Book of Common Prayer
विश्वास का पदार्पण
23 मसीह येशु में विश्वास के प्रकाशन से पहले हम व्यवस्था के संरक्षण में रखे गए—उस विश्वास से अनजान, जो प्रकट होने पर था. 24 इसलिए व्यवस्था हमें मसीह तक पहुंचाने के लिए हमारा संरक्षक हुआ कि हम विश्वास द्वारा धर्मी ठहराए जाएँ 25 परन्तु अब, जब विश्वास आ चुका है, हम संरक्षक के अधीन नहीं रहे.
26 इसलिए तुम सब मसीह येशु में विश्वास द्वारा परमेश्वर की सन्तान हो. 27 तुम सबने, जो मसीह में बपतिस्मा लिए हो, मसीह को धारण कर लिया है. 28 इसलिए अब न कोई यहूदी है, न कोई यूनानी; न कोई स्वतन्त्र है, न कोई दास और न कोई पुरुष है, न कोई स्त्री क्योंकि तुम सब मसीह येशु में एक हो. 29 यदि तुम मसीह के हो, तो तुम अब्राहाम के वंशज हो—परमेश्वर की प्रतिज्ञा के वारिस.
परमेश्वर की संतान
4 मेरा कहने का उद्धेश्य यह है कि जब तक वारिस बालक है, दास और उसमें किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं होता, यद्यपि वह हर एक वस्तु का स्वामी है. 2 वह पिता द्वारा निर्धारित समय तक के लिए रक्षकों व प्रबन्धकों के संरक्षण में रहता है. 3 इसी प्रकार हम भी, जब बालक थे, संसार की आदि शिक्षा के अधीन दासत्व में थे. 4 किन्तु निर्धारित समय के पूरा होने पर परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मे, व्यवस्था के अधीन, 5 कि उन सबको छुड़ा लें, जो व्यवस्था के अधीन हैं, कि हम परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार प्राप्त कर सकें. 6 अब इसलिए कि तुम सन्तान हो, परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो अब्बा, पिता पुकारता है, हमारे हृदयों में भेज दिया है. 7 इसलिए अब तुम दास नहीं परन्तु सन्तान बन गए हो और यदि तुम सन्तान हो तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी.
संसार की ज्योति मसीह येशु
12 मन्दिर में अपनी शिक्षा को दोबारा आरम्भ करते हुए मसीह येशु ने लोगों से कहा, “मैं ही संसार की ज्योति हूँ. जो कोई मेरे पीछे चलता है, वह अन्धकार में कभी न चलेगा क्योंकि जीवन की ज्योति उसी में बसेगी.”
13 तब फ़रीसियों ने उनसे कहा, “तुम अपने ही विषय में गवाही दे रहे हो इसलिए तुम्हारी गवाही स्वीकार नहीं की जा सकती है.”
14 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि मैं स्वयं अपने विषय में गवाही दे भी रहा हूँ, तो भी मेरी गवाही स्वीकार की जा सकती है क्योंकि मुझे मालूम है कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ; किन्तु तुम लोग नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया और कहाँ जा रहा हूँ. 15 तुम लोग मानवीय सोच से अन्य लोगों का न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता. 16 यदि मैं किसी का न्याय करूँ भी तो वह सही ही होगा क्योंकि इसमें मैं अकेला नहीं—इसमें मैं और मेरे भेजनेवाले दोनों मिले हैं. 17 तुम्हारी व्यवस्था में ही यह लिखा है कि दो व्यक्तियों की गवाही सच के रूप में स्वीकार की जा सकती है. 18 एक गवाह तो मैं हूँ, जो स्वयं अपने विषय में गवाही दे रहा हूँ और मेरे विषय में अन्य गवाह—मेरे भेजनेवाले—पिता परमेश्वर हैं”.
19 तब उन्होंने मसीह येशु से पूछा, “कहाँ है तुम्हारा यह पिता?” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “न तो तुम मुझे जानते हो और न ही मेरे पिता को; यदि तुम मुझे जानते तो मेरे पिता को भी जान लेते.” 20 मसीह येशु ने ये वचन मन्दिर परिसर में शिक्षा देते समय कहे, फिर भी किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला क्योंकि उनका समय अभी नहीं आया था.
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