The Daily Audio Bible
Today's audio is from the GW. Switch to the GW to read along with the audio.
वेदी का फिर से बनना
3 अत, सातवें महीने से इस्राएल के लोग अपने अपने नगरों में लौट गये। उस समय, सभी लोग यरूशलेम में एक साथ इकट्ठे हुए। वे सभी एक इकाई के रूप में संगठित थे। 2 तब योसादाक के पुत्र येशू और उसके साथ याजकों तथा शालतीएल के पुत्र जरूब्बाबेल और उसके साथ के लोगों ने इस्राएल के परमेश्वर की वेदी बनाई। उन लोगों ने इस्राएल के परमेश्वर के लिये वेदी इसलिए बनाई ताकि वे इस पर बलि चढ़ा सकें। उन्होंने उसे ठीक मूसा के नियमों के अनुसार बनाया। मूसा परमेश्वर का विशेष सेवक था।
3 वे लोग अपने आस—पास के रहने वाले अन्य लोगों से डरे हुए थे। किन्तु यह भय उन्हें रोक न सका और उन्होंने वेदी की पुरानी नींव पर ही वेदी बनाई और उस पर यहोवा को होमबलि दी। उन्होंने वे बलियाँ सवेरे और शाम को दीं। 4 तब उन्होंने आश्रयों का पर्व ठीक वैसे ही मनाया जैसा मूसा के नियम में कहा गया है। उन्होंने उत्सव के प्रत्येक दिन के लिये उचित संख्या में होमबलि दी। 5 उसके बाद, उन्होंने लगातार चलने वाली प्रत्येक दिन की होमबलि नया चाँद और सभी अन्य उत्सव व विश्राम के दिनों की भेंटें चढ़ानी आरम्भ कीं जैसा कि यहोवा द्वारा आदेश दिया गया था। लोग अन्य उन भेंटों को भी चढ़ाने लगे जिन्हें वे यहोवा को चढ़ाना चाहते थे। 6 अत: सातवें महीने के पहले दिन इस्राएल के इन लोगों ने यहोवा को फिर भेंट चढ़ाना आरम्भ किया। यह तब भी किया गया जबकि मन्दिर की नींव अभी फिर से नहीं बनी थी।
मन्दिर का पुन: निर्माण
7 तब उन लोगों ने जो बन्धुवाई से छूट कर आये थे, संगतराशों और बढ़ईयों को धन दिया और उन लोगों ने उन्हें भोजन, दाखमधु और जैतून का तेल दिया। उन्होंने इन चीजों का उपयोग सोर और सीदोन के लोगों को लबानोन से देवदार के लट्ठों को लाने के लिये भुगतान करने में किया। वे लोग चाहते थे कि जापा नगर के समुद्री तट पर लट्ठों को जहाजों द्वारा ले आएँ। जैसा कि सुलैमान ने किया था जब उसने पहले मन्दिर को बनाया था। फारस के राजा कुस्रू ने यह करने के लिये उन्हें स्वीकृति दे दी।
8 अत: यरूशलेम में मन्दिर पर उनके पहुँचने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने मे शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और योसादाक के पुत्र येशू ने काम करना आरम्भ किया। उनके भाईयों, याजकों, लेवीवंशियों और प्रत्येक व्यक्ति जो बन्धुवाई से यरूशलेम लौटे थे, सब ने उनके साथ काम करना आरम्भ किया। उन्होंने यहोवा के मन्दिर को बनाने के लिये उन लेवीवंशियों को प्रमुख चुना जो बीस वर्ष या उससे अधिक उम्र के थे। 