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The Daily Audio Bible

This reading plan is provided by Brian Hardin from Daily Audio Bible.
Duration: 731 days

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Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
अय्यूब 8-11

इसके बाद शूह प्रदेश के बिलदद ने उत्तर देते हुए कहा,

“तू कब तक ऐसी बातें करता रहेगा
    तेरे शब्द तेज आँधी की तरह बह रहे हैं।
परमेश्वर सदा निष्पक्ष है।
    न्यायपूर्ण बातों को सर्वशक्तिशाली परमेश्वर कभी नहीं बदलता है।
अत: यदि तेरी सन्तानों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है तो, उसने उन्हें दण्डित किया है।
    अपने पापों के लिये उन्हें भुगतना पड़ा है।
किन्तु अब अय्यूब, परमेश्वर की ओर दृष्टि कर
    और सर्वशक्तिमान परमेश्वर से उस की दया पाने के लिये विनती कर।
यदि तू पवित्र है, और उत्तम है तो वह शीघ्र आकर तुझे सहारा
    और तुझे तेरा परिवार और वस्तुऐं तुझे लौटायेगा।
जो कुछ भी तूने खोया वह तुझे छोटी सी बात लगेगी।
    क्यों? क्योंकि तेरा भविष्य बड़ा ही सफल होगा।

“उन वृद्ध लोगों से पूछ और पता कर कि
    उनके पूर्वजों ने क्या सीखा था।
क्योंकि ऐसा लगता है जैसे हम तो बस कल ही पैदा हुए हैं,
    हम कुछ नहीं जानते।
परछाई की भाँति हमारी आयु पृथ्वी पर बहुत छोटी है।
10 हो सकता है कि वृद्ध लोग तुझे कुछ सिखा सकें।
    हो सकता है जो उन्होंने सीखा है वे तुझे सिखा सकें।”

11 बिलदद ने कहा, “क्या सूखी भूमि में भोजपत्र का वृक्ष बढ़ कर लम्बा हो सकता है?
    नरकुल बिना जल के बढ़ सकता है?
12 नहीं, यदि पानी सूख जाता है तो वे भी मुरझा जायेंगे।
    उन्हें काटे जाने के योग्य काट कर काम में लाने को वे बहुत छोटे रह जायेंगे।
13 वह व्यक्ति जो परमेश्वर को भूल जाता है, नरकुल की भाँति होता है।
    वह व्यक्ति जो परमेश्वर को भूल जाता है कभी आशावान नहीं होगा।
14 उस व्यक्ति का विश्वास बहुत दुर्बल होता है।
    वह व्यक्ति मकड़ी के जाले के सहारे रहता है।
15 यदि कोई व्यक्ति मकड़ी के जाले को पकड़ता है
    किन्तु वह जाला उस को सहारा नहीं देगा।
16 वह व्यक्ति उस पौधे के समान है जिसके पास पानी और सूर्य का प्रकाश बहुतायात से है।
    उसकी शाखाऐं बगीचे में हर तरफ फैलती हैं।
17 वह पत्थर के टीले के चारों ओर अपनी जड़े फैलाता है
    और चट्टान में उगने के लिये कोई स्थान ढूँढता है।
18 किन्तु जब वह पौधा अपने स्थान से उखाड़ दिया जाता है,
    तो कोई नहीं जान पाता कि वह कभी वहाँ था।
19 किन्तु वह पौधा प्रसन्न था, अब दूसरे पौधे वहाँ उगेंगे,
    जहाँ कभी वह पौधा था।
20 किन्तु परमेश्वर किसी भी निर्दोष व्यक्ति को नहीं त्यागेगा
    और वह बुरे व्यक्ति को सहारा नहीं देगा।
21 परमेश्वर अभी भी तेरे मुख को हँसी से भर देगा
    और तेरे ओठों को खुशी से चहकायेगा।
22 और परमेश्वर तेरे शत्रुओं को लज्जित करेगा
    और वह तेरे शत्रुओं के घरों को नष्ट कर देगा।”

फिर अय्यूब ने उत्तर दिया:

