी खाल मेरी हड्डियों पर लटक गई।
अब मुझ में कुछ भी प्राण नहीं बचा है।
21 “हे मेरे मित्रों मुझ पर दया करो, दया करो मुझ पर
क्योंकि परमेश्वर का हाथ मुझ को छू गया है।
22 क्यों मुझे तुम भी सताते हो जैसे मुझको परमेश्वर ने सताया है?
क्यों मुझ को तुम दु:ख देते और कभी तृप्त नहीं होते हो?
23 “मेरी यह कामना है, कि जो मैं कहता हूँ उसे कोई याद रखे और किसी पुस्तक में लिखे।
मेरी यह कामना है, कि काश! मेरे शब्द किसी गोल पत्रक पर लिखी जाती।
24 मेरी यह कामना है काश! मैं जिन बातों को कहता उन्हें किसी लोहे की टाँकी से सीसे पर लिखा जाता,
अथवा उनको चट्टान पर खोद दिया जाता, ताकि वे सदा के लिये अमर हो जाती।
25 मुझको यह पता है कि कोई एक ऐसा है, जो मुझको बचाता है।
मैं जानता हूँ अंत में वह धरती पर खड़ा होगा और मुझे बचायेगा।
26 यहाँ तक कि मेरी चमड़ी नष्ट हो जाये, किन्तु काश,
मैं अपने जीते जी परमेश्वर को देख सकूँ।
27 अपने लिये मैं परमेश्वर को स्वयं देखना चाहता हूँ।
मैं चाहता हूँ कि स्वयं उसको अपनी आँखों से देखूँ न कि किसी दूसरे की आँखों से।
मेरा मन मुझ में ही उतावला हो रहा है।
28 “सम्भव है तुम कहो, ‘हम अय्यूब को तंग करेंगे।
उस पर दोष मढ़ने का हम को कोई कारण मिल जायेगा।’
29 किन्तु तुम्हें स्वयं तलवार से डरना चाहिये क्योंकि पापी के विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध दण्ड लायेगा।
तुम्हें दण्ड देने को परमेश्वर तलवार काम में लायेगा
तभी तुम समझोगे कि वहाँ न्याय का एक समय है।”
दूसरे विश्वासियों के लिये भेंट
16 अब देखो, संतों के लिये दान इकट्ठा करने के बारे में मैंने गलातिया की कलीसियाओं को जो आदेश दिया है तुम भी वैसा ही करो। 2 हर रविवार को अपनी आय में से कुछ न कुछ अपने घर पर ही इकट्ठा करते रहो। ताकि जब मैं आऊँ, उस समय दान इकट्ठा न करना पड़े। 3 मेरे वहाँ पहुँचने पर जिस किसी व्यक्ति को तुम चाहोगे, मैं उसे परिचय पत्र देकर तुम्हारा उपहार यरूशलेम ले जाने के लिए भेज दूँगा। 4 और यदि मेरा जाना भी उचित हुआ तो वे मेरे साथ ही चले जायेंगे।
पौलुस की योजनाएँ
5 मैं जब मकिदुनिया होकर जाऊँगा तो तुम्हारे पास भी आऊँगा क्योंकि मकिदुनिया से होते हुए जाने का कार्यक्रम मैं निश्चित कर चुका हूँ। 6 हो सकता है मैं कुछ समय तुम्हारे साथ ठहरूँ या सर्दियाँ ही तुम्हारे साथ बिताऊँ ताकि जहाँ कहीं मुझे जाना हो, तुम मुझे विदा कर सको। 7 मैं यह तो नहीं चाहता कि वहाँ से जाते जाते ही बस तुमसे मिल लूँ बल्कि मुझे तो आशा है कि मैं यदि प्रभु ने चाहा तो कुछ समय तुम्हारे साथ रहूँगा भी। 8 मैं पिन्तेकुस्त के उत्सव तक इफिसुस में ही ठहरूँगा।
9 क्योंकि ठोस काम करने की सम्भावनाओं का वहाँ बड़ा द्वारखुला है और फिर वहाँ मेरे विरोधी भी तो बहुत से हैं।
10 यदि तिमुथियुस आ पहुँचे तो ध्यान रखना उसे तुम्हारे साथ कष्ट न हो क्योंकि मेरे समान ही वह भी प्रभु का काम कर रहा है। 11 इसलिए कोई भी उसे छोटा न समझे। उसे उसकी यात्रा पर शान्ति के साथ विदा करना ताकि वह मेरे पास आ पहुँचे। मैं दूसरे भाइयों के साथ उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा हुँ।
12 अब हमारे भाई अपुल्लौस की बात यह है कि मैंने उसे दूसरे भाइयों के साथ तुम्हारे पास जाने को अत्यधिक प्रोत्साहित किया है। किन्तु परमेश्वर की यह इच्छा बिल्कुल नहीं थी कि वह अभी तुम्हारे पास आता। सो अवसर पाते ही वह आ जायेगा।