9 ये वे लोग थे जो मन्दिर के बनने की देखरेख कर रहे थे, येशू के पुत्र और उसके भाई, कदमीएल और उसके पुत्र (यहूदा के वंशज थे) हेनादाद के पुत्र और उनके बन्धु लेवीवंशी। 10 कारीगरों ने यहोवा के मन्दिर की नींव डालनी पूरी कर दी। जब नींव पड़ गई तब याजकों ने अपने विशेष वस्त्र पहने। तब उन्होंने अपनी तुरही ली और आसाप के पुत्रों ने अपने झाँझों को लिया। उन्होंने यहोवा की स्तुति के लिये अपने अपने स्थान ले लिये। यह उसी तरह किया गया जिस तरह करने के लिये भूतकाल में इस्राएल के राजा दाऊद ने आदेश दिया था। 11 यहोवा ने जो कुछ किया, उन्होंने उसके लिये उसकी प्रशंसा करते हुए तथा धन्यवाद देते हुए, यह गीत गाया,
“वह अच्छा है,
उसका इस्राएल के लिए प्रेम शाश्वत है।”[a]
और तब सभी लोग खुश हुए। उन्होंने बहुत जोर से उद्घोष और यहोवा की स्तुति की। क्यों? क्योंकि मन्दिर की नींव पूरी हो चुकी थी।
12 किन्तु बुजुर्ग याजकों में से बहुत से, लेवीवंशी और परिवार प्रमुख रो पड़े। क्यों? क्योंकि उन लोगों ने प्रथम मन्दिर को देखा था, और वे यह याद कर रहे थे कि वह कितना सुन्दर था। वे रो पड़े जब उन्होंने नये मन्दिर को देखा। वे रो रहे थे जब बहुत से अन्य लोग प्रसन्न थे और शोर मचा रहे थे। 13 उद्घोष बहुत दूर तक सुना जा सकता था। उन सभी लोगों ने इतना शोर मचाया कि कोई व्यक्ति प्रसन्नता के उद्घोष और रोने में अन्तर नहीं कर सकता था।
मन्दिर के पुनः निर्माण के विरुद्ध शत्रु
4 1-2 उस क्षेत्र में रहने वाले वहुत से लोग यहूदा और बिन्यामीन के लोगों के विरूद्ध थे। उन शत्रुओं ने सुना कि वे लोग जो बन्धुवाई से आये हैं वे, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिये एक मन्दिर बना रहे हैं। इसलिये वे शत्रु जरुब्बाबेल तथा परिवार प्रमुखों के पास आए और उन्होंने कहा, “मन्दिर बनाने में हमें तुमको सहायता करने दो। हम लोग वही हैं जो तुम हो, हम तुम्हारे परमेश्वर से सहायता माँगते हैं। हम लोगों ने तुम्हारे परमेश्वर को तब से बलि चढ़ाई है जब से अश्शूर का राजा एसर्हद्दोन हम लोगों को यहाँ लाया।”
3 किन्तु जरुब्बाबेल, येशू और इस्राएल के अन्य परिवार प्रमुखों ने उत्तर दिया, “नहीं, तुम जैसे लोग हमारे परमेश्वर के लिये मन्दिर बनाने में हमें सहायता नहीं कर सकते। केवल हम लोग ही यहोवा के लिये मन्दिर बना सकते हैं। वह इस्राएल का परमेश्वर है। फारस के राजा कुस्रू ने जो करने का आदेश दिया है, वह यही है।”
4 इससे वे लोग क्रोधित हो उठे। अत: उन लोगों ने यहूदियों को परेशान करना आरम्भ किया। उन्होंने उनको हतोत्साह और मन्दिर को बनाने से रोकने का प्रयत्न किया। 5 उन शत्रुओं ने सरकारी अधिकारियों को यहूदा के लोगों के विरुद्ध काम करने के लिए खरीद लिया। उन अधिकारियों ने यहूदियों द्वारा मन्दिर को बनाने की योजना को रोकने के लिए लगातार काम किया। यह उस दौरान तब तक लगातार चलता रहा जब तक कुस्रू फारस का राजा रहा और बाद में जब तक दारा फारस का राजा नहीं हो गया।