“हाँ, मैं जानता हूँ कि तू सत्य कहता है
    किन्तु मनुष्य परमेश्वर के सामने निर्दोष कैसे हो सकता है?
मनुष्य परमेश्वर से तर्क नहीं कर सकता।
    परमेश्वर मनुष्य से हजारों प्रश्न पूछ सकता है और कोई उनमें से एक का भी उत्तर नहीं दे सकता है।
परमेश्वर का विवेक गहन है, उसकी शक्ति महान है।
    ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो परमेश्वर से झगड़े और हानि न उठाये।
जब परमेश्वर क्रोधित होता है, वह पर्वतों को हटा देता है और वे जान तक नहीं पाते।
परमेश्वर पृथ्वी को कँपाने के लिये भूकम्प भेजता है।
    परमेश्वर पृथ्वी की नींव को हिला देता है।
परमेश्वर सूर्य को आज्ञा दे सकता है और उसे उगने से रोक सकता हैं।
    वह तारों को बन्द कर सकता है ताकि वे न चमकें।
केवल परमेश्वर ने आकाशों की रचना की।
    वह सागर की लहरों पर विचरण कर सकता है।

“परमेश्वर ने सप्तर्षी, मृगशिरा और कचपचिया तारों को बनाया है।
    उसने उन ग्रहों को बनाया जो दक्षिण का आकाश पार करते हैं।
10 परमेश्वर ऐसे अद्भुत कर्म करता है जिन्हें मनुष्य नहीं समझ सकता।
    परमेश्वर के महान आश्चर्यकर्मों का कोई अन्त नहीं है।
11 परमेश्वर जब मेरे पास से निकलता है, मैं उसे देख नहीं पाता हूँ।
    परमेश्वर जब मेरी बगल से निकल जाता है। मैं उसकी महानता को समझ नहीं पाता।
12 यदि परमेश्वर छीनने लगता है तो
    कोई भी उसे रोक नहीं सकता।
कोई भी उससे कह नहीं सकता,
    ‘तू क्या कर रहा है।’
13 परमेश्वर अपने क्रोध को नहीं रोकेगा।
    यहाँ तक कि राहाब दानव (सागर का दैत्य) के सहायक भी परमेश्वर से डरते हैं।
14 अत: परमेश्वर से मैं तर्क नहीं कर सकता।
    मैं नहीं जानता कि उससे क्या कहा जाये।
15 मैं यद्यपि निर्दोष हूँ किन्तु मैं परमेश्वर को एक उत्तर नहीं दे सकता।
    मैं बस अपने न्यायकर्ता (परमेश्वर) से दया की याचना कर सकता हूँ।
16 यदि मैं उसे पुकारुँ और वह उत्तर दे, तब भी मुझे विश्वास नहीं होगा कि वह सचमुच मेरी सुनता है।
17 परमेश्वर मुझे कुचलने के लिये तूफान भेजेगा
    और वह मुझे अकारण ही और अधिक घावों को देगा।
18 परमेश्वर मुझे फिर साँस नहीं लेने देगा।
    वह मुझे और अधिक यातना देगा।
19 मैं परमेश्वर को पराजित नहीं कर सकता।
    परमेश्वर शक्तिशाली है।
मैं परमेश्वर को न्यायालय में नहीं ले जा सकता और उसे अपने प्रति मैं निष्पक्ष नहीं बना सकता।
    परमेश्वर को न्यायालय में आने के लिये कौन विवश कर सकता है
20 मैं निर्दोंष हूँ किन्तु मेरा भयभीत मुख मुझे अपराधी कहेगा।
    अत: यद्यपि मैं निरपराधी हूँ किन्तु मेरा मुख मुझे अपराधी घोषित करता है।
21 मैं पाप रहित हूँ किन्तु मुझे अपनी ही परवाह नहीं है।
    मैं स्वयं अपने ही जीवन से घृणा करता हूँ।
22 मैं स्वयं से कहता हूँ हर किसी के साथ एक सा ही घटित होता है।
    निरपराध लोग भी वैसे ही मरते हैं जैसे अपराधी मरते हैं।
    परमेश्वर उन सबके जीवन का अन्त करता है।
23 जब कोई भयंकर बात घटती है और कोई निर्दोष व्यक्ति मारा जाता है तो क्या परमेश्वर उसके दु:ख पर हँसता है?
24 जब धरती दुष्ट जन को दी जाती है तो क्या मुखिया को परमेश्वर अंधा कर देता है?
    यदि यह परमेश्वर ने नहीं किया तो फिर किसने किया है?

