Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
12 इसी आशा के कारण हमारी बातें बिना डर की है. 13 हम मोशेह के समान भी नहीं, जो अपना मुख इसलिए ढ़का रखते थे कि इस्राएल के लोग उस धीरे-धीरे कम होते हुए तेज को न देख पाएँ. 14 वास्तव में इस्राएल के लोगों के मन मन्द हो गए थे. पुराना नियम देने के अवसर पर आज भी वही पर्दा पड़ा रहता है क्योंकि यह पर्दा सिर्फ मसीह में हटाया जाता है. 15 हाँ, आज भी जब कभी मोशेह का ग्रन्थ पढ़ा जाता है, उनके हृदय पर पर्दा पड़ा रहता है. 16 यह पर्दा उस समय हटता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु की ओर मन फिराता है. 17 यही प्रभु वह आत्मा हैं तथा जहाँ कहीं प्रभु का आत्मा मौजूद हैं, वहाँ स्वतंत्रता है 18 और हम, जो खुले मुख से प्रभु की महिमा निहारते हैं, उनके स्वरूप में धीरे-धीरे बढ़ती हुई महिमा के साथ बदलते जा रहे हैं. यह महिमा प्रभु से, जो आत्मा हैं, बाहर निकलती है.
मिट्टी के पात्रों में रखी हुई निधि
4 इसलिए कि यह सेवकाई हमें परमेश्वर की कृपा से प्राप्त हुई है, हम निराश नहीं होते. 2 हमने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया है. न तो हमारे स्वभाव में किसी प्रकार की चतुराई है और न ही हम परमेश्वर के वचन को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं. किन्तु सच्चाई को प्रकट करके हम परमेश्वर के सामने स्वयं को हर एक के विवेक के लिए प्रस्तुत करते हैं.
मसीह येशु का रूपान्तरण
(मत्ति 17:1-13; मारक 9:2-13)
28 अपनी इस बात के लगभग आठ दिन बाद मसीह येशु पेतरॉस, योहन तथा याक़ोब को साथ ले कर एक ऊँचे पर्वत शिखर पर प्रार्थना करने गए. 29 जब मसीह येशु प्रार्थना कर रहे थे, उनके मुखमण्डल का रूप बदल गया तथा उनके वस्त्र सफ़ेद और उजले हो गए. 30 दो व्यक्ति—मोशेह तथा एलियाह—उनके साथ बातें करते दिखाई दिए. 31 वे भी स्वर्गीय तेज में थे. उनकी बातों का विषय था मसीह येशु का जाना, जो येरूशालेम नगर में शीघ्र ही होने पर था. 32 पेतरॉस तथा उनके साथी अत्यन्त नींद में थे किन्तु जब वे पूरी तरह जाग गए, उन्होंने मसीह येशु को उनके स्वर्गीय तेज में उन दो व्यक्तियों के साथ देखा. 33 जब वे पुरुष मसीह येशु के पास से जाने लगे पेतरॉस मसीह येशु से बोले, “प्रभु! हमारे लिए यहाँ होना कितना अच्छा है! हम यहाँ तीन मण्डप बनाएँ: एक आपके लिए, एक मोशेह के लिए तथा एक एलियाह के लिए.” स्वयं उन्हें अपनी इन कही हुई बातों का मतलब नहीं पता था.
34 जब पेतरॉस यह कह ही रहे थे, एक बादल ने उन सब को ढ़ाँप लिया. बादल से घिर जाने पर वे भयभीत हो गए. 35 बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी: “यह मेरा पुत्र है—मेरा चुना हुआ. इसके आदेश का पालन करो.” 36 आवाज़ का कहना समाप्त होने पर उन्होंने देखा कि मसीह येशु अकेले हैं. जो कुछ उन्होंने देखा था, उन्होंने उस समय उसका वर्णन किसी से भी न किया. वे इस विषय में मौन बने रहे.
विक्षिप्त प्रेतात्मा से पीड़ित की मुक्ति
(मत्ति 17:14-21; मारक 9:17-29)
37 अगले दिन जब वे पर्वत से नीचे आए, एक बड़ी भीड़ वहाँ इकट्ठा थी. 38 भीड़ में से एक व्यक्ति ने ऊँचे शब्द में पुकार कर कहा, “गुरुवर! आप से मेरी विनती है कि आप मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें क्योंकि वह मेरी इकलौती सन्तान है. 39 एक प्रेत अक्सर उस पर प्रबल हो जाता है और वह सहसा चीखने लगता है. प्रेत उसे भूमि पर पटक देता है और मेरे पुत्र को ऐंठन प्रारम्भ हो जाती है और उसके मुख से फेन निकलने लगता है. यह प्रेत कदाचित ही उसे छोड़ कर जाता है—वह उसे नाश करने पर उतारु है. 40 मैंने आपके शिष्यों से विनती की थी कि वे उसे मेरे पुत्र में से निकाल दें किन्तु वे असफल रहे.”
41 “अरे ओ अविश्वासी और बिगड़ी हुई पीढ़ी!” मसीह येशु ने कहा, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, कब तक धीरज रखूंगा? यहाँ लाओ अपने पुत्र को!”
42 जब वह बालक पास आ ही रहा था, प्रेत ने उसे भूमि पर पटक दिया, जिससे उसके शरीर में ऐंठन प्रारम्भ हो गई किन्तु मसीह येशु ने प्रेत को डाँटा, बालक को स्वस्थ किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया. 43 परमेश्वर का प्रताप देख सभी चकित रह गए.
दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की दूसरी घोषणा
(मत्ति 17:22, 23; मारक 9:30-32)
जब सब लोग इस घटना पर अचम्भित हो रहे थे मसीह येशु ने अपने शिष्यों से कहा,
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