पौलुस के पत्र की समाप्ति
13 सावधान रहो। दृढ़ता के साथ अपने विश्वास में अटल बने रहो। साहसी बनो, शक्तिशाली बनो। 14 तुम जो कुछ करो, प्रेम से करो।
15 तुम लोग स्तिफनुस के घराने को तो जानते ही हो कि वे अखाया की फसल के पहले फल हैं। उन्होंने परमेश्वर के पुरुषों की सेवा का बीड़ा उठाया है। सो भाइयो। तुम से मेरा निवेदन है कि 16 तुम लोग भी अपने आप को ऐसे लोगों की और हर उस व्यक्ति की अगुवाई में सौंप दो जो इस काम से जुड़ता है और प्रभु के लिये परिश्रम करता है।
17 स्तिफ़नुस, फुरतुनातुस और अखइकुस की उपस्थिति से मैं प्रसन्न हूँ। क्योंकि मेरे लिए जो तुम नहीं कर सके, वह उन्होंने कर दिखाया। 18 उन्होंने मेरी तथा तुम्हारी आत्मा को आनन्दित किया है। इसलिए ऐसे लोगों का सम्मान करो।
19 एशिया प्रान्त की कलीसियाओं की ओर से तुम्हें प्रभु में नमस्कार। अक्विला और प्रिस्किल्ला। उनके घर पर एकत्र होने वाली कलीसिया की ओर से तुम्हें हार्दिक नमस्कार। 20 सभी बंधुओं की ओर से तुम्हें नमस्कार। पवित्र चुम्बन के साथ तुम आपस में एक दूसरे का सत्कार करो।
21 मैं, पौलुस, तुम्हें अपने हाथों से नमस्कार लिख रहा हूँ। 22 यदि कोई प्रभु में प्रेम नहीं रखे तो उसे अभिशाप मिले!
हे प्रभु, आओ![a]
23 प्रभु यीशु का अनुग्रह तुम्हें प्राप्त हो।
24 यीशु मसीह में तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम सबके साथ रहे।
संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद पुकारा मैंने यहोवा को।
1 यहोवा को मैंने पुकारा। उसने मेरी सुनी।
उसने मेरे रुदन को सुन लिया।
2 यहोवा ने मुझे विनाश के गर्त से उबारा।
उसने मुझे दलदली गर्त से उठाया,
और उसने मुझे चट्टान पर बैठाया।
उसने ही मेरे कदमों को टिकाया।
3 यहोवा ने मेरे मुँह में एक नया गीत बसाया।
परमेश्वर का एक स्तुति गीत।
बहुतेरे लोग देखेंगे जो मेरे साथ घटा है।
और फिर परमेश्वर की आराधना करेंगे।
वे यहोवा का विश्वास करेंगे।
4 यदि कोई जन यहोवा के भरोसे रहता है, तो वह मनुष्य सचमुच प्रसन्न होगा।
और यदि कोई जन मूर्तियों और मिथ्या देवों की शरण में नहीं जायेगा, तो वह मनुष्य सचमुच प्रसन्न होगा।
5 हमारे परमेश्वर यहोवा, तूने बहुतेरे अद्भुत कर्म किये हैं।
हमारे लिये तेरे पास अद्भुत योजनाएँ हैं।
कोई मनुष्य नहीं जो उसे गिन सके!
मैं तेरे किये हुए कामों को बार बार बखानूँगा।
6 हे यहोवा, तूने मुझको यह समझाया है:
तू सचमुच कोई अन्नबलि और पशुबलि नहीं चाहता था।
कोई होमबलि और पापबलि तुझे नहीं चाहिए।
7 सो मैंने कहा, “देख मैं आ रहा हूँ!
पुस्तक में मेरे विषय में यही लिखा है।”
8 हे मेरे परमेश्वर, मैं वही करना चाहता हूँ जो तू चाहता है।
मैंने मन में तेरी शिक्षओं को बसा लिया।
9 महासभा के मध्य मैं तेरी धार्मिकता का सुसन्देश सुनाऊँगा।
यहोवा तू जानता है कि मैं अपने मुँह को बंद नहीं रखूँगा।
10 यहोवा, मैं तेरे भले कर्मो को बखानूँगा।
उन भले कर्मो को मैं रहस्य बनाकर मन में नहीं छिपाए रखूँगा।
हे यहोवा, मैं लोगों को रक्षा के लिए तुझ पर आश्रित होने को कहूँगा।
मैं महासभा में तेरी करुणा और तेरी सत्यता नहीं छिपाऊँगा।
22 अच्छा नाम अपार धन पाने से योग्य है। चाँदी, सोने से, प्रशंसा का पात्र होना अधिक उत्तम है।
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