25 “किसी तेज धावक से तेज मेरे दिन भाग रहे हैं।
    मेरे दिन उड़ कर बीत रहे हैं और उनमें कोई प्रसन्नता नहीं है।
26 वेग से मेरे दिन बीत रहे हैं जैसे श्री—पत्र की नाव बही चली जाती है,
    मेरे दिन टूट पड़ते है ऐसे जैसे उकाब अपने शिकार पर टूट पड़ता हो!

27 “यदि मैं कहूँ कि मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा,
    अपना दु:ख भूल जाऊँगा और उदासी छोड़कर हँसने लगूँगा।
28 इससे वास्तव में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है।
    पीड़ा मुझे अभी भी भयभीत करती है।
29 मुझे तो पहले से ही अपराधी ठहराया जा चुका है,
    सो मैं क्यों जतन करता रहूँ मैं तो कहता हूँ, “भूल जाओ इसे।”
30 चाहे मैं अपने आपको हिम से धो लूँ
    और यहाँ तक की अपने हाथ साबुन से साफ कर लूँ!
31 फिर भी परमेश्वर मुझे घिनौने गर्त में धकेल देगा
    जहाँ मेरे वस्र तक मुझसे घृणा करेंगे।
32 परमेश्वर, मुझ जैसा मनुष्य नहीं है। इसलिए उसको मैं उत्तर नहीं दे सकता।
    हम दोनों न्यायालय में एक दूसरे से मिल नहीं सकते।
33 काश! कोई बिचौलिया होता जो दोनों तरफ की बातें सुनता।
    काश! कोई ऐसा होता जो हम दोनों का न्याय निष्पक्ष रूप से करता।
34 काश! कोई जो परमेश्वर से उस की दण्ड की छड़ी को ले।
    तब परमेश्वर मुझे और अधिक भयभीत नहीं करेगा।
35 तब मैं बिना डरे परमेश्वर से वह सब कह सकूँगा,
    जो मैं कहना चाहता हूँ।

