Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
दाम्पत्य नैतिकता के लिए निर्देश
21 मसीह में आदर के कारण एक दूसरे के प्रति समर्पित रहो.
22 पत्नी अपने पति के अधीन उसी प्रकार रहे, जैसे प्रभु के 23 क्योंकि पति उसी प्रकार अपनी पत्नी का सिर है, जिस प्रकार मसीह अपनी देह कलीसिया के सिर हैं, जिसके वह उद्धारकर्ता भी हैं. 24 जिस प्रकार कलीसिया मसीह के आधीन है, उसी प्रकार पत्नी हर एक विषय में पति के आधीन रहे.
25 पति अपनी पत्नी से उसी प्रकार प्रेम करे जिस प्रकार मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और स्वयं को उसके लिए बलिदान कर दिया 26 कि वह उसे वचन के स्नान के द्वारा पाप से शुद्ध कर अपने लिए अलग करे 27 कि उसे अपने लिए ऐसी तेजस्वी कलीसिया बना कर पेश करें जिसमें न कोई कलंक, न कोई झुर्री, न ही इनके जैसा कोई दोष हो परन्तु वह पवित्र व निष्कलंक हो. 28 इसी प्रकार पति के लिए उचित है कि वह अपनी पत्नी से वैसे ही प्रेम करे जैसे अपने शरीर से करता है. वह, जो अपनी पत्नी से प्रेम करता है, स्वयं से प्रेम करता है 29 क्योंकि कोई भी अपने शरीर से घृणा नहीं करता परन्तु स्नेहपूर्वक उसका पोषण करता है—जिस प्रकार मसीह कलीसिया का करते हैं 30 क्योंकि हम उनके शरीर के अंग हैं. 31 इस कारण पुरुष अपने माता-पिता का मोह त्याग कर अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन हो जाएँगे 32 यह एक गहरा भेद है और मैं यह मसीह और कलीसिया के संदर्भ में उपयोग कर रहा हूँ 33 फिर भी तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम करें और पत्नी अपने पति का सम्मान करे.
पारिवारिक नैतिकता के विषय में निर्देश
6 हे बालकों, प्रभु में अपने माता-पिता का आज्ञापालन करें क्योंकि उचित यही है. 2 अपने माता-पिता का सम्मान करो—आज्ञाओं में से यह ऐसा पहिली आज्ञा है जिसके साथ प्रतिज्ञा जुड़ी है 3 तुम्हारा भला हो और तुम पृथ्वी पर बहुत दिन तक जीवित रहो. 4 तुम में जो पिता हैं, अपनी सन्तान को रिस न दिलाएं परन्तु प्रभु की शिक्षा व अनुशासन में उनका पालन-पोषण करें.
5 जो दास हैं, अपने सांसारिक स्वामियों का आज्ञापालन सच्चाई से व एकचित्त होकर ऐसे करें मानो मसीह का. 6 यह सब दिखावे मात्र व उन्हें प्रसन्न करने के उद्धेश्य मात्र से नहीं परन्तु मसीह के दास के रूप में हृदय से परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति करते हुए हो. 7 सच्चे हृदय से स्वामियों की सेवा इस प्रकार करते रहो मानो मनुष्य मात्र की नहीं परन्तु प्रभु की सेवा कर रहे हो 8 यह जानते हुए कि हर एक मनुष्य चाहे वह दास हो या स्वतन्त्र, अपने अच्छे कामों का प्रतिफल प्रभु से प्राप्त करेगा.
9 जो स्वामी हैं, वे भी दासों के साथ ऐसा ही व्यवहार करें और उन्हें डराना-धमकाना छोड़ दें, यह ध्यान रखते हुए कि तुम्हारे व दासों दोनों ही के स्वामी स्वर्ग में हैं, जिनके स्वभाव में किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं है.
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