Book of Common Prayer
पौलॉस का बन्दी बनाया जाना
27 जब सात दिन प्रायः समाप्त होने पर ही थे, आसिया प्रदेश से वहाँ आए कुछ यहूदियों ने पौलॉस को मन्दिर में देख लिया. उन्होंने सारी मौजूद भीड़ में कोलाहल मचा दिया और पौलॉस को यह कहते हुए बन्दी बना लिया, 28 “प्रिय इस्राएलियो! हमारी सहायता करो! यही है वह, जो हर जगह हमारे राष्ट्र, व्यवस्था के नियमों तथा इस मन्दिर के विरुद्ध शिक्षा देता फिर रहा है. इसके अलावा यह यूनानियों को भी मन्दिर के अंदर ले आया है. अब यह पवित्र स्थान अपवित्र हो गया है.” 29 वास्तव में इसके पहले उन्होंने इफ़ेसॉसवासी त्रोफ़िमस को पौलॉस के साथ नगर में देख लिया था इसलिए वे समझे कि पौलॉस उसे अपने साथ मन्दिर में ले गए थे.
30 सारे नगर में खलबली मच गई. लोग एक साथ पौलॉस की ओर लपके, उन्हें पकड़ा और उन्हें घसीट कर मन्दिर के बाहर कर दिया और तुरन्त द्वार बन्द कर दिए गए. 31 जब वे पौलॉस की हत्या की योजना कर ही रहे थे, रोमी सेनापति को सूचना दी गई कि सारे नगर में कोलाहल मचा हुआ है. 32 सेनापति तुरन्त अपने साथ कुछ सैनिक और अधिकारियों को लेकर दौड़ता हुआ घटना स्थल पर जा पहुँचा. सेनापति और सैनिकों को देखते ही, उन्होंने पौलॉस को पीटना बन्द कर दिया. 33 सेनापति ने आगे बढ़कर पौलॉस को पकड़ कर उन्हें दो-दो बेड़ियों से बान्धने की आज्ञा दी और लोगों से प्रश्न किया कि यह कौन है और क्या किया है इसने? 34 किन्तु भीड़ में कोई कुछ चिल्ला रहा था तो कोई कुछ. जब सेनापति कोलाहल के कारण सच्चाई न जान पाया, उसने पौलॉस को सेना गढ़ में ले जाने का आदेश दिया. 35 जब वे सीढ़ियों तक पहुँचे, गुस्से में बलवा करने को उतारु भीड़ के कारण सुरक्षा की दृष्टि से सैनिक पौलॉस को उठाकर अंदर ले गए. 36 भीड़ उनके पीछे-पीछे यह चिल्लाती हुई चल रही थी, “मार डालो उसे!”
दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की तीसरी भविष्यवाणी
(मत्ति 20:17-19; लूकॉ 18:31-34)
32 येरूशालेम नगर की ओर जाते हुए मसीह येशु उन सबके आगे-आगे चल रहे थे. शिष्य चकित थे तथा अन्य पीछे चलने वाले लोग डरे हुए थे. बारहों को अलग ले जाकर मसीह येशु ने उन्हें बताना प्रारम्भ किया कि स्वयं उनके साथ क्या-क्या होना ज़रूरी है. 33 “हम येरूशालेम नगर को जा रहे हैं. वहाँ मनुष्य के पुत्र को प्रधान पुरोहितों तथा शास्त्रियों के हाथों में सौंप दिया जाएगा. वे उस पर मृत्युदण्ड की आज्ञा प्रसारित करेंगे तथा उसे अन्यजातियों को सौंप देंगे. 34 वे सब उसकी ठठ्ठा करेंगे, उस पर थूकेंगे, कोड़े लगाएँगे, और उसकी हत्या कर देंगे तथा तीन दिन बाद वह मरे हुओं में से फिर जीवित हो जाएगा.”
ज़ेबेदियॉस के पुत्रों की विनती
35 ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्र, याक़ोब तथा योहन, मसीह येशु के पास आ कर विनती कर कहने लगे, “गुरुवर, हमारी इच्छा है कि हम आप से जो भी विनती करें, आप उसे हमारे लिए पूरी कर दें.”
36 मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो?”
37 “हमारी इच्छा है कि आपकी महिमा के समय में हम आपकी दायीं तथा बायीं ओर में बैठें,” उन्होंने विनती की.
38 इस पर मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम्हें तो यह मालूम ही नहीं कि तुम क्या माँग रहे हो. क्या तुम में वह प्याला पीने की क्षमता है जिसे मैं पीने पर हूँ, या तुममें उस बपतिस्मा में बपतिस्मित होने की क्षमता है, जिसमें मुझे बपतिस्मा दिया गया है?”
39 उन्होंने उत्तर दिया, “अवश्य.” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “वह प्याला, जो मैं पिऊँगा, तुम भी पिओगे तथा तुम्हें वही बपतिस्मा दिया जाएगा, जो मुझे दिया गया है 40 किन्तु किसी को अपने दायें या बायें पक्ष में बैठाना मेरा अधिकार नहीं है. ये स्थान उन्हीं के लिए सुरक्षित हैं, जिन्हें इनके लिए तैयार किया गया है.”
41 जब शेष दस ने यह सब सुना तो वे याक़ोब और योहन पर नाराज़ हो गए. 42 उन सब को अपने पास बुला कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “वे, जो अन्यजातियों में शासकों के रूप में जाने जाते हैं, उनको दबाया करते तथा उनके बड़े अधिकारी उन पर अपना अधिकार दिखाया करते हैं 43 किन्तु तुम्हारे विषय में ऐसा नहीं है. तुममें जो बड़ा बनने का इच्छुक है, उसको तुम्हारा सेवक हो जाना ज़रूरी है. 44 तुममें जो प्रथम होने का इच्छुक है, उसको सबका दास हो जाना ज़रूरी है 45 क्योंकि स्वयं मनुष्य का पुत्र अन्यों से सेवा कराने नहीं परन्तु सेवा करने तथा अनेकों के उद्धार के लिए फिरौती के रूप में अपने प्राण बलिदान करने आया है.”
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