10 “किन्तु हाय, अब मैं वैसा नहीं कर सकता। मुझ को स्वयं अपने जीवन से घृणा हैं अत:
    मैं मुक्त भाव से अपना दुखड़ा रोऊँगा। मेरे मन में कड़वाहट भरी है अत: मैं अबबोलूँगा।
मैं परमेश्वर से कहूँगा ‘मुझ पर दोष मत लगा।
    मुझे बता दै, मैंने तेरा क्या बुरा किया मेरे विरुद्ध तेरे पास क्या है?
हे परमेश्वर, क्या तू मुझे चोट पहुँचा कर प्रसन्न होता है?
    ऐसा लगता है जैसे तुझे अपनी सृष्टि की चिंता नहीं है और शायद तू दुष्टों के कुचक्रों का पक्ष लेता है।
हे परमेश्वर, क्या तेरी आँखें मनुष्य समान है
    क्या तू वस्तुओं को ऐसे ही देखता है, जैसे मनुष्य की आँखे देखा करती हैं।
तेरी आयु हम मनुष्यों जैसे छोटी नहीं है।
    तेरे वर्ष कम नहीं हैं जैसे मनुष्य के कम होते हैं।
तू मेरी गलतियों को ढूढ़ता है,
    और मेरे पापों को खोजता है।
तू जानता है कि मैं निरपराध हूँ।
    किन्तु मुझे कोई भी तेरी शक्ति से बचा नही सकता।
परमेश्वर, तूने मुझ को रचा
    और तेरे हाथों ने मेरी देह को सँवारा,
किन्तु अब तू ही मुझ से विमुख हुआ
    और मुझे नष्ट कर रहा है।
हे परमेश्वर, याद कर कि तूने मुझे मिट्टी से मढ़ा,
    किन्तु अब तू ही मुझे फिर से मिट्टी में मिलायेगा।
10 तू दूध के समान मुझ को उडेंलता है,
    दूध की तरह तू मुझे उबालता है और तू मुझे दूध से पनीर में बदलता है।
11 तूने मुझे हड्डियों और माँस पेशियों से बुना
    और फिर तूने मुझ पर माँस और त्वचा चढ़ा दी।
12 तूने मुझे जीवन का दान दिया और मेरे प्रति दयालु रहा।
    तूने मेरा ध्यान रखा और तूने मेरे प्राणों की रखवाली की।
13 किन्तु यह वह है जिसे तूने अपने मन में छिपाये रखा
    और मैं जानता हूँ, यह वह है जिसकी तूने अपने मन में गुप्त रूप से योजना बनाई।
हाँ, यह मैं जानता हूँ, यह वह है जो तेरे मन में था।
14 यदि मैंने पाप किया तो तू मुझे देखता था।
    सो मेरे बुरे काम का दण्ड तू दे सकता था।
15 जब मैं पाप करता हूँ तो
    मैं अपराधी होता हूँ और यह मेरे लिये बहुत ही बुरा होगा।
किन्तु मैं यदि निरपराध भी हूँ
    तो भी अपना सिर नहीं उठा पाता
    क्योंकि मैं लज्जा और पीड़ा से भरा हुआ हूँ।
16 यदि मुझको कोई सफलता मिल जाये और मैं अभिमानी हो जाऊँ,
    तो तू मेरा पीछा वैसे करेगा जैसे सिंह के पीछे कोई शिकारी पड़ता है
    और फिर तू मेरे विरुद्ध अपनी शक्ति दिखायेगा।
17 तू मेरे विरुद्ध सदैव किसी न किसी को नया साक्षी बनाता है।
    तेरा क्रोध मेरे विरुद्ध और अधिक भड़केगा तथा मेरे विरुद्ध तू नई नई शत्रु सेना लायेगा।
18 सो हे परमेश्वर, तूने मुझको क्यों जन्म दिया? इससे पहले की कोई मुझे देखता
    काश! मैं मर गया होता।
19 काश! मैं जीवित न रहता।
    काश! माता के गर्भ से सीधे ही कब्र में उतारा जाता।
20 मेरा जीवन लगभग समाप्त हो चुका है
    सो मुझे अकेला छोड़ दो।
    मेरा थोड़ा सा समय जो बचा है उसे मुझे चैन से जी लेने दो।
21 इससे पहले की मैं वहाँ चला जाऊँ जहाँ से कभी कोई वापस नहीं आता हैं।
    जहाँ अंधकार है और मृत्यु का स्थान है।
22 जो थोड़ा समय मेरा बचा है उसे मुझको जी लेने दो, इससे पहले कि मैं वहाँ चला जाऊँ जिस स्थान को कोई नहीं देख पाता अर्थात् अधंकार, विप्लव और गड़बड़ी का स्थान।
    उस स्थान में यहाँ तक कि प्रकाश भी अंधकारपूर्ण होता है।’”

सोपर का अय्यूब से कथन

11 इस पर नामात नामक प्रदेश के सोपर ने अय्यूब को उत्तर देते हुये कहा,

“इस शब्दों के प्रवाह का उत्तर देना चाहिये।
    क्या यह सब कहना अय्यूब को निर्दोंष ठहराता है? नहीं!
अय्यूब, क्या तुम सोचते हो कि
    हमारे पास तुम्हारे लिये उत्तर नहीं है?
क्या तुम सोचते हो कि जब तुम परमेश्वर पर
    हंसते हो तो कोई तुम्हें चेतावनी नहीं देगा।
अय्यूब, तुम परमेश्वर से कहते रहे कि,
    ‘मेरा विश्वास सत्य है
    और तू देख सकता है कि मैं निष्कलंक हूँ!’
अय्यूब, मेरी ये इच्छा है कि परमेश्वर तुझे उत्तर दे,
    यह बताते हुए कि तू दोषपूर्ण है!
काश! परमेश्वर तुझे बुद्धि के छिपे रहस्य बताता
    और वह सचमुच तुझे उनको बतायेगा! हर कहानी के दो पक्ष होते हैं,
अय्यूब, मेरी सुन परमेश्वर तुझे कम दण्डित कर रहा है,
    अपेक्षाकृत जितना उसे सचमुच तुझे दण्डित करना चाहिये।

“अय्यूब, क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रहस्यपूर्ण सत्य समझ सकते हो?
    क्या तुम उसके विवेक की सीमा मर्यादा समझ सकते हो?
उसकी सीमायें आकाश से ऊँची है,
    इसलिये तुम नहीं समझ सकते हो!
सीमायें नर्क की गहराईयों से गहरी है,
    सो तू उनको समझ नहीं सकता है!
वे सीमायें धरती से व्यापक हैं,
    और सागर से विस्तृत हैं।