6 उन शत्रुओं ने यहूदियों को रोकने के लिये प्रयत्न करते हुए फारस के राजा को पत्र भी लिखा। उन्होंने यह पत्र तब लिखा था जब क्षयर्ष[b] फारस का राजा बना।
यरूशलेम के पुनः निर्माण के विरुद्ध शत्रु
7 बाद में, जब अर्तक्षत्र[c] फारस का नया राजा हुआ, इन लोगों में से कुछ ने यहूदियों के विरुद्ध शिकायत करते हुए एक और पत्र लिखा। जिन लोगों ने वह पत्र लिखा, वे ये थे: बिशलाम, मिथदात, ताबेल और उसके दल के अन्य लोग। उन्होंने पत्र राजा अर्तक्षत्र को अरामी में अरामी लिपि का उपयोग करते हुए लिखा।
8 [d] तब शासनाधिकारी रहूम और सचिव शिलशै ने यरूशलेम के लोगों के विरुद्ध पत्र लिखा। उन्होंने राजा अर्तक्षत्र को पत्र लिखा। उन्होंने जो लिखा वह यह था:
9 शासनाधिकारी रहूम, सचिव शिमशै, तथा तर्पली, अफ़ारसी, एरेकी, बाबेली और शूशनी के एलामी लोगों के न्यायाधीश और महत्वपूर्ण अधिकारियों की ओर से, 10 तथा वे अन्य लोग जिन्हें महान और शक्तिशाली ओस्नप्पर ने शोमरोन के नगरों एवं परात नदी के पश्चिमी प्रदेश के अन्य स्थानों पर बसाय था।
11 यह उस पत्र की प्रतिलिपि है जिसे उन लोगों ने अर्तक्षत्र को भेजा था।
राजा अर्तक्षत्र को, परात नदी के पश्चिमी क्षेत्र में रहने वाले आप के सेवकों की ओर से है।
12 राजा अर्तक्षत्र हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि जिन यहूदियों को आपने—अपने पास से भेजा है, वे यहाँ आ गये हैं। वे यहूदी उस नगर को फिर से बनाना चाहते हैं। यरूशलेम एक बुरा नगर है। उस नगर के लोगों ने अन्य राजाओं के विरूद्ध सदैव विद्रोह किया है। अब वे यहूदी परकोटे की नींवों को पक्का कर रहे हैं और दीवारें खड़ी कर रहे हैं।[e]
13 राजा अर्तक्षत्र आपको यह भी जान लेना चाहिये कि यदि यरूशलेम और इसके परकोटे फिर बन गए तो यरूशलेम के लोग कर देना बन्द कर देंगे। वे आपका सम्मान करने के लिये धन भेजना बन्द कर देंगे। वे सेवा कर देना भी रोक देंगे और राजा को उस सारे धन से हाथ धोना पड़ेगा।
14 हम लोग राजा के प्रति उत्तरदायी हैं। हम लोग यह सब घटित होना नहीं देखना चाहते। यही कारण है कि हम लोग यह पत्र राजा को सूचना के लिये भेज रहे हैं।
15 राजा अर्तक्षत्र हम चाहते हैं कि आप उन राजाओं के लेखों का पता लगायें जिन्होंने आपके पहले शासन किये। आप उन लेखों में देखेंगे कि यरूशलेम ने सदैव अन्य राजाओं के प्रति विद्रोह किया। इसने अन्य राजाओं और राष्द्रों के लिये बहुत कठिनाईयाँ उत्पन्न की हैं। प्राचीन काल से इस नगर में बहुत से विद्रोह का आरम्भ हुआ है! यही कारण है कि यरूशलेम नष्ट हुआ था!
