Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
15 अपने स्वभाव के विषय में विशेष रूप से सावधान रहो. तुम्हारा स्वभाव मूर्खों-सा न हो परन्तु बुद्धिमानों-सा हो. 16 समय का सदुपयोग करो क्योंकि यह बुरे दिनों का समय है. 17 इसलिए निर्बुद्धि नहीं परन्तु प्रभु की इच्छा के ज्ञान के लिए विवेक प्राप्त करो. 18 दाखरस से मतवाले न हो क्योंकि यह लुचपन है परन्तु पवित्रात्मा से भर जाओ. 19 तब प्रभु के लिए आपस में सारे हृदय से तुम भजन, स्तुतिगान व आत्मिक गीत गाते रहो. 20 हर एक विषय के लिए हमेशा हमारे प्रभु मसीह येशु के नाम में पिता परमेश्वर के प्रति धन्यवाद देते रहो.
51 मैं ही स्वर्ग से उतरी जीवन की रोटी हूँ. जो कोई यह रोटी खाता है, वह हमेशा जीवित रहेगा. जो रोटी मैं दूँगा, वह संसार के जीवन के लिए भेंट मेरा शरीर है.”
52 यह सुन कर यहूदी आपस में विवाद करने लगे, “यह व्यक्ति कैसे हमें अपना शरीर खाने के लिए दे सकता है?”
53 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का शरीर न खाओ और उसका लहू न पियो, तुम में जीवन नही. 54 अनन्त काल का जीवन उसी का है, जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है; अन्तिम दिन मैं उसे फिर से जीवित करूँगा. 55 मेरा शरीर ही वास्तविक भोजन और मेरा लहू ही वास्तविक पेय है. 56 जो मेरा शरीर खाता और मेरा लहू पीता है, वही है, जो मुझमें बना रहता है और मैं उसमें. 57 जैसे जीवन्त पिता परमेश्वर ने मुझे भेजा है और मैं पिता के कारण जीवित हूँ, वैसे ही वह भी, जो मुझे ग्रहण करता है, मेरे कारण जीवित रहेगा. 58 यह वह रोटी है, जो स्वर्ग से उतरी हुई है; वैसी नहीं, जो पूर्वजों ने खाई और फिर भी उनकी मृत्यु हो गई; परन्तु वह, जो यह रोटी खाता है, हमेशा जीवित रहेगा.”
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