10 “यदि परमेश्वर तुझे बंदी बनाये और तुझको न्यायालय में ले जाये,
    तो कोई भी व्यक्ति उसे रोक नहीं सकता है।
11 परमेश्वर सचमुच जानता है कि कौन पाखण्डी है।
    परमेश्वर जब बुराई को देखता है, तो उसे याद रखता है।
12 किन्तु कोई मूढ़ जन कभी बुद्धिमान नहीं होगा,
    जैसे बनैला गधा कभी मनुष्य को जन्म नहीं दे सकता है।
13 सो अय्यूब, तुझको अपना मन तैयार करना चाहिये, परमेश्वर की सेवा करने के लिये।
    तुझे अपने निज हाथों को प्रार्थना करने को ऊपर उठाना चाहिये।
14 वह पाप जो तेरे हाथों में बसा है, उसको तू दूर कर।
    अपने तम्बू में बुराई को मत रहने दे।
15 तभी तू निश्चय ही बिना किसी लज्जा के आँख ऊपर उठा कर परमेश्वर को देख सकता है।
    तू दृढ़ता से खड़ा रहेगा और नहीं डरेगा।
16 अय्यूब, तब तू अपनी विपदा को भूल पायेगा।
    तू अपने दुखड़ो को बस उस पानी सा याद करेगा जो तेरे पास से बह कर चला गया।
17 तेरा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक उज्जवल होगा।
    जीवन की अँधेरी घड़ियाँ ऐसे चमकेगी जैसे सुबह का सूरज।
18 अय्यूब, तू सुरक्षित अनुभव करेगा क्योंकि वहाँ आशा होगी।
    परमेश्वर तेरी रखवाली करेगा और तुझे आराम देगा।
19 चैन से तू सोयेगा, कोई तुझे नहीं डरायेगा
    और बहुत से लोग तुझ से सहायता माँगेंगे!
20 किन्तु जब बुरे लोग आसरा ढूढेंगे तब उनको नहीं मिलेगा।
    उनके पास कोई आस नहीं होगी।
वे अपनी विपत्तियों से बच कर निकल नहीं पायेंगे।
    मृत्यु ही उनकी आशा मात्र होगी।”

1 कुरिन्थियों 15:1-28

यीशु का सुसमाचार

15 हे भाईयों, अब मैं तुम्हें उस सुसमाचार की याद दिलाना चाहता हूँ जिसे मैंने तुम्हें सुनाया था और तुमने भी जिसे ग्रहण किया था और जिसमें तुम निरन्तर स्थिर बने हुए हो। और जिसके द्वारा तुम्हारा उद्धार भी हो रहा है बशर्ते तुम उन शब्दों को जिनका मैंने तुम्हें आदेश दिया था, अपने में दृढ़ता से थामे रखो। (नहीं तो तुम्हारा विश्वास धारण करना ही बेकार गया।)

जो सर्वप्रथम बात मुझे प्राप्त हुई थी, उसे मैंने तुम तक पहुँचा दिया कि शास्त्रों के अनुसार: मसीह हमारे पापों के लिये मरा और उसे दफना दिया गया। और शास्त्र कहता है कि फिर तीसरे दिन उसे जिला कर उठा दिया गया। और फिर वह पतरस के सामने प्रकट हुआ और उसके बाद बारहों प्रेरितों को उसने दर्शन दिये। फिर वह पाँच सौ से भी अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया। उनमें से बहुतेरे आज तक जीवित हैं। यद्यपि कुछ की मृत्यु भी हो चुकी है। इसके बाद वह याकूब के सामने प्रकट हुआ। और तब उसने सभी प्रेरितों को फिर दर्शन दिये। और सब से अंत में उसने मुझे भी दर्शन दिये। मैं तो समय से पूर्व असामान्य जन्मे सतमासे बच्चे जैसा हूँ।

