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Old/New Testament

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Saral Hindi Bible (SHB)
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योहन 11:30-57

30 मसीह येशु ने अब तक नगर में प्रवेश नहीं किया था. वह वहीं थे, जहाँ मार्था ने उनसे भेंट की थी. 31 जब वहाँ शान्ति देने आए यहूदियों ने मरियम को एकाएक उठ कर बाहर जाते हुए देखा तो वे भी उसके पीछे-पीछे यह समझ कर चले गए कि वह क़ब्र पर रोने के लिए जा रही है.

32 मसीह येशु के पास पहुँच मरियम उनके चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी, “प्रभु, यदि आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु न होती.”

33 मसीह येशु ने उसे और उसके साथ आए यहूदियों को रोते हुए देखा तो उनका हृदय व्याकुल हो उठा. उन्होंने उदास शब्द में पूछा, 34 “तुमने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उनसे कहा.

“आइए, प्रभु, देख लीजिए.”

35 मसीह येशु के आँसू बहने लगे.

36 यह देख यहूदी कहने लगे, “देखो वह इन्हें कितना प्रिय था!”

37 परन्तु उनमें से कुछ ने कहा, “क्या यह, जिन्होंने अंधे को आँखों की रोशनी दी, इस व्यक्ति को मृत्यु से बचा न सकते थे?”

मृत लाज़रॉस का उज्जीवन

38 दोबारा बहुत उदास हो मसीह येशु क़ब्र पर आए, जो वस्तुत: एक कन्दरा थी, जिसके प्रवेश द्वार पर एक पत्थर रखा हुआ था. 39 मसीह येशु ने वह पत्थर हटाने को कहा. मृतक की बहन मार्था ने आपत्ति प्रकट करते हुए उनसे कहा, “प्रभु, उसे मरे हुए चार दिन हो चुके हैं. अब तो उसमें से दुर्गन्ध आ रही होगी.”

40 मसीह येशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि यदि तुम विश्वास करोगी तो परमेश्वर की महिमा को देखोगी?”

41 इसलिए उन्होंने पत्थर हटा दिया. मसीह येशु ने अपनी आँखें ऊपर उठाईं और कहा, “पिता, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरी सुन ली. 42 मैं जानता हूँ कि आप हमेशा मेरी सुनते हैं किन्तु यहाँ उपस्थित भीड़ के कारण मैंने ऐसा कहा है कि वे सब विश्वास करें कि आप ने ही मुझे भेजा है.” 43 तब उन्होंने ऊँचे शब्द में पुकारा, “लाज़रॉस, बाहर आ जाओ!” 44 वह, जो चार दिन से मरा हुआ था, बाहर आ गया. उसका सारा शरीर पट्टियों में और उसका मुख कपड़े में लिपटा हुआ था. मसीह येशु ने उनसे कहा, “इसे खोल दो और जाने दो.”

45 यह देख मरियम के पास आए यहूदियों में से अनेकों ने मसीह येशु में विश्वास किया. 46 परन्तु कुछ ने फ़रीसियों को जा बताया कि मसीह येशु ने क्या-क्या किया था.

मसीह येशु की हत्या का षड़यन्त्र

47 तब प्रधान पुरोहितों और फ़रीसियों ने महासभा बुलाई और कहा, “हम इस व्यक्ति के विषय में क्या कर रहे हैं? यह अद्भुत चिह्नों पर चिह्न दिखा रहा है! 48 यदि हम इसे ये सब यों ही करते रहने दें तो सभी इसमें विश्वास करने लगेंगे और रोमी हमसे हमारे अधिकार व राष्ट्र दोनों ही छीन लेंगे.”

49 तब सभा में उपस्थित उस वर्ष के महायाजक कायाफ़स ने कहा, “आप न तो कुछ जानते हैं 50 और न ही यह समझते हैं कि आपका हित इसी में है कि सारे राष्ट्र के विनाश की बजाय मात्र एक व्यक्ति राष्ट्र के हित में प्राणों का त्याग करे.”

51 यह उसने अपनी ओर से नहीं कहा था परन्तु उस वर्ष के महायाजक होने के कारण उसने यह भविष्यवाणी की थी कि राष्ट्र के हित में मसीह येशु प्राणों का त्याग करेंगे, 52 और न केवल राष्ट्र के हित में परन्तु परमेश्वर की तितर-बितर सन्तान को इकट्ठा करने के लिए भी. 53 उस दिन से वे सब एकजुट हो कर उनकी हत्या की योजना बनाने लगे.

54 इसलिए मसीह येशु ने यहूदियों के मध्य सार्वजनिक रूप से घूमना बन्द कर दिया. वहाँ से वह जंगल के पास अपने शिष्यों के साथ एफ़्रायिम नामक नगर में जा कर रहने लगे.

दुःख-भोग के पूर्व आसन्न फ़सह पर्व

55 यहूदियों का फ़सह पर्व पास था. आसपास से अनेक लोग येरूशालेम गए कि फ़सह में सम्मिलित होने के लिए स्वयं को सांस्कारिक रूप से शुद्ध करें. 56 वे मसीह येशु की खोज में थे और मन्दिर परिसर में खड़े हुए एक-दूसरे से पूछ रहे थे, “तुम्हारा क्या विचार है, वह पर्व में आएगा या नहीं?” 57 प्रधान पुरोहितों और फ़रीसियों ने मसीह येशु को बन्दी बनाने के उद्देश्य से आज्ञा दे रखी थी कि जिस किसी को उनकी जानकारी हो, वह उन्हें तुरन्त सूचित करे.

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