16 राजा अर्तक्षत्र हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि यदि यह नगर और इसके परकोटे फिर से बन गई तो फरात नदी के पश्चिम के क्षेत्र आप के हाथ से निकल जाएँगे।
17 तब अर्तक्षत्र ने यह उत्तर भेजा:
शासनाधिकारी रहूम और सचिव शिमशै और उन के सभी साथियों को जो शोमरोन और परात नदी के अन्य पश्चिमी प्रदेश में रहते हैं, को अपना उत्तर भेजा।
अभिवादन,
18 तुम लोगों ने जो हमारे पास पत्र भेजा उसका अनुवाद हुआ और मुझे सुनाया गया। 19 मैंने आदेश दिया कि मेरे पहले के राजाओं के लेखों की खोज की जाये। लेख पढ़े गये और हम लोगों को ज्ञात हुआ कि यरूशलेम द्वारा राजाओं के विरूद्ध विद्रोह करने का एक लम्बा इतिहास है। यरूशलेम ऐसा स्थान रहा है जहाँ प्राय: विद्रोह और क्रान्तियाँ होती रही हैं। 20 यरूशलेम और फरात नदी के पश्चिम के पूरे क्षेत्र पर शक्तिशाली राजा राज्य करते रहे हैं। राज्य कर और राजा के सम्मान के लिये धन और विविध प्रकार के कर उन राजाओं को दिये गए हैं।
21 अब तुम्हें उन लोगों को काम बन्द करने के लिये एक आदेश देना चाहिए। यह आदेश यरूशलेम के पुन: निर्माण को रोकने के लिये तब तक है, जब तक कि मैं वैसा करने की आज्ञा न दूँ। 22 इस आज्ञा की उपेक्षा न हो, इसके लिये सावधान रहना। हमें यरूशलेम के निर्माण कार्य को जारी नहीं रहने देना चाहिए। यदि काम चलता रहा तो मुझे यरूशलेम से आगे कुछ भी धन नहीं मिलेगा।
23 सो उस पत्र की प्रतिलिपि, जिसे राजा अर्तक्षत्र ने भेजा रहुम, सचिव शिमशै और उनके साथ के लोगों को पढ़कर सुनाई गई। तब वे लोग बड़ी तेज़ी से यरूशलेम में यहूदियों के पास गए। उन्होंने यहुदियों को निर्माण कार्य बन्द करने को विवश कर दिया।
परमेश्वर का ज्ञान
6 जो समझदार हैं, उन्हें हम बुद्धि देते हैं किन्तु यह बुद्धि इस युग की बुद्धि नहीं है, न ही इस युग के उन शासकों की बुद्धि है जिन्हें विनाश के कगार पर लाया जा रहा है। 7 इसके स्थान पर हम तो परमेश्वर के उस रहस्यपूर्ण विवेक को देते हैं जो छिपा हुआ था और जिसे अनादि काल से परमेश्वर ने हमारी महिमा के लिये निश्चित किया था। 8 और जिसे इस युग के किसी भी शासक ने नहीं समझा क्योंकि यदि वे उसे समझ पाये होते तो वे उस महिमावान प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। 9 किन्तु शास्त्र में लिखा है:
“जिन्हें आँखों ने देखा नहीं
और कानों ने सुना नहीं;
जहाँ मनुष्य की बुद्धि तक कभी नहीं पहुँची ऐसी बातें
उनके हेतु प्रभु ने बनायी जो जन उसके प्रेमी होते।”(A)
10 किन्तु परमेश्वर ने उन ही बातों को आत्मा के द्वारा हमारे लिये प्रकट किया है।
आत्मा हर किसी बात को ढूँढ निकालती है यहाँ तक कि परमेश्वर की छिपी गहराइयों तक को। 11 ऐसा कौन है जो दूसरे मनुष्य के मन की बातें जान ले सिवाय उस व्यक्ति के उस आत्मा के जो उसके अपने भीतर ही है। इसी प्रकार परमेश्वर के विचारों को भी परमेश्वर की आत्मा को छोड़ कर और कौन जान सकता है। 12 किन्तु हमने तो सांसारिक आत्मा नहीं बल्कि वह आत्मा पायी है जो परमेश्वर से मिलती है ताकि हम उन बातों को जान सकें जिन्हें परमेश्वर ने हमें मुक्त रूप से दिया है।
13 उन ही बातों को हम मानवबुद्धि द्वारा विचारे गये शब्दों में नहीं बोलते बल्कि आत्मा द्वारा विचारे गये शब्दों से आत्मा की वस्तुओं की व्याख्या करते हुए बोलते हैं। 14 एक प्राकृतिक व्यक्ति परमेश्वर की आत्मा द्वारा प्रकाशित सत्य को ग्रहण नहीं करता क्योंकि उसके लिए वे बातें निरी मूर्खता होती हैं, वह उन्हें समझ नहीं पाता क्योंकि वे आत्मा के आधार पर ही परखी जा सकती हैं। 15 आध्यात्मिक मनुष्य सब बातों का न्याय कर सकता है किन्तु उसका न्याय कोई नहीं कर सकता। क्योंकि शास्त्र कहता है:
16 “प्रभु के मन को किसने जाना?