क्योंकि मैं तो प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ। यहाँ तक कि मैं तो प्रेरित कहलाने योग्य भी नहीं हूँ क्योंकि मैं तो परमेश्वर की कलीसिया को सताया करता था। 10 किन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से मैं वैसा बना हूँ जैसा आज हूँ। मुझ पर उसका अनुग्रह बेकार नहीं गया। मैंने तो उन सब से बढ़ चढ़कर परिश्रम किया है। (यद्यपि वह परिश्रम करने वाला मैं नहीं था, बल्कि परमेश्वर का वह अनुग्रह था जो मेरे साथ रहता था।) 11 सो चाहे तुम्हें मैंने उपदेश दिया हो चाहे उन्होंने, हम सब यही उपदेश देते हैं और इसी पर तुमने विश्वास किया है।

हमारा पुनर्जीवन

12 किन्तु जब कि मसीह को मरे हुओं में से पुनरुत्थापित किया गया तो तुममें से कुछ ऐसा क्यों कहते हो कि मृत्यु के बाद फिर से जी उठना सम्भव नहीं है। 13 और यदि मृत्यु के बाद जी उठना है ही नहीं तो फिर मसीह भी मृत्यु के बाद नहीं जिलाया गया। 14 और यदि मसीह को नहीं जिलाया गया तो हमारा उपदेश देना बेकार है और तुम्हारा विश्वास भी बेकार है। 15 और हम भी फिर तो परमेश्वर के बारे में झूठे गवाह ठहरते हैं क्योंकि हमने परमेश्वर के सामने कसम उठा कर यह साक्षी दी है कि उसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया। किन्तु उनके कथन के अनुसार यदि मरे हुए जिलाये नहीं जाते तो फिर परमेश्वर ने मसीह को भी नहीं जिलाया। 16 क्योंकि यदि मरे हुए नहीं जिलाये जाते हैं तो मसीह को भी नहीं जिलाया गया। 17 और यदि मसीह को फिर से जीवित नहीं किया गया है, फिर तो तुम्हारा विश्वास ही निरर्थक है और तुम अभी भी अपने पापों में फँसे हो। 18 हाँ, फिर तो जिन्होंने मसीह के लिए अपने प्राण दे दिये, वे यूँ ही नष्ट हुए। 19 यदि हमने केवल अपने इस भौतिक जीवन के लिये ही यीशु मसीह में अपनी आशा रखी है तब तो हम और सभी लोगों से अधिक अभागे हैं।

20 किन्तु अब वास्तविकता यह है कि मसीह को मरे हुओं में से जिलाया गया है। वह मरे हुओं की फ़सह का पहला फल है। 21 क्योंकि जब एक मनुष्य के द्वारा मृत्यु आयी तो एक मनुष्य के द्वारा ही मृत्यु से पुनर्जीवित हो उठना भी आया। 22 क्योंकि ठीक वैसे ही जैसे आदम के कर्मों के कारण हर किसी के लिए मृत्यु आयी, वैसे ही मसीह के द्वारा सब को फिर से जिला उठाया जायेगा 23 किन्तु हर एक को उसके अपने कर्म के अनुसार सबसे पहले मसीह को, जो फसल का पहला फल है और फिर उसके पुनः आगमन पर उनको, जो मसीह के हैं। 24 इसके बाद जब मसीह सभी शासकों, अधिकारियों, हर प्रकार की शक्तियों का अंत करके राज्य को परम पिता परमेश्वर के हाथों सौंप देगा, तब प्रलय हो जायेगी। 25 किन्तु जब तक परमेश्वर मसीह के शत्रुओं को उसके पैरों तले न कर दे तब तक उसका राज्य करते रहना आवश्यक है। 26 सबसे अंतिम शत्रु के रूप में मृत्यु का नाश किया जायेगा। 27 क्योंकि “परमेश्वर ने हर किसी को मसीह के चरणों के अधीन रखा है।”(A) अब देखो जब शास्त्र कहता है, “सब कुछ” को उसके अधीन कर दिया गया है। तो जिसने “सब कुछ” को उसके चरणों के अधीन किया है, वह स्वयं इससे अलग रहा है। 28 और जब सब कुछ मसीह के अधीन कर दिया गया है, तो यहाँ तक कि स्वयं पुत्र को भी उस परमेश्वर के अधीन कर दिया जायेगा जिसने सब कुछ को मसीह के अधीन कर दिया ताकि हर किसी पर पूरी तरह परमेश्वर का शासन हो।

भजन संहिता 38

हे यहोवा, क्रोध में मेरी आलोचना मत कर।
    मुझको अनुशासित करते समय मुझ पर क्रोधित मत हो।
हे यहोवा, तूने मुझे चोट दिया है।
    तेरे बाण मुझमें गहरे उतरे हैं।
तूने मुझे दण्डित किया और मेरी सम्पूर्ण काया दु:ख रही है,
    मैंने पाप किये और तूने मुझे दण्ड दिया। इसलिए मेरी हड्डी दु:ख रही है।
मैं बुरे काम करने का अपराधी हूँ,
    और वह अपराध एक बड़े बोझे सा मेरे कन्धे पर चढ़ा है।
मैं बना रहा मूर्ख,
    अब मेरे घाव दुर्गन्धपूर्ण रिसते हैं और वे सड़ रहे हैं।
मैं झुका और दबा हुआ हूँ।
    मैं सारे दिन उदास रहता हूँ।
मुझको ज्वर चढ़ा है,
    और समूचे शरीर में वेदना भर गई है।
मैं पूरी तरह से दुर्बल हो गया हूँ।
    मैं कष्ट में हूँ इसलिए मैं कराहता और विलाप करता हूँ।
हे यहोवा, तूने मेरा कराहना सुन लिया।
    मेरी आहें तो तुझसे छुपी नहीं।
10 मुझको ताप चढ़ा है।
    मेरी शक्ति निचुड़ गयी है। मेरी आँखों की ज्योति लगभग जाती रही।
11 क्योंकि मैं रोगी हूँ,
    इसलिए मेरे मित्र और मेरे पड़ोसी मुझसे मिलने नहीं आते।
    मेरे परिवार के लोग तो मेरे पास तक नहीं फटकते।
12 मेरे शत्रु मेरी निन्दा करते हैं।
    वे झूठी बातों और प्रतिवादों को फैलाते रहते हैं।
    मेरे ही विषय में वे हरदम बात चीत करते रहते हैं।
13 किन्तु मैं बहरा बना कुछ नहीं सुनता हूँ।
    मैं गूँगा हो गया, जो कुछ नहीं बोल सकता।
14 मैं उस व्यक्ति सा बना हूँ, जो कुछ नहीं सुन सकता कि लोग उसके विषय क्या कह रहे हैं।
    और मैं यह तर्क नहीं दे सकता और सिद्ध नहीं कर सकता की मेरे शत्रु अपराधी हैं।
15 सो, हे यहोवा, मुझे तू ही बचा सकता है।
    मेरे परमेश्वर और मेरे स्वामी मेरे शत्रुओं को तू ही सत्य बता दे।
16 यदि मैं कुछ भी न कहूँ, तो मेरे शत्रु मुझ पर हँसेंगे।
    मुझे खिन्न देखकर वे कहने लगेंगे कि मैं अपने कुकर्मो का फल भोग रहा हूँ।
17 मैं जानता हूँ कि मैं अपने कुकर्मो के लिए पापी हूँ।
    मैं अपनी पीड़ा को भूल नहीं सकता हूँ।
18 हे यहोवा, मैंने तुझको अपने कुकर्म बता दिये।
    मैं अपने पापों के लिए दु:खी हूँ।
19 मेरे शत्रु जीवित और पूर्ण स्वस्थ हैं।
    उन्होंने बहुत—बहुत झूठी बातें बोली हैं।
20 मेरे शत्रु मेरे साथ बुरा व्यवहार करते हैं,
    जबकि मैंने उनके लिये भला ही किया है।
मैं बस भला करने का जतन करता रहा,
    किन्तु वे सब लोग मेरे विरद्ध हो गये हैं।
21 हे यहोवा, मुझको मत बिसरा!
    मेरे परमेश्वर, मुझसे तू दूर मत रह!
22 देर मत कर, आ और मेरी सुधि ले!
    हे मेरे परमेश्वर, मुझको तू बचा ले!

नीतिवचन 21:28-29

28 झूठे गवाह का नाश हो जायेगा; और जो उसकी झूठी बातों को सुनेगा वह भी उस ही के संग सदा सर्वदा के लिये नष्ट हो जायेगा।

29 सज्जन तो निज कर्मो पर विचार करता है किन्तु दुर्जन का मुख अकड़ कर दिखाता है।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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