उसको कौन सिखाए?”(B)
किन्तु हमारे पास यीशु का मन है।
मनुष्यों का अनुसरण उचित नहीं
3 किन्तु हे भाईयों, मैं तुम लोगों से वैसे बात नहीं कर सका जैसे आध्यात्मिक लोगों से करता हूँ। मुझे इसके विपरीत तुम लोगों से वैसे बात करनी पड़ी जैसे सांसारिक लोगों से की जाती है। यानी उनसे जो अभी मसीह में बच्चे हैं। 2 मैंने तुम्हें पीने को दूध दिया, ठोस आहार नहीं; क्योंकि तुम अभी उसे खा नहीं सकते थे और न ही तुम इसे आज भी खा सकते हो 3 क्योंकि तुम अभी तक सांसारिक हो। क्या तुम सांसारिक नहीं हो? जबकि तुममें आपसी ईर्ष्या और कलह मौजूद है। और तुम सांसारिक व्यक्तियों जैसा व्यवहार करते हो। 4 जब तुममें से कोई कहता है, “मैं पौलुस का हूँ” और दूसरा कहता है, “मैं अपुल्लोस का हूँ” तो क्या तुम सांसारिक मनुष्यों का सा आचरण नहीं करते?
दाऊद को समर्पित।
1 हे यहोवा, तू मेरी चट्टान है,
मैं तुझको सहायता पाने को पुकार रहा हूँ।
मेरी प्रार्थनाओं से अपने कान मत मूँद,
यदि तू मेरी सहायता की पुकार का उत्तर नहीं देगा,
तो लोग मुझे कब्र में मरा हुआ जैसा समझेंगे।
2 हे यहोवा, तेरे पवित्र तम्बू की ओर मैं अपने हाथ उठाकर प्रार्थना करता हूँ।
जब मैं तुझे पुकारुँ, तू मेरी सुन
और तू मुझ पर अपनी करुणा दिखा।
3 हे यहोवा, मुझे उन बुरे व्याक्तियों की तरह मत सोच जो बुरे काम करते हैं।
जो अपने पड़ोसियों से “सलाम” (शांति) करते हैं, किन्तु अपने हृदय में अपने पड़ोसियों के बारे में कुचक्र सोचते हैं।
4 हे यहोवा, वे व्यक्ति अन्य लोगों का बुरा करते हैं।
सो तू उनके साथ बुरी घटनाएँ घटा।
उन दुर्जनों को तू वैसे दण्ड दे जैसे उन्हें देना चाहिए।
5 दुर्जन उन उत्तम बातों को जो यहोवा करता नहीं समझते।
वे परमेश्वर के उत्तम कर्मो को नहीं देखते। वे उसकी भलाई को नहीं समझते।
वे तो केवल किसी का नाश करने का यत्न करते हैं।
6 यहोवा की स्तुति करो!
उसने मुझ पर करुणा करने की विनती सुनी।
7 यहोवा मेरी शक्ति है, वह मेरी ढाल है।
मुझे उसका भरोसा था।
उसने मेरी सहायता की।
मैं अति प्रसन्न हूँ, और उसके प्रशंसा के गीत गाता हूँ।
8 यहोवा अपने चुने राजा की रक्षा करता है।
वह उसे हर पल बचाता है। यहोवा ही उसका बल है।
9 हे परमेश्वर, अपने लोगों की रक्षा कर।
जो तेरे हैं उनको आशीष दे।
उनको मार्ग दिखा और सदा सर्वदा उनका उत्थान कर।
24 यहोवा निर्णय करता है कि हर एक मनुष्य के साथ क्या घटना चाहिये। कोई मनुष्य कैसा समझ सकता है कि उसके जीवन में क्या घटने वाला है।
25 यहोवा को कुछ अर्पण करने की प्रतिज्ञा से पूर्व ही विचार ले; भली भांति विचार ले। सम्भव है यदि तू बाद में ऐसा सोचे, “अच्छा होता मैं वह मन्नत न मानता।”
© 1995, 2010 Bible League International